Ahlawat
Ahlawat
(Alawat, Ailawat, Ohlawat, Ailavat)
Location : Rajasthan, Haryana, Delhi, Madhya Pradesh and Uttar Pradesh
Country : India
Ahlawat (अहलावत)[1] [2] Alawat (एलावत)[3] Ailawat (एलावत) Ohlawat (ओहलावत)[4] Ailavat (ऐलावत)[5] is a clan or gotra of Jats found in Rajasthan, Haryana, Delhi, Madhya Pradesh and Uttar Pradesh in India and Pakistan.
Origin
These are Nagavanshi Jats. Some other historians consider them descended from Chandravanshi King Ahamana (अहमान) in the lineage of Krishna.[6] Dilip Singh Ahlawat mentions them one of the ruling Jat clans in Central Asia. [7]
अहलावत गोत्र परिचय
इतिहासकारों ने अहलावत गोत्र का विवेचन इस प्रकार किया है -
ब्रह्मा - अव्यक्त = परमात्मा तथा प्रकृति से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई । वे सृष्टि के आदि में अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न हुए थे अतः उनका एक नाम स्वयम्भू है । उनके सांसारिक माता-पिता नहीं थे । परमात्मा पिता और प्रकृति उनकी माता थी । ब्रह्मा से मरीचि, मरीचि से कश्यप, कश्यप से विवस्वान्, विवस्वान् से वैवस्त मनु और उससे इक्ष्वाकु का जन्म हुआ । वैवस्त मनु प्रथम प्रजापति था । विवस्वान् का अर्थ सूर्य है । वैवस्त मनु के सन्तान इक्ष्वाकु आदि के वंशज राम आदि सूर्यवंशी राजा कहाते हैं ।
ब्रह्मा के छः मानस-पुत्र भी विख्यात हैं - १. मरीचि, २. अत्रि, ३. अंगिरा, ४. पुलस्त्य, ५. पुलह, ६. क्रतु । ब्रह्मा के मरीचि नामक पुत्र से कश्यप और उनसे समस्त प्रजाएं उत्पन्न हुईं ।
ब्रह्मा के एक पुत्र दक्ष (प्रजापति) भी थे । उस दक्ष प्रजापति की अदिति, दिति, दनु, काला, दनायु, सिंहिका, क्रोधा, प्राधा, विश्वा, विनता, कपिला, मुनि और कद्रू - ये तेरह कन्याएं थीं । दक्ष की पुत्री अदिति से उत्पन्न हुए धाता, मित्र, अर्यमा, इन्द्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान्, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु - ये बारह देव आदित्य के नाम से प्रसिद्ध हैं । दक्ष प्रजापति की पुत्री दिति के ही पुत्र दैत्य (राक्षस) कहाते हैं किन्तु उसका एक पुत्र हिरण्यकशिपु है । उसके प्रह्लाद, संह्लाद, अनुह्लाद, शिवि और वाष्कल - ये पांच पुत्र हुए । इनमें प्रह्लाद देवों में गिना जाता है, राक्षसों में नहीं । उस प्रह्लाद के विरोचन, कुम्भ और निकुम्भ नामक तीन पुत्र हुए । विरोचन का पुत्र महाप्रतापी बलि हुआ ।
दक्ष प्रजापति की अदिति से विवस्वान् और उससे मनु और यम उत्पन्न हुए । इस मनु के वेन, धृष्णु, नरिष्यन्त, नाभाग, इक्ष्वाकु, कारूष, शर्याति, पृषध्र और नाभागारिष्ट नामक नौ पुत्र हुए और इला नामक कन्या हुई । इसका अत्रि के पोते तथा प्रजापति सोम के पुत्र बुध के साथ विवाह हुआ । उससे पुत्र पुरूरवा ऐल का जन्म हुआ । ये प्रजापति सोम के सन्तान होने से चन्द्रवंशी राजा कहलाए । सोम का अर्थ चन्द्र है ।
पुरूरवा (ऐल) से आयु, धीमान्, अमावसु, विश्वायु - ये चार पुत्र हुए । आयु का नहुष और नहुष का ययाति नामक पुत्र हुआ । ये जम्बूद्वीप के सम्राट् बने । आज का एशिया जम्बूद्वीप है । इस जम्बूद्वीप में अनेक देश थे जिनमें एक का नाम इलावृत देश था । इस देश का नाम दक्ष प्रजापति की पुत्री इला के क्षत्रियपुत्रों से आवृत होने के कारण इलावृत रखा गया । आज यह देश मंगोलिया में अतलाई नाम से जाना जाता है । अतलाई शब्द इलावृत का ही अपभ्रंश है । सम्राट् ययाति के वंशज क्षत्रियों का संघ भारतवर्ष से जाकर उस इलावृत देश में आबाद हो गया । उस इलावृत देश में बसने के कारण क्षत्रिय ऐलावत (अहलावत) कहलाने लगे ।
इलावृत देश में अहलावत नामक क्षत्रियों का संघ (गण) प्रजातंत्र था । इस देश का नाम महाभारत काल में ‘इलावृत’ ही था । जैसा कि महाभारत में लिखा है कि श्रीकृष्ण जी उत्तर की ओर कई देशों पर विजय प्राप्त करके ‘इलावृत’ देश में पहुंचे । वह देवताओं का निवास-स्थान है । भगवान् श्रीकृष्ण ने देवताओं से ‘इलावृत’ को जीतकर वहां से भेंट ग्रहण की ।
अहलावत सोलंकी शासकों की दो शाखाएं थीं । पहली शाखा ने सन् ५५० से ७५३ तक दक्षिण-भारत में राज्य किया । इनकी राजधानी बादामी (वातापी) थी । इसकी दूसरी शाखा ने ९७३ ई० से ११९० तक दक्षिण भारत में राज्य किया । इनकी राजधानी कल्याणी थी ।
जब अहलावत वंश का शासन दक्षिण में दुर्बल हो गया तब ये वहां से चलकर उत्तर भारत की ओर आ गए और जहां-तहां बस गए । विक्रमादित्य षष्ठ के वंशज बांसलदेव अहलावत के साथ इसी वंश का एक दल दक्षिण से चलकर बीकानेर राज्य की प्राचीन भूमि ददरहेड़ा में आकर बस गया । बीकानेर पर राठौड़ राज्य स्थापित होने से पहले ही यह अहलावत संघ वहां से चलकर हरयाणा प्रान्त के भिवानी जिले के कालाबडाला नामक स्थान में कुछ दिन रहा और वहां से चलकर रोहतक जिले में आकर बस गया । सबसे पहले उन्होंने यहां शेरिया ग्राम बसाया । चौ० डीघा (उपनाम - फेरू) ने कुछ दिन शेरिया में रहकर पीछे डीघल गांव बसाया । इसी तरह गोच्छी और बहराणा आदि ग्राम बसाए गए । रोहतक जिले के डीघल, शेरिया, गोच्छी, धान्दलाण, लकड़िया, गांगटान, भम्बेवा, बहराणा, गूगनाण, मिलवाण - ये सब अहलावत गोत्र के ग्राम हैं । अधिक जानकारी के लिए कप्तान दिलीपसिंह अहलावत द्वारा लिखित ‘जाटवीरों का इतिहास’ नामक ग्रन्थ पढ़ें ।
उद्धरण - पुस्तक - पं० जगदेवसिंह सिद्धान्ती जीवन चरित (पृष्ठ 24-29)
लेखक - आचार्य सुदर्शनदेव आचार्य
मुद्रक - वेदव्रत शास्त्री, आचार्य प्रिंटिंग प्रैस, गोहाना मार्ग, रोहतक (1990 ई०)
Contribution - Dndeswal 15:08, 8 March 2012 (EST)
दलीप सिंह अहलावत द्वारा अहलावत गोत्र का इतिहास
दलीप सिंह अहलावत[8] लिखते हैं:
ब्रह्मा से आठवीं पीढ़ी में चन्द्रवंशी नहुषपुत्र सम्राट् ययाति हुए। ये जम्बूद्वीप के सम्राट् थे। जम्बूद्वीप आज का एशिया समझो (देखो अध्याय 1, जम्बूद्वीप)। इस जम्बूद्वीप में कई देश (वर्ष) थे जिनमें से एक का नाम इलावृत देश था। जिस देश के बीच में सुमेरु पर्वत है, जिस पर वैवस्वत मनु निवास करते थे और जो जम्बूद्वीप के बीच में है, उसका नाम इलावृत देश था। आज यह देश मंगोलिया में अलताई नाम से कहा जाता है। यह्ह अलताई शब्द इलावृत का ही अपभ्रंश है। (“वैदिक सम्पत्ति”, आर्यों का विदेशगमन, पृ० 423, लेखक पं० रघुनन्दन शर्मा साहित्यभूषण)।
ययातिवंशज क्षत्रिय आर्यों का संघ (दल) भारतवर्ष से जाकर इस इलावृत देश में आबाद हुआ था। चन्द्रवंशज क्षत्रिय आर्यों का वह संघ इलावृत देश में बसने के कारण उस देश के नाम से अहलावत कहलाया*। यह अध्याय 1 में लिख दिया गया है कि वंश (गोत्र) प्रचलन व्यक्ति, देश या स्थान आदि के नाम पर हुए। देश या स्थान के नाम पर प्रचलित वंशों की सूची में अहलावत वंश भी है (देखो प्रथम अध्याय)।
