Kakran
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Kakran (काकरान)/(काकराण)[1][2][3] Kankran/Kankaran (कांकरान) Kankara (कांकरा) Kakrana (काकराना) Kakkur (कक्कुर)[4] Kakk (कक्क)[5] Kakusth (काकुस्थ)/ Kakrana (काकराणा)/Kak (काक)/ Kuk (कुक)/Kakk (कक्क)/ Kaktiy (काकतीय)/Kukar (कुकर)/Kukkar (कुक्कर)[6]/Kak (कक)[7] is a gotra of Jats found in Uttar Pradesh, Haryana, Rajasthan and Madhya Pradesh in India. The Suryavanshi Kakusth, Kak, Khak, Chaudehrana, and Thukrele clans are branches of Kakran.
Origin
They are said to be the descendants of Suryavanshi King Kakustha (काकुस्थ).[8]
Jat Gotras Namesake
Gangra is a historical city presently called Çankırı, the capital city of Çankırı Province, in Turkey. Pliny has mentioned it as Gangre. [9]. Its Variants are: Cankiri, Çankırı, Changra, Gagra for the Jews, Gangra (Greek: Γάγγρα), Gangre (Pliny.vi.2), Germanicopolis (Greek: Γερμανικόπολις), Hangara for the Arabs, Kandari, Kanghari, Kângıri or Çankıri for the Turks, Kankiri, Tzungra for the Turks, Kiengareh, Kangreh, Changeri.
Connections of Kakrana Jats with Rama
From 'Kakustha' started a Jat vansha known as 'Kusth' or Kakvansh. This later changed due to language variations to 'Kakustha', Kāk, Kāktīya, Kakka, Kuk, Kukkur, Kak and Kākarāṇ. In this very clan was born Dashratha's grandfather Raghu who started Raghuvansh. Raghuvanshi Jats are also descendants of him who are also known as 'Raghuvanshi Sikarwar’. During Ramayana period, in Balmiki Ramayana, Deva Samhita, Vishnu Puran, Shiv Puran, Vedas etc there is mention of Jats and their republics at various places. Jatvansha joined his army of Vashishtha Rishi in his support and fought war with Vishvamitra. This was a very severe war in which thousands of Jat soldiers were killed. [10]
Bhaleram Beniwal has provided evidences from ‘Balkand ekonavish sarga shloka-16’, ‘Balkand dvavish sarga shloka-6’, ‘Balkand dvavish sarga shloka-20’, ‘Balkand panchvish sarga shloka-15’, ‘Balkand pratham sarga shloka-56’ to prove that Dashratha and his son Rama were ‘kakusth’ and Raghuvanshi Jats. Rama has been addressed by the names Raghunandan, Raghukul, Kakasthkul, and Raghuvanshi. Later Lava, elder son of Rama started Lamba gotra in Jats and Kusha started Kachhavahi or kushavansha whose descendant Brahdal was killed by Abhimanyu, son of Arjuna. Suryavanshi kushavansha Jats ruled Ayodhya from 3100 BC to 500 BC. In the 21st generation of Ikshvaku was born Mandhata who has been written and proved as Gaurvanshi Jat in genealogy of Suryavanshi kings. [11] One of sons of Mandhata was Ambarish. His son was Yuvanashva and his son was Harita who was a great Rishi. The descendants of this king became Brahman who were known as Gaur Brahmans. [12]
In Supreme Court of India while deciding Ayodhya Case
The following historical facts about Rama's lineage were submitted in Supreme Court of India through Civil Appeal 4739/2011, Akhil Bharat Hindu Mahasabha Vs Bhagwan Sri Ram Lala Virajman. The judgement on this appeal was passed along with Civil Appeal Nos 10866-10867 of 2010, M Siddiq (D) Thr Lrs (Appellants) Versus Mahant Suresh Das & Ors (Respondents), of which Civil Appeal 4739/2011 was an integral part, while deciding Ayodhya Case. The Hindi translation of these pages was rendered by Prof. H R Isran.
