Jat Jan Sewak/Khandelawati
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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580
संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर
खण्डेलावाटी
[पृ.441]: जयपुर के पश्चिम उत्तर 40-50 मील के फासले पर रींगस तहसील है। इस तहसील का कुल इलाका और तोरावाटी, सीकरवाटी और मारवाड़ की सरहद से घिरा हुआ है खंडेलावाटी कहलाता है। खंडेला इस इलाके में एक बड़ा ठिकाना है जो दो हिस्सों (पानो) में बटा हुआ है। इसके अलावा कई छोटे छोटे और भोमिया तथा जागीरदार इस इलाके में फैले हुए हैं। यह तमाम ठिकानेदार कछवाहा राजपूत हैं। यह लोग इस प्रदेश पर तेरहवीं सदी में फैले थे। कछवाहा लोग आरंभ में ग्वालियर (निषद देश) और पीछे अहिच्छत्रपुर (बरेली) पीलीभीत के आसपास थे। बरेली से जब उन्हें भगा दिया गया तो उनका एक सरदार सोढा राय ग्यारहवीं सदी के आरंभ में दोसा के निकट आकर आबाद हुआ और उसने वहां के बड़गूजरों से मेल करके अपना डेरा जमाया। इसके बाद उसके उत्तराधिकारियों ने छल-कपट करके मीनों से आमेर को ले लिया। यही आमेर आगे चलकर कछवाहा नरेश जयसिंह जी के नाम पर जयपुर नाम से प्रसिद्ध हुआ।
आमेर के कछवाहा अधिपति का एक भाई मोकल जो विवाहित होकर कुछ सवारों के साथ जयपुर से 30 मील पश्चिम अमरा की ढाणी में आबाद हुआ । चौधरी अमरा (जाट) ने राव मोकल जी को अपनी बिरादरी के कई गांवों में चोरियां न होने देने का ठेका दिया। उन दिनों मीणा जाटों की मवेशियों
[पृ.442]: को खोल ले जाते थे। इस चौकीदारी के एवज में कछवाहा सरदार की ज्यों–ज्यों जो आमदनी बढ़ती गई त्यों-त्यों वह अपने सैनिकों की तादाद बढ़ाता गया और उसने एक दिन अमरा की ढाणी के आसपास के सैंकड़ों गवों का अपने को अधिपति घोषित कर दिया और जाटों को बजाए चौकीदार के वह राजा बन बैठे और आमरा की ढानी ने अमरसर का रूप धारण कर लिया। शेख बुरहान के आशीर्वाद से उस सरदार को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जो राव शेखा जी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मुगल बादशाह है और उनके प्रतिनिधि सूबेदारों की सेवा करके आगे संख्या में बढ़ने वाले यह कछवाहा सरदार बराबर बढ़ते रहे।
ज्यों-ज्यों जमीन का आधिपत्य बढ़ा त्यों त्यों जाटों की आर्थिक और सामाजिक अवनति हुई। भूमि जहां पहले जाटों की या उन्हीं की तरह यहां हजारों वर्ष पहले से आबाद रहने वाले लोगों की निजी संपत्ति थी अब ठिकानों की मिल्कियत करार दे दी गई और उसे कहीं बटाई लटाई पर पुराने मालिकों को देने लगे तो कहीं नगद लगान पर।
ज्यों-ज्यों इन ठीकानेदारों के खर्चे बढ़ने लगे त्यों-त्यों इन्होंने लगान के अलावा विभिन्न नामों से दूसरी लूटे आरंभ कर दी। जो लाल-बाग के नाम से मशहूर हुई।
बटाई के तरीकों में सुधार कराने, मनमाने लगान न बढ़ाने और मानवता का व्यवहार करने के लिए यहां के जाट किसानों ने कई बार प्रयत्न किए। जिनमें पहला प्रयत्न खंडेला के सात गांवों का बधा हुआ लगान न देने संबंधी था जो सन् 1930 में आरंभ हुआ और शायद 1933 में समाप्त हुआ।
[पृ.443]: इसके संचालक चौधरी हरबख्श जी गढ़वाल थे। इसके अलावा सन् 1934 में जमीनों का बंदोबस्त करने संबंधी आंदोलन हुआ। जिस का संचालन किसान पंचायत ने किया।
खंडेलावाटी के जाट किसान ठंडे आदमी है। उनमें जोश कम है। वैसे वह डरपोक नहीं है किंतु गरम मुश्किल से होते हैं।
ठिकाने की ओर से जितनी सख्तियां इस इलाके में होती हैं उतनी दूसरे में नहीं। खूड़ ठिकाना और दाता सख्तियां करने में बाजी मार लेते रहे हैं।
खीचड़ों की ढाणी में पंडित हुक्मचन्द्र जी भरतपुर ने एक पाठशाला कायम करके खूड़ ठिकाने के पिसे हुए किसानों में जीवन संचार किया था और उन लोगों ने आगे टक्कर भी ली किंतु फिर भी ठिकाना नर्म नहीं हुआ।
इस प्रदेश में जीवन ज्योति जिन लोगों ने जगाई और कायम की उनके संक्षिप्त परिचय हम इस पुस्तक में दे रहे हैं।
खंडेलावाटी की प्रगतियाँ
इस इलाके को जगाने के लिए पहला जाट प्रयत्न मढ़ा के स्वामी बालदास जी ने किया। उन्होंने चौधरी हरलालसिंह जी अलवर वालों को कुछ रुपए जाट शिक्षण संस्थाएं कायम करने के लिए दिया। श्रीमाधोपुर में जाट बोर्डिंग हाउस कायम करने का प्रयत्न भी हुआ। चौधरी हरलाल सिंह जी सार्वजनिक व्यवस्था जिस प्रकार होनी चाहिए वैसे नहीं हुई और यह काम फैल गया। इसके बाद जाट पंचायत की नींव डाली गई। मूलचंद जी अग्रवाल उन दिनों रींगस के खादी आश्रम के
[पृ.444]: व्यवस्था पर थे। वे लग्नशील समाज सुधारक थे इसलिए उन्होंने जाटों में सुधार कार्य करने की दृष्टि से जाट पंचायत में एडवाइजर का काम किया। खादी आश्रम में काम करने वाले कार्यकर्ताओं को उन्होंने इस और काम करने की भी सुविधाएं दी। इसके बाद जुलाई सन् 1931 में बधाला की ढाणी में जोकि पलसाना से 2 मील के फासले पर अवस्थित है। एक विद्यालय खोला गया जिसके प्रथम अध्यापक पंडित ताड़केश्वर जी शर्मा बनाए गए। उनके विद्यालय में मास्टर लालसिंह और बलवंतसिंह जी मेरठ वालों ने काम किया। इस विद्यालय की स्थापना के कुछ दिन बाद ठाकुर देवी सिंह ने अभयपुरा में एक पाठशाला खोली। एक पाठशाला कुंवरपुरा में चौधरी छाजूराम और बालूराम जी की उदारता से खुली। आलोदा गांव में पंडित केदारनाथ जी ने अध्यापन आरंभ किया। खीचड़ों की ढाणी में पंडित हुकुम चंद जी (भरतपुर) बैठाए गए। जयरामपुरा, गोरधनपुरा, गोविंदपुरा और गढ़वालों की ढाणी में भी पाठशाला कायम हुई। इस प्रकार खंडेलावाटी में शिक्षा प्रसार का अच्छा दौर सन 1932-33 के बीच में आरंभ कर दिया गया। इनमें से कई पाठशालाओं के संचालन का भार चौधरी लादूराम जी गोरधनपुरा (रानीगंज) पर रहा।
शिक्षा प्रचार के अलावा समाज सुधार का कार्य खंडेलावाटी जाट पंचायत द्वारा हुआ। विवाह शादियों और नुक्तों में होने वाली फिजूलखर्चीयों के खिलाफ आवाज उठाई गई। लोगों को यज्ञोपवीत दिए गए।
इस प्रकार चेतना पैदा होने और लोगों में संगठन की भावना बढ़ने पर अपने उन संकटों से छुटकारा पाने के ख्याल भी पैदा हुए जो किसानों के बेजा शोषण से उन्हें भुगतने पड़ रहे थे।
[पृ.445]: शिक्षा और सुधार के कामों को भी ठिकानेदारों ने शांति से नहीं होने दिया। जो जो अडचन उन्होंने डाली और लोगों के साथ शख्तियां की उस समय के इन दो पत्रों से ज्ञात होती हैं।
कुंवरपुरा, दिनांक 6 जनवरी 1934
मान्यवर ठाकुर साहब,
इधर पाठशालाओं के तीव्रता से खुलने और समाज सुधार के लिए मीटिंगें होने से ठिकानेदार बेतरह बेचैन हो रहे हैं। वे कहते हैं कि जब खोतले पढ जाएंगे तब घोड़ों को कौन पूछेगा। जिन लोगों ने जनेऊ पहने हैं उनमें से कई को गढ़ों में बुलाकर ठिकानेदारों ने जलेऊ उतरवा दिए। तोरावाटी में तो इस पर मारपीट हुई है। चौकड़ी का गोपाल सिंह तो मनमानी कर रहा है। अभी कुछ दिन पहले त्रिलोकपुरा की ढाणी से उसके आदमी एक नंगी सोती हुई स्त्री को ऊंट पर बांधकर चुरा कर ले गए।
हमारे उपदेशक जहां भी जाते हैं उनके साथ ठिकाने के लोग उलझ बैठते हैं । किशनगढ़ रेनवाल में उस दिन की मीटिंग में ठिकाने के आदमियों ने शराब पीकर नंगा नाच नाचा।
आप जब इधर आवे तो इन दिक्कतों के बारे में जरूर सोचे। अपने लोग भी कुरीतियों को छोड़ने में हिचकते हैं। आपका भाई नैनसिंह
मान्यवर ठाकुर देशराज जी, नमस्ते !