बी० एस० दहिया के लेख अनुसार - “मध्य एशिया में बसे हुए आर्यों का देश एलावर्त था जिसके नाम से वे अहलावत कहलाये जो जाटवंश (गोत्र) है। ययाति स्वयं एला कहलाता था1।”
इलावृत देश में अहलावत क्षत्रियों का संघ (गण) प्रजातंत्र था। इनके इस देश का नाम महाभारतकाल में भी इलावृत ही था। इसके कुछ उदाहरण निम्न प्रकार से हैं –
यादवों की दिग्विजय - श्रीकृष्ण जी उत्तर की ओर कई देशों पर विजय पाकर इलावृत
- भाषाभेद से इलावृत शब्द अहलावत कहलाया।
- 1. जाट्स दी ऐन्शन्ट रूलर्ज पृ० 10, लेखक बी० एस० दहिया आई० आर० एस०।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-201
देश में पहुंचे। यह देवताओं का निवास स्थान है। वहां जम्बूफल है जिसका रस पीने से कोई रोग नहीं होता है। भगवान् श्रीकृष्ण जी ने देवताओं से पूर्ण इलावृत को जीतकर वहां से भेंट ग्रहण की1
महाराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के अवसर पर पाण्डवों की दिग्विजय - “अर्जुन उत्तर दिशा में बहुत से देशों को जीतकर इलावृत देश में पहुंचे। वहां उन्होंने देवताओं जैसे देवोपम, शक्तिशाली दिव्य पुरुष तथा अप्सराओं के साम स्त्रियां देखीं। अर्जुन ने उस देश को जीतकर उन पर कर लगाया”2।
अहलावत क्षत्रिय आर्यों की घटनाओं और उनका अपने देश भारतवर्ष में लौट आने के विषय में कोई प्रमाणित जानकारी नहीं मिलती जो कि खोज का विषय है।
अहलावत जाटों का भारतवर्ष से बाहर विदेशों में रहने का थोड़ा सा ब्यौरा निम्नप्रकार से है -
- वृहत् संहिता के लेखक वराहमिहिर ने एक प्रकरण में अहलावतों को [Takshasila|तक्षशिला]] और पुशकलावती के लोगों, पौरवों (पौरव जाट), पंगालकों (पंघल जाट, मद्रा (मद्र जाट), मालवों (मालव/ मल्ल जाट) के साथ लिखा है3। सम्भवतः ये सब लोग भारतवर्ष की उत्तर-पश्चिम सीमा पर थे।
- राजतरंगिणी में कल्हण ने लिखा है कि अहलावत और बाना (दोनों जाटगोत्र) द्वारपाल (शत्रु के आने के रास्ते पर रक्षक) थे4। इससे यह बात तो साफ है कि ये लोग शत्रु से पहली टक्कर लेने वाले सबसे आगे थे। सम्भवतः ये भारतवर्ष की सीमा पर रक्षक थे।
- भारतीय शक और कुषाणों के वस्त्र तथा शस्त्र, सरमाटियन्ज् यानी एलन्ज की कब्रों से मिले वस्त्र, शस्त्रों के समान थे। असल में यह एलन् शब्द एला शब्द से निकला है जो कि अहलावत जाट हैं। इन सब के पहनने के वस्त्र, लम्बी बूट (जूते), लम्बा कोट, पतलून और टोप एक समान थे। भारतवर्ष के शुरु के गुप्ट सम्राटों, जो धारण जाटगोत्र के थे, के सिक्कों (मुद्रा) पर भी यही पहनावा पाया गया है जो बाद में धोती बांधने लगे थे5। सरमाटियन्ज् या एलन्ज नामक स्थान लघु एशिया में है। इससे साफ है कि अहलावत जाट वहां रहे हैं और वहां राज्य किया है, युद्ध किए हैं। इनकी प्रसिद्धि के कारण ही तो उस स्थान का नाम एलन्ज पड़ा था।
अहलावत जाट अपने देश भारतवर्ष लौट आए। इसका पूर्ण ब्यौरा तो प्राप्त नहीं है परन्तु कुछ बातें इस प्रकार से हैं -
- 1,2. देखो प्रथम अध्याय इलावृत देश प्रकरण।
- 3. बृहत् संहिता का हवाला देकर, बी० एस० दहिया आई० आर० एस० ने अपनी पुस्तक “जाट्स दी एन्शन्ट रूलर्ज” के पृ० 171 पर लिखा है।
- 4. जाट्स दी ऐन्शन्ट रूलर्ज पृ० 224, लेखक बी० एस० दहिया आई० आर० एस०।
- 5. जाट्स दी ऐन्शन्ट रूलर्ज पृ० 54, लेखक बी० एस० दहिया आई० आर० एस०।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-202
- इलावृत प्रदेश में निवास करने वाले आर्यों को ऐल नाम से पुकारा गया है और ये लोग चित्तराल के रास्ते से भारतवर्ष में आए1।
- एक समय लगभग पूरे एशिया तथा यूरोप पर जाटवीरों का राज्य था। ईसाई-धर्मी तथा मुस्लिम-धर्मी लोगों की शक्ति बढ़ने के कारण जाटों की हार होती गई जिससे ये लोग समय-समय पर अपने पैतृक देश भारतवर्ष में आते रहे और सदियों तक आये। अधिकतर ये लोग भारतवर्ष की पश्चिमी सीमा की घाटियों से आये (विशेषकर खैबर और बोलान घाटी से)। इसका पूरा वर्णन अगले अध्याय में किया जाएगा। सम्भवतः अहलावत जाट भी इन्हीं रास्तों से अपने देश भारतवर्ष में लौट आये।
यह नहीं कहा जा सकता कि ये अहलावत जाट लोग कितने विदेशों में रह गये और कितने भारतवर्ष में आ गये। यहां आने के बाद पंजाब में और फिर राजस्थान, मालवा, गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में इनका निवास तथा राज्य स्थापित करने का कुछ ब्यौरा मिलता है जो निम्नलिखित है ।
कुछ लेखकों ने अहलावतों को अहलावत सोलंकी लिखा है2। चालुक्य चन्द्रवंशी जाट हैं जिनको बाद में सोलंकी3 नाम से पुकारा गया। राजपूत संघ बनने पर उन्होंने भी सोलंकी नाम धारण कर लिया था। परन्तु याद रहे कि दसवीं सदी से पहले इनका नाम नहीं चमका था। ग्यारहवीं शताब्दी में राजपूतों ने राज्य स्थापित करने शुरु कर दिये थे। दक्षिण में अहलावतों की पदवी सोलंकी रही।
अहलावत सोलंकी वंश का दक्षिण में राज्य
अहलावत सोलंकी जाटवंश के शासकों की दो शाखायें कही गई हैं। पहली शाखा ने सन् 550 ई० से 753 ई० तक लगभग 200 वर्ष तक दक्षिण भारत में राज्य किया। इनकी राजधानी बादामी4 (वातापी) थी। दूसरी शाखा ने सन् 973 ई० से 1190 ई० तक लगभग 200 वर्ष तक दक्षिण भारत में राज्य किया। इनकी राजधानी कल्याणी थी5।
वातापी या बादामी के शासक (सन् 550 ई० से 753 ई० तक)6
इस वंश के पहले दो शासक जयसिंह और रणराजा थे। किन्तु बादामी राज्य का संस्थापक पुलकेशिन प्रथम था जो इस सोलंकीवंश का तीसरा राजा हुआ। विन्सेन्ट स्मिथ के लेख अनुसार, “चालुक्यवंश दक्षिण में एक प्रसिद्ध वंश था जिसका संस्थापक पुलकेशिन प्रथम था जिसने इस राज्य को छटी शताब्दी के मध्य में स्थापित किया था।”
- 1. भारत भूमि और उसके निवासी पृ० 251, लेखक सी० वी० वैद्य; जाट इतिहास पृ० 7 लेखक ठा० देशराज।
- 2. जाट इतिहास उर्दू पृ० 206 लेखक ठा० संसारसिंह; क्षत्रिय जातियों का उत्थान, पतन एवं जाटों का उत्कर्ष पृ० 363; लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री, जाट इतिहास पृ० 86, लेखक रामसरूप जून। जाट इतिहास इंग्लिश पृ० 69, लेखक लेफ्टिनेन्ट रामसरूप जून; सर्वखाप रिकार्ड, शोरम गांव जिला मुजफ्फरनगर।
- 3. जेम्स टॉड ने चालूक्य-सोलंकी वंश की गणना 36 राज्यकुलों में की है।
- 4. वातापी (बादामी) - यह गोदावरी नदी और कृष्णा नदी के बीच पश्चिमी तट के निकट है।
- 5. कल्याणी - यह वातापी से उत्तर-पूर्व वरंगल के निकट है।
- 6. हिन्दुस्तान की तारीख (उर्दू) पृ० 377.