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
सिविल अपील नंबर 4739/2011
अखिल भारत हिंदू महासभा --- पिटीशनर
बनाम
भगवान श्री रामलला विराजमान -- प्रतिवादी
पिटीशनर की ओर से लिखित निवेदन:
1. उक्त वर्णित सिविल अपील की सुनवाई माननीय सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ में हो रही है। तथापि अपीलकर्ताओं द्वारा अवलोकित किया गया है कि कुछ समुदाय/जातियां अपनी जाति का महिमामंडन करने के उद्देश्य से ऐसे तर्क पेश कर रहे हैं कि श्री रामजी जाति से राजपूत थे। विनम्रतापूर्वक निवेदन है कि यह तर्क तथ्यात्मक रूप से पूर्णतया असत्य है और अपीलकर्ता ऐतिहासिक तथ्य और साक्ष्य आगे के पैराग्राफ में यह सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत करेगा कि श्री राम जी राजपूत नहीं थे। इसे साबित करने और इसे तथ्य से पुष्टि करने हेतु इतिहास की पुस्तकें, टीकाएं, राजस्थान का इतिहास, राजस्थान के राजपूतों का इतिहास, बीकानेर का इतिहास (वर्तमान में राजस्थान राज्य का एक जिला ) और कुछ अन्य सुसंगत साहित्य विद्यमान है।
2. अपीलकर्ता यह प्रार्थना पत्र इंटरवीनर (अन्तरायक/दस्तंदाज़) बनने के लिए मात्र इस ध्येय से दाखिल कर रहे हैं कि ऐतिहासिक बेंच के निर्णय में अगर कोई गलती अनजाने में हो जाती है तो यह समाज को गलत और विकृत/तोड़ी-मरोड़ी सूचना देगा। इसलिए इस उद्देश्य से यह सविनय प्रार्थना है कि अपीलकर्ताओं को उक्त वर्णित सिविल अपील में इंटरवेनर्स के रूप में शामिल किया जाए और उन्हें अपने मौखिक दलीलें रखने का कुछ समय दिया जाए ताकि इस माननीय न्यायालय को केस के तथ्यात्मक मैट्रिक्स (सांचे) से अवगत करवाया जा सके।
3. कि अपीलकर्ता सुशिक्षित व्यक्ति हैं, और जिस विषय का फैसला माननीय न्यायालय द्वारा किया जाना है, उसके बारे में व्यापक व गहन ज्ञान रखते हैं। ऐसे संवैधानिक बेंच निर्णय भारतीय संविधान के आर्टिकल 141 के तहत आने वाले सालों के लिए नज़ीर होते हैं। अतः यह प्रार्थना पत्र समाज और न्याय के व्यापक हित के लिए स्वीकार किया जाना चाहिए।
4. कि लेखक रामदास रोड (Roaor) ने अपनी पुस्तक 'भारत का गौरवशाली इतिहास', संस्करण 15. 8. 2006 में पृष्ठ 81 व 82 के नीचे स्पष्ट रूप में लिखा है:
" राजपूतों का 747 एडी में उद्भव/ उत्पत्ति।".
भारत का अध्ययन, लेखक Harman Cool K. और Dytmar Shether Mund , पृष्ठ संख्या 117, ऑस्ट्रेलिया लंदन, दिल्ली आदि में प्रकाशित।
ऐतिहासिक रिवाज/दस्तूर के आधार पर जो कि 747 एडी में शंकराचार्य की अध्यक्षता में माउंट आबू पहाड़ी (जो कि अब राजस्थान राज्य में है) पर यज्ञ (अग्नि धामिर्क मीटिंग) किया गया, उसमें सभी राज-कुलों का अग्नि के समक्ष शुद्धिकरण किया गया और क्षत्रिय का दर्जा दिया गया।
उपर्युक्त ब्यौरे के अनुसार, 747 एडी के यज्ञ में अग्नि के समक्ष शपथ ली गई सभी चारों वंश एकजुट होंगे और राष्ट्र की रक्षा करेंगे। इसके अतिरिक्त कश्यप राजपूत, मेड राजपूत, ओड़ राजपूत समुदायों को क्षत्रिय का दर्जा दिया गया।
क्षत्रिय राजाओं के लिए राजपूत शब्द का उल्लेख सन 1318 में लिखी पुस्तक में मिलता है। (Dr Arya 'Examination by Thakur Force')
राजपूत शब्द का प्रारंभ सन 1397 में प्रकाशित पुस्तक 'चंदायान' (Chandayan) में हुआ।
5. कि लेखक कर्नल टॉड ने अपनी पुस्तक 'राजस्थान का इतिहास' के पृष्ठ संख्या 42 और 43 पर निम्नानुसार लिखा है:
हुवानसेंग, चीनी यात्री ने 686 से 702 के दौरान भारत की यात्रा की और अपनी इस यात्रा की झलकियों के बारे में लिखा है जो कि भूगोल, इतिहास, संस्कृति, धर्म, भारत के लोगों के रहन-सहन के बारे में जानने के लिए बेहद सुसंगत हैं। उस पुस्तक में उसने कुछ राजाओं के बारे में उल्लेख किया है, हालांकि उसने उनका केवल क्षत्रिय के रूप में वर्णन किया है। उसने उनका कहीं पर भी राजपूत नाम से वर्णन नहीं किया है।
मुस्लिम शासन के दौरान क्षत्रियों के राज्य समाप्त हो गए थे और अगर कुछ टिके रह भी गए थे तो वे मुस्लिम शासकों के अधीन हो गए थे। इसलिए वे राजा नहीं होकर महज 'सामंत' रह गए थे। मुस्लिम शासन के दौरान की ऐसी परिस्थितियों में वे राजवंशी होने के कारण उनके लिए राजपूत नाम प्रयुक्त हुआ। उसके बाद, वक्त गुजरने के साथ मुगल शासन के दौरान या फिर 'सामंत' शब्द प्रचलन में आने से पहले यह राजपूत शब्द जातिसूचक बन गया।
अतः वस्तुतः आठवीं/नौवीं सदी से पहले के किसी साहित्य या इतिहास की पुस्तक में राजपूत शब्द नहीं पाया जाता है।
6. कि पृष्ठ संख्या 21 हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) द्वारा नायब तहसीलदार परीक्षा के लिए सामान्य अध्ययन/ प्राचीन भारत की पुस्तक का हिस्सा है। इसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 9 वीं सदी से पहले राजपूतों का उद्गम नहीं हुआ था।
ऐसी प्रामाणिक पुस्तक से यह स्पष्ट है कि 2500 ईसा पूर्व, वह काल जिसमें इतिहास के अनुसार श्री राम शासक थे, में कोई राजपूत जाति अस्तित्व में नहीं थी।