मैं यहां पर राजी खुशी हूं। आपकी राजी खुशी श्री परमब्रम्ह परमात्मा से नेक चाहता हूं। हाल यह है कि यहां के जाट अपने पंचायत काम करना चाहते हैं इसमें आपकी
[पृ.446]: क्या सलाह है और यहां का ठिकाना खूड़ का है। इसके 12 गांव हैं। ठाकुर का नाम मंगलसिंह है और महाराज जयपुर की अरदली में रहता है। इसलिए यहां के कारिंदा जाट किसानों को बहुत सताते हैं। जनेऊ पहनने में लोगों से इनकार करते हैं। अगर कोई जाट अपने नाम के आगे सिंह बोलता है तो उसे भला बुरा कहते हैं।
अब हाल ढाणी का लिखता हूं। जब से मैं यहां आया हूं तब से ठिकानेदार यहां के लोगों से भी नाराज हो गए हैं और गांव में अशांति मचा रखी है। हर रोज उन पर एक न एक झगड़ा करते रहते हैं और कहते हैं कि तुम मास्टर को क्यों बुला कर लाए हो। किंतु गांव में खूब संगठन है। इसलिए उनकी एक नहीं चलती।
एक गांव के जाटों को तो खूब सताते हैं। उसका नाम जीनवास है। उनमें और ठिकानेदारों में मुकदमेबाजी हो रही है। मुकदमे का विवरण इस तरह है। गांव के जाट अपने कष्ट पुकारने जयपुर गए थे। इससे ठिकानेदार ने उनको काठ में दे दिया था और पांच आदमियों पर 21 रुपए जुर्माना किया। पर उन्होंने जुर्माना नहीं दिया और उन्होंने निजामत सांभर में दरख्वास्त दी है। और काठ में देने और पीटने की भी लिखी है। मुकदमा चला रहा है। अगर आप जब इधर आने की कृपा करें। तब मुझ को पत्र लिख देना। मैं भदाना की ढाणी में आकर सब बात बता दूंगा। आप कृपा करके एक पत्र भिजवाने की कोशिश करना। अगर हो सके तो जाटवीर भिजवाना। बड़ी कृपा होगी और सब कुशल है। मेरा पता यह है खीचड़ों की ढाणी, पोस्ट घाटवा, रियासत जोधपुर, मास्टर हुकुमचंद को मिले, खींचना की ढाणी, रियासत जयपुर में है।
......आपका सेवक हुकुमचंद
[पृ.747]: इधर सामाजिक कार्य करने में भी बाधा पड़ने लगी तो जाटों में और भी जोश आया। इधर सीकर में सीकर महायज्ञ के तुरंत बाद ही दमन आरंभ हो गया। ठाकुर देशराज पहले तो सीकर पहुंचे। वहां से बधाला की ढाणी में एक सभा की। सीकर, शेखावाटी, खंडेलावाटी, तेवरावाटी आदि सभी शेखावत और तेवर ठिकानों के किसानों की मुक्ति के लिए उपाय शौचा गया। इन सब इलाकों का संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए संयुक्त सभा की स्थापना हुई। जिसका नाम शेखावाटी किसान पंचायत रखा गया। इसमें जाटों के अलावा सभी किसानों को शामिल करने का प्रोग्राम बनाया गया।
इसके बाद जिस प्रकार सीकर शेखावाटी में ठिकानों पर आँख मीचकर पूरी बोखलाहट के साथ ठिकानेदारों ने अत्याचार किए। उसी भांति खंडेलावाटी के हर कोने में नृशंस दमन आरंभ हो गया। ठिकानेदारों से पुलिस मिल गई और दोनों ने जो कुछ भी खंडेलावाटी में किया उसकी यादों के लिए कुछ पत्र और उस समय के अखबारों की कटिंग से संग्रहित कुछ अंश यहां दिए जाते हैं।
मान्यवर ठाकुर साहब सादर नमस्ते!
आपको गए करीब 2 सप्ताह होते हैं। इधर मैं भी पुलिस चंगुल में फंसने से अब तक बच सका हूं और यही कारण था कि अभी तक कोई पत्र सेवा में न भेज सका। एक टीटीआई को आपके श्रीमुख द्वारा मेरा परिचय मिला और टीटीआई साहब ने मुझे सिरोही का हाल जानने के लिए पत्र द्वारा बुलाया। मुलाकात में हमारी और उनकी स्टेशन पर जो बातें हुई उन्हें ही पुलिस के सब इंस्पेक्टर साहब ने सुन लिए थे। यह सब राजपूत हैं।
[पृ.448]: अतः आप के साथ सिरोही जाने का अभियोग लगा रिपोर्ट करने ही वाले थे कि मैंने भी दूसरी अड़चन उन पर डाली जो कि उनकी सर्विस में बाधक होती है अतः तुरंत तसफिया हो गया।
सिरोही के जाट व अन्य किसान अभी तक अपने निश्चय पर अटल हैं और फसल जैसा कि आपने फरमाया था 1-2 क्यारी छोड़ शेष खेत काट लिए गए। इधर पाटन ठिकाने में भी ऐसे ही एक जाटों के आंदोलन की भारी खबर है। आत: प्रार्थना है कि आप इधर भी दृष्टि रखें।
आपका फूलसिंह सोलंकी
इधर का काम करने के लिए नीचे लिखे सज्जनों के नाम शेखावाटी किसान पंचायत में शामिल कर लिए गए हैं यह लोग काफी मजबूत हैं:
- 1 कालूराम जी हनुमान जी, सिरोही ठिकाना, ढाणी सेवगांवाली
- 2 बालूजी काजला, रेखा जी जाखड़, ठिकाना सिरोही, ढाणी तेतरवाल की
- 3 मोती जी सामोता, ढाणी समोता, ठिकाना सिरोही
- 4 रुग्घाजी, ढाणी खेतावाली
- 5 रूड़ा मील सिरोही
- 6 पोकर अहीर गोपी अहीर, करोड़ की ढाणी
- 7 बल्ला अहीर ढानी करोड़, ठिकाना सिरोही
- 8 नंदा माली मंगला माली सिरोही
....आपका फूलसिंह सोलंकी
ठिकाना सिरोही के हालात
[पृ.449]: मैं तारीख 19 को जयपुर गया था। 22 तारीख तक जयपुर ठहरा। वहां सिरोही के दो जाट जमीदार जयपुर में महकमा खास में अर्जी देने के लिए पहुंचे। मेरी उनसे बात हो गई। मैंने वहां के हालात पूछें। उन्होंने बताया कि तारीख 20 अप्रैल को करीब 3 बजे फ़जर में मौज़ा खेता की ढाणी राजपूत सिरोही के जागीरदार संतबख्श सिंह और नंदलालसिंह अपने चाकर दरोगा सूरजिया और महादिया को भेजकर जलवा दिया गया है। जिस वक्त आग लगाई गई और मौजा खेता की ढाणी जलने लगी उस वक्त सब आदमी सोए हुए थे। आग लगते ही वह लोग जग पड़े और हाय हल्ला मचाया। उस वक्त सुरजिया और महादिया भागते हुए दिखाई दिए। लोगों ने उनका पीछा किया तो आग लगाने वालों के पास ऊंट थे और पास में कारतूस बंदूक थे। पीछा करने वालों के इस वजह से वह हाथ नहीं आए और बेचारे किसानों का बहुत नुकसान हुआ और कईएक आदमी और औरतों को ताव भी लगी है। किसी का हाथ जला है। किसी का मुंह जला है। एक बच्चा तो बाल-बाल बच गया। 4500 रुपए का नुकसान बताया गया है।
एक अर्जी निजामत नीमकाथाना दे दी गई है और एक अर्जी रेवेन्यू डिपार्टमेंट खान बहादुर चौधरी दीनमुहम्मद के यहां खास महकमा में दे दी है। यह हालात सीरोही की है। अब आप उनको लिखा कर के अखबारों में खूब जोर से आंदोलन उठाइए। (3) हमारे ऊपर 30 दावा और करे गए हैं अब आप सोच लीजिए कि अखबारी आंदोलन करना चाहिए या नहीं। शेष कुशल है। पत्र का उत्तर जल्दी दीजिए।
आपका हरलाल सिंह
[पृ.450]: आज तारीख 19 को खंडेलावाटी के पलसाना गांव में 200-300 गांव की पंचायत है। कारण यह है कि खंडेला राजा पाना बड़ा गोविंदपुरा आया और भूदोजी, लोठाजी, इंदाजी आदि जाटों को बुला कर कहा कि हासिल दो। इस पर जाटों ने कहा कि कुछ छोड़ कर लो। राजा ने हुक्म दिया कि इनका काला मुंह करके गधे पर चढ़ा कर गांव से निकाल दो। इस पर पलसाना के 200 जाट आए और राजा को गालियां दी तो उनको छोड़ दिया जो पहले बुला रखे थे। उसके बाद वे जाट 50 जयपुर आए। महकमों में दरख्वास्त दी है। अब वे व्यवस्थित रूप से आंदोलन चलाना चाहते हैं। मुझे उधर का भी काम करना पड़ेगा। आपकी क्या सलाह है। उत्तर शीघ्र देने की कृपा करें। तारीख 19 की पंचायत में जो तय होगा तो कल तारीख 19 को लिखूंगा
....आपका बोचल्या, नयावास सिरोही
तारीख 3 मार्च 1934
श्रीमान ठाकुर साहब नमस्ते !
इस समय ठिकाना सिरोही के जाटों ने ठाकुरों के अत्याचारों के विरुद्ध आंदोलन शुरू कर दिया है। ठाकुर साहब ने भी आस-पास के ठाकुरों को अपनी सहायता के लिए बुला लिया है। इस पर 200 आदमी भी उसके पास लड़ाई करने को तैयार है। इधर सभी काश्तकार अर्थात जाट, गुर्जर ,अहीर और माली आदि भी अपने-अपने कुए छोड़ कर एक तालाब पर प्रतिदिन जमा हुए बैठे रहते हैं। इस समय ये लोग आपका ही नाम रट रहे हैं। मुझे आशा है कि आप इधर पधारने का कष्ट करेंगे।
फूलसिंह सोलंकी नवलगढ़
[पृ.451]: तारीख 10 जून 1934
माननीय ठाकुर साहब सादर वंदे!