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-203
1: पुलकेशिन प्रथम ने वातापी को जीतकर अपने राज्य की राजधानी बनाई। इसी खुशी में उसने एक अश्वमेध यज्ञ किया। (अश्वमेध - राजा न्याय धर्म से प्रजा का पालन करे, विद्यादि का देनेहारा, यजमान और अग्नि में घी आदि का होम करना अश्वमेध कहलाता है - सत्यार्थप्रकाश एकादश समुल्लास पृ० 188)।
2: पुलकेशिन प्रथम की मृत्यु के पश्चात् उसके दो पुत्रों कीर्तिवर्मन और मंगलेश ने अपने शत्रुओं से युद्ध किए। मंगलेश ने अपनी राजधानी बादामी में विष्णु का एक सुन्दर मंदिर बनवाया।
3: पुलकेशिन द्वितीय (सन् 608 ई० से 642 ई०) - इस वंश का सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली सम्राट् पुलकेशिन द्वितीय था1। चीनी यात्री ह्यूनत्सांग (हुएनसांग) ने अपनी यात्रा समय लिखित पुस्तक “सि-यू-की” में लिखा है कि “पुलकेशिन द्वितीय बड़ा प्रतापी सम्राट् था। उसका राज्य नर्मदा के दक्षिण में बंगाल की खाड़ी से अरब सागर तक और दक्षिण में पल्लव (जाटवंश) राज्य की सीमाओं कांची तक फैला हुआ था2। विदेशी राजा उसका मान करते थे। उसके दरबार में फारस का राजदूत आया था। उसके जलपोत व्यापार के लिए ईरान और दूसरे देशों में जाते थे। उसके राज्य के निवासी बड़े निडर और युद्धप्रिय थे।” पुलकेशिन के चित्रित दरबार में फारस के राजदूत का चित्र आज भी अजन्ता की गुफाओं में देखा जा सकता है*।
उत्तरी भारत का शक्तिशाली सम्राट् हर्षवर्धन (606 ई० से 647 ई० तक) वसाति या वैस जाट गोत्र का था। उसने सन् 620 ई० में पुलकेशिन द्वितीय पर आक्रमण किया। दोनों सेनाओं का युद्ध नर्मदा के पास हुआ। हर्ष की असफलता हुई जिसके कारण पुलकेशिन द्वितीय की शक्ति और मान में अधिक वृद्धि हुई3। पुलकेशिन द्वितीय ने पल्लव (जाटगोत्र) राजा महेन्द्रवर्मन को हराया और बढ़ता हुआ कांची तक जा पहुंचा। परन्तु महेन्द्रवर्मन के पुत्र नरसिंह वर्मन ने इस हार का बदला लिया। सन् 642 ई० में उसने बादामी पर आक्रमण किया जिसमें पुलकेशिन द्वितीय हार गया और मारा गया।
4: विक्रमादित्य प्रथम - पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र विक्रमादित्य प्रथम सन् 642 ई० में राजगद्दी पर बैठा। इसने पल्लवों को हराया और उनकी राजधानी कांची तक
- 1. सर्वखाप पंचायत का रिकार्ड जो सर्वखाप पंचायत के मंत्री चौ० कबूलसिंह ग्रा० व डा० शोरम जिला मुजफ्फरनगर (उ० प्र०) के घर में है, में लिखा है कि पुलकेशिन सम्राट् जाट अहलावत गोत्र का था।
- 2. भारत का इतिहास हरयाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड, भिवानी पृ० 81.
- - उस समय ईरान का राजा खुसरो द्वितीय था (590-628 ईस्वी)। खुसरो द्वितीय का दूतमण्डल पुलकेशिन द्वितीय के दरबार में आया था। उसके दरबार में भी पुलकेशिन द्वितीय ने एक दूतमण्डल भेजा था। (मध्य एशिया में भारतीय संस्कृति पृ० 41, लेखक सत्यकेतु विद्यालंकार)।
- 3. भारत का इतिहास, हरयाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड, भिवानी पृ० 81; भारत का इतिहास प्री-यूनिवर्सिटी कक्षा के लिए, पृ० 153, लेखक अविनाशचन्द्र अरोड़ा।
- नोट - महाराजा पुलकेशिन द्वितीय का एक शिलालेख मिला है जिस पर लिखे लेख का वर्णन, पं० भगवद्दत बी०ए० द्वारा रचित भारतवर्ष का इतिहास द्वितीय संस्करण पृ० 205 पर किया गया है।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-204
अधिकार कर लिया। उसने दक्षिण के चोल, पांड्य वंश चीर वंश को भी जीत लिया था।
5: विक्रमादित्य द्वितीय - यह विक्रमादित्य प्रथम का पौत्र था। इसने पल्लव राजा नन्दीवर्मन जो हराकर उसकी राजधानी कांची पर अधिकार कर लिया। इसकी मृत्यु के बाद यह वंश कमजोर होता चला गया।
6: कीर्तिवर्मन द्वितीय - यह इस वंश का अन्तिम राजा था। इसको सन् 753 ई० में राष्ट्रकूट वंश (राठी) के राजा वन्तीदुर्ग ने हरा दिया और इसका राज्य छीन लिया। इस तरह से बादामी के शासकों का अन्त हो गया1।
सन् 754 ई० से लेकर सन् 972 ई० अर्थात् लगभग 200 वर्ष के अन्तराल में इन अहलावत वंशज जाटों के गौण राज्य स्थापित रहे जिनका ऐतिहासिक महत्त्व नगण्य है।
अहलावत वंश के शासकों का कल्याणी पर राज्य (सन् 973 से 1190 ई० तक2)।
- 1. तल्प द्वितीय - इसने सन् 973 ई० में राष्ट्रकूट वंश (Rathi) के अन्तिम राजा कक्क को पराजित किया और कल्याणी राजधानी पर चालुक्य (सोलंकी) वंश का राज्य स्थापित किया। इसने परमार राजा मीख से युद्ध किया था।
- 2. जयसिंह द्वितीय - राजा तल्प के पश्चात् इस वंश का प्रसिद्ध सम्राट् जयसिंह द्वितीय था। इसने जैन धर्म को त्यागकर शिवमत धारण किया। इसने कल्याणी नगर को बसाया और राजधानी बनाई। इसका परमार शासक तथा चोलवंश शासक राजेन्द्र प्रथम से युद्ध हुआ।
- 3. विक्रमादित्य षष्ठ - कल्याणी के सोलंकी शासकों में यह सम्राट् सबसे प्रसिद्ध हुआ। इसने मैसूर के होयसल वंश के शासक तथा चोलवंश के शासक राजेन्द्र द्वितीय को पराजित किया। इसके दरबार में बल्हण और विज्ञानेश्वर जैसे प्रसिद्ध विद्वान् थे। (सम्भवतः जाट इतिहास पृ० 86 ले० रामसरूप जून साहब ने इसी का नाम अहुमल लिखा है)।
- 4. विक्रमादित्य षष्ठ के बाद इस वंश के सब शासक दुर्बल थे। इस राज्य के सब प्रान्त धीरे-धीरे स्वतन्त्र हो गये। इस वंश का अन्तिम राजा सुवेश्वर था जिसको देवगिरि (ओरंगाबाद प्रदेश) के यादव वंश के शासक ने सन् 1190 ई० में हराया और उसके राज्य पर अधिकार कर लिया। (यादव वंश = जाटवंश)। इस तरह कल्याणी के सोलंकी वंश का शासन समाप्त हो गया।
अहलावत शासकों के बड़े कार्य -
इस वंश के शासक बड़े और युद्धप्रिय थे जिन्होंने छठी शताब्दी से आठवीं शताब्दी तक और दसवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक दक्षिण में अपने सम्मान, गौरव और प्रधानता को स्थिर रखा।
उन्होंने हर्षवर्धन जैसे शक्तिशाली सम्राट् को हराया और दक्षिण के वंशों चीर, चोल,
- 1. तारीख हिन्दुस्तान (उर्दू) पृ० 278.