7. कि कुछ अन्य पुस्तकों और माननीय न्यायालय द्वारा पारित निर्णय में भी उल्लेख मिलता है कि जाट आर्य हैं। कुछ सुसंगत साहित्य और फैसले निम्नानुसार हैं:
- (अ) कि भारतीय इतिहास की यूपीएससी सिविल सर्विसेज प्रारंभिक परीक्षाओं की पुस्तक पृष्ठ 341 पर उल्लेख है कि आठवीं सदी से पूर्व राजपूतों का कोई अस्तित्व नहीं था।
- (ब) माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जाटों को ओबीसी के रूप में केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण प्रदान करने की केंद्र सरकार की अधिसूचना को दिनांक 20. 3.15 को निरस्त करते हुए फैसले में सुस्पष्टतः उल्लेख किया था कि जाट आर्य हैं।
- (स) भगवान राम के बारे में ऐतिहासिक साहित्य और साक्ष्य हैं कि राम जाट राजा हैं।
8. कि भलेराम बेनीवाल द्वारा लिखी जाट योद्धाओं का इतिहास पुस्तक के पृष्ठ 48 से 50 तक में भगवान राम की वंशावली का उल्लेख है।
इस पुस्तक में ये निम्नानुसार लिखा है:
सूर्यवंशी राजाओं की वंशावली
- कश्यप (Kashyapa) --------- (जाट वंश)
- नरहरी (Narhari) --------- (जाट वंश)
- मेहरा (Mehra) --------- (जाट वंश)
- मान्धाता (Mandhata) --------- (जाट वंश)
- रघु (Raghu) ------------ (सूर्यवंशी राजवंश)
जाट क्षत्रिय हैं।
इस पुस्तक से स्पष्ट है कि भगवान राम काकराण गोत्र के जाट थे। इस बात का उल्लेख तुलसीदास जी ने अपनी रामायण में किया है। भारतीय शब्दकोश में 13 वीं व 14 वीं सदी तक राजपूत नाम का शब्द नहीं है। वाल्मीकि रामायण में भी इसी बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान राम जाट थे।
9. यह बात 'राजपूत जाति का इतिहास' की पुस्तक में भी स्पष्ट है:
- (अ) स्वर्गीय जयचंद विद्यालंकार ने लिखा है कि वस्तुतः राजपूत कोई जाति नहीं थी। राजा के पुत्र के लिए राजपूत शब्द प्रयुक्त होने लगा।
- (ब) 11 वीं सदी के बाद तो अगर कोई बेटा शासन नहीं करता था तो भी उसे राजपूत कहा जाने लगा, और
- (स) वस्तुतः राजपूत नाम से जानी जाने वाली जाति का मेल-मिलाप/ एकता और विकास मुख्यतः गुजरात, राजस्थान और मालवा में हुआ।
10 . कि उपयुक्त निवेदन से अपीलकर्ता एकदम सुस्पष्ट तरीके से स्थापित करने में सफल हुआ है कि भगवान राम राजपूत नहीं थे, जैसे कि शब्द 'राजपूत' भारतीय शब्दकोश में 13वीं और 14 वीं सदी तक नहीं था, जबकि 'जाट' शब्द शब्दकोश में इससे बहुत पहले से मौजूद था। यह बात वाल्मीकि जी और तुलसीदास जी जैसे लेखकों ने प्रमाणित की है, जिनकी रामायण की भगवान राम पर प्रामाणिकता है और उनमें स्पष्ट है कि भगवान राम जाट थे। इसलिए कुछ पक्षकारों की यह दलील कि भगवान राम राजपूत थे, अभिलेख के सामने गलत है और स्वीकार्य नहीं है। अतः विनम्र निवेदन है कि यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि भगवान राम राजपूत नहीं थे, बल्कि वस्तुतः जाट थे।
11. कि अपीलकर्ताओं को इंटरविनर्स (दस्तंदाज़) के रूप में दर्शाया जाना चाहिए ताकि वे अपनी मौखिक दलीलों से संवैधानिक बेंच को बेहतर सहायता प्रदान कर सकें। यह वास्तव में महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ पक्षकारों के वकील न्यायालय को गुमराह करने के लिए अपनी दलीलों में भगवान राम का मिथ्या निरूपण करते हुए जोर देकर कह रहे हैं कि भगवान राम राजपूत थे।
इनमें से किसी ने भी प्रत्यक्ष और सुसंगत साहित्य न्यायालय के सामने नहीं रखा है जो कि अपीलकर्ता रख सकता है, यदि यह माननीय न्यायालय उनके प्रार्थना पत्र को स्वीकार करता है। अतः ये रिट पेश है।
दाख़िलकर्ता
(वीरेंद्र कुमार शर्मा )
एडवोकेट- याचिका-कर्ता
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Supreme Court of India Civil Appeal 4739/2011.P.0
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Supreme Court of India Civil Appeal 4739/2011.P.1
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Supreme Court of India Civil Appeal 4739/2011.P.2
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Supreme Court of India Civil Appeal 4739/2011.P.3
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Supreme Court of India Civil Appeal 4739/2011.P.4
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Supreme Court of India Civil Appeal 4739/2011.P.5
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Supreme Court of India Civil Appeal 4739/2011.P.6
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Supreme Court of India Civil Appeal 4739/2011.P.7
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Supreme Court of India Civil Appeal 4739/2011.P.8
History
The Kakrana Jats had a small principality `Sahanpur' in the District of Bijnor. They were great warriors. In this Sahanpur state, the Kakrana Jats had 14 (Chaudeh) great warriors, and this branch of Kakran clan is known as Chaudehrana. At the time of the Paravonh, statues were made of these warriors and they are worshiped.
