Dhatarwal
Dhatarwal
(Dhatterwal, Dhartawal, Dhetarwal, Dhetrawal)
Location : Haryana, Madhya Pradesh, Panjab, Rajasthan, Uttar Pradesh
Country : India
Dhetrawal (धेत्रवाल)[1] Dhatrawal (धत्रवाल) Dhatarwal (धतरवाल) Dhatterwal (धत्तरवाल) Dhetarwal (धेतरवाल) Dhatarwal (धातरवाल) Dheterwal (धेतरवाल) is gotra of Jats found in Rajasthan, Haryana and Madhya Pradesh. It seems to be variant of Dharatwal.
Origin
- They may have originated from Dhartarashtra (धार्तराट्रा) of Mahabharata (I.177.4), whose descendants were known to Panini as Dharteya (धार्तेय).
- They are descendant of Nagavanshi King named Dhritarashtra (धृतराष्ट्र) of the Mahabharata period.[2]
Jat Gotras Namesake
- Dhatarwal = Dyrta (Anabasis by Arrian, p. 263.)
History
Dharteya (धार्तेय) was an ancient republic of Ayudhjivi Sangha known to Panini.
V. S. Agrawala[3] mentions Ayudhjivi Sanghas in the Ganapatha under Yaudheyadi group, repeated twice in the Panini's Ashtadhyayi (IV.1.178) and (V.3.117) which includes - Dhārteya – unidentified, probably the same as the Dārteyas. The Greek writers mention Dyrta as a town of Assakenoi or the Āśvakāyanas of Massaga, and this may have been the capital of the Darteyas.
H. W. Bellew[4] writes that After the capture of Aornos, Alexander, descending from the Rock, marched into the territories of the Assakenoi (perhaps the Aswaka or Assaka, the tribe perhaps of the Assagetes, which name may stand for Assa Jat of the Assa tribe of the Jat nation or race; the Assakenoi may be now represented by the Yaskun as before stated), in pursuit of the Barbarians who had fled into the mountains there; and when he arrived at the city of Dyrta (capital perhaps of the Darada), there, he found both that and the country around entirely destitute of inhabitants. (Alexander appears to have crossed the Barandu river into the Puran and Chakesar valleys, now inhabited by the Chagharzi Afghans; there is a castellated village in Chakesar called Daud perhaps the Musalman disguise of a native Dardu, possibly so named from inhabitants of the Dardu tribe.)
Khiyana village in Lunkaransar tahsil of Bikaner is the place of origin of Dhatarwal Jats in Rajasthan. Here a festival is organized every year in memory of their ancestral person Nathu Dada.
Dhatarwal Gotra History
Nathu Dhatarwal, chieftain of village Dhatri in present Sujangarh tahsil of Churu, was born at Dhatri in VS 1380 (=1323 AD) in the family of Ch. Malu Ram Dhatarwal and Smt Miron (Rajal). Nathu Dhatarwal founded village Rajasar in memory of his mother Rajal.
Nathu Dhatarwal married with Rupa Godara daughter of Narsi Godara at Baderan (Bikaner) in VS 1406 (= 1349 AD) on Akshaya Tratiya.
Dhatarwals had a war with Sinwars at Dhatri when they lost Malu Ram Dhatarwal father of Nathu Dhatarwal. After the war Nathu Dhatarwal along with his uncle Kalu Dhatarwal and maternal brother Bhinya Ram Roj left Dhatri. They settled at Baderan in Lunkaransar area where they constructed ponds and wells.
Nathu Dhatarwal died fighting with invaders from Sindh on Asoj badi 9 VS 1444 (=1387 AD).
Dhatarwals founded number of villages after Nathu Dhatarwal and his descendants. 12 villages founded by Dhatarwals are:
1. Kheenyera, 2. Soolera, 3. Bheekhnera, 4. Kumbhana, 5. Kolana, 6. Ajeetmana, 7. Ladera, 8. Bhanabasti, 9. Meghana, 10. Manera, 11. Thoiya, 12. Nathor (Nathuwas). Nathuwas was founded in memory of Nathu Dhatarwal.
Nathu Dhatarwal's eldest son was Kumbha after whom founded village Kumbhana.
Nathu Dhatarwal's second son was Khinya after whom founded village Kheenyera.
Nathu Dhatarwal's third son was Lado after whom founded village Ladera.
Nathu Dhatarwal's fourth son was Megha after whom founded village Meghana .
Nathu Dhatarwal's daughter was Thoili after whom founded village Thoiya. Thoili was married to Beniwals
Nathu Dhatarwal's younger brother was Asu, who had three sons. Asu's eldest son was Mena after whom founded village Manera.
Asu's second son was Bhikha after whom founded village Bheekhnera.
Mula son of Bhikha founded Mulera.
Nathu Dhatarwal's tau was Bhana after whom founded village Bhanabasti.
Bhana's younger brother Chuda founded Chudana.
Bhana's second younger brother Ajeeta founded Ajeetmana.
Malu was father of Nathu Dhatarwal whose cousin brother was Kalu. Kalu's son was Kola who founded Kolana.
नाथूदादा की देवली खीयाणा
बीकानेर जिले में तहसील लूणकरणसर के गाँव खीयाणा के पास महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में नाथूदादा की देवली है, जिस पर भव्य मन्दिर का निर्माण धत्तरवाल समुदाय द्वारा करवाया गया। आसोज महीने की नवम् को प्रतिवर्ष लगने वाले इस भव्य मेले में धत्तरवाल समुदाय के साथ-साथ नाथूदादा में आस्था रखने वाले अनेक भक्तजन एकत्रित होकर भजन-जागरण का आयोन करते हैं। गत दिनों आयोजित इस मेले में नवनिर्मित मन्दिर भवन का लोकार्पण हेमाराम चौधरी द्वारा किया गया। समारोह में विधायक लूणकरणसर वीरेन्द्र बेनीवाल, चौधरी गंगाजल मील, बीकानेर डेयरी चैयरमेन राजाराम झोरड, चौधरी भूराराम जाखड आदि उपस्थित थे। मन्दिर कमेटी के सदस्यों ने सभी का माल्यार्पण कर स्वागत किया तथा आभार प्रकट किया तथा जागरण मन्डली द्वारा रातभर नाथूदादा की महिमा रचित गाथाओं को गाकर सभी को भक्तिमय रस में डूबो दिया। समारोह की अध्यक्षता डूंगर राम धत्तरवाल ने की। मुख्यअतिथी के रूप में बोलते हुए हेमाराम चौधरी ने नाथूदादा के चरित्र व जीवनी पर प्रकाश डाला। विधायक बेनीवाल ने कहा कि आने वाले समय में नाथू दादा के इस मेले में सिर्फ धत्तरवाल ही नहीं अन्य समुदाय के लोग भी आऐंगे। चौधरी गंगाजल मील ने अपने उद्बोधन में हेमाराम चौधरी व वीरेन्द्र बेनीवाल के प्रयासों व राज्य सरकार के समक्ष अपने-अपने क्षेत्र की समस्याओं को रखने व तर्क को अपने आप में उपलब्धी बताते हुए उनकी प्रगति की कामना नाथूदादा के द्वार से की। चौधरी राजाराम झोरड ने अपने ओजस्वी अन्दाज में सभी श्रद्धालुओं से शिक्षा के क्षेत्र में विकास पर जोर दिया। मन्दिर कमेटी की ओर से को स्मृति चिन्ह व सांफा पहना कर अभिनन्दन किया गया। इस अवसर पर देवदास रांकावत द्वारा राजस्थानी भाषा में लिखित नाथूदादा की जीवनी “मुळकती मौत कळपती काया” का विमोचन विधायक बेनीवाल द्वारा किया गया। मन्दिर कमेटी की ओर से कृष्ण चन्द्र धत्तरवाल (गोलूवाला) व मुखराम धत्तरवाल (भीखनेरा) ने सभी का आभार प्रकट किया।