आज खंडेलावाटी से निम्नलिखित समाचार बोचल्या द्वारा प्राप्त हुआ है। प्रकाशनार्थ भेजा जाता है।
तारीख 2 जून को गोविंदपुरा ग्राम में बड़े पाने के ठाकुर हमीरसिंह जी दलबल सहित पधारे। ग्राम के समस्त चौधरियों को आते ही बुला कर हासिल मांगा। चौधरियों ने कहा कि फसल को सर्दी मार गई है इसलिए छूट दो। छूट का नाम सुनते ही ठाकुर साहब पाजामे से बाहर हो गए और अनाप-शनाप गाली गलोच कर चाकरों को आज्ञा दी- इनमें जूते लगाओ और काला मुंह करके गधे पर बिठाकर गांव से निकाल दो। चाकरों ने हुक्म पाते ही आज्ञा का पालन किया। इधर ठाकुर साहब उपरोक्त पैशाचिक दमन करा रहे थे। उधर गोविंदपुरा के आसपास के ग्रामों में जब यह समाचार सुने गए तो ठाकुर साहब को समझाने बुझाने को करीब 100-150 आदमी पलसाना से आए। उन्होंने आते ही कहा कि हमारे भाइयों पर यह राक्षसी अत्याचार क्यों कर रहे हो आदि कहने सुनने पर सबको छोड़ दिया गया किंतु चौधरी भूदाराम को नहीं छोड़ा।
ठाकुर साहब ने भूदाराम से कहा तुम शराब पियो। उनके इंकार करने पर उन्हें जबरन चाकरों से पटकवाकर शराब पिला दी और यज्ञोपवीत तोड़ दिया है। और कहा गया कि मुझको तो तेरा धर्म बिगाड़ना था। चौधरी बुधाराम जी को भी बाद में छोड़ दिया।
इस पर यहां दोनों ग्रामों के 250-300 सज्जन माधोपुर आए और खंडेलावाटी पंचायत के अधिकारियों को
[पृ.452]: बुलाया। पंचायत में तय हुआ कि डेपुटेशन वाइस प्रेसिडेंट जयपुर के पास जावे और अपनी दुख गाथा सुनावे। 40 किसानों का जत्था जयपुर रवाना हो गया है। वह तारीख 6 जून को जयपुर पहुंच जाएगा।.... प्यारे लाल सारस्वत
ठाकुर का सशस्त्र धावा : यहां खंडेला पाना कला के ठाकुर साहब 50 सशस्त्र सवारों के साथ आए और चोखा तथा खीवा कुम्हार के पांच बैल खुलवा कर डेरे में मंगवा लिए। ठाकुर साहब स्वयं बंदूक लेकर 10-12 सिपाहियों को साथ लेकर मंगला किसान को पकड़ ले गए। किसान पंचायत के मंत्री द्वारा मालूम हुआ है कि उन्होंने तारीख 17 जनवरी को पाकोड़ी ढाणी दिवस मनाने के लिए जयपुर के किसान भाइयों को सूचित कर दिया है। (लोकमान्य 20 जून 1934)
खंडेला वाटी के जाटों में असंतोष
जयपुर काउंसिल को तार
[पृ.452]: पलसाना जयपुर में तारीख 11 जून को चौधरी छज्जूराम जी के सभापतित्व में खंडेलावाटी जाट पंचायत की एक विशेष मीटिंग हुई। उपस्थित लोगों में खंडेला के ठिकानेदार के उस कृत्य के लिए भारी असंतोष प्रकट किया गया था जो उसने पिछले सप्ताह किसानों के मुंह काले करके तथा काठ में देकर किया है.... सारी स्पीचें गर्मागर्म थी। मीटिंग में पास हुए प्रस्ताव की नकल जो कि इस प्रकार है वाइस प्रेसिडेंट काउंसिल से जयपुर सेवा में भेजी गई है:-
[पृ.453]: “यह पंचायत राजा हमीरसिंह ठिकाना खंडेला के उस दुर्व्यवहार पर घोर असंतोष और घृणा प्रकट करती है जो उसने चौधरी बालूराम और चौधरी पन्नाराम को काठ में देखकर एवं हाथ बांधकर 101 जूते प्रत्येक के लगाकर तथा उनका काला मुंह करा कर किया है।“
मीटिंग के समय CID भी उपस्थित थी। (नवयुग 28 जून सन 1934)
किसान जत्था जयपुर में
अजमेर 27 जून रियासत के अंतर्गत ठिकाना खंडेला के 40 किसानों का एक जत्था खंडेला के ठाकुर द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों को स्टेट काउंसिल के अंग्रेज उपप्रधान के लिए जयपुर में आया हुआ है। मालूम हुआ है कि थोड़े दिन पूर्व ठाकुर ने गोविंदपुर के चौधरी को बुलाया और उनका अपमान किया। उनको बंद रखा और सारा दिन भूखे तथा प्यासा रखा। गालियां भी दी। उसने उनके चेहरे काले करवा दिए। मुख्य चौधरी को जबरदस्ती लिटाकर उसके गले में अल्कोहल डलवाया और जनेऊ तक तोड़ दिया।
यह सब का कारण यह कहा जाता है कि किसान लगान में कमी चाहते थे।
मालूम हुआ है कि इस बच्चे के अलावा 8 गांवों के किसान 3 साल से रियायत के अधिकारियों के दरवाजे खटखटाते रहे। लेकिन कुछ नहीं हुआ। .... (अर्जुन 1 जुलाई सन 1934)
जाट किसानों को दबाने का यत्न
[पृ.454]: जयपुर 23 नवंबर (डाक द्वारा) परसों रींगस में शेखावाटी के ठिकानेदारों की फिर मीटिंग हुई। बाहर से भी चार राजपूत आए हुए थे, किंतु वे कोई खास आदमी नहीं थे। ठाकुर मंगल सिंह खूड़ अपने एक मित्र के साथ जयपुर से पधारे थे। आरंभ में तो जय भवानी मां की कहकर बोतलें उड़ी और फिर अखबार वालों को गालियां दी गई। हम किसी की परवाह नहीं करते। जाटों को धूल में मिला देंगे। हमारी तलवारें जंग खा गई है। एक ठिकानेदार ने, जो निरक्षर थे, जाट किसानों के प्रसिद्ध कार्यकर्ताओं को मां-बहन की गालियां देते हुए कहा कि अब हमें भी ‘लगचड़’ (लेक्चर) देने चाहिए। खूड़ के ठाकुर साहब ने अपनी शेखी बघारते हुए कहा कि ये किसान मूर्ख हैं। मूर्ख की अक्ल मांथे में होती है। इनका इलाज ठुकाई है। मैंने अपने 12 गांव में से 30 तो मुर्गा बना दिए हैं। एक दूसरे ठाकुर ने कहा तीन चार जाटों का इलाज कर देने से ही बेड़ा पार हो जाएगा। बहुत कुछ अंट-संट कहने के बाद निश्चय हुआ – 1. जयपुर दरबार के पास डेपुटेशन भेजा जाए, 2 राजपूताने के दूसरे राजाओं से सलाह ली जाए और महाराजा जयपुर के पास सिफारिश भिजवाई जाए 3 किसानों को किसी भी ठिकाने में मीटिंग नहीं करने दिया जाए। (लोकमान्य 13 नवंबर 1934)
गोल्या लाठी की यंत्रणा: एक स्थानीय अधिकारी लोसल से दांता आए और जाटों से भूमि कर और लागते, जो दूसरी जगह छोड़ी जा चुकी हैं
[पृ.455]: मांगी। जाटों ने लागतें देने में असमर्थता जाहिर की। इस पर उक्त अधिकारी ने स्वयं जाट पंचों को मारा और फिर सिपाहियों से पिटवाया और रात भर गोल्या लाठी देकर डाल दिया। जमीन पर बैठा कर हाथ बांधकर दोनों घुटनों को ऊपर निकाल कर उसमें लाठी दे देते हैं जिससे आदमी इधर उधर हिल नहीं सकता। यहां पर खास तौर पर यह यंत्रणा दी जाती है। दुल्हा जाट अमरपुरा का और 3-4 जाट थे जिन पर यह सितम ढाया गया।.... (लोकमान्य 13 अप्रैल 1935)
ठिकाने के अत्याचारों के खिलाफ जिन लोगों ने बहादुरी के साथ आवाज उठाई और हजार तकलीफें बर्दाश्त करते हुए अपने भाइयों के दुखों को दूर करने की कोशिशों में तन मन और धन से लगे रहे ऐसे पुरुषों में से कुछ एक के जीवन परिचय यहां दिए जाते हैं:-
खंडेलावाटी के जाट जन सेवकों की सूची
खंडेलावाटी में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनकी सूची सुलभ संदर्भ हेतु विकि एडिटर द्वारा इस सेक्शन में संकलित की गई है जो मूल पुस्तक का हिस्सा नहीं है। इन महानुभावों का मूल पुस्तक से पृष्ठवार विस्तृत विवरण अगले सेक्शन में दिया गया है। Laxman Burdak (talk)
- चौधरी देवासिंह जी बोचल्या (बोचल्या), कंवरपुरा....p.455-458
- चौधरी मोतीराम जी कोटड़ी (धायल), कोटड़ी धायलान....p.458-460
- चौधरी परसराम जी बोचल्या (बोचल्या), कंवरपुरा....p.460-461
- चौधरी सेडूराम जी (बिजारणिया), बिजारणिया की ढाणी....p.461-462
- चौधरी पन्नाराम जी (बुरड़क), ----....p.462
- श्री भगवानसिंह जी (सामोता), जयरामपुरा....p.462-463
- श्री धन्नासिंह जी (फोगावट), फोगावट की ढाणी....p.463-464
- मोहनसिंह वर्मा (फोगावट), फोगावट की ढाणी....p.464-466
- रतनसिंह जी (सामोता), जयरामपुरा....p.466
- हरबख्श जी गढवाल (गढवाल), गढ़वालों की ढाणी....p.467-469
- चौधरी उदैराम जी (बिजारणिया), बिजारणिया की ढाणी....p.469
- चौधरी लादूराम जी रानीगंज (बिजारणिया), गोरधनपुरा....p.470-475