Kakk (कक्क) gotra of Jats were known so after apical ancestor Kakran. In Punjab and Kashmir Kakran is known as Kakk. [13]
While studying history of village Talesara [14], Gonda, District Aligarh(UP), we get information about the migration of Kankran people. The local tradition in Talesara tells us that It is believed that in the long past Kankran gotra Jats migrated from the foothills (talahati) of Himalayas due to unavoidable circumstances there. some of these groups settled in Rajasthan and some in Muzaffarnagar but a group headed by a woman warrior Lakshami settled here at the site of Talesara. Since group had come from talahati, hence the village was called Talesara and the region was known as Lagsami and now Lagsama, the corrupted form of Lakshami. A fair is organized here on every chaitra krishna saptami. It is a matter of research how and when these Kankran people became Thakurela.
Genealogy of Ikshvaku (Suryavansha)
Following Genealogy of Ikshvaku (Suryavansha) is from book Bhaleram Beniwal:Jat Yauddhaon Ka Itihas, pp.133-137
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Genealogy of Suryavansha-1 (Vishnu - Brihadashva), Bhaleram Beniwal, p.133
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Genealogy of Suryavansha-2 (Kuvalayashva - Bharuka), Bhaleram Beniwal, p.134
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Genealogy of Suryavansha-3 (Vrika - Aja), Bhaleram Beniwal, p.135
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Genealogy of Suryavansha-4 (Dasharatha - Brihadbala), Bhaleram Beniwal, p.136
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Genealogy of Suryavansha-5 (Brihadrana - Sumitra), Bhaleram Beniwal, p.137
काकराण या काकवंश का इतिहास
दलीप सिंह अहलावत[15] लिखते हैं:
काकुस्थ या काकवंश - सूर्यवंशज वैवस्वत मनु का पुत्र इक्ष्वाकु था जो कि वैवस्वत मनु
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-226
द्वारा बसाई गई भारत की प्रथम नगरी अयोध्या का शासक हुआ था। इक्ष्वाकु के विकुशी नामक पुत्र से पुरञ्जय जिसने देव-असुर युद्ध में असुरों को जीत लिया। इसी कारण वह ‘काकुस्थ’ नाम से प्रसिद्ध हुआ जो कि जाटवंश है। भाषाभेद से यह काकुस्थ जाटवंश दक्षिणी तैलगु में काक, काकतीय, पंजाब, कश्मीर में कक्क, कक्कुर और उत्तरप्रदेश में काकराणा नाम से बोला जाता है। इसी परम्परा में प्रतापी सम्राट् रघु हुए जिनके नाम पर इस काकुस्थवंश का एक समुदाय रघुवंशी प्रचलित हुआ जो कि जाटवंश है। इसी भाव का एक श्लोक इण्डियन ऐन्टिक्वेरी भाग 11 में भी अङ्कित है -
- काकुस्थमिक्ष्वाकुरघूंश्च यद्दधत्पुराऽभवत्त्रिप्रवरं रघोः कुलम् ।
- कालादपि प्राप्य स काकराणतां प्ररूढतुर्यं प्रवरं बभूव तत् ॥
- “इक्ष्वाकु, काकुस्थ और रघु नाम से प्रसिद्ध कुल (वंश) ही कलियुग में काकराण के नाम से प्रचलित हुआ।”
विष्णु पुराण चतुर्थ अंश/अध्याय 2/ श्लोक 14 के अनुसार काकुस्थ वंश के 48 राजपुत्रों का दक्षिण देश में शासन स्थिर हुआ। वहां पर यह वंश काक नाम से प्रसिद्ध था। इस काकवंश का 'वांगलार इतिहास' प्रथम भाग के 46-47 पृष्ठ पर तथा राजपूताने के इतिहास गुप्त इन्सक्रिप्शन आदि पुस्तकों में वर्णन है। इतिहासज्ञ फ्लीट ने गुप्तों के परिचय में प्रयाग के किले में मौर्य सम्राट् अशोक के विशाल स्तम्भ पर गुप्तवंशी सम्राट् समुद्रगुप्त द्वारा खुदवाए हुए एक लेख का उल्लेख किया है। उस पर लिखा है -
- “समुद्रगुप्त को काक आदि कई जातियां कर दिया करती थीं।”
- २२. समतट-डवाक-कामरूप-नेपाल-कर्त्तृपुरादि-प्रत्यन्त-नृपतिभिर्म्मालवार्जुनायन-यौधेय-माद्रकाभीर-प्रार्जुन-सनकानीक-काक-खरपरिकादिभिश्च5 सर्व्व-कर -दानाज्ञाकरण-प्रणामागमन-