- 2. तारीख हिन्दुस्तान (उर्दू) पृ० 279-280 पर।
- नोट - चोल, पांड्य और पल्ल्व तीनों जाट गोत्र (वंश) हैं।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-205
राष्ट्रकूट, पांड्य, पल्लव, होयसल और परमार आदि के शासकों को कई बार नीचा दिखाया। ईरान आदि देशों से व्यापार जलपोतों से किये। ये शिल्पकला के बड़े प्रिय थे। अजन्ता व अलोरा की गुफाओं की बहुत सी चित्रकारी इन्हीं के शासन में की गईं। ये गुफायें इनके राज्य में थीं। इन्होंने कई प्रसिद्ध व सुन्दर मन्दिर अपने राज्य में बनवाये। जैसे - बादामी में विष्णु मन्दिर, मीगोती में शिवमन्दिर आदि। ये विद्याप्रेमी भी थे। बल्हण और विज्ञानेश्वर जैसे प्रसिद्ध विद्वान् इनके दरबार में रहते थे। ये लोग न्यायकारी, सच्चाईपसन्द थे और अन्याय के विरुद्ध लड़ने वाले थे।
अहलावत शासन का दक्षिण में पतन और उत्तर की तरफ आगमन
जब अहलावत वंश का दक्षिण में शासन दुर्बल हो गया तथा समाप्त हो गया, तब अहलावत वहां से चलकर उत्तरी भारत की ओर आ गये और जहां-तहां फैल गये। विक्रमादित्य षष्ठ के वंशज बाँसलदेव1 अहलावत के साथ इसी वंश की एक टोली (समूह) दक्षिण से चलकर बीकानेर राज्य की प्राचीन भूमि ददरहेड़ा2 में आकर बस गई। इसी अहलावत वंश के एक राजा गजसिंह की मृत्यु होने पर उसकी विधवा रानी अपने दो बालक बेटों जिनके नाम जून और माड़े थे, को साथ लेकर बांसलदेव के पास पहुंच गई और अपने देवर बांसलदेव के साथ विवाह कर लिया3 परन्तु उससे कोई बच्चा न हुआ। बीकानेर पर राठौर राज्य स्थापित होने से पहले ही इन अहलावत जाटों का यह संघ वहां से चलकर हरयाणा प्रान्त के भिवानी जिले के गांव कालाबड़ाला में कुछ दिन रहा। फिर वहां से चलकर रोहतक जिले में आकर बस गये। सबसे पहले यहां पर शेरिया गांव बसाया। चौ० डीघा उपनाम पेरू अहलावत ने कुछ दिन शेरिया में रहने के बाद डीघल गांव बसाया। डीघल गांव से लगा हुआ गांगटान गांव है जो डीघल का पांचवां पाना भी कह दिया जाता है। डीघल में से निकलकर ग्राम लकड़िया, धान्दलान और भम्बेवा बसे। अहलावत जाटों का सबसे बड़ा गांव डीघल है जो शुरू से ही अहलावत खाप का प्रधान गांव रहता आया है।
अहलावत खाप के 26 गांव हैं जो निम्नलिखित हैं -
1. डीघल 2. शेरिया 3. गोछी 4. धान्दलान 5. लकड़िया 6. गांगटान 7. भम्बेवा 8. बरहाना गूगनाण 9. बरहाना मिलवाण। ये सब अहलावत गोत्र के गांव हैं। इनके अतिरिक्त्त अहलावत जाटों के कई-कई परिवार गांव 10. महराना 11. दुजाना 12. बलम में आबाद हैं जो कि अहलावत खाप के गांव हैं। खाप के और गांव 13. सूण्डाना 14. कबूलपुर 15. बिरधाना 16. चमनपुरा 17. मदाना कलां 18. मदाना खुर्द 19. छोछी 20. कुलताना 21. दीमाना 22. पहरावर 23. सांपला 24, खेड़ी 25. नयाबास 26. गढ़ी।
यहां पर आने वाले अहलावत संघ में अहलावत गोत्र के ओलसिंह, पोलसिंह, ब्रह्मसिंह व जून बड़े प्रसिद्ध व्यक्ति थे जिन्होंने यहां के गांव बसाने में विशेष भाग लिया। उनकी प्रसिद्धि के कारण उनके नाम से ओहलाण, पहलाण, ब्रह्माण व जून गोत्र चले। जिला रोहतक में ओहलाण गोत्र के गांव सांपला, खेड़ी, गढ़ी और नयाबास हैं। ब्रह्माण गोत्र के गांव गुभाणा और
- 1,3. जाट इतिहास पृ० 87 व इंग्लिश अनुवाद पृ० 70, 89 लेखक ले० रामसरूप जून।
- 2,3. क्षत्रिय जातियों का उत्थान, पतन एवं जाटों का उत्कर्ष पृ० 363 लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
- 3. जाट इतिहास उर्दू पृ० 206-207 लेखक ठा० संसारसिंह।
- नोट - ददरहेड़ा बीकानेर के निकट है।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-206
खरकड़ी हैं। सांपला गढ़ी से ओहलाण गोत्र के जाटों ने बिजनौर में पहुंचकर वहां रतनपुर गांव बसाया।
अहलावत गोत्र के कुछ और गांव निम्नलिखित हैं - जिला रोहतक में बहलम्भा आधा, इसका निकास डीघल गांव से है। इस बहलम्भा गांव के अहलावतों ने खरकड़ा गांव बसाया। गांव बोहर, माड़ौधी और हुमायूंपुर में कई-कई परिवार अहलावत जाटों के हैं।
जिला जींद में गांव रामगढ (पीड़धाना), प्रेमगढ़ (खेड़ा), बहबलपुर, लजवाना खुर्द, छान्यां (फतेहगढ़) और कई परिवार रामकली में हैं।
जिला करनाल में बबैल गांव है।
देहली प्रान्त में चिराग दिल्ली, पहाड़ी धीरज में अहलावत जाटों के काफी परिवार हैं।
राजस्थान व पंजाब प्रान्त में भी अहलावत जाट कई स्थानों पर आबाद हैं।
उत्तरप्रदेश में अहलावत जाटों के कई गांव हैं। जिला मेरठ में दौराला, कंडेरा, वलीदपुर,
जिला मुजफ्फरनगर में जीवना, रायपुरनंगली, भैसी, बुपाड़ा,
जिला बिजनौर में बाकरपुर, धारुवाला, जालपुर, पावटी, अखलासपुर, कबूलपुर, किरतपुर, बाहुपुर, शहजादपुर आदि गांव अहलावतों के हैं। इनमें से कई गांवों का निकास डीघल गांव से है जो अपने आपको डीघलिया कहलाने का गर्व रखते हैं।
उत्तरप्रदेश में अहलावत जाट
अहलावत गोत्र के सबसे दबंग गांव मुजफ्फरनगर जिले में माने जाते हैं जबकि मुजफ्फरनगर में अहलावत गोत्र के कुल 27 गांव है उनमें 2 गांव सिख जाटों के हैं जो पंजाब से आये थे और बाक़ी के गांव हरियाणा से आये थे बिजनौर मे अहलावतो के 65-70 गाँव है । दौराला (मेरठ) अहलावत खाप का उत्तरप्रदेश का सबसे बड़ा गांव है, इतिहासकार ठाकुर देशराज जी के अनुसार दौराला के अहलावत "प्रधान" उपाधि से सम्बोधित किए जाते हैं। सभी अहलावत गोत्र के लोगो का निकास इलावृत देश से है इसका कारण साफ है कि इलावृत देश में रहने वाले अहलावत देवताओं का शुद्ध रक्त आज तक भी अहलावतों की रगों में बह रहा है।अहलावत खाप के उत्तर प्रदेश के खाप चौधरी रायपुर नगँली के है । जो चौधरी गजेन्द्र सिहँ अहलावत जी है हरियाणा में इस गोत्र के 112 गांव है और उ०प्र० में 212 गाँव हैं अहलावत गोत्र के अधिकतर गांव हरियाणा से आये हैं
उत्तर प्रदेश में अहलावत खाप के लोग निम्नलिखित गांव में रहते हैं(212 गाँव)
उत्तर प्रदेश
मुजफरनगर जिला: 1. भैसी , 2. रायपुर नंगली, 3. जीवना, 4. लडवा, 5. सलेमपुर, 6. हरटी, 7. सामर्थी , 8. नंगलाकबीर , 9. रहटौर, 10. सौन्टा, 11. नन्हेडा, 12. जंधेडी, 13. सिखेडा , 14.वाजिदपुर कवाली, 15. जट मुझेडा, 16. सालारपुर, 17. बुपाडा, 18. मोधपुर, 19. रहकड़ा, 20. दूधाहेडी, 21. राजपुर कलौं, 22. पीनना, 23. लछेडा, 24. सीमली, 25. लुहसाना, 26. बधाई कलों, 27. भोकरहेड़ी, 28. जानसठ, 29. शेखपुरा, 30. सावटु, 31. मोरना , 32. सहावली, 33. मुजफरनगर शहर , 34. फहीमपुर, 35. खानुपुर, 36. जहानाबाद, 37. मीरापुर, 38. खतौली, 39. महरमपुरदुल्हेडा (सिख अहलावत ) , 40. पुरकाजी (सिख अहलावत ) , 41. लड़वा - इस गाँव में कुछ अहलावत सिख ( केशधारी ) हैं , तो कुछ मोने ( छोटे केशवाले )
शामली जिला : 42. रंगाना, 43. शामली शहर ।