- चौधरी बालूराम जी बोचल्या (बोचल्या), कंवरपुरा....p.475-476
- छाजूराम जी (....), कंवरपुरा....p.476-477
- भूराराम जी नेहरा (नेहरा), गोविन्दपुरा....p.477
- चौधरी इन्दराज जी (.....), गोडावास....p.477
- चौधरी उदयराम जी बिजारणिया (बिजारणिया), पटवारी का बास....p.477
- चौधरी शामसिंह जी बधाला (बधाला), बधाला की ढाणी....p.478
- चौधरी नारायण सिंह जी (.....), गोडावास....p.478-479
- तुलछाराम हरतवाल (हरतवाल), सामेर....p.479
- रूपाराम जी हरतवाल (हरतवाल), सामेर....p.480
- कुंवर हनुमानसिंह जी भामुओं की ढाणी (भामू), भामुओं की ढाणी....p.480
- चौधरी लादूराम जी घोसल्या (घोसल्या), सुयार....p.481
- लेफ्टिनेंट सूबेदार सेडूरामजी (कुड़ी), झाड़ली....p.481
खंडेलावाटी के जाट जन सेवकों की विस्तृत जानकारी
1. चौधरी देवासिंहजी बोचल्या - [पृ.455]: जिसे मैंने सीकर महायज्ञ के अवसर पर जनरल के नाम से पुकारा और जिसने वर्षों तक जनरल की भांति ही सीकर और खंडेलावाटी के भाइयों को आगे बढ़ाने के कदम बताएं हों, यह आवश्यक है उन देवासिंह जी के बारे में दो-चार शब्द लिखकर दुनिया को उनका परिचय कराऊं।
जिन दिनों शायद सन् 1932 में मैं अजमेर में राजस्थान संदेश का संपादन करता था। खादी के कपड़े पहने हुए दो आदमी पहुंचे। उनमें से एक ने बताया मैं देवासिंह हूं और खंडेलावाटी में कुंवरपुरा मेरा गांव है। इससे पहले ही मैं
[पृ.456]: उनके नाम से परिचित हो चुका था। अब साक्षात हो जाने से मैं बड़ा प्रसन्न हुआ। इससे बाद वे मेरे संपर्क में आए और उन्होंने खादी आश्रम रींगस से अपना संबंध तोड़ कर जाट हलचलों में शामिल हो गए। तब से अब तक बराबर वे जाट कौम के लिए काम करते हैं। आप का सिलसिलेवार संक्षिप्त जीवन परिचय इस प्रकार है:-
जन्म संवत 1957 क्वार सुदी 2 का है। पिता चौधरी आनंदराम जी गांव कंवरपुरा तहसील रींगस खंडेलावाटी।
पढ़ाई साधारण अंग्रेजी और हिंदी में मिडिल तक।
आरंभ में चौधरी रामनारायण जी के संपर्क में रहने के कारण आपकी प्रवृत्ति विदेश यात्रा की ओर हुई और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आप 2 जून 1917 को फौज में भर्ती होकर समुद्र पार के लिए रवाना हो गए।
लड़ाई के दौरान में आपने अदन बंदरगाह, स्वेज नहर, कैरो, कुस्तुनतुनिया, स्तम्पबोल और सलोनिका, सिली, डिरंजी, इस्मीड आदि शहरों को जो तुर्की, ग्रीस और रूस आदि देशों के थे देखा। इस प्रकार 4 साल में फौज में रहने के बाद आपने 24 मार्च 1921 को पद से त्याग पत्र दे दिया और अपने घर का कामकाज देखने-भालने लगे।
सन् 1925 में पुष्कर में जो ऐतिहासिक जाट महोत्सव हुआ उसमें शामिल हुए और वहां से लौट कर अपने इलाके में जाति सुधार की ओर ध्यान दिया।
लाला मूलचंद्र जी अग्रवाल व्यवस्थापक खादी आश्रम समाज सुधारक प्रवृत्ति के आदमी थे। उनके साथ आप इस आश्रम के सहायक व्यवस्थापक बनकर खंडेलावाटी के किसान
[पृ.457]: में वस्त्र स्थावलंबन करने लग पड़े।
तारीख 10 मार्च 1930 को आपने अपने कई जाट साथियों के साथ राजस्थान प्रतिनिधि आर्य सभा के उपदेशक पंडित नेतराम जी से यज्ञोपवीत संस्कार करा के इस इलाके के सनातनी ब्राह्मणों में एक हलचल मचा दी। इस संस्कार के समय पचासों गांवों के जाट सरदार इकट्ठे हुए। इसी अवसर पर खंडेलावाटी जाट पंचायत को जन्म दिया गया। कुछ ही दिनों में तमाम खंडेलावाटी में इस पंचायत के मेंबर बन गए। आरंभिक सभापति इस पंचायत के चौधरी बालूराम जी बोचल्या और मंत्री आप थे।
सन् 1929 के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने के लिए आपको राजपूताना के डेलीगेटों में प्रांत की कांग्रेस की ओर से चुना गया था। हरिभाऊ उपाध्याय के साथ आप सायरभर्ती आश्रम भी एक सप्ताह तक रहे ओर वहां महात्मा गांधी से गौ सेवा के सिलसिले में बातें भी की।
सन् 1931 में नमक सत्याग्रह आरंभ हुआ तो आपने अजमेर जा कर सत्याग्रह किया और 9 महीने की सजा काटी। इसके बाद सीकर के किसान आंदोलन में आप दो बार गिरफ्तार किए गए और तीसरी बार खाटू ठिकाने में गिरफ्तार हुए। व्याख्यान देने पर आप पर दो-तीन दफा मुकदमें चलाए गए जिनमें आप बरी हुए। सीकर किसान पंचायत के आप मंत्री रहे और तमाम शेखावाटी प्रांत के भी प्रथम मंत्री आप ही बनाए गए।
खंडेलावाटी जाट पंचायत और किसान पंचायत सबके आप एक हफ्ते तक सर्वे सर्वा रहे हैं।
[पृ.458]: सन् 1944 में आपने जयपुर राज्य में बनने वाली किसान पंचायत को पुष्ट बनाने के भरपूर प्रयत्न किए। इस सब के साथ ही आपने जोधपुर, कोटा और मालवा में भी कौमी जागृति का बिगुल बजाया।
साधनों की कमी होते हुए भी आप जुटे रहते हैं और साथ नहीं मिलता है तो अकेले ही चलते हैं। यह आप की विशेषता है।
आपकी माता जी अत्यंत सरल और कौमी सेविका थी। धर्मपत्नी जी भी बहुत भोली हैं। किंतु सार्वजनिक कार्यकर्ताओं का स्वागत सत्कार हृदय से करती हैं। अपने पति के जेल जाने पर घर के काम को हिम्मत से संभालती हैं यह आपका सौभाग्य है।
2. चौधरी मोतीरामजी कोटड़ी - [पृ.458]: खंडेलावाटी में जो ध्रुव तारे के समान अपने इरादों पर मजबूत रहने वाला और सुप्रकाशित सितारा कोई है तो वह चौधरी मोतीराम जी। आप इस बात को महसूस करते हैं कि हम जाट हैं और जयपुर राज्य में शदियों से कुचलते जाते रहे हैं। हमारा सामाजिक दर्जा गिराया गया है। आर्थिक शोषण किया गया है और राजनीतिक दृष्टि से शासन से कतई तौर पर अलग रखने के पूरे प्रयत्न किए गए हैं। इसलिए आप प्रथम जाट फिर किसान और तब जयपुरी है। दुनिया हवा के साथ बहती है किंतु आप कभी भी बहे नहीं। मैंने उन्हें जब से भी देखा है तब से उन्हें मैंने सही साथी के रूप में पाया है। आपका स्वभाव हंसमुख, दिल साफ, रंग गोरा और बदन छरहरा है। सबसे अधिक बात है आप में डिसिप्लिन
[पृ.459]: (अनुशासन) की। आप अपनी संस्था के नेताओं की ओर सभा में तय की हुई बातों को हृदय से स्वीकार करते हैं। मजबूती से उनका पालन करते हैं।
खंडेलावाटी में जो आपका आदर मान है इसीलिए नहीं कि आप संपन्न परिवार से हैं बल्कि इसलिए भी है कि आप पर लोग विश्वास करते हैं और आप कभी भी धोखा नहीं दे सकते।
आपका जन्म संवत 1954 में (1897 ई.) कोटड़ी गांव के एक प्रतिष्ठित चौधरी धन्नाराम जी धायल गोत्र के जाट सरदार के यहाँ हुआ था। बचपन से ही आपको चतुर और सयाना समझा जाता था।
सन् 1925 के पुष्कर जाट महोत्सव से आपको भी प्रकाश मिला और वहां से लौटते ही आपने अपनी कौम को जगाने के प्रयत्नों में लगा दिया। जब खंडेलावाटी में जाट पंचायत कायम हुई तो आप उसके जिम्मेदार अधिकारी बने और देवा सिंह जी के बाद वर्षों तक उसके मंत्री रहे।
उन दिनों जाटों के उकसाने के हर एक प्रयत्न को दबाने की कोशिश की जाती थी। सन् 1929 की बात है कि आप जाट पंचायत का मासिक अधिवेशन करके लौट रहे थे तब खंडेला ठिकाने को पुलिस के मुंशी ने कहा कि आप पंचायत का काम करोगे तो जेल भिजवा दूंगा, आज तो छोड़ देता हूं। आपने दृढ़ता से दोनों हाथ आगे की ओर बढ़ाकर कहा- लीजिए मुझे जेल भिजवाइए। मैं किसी भी डर से पंचायत का काम नहीं छोड़ सकता।
आपने अपने गांव में एक स्कूल स्थापित करा रखा है और उसको चलाने के लिए आप पूरी रकम सहायता में देते
[पृ.460]: रहे हैं। सन् 1935 के शेखावाटी आंदोलन को चलाने के लिए आपने पूरी मदद की, खंडेलावाटी की तमाम हलचलों में तो आप प्रमुख रहते ही हैं।