हरियाणा से धत्तरवाल खाप के अध्यक्ष श्री अंकित सिंह धत्तरवाल ने श्री नाथू दादा धत्तरवाल मेले व जागरण पर भारतीय आर्मी (सेना) को पानी व कानून व्यवस्था करके अपना फर्ज निभाते देख कर भारतीय सेना का तहदिल से शुक्रिया अदा किया। सेना हर मंगलवार को श्री नाथू दादा मंदिर की सफाई व पूजा भी करते हैं। अध्यक्ष जी ने श्री नाथू दादा धत्तरवाल के धाम पर पहुंचकर समाज के कल्याण हेतु व सुख शांति के लिए हवन करवाया। इस अवसर पर मेले व जागरण का आनंद भी लिया, और एक विशेष बात देखने में आई कि भारतीय सेना भी नाथू दादा पर पानी व कानून व्यवस्था के लिए सहयोग करती है।
नाथू दादा धत्तरवाल की जय हो। अपना आशीर्वाद सदैव हमारे ऊपर बनाए रखना दादाजी।[5]
खीचड़ों के इतिहास में
खीचड़ों का इतिहास एवं वंशावली की जानकारी प्रबोध खीचड़, खीचड़ों की ढाणी, बछरारा, रतनगढ़, चुरू, राजस्थान द्वारा ई-मेल से उपलब्ध कराई है। (Mob: 9414079295, Email: prabodhkumar9594@gmail.com)
खीचड़ों का गोत्र-चारा:
- नख - जोईया
- वंश - सूर्यवंशी क्षत्रीय
- गुरु - वशिष्ठ (रामचन्द्र जी के गुरु)
- शाखा - माधनिक
- निकास - कोट मलोट (मुक्तसर पंजाब)
- राजा - श्योसिंह अथवा शिवसिंह
- राजधानी - कोट मलोट (मलौट पंजाब)
- कुलदेवी - कोटवासन माता (माता का धाम हींगलाज क्वेटा पाकिस्तान में)
कोट-मलौट के राजा: विक्रम संवत 1015 (959 ई.) में क्षत्रिय जाति के राजा शिवसिंह राज करते थे। इनकी राजधानी कोट-मलौट थी जो अब मुक्तसर पंजाब में है। सन् 959 ई. में यवनों ने इस राजधानी पर आक्रमण किया। यवनों की सेना बहुत विशाल थी परिणाम स्वरूप शिवसिंह को कोट-मलोट (मलौट पंजाब) छोडना पड़ा। राजा शिवसिंह अपने 12 पुत्रों के साथ आकर सिद्धमुख (चुरू) में रहने लगे। राजा शिवसिंह के सबसे बड़े पुत्र खेमराज थे। बड़वा के अनुसार इनके वंशजों से खीचड़ गोत्र बना। खेमराज के वंशजों ने सर्वप्रथम कंवरपुरा गाँव बसाया। (तहसील: भादरा, हनुमानगढ़)। राजा शिवसिंह के पुत्रों से निम्न 12 उपगोत्र निकले -
- 1. खेमराज की सन्तानें खीचड़ कहलाई जिन्होने कंवरपुरा गाँव बसाया (तहसील: भादरा, हनुमानगढ़)
- 2. बरासी की सन्तानें बाबल कहलाई जिन्होने बरासरी (जमाल) गाँव बसाया
- 3. मानाजी की सन्तानें मांझु, सिहोल और लूंका कहलाई
- 4. करमाजी की सन्तानें करीर कहलाई
- 5. करनाजी की सन्तानें कुलडिया कहलाई
- 6. जगगूजी की सन्तानें झग्गल कहलाई
- 7. दुर्जनजी की सन्तानें दुराजना कहलाई
- 8. भींवाजी की सन्तानें भंवरिया कहलाई
- 9. नारायणजी की सन्तानें निराधना कहलाई
- 10. मालाजी की सन्तानें मेचू कहलाई
शिवसिंह के 12 पुत्रों में से 2 की अकाल मृत्यु हो गई थी। शेष 10 में से उपरोक्त गोत्र बने। मानाजी की तीन शादियाँ हुई थी जिनकी सन्तानें मांझु, सिहोल और लूंका कहलाई। इस प्रकार 12 भाईयों से उपरोक्त 12 गोत्र बने।
इस प्रकार उपरोक्त 12 गोत्र एक ही नख जोहिया, एक ही वंश सूर्यवंशी, एक ही गुरु वशिष्ठ, कुलदेवी कोटवासन माता जो हिंगलाज (क्वेटा पाकिस्तान में है) व भैरव का नाम भीमलोचन है। यहाँ सती का ब्रह्मरंध्र गिरा था।
दक्षिण की और प्रस्थान - कोट मलौट छूटने के बाद सब बारह भाई सिधमुख आए। खेमराज जी की संतान खीचड़ कहलाई। खेमराज का बड़ा पुत्र कंवरसिंह था जिसके नाम से कंवरपुरा (भादरा) बसाया जो आज भी है। कंवरसिंह के दश-बारह पीढ़ियों के बाद इनको कंवरपुरा छोडना पड़ा। वहाँ 12 वर्ष तक अकाल पड़ा। ये दक्षिण की और चले गए।
ये लोग झुंझुनु नवाव की रियासत के एक गाँव में पहुंचे। इनके साथ सभी पशु, सामान और गाड़ियाँ थी। यहाँ मुलेसिंह बुगालिया जाट की 12 गांवों में चौधर थी। गाँव के पानी के जोहड़ के पास ये रुक गए। इधर मुलेसिंह बुगालिया का भी एक ग्वाला भेड़ों को चराता हुया आया और इस जोहड़ पर पानी पिलाने लगा। यहाँ रुके हुये बाहरी लोगों को देखकर उसने भला बुरा कहा। खीचड़ों के दल में सींघल और बीजल नाम के दो व्यक्ति बहुत बहादुर और दबंग थे। उन्होने मुले सिंह बुगालिया के ग्वाले के रेवड़ से उठाकर दो मेंढ़े ले लिए और उनका मांस पकाने लगे। मुलेसिंह बुगालिया के ग्वाले ने इसकी शिकायत अपने मालिक मुलेसिंह को की। मुलेसिंह बुगालिया नवाब को कर देता था। उसने नवाब के पास जाकर बढ़ा-चढ़ा कर शिकायत की कि ये लोग पूरे रेवड़ को काट कर खा गए हैं। यह भी शिकायत की कि इनके पास असला और हथियार भी हैं। ये लोग उसकी जागीर पर कब्जा करना चाहते हैं। नवाब ने एक सेना मुले सिंह के साथ भेजी जो जोहड़ की और रवाना हुई। सींघल और बीजल के पास कोई असला और हथियार नहीं थे केवल कृषि उपकरण आदि थे। नवाब की सेना आते देखकर उन्होने अपनी कुलदेवी कोटवासन माता को याद किया। कहते हैं कोटवासन माता प्रकट हुई और कहा कि मैं आप लोगों की रक्षा करूंगी परंतु आपको मेरी निम्न चार बातें माननी होंगी -
- खीचड़ लोग कभी मांस नहीं खाएँगे।
- पराई औरत को अपनी बहिन बेटी समझेंगे।
- किसी की झूठी गवाही नहीं देंगे।
- करार से बेकरार नहीं होंगे।
कोटवासन माता ने आश्वासन दिया कि खीचड़ लोग इन बातों को मानते रहेंगे तो मैं सदा उनकी रक्षा करती रहूँगी। फौज जो चढ़ आई है उससे मैं निबट लूँगी। तुम्हारे खाने के जो बर्तन हैं वे उनको दिखा देना, उसमें चावल-मूंग की खिचड़ी होगी। यह कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गई।
नवाब की फौज थोड़ी दूर पर थी तब नवाब ने देखा कि यहाँ तो कोई 25-30 लोग रुके हैं। उसने मुले सिंह से पूछा कि वह बड़ा काफिला कहाँ जो तुम बता रहे थे। नवाब ने फौज को दूर ही रोक कर कुछ ही लोगों को साथ लेकर पड़ाव की तरफ गया और यहाँ रुके लोगों से पूछा तुम लोग कौन हो और कहाँ से आए हो?