- (L. 22.)-Whose imperious commands were fully gratified, by giving all (kinds of) taxes and obeying (his) orders and coming to perform obeisance, by the frontier-kings of Samatata, Davaka, Kamarupa, Nepala, Kartripura, and other (countries), and by the Mālavas, Arjunāyanas, Yaudheyas, Madrakas, Abhiras, Prārjunas, Sanakanikas, Kākas, Kharaparikas, and other (tribes). [16]
इससे अनुमान किया गया है कि काकवंश एक प्रमुख एवं प्राचीनवंश है जो गुप्तों के समय में राज्यसत्ता में था। उस समय इनकी सत्ता दक्षिण में थी। 11वीं शताब्दी तक ये वहां शासक रूप से रहे। तामिल भाषा में इन्हें काकतीय लिखा है।
दक्षिण में काकवंश - इस काकवंश का दक्षिण में होना ईस्वी सन् से कई सदियों पहले का माना गया है। राजपूत युग में इस वंश के वेटमराज नामक महापुरुष उपनाम त्रिभुवनमल ने महामंडलेश्वर की उपाधि धारण करके वरंगल को अपनी राजधानी बनाया। इनके पुत्र परोलराज का संवत् 1174 में लिखवाया हुआ शिलालेख मिला है जिस पर बहुत सी विजयों का वर्णन है। इसने अपने राज्य की भूमि को तालाबों से सींचे जाने का प्रबन्ध करके यश उपार्जित किया। इसके पुत्र रुद्र ने मैलिगीदेव का राज्य जीता और दोम्भ को हराया। संवत् 1219 और 1242 के शिलालेख इन घटनाओं को सम्पुष्ट करते हैं। दक्षिणी नरेशों में इसका स्थान विशिष्ट था। इसने अपनी विशाल एवं सुशिक्षित सेना के बल पर पूर्व में कटक, पश्चिम में समुद्र, उत्तर में मलयवन्त और दक्षिण में सेलम तक अपने राज्य की सीमायें बढा ली थीं। इसकी मृत्यु होने पर इसके भाई महादेव ने कुछ दिन राज्य किया। महादेव के पुत्र गणपति ने संवत् 1255 में राज्य पाकर चोल राज्य को जीता और दक्षिण के प्राचीन राज्यवंशों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थिर किए। पांड्यों से इसे हानि उठानी पड़ी। इनकी दानमहिमा और सिंचाई विभाग के प्रति सतर्कता प्रसिद्ध रही। सम्राट् गणपति के समय के पश्चात् ईस्वी सन् 1309 (संवत् 1366) में
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-227
अलाउद्दीन खिलजी के प्रधानमंत्री मलिक काफूर ने देवगिरि को पार करके तेलंगाना राज्य पर, जिसकी राजधानी वरंगल थी, आक्रमण कर दिया। उस समय वहां का शासक काकतीय वंशज प्रताप रुद्रदेव था। इसने बड़ी वीरता से मुसलमान सेना का सामना किया। अन्त में विवश होकर सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली। इस राजा ने मलिक काफूर को 300 हाथी, 7000 घोड़े और बहुत सा धन देकर संधि कर ली।
ऐतिहासिक मिश्रबन्धु के लेखानुसार मलिक काफूर ने इस चढाई में बीस हजार मन सोना वरंगल के चारों ओर से लूटा। यह लूट का माल 1000 ऊंटों पर लादकर दिल्ली लाया गया। इसके अतिरिक्त वरंगल के राजा प्रताप रुद्रदेव ने दिल्ली के सम्राट् को प्रतिवर्ष कर देना भी स्वीकार कर लिया। उसने मलिक काफूर को कोहनूर हीरा और अपार धनराशि दी।
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के पश्चात् वरंगल की राजा प्रतापदेव ने दिल्ली के बादशाहों को कर देना बन्द कर दिया। इसी कारण से बादशाह गयासुद्दीन तुगलक ने अपनी सेना से वरंगल पर आक्रमण कराया, परन्तु शाही सेना विफल रही। उसने दो वर्ष पश्चात् सन् 1323 (संवत् 1380) में अपने पुत्र द्वारा वरंगल पर फिर आक्रमण कराया। इस बार वरंगल के राजा की हार हुई और वरंगल का नाम सुल्तानपुर रखा गया। वहां से काक/काकतीय वंश की सत्ता समाप्त हो गई। वहां से ये लोग अपने उन प्राचीन वंशधरों से आ मिले जो कि मालवा, गुजरात, सिंध और मारवाड़ प्रान्तों में बसे हुए थे। सिंध में ‘ककस्थान’ क्षेत्र इसी काकवंश का बसाया हुआ है, जो आज भी विद्यमान है।
मरुस्थान (राजस्थान) में काकवंश -