सन् 1945 में जयपुर में जो अखिल भारतीय जाट महासभा का शानदार अधिवेशन हुआ उसके लिए आपने रात दिन एक करके धन संग्रह किया और लोगों में प्रचार किया। उस उत्सव को सफल बनाने में आपका पूरा हाथ।
इसके बाद जब शेखावाटी, सीकर, खंडेलावाटी में पुनः किसान सभा को जन्म दिया गया तो आपने रींगस में एक किसान कॉन्फ्रेंस कराई। जिसके सभापति राधाबल्लभ जी हुए।
आपके दो पुत्र हैं जो विद्या लाभ कर रहे हैं और अपने पिता से कौमी सेवा का सबक लेते रहते हैं।
3. चौधरी परसरामजी बोचल्या - [पृ.460]: तहसील रींगस में कंवरपुरा गांव के पास ही चौधरी परसराम की एक ढाणी है। आप बोचल्या गोत्र के जाट हैं। आपका जन्म संवत 1957 (1900 ई.) के सावन महीने में चौधरी देवाराम जी के यहां हुआ था।
सन् 1927 से आप खंडेलावाटी जाट पंचायत के जरिए अपने इलाके में कौमी सेवा का काम कर रहे हैं।
सन् 1931 में नमक सत्याग्रह किया और 9 माह का कारावास भुगता। आप तभी से घर की कती बुनी खादी का इस्तेमाल करते हैं।
कुंवरपुरा में जो जाट स्कूल चौधरी लादूराम जी बिजारणिया ने खुलवाया उसे चलाने के लिए आपने भी यथाशक्ति आर्थिक सहायता की और जाट महासभा का डेपुटेशन आपके
[पृ. 461] गांव में पहुंचा तो आपने और चौधरी बालूराम जी ने पूर्ण रूप से उसका स्वागत सत्कार किया। किसान पंचायत और उसकी हलचलों में भी आप बराबर हिस्सा लेते रहते हैं।
कौम की तरक्की और अतिथि सेवा की ओर आपका बाबर ध्यान देता है। आपका स्वभाव निष्कपट और सरल है यही आप की विशेषता है।
4. चौधरी सेडूरामजी - [पृ.461]: पलसाना के पास बिजारणिया जाटों की एक ढाणी है। यही के वाशिंदे चौधरी सेडूराम जी बिजारणिया है। आपका जन्म संवत 1959 (1902 ई.) विक्रमी में चौधरी भानाराम जी के घर हुआ था।
आप एक उत्साही और लग्न के आदमी हैं। आप वैसे तो आरंभ से ही खंडेलावाटी में कौमी सेवा का काम कर रहे हैं किंतु मैंने पहले पहल उन्हें जयपुर जाट महोत्सव को सफल बनाने के प्रयत्नों में काम करते हुए सन् 1945 में ही देखा और तभी से मेरा उनसे परिचय है।
आपने चौधरी लादूराम जी के आदेश पर संवत 2000 विक्रमी (1943 ई.) में एक शानदार किसान सम्मेलन पलसाना में कराया जिसके सभापति जयपुर के प्रसिद्ध वकील श्री चिरंजीलाल जी अग्रवाल थे। इस सम्मेलन के बाद आपके ऊपर भारत रक्षा कानून के अंतर्गत मुकदमा भी चलाया गया जिसमें आप बरी हो गए। आप बराबर किसानों के हित के कामों में दिलचस्पी से
[पृ.462]: भाग लेते हैं और उम्मीद है कि आगे आप और भी अधिक काम करके दिखाएं।
5. चौधरी पन्नाराम जी (बुरड़क)
5. चौधरी पन्नारामजी - [पृ.462]: खंडेलावाटी में एक चमकते पुरुष चौधरी पन्नाराम जी बुरड़क भी हैं। आप पिछले 6-7 साल से सार्वजनिक जीवन में आए हैं। आप घर के सम्पन्न आदमी हैं। प्रत्येक अच्छे काम में दिल खोलकर आप अपनी शक्ति पर अधिक सहायता देते हैं।
आपके लड़के समझदार और योग्य हैं। संख्या इनकी 6 है। जिनमें आधे के करीब व्यापार का धंधा करते हैं।
आपने जब से सेवा के कामों में पैर रखा है तब से आगे ही बढे हैं पीछे नहीं रहे हैं। आपने कस्तूरबा फंड में अपने आसपास के लोगों में अधिक दान देकर अपना नाम किया है। आप हृदय से चाहते हैं कि आप की जाति के लोग ठिकानों के जुल्मों से मुक्ति पाएं।
6. श्री भगवानसिंहजी - [पृ.462]: आप जयपुर स्टेट में जयरामपुरा ग्राम के रहने वाले हैं। आपके पिता का नाम बालूराम जी था। वे बड़े नेक आदमी थे। आप का गोत्र सामोता है। यह चार भाई थे। इनका घराना शुरू से ही जोरदार रहा है। एक न एक बड़ा आदमी होता आया है। श्री भगवान सिंह जी के दो लड़के हैं। छोटे लड़के का नाम रतनसिंह है। यह बहुत ही योग्य और होनहार युवक हैं। श्री चौधरी भगवान सिंह जी जन्म के नेता हैं जब से
[पृ.463]: इन्होंने सूरत संभाली है तभी से इन्होंने जातीय कार्य में भाग लेना शुरू कर दिया था। जाति के बहुत से अच्छे अच्छे कार्यों का इन्होंने नेतृत्व किया है। इनकी जितनी प्रशंसा की जाए थोड़ी है। सब तरह इनकी निगाह लगी रहती है। समाज सुधार, राजनीति कार्य, शिक्षा का प्रचार सभी कार्यों में इनकी टांग अड़ी रहती है। इनहोने घर का सब काम त्याग रखा है। घरेलू स्थिति कुछ कमजोर है। एक लड़का कास्त करता है। उसी पर सारा दारोमदार है। रतन सिंह अब तक पढ़ता रहा है। पढ़ाई करने के बाद वह भी राजनीतिक कार्य में प्रविष्ट है। आमदनी कम है। पैसे की तरफ आप लोगों का विशेष ध्यान भी नहीं है। आप की अवस्था इस समय करीबन 57 वर्ष की है। आशा की जाती है कि इनका भविष्य भी जातीय कामों में ही लगता रहेगा। इनके चार पोते हैं जिनमें दो पढ़ रहे हैं बाकी दो बालक हैं।
7. श्री धन्नासिंहजी - [पृ.463]: श्री धन्नासिंह जी का जन्म संवत 1965 में हुआ था। आपके पिता का नाम बक्शा रामजी था। जयपुर स्टेट खंडेला ठिकाने में इनके दादा बीजराज जी ने अपने गोत्र फोगावट के नाम पर फोगावट की ढाणी बसाई थी। इस ढाणी में इस वक्त भिन्न-भिन्न गोत्र के डांगी, निठारवाल, तेतरवाल, रुडला, बराला, बाज्या, धायल, बलावा आदि आवाद हैं।
इनके पिता बक्सारामजी पढे हुए थे। यह ठिकाना खंडेला में पटवारी का काम करते थे। जब धन्ना सिंह जी की अवस्था पढ़ने की हुई तब इनको पढ़ने में लगाया लेकिन पढ़ाई का उचित इंतजाम न होने के कारण यह बहुत दिनों तक भी
[पृ.464]: कोई विशेष तालीम न पा सके। जब इनकी अवस्था 20 वर्ष की थी तब इन्होने चरखा संघ में काम करना शुरु कर दिया। यहीं से इनके आधुनिक जीवन की नींव पड़ी। वहां 5 साल काम करने के बाद उन्होंने अपने पिता के देहावसान पर काम छोड़ दिया। अपना घरबार संभाला। इनके चार भाई और थे तीन भाई खेती का काम करते थे और एक छोटा भाई मोहन सिंह था जिसको पढ़ने के लिए भेजा। इन्होंने अपने घर की डांवाडोल स्थिति को बहुत ही अच्छी स्थिति पर पहुंचाया। अपनी यहाँ की जातीय और राजनीतिक कार्य में सदा ही भाग लेते रहे हैं। 1943-44 के किसान आंदोलन को खंडेलावाटी में प्रोत्साहन देने वालों में थे।
यह सच्चे और ईमानदार कर्मठ काम करने वाले आदमी हैं। सच्चाई और ईमानदारी में दोस्त और दुश्मन सभी इनकी प्रशंसा करते हैं। इनके दो लड़कियां हैं। बड़ी लड़की राजस्थान बालिका विद्यापीठ वनस्थली में कक्षा आठ में पढ़ रही है। आगे तक पढ़ने का विचार है। अब भी लोकहित के काम में लगे हुए हैं।
8. मोहनसिंह वर्मा -[पृ.464]: मोहनसिंह का जन्म 5 जनवरी सन 1922 में हुआ। गोत्र फोगावट व पिता का नाम वक्शारामजी था। यह जयपुर राज्य के खंडेला ठिकाने में फोगावटों की ढाणी में जन्मे थे। श्री धन्नासिंह जी के छोटे भाई हैं।
जब इनके पिताजी का देहांत हो गया तो इनके भाई धन्नासिंह जी ने इन को पढ़ाने के लिए स्कूल में भेज दिया। यह
[पृ.465]: बचपन से ही सरल स्वभाव के थे। पढ़ने में इनका मन लग गया था। थोड़े दिनों में प्राइवेट कक्षा 5 तक की मान्यता प्राप्त कर ली। सन् 1935 के नवंबर माह में ये खुद खंडेला ठिकाने के स्कूल में ही कक्षा 6 में भर्ती हो गए और वहां के हेडमास्टर के पास ही रहने लगे। वह स्कूल छठवीं तक ही थी। छठवीं क्लास में इनका नंबर सबसे अव्वल रहा और बहुत सी इनामें भी इन्हें मिली। जब खंडेला के राजा साहब को यह मालूम हुआ तो उनको आश्चर्य हुआ। जब उन्हें यह मालूम हुआ कि यह जाट है और इसका नाम मोहनसिंह है तो और भी नाराज हुये और वहां के हेडमास्टर को नाम के आगे सिंह न लगाने को कहा। अस्तु !