सहारनपुर जिला : 44. टिकरौल (ननौता के पास) ।
बागपत जिला : 45. कन्डेरा , 46. कान्हड , 47. बड़ौत , 48. रघुनाथपुर , 49. बागपत शहर
मेरठ जिला: 50.बहसूमा, 51.दौराला , 52.भटीपुरा , 53.सदरपुर , 54.मछरी , 55.वलीदपुर , 56.डाबका , 57.भूमा, 58.खालतपुर , 59.खिया मेरठ शहर ।
गाजियाबाद जिला : 60.गाजियाबाद शहर , 61.इस्सापुर (मोदीनगर - हापुः । रोड ) , 62.Sahibabadसाहिबाबाद ।
गौतमबुद्धनगर जिला : 63.गौतमबुद्धनगर नोएडा सै0-311
बिजनौर जिला : 64.नियामताबाद , 65.दौलताबाद , 66.मेवला , 67. कुरी बिजनौर मकनपुर 68.धमानंगली , 69.पुरैना , 70.पावटी, 71. कुलचाना लाडनपुर , 72. अखलासपुर सफीपुर नंगली , 73. पीपल जट , 74. सीमली , 75 खतापुर , 76 धारूवाला , 77. कबूलपुर राजदेव नंगली, 78. स्वाहेडी , 79. चाकरपुर गढ़ी जालपुर , 80. नांगल , 81.फजलपुर , 82. शेखपुरा , 83. नन्हेंडा धनसनी , 84. कीरतपुर , 85. धर्मसा नंगली पुठ्ठी , 86. नवादा नरगढ़ी , 87. डल्लू धनौरा , 88. अमीरचंद शहजादपुर , 89. फुलसंदा , 90. बढ़ापुर , 91. जावनवाला पाईमार बड़ा , 92. मखवाड़ा , 93.कडापुर , 94. ढाकली लालपुर , 95. लावलपुर , 96.दाउदपुर , 97. रघुनाथपुर सीकरी खुर्द , 98. चौहड़पुर , 99. नीमला मुस्तफाबाद , 100. माहु - नंगली , 101. आसरा खेडा , 102. हैबतपुर , 103. पाईमार छोटा , 104. भरैकी , 105 मुस्सौपुर पाली , 106. बनरवाला , 107. छाछरी , 108. मटौरा , 110. नंगली छोईया , 111. पाडला , 112. देवीदास वाला , 113. महमसापुर , 114. बिजनौर शहर , 115. पड़ावली नारायणपुर , 116. जलीलपुर , 117. हमीदपुर ।
जिला मुरादाबाद: 118. बटावली , 119. काजीपुरा , 120. महेशपुर , 121. सकतपुरा जवाहर नगर , 122. मुरादाबाद शहर , 123. मिनिकपुर नंगली , 124. भरेकी , 125. राजपुर ।
बुलन्दशहर जिला : 126. सैदपुर , 127. सलाबाद - धमैडा , 128. बढ्ढा , 129. उदयपुर करोठी ।
बरेली जिला : 130. बरेली शहर , 131. सुकाटिया
सम्भल जिला :
132. अडौला
हापुड़ जिला : 133. गढ़ी (ककौड़ी) , 134. उदयपुर ।
इलाहाबाद जिला: 135. नैनीष्शहर ।
अहलावत गोत्र की शाखायें
अहलावत गोत्र के महान् पुरुषों के नाम से ओहलाण,पेहलाण, ब्रह्माण, जून और माड़े गोत्र चले हैं। अतः इनकी रगों में एक ही धारा का खून बह रहा है। कुछ लेखकों ने जून गोत्र को अहलावत, ओहलाण, पेहलाण, ब्रह्माण गोत्रों का सौतेला भाई (मौसी का बेटा) लिखा है और दन्त्तकथा भी यही प्रचलित है। हमारे लेख से स्पष्ट है कि जून गोत्र भी इन चारों गोत्रों का रक्त भाई या एक ही वंश का है। राजा गजसिंह जिसके पुत्र जून और माड़े थे, अहलावत सोलंकी गोत्र का था1। अहलावत, ओहलाण, पेहलाण, ब्रह्माण गोत्रों के आपस में आमने-सामने एवं एक दूसरे की भांजी या भांजा के साथ विवाह नहीं होते हैं। जून ने छोछी गांव बसाया जो कि डीघल के निकट है। इसी गांव से जून गोत्र के 15 गांव बसे हैं -
जिला रोहतक में 1. छोछी 2. नूणा माजरा 3. लोवा 4. खुंगाई 5. समचाणा 6. गद्दी खेड़ी 7. पत्थरहेड़ी 8. देसलपुर 9. अभूपुर, सोनीपत जिले में 10. छतहरा, फरीदाबाद में 11. अजरोंदा, चण्डीगढ़ में 12. मनीमाजरा और देहली प्रान्त में 13. नांगलकबीर 14. ककरोला (कुछ घर) जून जाट गोत्र के हैं।
अहलावत वंश के शाखा गोत्र - 1. ओहलाण 2. पेहलाण 3. ब्रह्माण 4. जून 5. माड़े।
अहलावत वंश की प्रसिद्धि प्राचीनकाल से ही रहती आई है, जैसा कि लिख दिया गया है। वर्तमानकाल में हुए अहलावत वंश के कुछेक प्रसिद्ध मनुष्यो का संक्षेप से वर्णन निम्नप्रकार से है -
अहलावत खाप की पंचायत का न्याय तथा डीघल देवताओं2 का गांव की कहावत अति प्रसिद्ध है। इसका कारण साफ है कि इलावृत देश में रहने वाले अहलावत देवताओं का शुद्ध रक्त आज तक भी अहलावतों की रगों में बह रहा है।
डीघल गांव के अहलावत जाटों में कुछेक अति प्रसिद्ध पुरुष
डीघल गांव आबाद होने के कुछ पीढ़ी बाद नैणा, लौराम और बिन्दरा ये सब एक ही समय में हुए। इनसे कुछ पीढ़ी बाद सन् 1857 ई० के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के समय केहर पहलवान एवं तिरखा थे। 20वीं सदी के आरम्भ
- 1. जाट इतिहास पृ० 87; जाट इतिहास अग्रेजी अनुवाद पृ० 89 लेखक रामसरूप जून।
- 2. देखो अध्याय 1 इलावृत देश।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-207
में दीनबन्धु सर छोटूराम ओहलाण, श्री जगदेवसिंह जी सिद्धान्ती अहलावत ग्राम बरहाणा (गूगनाण), चौ० लौटनसिंह पहलवान अहलावत पहाड़ी धीरज दिल्ली में हुए।
चौ० नैणा अहलावत - नैणा का कद लगभग आठ फुट, गठीला शरीर, लोहपुरुष, वीर योद्धा, बड़ा शक्तिशाली, वजन लगभग 64 धड़ी (आठ मन) बताया जाता है। इसके ऐतिहासिक कार्य तो अनेक हैं। लेकिन इनमें से अति प्रसिद्ध एक कार्य का वर्णन इस प्रकार है। एक बार नैणा सांझ होने पर गांव चुलाणा की चौपाल में ठहर गया। वहां के कुछ लोगों ने इसका विशालकाय शरीर तथा खद्दर की धोती, कुर्ता के पहनावे का खूब मजाक उड़ाया। खाने-पीने के लिए किसी ने नहीं पूछा। उस चौपाल के लिए एक बहुत लम्बा व भारी शहतीर बैलगाड़ी में चाल बैल जोड़कर लाया हुआ पड़ा था। उस गांव के निवासियों को सबक सिखलाने के लिए नैणा उस शहतीर1 को अकेला ही अपने कन्धे पर उठाकर तीन कोस दूरी तक अपने गांव डीघल में ले आया। दिन निकलने पर चुलाणा गांव के लोग यह अनुमान लगाकर कि नैणा के सिवाय और कोई भी उस शहतीर को नहीं ले जा सकता, गांव डीघल आये। उन्होंने डीघल गांव के निवासियों के सामने नैणा से अपनी गलती की माफी मांगी और शहतीर ले जाने की प्रार्थना की। नैणा ने इस शर्त पर हां कर ली कि शहतीर को आदमी उठाकर ले जा सकते हैं, उनकी संख्या कितनी भी हो सकती है। चुलाणा निवासी ऐसा करने में असफल रहे। तब गांव डीघल ने उस शहतीर की कीमत चुलाणा के लोगों को दे दी। वह शहतीर गांव के बीच वाली चौपाल में चढ़ा हुआ मैंने (लेखक) तथा दूर-दूर के लोगों ने देखा है। अब भी वह शहतीर दो टुकड़ों में चढ़ा हुआ एक जाट के मकान में देखा जा सकता है (लेखक)। नैणा की खेत में काम करने वाली जेळी का नाला (दस्ता) आज भी उसके खानदान के एक घर में शहतीर के नीचे लगा थाम की शक्ल में देखा जा सकता है। नैणा खानदान में आज 35 घर हैं जिनमें मैं भी हूँ (लेखक)।