काकवंश के लोगों ने मरुस्थल में मांडव्यपुर जीतकर मण्डौर नामक एक प्रसिद्ध किला बनवाया जहां पर हरिश्चन्द्र राजा हुए। किन्तु इस किले के निर्माण के पूर्व ही आठवीं शताब्दी में काकवंशी इधर विद्यमान थे। इनके दो शिलालेख मिले हैं। एक जोधपुर से चल मील पर मण्डौर के विष्णु मन्दिर से संवत् 894 चैत्रसुदी 5 का लिखवाया हुआ और दूसरा जोधपुर से 20 मील पर घटियाले से संवत् 918 चैत्रसुदी 2 का लिखवाया हुआ। इस पर काकवंश के वहां पर राज्य करने वाले राजाओं की वंशावली अंकित है। इस वंशावली में राजा हरिश्चन्द्र को वेदशास्त्रों का ज्ञाता लिखा है और उसकी भद्रा नामक रानी से भोगभट्ट, कक्क, रज्जिल और दद्द नामक चार पुत्रों की उत्पत्ति भी लिखी है। रज्जिल को राज्य मिला, जिसका पुत्र नरभट्ट उपनाम पेल्ला पेल्ली था। नरभट्ट का पुत्र नामभट्ट उपनाम नाहाड़ था, जिसने मेड़ता को अपनी राजधानी बनाया। इसके तात और भोज नामक दो पुत्र हुए। तात ने मांडव्य ऋषि के पुराने और पवित्र आश्रम में रहकर अपना जीवन बिताया। वह धर्म के पथ पर अडिग रहा जिससे उसकी बड़ी प्रसिद्धि हुई। इसकी परम्परा में यशोवर्द्धन, चन्दुक और शिलुक हुए।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-228
शिलुक के एक शिलालेख को सन् 1894 ई० के ‘जनरल रायल एशियाटिक सोसायटी’ के पृष्ट 6 पर उद्धृत किया गया है - शिलुक ने देवराजभट्टी का राज्य छीनकर त्रवणी और बल्ल देशों पर अपना राज्य स्थापित किया। बल्ल क्षेत्र के राजा देवराजभट्टी को पृथिवी पर पछाड़कर उसका राजसिंहासन और ताज छीन लिया। इस शिलुक के पुत्र झोट का बेटा भिलादित्य था जो अपने पुत्र कक्क को राज्य देकर हरद्वार चला गया, जहां पर 18 वर्ष बाद स्वर्गीय हो गया।
भिलादित्य के पुत्र कक्क ने व्याकरण तर्क आदि शास्त्र एवं शस्त्रों में पूर्ण निपुणता प्राप्त की। इसने मुद्रगिरि (मुंगेर) बिहार में गौण्डवंशियों को परास्त किया। भट्टीवंशी राजकुमारी पद्मिनी से विवाह करके इसने दोनों वंशों में सद्भावना स्थापित की। इस रानी से पुत्र बाऊक और दूसरी रानी दुर्लभदेवी से कक्कुक पुत्र का जन्म हुआ। इसका एक शिलालेख पटियाला में मिला है जिस पर लिखा है कि कक्कुक ने राज्याधिकार प्राप्त करके मरु, माड़, बल्ल, त्रवणी, अज्ज और गुर्जर वंशों में अपने सद्-व्यवहार से प्रतिष्ठा प्राप्त की। जनरल रायल एशियाटिक सोसायटी सन् 1895 ई० के पृष्ठ 517-518 पर लिखा है कि “कक्कुक ने रोहन्सकूप और मण्डौर में जयस्तम्भ स्थापित किए।” यह संस्कृत भाषा का महान् पण्डित था। एक शिलालेख का उल्लेख एपिग्राफिका इण्डिया के 9वें भाग में पृष्ठ 280 पर किया गया है। यह श्लोक राजा कक्कुक ने स्वयं बनाया था। इस विद्वान् राजा ने लिखा था कि “वह मनुष्य अतीव सौभाग्यशाली है जिसका यौवन काल विविध सांसारिक भोगों में, मध्यम-काल ऐश्वर्य में और वृद्धावस्था धार्मिक कार्यों में व्यतीत होती है।”
मण्डौर में काकवंश का पतन और हरयाणा को प्रस्थान -
इस कक्कुक के बाद इस वंश की राज्यसत्ता समाप्त हो गई और मण्डौर का शासन राठौरों के हाथ में आ गया। राव जोधा जी ने मण्डौर का ध्वंस करके जोधपुर नामक नगर को बसाकर वहां राजधानी और किले का निर्माण कराया। यहां से वैभवशून्य होने पर इस काकवंश के लोगों ने मरुभूमि को छोड़ दिया और यहां से जाकर हरयाणा के जींद जिले में रामरायपुर में अपनी सत्ता स्थिर की और बस्तियां बसाईं। यहां पर ये लोग कक्कर और काकराण नाम से आज भी प्रसिद्ध हैं। यहीं से जाकर इस वंश के जाट मेरठ कमिश्नरी, बिजनौर जिला और अम्बाला में जगाधरी के पास बस गए, जहां पर आज भी विद्यमान हैं। जगाधरी के निकट अरनावली गांव के काकराण जाट बड़े प्रसिद्ध हैं।
काकराण वंश की भूतपूर्व किला साहनपुर नामक रियासत जिला बिजनौर में थी। इस रियासत के काकराणा जाटों ने सम्राट् अकबर की सेना में भरती होकर युद्धों में बड़ी वीरता दिखाई और अपनी ‘राणा’ उपाधि का यथार्थ प्रमाण देकर मुगल सेना को चकित कर दिया। इनका वर्णन आईने-अकबरी में है। साहनपुर रियासत में काकराणा वंश के चौदह महारथी (वीर योद्धा) थे जिनके नाम से इस वंश की शाखा चौदहराणा भी है जो पर्वों के अवसर पर साहनपुर स्टेट में मूर्ति बनाकर पूजे जाते हैं1। चौदहराणा जाट मेरठ में ककोर कलां, सबगा और बिजनौर में सिसौना चन्दूपुरा गांव में बसे हुए हैं। जिला रोहतक में इनका पाकसमा गांव है। साहनपुर रियासत में काकराणा जाटवंश के राज्य का पूरा वर्णन उत्तरप्रदेश में जाटवीरों का राज्य के अध्याय में किया जायेगा। काकराणावंशी काकज़ई काबुल कन्धार में पठानों का एक बड़ा