सन् 1935 में आसपास पढ़ाई का कोई उचित साधन न पाकर ये रामगढ़ (शेखावाटी) स्कूल में भर्ती हो गए। बड़ी आसानी से दो ही साल में उन्होंने मिडिल पास कर लिया। मिडिल पास करते ही इनके घर वालों ने इनकी इच्छा के विरुद्ध शादी करदी।
शादी करने पर भी इनका पढ़ने का विचार नहीं छूटा और बगड़ शेखावाटी हाई स्कूल में जाकर भर्ती हो गए। बड़ी आसानी से 2 ही साल में सन् 1939 में इन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली।
परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने कुछ दिनों तक अपने गांव में स्वतंत्र पढ़ाने का विचार किया। किंतु उचित साधनों की कमी के कारण और लोगों की विरोधी भावनाओं के कारण फलीभूत न हो सके। इनका विचार अब सिर्फ यही था कि किसी तरह से जाट जाति में जो अशिक्षा है उसको मिटाया जाए। किंतु उचित सहयोग और अनुभव न मिलने के कारण
[पृ.466]: उन्होंने कुछ दिन किसी संस्था की शरण लेना चाहा। सबसे अच्छी संस्था इन्हें इस वक्त राजस्थान चरखा संघ की लगी ।उन्होंने इसके तत्वावधान में कुछ दिन शिक्षण कार्य किया। कुछ दिनों में इसका अनुभव हो जाने के बाद इन्होंने मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी के स्कूलों में काम करना शुरू किया।
उन्होंने एक साल तक इस तरह से काम किया। किन्तु उनका दिल व दिमाग हमेशा अपने प्रांत की अशिक्षा को दूर करने में ही लगा रहता था। सब ओर निराश हो ये बिरला एजुकेशन ट्रस्ट के जनरल इंस्पेक्टर श्री निहाल सिंह जी तक्षक ने इन्हें आश्वासन दिया और हमारे यहां 5 स्कूल चालू करने का वायदा किया। इन्हें इससे बड़ा भरी संतोष हुआ। चटपट इन्होंने आकर ठिकाने वालों के विरोध करने पर भी अपनी ढाणी फोगावट की में इन्होंने स्कूल चालू कर दिया। एक साल के अंदर ही उन्होंने गढ़वालों की ढाणी, जयरामपुरा, सुजाना, चला आदि आदि में स्कूल चालू करवाने की व्यवस्था कर दी।
11 सितंबर सन 1940 चाहिए अपने प्रांत खंडेलावाटी में ही अशिक्षा निवारण का कार्य कर रहे हैं। इनको काफी सफलता मिली है। सन 1944 से इन्होंने जयरामपुरा में मिडिल स्कूल भी चालू कर दिया है। स्कूल तरकी पर है। 150 लड़के तालीम पा रहे हैं। लोगों का शिक्षा के प्रति प्रेम बढ़ता जा रहा है। रात दिन ये इसी स्कूल की उन्नति में लगे रहते हैं। जय हैडमास्टर स्तर का कार्य कार्य भी स्वयं ही कर रहे हैं। आशा है भविष्य में यह संस्था और भी अधिक पनपे और इससे जाट जाति का हित हो।
श्री मोहनसिंह जी के दो संतान हैं। एक 4 वर्ष की लड़की है और एक डेढ़ साल का लड़का है। शिक्षा का प्रचार करना
[पृ.467]: इन का उद्देश्य है और इसी में संलग्न है। समाज सुधार में रात दिन लगे रहते हैं। उनके चार भाई हैं। 3 काश्तकारी का काम करते हैं। एक धन्ना सिंह समाज सुधार के कार्य में ही लगे रहते हैं।
9. रतनसिंहजी - [पृ.467]: कुंवर रतनसिंह जी भगवानसिंह जी के सुपुत्र हैं। यह बड़े सुडोल और सुस्वरुप नौजवान हैं। जैसे पिता वैसे पुत्र वाली कहावत चरितार्थ होती है।
इन्होंने पढ़ाई करने के बाद कोई 5 साल तक राजनैतिक कार्य बड़े जोश के साथ किया। पहले किसान जाट पंचायत को और फिर प्रजामंडल को अपनी सेवाएं अर्पित की। आजकल आप घरेलू कामों में लगे हुए हैं। क्योंकि इस महंगाई के जमाने में घर खर्च काफी बढ़ गया है। अतः काश्तकारी के जरिए अपनी आमदनी को बढ़ाने की तज्बीज कर रहे हैं। एक साल में ही अच्छी तरक्की कर ली।आर्थिक स्थिति को ठीक करने पर फिर राजनीतिक कार्यों में शीघ्र ही लाग्ने वाले हैं। इनके एक लड़का और एक लड़की है।
10. हरबख्शजी गढवाल
10. हरबख्शजी गढवाल - [पृ.467]: पिताजी का नाम चौधरी कनीराम, गोत्र गढ़वाल, निवास: गढ़वालों की ढाणी, खंडेलावाटी। जन्म संवत 1937 विक्रमी (1880 ई.) भादों सुदी 10 रविवार।
यह ढाणी आपके प्रपिता (दादा) चौधरी भैरोसिंह जी ने आबाद की। इससे पहले आप के बुजुर्ग सलेदीपुरा में रहते थे।
[पृ.468]: जो इस ढाणी से एक मील दूर है। आपके दादा-हर पांच भाई थे:1. पूराराम, 2. उदाराम, 3. परसराम, 4. भैरोसिंह, 5 मुन्ना राम। इनमें से पिछले दो इस ढाणी में आ गए। कहा जाता है आपके बुजुर्ग गंगा किनारे गढ़मुक्तेश्वर में रहते थे। वहां से चलकर यहां आबाद हुए इसलिए गढ़वाल कहलाते हैं। इधर गढ़वालों के कंवरपुरा, धीरजपुरा, रानोली, रणजीतपुरा आदि गांव है।
भैरोसिंह जी के दो पुत्र थे चौधरी कन्नीराम और मानाराम। मानाराम जी के लछूराम, हीरासिंह और धनसिंह 3 पुत्र थे। कनीराम जी के हरबख्श जी और बलदेव जी दो पुत्र थे। हरबख्श जी के कोई पुत्र नहीं है। बलदेव जी के झूथा सिंह जी एक पुत्र हैं। जिनके कि इस समय तक जगदीश सिंह और नानू सिंह दो पुत्र हैं।
चौधरी हरबख्श जी खंडेलावाटी के मशहूर आदमियों में से एक हैं। आप बड़े ही दिलावर आदमी है। नारनोल की ओर से चौधरी रामनारायण जी आहीर इधर आया करते थे। वह आर्य समाजी ख्याल के आदमी थे। उनसे ही आपको आर्य समाज का रंग लगा और सन् 1932 में ठाकुर भोला सिंह ने आपको यज्ञोपवित दिया।
आप सन् 1925 में पुष्कर जाट महोत्सव में गए थे। आप वहां नुक्ता न करने का व्रत लेकर के आए थे। तब से आपने नुक्ता नहीं किया है। यहां तक कि नुक्ता करने वालों के घर खाते भी नहीं और न उनसे लेन देन का व्यवहार करते हैं।
झुञ्झुणु महोत्सव आप देखने गए थे। उसके एक साल बाद आपने अपने गांव में खंडेला वाटी जाट पंचायत का जलसा करवाया जिसके कि सभापति चौधरी लादूराम जी थे।
आपका खंडेला छोटापाना से संवत 1965 से संघर्ष
[पृ.469]: है। आप को ठिकाने के आदमी धोखे से पकड़कर गढ़ में ले गए, वहां से आप उनसे भाग गए। ठिकाने ने आपके यहां लूट भी कराई जिस पर आपने जयपुर में फरियाद की जिसका कोई अच्छा नतीजा नहीं निकला।
संवत 1987 में आपने उन सात गांवों का नेतृत्व किया जिनको ठिकाना ने अधिक लगान देने के लिए बेइज्जत किया। किसानों ने सामूहिक रुप से जायद लगान के लिए इनकार कर दिया। यह आंदोलन 5 वर्ष तक रहा। ठिकाना घुड़सवार लेकर गांव पर चढ़ता किंतु गांव के लोग मिलकर अपनी इबादत करते । सातो गांव में मुसीबत पड़ने पर इकट्ठे होने के अजब-अजब संकेत तय हो गए थे।
नीमेडा के भोमियों से भी आपका संघर्ष चलता रहा। आप कौमी कामों के लिए खूब मदद करते हैं। खंडेला वाटी में आपकी बहादुरी, ईमानदारी और सच्चाई की धूम है। हरबक्श जी के एक चालाक पुत्र नारायण सिंह हैं।
11. चौधरी उदैरामजी - [पृ.469]: पिता का नाम बक्साराम. गांव ढानी बिजारणिया, गोत्र बिजारणिया, जन्म संवत 1968 भाद्रपद मास।
दो भाई हैं पुरखाराम हैं आपके मोटर चलाते हैं। कौम परस्त हैं। गढ़वाल की सभा में मदद दी। कौम के हर काम में मदद देते हैं।
संताने दोनों भाइयों के एक एक लड़का है। उदयराम जी के लड़के का नाम भगवान सिंह है। पुरखाराम के लड़के का नाम बलदेव सिंह है। दोनों बच्चे पढ़ते हैं। संवत 1990 में यह ढाणी बसाई।