दोनों परिवार के मुखिया सींघल और बीजल नवाब के समक्ष आए और बताया कि हम खीचड़ जाट हैं और अकाल के कारण दक्षिण की और जा रहे हैं । यहाँ पानी देख कर पड़ाव डाल दिया था। हमने कोई रेवड़ नहीं काटा है, जैसा आरोप लगाया जा रहा है। आपका रेवड़ भी पास के जंगल में चर रहा होगा। नवाब ने इन तथ्यों की पुष्टि की। देखा कि सभी बर्तनों में खिचड़ी पक रही है और पास के जंगल में रेवड़ भी चर रहा है। नवाब ने मुले सिंह से कहा कि ये भले आदमी लगते हैं । तुमने इनकी झूठी शिकायत की है। इसलिए तुम्हारे 12 गांवों में से एक गाँव इनको दे दो।
बजावा गाँव में बसना - मुले सिंह नवाब के सामने झूटा साबित हो चुका था। उसने सोचा कि बजावा गाँव में वर्षा नहीं होती है और अकाल पड़ता है। ये लोग अपने आप ही भविष्य में यह गाँव छोड़ कर चले जाएंगे। मेरी चौधर तब यथावत 12 गांवों में बनी रहेगी। इस प्रकार सिंघल व बीजल के परिवारों को बजावा गाँव बसने के लिए मिल गया। नवाब ने बजावा गाँव का पट्टा इनके नाम कर दिया। बरसात का मौसम आया परंतु बजावा में वर्षा नहीं हुई। कहते हैं खीचड़ जाटों ने कुलदेवी कोटवासन माता को याद किया। कुलदेवी के आशीर्वाद से बजावा में अच्छी वर्षा हुई। कहते हैं कि कुलदेवी ने यह भी वरदान दिया कि बजावा में कभी अकाल नहीं पड़ेगा। ग्रामीण लोग बताते हैं कि यह परंपरा अभी भी कायम है, बजावा में कभी अकाल नहीं पड़ता।
मुलेसिंह बुगालिया से विवाद: सिंघल व बीजल के परिवार बजावा में काफी स्मृद्ध हो गए थे। दोनों भाई घोड़ों पर चढ़कर दूसरे गांवों में भी जाते रहते थे। रास्ते में मुले सिंह बुगालिया का गाँव भी पड़ता था। मुलेसिंह की बेटी देऊ की सगाई धेतरवाल जाटों में तय हुई थी। वह लड़की गाँव की औरतों के साथ कुएं पर पानी भरने जाती थी। इधर से कई गांवों के लोग गुजरते थे। एक दिन उसी रास्ते से दोनों भाई सींघल और बीजल घोड़ों पर गुजर रहे थे तब देऊ ने ताना मारा - "घोड़े वाले दोनों बदमास और लुच्चे हैं। रोज इस रास्ते मुझे उड़ाने के लिए फिरते हैं। आज ये फिर आ गए हैं।" ताना सुनकर दोनों भाई हक्के बक्के रह गए। दोनों भाईयों ने पनिहारिनों से पूछा कि यह ऐसा क्यों कह रही है। पनिहारिनों बताया कि यह ऐसा रोज ही कहती है कि इन्होने पहले मेरे पिता से बजावा गाँव छीना और अब मेरे को छीनना चाहते हैं। दोनों भाईयों ने कहा कि पहले तो ऐसा विचार नहीं था परंतु अब इस पर विचार करना पड़ेगा। दोनों भाईयों ने देऊ का हाथ पकड़ा और घोड़े पर बैठा कर ले गए। देऊ के पिता इस पर आग-बबूला हो गए। उसने बदला लेने के लिए देऊ के ससुराल वाले धेतरवाल जाटों की मदद लेने की सोची। धेतरवाल उस समय 18 गांवों के चौधरी थे। धेतरवाल जाटों को साथ लेकर मुले सिंह बुगालिया झुंझुणु नवाब से मिले। लड़की को वापस लाने के लिए नवाब की सहायता मांगी। नवाब को मुले सिंह की पहले की झूठी शिकायत याद थी। उसने सींघल और बीजल को बुलावा भिजवाया। अब दोनों भाई और परिवार के लोग सोच में पड़ गए। सभी ने सलाह मशवरा किया और इस नतीजे पर पहुंचे की बुगालिया लड़की वापस नहीं की जाएगी चाहे इसके लिए कितनी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। अगले दिन दोनों भाई नवाब के समक्ष कचहरी में उपस्थित हुये और यथा स्थिति से नवाब को अवगत कराया। दोनों भाईयों ने बताया कि यह रोज हम पर झूठा आरोप लगाती थी तब हमने इसको घरवाली बनाने की सोचकर साथ ले आए। नवाब ने सौचा ये दोनों बहादुर हैं, कभी हमारे काम आ सकते हैं। नवाब के पूछने पर जवाब दिया कि वे अब इस लड़की को घरवाली बना चुके हैं किसी भी कीमत पर वापस नहीं करेंगे। नवाब ने एक लाख रुपये जुर्माना तय किया। दोनों भाईयों ने कुछ ही दिन में जुर्माना भर दिया
खीचड़ों की वंशावली: मुलेसिंह बुगालिया की बेटी देऊ बुगालिया सींघल की तीसरी पत्नी थी। इससे पहले सींघल की दो शादियाँ और हो चुकी थी। तीनों पत्नियों से परिवार की वृद्धि निम्नानुसार हुई:
सींघल की पहली पत्नी से मालाराम हुये जिसने मैणास गाँव बसाया। इनकी संताने मेंगरासी खीचड़ कहलाई।
सींघल की दूसरी पत्नी से महीधर हुये जिससे महला गोत्र बना। मईधर ने शीथल गाँव बसाया।
सींघल की तीसरी पत्नी देऊ बुगालिया से ढोला राम नामक पुत्र पैदा हुआ जिसने ढोलास नामक गाँव बसाया। इनकी संताने ढोलरासी खीचड़ कहलाई।
इस प्रकार महला व खीचड़ एक ही बाप से पैदा होने के कारण दोनों गोत्रों में आपस में भाईचारा है।
सींघल की संतानों ने तीन गाँव मैणास, शीथल और ढोलास गाँव बसाये। बजावा इनका पैतृक गाँव था।
खीचड़ गोत्र के आगे की पीढ़ियों में कुमास गाँव बसाया जो सीकर जिले में है तथा यहाँ पर 4-5 हजार की संख्या में खीचड़ परिवार निवास करते हैं।
हरयाणा के सिरसा जिले में बाहिया गाँव है जहां 400 घर खीचड़ जाटों के हैं।
धतरवाल गोत्र का इतिहास
- लोक देवता श्री नाथूदादा जी कुंवों खोदायो कलश रो, बांधी पुन री पाल। सो सराई मारिया सिद्ध नाथु धतरवाल ।।
राजस्थान की वीर भूमि का इतिहास अति प्राचीन है। अनेक वीर महापुरूषों, संत-शूरमाओं, शिक्षाविदों ने समय-समय पर यहां की पावन धरा पर जन्म लेकर अपने सद्कर्मों से यहां की माटी को गौरवान्वित किया। उन्ही में एक महान व्यक्तित्व प्रातः स्मरणीय श्री नाथूदादा जी थे। जिन्होंने अपने जीवन काल में अनेकों ऐसे कार्य करवाए जिसके कारण वे तत्कालीन जनमानस में अवतारी पुरूष के रूप में लोकप्रिय हो गए।
नाथूदादा का जन्म: ऐसे महान बलिदानी पुरूष, लोक जीवन के नायक व आस्था के देव, प्रकृक्ति प्रेमी नाथूदादा का जन्म उनके दादा मांगीराम जी (मंगलो जी) को मां हिंगलाज से मिले वरदान के कारण शेषनाग के अवतार के रूप में चूरु जिले के धातरी गांव में वि.सं. 1380 (=1323 ई.) के आसपास चौधरी मालूरामजी धतरवाल (मालोणजी) व माता मीरों (राजल) के घर हुआ। नाथूदादा जब छह माह के थे तब पालने में सो रहे थे और मां घर के काम में लग गई। जब मां को याद आया कि आज नाथू को दूध नहीं पिलाया तब मां पालने के पास आयी तो देखा कि एक बड़ा शेषनाग पालने में नाथुजी के साथ खेल रहा है। मां चिल्लाई तो परिवार वाले इकट्ठे हो गए तब मांगीराम जी को याद आया कि हिंगलाज के वरदान से शेषनाग के अवतार के रूप में पोते की प्राप्ति हुई है। सभी ने नाग को प्रणाम किया। इसके बाद शेषनाग चले गए। इस प्रकार नाथुदादा ने अपनी मां को पहला परचा दिखाया।