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-229
दल है। कैलाशपुर जि० सहारनपुर के पठान भी काकजई हैं। राजपूत स्टेट बस्तर काकतीय है। अलीगढ़ जिले की इगलास तहसील के लगसमा क्षेत्र में ठकुरेले-काकराणों के 52 गांव जाटों के हैं जिनमें गौण्डा, डिगसारी, रजावल, कैमथल, कूंजीनगला, गडाखेड़ा, मातीवसी, तलेसरा, मल्हू, जथोली, पीपली, बजयगढ, देवनगला, सहरी, कारीकर आदि बड़े गांव हैं। इन 52 गांवों में से 100 गांव और बस गए हैं। इस क्षेत्र को लगसमा भी कहते हैं। यहां अगस्मादेवी का मन्दिर भी है।
काकराणा जाटों में के मेरठ में मसूरी, बणा, राफण, पहाड़पुर;
मुजफ्फरनगर में फईमपुर, राजपुर, तिलौरा, मीरापुर, दलपत, ककरौली गांव हैं।
महाराजा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कक (जाटवंश) वंशज राजा तथा इस वंश के बहुत से लोग आये और उन्होंने तोखी लम्बी तलवारें, फरसे, सहस्रों रत्न और दूर तक जाने वाले बड़े-बड़े हाथी भेंट किए। (महाभारत सभा पर्व अध्याय 51वां, श्लोक 26-31)।
दुर्योधन ने अपने पिता धृतराष्ट्र को बताया कि कुक्कुर (काकुस्थ जाटवंश) उत्तम कुल के श्रेष्ठ एवं शस्त्रधारी क्षत्रिय राजकुमार ने अजातशत्रु युधिष्ठिर को बहुत धन अर्पित किया। (महाभारत सभापर्व, 52वां अध्याय, श्लोक 13-17)।
काकराणवंश के शाखा गोत्र - 1. चौदहराणा 2. ठकुरेले[17] ।
Kakrana Khap
Kakrana Khap is a small Khap. It has .... villages in Uttar Pradesh, Jat gotra is Kakrana. The village in this khap are: Meerut district-Masoori (मसूरी), बणा , Rafan (राफण) and Pahadpur (पहाड़पुर) : Muzaffarnagar district - Rajpur (राजपुर, Tilaura (तिलौरा), Mirapur (मीरापुर), Dalpat (दलपत), Faeempur (फईमपुर) and Kakrauli (काकरौली). [18]
काकराणा खाप
5. काकराणा खाप - उत्तर प्रदेश के जिले मेरठ के गांव मसूरी, वणा, राफण और पहाड़पुर तथा जिला मुजफ्फरनगर के गांव राजपुर, तिलोरा, मीरापुर, दलपत, फईमपुर और काकरोली मिलकर काकराना खाप का निर्माण करते हैं. यह छोटी खाप है.[19]
Distribution in Rajasthan
Location in Jaipur district
Malviya Nagar,
Distribution in Haryana
Villages in Jind district
Villages in Yamunanagar district
Villages in Rohtak district
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Guna district
Distribution in Uttar Pradesh
Villages in Meerut district
Dudhli, Igasari, Massurie (Near Mawana), Paharpur, Raaphan, Vana, Khurad,
Villages in Muzaffarnagar district
Behar Thuru, Dalpat, Faeempur, Kakrauli, Khatki, Miranpur, Natour, Rajpur Kala, Rathur, Saray Alam, Tirola,
Villages in Aligarh district
Ajahari, Arniyan Kwaza Raju, Baj Garhi, Bansvali, Dhatauli, Digsari, Gada Khera Aligarh, Gahlau, Gonda, Jaitholi, Kaimthal, Majupur (Near Gonda), Makhdumpur, Mati, Mohasan Pur, Nagla Chandram, Nagla Birkhu, Nagla Jujhar, Nisuja, Pisaua, Peepali, Rafayatpur, Rajawal, Rudyat Urf Tarapur, Sahara Kalan (Sahari) Salempur Aligarh, Shaharimadan Gari, Shyam Garhi, Talesara, Uttampur,
Villages in Bijnor district
Villages in Bagpat district
Villages in Jyotibha Phule Nagar district
Distribution in Uttarakhand
Villages in Haridwar district
Notable persons
- Bhartendu Singh (Kakrana) - Elected as the MP from Bijnor Lok Sabha constituency in 2014 general elections. He is the son of Late Raja Devendra Singh who was the king of Sahanpur state and Irrigation minister of Uttar Pradesh.