12. चौधरी लादूरामजी रानीगंज
12. चौधरी लादूरामजी रानीगंज - [पृ.470]: सन् 1931 में दिल्ली में रायबहादुर चौधरी लालचंद्र जी के सभापतित्व में अखिल भारतीय जाट महासभा के महोत्सव के अवसर पर मैंने चौधरी लादूराम जी से सर्वप्रथम साक्षात किया। वे बड़े-बड़े ढब्बों वाला छपा हुआ साफा बांध रहे थे और बंगाली फैशन का कुर्ता पहन रहे थे। धोती उनकी मारवाड़ी ढंग की बंधी हुई थी। ‘जाटवीर’ अखबार में उनका नाम अनेकों बार पढ़ा था। जातीय संस्थाओं को दिल खोलकर दान देने में वे इन दिनों नाम पैदा कर रहे हैं।
मेरा उनका यह प्रथम परिचय सदा के लिए प्रगाढ़ हो गया और वह मित्रता का रूप धारण कर गया।
इसके 12 महीने बाद ही जब मैं मंडावा आर्य समाज के जलसे में जाने को तैयार हो रहा था तो आप का एक पत्र मुझे मिला जिसमें बधाला की ढाणी में आपने एक जाट पाठशाला खोल देने के लिए लिखा था।
मंडावा आर्य समाज के जलसे के अवसर पर मुझे खादी आश्रम रींगस के व्यवस्थापक लाला मूलचंद्र अग्रवाल और उनके एक स्नेही पंडित बद्रीनारायण जी लोहरा के दर्शन भी हुए थे और उन्हें लेकर मैं बधाला की ढाणी पहुंचा। वहां चौधरी श्यामूजी - मांगूजी के सहयोग से पाठशाला की स्थापना हुई और इसके प्रथम अध्यापक हुए पंडित ताड़केश्वर जी शर्मा। उनके बाद मास्टर लालसिंह और बलवंतसिंह यहां पर रहे।
बधाला की ढाणी सिर्फ 4 घरों का एक गांव है किंतु यहां पाठशाला के कायम होते इस जगह को अत्यंत महत्व प्राप्त हुआ। मैं जयपुर राजय के तमाम गांव से अधिक
[पृ.471]: इस ढाणी का आदर करता हूं। चार-पांच साल तक तो समस्त शेखावाटी, सीकरवाटी और खंडेलावाटी की जाट प्रगतियों का स्रोत केंद्र रही थी।
इस पाठशाला का कुल खर्च 5 वर्ष तक चौधरी लादूराम जी ने ही किया। इसके अलावा ठाकुर भोला सिंह, हुकुम सिंह और पंडित सावलप्रसाद जी चतुर्वेदी को एक साल तक अपनी ओर से वेतन देकर इस इलाके को जगाने का प्रयत्न कराया। शेखावाटी के आज के लीडर जिन दिनों साधनहीन फिरते, उन दिनों चौधरी लादूराम जी ने ही अपने परमित साधनों से लगभग डेढ़ हजार गांवों के क्षेत्र सीकर खंडेला और शेखावाटी में जीवन ज्योति पैदा करने को लगाया।
इस पाठशाला के अलावा उन्होंने कुंवरपुरा, अभयपुरा, सामेर और गोवर्धनपुरा में भी पाठशालाये कायम की और उन्हें कई वर्ष तक अपने ही खर्चे से चलाया भी किंतु खेद है कि कोई भी पाठशाला स्थावलंबी नहीं बन सकी।
झुंझुनू जाट महोत्सव के बाद सीकर में जो ऐतिहासिक जाट महायज्ञ हुआ उसको सफल बनाने के लिए भी उन्होंने भरसक यतन किया और उसी अवसर पर उन्होंने एक पुस्तक प्रकाशित कराई- ‘मृतक बिरादरी भोज’। इस पुस्तक के अलावा उन्होंने कई पंपलेट प्रकाशित कराए।
अंत में सन् 1934 में खंडेलावाटी जाट कांफ्रेंस के उपसभापति चुने गए। यह कांफेरेंस गढ़वाल की ढाणी में हुई थी। इस कांफ्रेंस के अध्यक्ष पद से आपने एक अत्यंत प्रभावशाली भाषण दिया।
इसके बाद वे बराबर जाट आंदोलन किसान प्रगति और राष्ट्रीय कार्यों में बराबर भाग लेते रहे।
[पृ 472]: उनकी संक्षिप्त जीवनी उन्होंने होनहार पुत्र कुंवर चंदनसिंह जी द्वारा लिखित इस प्रकार है:
चौधरी साहब के पिता का नाम श्री बालूराम जी चौधरी है। गोत्र आपका बिजारणिया है और जन्म भूमि ग्राम अलोदा (जयपुर राज्य), जन्मतिथि भादवा सुदी 12 संवत 1956 (1899 ई.) ।
स्कूली शिक्षा नहीं पाई। अनुभव की तालीम से ही काम चल रहा है।
संवत 1973 (1916 ई.) में काम धंधे की खोज में रानीगंज (बंगाल) गए। वहां कुछ दिनों बाद चौधरी मिष्ठान भंडार नाम से बड़े पैमाने पर मिठाई का काम शुरू किया। दिनोंदिन तरक्की होती गई। काम में अच्छे मुनाफे के साथ सफलता मिली।
1932 ई. में चौधरी बिस्कुट फैक्ट्री और चौधरी फ्लूट मिल शुरू किया। काम काफी कंपटीशन के बाद सफल रहा। मुनाफा अच्छा होता रहा।
1935 ई. में रानीगंज में रॉयल सिनेमा नाम से सिनेमा शुरू किया। सिनेमा का उद्घाटन तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट द्वारा राजा साहब सियारसोल, मैनेजर बंगाल पेपर मिल्स लिमिटेड रानीगंज, मैनेजर बंगाल कोल कंपनी लिमिटेड रानीगंज, सब डिविजनल ऑफिसर आसनसोल तथा जिले के अन्य गणमान्य अधिकारियों व्यापारियों तथा जनता की उपस्थिति में सजधज के साथ शुरू हुआ। अन्य सिनेमाओं से प्रतिस्पर्धा कर सिनेमा चल निकला और जिले के अच्छे सिनेमाओं में शुमार किया जाता था।
1938 ई. में रानीगंज से 24 मील दूर कुल्टी नामक स्थान में ‘निड सिनेमा’ स्टार्ट किया। यहां भी सिनेमा अच्छा चला।
1939 ई. में रानीगंज से 8 मील दूर कोयले के क्षेत्र जामुड़िया में ‘न्यू सिनेमा’ शुरू किया। साय व्यापार तरक्की पर था। 1948 के शुरू में व्यापार
[पृ.473]: सर्वोन्नत दशा को पहुंचा हुआ था। इनके यहां रोजाना करीब 250 आदमी काम किया करते थे। औसत आमदनी प्रतिदिन ₹1500 थी।
1948 देश के लिए बड़ा कठिन समय सिद्ध हुआ। सारे संसार के साथ भारतवर्ष भी कठिन परिस्थितियों में से गुजर रहा था। देश का सिंहद्वार सिंगापुर दुश्मनों के हाथ में जा चुका था। वर्मा में प्रवासी भारतवासियों की दुर्दशा हो चुकी थी। बंगाल आरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था। कोलकाता खाली हो चुका था। बंगाल पर विपत्ति के काले बादल मंडा रहे थे। भगदड़ मची हुई थी। इनका परिवार भी अस्त व्यस्त हो गया था। कोयले का क्षेत्र विशेष खतरनाक प्रतीत होने के कारण 1948 में बंगाल छोड़कर सहपरिवार देश ग्राम गोवर्धनपुरा पोस्ट पलसाना को चले आए। कारोबार डांवाडोल परिस्थिति के कारण बंद कर देना पड़ा। अबभी रानीगंज में मकान आदि हजारों रुपए का सामान पड़ा है। पुनः स्थिति सुधरते ही ही कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
1942 के प्रारंभ में आप जिले के सबसे बड़े सिनेमा मालिक थे। गवर्नमेंट फंड्स, हॉस्पिटल फंड स्कूलों तथा अन्य सार्वजनिक संस्थाओं को चैरिटी-शो द्वारा मुक्तहस्त होकर दान दिया। जिस का गुणगान जिले की संस्थाएं अब भी गाया करती है।
देश में आने पर गोरधनपुरा की जमीदारी ली है। लगन से अच्छी आमदनी हो जाती है। किसान सुखी व आबाद है। पलसाना क्षेत्र का चीनी का कोंटेक्ट भी ले रखा है। जिससे जनता में सुविधा पूर्वक चीनी का वितरण कर दिया जाता है। ब्लैक मार्केटिंग द्वारा जनता की कठिनाइयों को बढ़ाने से घृणा होने के कारण युद्ध काल में व्यापार में उन्नति होने के बजाए उन्नति हुई है। अब समय साधारण आता प्रतीत
[पृ.474]: होता है अपितु भविष्य उज्जवल है।
दो भाई थे। दूसरे भाई का नाम गंगाराम चौधरी था जिन का स्वर्गवास 1934 में लंबी बीमारी के बाद कोलकाता में हो गया।