इनके चाचा कालुरामजी धैर्यवान, करूणामयी, दयालु व सेवाभावी थे। जिनके व्यक्तित्व का प्रभाव बालक नाथू पर बचपन में ही पड़ गया। अपने चाचा से मिले गुण-संस्कार के कारण वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि, कर्त्तव्यनिष्ठ, हिम्मतवान, प्रकृति प्रेमी, धर्मनिष्ठ, सत्यवादी, दृढ़ निश्चयी बन गए। वचनबद्धता तो उनमें कूट-कूटकर भरी हुई थी। वे मां जोगमाया के अनन्य भक्त थे।
नाथूदादा का सफ़ेद घोड़ा: परिवार के कार्यों व खेती-किसानी के बाद अतिरिक्त समय में दादा नाथूजी पशु-पक्षियों को दाना-पानी देने व पेड़ पौधों की देखभाल में व्यतीत करते थे। नाथूजी महाराज जब 5 वर्ष के थे तो एक दिन अपने दादा मांगीराम जी के साथ बैठे थे उसी समय उनके मन में घोड़े पर बैठने की इच्छा हुई और अपने दादाजी से कहने लगे कि दादाजी मुझे एक अच्छा सा घोड़ा दिलवाओ। तब दादाजी ने समझाया कि बेटा अभी तू छोटा है। मैं तुझे एक अच्छा ऊँट दिलवा दूंगा लेकिन नाथुजी ने हठ कर लिया कि "मुझे तो घोड़ा ही चाहिए"। दादाजी सोचने लगे कि घोड़ा कहां से लाएंगे। तब नाथुजी ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर दादा से कहा कि घोड़ा जोधपुर दरबार (उस समय मारवाड़ में मिल जाएगा। मांगीरामजी नाथुजी को साथ लेकर जोधपुर (मारवाड़) के लिए रवाना हो गए। उन्होने एक पोटली में चांदी के पांच सौ सिक्के साथ लिये। दरबार में उनका आदर सत्कार किया। मांगीराम जी ने महाराज के समक्ष अपने पोते की जिद रखी तो महाराज ने अपने दरबारी को आदेश देकर उन्हें घोड़ों के तबेले में ले जाने को कहा। नाथुजी को तबेले में भी घोड़ा पसंद नहीं आया। तब उन्होंने अपने दादाजी से कहा कि यहां एक सफेद घोड़ा भी है। महाराज ने बताया कि उस घोड़े को तो हमारे योग्य घुड़सवार भी काबू नहीं कर सकते। बालक नाथु ने कहा कि हम भी देखें आपके घोड़े को। वे जब घोड़े के पास पहुंचे तो घोड़े ने उनका सत्कार किया। देखते ही देखते नाथुजी ने घोड़े पर काठी व लगाम बांधली। सवार होते ही वे पवन वेग की तरह घोड़ा दौड़ाने लगे। उनकी घुड़सवारी से प्रसन्न होकर राजा ने उन्हें वह घोड़ा मुफ्त में देने की पेशकश की तब मांगीराम जी ने कहा कि भेंट-दान की चीजें ग्रहण करना हमारे धर्म में नहीं है। उन्होंने पांच सौ चांदी के सिक्के देकर वह घोड़ा घोडा खरीद लिया। । वे घोड़े पर सवार होकर धातरी पहुंच गए। कुछ समय बाद नाथुजी घोड़ा लेकर घूमने चले गए।
धतरवालों व सींवरों में युद्ध:
धातरी में धतरवाल व सींवर बराबर अनुपात में रहते थे। उस दिन धतरवालों व सींवरों के रेवड़ व गायों का आमना-सामना हुआ। रेवड़ के साथ आए कुत्ते आपस में लड़ने लगे तो ग्वाले भी लड़ पड़े। कुछ ही समय में गांव के धतरवालों व सींवरों में घनघोर युद्ध हुआ। युद्ध में मरने वालों में सींवर ज्यादा थे मगर धतरवालों को भी नाथुदादा के पिताजी मालूराम जी के रूप में अपना मजबूत स्तम्भ खोना पड़ा। नाथुजी महाराज घूमकर वापस आए तो घरवालों ने उन्हें उक्त घटना के बारे में नहीं बताया। नाथुजी ने मां दुर्गा की जोत करके दिव्य दृष्टि लगाई तो पूरी घटना सवृतांत दिखाई दी। वे अपने दादाजी के पास गए और क्रोधित होकर कहा कि ये सब क्या हो गया। वे ढाल तलवार लेकर कहने लगे कि मैं सींवरों का विनाश कर दूंगा। तब दादाजी ने समझाया कि जो हुआ हो गया। अब शांत हो जाओ।
नाथूदादा का परिवार सहित धातरी से प्रस्थान :
इधर मां दुर्गा ने भी आकाशवाणी की - "नाथु मेरे भक्त तुम शक्ति धारण करो और अब यह धातरी की भूमि आपके लिए उचित नहीं रही। अपना परिवार लेकर तुम उत्तर दिशा में प्रस्थान करो।" नाथुदादा दादा को स्वप्न में मां जोगमाया ने दर्शन देकर एक दृष्टांत दिखाया जिसमें दिखाया जिसमें एक अति दुर्गम क्षेत्र जहां ऊँचे-ऊँचे रेत के धारों के बीच वीरान मरुभूमि में जीव-जंतु एवं विरले मानुस पानी की कमी में काल-कवलित हो रहे हैं तथा वे प्राणी उन्हें बार-बार बुला रहे हैं - "आ हमें बचाले, आ हमें बचाले"।
मां के इस हुक्म को मानकर नाथुदादा परिवार सहित उत्तर दिशा में चल पड़ है। इनके साथ 7 जातियां भी रवाना हुई। जिसमें गौड़ ब्राह्मण (बबेरवाल) भुरटा खाती, लिलड़िया नाई, चमगा ढाढी, चमगा ढाढ़ी, जोगपाल मेघवाल, लाखा भील, मखतुला सांसी (कोटवाल) प्रमुख थे। चलते-चलते वे चूरू के तालछापर पहुंचे जहां एक शिकारी ने कृष्णामृग का शिकार कर दिया था। यह देख नाथूदादा ने शिकारी को बुरा-भला कहा। तब शिकारी ने ताना दे दिया कि मैनें तो इसे मार दिया। आप इतने ही तपस्वी हैं तो इसे जिंदा कर दीजिए। तब दादा ने मां का स्मरण करके मृग को जिंदा कर दिया। इस घटना के बाद शिकारी चरणों में गिर पड़ा तथा उसने हिंसा का त्याग कर दिया।
नाथूजी धतरवाल ने अपनी माँ राजल के नाम पर राजसर गांव बसाया।
यहां से दादा आगे उस दिशा की ओर बढ़े जहां आज आर्मी का महाजन फिल्ड फायरिंग रेंज व उसके आसपास का क्षेत्र हैं। इस यात्रा में उनके साथ चाचा कालुजी व मौसेरा भाई भींयाराम रोझ भी थे। सभी बीकानेर के लूणकरणसर (उस समय थोरिया बस्ती) पहुंचे।
लूणकरणसर में एक सेठ परिवार ने उनका आतिथ्य स्वीकार किया तथा रहने की व्यवस्था की। रात्रिभोजन के समय जब सेठ ने सभी को भोजन ग्रहण करने हेतु आमंत्रित किया तो नाथुदादा ने विनम्रपूर्वक सेठजी का आमंत्रण यह कहते हुए टाल दिया कि हम स्वयं अपने साथ लाए सामान से भोजन तैयार करके ग्रहण करेंगे। तब सेठ ने सोचा कि यह व्यक्ति कोई साधारण पुरुष नहीं बल्कि स्वाभिमानी महापुरुष है।
उसी रात कुछलुटेरों ने सेठ के यहां से धन लूट लिय लिया। समाचार सुनकर चाचा-भतीजे सेठ की पीढ़ियों की संचित कमाई को वापस लाने हेतु निकल पड़े। लुटेरों के साथ उनका झगड़ा हुआ तथा अंततः धन लाकर सेठ को सुपुर्द किया। इस कार्य हेतु सेठ ने उन्हें मुंह-मांगा ईनाम देने का वचन किया तो नाथुदादा व कालु जी ने कहा कि हमने धर्म की रक्षा की है यह हमारा कर्त्तव्य है। ये बातें सुनकर सेठ के मन में इन दोनों के प्रति सम्मान और बढ़ गया।
नाथूजी धतरवाल बड़ेरण (बीकानेर) में रूके :
लुणकरणसर से आगे चलकर नाथुजी वर्तमान बड़ेरण गांव (बीकानेर) में जाकर रूके। यहां आते ही उन्हें सबसे पहले जल की भारी कमी की समस्या का सामना करना पड़ा। तत्कालीन समय में तकनीकी व संसाधनों के अभाव में रेगिस्तान में पानी ढूंढना बड़ा कठिन काम था। । बडेरण गांव से 10-10 कोस दूर कुछ स्थानों से ऊँटों पर पानी लाया जाता था। दादा मांगीराम जी ने अपने परिवार की महिलाओं को गांव से पानी लाने भेजा लेकिन किसी ने उन्हें पानी नहीं भरने दिया। जब महिलाएं खाली मटके लेकर आई तो मांगीरामजी ने कहा अब क्या होगा ? गर्मी के कारण बच्चे, गायें, वैलिये सब पानी के लिए व्याकुल थे।