- ठाकुर क्षत्रपालसिंह - [पृ.569]: आपकी जन्म भूमि जिला अलीगढ़ इगलास तहसील में वसौली गांव में है। गोत्र आप का काकरान है। उम्र 35-36 साल के आसपास होगी। आपने बीए और साहित्य रत्न किया है। इस समय ग्वालियर की सर्विस में है। और विक्टोरिया कॉलेज में हैड क्लार्क है। स्थानीय जाट बोर्डिंग हाउस के सुपरिटेंडेंट है। इस प्रकार आप कौमी सेवा के कार्यों में दिलचस्पी लेते हैं। आपके कुटुंब के एक नौजवान बृजेंद्र सिंह जी (नौनेरा) यही पर शिक्षा प्राप्त करते हैं और कुंवर भंवरसिंह जी के लेफ्टिनेंट में से हैं।[20]
- Pravin K. Choudhary (Kakran), Indian Forest Service, Madhya Pradesh, 1981. Originally from village Tirola, Muzaffarnagar district in Uttar Pradesh.
- Krishna Pratap Singh (Kakran), (born: 20-9-1955), Indian Forest Service, Madhya Pradesh, 1983. Originally village Saray Alam
- S.P.Kakran, Behar Thuru (Muzaffarnagar)
- Dr. S.K.Kakran - ECM Member, Govt. Service Medical Officer Acharaya Bodh Bhikshu Govt. Hospital (ABGH), Moti Nagar, New Delhi Flat No.-14, Dr. B.S.A. Hospital, Residential Complex, Sector-6, Rohini, New Delhi-110085, 9811311720, 9650296853 NCR (PP-24)
- Dr. Rajpal Singh (Kakran) - Retd Prof and HOD Statitics, Res. Kamal Kunj, 278-A, Durgesh Vihar, J K Road, Bhopal-462041. Telefax:0755-2682414, Mob:09425028689.
- सूबेदार-मेजर चरनसिंह - From Gonda, also called Nagla Sabal, Iglas tahsil of Aligarh district in Uttar Pradesh.
- स्व. मास्टर मेघराज सिंह - From Gonda, also called Nagla Sabal, Iglas tahsil of Aligarh district in Uttar Pradesh.
- श्री दिलीप कांकरान, प्रधानाचार्य बलबीर सिंह इंटर कालेज - From Gonda, also called Nagla Sabal, Iglas tahsil of Aligarh district in Uttar Pradesh.
- डॉ. रूप सिंह कांकरान, वरिष्ठ वैज्ञानिक, महासागर विभाग, भारत सरकार - From Gonda, also called Nagla Sabal, Iglas tahsil of Aligarh district in Uttar Pradesh.
- Satya Veer Singh (Kakran) - Superintending Engineer, Irrigation Department UP, DOB:2 Feb 1956. Mob: 9412720310, 8979326573.Address: 3 Syndicate Bank Colony, Gailana Road, Agra-282005. Ph: 0562-2605658
- Divya Kakran: Silver Medal, Asian Wrestling Championship 2017
- Major Harsh Kakran: Awarded with Sena Medal on 26.1.2020 for his bravery in an army operation in Pulwama area of Jammu and Kashmir when he killed a Hijbul terrorist and saved life of his five fellow army persons.
- Bijendra Singh Kakaran (Thakurela), Lok Sabha M.P. from Aligarh U.P.in the year 2004 Congress Party.
See also
Gallery of Kakran people
-
Pravin K. Choudhary (Kakran), IFS
References
- ↑ B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.239, s.n.1006
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.30,sn-208.
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.31,sn-300.
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.30,sn-208.
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.30,sn-208.
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.34, sn-512.
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n.क-27
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Adhunik Jat Itihas, Agra 1998, p.228
- ↑ Pliny.vi.2
- ↑ Bhaleram Beniwal: Jāt Yodhaon ke Balidān, Jaypal Agencies, Agra 2005 (Page 38)
- ↑ Vishnu Puran part IV Chapter 2-3
- ↑ Bhaleram Beniwal: Jāt Yodhaon ke Balidān, Jaypal Agencies, Agra 2005 (Page 39-40)
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Adhunik Jat Itihas, Agra 1998, p. 231
- ↑ Shish Ram Singh:Jat Samaj, Agra, April 2003, p.9
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ. 226-230
- ↑ See - Allahabad Stone Pillar Inscription of Samudragupta (A.D. 335-76);Clans after Tribes,Sno.33 for Kak
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III (Page 226-230)
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania, Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p. 14
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania, Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p. 14
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.565-567
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