चौ० लौराम वैद्य अहलावत जाट - यह अपने समय का बहुत प्रसिद्ध वैद्य हुआ था। इसकी प्रसिद्धि उत्तरी भारत में दूर-दूर तक थी। वह नाड़ी को देखकर हर तरह की बीमारी को जान लेता था और उसका इलाज कर देता था। एक बार दिल्ली के बादशाह की बेगम बच्चा जनने लगी परन्तु बच्चा अन्दर अटक गया जिससे बेगम मरने लगी। दिल्ली के बड़े-बड़े वैद्य जवाब दे गये। बादशाह ने लौराम वैद्य को लाने के लिए तेज रफ्तार घुड़सवार भेजे जो डीघल गांव से उसको दिल्ली दरबार में ले गये। लौराम वैद्य को पर्दे के पीछे से बेगम के हाथ की नाड़ी स्पर्श कराई गई। लौराम ने बादशाह को अलग ले जाकर बताया कि बच्चा उल्टा है। बेगम को मत बताओ और उसकी छत पर तोप का फायर करवा दो। ऐसा करवाते ही बच्चा बाहर आ गया जो कि लड़का था। बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने लौराम वैद्य को मनचाहा इनाम मांगने को कहा। लौराम वैद्य ने बादशाह से कहा कि “मुझे कोई वस्तु या धन आदि नहीं चाहिए, आप दिल्ली शहर में से गुजरने वाली किसानों की बैलगाड़ियों पर महसूल (टैक्स) लेना बन्द कर दो।” बादशाह ने ऐसा ही किया। लौराम वैद्य की प्रसिद्धि उत्तरी भारतवर्ष में दूर-दूर तक फैल गई। किसानों की बैलगाड़ियों
- 1. उस शहतीर का भार लगभग 25 मन है जो आज भी डीघल गांव के एक मकान में चढ़ा हुआ है। घन फुट के हिसाब से यह भार लिया गया है।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-208
पर कर (टैक्स) बन्द करवाने वाली बात लौराम वैद्य के जाट होने का ठोस प्रमाण है क्योंकि ब्राह्मण, बनिया या अन्य जाति का पुरुष यह मांग नहीं कर सकता। वह तो धन या व्यापार की मांग करेगा।
बिन्दरा अहलावत जाट - यह तलवार का धनी, निडर, साहसी वीर योद्धा था। अन्याय के विरुद्ध युद्ध करना अपना परम धर्म समझता था। इसके वीरता की एक घटना का वर्णन इस प्रकार है। एक समय जिला रोहतक में लडान नामक स्थान पर जाखड़ जाटों के सरदार लाडासिंह का राज्य था। एक बार पठानों ने उनसे लडान छीन लिया। जाखड़ों ने सम्मिलित शक्ति से पठानों से लडान फिर ले लिया1।
यह घटना इस तरह से घटी - बहू झोलरी में दिल्ली के मुसलमान बादशाह की ओर से एक नवाब का शासन था। उसने जाखड़ जाटों को हराकर लडान पर कब्जा कर लिया। फिर जाखड़ों के गांव को लूटना शुरु कर दिया। उन पर हर प्रकार के अत्याचार करने आरम्भ कर दिये। जाखड़ों की पंचायत डीघल आई और मदद मांगी। इस हमदर्दी के लिए डीघल तथा अहलावत खाप के बहादुर युवकों का एक बड़ा दल जिसका सेनापति वीर योद्धा बिन्दरा था, जाखड़ों के पास पहुंच गया। अहलावतों और जाखड़ों ने मिलकर बहू झोलरी पर धावा बोल दिया। मुसलमान सेना साहस छोड़ गई और किले में जा बड़ी। बहादुर बिन्दरा एक अहलावत जाट दस्ता (टोली) को साथ लेकर दीवार पर से कूदकर सबसे पहले किले में घुस गया। फिर तो शेष सभी जाट किले में घुस गये। इन्होंने पठान सेना को गाजर मूली की तरह काट दिया और बिन्दरा ने नवाब का सिर उतार दिया। किले पर जाटों ने अधिकार कर लिया। परन्तु बड़े खेद की बात है कि वीर योद्धा बिन्दरा वहीं पर शत्रु की गोली से शहीद हो गया। इसके पश्चात् जाखड़ों का लडान पर अधिकार हुआ और इनके बहुत से गांव आराम से बस गये। जाटों की शक्ति से डरकर दिल्ली का बादशाह चुपचाप बैठा रहा। जाटों से लोहा लेने का साहस न कर सका। यह है बिन्दरा की वीर गाथा।
केहर पहलवान अहलावत - यह लगभग साढे-छः फुट लम्बा, वजन 48 धड़ी (6 मन), गठीला तथा फुर्तीला पहलवान था। बैलगाड़ियों के काफले के साथ कलकत्ता तक भी गया था। वहां निकट किसी राजा की रियासत (राज्य) के सबसे बड़े पहलवान को कुश्ती में हराकर बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त की। राजा ने खुश होकर बहुत इनाम दिया। इसी तरह पंजाब के एक शक्तिशाली मुसलमान पहलवान को लाहौर में हराया। इसने हरयाणा, उत्तरप्रदेश, पंजाब तथा देहली प्रान्त के अनेक पहलवान कुश्ती करके पछाड़ दिये थे। यह कुश्ती में हारा कभी भी नहीं। सारे उत्तरी भारत में इसकी प्रसिद्धि थी और डीघलिया केहर पहलवान के नाम से प्रसिद्ध था।
तिरखा अहलावत - यह लगभग सात फुट लम्बा वजन 56 धड़ी (7 मन), गठीला, फुर्तीला, फौलादी हड्डियों वाला और रौबीला वीर योद्धा था। अपने समय में वीरता तथा सुन्दरता में यह अद्वितीय था। यह तलवार का धनी था। इसको उस समय का वीर अर्जुन कहा गया है। इसकी तलवार लम्बी व भारी थी। एक साधारण युवक उसको उठाकर वार करने में असमर्थ था। इसकी
- 1. जाट इतिहास पृ० 591 लेखक ठा० देशराज।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-209
अद्भुत शक्ति के कुछ मुख्य उदाहरण निम्न प्रकार से हैं -
- डीघल गांव में एक बारात आई हुई थी। वह अपने साथ एक बड़े वजन का मुदगर (मुगदर) व उसको एक हाथ से उठाने वाला पहलवान साथ लाये थे। उस पहलवान ने डीघल वालों को मुदगर उठाने की चुनौती दी और उसने स्वयं उसको उठाकर दिखलाया। डीघल के एक-दो युवकों ने भी उस मुदगर को उसी तरह उठा दिया। हार-जीत का फैसला न होने पर तिरखा को बुलाया गया। यह मुकाबिला एक कच्ची चौपाल के निकट हो रहा था। चौ० तिरखा ने मुदगर में लगा हुआ दस्ता (मूठ) में अपने दोनों हाथों की उंगलियां डाल लीं और मुदगर को अपनी टांगों के बीच आगे-पीछे झुलाकर एक ऐसे झटके से ऊपर को फैंक दिया और वह मुदगर1 चौपाल की छत पर जाकर गिरा जिसके वजन व दबाव से छत की कड़ी टूट गई। वह छत लगभग 12 फुट ऊँची थी और जिसकी मंडेर तो फुट ऊँचाई की थी। बाराती बेचारे लज्जित हो गये।
- चौ० तिरखा खरड़ को तालाब के पानी में धोकर ऐसा निचोड़ देता था कि फिर कई आदमी लगकर भी उससे एक बूंद पानी नहीं निकाल सकते थे। उस निचोड़े हुए खरड़2 को तह करके एक हाथ से ऊपर लिखित चौपाल की छत पर फेंक दिया करता था।
- गांव बादली गुलिया वालों का काज प्रसिद्ध है। उस अवसर पर दूर-दूर से लाखों मनुष्य आये थे। बादली वालों ने एक कटे हुए वृक्ष के तने में एक दस्ता (मूठ) लगवाकर रखवाया था। यह लक्कड़ बहुत भारी तथा असंतुलित था। उस मुदगर को उठाने के लिए तिरखा डीघलिया को पुकारा गया। चौ० तिरखा ने एक हाथ से उस लक्कड़3 को उठा दिया और लोगों के कहने अनुसार एक छोटी टेकड़ी पर उस मुदगर को उठाये-उठाये चढ़ गया। इस अद्वितीय कारनामे को देखकर लाखों आदमियों ने खुशी में तालिया बजाईं और “तिरखा की जय” बोलकर उसका सम्मान किया।
- एक बार डीघल की कई बैलगाड़ियां गेहूं भरकर एक स्थान से दूसरे स्थान को जा रही थीं। एक गाड़ी का पहिया गीली भूमि में नीचे को धंस गया। इस गाड़े में 70 मन गेहूं भरे थे और इसको चार बैल खींच रहे थे। सबने मिलकर उस गाड़ी को निकालने के उपाय किये परन्तु असफल रहे। चौ० तिरखा ने उस गाड़ी के धुरा के नीचे से मिटटी निकलवाई और उस धुरा के नीचे अपनी कमर लगाकर ऊपर को पहिये को उठाकर आगे को बाहर कर दिया। यह एक अद्वितीय कार्य है।
बड़े खेद की बात है कि लौराम, नैना, केहर, तिरखा आदि के अतिप्रसिद्ध कारनामों का कोई लेख व रिकार्ड नहीं रक्खा गया है। उनके कारनामों की तुलना तक विदेशी आज तक भी नहीं पहुंच पाये हैं। भारतवासियों विशेषकर जाट जाति को उन पर गर्व है।