नाथू ने यह सुनकर मां दुर्गा का स्मर्ण किया तो दुर्गा ने आकाशवाणी की - "नाथू घबराओं मत! जहां तू बैठा है वहां से उत्तर दिशा में दस कदम पर एक कुएँ की नाल है, शिला है उसमें मीठा पानी है।" नाथूजी ने दस कदम चलकर अपने भाइयों से मिट्टी हटवाई। वहां खुदाई में मीठा पानी मिला। सभी ने खुशी प्रकट की, उसी गांव के गोदारा परिवार की बहू बेटी खेत में सूड़ करके वापस लौट रही थी तब उन्होने पास पानी से भरे तालाब को देखना चाहा। ननंद, भोजाई से पहले घर आ गई और भोजाई उन लोगों को देखने चली गई जिन्होंने वह कुआं खोदा था। जब वह घर लौटी तो घरवालों ने उसे घर से निकाल दिया। वह रोती-बिलखती नाथुजी के पड़ाव पर जा पहुंची। मांगीरामजी ने उसके सर पर हाथ रखकर धर्म की बेटी मानकर अपने पड़ाव पर बैठा दी। उसकी सास ने बडेरण के चौधरी नरसी जी से कहा कि हमारी बहु को तो पड़ाव वाले ले गए। वडेरण चौधरी नरसी गोदारा ने गांव वालों से कहा कि आप लोग जैसा सोच रहे हो वैसा नहीं है। वे तो कोई महान पुरुष ही हैं क्योंकि उन्होंने रातोंरात कुआँ खुदवा लिया है। हम जाकर उनसे मिलते हैं। जब नरसी गोदारा अपने लोगों के साथ पड़ाव पर पहुंचे तो मांगीराम जी ने उनका आदर सत्कार किया तथा सच्चाई बताई। जब नरसी ने नाथुजी को देखा तो उन्होंने मांगीराम जी से उनका परिचय पूछा। मांगीरामजी ने कहा कि यह मेरा पोता है। नरसी जी ने कहा कि मैं अपनी पुत्री का ब्याह आपके पोते नाथुजी से करना चाहता हूं। । मांगीराम जी ने कहा कि हमारे पास तो अपनी जमीन भी नहीं है। विवाह कैसे कर सकते हैं। नरसीजी ने कहा कि आपका घोड़ा सूर्योदय से सूर्यास्त तक चलकर नापले वह जमीन आपकी होगी। मांगीराम जी ने रिश्ता स्वीकार कर लिया।
नाथूदादा ने अनुरोध स्वीकार कर अपने चाचा के साथ क्षेत्र का भ्रमण किया तो मालूम पड़ा कि यह क्षेत्र तो वही है जो कुछ समय पहले उन्हें माँ ने सपने में दिखाया था। फिर क्या था, नाथू दादा को अपनी मंजिल मिल गई तथा वे इस रेगिस्तान को नखलिस्तान (हरा-भरा) बनाने में लग गए। वि. सं. 1406 (= 1349 ई.) को आखातीज के दिन नाथूदादा का विवाह नरसीजी गोदारा की बेटी रूपों के साथ सम्पन्न हुआ।
नाथुजी ने अपने काकाश्री के बताए अनुसार वर्षा जल इकट्ठा होने वाली जगहों (तालों) में जोहड़े (तालाब) एवं कुएँ बनवाने का काम शुरू किया तथा उसी क्षेत्र में इन कुओं, जोहड़ों के आसपास अपने परिवारों को बसाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे इस क्षेत्र में कुल 12 गांव बसा दिए गए। ये गांव थे -
1. खिंयाणा (खींयेरा), 2. सुलेरा, 3. भिखनेरा, 4. कुंभाणा, 5. कोलाणा, 6. अजीतवाणा, 7. लाडेरा, 8. भानाबस्ती, 9. मेघाणा, 10. मनेरा, 11. ठोईया, 12. नाथौर (नाथुवास)।
सबसे प्रमुख नाथुवास था जो नाथुजी के नाम पर बसाया गया। ये सभी गांव धतरवालों के थे।
उपर्युक्त गांवों में सुलेरा, भिखनेरा व मेघाणा वर्तमान में महाजन फायरिंग रेंज से बाहर है तथा शेष 9 गांव सन् 1981 से 1986 के मध्य खाली करवा दिए गए। इन गांवों के विस्थापित लोगों को इंदिरा गांधी नहर परियोजना की सिंचाई सुविधा वाले गांव संसारदेसर, करणीसर, कृष्णनगर, तख्तपुरा, सामरथा, वारानी तथा नाथुसर वास में बसाया गया। कुछ परिवार श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ व पंजाब, हरियाणा के नहरी क्षेत्रों में बस गए।
नाथूदादा का सिंध के लुटेरों से युद्ध: थूदादा के साथ उनका उनका एक मुस्लिम मित्र रसूला का परिवार भी रहता था। उस समय चारों तरफ सिंध के के सराई लुटेरों का आतंक था और जनमानस में लूट-मार का खौफ इस कदर था कि लोग रात में घरों में चिंगारी तक नहीं जलाते। इसी समय कानुकापीर और उसके साथी लुटेरे रसुला की गायों को चुराकर सिंध ले गए। रसुला पीछे-पीछे चला गया। मित्र पर आए संकट के समाचार सुनकर नाथुदादा ने तुरंत गायों की वार चढ़ने का प्रण लिया। नाथदादा नै घोड़ी तैयार करने हेतु ज्यों ही जीण कसी घोड़ी ने विकराल रूप धारण कर दिया तथा जीण कसने नहीं दी। नाथुदादा समझ चुके थे कि आने वाले संकट के संकेत घोड़ी दे रही है लेकिन उनके लिए तो धर्म रक्षा करना प्राथमिक कार्य था। किसी कवि ने सच ही कहा है- "शूर न देखे टीपणो, सुगन गिणे नशूर"। अपशगुन की परवाह किये बिना दादा नाथुजी ने गायों की रक्षा करने की ठानी। ऐसा न करना वे अपनी जाट कौम के ऊपर कलंक समान मानते थे। मन में दृढ़ संकल्प व माँ जोगमाया को याद कर दादा गायों के लिए निकल पड़े। सिन्ध जाकर लुटेरों के साथ घनघोर युद्ध किया। युद्ध से जमीन रक्त रंजित हो गई। युद्ध भूमि में माँ जोगमाया के अनन्य भक्त व बलिष्ठ नाधु के आगे सिन्ध के लुटेरे टिक नहीं पाए। कई मौत के घाट उतार दिये कुछ अपनी जान बचाने भाग खड़े हुए। लम्बे संघर्ष के बाद दादा ने गायों को मुक्त करवाकर रसुला को वापस भेज दिया तथा स्वयं बाकी बचे लुटेरों के खात्मे में लग गए। इस संघर्ष में नाथ दादा का शरीर जीर्ण-शीर्ण हो गया। वे घोड़ी लेकर वापस लौट रहे थे। तब घायल अवस्था में गांव से 2-3 किलोमीटर पहले वे घोड़ी से गिर गये। घोड़ी घर गई तब परिवार वाले लहुलुहान घोड़ी देखकर दंग रह गए। घोड़ी के पदचिह्नों पर उस स्थान पर पहुंचे जहां नाथूदादा घायल अवस्था में गिरे थे। नाथूजी की धर्मपत्नी ने उन्हें गोद में लेकर सचेत किया तो दादा ने कहा कि मुझे माँ भवानी की ज्योति के दर्शन करवाए जाएं ताकि वीरगति पा सकु । परिवार जनों ने अग्नि से ज्योत प्रज्ज्वलित की। ज्योत में दादा को माँ भवानी ने दर्शन दिए। वे ज्योति में समा गए। इस प्रकार धर्म रक्षक, सहिष्णु, सत्यनिष्ठ, सेवाभावी, जीव-दयालु, गौरक्षक वीर दादा नाथुजी अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक परोपकारी कार्य करते करते हुए आसोज बदी 9 वि.सं. 1444 (=1387 ई.) को देवलोक गमन हो गए।
श्री देव नाथुदादा के देवलोक गमन के बाद क्षेत्र के लोग अपने धन सम्पदा, पशुओं को बीमारी से रक्षार्थ दादा नाथु का स्मरण करने लगे। दादाजी उनकी कष्ट पीड़ा को दूर कर लोगों को खुशहाली देने लगे। घर-घर नाथुजी की पूजा होने लगी। उनके देहावसान स्थल खिंयाणा (बीकानेर) में भव्य मंदिर बनवाया गया। जहां आज राजस्थान, पंजाब, हरियाणा के किसान वर्ग श्रद्धापूर्वक दादा की स्तुति करके मन्नते मांगते हैं। नाथुदादा का परिवार "जय नाथुदादा की " बोलते हैं.
नाथुदादा के सबसे बड़े पुत्र का नाम 'कुम्भा जी' था। जिनके नाम पर कुम्भाणा बसा।
दूसरे बेटे खिंयाजी ने 'खिंयाणा' गांव बसाया।
तीसरे पुत्र 'लाडोजी' ने लाडेरा तथा
चौथे पुत्र मेघाजी ने मेघाणा बसाया।
पांचवी संतान के रूप में पुत्री ठोईली हुई जो बेनिवालों को ब्याही गई। जिनके नाम से ठोईया गांव का नाम रखा।
नाथुराम जी के छोटे भाई आसुराम जी थे। जिनके तीन संतान थी। सबसे बड़े बेटे का नाम मेणाराम था। जिन्होंने बड़े होकर मनेरा गांव बसाया।
दूसरे पुत्र भिखाराम ने भिखनेरा की स्थापना की तथा
भिखाराम के पुत्र मुलाराम ने मूलेरा गांव बसाया।
नाथुदादा के ताऊ जी भाणाराम थे है। जिनके नाम पर भानाबस्ती बसायी।
भाणाराम से छोटे 'चूडाराम' ने चूडाना गांव बसाया। उनसे छोटे अजीताराम ने अजीतराणा गांव बसाया।
नाथुजी के पिता मालूराम जी के चचेरे भाई कालूराम जी के पुत्र कोलाराम ने बड़े होकर कोलाणा गांव बसाया।
नाथूदादा के परचे
1. प्रथम परचा बचपन में मां को शेषनाग के रूप में दिया।
2. जब नाथुदादा धातरी से रवाना हुए तो बीच रास्ते में एक गांव आया। वहां एक सेठ ईमिचंद लाखोटिया के घर मातम था। रोने की आवाज सुनकर नाथुजी ने सेठ के घर में प्रवेश किया तथा रोने का कारण पूछा। सेठ ने अपने इकलौते पुत्र की मृत्यु नाग के डसने से होना बताया तब नाथुजी ने दुर्गा का स्मरण करके लड़के के शरीर पर हाथ फेरा तो लड़का अंगड़ाई लेता हुआ ऐसे खड़ा हुआ मानो अभी सो कर उठा हो। बाद में गांव का नाम नाथुदादा की माँ के नाम पर राजलदेसर कर दिया।
3. देवलोकगमन होने के बाद दादा ने प्रथम परचा दानाराम धतरवाल ([[Chunawad|चूनावड़) को दिया तथा कुष्ठ रोग से मुक्ति दिलाई। आज भी दादा को सच्चे मन से स्मरण करने वालों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
धतरवाल गोत्र की वंशावली
1. धरोजी धतरवाल - धरोजी का विवाह सुजोजी पुनियां के पुत्र गजोजी की पुत्री गंवरी पुनियां से हुआ, धरोजी ने धातरी गांव बसाया)
2. पदमो जी धतरवाल
3. सरूपो जी धतरवाल
4. सुजांण जी धतरवाल
5. अजवाण जी धतरवाल
6. बाहड़वो जी धतरवाल
7. घड़सी जी धतरवाल (वि.सं. 1295 (1238 ई.) में धातरी गांव में निवासरत)
8. हरपाल जी धतरवाल
9. देवो जी धतरवाल - वि.सं. 1300 (=1243 ई.) में धातरी गांव में निवासरत
10. धरमो जी धतरवाल - वि.सं.1382 (=1325 ई.) में धातरी गांव में निवासरत
11. मंगलो जी धतरवाल (मागीरामजी) - वि.सं. 1425 (=1368 ई.) में कड़ासर गांव में निवासरत. भाई राजु जी धतरवाल वि.सं. 1396 (1339 ई.) को धातरी गांव में झूंझार हुए, स्मारक धातरी गांव में.
12. मालुरामजी धतरवाल (मालोणजी) - वि.सं. 1451 (1394 ई.) में कड़ासर गांव में निवासरत, भाई - कालुजी
13. नाथु जी धतरवाल - भाई: मोटोजी, राणोजी)
14. भीखो जी धतरवाल - भाई: कुंभोजी, जेतोजी, खींयोजी, लाडूजी, केहरोजी, फूलोजी, वि.सं. 1481 (1425 ई.) में कड़ासर में निवासरत
15. मुलसी जी धतरवाल - वि.सं. 1541 (1484 ई.) में कुड़छी गांव में निवासरत
16. नगाराम जी धतरवाल - जीवनकाल वि.सं 1547-1635, खेतासर गांव में निवासरत
17. रतनो जी धतरवाल
18. कचरो जी धतरवाल - वि.सं. 1691 को खेतासर के सांई खेड़ा में निवासरत
19. नाथो जी धतरवाल
20. खींयो जी धतरवाल
21. नेतो जी धतरवाल - वि.सं. 1785 में खेतासर में नेतोजी के पुत्रों जीवणजी व आयोजी ने इनका जीवित पहिया भोज करवाया
22. जीवण जी धतरवाल - भाई: आयोजी, हीरोजी, मोटोजी. भाई आयोजी वि.सं. 1832 को बायतु में बसे
23. मेहराज जी धतरवाल
24. जगमाल जी धतरवाल - खटटु व खेतासर. भाई: दुदोजी (खेतासर), भारमलजी (खटटु), श्यामजी (खटटु व दिनगढ़)
25. मगाराम जी धतरवाल - भाई: जैयाजी का परिवार खेतासर में है
26. कलाराम जी धतरवाल - दादोसा कलजी पुजनीय है. भाई: जोधोजी (खटटु), मोडोजी , का परिवार पोकरासर (चौहटन) में है, बागोजी (खटटु), अजबोजी खटटु में है
27. भैराराम जी धतरवाल
28. खेताराम जी धतरवाल - भाई: मोटोजी
29. भोमाराम जी धतरवाल - भाई: देवोजी, भोलोजी
33. भीखाराम जी धतरवाल - भाई: गंगोजी, चिमोजी खटटु में निवासरत हैं!
स्रोत: प्रबोध खीचड़, खीचड़ों की ढाणी, बछरारा, रतनगढ़, चुरू (Mob: 9414079295, Email: prabodhkumar9594@gmail.com)
उत्तेसर के धतरवालों का इतिहास
झुंझार श्री जीवण दादा जी उत्तेसर (जोधपुर):
मरुस्थल के तपते धोरों में लोग आदिकाल से ही प्रकृति के साथ संघर्ष करते आ रहे हैं. विषम परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना यहां का जन-जन अपना शौक मानता है. ऐसे ही एक संघर्षी, वचनबद्ध, तेजमयी व्यक्तित्व के धनी थे दादा जीवन जी. इनका जन्म जोधपुर की लूणी तहसील के उत्तेसर गांव में धतरवाल कुल में पिता बागोजी के घर मां श्रीमती हरकू की कोख से हुआ. वह बाल्यावस्था में नागणेची माता की उपासना करते थे.
वर्तमान उत्तेसर के धतरवाल सर्वप्रथम कूकस में रहते थे. वहां से संवत 1402 में कुड़छी आ गए. संवत 1545 में कुड़छी से धनारी आ गये. धनारी से संवत 1545 में जीवोणा आए. यहां आगे चलकर विक्रम संवत 1585 में तेजाबाबा जी ने झींझणीयाला खेड़ा बसाया जो वर्तमान में उत्तेसर से तीन-चार किलोमीटर दक्षिण में स्थित था तथा कालांतर में जनशुन्य हो गया. यहां से आगे चलकर संवत 1620 में उत्तेसर आ गये.
एक भाई मालोजी जोगासर, सोमेसरा (बागोणी धतरवाल) बायतु चला गया जो आज बायतु में रहते हैं.
धतरवालों व सारणों के बीच संघर्ष: इसी दौरान धतरवालों व सारणों के बीच में संघर्ष हो गया. इस संघर्ष में हुई जनहानि के बाद जीवण दादा ने सारणों को उत्तेसर छोड़कर चले जाने का आदेश दे दिया. सारण दाखा धनवा चले गए. इस आपसी संघर्ष को कम करने के लिए सारणों की एक बहू ने जीवन बाबा को राखी बांध अपना भाई बना दिया. लेकिन यह लड़ाई यहीं खत्म नहीं हुई. सारणों ने जीवन दादा से बदला लेने हेतु मीणाओं को अनुबंधित किया. मीणा लोग उस समय लूटमार करते थे. लुटेरों ने इनकी गायों को लूटने का प्रयास किया. इस दरमियान मीनाओं व जीवन दादा में संघर्ष हुआ तथा मीणों को भागने को मजबूर कर दिया.
इस युद्ध में दादा ने गायें तो ले जाने नहीं दी लेकिन वह स्वयं घायल हो गए. घायल अवस्था में घर लौटते समय इनका धड़ तालाब की पाल के पास गिर गया तथा संवत 1635 भादवा बड़ी तेरस को वीरगति को प्राप्त हो गए. बाद में इस जगह जीव दादा की पूजा की जाने लगीन. वर्तमान में यहां भव्य मंदिर है जिसका जीर्णोद्धार 7 सितंबर 2018 (भादवा बदी तेरस संवत 2075) को किया गया. मंदिर वीर तेजाजी की मूर्ति के सामने तालाब की पाल पर स्थित है. हर वर्ष भादवा बदी तेरस को यहां मेला लगता है जिसमें आसपास के सैंकड़ों लोग भाग लेते हैं तथा ग्रामीण मिलकर कार्यक्रम संपन्न करते हैं.