श्री जगदेवसिंह जी सिद्धान्ती शास्त्री - आपका जन्म बरहाणा (गूगनान) गांव के चौ० प्रीतराम
- 1. मुदगर का वजन लगभग 40 धड़ी (5 मन)
- 2. खरड़ का वजन लगभग 16 धड़ी (2 मन)
- 3. लक्कड़ का वजन लगभग 56 धड़ी (7 मन)
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-210
अहलावत के घर सन् 1900 ई० में हुआ। आप अपने समय के उच्चकोटि के वेदविद्या के प्रकाण्ड विद्वानों में गिने जाते हैं । आप सन् 1922 से 1929 ई० तक गुरुकुल मटिण्डू तथा फिर आर्य महाविद्यालय किरठल के संचालक रहे। हैदराबाद सत्याग्रह में साढ़े-चार मास जेल काटी। आप ऋषि दयानन्द के कट्टर अनुयायी तथा एक आदर्श आर्यनेता थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट में जाटों को शूद्र लिखा हुआ था। काण्ठ राज्य का एक केस जिला मुजफ्फरनगर की अदालत में था। वहां सिद्धान्ती जी ने एक पक्ष का वकील बनकर यह सिद्ध कर दिया कि जाट शूद्र नहीं अपितु द्विज (क्षत्रिय) हैं। (पूरी जानकारी के लिए देखो द्वितीय अध्याय, जाट क्षत्रिय वर्ण के हैं, प्रकरण)
आप को सन् 1956 ई० में सर्वखाप पंचायत हरयाणा (विशाल हरयाणा - 300 खापों) का प्रधान चुना गया। इस पद पर आप लगातार सन् 1979 ई० स्वर्गवास होने तक रहे। आप के विषय में अधिक वर्णन दशम अध्याय में किया जायेगा।
चौ० लोटनसिंह पहलवान अहलावत - आपका गांव पहाड़ी धीरज दिल्ली है। आप अपने समय के बड़े शक्तिशाली प्रसिद्ध पहलवान थे। आप एक वीर योद्धा, निडर साहसी तथा कट्टर आर्य थे। लोटनसिंह सच्चा गोरक्षक था। इसने वह काम पूरा किया जो ईश्वर का आदेश है कि - “गौओं को मारनेवाले को मार, गौ आदि पशुओं को निरन्तर सुखी करो” (ऋ० मं० 1/अ० 18/ सू० 120/ मं० 10)। इस वीर आर्य योद्धा ने दिल्ली में गोवध करने वालों को मौत के घाट उतारना आरम्भ किया। मुसलमान व अंग्रेज सरकार इसके विरोधी बन गये। इसने अपने साथी वीर आर्यों का संघ बनाया। किसी से न डरकर सैंकड़ों कसाई एवं उनके साथ्ही मुसलमानों को मौत के घाट पहुंचा दिया।
पूरी दिल्ली के मुसलमानों में हाहाकार मच गई। कसाइयों ने इससे डरकर गोवध करना बन्द कर दिया। चौ० लोटन पहलवान की इस वीरता की प्रसिद्धि पूरे भारतवर्ष में फैल गई। यह है चौ० लोटनसिंह पहलवान की वीर गाथा।
दीनबन्धु सर चौ० छोटूराम ओहलाण - आप बड़े बुद्धिमान्, विद्वान्, राजनीतिज्ञ, कुशल शासक, सच्चे देशभक्त, ऋषि दयानन्द जी के सच्चे शिष्य, सिद्धान्तों के धनी, कर्मयोगी, समाज सुधारक, किसानों के हितकारी, निपुण कार्यकर्त्ता और निडर नेता थे। आपका सबसे बड़ा गुण यह है कि बिना मांगे ही आपने पंजाब के किसानों की बिगड़ी आर्थिक, सामाजिक व मानसिक दशा को सुधारा तथा उनको चहुंमुखी उन्नत किया जो आज तक कोई दूसरा नहीं कर सका है। इसी कारण तो आपको “किसानों का मसीहा” कहा गया है। आपके इन गुणों का विस्तार से वर्णन “आप की जीवनी” दशम अध्याय में किया जायेगा।
History
Ahlawat is said to be derived from Ilavrata or Alawat. Illa-vrta was a province in Jambudvipa, which was situated in Mongolia. Presently it is known as Altai that is degenerated form of Elawrat.
The historians indicate the habitations of Ahlawats in Narth-west region of India and place known as Alans in Central Asia. According to the historian Bhim Singh Dahiya, Ahlawats in Russia are known as Allans.
Two branches of Ahlawat Solankis were rulers in south India. Pulkesin first of this clan founded Vatapi (Badami) kingdom between Godavari and Krishna rivers. This branch ruled till 753. The second branch of this clan founded rule at Kalyani near Warangal in north east of Vatapi in 937. They ruled till 1190.
After their down fall in south India they migrated to north India and settled at Dadheda village in Jangladesh. They further moved to Kalabadala place in Bhiwani district of Haryana. After some time they moved to Seria village of Jhajjar district and cleared forests of this place for cultivation.
Chaudhary Digha founded another village Deeghal. There are 26 villages of this gotra. Ohlan, Pehlan, Brahman, Joon and Made are derivatives of Ahlawats.
According to B S Dahiya[9] Ailavat are the descendants of Yayati Aila, the emperor of Jambudvipa. Ramayana mentions a Pururvas Aila, the son of a ruler, who migrated from Bahli (Bactria) in Central Asia to mid-India, with his wife named Urvasi, and settled at a place called Nandan, identified by A. Stein with the territory of that name in the Salt Range on the bank of Jhelum river in Punjab.20 Varahamihira mentions the Ailavats with the people of Taxila and Pushkalavati, Pauravas (Por Jats) and the Pingalakas (Panghal Jats).21 The Ailavats are now found in Rohtak and the adjoining areas of Haryana and in UP.
Ram Sarup Joon [10] writes that ... Ahlawat and Joon gotras belong to that branch of Solanki which ruled over Kaliani and Watapi (Vatapi) in South India from 5th to 12th century AD. They had a staunch enemy i.e. Raja Rajendra Chol. He attacked them with an army of one hundred thousand strong during the reign of seventh Raja Satish Raj Solanki and seized a major part of the kingdom.
In 1052 AD a new ruler of this dynasty came forth to redeem the old loss. His name was Ahumal and was titles Sameshwar I and Raj Raja. He attacked the Chol kingdom with a large army, conquered it and married Umang Devi daughter of the Chol king. He made Bangi his new capital. This kingdom existed astride the Tunga Bhadra River. Ahumal died in 1068 AD. His dynasty is called Ahlawat.
History of the Jats, End of Page-69
After several generations Bisaldev of this dynasty migrated towards north and settled down in village Nanhakhera (Seria) near Dighal in district Rohtak. He had four sons Olha, Ahlawat, Birmhan and Pehlawat An ancient pond (Birmala) named after Birmhan (Brebhan) is still famous for its sanctity in village Seria (Rohtak). Four new gotras (clans) originated after their names and are found settled in 30 villages around Dighal. Todd and Tarikhe Gujran have recorded this event in "Gazetteer of Rohtak" by Abdul Malik.
Ahlawat Khap
Ahlawat Khap has 26 villages in Haryana. These include Seria, Bhambhewa, Barhaana, Dhandhlaan etc. The Head Quarter of the Khap is Dighal. Dilip Singh Ahlawat is from this Khap.[11]
Ahlawat Khap has 26 villages in Haryana. Main villages are:
- Babail (Panipat)
- Barhaana (बरहाना) (Jhajjar)
- Behlamba (Rohtak)
- Bhambhewa (भम्भेवा) (Jhajjar)
- Deeghal (Jhajjar)
- Dhandhlaan (Jhajjar)
- Dujana (Jahjjar}
- Ghasola (Bhiwani),
- Gochhi (Jhajjar)
- Lakria (Jhajjar)
- Seria (Jhajjar)
- Mehrana (Jhajjar)
- Rupgarh (Jind)
Villages founded by Ahlawat clan
- Seria - Jhajjar
- Dighal - Jhajjar
- Gangtan - Jhajjar
- Lakria - Jhajjar
- Dhandhlaan - Jhajjar
- Bhambhewa - Jhajjar
Distribution in Delhi
Bindapur near Palam, Chirag Delhi, Pahari Dheeraj, Chhawla[12]
Distribution in Haryana
Villages in Panipat district
Villages in Jhajjar district
Barhaana, Bhambhewa, Chiman Pura, Deeghal, Dewana, Dhandhlaan, Dujana, Gochhi, Lakria, Madana, Mehrana, Seria,
Villages in Rohtak district
Behlamba, Bohar Rohtak, Garhi Ballab, Humayupur, Kharkada, Marodhi, Pahrawar,
Villages in Bhiwani district
Villages in Jind district
Chhaaney, Lajwana Khurd, Ramkali, Rupgarh,
Villages in Panipat district
Villages in Palwal district
Distribution in Rajasthan state
Villages in Jhunjhunu district
Localities in Jaipur city
Malaviya Nagar, C-Scheme, Ganpati Nagar, Ganpati Nagar,
Locations in Jaipur District
Distribution in Uttar Pradesh
Villages in Baghpat district
Kandera, Kannhad, Raghunathpur, Baurat City , Mukarrabpur Kandera,
Villages in Meerut district
Chirori, Daurala, Pohali, Raghunathpur, Sadarpur, Walidpur, Bhatipura, Machri, Bashuma, Dabka, Bhuma, Khalatpur, Khirva, Modipuram, Meerut-city, Pepla, Ramraj,
Villages in Muzaffarnagar district
Badhai Kala, Bhainsi, Bhokaredhi, Bupada, Dudhaheri, Fahimpur, Harethi, Husainpur Bopara, Jansath, Jat Manjheda, Jeevna, Jhanabad, Jhandri, Khanupur, Khatauli, Lachedra, Ladva, Lushana, Mehrampur Dhulendha - Sikh Ahlawat , Moghpur, Morna, Muzaffanagar District, Nanedha, Nangla kabir, Pinna, Purkaji - Sikh Ahlawat, Raipur Nangli, Rajpur Kla, Rathor, Rathur, Rekhada, Sahawali, Sahawali, salampur, Salarpur, Samarthi, Savtu, Sekhpura, Semarthi, Sikhedra, Simli, Sonta, Wajidpur Kavali,
Villages in Shamli district
Villages in Saharanpur district
Ganjheri (गंझेड़ी),
Villages in Bijnor district
[[ABhainsi, Bharala, Buwara Kalan, Daurala, Jeevna, Ladwa Muzaffarnagar, Mehrampur Dhulenda, Moghpur, Mujhera, Mumma, Rahkada, Raipur Nagli, Rathur, Sahawali,ba Bakarpur]], Akhlaspur Jal Pura, Kiratpur, Mukarpur Satti, Pauti,
Villages in Bulandsahar district
Salabad Dhamaira (सलाबाद धमैडा)
Villages in Bareilly district
Villages in Hapur district
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Ratlam district
Villages in Raisen district
Villages in Bhopal district
Villages in Dewas district
Distribution in Pakistan
The Ahlawat were part of a group of Muslim Jat clans, known as the Mulla, who were found in Haryana. Like other Jat and Rajput clans of Haryana, they emigrated to Pakistan after partition. They are now found mainly in Okara district.
Notable persons of this gotra
- Captain Dalip Singh Ahlawat - Jat Historian
- Col. Zorawar Singh Ahlawat Kharkhara - War Veteren 1965, 1971
- Preeti Z Choudhry (Ahlawat) - India Today Executive Editor (daugter of Col. Zorawar Singh Ahlawat)
- Narender Pal Singh Ahlawat (Captain) (06 July, 1939 - 15 August, 1964) was an officer of the Indian Army who was the first martyr of the 5 Kumaon Regiment. He sacrificed his life on the Indo-China border on 15 August, 1964. He played a significant role in the re-raising of the 5th Battalion of the Kumaon Regiment from 1962-64. He was from village Dighal, Jhajjar, Haryana.
- Narender Singh Ahlawat (Captain) (28.11.1974) was the recipient of Sena Medal and Shaurya Chakra (posthumous) gallantry awards. He belonged to village Deeghal in district Jhajjar, Haryana. On 28 November 1974, he laid down his life while fighting with insurgents in Nagaland. Unit: 15 Grenadiers Regiment.
- Pandit Jagdev Singh Siddhanti - Arya Samaj Leader, Social reformer, Freedom Fighter
- Deep Ahlawat - Arjun award winner 2004
- Captain Devinder Singh Ahlawat - Maha Vir Chakra (MVC),
- Pooja Ahlawat
- Capt NS Ahlawat - Sena Medal, Shaurya Chakra
- Kunwar Raghunandan Singh (1915- 1985) - He was a notable Jat zamindar of Daurala village, Distt. Meerut.
- Col. Ajay Ahlawat - famous Polo player
- Mrs Satwanti Ahlawat - IAS Haryana
- Attar Singh Ahlawat - IPS Haryana
- Paramjit Singh Ahlawat - IPS Haryana
- Jaideep Ahlawat - Film Actor
- Preet Singh Ahlawat - HCS Retd., Jind, Haryana
- Rajbir Singh Ahlawat - IAS Haryana
- Amar Singh Ahlawat - IFS, Madhya Pradesh, 1980
- Nirankar Singh Ahlawat - 5-6-1958, IFS , Madhya Pradesh, 1985
- Arun Kumar Ahlawat - BE from Delhi College Of Engineering (Represented DCE at International Robotics Competition held at Michigan United States)
- Brig.Ran Singh -Son of Subedar Major Kehri Singh of Dighal village. Former Speaker Haryana.
- Bhim Singh Ahlawat -IAS. Son of Capt. Dalpat Singh of Dighal village.
- Dalpat Singh Ahlawat- Hon. Capt. fought in First World War, was Chairman Rohtak District Board .
- Subedar Major Kehri Singh - Subedar Major Kehri Singh Ahlawat of 1 Jat from Dighal village served in World War II in France and Palestine.
- Padam Ahlawat - Former Editor Haryana Gazetteer's Revenue Department Govt.of Haryana Chandigarh.He wrote articles book reviews and middles for The Tribune Chandigarh.
- Jetinder Singh Ahlawat- Sr. Manager, developed Automatic Horse Shoe nails Machine In India
- Santosh Ahlawat (Smt.) - elected in Rajathan Assembly as BJP MLA-2013 from Surajgarh.
- Devendar Ahlawat: Indian Trade Service-2011 batch, Addl DGFT, New Delhi, M: 9034636645
- Jitendra Ahlawat: Indian Forest Service, Haryana Cadre, 2010 Batch, D.C.F. Karnal, M: 9468080015
- Sachin Ahlawat: IRS customs and excise 2016, From Rohtak Haryana, M: 873357373
- Vikas Ahlawat : DANICS, currently SDM Saket, South Delhi District, M: 9910071818
- Prof.K.P.Singh Ahalawat, V.C.Ruhelkhand University. From Kandera (कंडेरा) village in Distt. Bagpat (U.P.).
- Abhinav Ahlawat-Judge, Delhi Judicial Service.
- Surendra Singh Ahlawat from village Saidpur in Bulandshahr district of Uttar Pradesh was a martyr of Kargil War. He died on 12 June 1999. He was in Unit- 2 Rajputana Rifles,who were goven the task of capturing Tololing hill.
- Vijay Singh Ahlawat (Major) (01.11.1978 - 15.09.2017) became martyr in an accident on 15-09-2017 at Kokarajhar in Assam. Unit: Rajput Regiment. He was from Dehradun in Uttarakhand.
- Ummed Singh Ahlawat (Naik) was from village Dhigal in Beri tahsil in Jhajjar district of Haryana. Unit: 4 Jat Regiment. He became martyr in 1998.
- Risal Singh Ahlawat became martyr of casualty on 13.03.1986 at Siachin Glacier. He was from Barhana which is an Ahlawat gotra village in Jhajjar district, a few kilometres away from Sampala town at Delhi-Rohtak Road.
- Unit - 11 Jat Regiment
- Balga Nand Ahlawat (Sepoy ) became martyr of casualty on 13.03.1986 at Siachin Glacier. He was from Dighal village in Jhajjar district of Haryana.
- Unit - 11 Jat Regiment
Gallery of Ahlawat people
Further reading
- Bhim Singh Dahiya: Jats the Ancient Rulers
- Cap. Dalip Singh Ahlawat: Jat Viron ka Itihas (Hindi)
- Jat Samaj: Agra, February 1992
Reference
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. अ-20
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.27,sn-42.
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.29,sn-133.
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.27,sn-42.
- ↑ B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Jat Clan in India,p.236
- ↑ Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p.282
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV, pp.341-342
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.201-211
- ↑ Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Jat Clan in India,p. 244
- ↑ Ram Sarup Joon: History of the Jats/Chapter V, p.69-70, S.No.2
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu]],p.13
- ↑ User:Budchauhan
- ↑ User:TewatiaJatt3120
- ↑ User:Sk56
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