बायतू परिवार का विवरण: बायतु में मालोजी उत्तेसर जोधपुर से यहां लगभग संवत 1825 में आए. मालो जी के सूरता जी एक पुत्र थे, जिनके तीन पुत्र जेठाजी, दानाजी, बागाजी थे. आर्थिक रूप से साधन संपन्न थे, बायतु में संवत 1974 भादवा सुदी नवमी को 1051/- रुपए में गोगाजी मंदिर पर इंडा चढ़ाया जो पश्चिमी राजस्थान बाड़मेर में हर समाज में प्रसिद्ध हो गए. जो लोगों को बैल जोड़ियों द्वारा खेती करवाते थे.
दोहा: धतरवालों में धुंन कहिजे, सुरताणी है बागो । देवल इंडो चाडियो, थाने न्यायत बुलावे आगे ॥
अत: बागोजी समाजसेवी दानदाता थे.
स्रोत: प्रबोध खीचड़, खीचड़ों की ढाणी, बछरारा, रतनगढ़, चुरू (Mob: 9414079295, Email: prabodhkumar9594@gmail.com)
In Mahabharata
Dhritarashtra (धृतराष्ट्र), the Nagavanshi King is mentioned in Mahabharata (I.31.13), (I.52.13), (I.59.41), (II.9.9), (V.101.15).
Adi Parva, Mahabharata/Mahabharata Book I Chapter 31 mentions Names of Chief Nagas. Dhritarashtra is listed in in verse (I.31.13). [6]
Adi Parva, Mahabharata/Mahabharata Book I Chapter 52 gives Names of all those Nagas that fell into the fire of the snake-sacrifice. Dhritarashtra is listed in in verse (I.52.13). [7]
Adi Parva, Mahabharata/Mahabharata Book I Chapter 59 gives origin of the celestials and other creatures. Dhritarashtra is listed in in verse (I.59.41). [8]
Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 9 mentions name of Nagavanshi King Dhritrashtra, along other Kings who attended Sabha of Varuna. Dhritarashtra is listed in in verse (II.9.9).[9]
Udyoga Parva/Mahabharata Book V Chapter 101 describes about Bhogavati city and innumerable Nagas who live there. Dhritarashtra is listed in in verse (V.101.15). [10]
Villages founded by Dhatarwal clan
- Dhatarwala (धतरवाला) - village in Chirawa tahsil in Jhunjhunu district in Rajasthan.
- Dhatarwalon Ka Bas (धतरवालों का बास) - village is in Chirawa tahsil in Jhunjhunu district of Rajasthan.
- Nayagaon Dhatarwal (नयागांव धातरवाल) - village in Malpura tahsil in Tonk district in Rajasthan.
- Dhatarwalon Ka Tala (धतरवालों का तला) - Village in Baytu tahsil of Barmer district in Rajasthan.
- Dhatarwalon Ki Dhani (धतरवालों की ढाणी) - village in Pachpadra Tahsil of Barmer district in Rajasthan.
- Bhawandesar (भावनदेसर) - village in Churu district of Rajasthan.
- Dhetarwalon Ka Bas (धेतरवालों का बास) - village in Churu district of Rajasthan.
- Nagoniyon Dhatarwalon Ki Dhani (नागोनियों धतरवालों की ढाणी) - Village in Baytoo tahsil of Barmer district in Rajasthan.
- Panani Dhatarwalon Ki Dhani - village in Gudha Malani Tahsil of Barmer district in Rajasthan.
Distribution in Rajasthan
They are found in Districts Hanumangarh, Sri Ganganagar, Jhunjhunu, Nagaur, Jodhpur, Barmer, Bikaner, Sikar,Tonk, Jaipur in Rajasthan.
Villages in Jodhpur district
Chandrakh, Chindri, Ghevara, Janadesar, Jodhpur, Kherapa, Khetasar, Khinchan, Kushlawa, Mathaniya, Phalaudi, Sardarpura, Shaitansinghnagar, Uttesar,
Villages in Nagaur district
Dotolai Gudha Bhagwandas, Koliya,
Villages in Barmer district
Aakli, Alamsar, Balotra, Bayatu Bhimji, Baytoo, Bhimarlai (भीमरलाई), Chaukriya Ki Dhani Chaukriya Ki Dhani, Chhitar Ka Par, Chiriya, Dhatarwalon Ka Tala, Dhatarwalon Ki Dhani, Dholanada (धोलानाडा) , Dhorimanna, Garal (15), Kalyanpur, Khattoo, Kitpal (कितपाल) , Kosariya, Kurchhi[11], Nagoniyon Dhatarwalon Ki Dhani, Pabubera[12], Pachpadra, Panani Dhatarwalon Ki Dhani, Panchla Siddha[13], Somesara, Tankeliyasr,
Villages in Hanumangarh district
Bhadra, Goluwala Sihagan, Matili, Ratanpura
Villages in Ganganagar district
Kupli, Rojri Ganganagar, Lalgadiya
Villages in Bikaner district
Baderan, Bheekhnera, Gusaina, Kheenyera, Meghana Bikaner, Purani Ginnani, Rajasar, Ranjitpura (Bajju), Raowala, Sansardesar, Satasar, Shekhsar, Soolera, Takhatpura,
Villages in Jaisalmer district
Villages in Jhunjhunu district
Adooka, Dhatarwala (Chirawa), Dhatarwalon Ka Bas, Dudhi (Pilani), Kolinda (Bisau), Rayla (Chirawa),
villages in Sikar district
The Lampua village in Sikar district was founded by Dhetarwal Jats about 350 years back. Later Bajiya Jats came from Lakhani and settled here.
Villages in Tonk district
Nimehada (8), Nayagaon Dhatarwal (3),
Villages in Jaipur district
Villages in Churu district
Bhawandesar, Churu, Dhetarwalon Ka Bas, Lalgarh, Sahwa, Sujangarh (2), Taranagar, Buchawas,
Villages in Sawai Madhopur district
Distribution in Haryana state
Village in Bhiwani district
Dhani Mahu, Fartia Bhima, Fartia Tal, Dhani Dholan (Loharu)
Villages in Hisar district
Villages in Rohtak district
Bhaini Maharajpur, Bhaini Chandrapal, Ajaib
Villages in Sirsa district
Khairekan, Khairampur (Adampur), Khai Shergarh, Rampura Bagrian[14]
Distribution in Madhya Pradesh state
Villages in Ratlam district
Villages in Ratlam district with population of this gotra are:
Dantodiya 1,
Villages in Sehore district
Notable persons
- Man Singh Dhatarwal (born:1881) (मानसिंह जी), from Bangothri Kalan, Jhunjhunu, was a Freedom fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan. [15]
- Ganesh Nath (Dhatarwal) & Hukma Nath (Dhatarwal) - गणेशनाथ जी महाराज, ताऊसर नागौर, एवं हुकमानाथ जी महाराज, सिरमंडी ओसियां - महन्त श्री गणेशनाथ जी महाराज का जन्म पिता श्री गोवर्धनराम जी पुत्र श्री कृष्णाराम जी धतरवाल व माता श्रीमती चंपा देवी पुत्री श्री मुल्तानाराम जी भामू की कोख से संवत 2009 कार्तिक माह में गांव खेतसर (ओसियां) जिला जोधपुर में हुआ. आपके बचपन का नाम गणेशाराम था. आपके पिताजी धार्मिक प्रवृत्ति के थे. घर में समय-समय पर सत्संग होती रहती थी. जिसके परिणाम स्वरुप आप पर बचपन से ही धर्म के प्रति आस्था का प्रभाव पड़ा. आप संत तुलसी बाबा व पिताश्री की सेवा भक्ति से खासे प्रभावित हुए. ताऊसर नागौर के मठाधीश महंत श्री चुन्नीनाथ जी हमेशा पिताजी के वहां आते रहते थे. बालक गणेश राम ने मन ही मन महंत श्री चुन्नीनाथ को अपना गुरु मान लिया. जब आप कक्षा दसवीं में अध्ययन कर रहे थे तब मालूम हुआ कि घरवाले आप श्री का विवाह करने जा रहे हैं. फिर क्या था बचपन से ही धर्म के प्रति जिज्ञासु गणेशाराम ने सांसारिक जीवन का त्याग कर अपने गुरु चुन्नीनाथ जी के सानिध्य में ताऊसर, नागौर आगये. यहाँ अपने गुरु से शिक्षा-दीक्षा ग्रहण करके भक्ति मार्ग को अपना लिया तथा आप गणेशनाथ जी कहलाए. आपके नाम में छुपे नाथ पदवी का इतिहास बहुत पुराना है. भगवान शिव की उपाधि नाथ थी. शिव के परम उपासकों में मत्सेंद्रनाथ व जालंधरनाथ का नाम अग्रिम पंक्ति में आता है. मत्सेंद्रनाथ के शिष्य गोरखनाथ जी हुए जिन्होंने कुल 12 पंथ चलाएं. उन्हीं में से एक भ्रतृहरी पंथ में गणेशनाथ जी दीक्षित हुए. विकमकोर में जीवित समाधि पर अपने 18 वर्ष कठोर तपस्या की तथा शास्त्रों का अध्ययन व सिद्धियां प्राप्त की. आपकी तपस्या से प्रभावित होकर छोटे भ्राता श्री हुकमाराम जी ने भी गृह त्याग करके साधु वेश धारण कर लिया तथा वे भी भक्ति में लीन हो गए. गुरु थ में दीक्षित होने के बाद हुकमाराम जी को हुकमानाथ जी कहा जाने लगा. हुकमानाथ जी का जन्म संवत 2023 में हुआ तथा वर्तमान में सरमंडी ओसियां में हरी सेवा में लगे हुए हैं. कालांतर में गुरु श्री चुन्नीनाथ जी के देवलोक गमन के बाद आप ताऊसर मठ के गादीपति (मठाधीश) पद पर आसीन हुए. ताऊसर के साथ-साथ महंत श्री गणेशनाथ जी सरमंडी मठ के गादीपति हैं.
- Jiwan Dhatarwal: झुंझार श्री जीवण दादा जी उत्तेसर (जोधपुर) - इनका जन्म जोधपुर की लूणी तहसील के उत्तेसर गांव में धतरवाल कुल में पिता बागोजी के घर मां श्रीमती हरकू की कोख से हुआ. उत्तेसर गांव में धतरवालों व सारणों के बीच संघर्ष हुआ. इस संघर्ष में हुई जनहानि के बाद जीवण दादा ने सारणों को उत्तेसर छोड़कर चले जाने का आदेश दे दिया. सारण दाखा धनवा चले गए. सारणों ने जीवन दादा से बदला लेने हेतु मीणाओं को अनुबंधित किया. मीणा लोग उस समय लूटमार करते थे. लुटेरों ने इनकी गायों को लूटने का प्रयास किया. इस दरमियान मीनाओं व जीवन दादा में संघर्ष हुआ तथा मीणों को भागने को मजबूर कर दिया.
- इस युद्ध में दादा ने गायें तो ले जाने नहीं दी लेकिन वह स्वयं घायल हो गए. घायल अवस्था में घर लौटते समय इनका धड़ तालाब की पाल के पास गिर गया तथा संवत 1635 भादवा बड़ी तेरस को वीरगति को प्राप्त हो गए. बाद में इस जगह जीव दादा की पूजा की जाने लगीन. वर्तमान में यहां भव्य मंदिर है जिसका जीर्णोद्धार 7 सितंबर 2018 (भादवा बदी तेरस संवत 2075) को किया गया. मंदिर वीर तेजाजी की मूर्ति के सामने तालाब की पाल पर स्थित है. हर वर्ष भादवा बदी तेरस को यहां मेला लगता है जिसमें आसपास के सैंकड़ों लोग भाग लेते हैं तथा ग्रामीण मिलकर कार्यक्रम संपन्न करते हैं.
- Ankit Singh Dhatterwal (President of Dhatterwal Khap) From - Bhaini Maharajpur Meham, Rohtak. Haryana
- Dr. Suresh Kumar Dhattarwal, is new President [elect] of the Haryana branch of Indian Medical Association and is currently serving as Prof. of Forensic Medicine at Pt. BDS University of Health Sciences, Rohtak.[16]
- Jagdish Puri (Dhatarwal) - Mathadhees of Chohtan Math, From village Alamsar (Barmer)
- Prashant Chaudhari (Dhatarwal) - From Sardarpura Jodhpur obtained M.Tech. Degree with Gold Medal from Malviy National Institute of Technology, Jaipur in 2009.[17]
- Hetram Dhetarwal - IIT
- Notable Dhatterwals from Bhiwani are: Jamindar Ramphal Dhatterwal, Surender Dhatterwal, Shivam Dhatterwal from --VPO-Fartia Bhima (Loharu)
- Dr. Raghuveer Dhatarwal - M.O. Medical & Health, Date of Birth : 1-January-1982.VPO - Gudha Bhagwandas, Teh.- Khinwsar, Distt. - Nagaur, Present Address : PHC, Nathusar, Bikaner, Mobile Number : 9610322885
- Harlal Singh (Dheterwal) - Assistant Professor College Education, Date of Birth : 1-January-1972, Village - Jaleu, Post. - Dewas, Teh. - Fatehpur, Distt. - Sikar 332301, Present Address : Shekhawati Engineering College, Dundlod, Nawalgarh, Jhunjhunu - 333702, Phone Number : 01571-281224, Mob: 9414444801, Email:hlsingh9@rediffmail.com
- Banka Ram Dhatarwal - Social reformer from village Chhitar Ka Par (Barmer), Rajasthan. He donated Rs. 110000 for construction of one room for Jat Dharmshala Haridwar.
- जसराज धतरवाल - पुत्र लालाराम जी धतरवाल, गांव धतरवालो की ढाणी (चारलाई कंल्ला) वाया कल्याणपुर, तहसील पचपदरा, जिला बाड़मेर पोस्ट संरवड़ी कोड़ नं: 344026, फोन नंबर 964957448, 900141073
- Chuna Ram Dhatarwal - From Khattoo village, Barmer, Scientist in ISRO.
- Pawan Dhatterwal-Born at lalgadiya village on 2 July 1992.National and University player of football [Represent Rajasthan and Maharaja Ganga singh University]. Represent Sri Ganganagar five times in state level tournament. Winner member of More than dozens of other tournament organised in bikaner division. Studied from Suratgarh [Ch. MRM senior secondary school] and Gharsana [Surya public senior secondary school]. Graduation from Government Dungar collage Bikaner]
- Radha Krishan Dhatarwal - TGT Mathematics- Haryana Education Department (1999). He is originally resident of village Soolera (Loonkaransar,Bikaner,Rajasthan)
- Dileep Dhatarwal - IAS (2019), MP Cadre. He is originally resident of village Soolera (Loonkaransar, Bikaner, Rajasthan)
- Surendra Singh Dhattarwal became martyr on 11.8.2003 during Operation Rakshak in a terrorist action in Naushehra sector, Rajauri district of Jammu and Kashmir. He was from Dhatarwalon Ka Bas village in Chirawa tahsil in Jhunjhunu district of Rajasthan. Unit: 9 Jat Regiment.
- Shobhit Dhatarwal became martyr. He was from Belarkha village in Narwana tehsil of Jind district in Haryana.
- Kala Ram Dhatarwal
Gallery of Dhatarwal
-
Harlal Singh (Dheterwal)
-
Jasraj Dhatarwal
References
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.46,s.n. 1339
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya etc,: Ādhunik Jat Itihas, Agra 1998 p.258
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.450
- ↑ An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan, H. W. Bellew, p.69
- ↑ http://www.jatduniya.com/news/oct%2007/oct%2007.htm
- ↑ अपराजितॊ जयॊतिकश च पन्नगः श्रीवहस तथा, कौरव्यॊ धृतराष्ट्रश च पुष्करः शल्यकस तथा (I.31.13)
- ↑ धृतराष्ट्र कुले जाताञ शृणु नागान यथातथम, कीर्त्यमानान मया बरह्मन वातवेगान विषॊल्बणान (I.52.13)
- ↑ भीमसेनॊग्र सेनौ च सुपर्णॊ वरुणस तथा, गॊपतिर धृतराष्ट्रश च सूर्यवर्चाश च सप्तमः (I.59.41)
- ↑ कम्बलाश्वतरौ नागौ धृतराष्ट्र बलाहकौ, मणिमान कुण्डलधरः कर्कॊटक धनंजयौ Mahabharata (II.9.9)
- ↑ दिलीपः शङ्खशीर्षश च जयॊतिष्कॊ ऽथापराजितः, कौरव्यॊ धृतराष्ट्रश च कुमारः कुशकस तथा (V.101.15)
- ↑ User:Premaramisharna
- ↑ https://www.jatland.com/forums/showthread.php/40442-गोत्र-जोड़ने बाबत
- ↑ User:Premaramisharna
- ↑ User:Saharan88
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.396-397
- ↑ The Tribune, Chandigarh, dated December 7, 2021
- ↑ Jat Samaj, March 2009, p.31
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