संतान 6 हैं। 3 पुत्र तथा 3 पुत्रियां। बड़े पुत्र का नाम व कुँवर चतुरसिंह है। छोटे का नाम कुमार चंदन सिंह जो उच्च शिक्षा पा रहा है। सबसे छोटे पुत्र का नाम कुमार सज्जन सिंह जिसकी शिक्षा प्रारंभ हुई है। बड़ी पुत्री का नाम सोहनी देवी है जिसकी शादी उदयपुर के चौधरी हरिसिंह जी बीएएलएलबी डिस्ट्रिक्ट मुंसिफ़ एण्ड जज के बड़े पुत्र कुँवर किशन सिंह जी के साथ होना तय हुआ है। उसे छोटी तारादेवी तथा रमादेवी हैं जो शिक्षा पा रही हैं।
चौधरी साहब ने अपनी गाढ़ी कमाई का सदुपयोग मुक्त होकर जाट संस्थाओं को दान देकर किया। सीकर के जाट आंदोलन में प्रमुख हाथ रहा। खंडेला जाट पंचायत के सरपंच चुने गए।
1943 में भारत रक्षा कानून के तहत पुलिस ने जाटों में जागृति फैलाने के अपराध में झूठा मुकदमा चलाया जो पुलिस की खासा कोशिश के बावजूद भी सहयोगियों की सहायता से डिस्चार्ज कर दिया गया। 1942-43 में होने वाले खंडेलावाटी किसान आंदोलन में प्रमुख हाथ रहा। 1943 ई. में पलसाना में श्री चिरंजीलाल जी अग्रवाल M.A. LLB वकील हाईकोर्ट जयपुर के सभापतित्व में तोरावाटी खंडेलावाटी किसान सम्मेलन निमंत्रित किया जिसमें खंडेलावाटी किसान आंदोलन की नींव पड़ी। किसानों का हित ही इन्होंने अपना ही समझा। ये अपने को किसानों का प्रतिनिधि सच्चे अर्थों में सिद्ध कर सके हैं। जाट इतिहास तथा अन्य जाट साहित्य के प्रकाशन में काफी सहायता की।
[पृ.475]: भरतपुर में होने वाले सूरजमल दिवस में प्रमुख हाथ रहा। मुजफ्फरनगर अधिवेशन में इन्होंने ही जयपुर के लिए आल इंडिया जाट महासभा को निमंत्रण दिया और सन् 1945 में जो अधिवेशन जयपुर में सफल हुआ यह आप ही के अथक परिश्रम का फल था। आपने जाट जाति की तरक्की में काफी हाथ बटाया है। सदा से अखिल भारतीय जाट महासभा की कार्यकारिणी के मेंबर रहे हैं। जयपुर राज्य जाट सभा के सभापति हैं तथा राजस्थान प्रांतीय जाट सभा के कोषाध्यक्ष हैं। जिला प्रजामंडल में भी हाथ बटाते रहे हैं और हमेशा इसकी कार्यकारिणी के मेंबर रहे हैं। अब जिला प्रजामंडल कमेटी के कोषाध्यक्ष रहे हैं। राष्ट्रीय कार्यों में भी काफी भाग लिया है। इन कारणों से बड़े-बड़े जागीरदारों ठिकानों तथा पुलिस का कोपभाजन भी होना पड़ा है। ठिकाने वालों के सहयोग से पुलिस ने भारत रक्षा कानून जैसे अचूक अस्त्र का प्रहार किया किंतु सहयोगियों की सहायता से सत्य के आधार पर आप बेदाग निकले।
आर्थिक कठिनाइयों के कारण अब कुछ घरेलू धंधे में ज्यादा व्यस्त रहते हैं लेकिन उनका हृदय हमेशा अपनी कौम की तरक्की के लिए लालायित रहता है।
13. चौधरी बालूरामजी बोचल्या - [पृ.475]: आपका जन्म कुंवरपुरा गांव में चौधरी रतनाराम जी के घर में हुआ है। आप अच्छे धनी घराने में पैदा हुए थे। जब से आपने होश संभाला है तबसे ही आप अच्छे कार्य करने में लगे रहते हैं। आप खंडेलावाटी जाट पंचायत के सर्व प्रथम सभापति बने थे। आपने खंडेलावाटी में नुक्ता बंद करने की
[पृ.476]: आवाज सबसे पहले उठाई थी। खंडेलावाटी में लाग-बाग बेगार उठाने के लिए आपने अपने गांव में संवत 1986 (1929 ई.) में आंदोलन शुरु किया था। इसी सिलसिले में आप जब खंडेला के राजाजी पाना से मिलने गए थे तो आपको राजा जी ने अपने गढ़ में रोक लिया। आपको अपनी इच्छा के मुआफिक भोजन न मिलने पर आप बीमार हो गए थे। आप को गढ से छुड़ाने के लिए जयपुर सरकार के पास तार और दरख्वास्तें भी काफी दी गई थी। फलस्वरूप आपको ठिकाने का कामदार कुंवरपुरा लाकर छोड़ गया।
आप अपनी आन के भी पक्के पक्के थे। जिस बात को आप एक दफा पकड़ लेते थे उसे पूरा करके ही छोड़ते थे। आप मुकदमेबाज भी पूरे थे। आपने एक मुकदमा बाबत लेन देन के खंडेला राजा जी पाना कला से किया था। उसमें आपका पैसा तो बहुत खर्च हुआ था परंतु आपने जीतकर ही घर पर विश्राम किया। आपके दो लड़के हैं। बड़ा लड़का लालूराम छोटा गोपीराम। यह दोनों भाई अलग-अलग हैं और खेती का काम करते हैं। आप का स्वर्गवास सन् 1940 असौज सुदी में हुआ।
14. छाजूराम जी - [पृ.476]: आपका जन्म चौधरी मन्नाराम जी कंवरपुरा के यहां आज से 50 वर्ष पूर्व हुआ था। आपके दो छोटे भाई और हैं। आप इस समय 50000 से ऊपर के मालदार गिने जाते हैं। आप जाट जाति को उन्नत करने के लिए पूरी कोशिश करते रहते हैं। समय समय पर आपने जाटों की उन्नति और प्रजामंडल जिला कमेटी फुलेरा अच्छी सहायता दी है। आपके दो पुत्र हैं बड़े का नाम श्री घासी राम है जो अपनी खेती को संभालता है।
[पृ.477]: दूसरे सागरमल हैं जो श्रीमाधोपुर में व्यापार का काम कर रहे हैं। आप की दुकान श्री माधोपुर में नामी है।
15. भूरारामजी नेहरा - [पृ.477]: आपका जन्म गोविंदपुरा जस्सूका हाल हाणी में हुआ। आप की उम्र इस समय करीब 40-42 साल की होगी। आप संवत 1990 से जातीय सेवा कर रहे हैं। आप अच्छे घरके हैं। आप पंचायत के पैसों की सहायता करते रहे हैं।
16. चौधरी इन्दराजजी - [पृ.477]: आपका जन्म गोरावास गांव में हुआ है। आप तोरावाटी में अच्छे इज्जत ठिकाने में गिने जाते हैं। आप जाट जाति की सेवा बराबर करते रहे हैं। आप सार्वजनिक कार्य में पैसा भी खर्च करते हैं। आपकी उम्र 39 साल है।
17. चौधरी उदयरामजी बिजारणिया - [पृ.477]: आपका जन्म पटवारियों के बास में चौधरी भानाराम जी के यहां हुआ है। आप पहले पंजाब में जाकर बस गए। वहां से वापस खंडेलावाटी में आकर वरसिंहपुरा के पास बसकर अपनी ढानी बनाकर एक कूवानाल वट करवाया। आपके मोटरों का रोजगार है। आपने जाति की सेवा काफी की है और कर रहे हैं। आपके दो संतान भी हैं।
18. चौधरी शामूसिंहजी
18. चौधरी शामूसिंहजी - [पृ.478]: आपका जन्म बधाला की ढाणी में हुआ था। आप संवत 1988 से जाट जाति की सेवा में लगे थे। आप रात-दिन जाटों की उन्नति का ही कार्य करते रहें। आप की ढाणी सीकर और जयपुर के रास्ते पर होने से आप की ढाणी में हमेशा ही सीकरवाटी आंदोलन के समय काफी लोग आते रहते थे। आप सब की खातिरदारी करते रहे और खर्च भी बर्दाश्त करते थे। आप की ढाणी में श्री विजय सिंह पथिक, ठाकुर देशराज जी आदि की मौजूदगी में सीकरवाटी आंदोलन की नींव पड़ी थी। आपके बड़े भाई साहब चौधरी मांगूराम जी आपका पूरा हाथ बटाते थे। आपका और आपकी धर्मपत्नी का देहांत अभी 4 महीने पहले हो गया। आपके बिछड़ जाने से खंडेलावाटी के किसानों को काफी धक्का लगा है। आपके बड़े भाई मांगूराम जी तो आप के योग से बड़े भारी दुखी हैं। आपके पीछे तीन चार लड़के भी हैं। खंडेलावाटी को उनसे काफी उम्मीद है।
19. चौधरी नारायणसिंहजी - [पृ.478]: आपका जन्म गोडावास गांव में हुआ है। आपकी उम्र इस समय करीबन 37 साल की होगी। आप पहले फौज में भर्ती थे। उसमें भी आप अच्छी बहादुरी के साथ काम करके अच्छे दर्जे पर पहुंचे। आपने अपनी तिक्षण बुद्धि से हिंदी और अंग्रेजी पढ़ा और कंपाउंडरी का इम्तिहान देकर कई सर्टिफिकेट प्राप्त किए। आप बचपन से ही जाट जाती की उन्नति की अभिलाषा रखते आए हैं। जब जब आप फौज से घर पर छुट्टी आए हैं तब तब ही अपने गांव और आस-पास के गांव में
[पृ.479]: जाकर समाज सुधार की काफी शिक्षा देते रहते थे। बाद में आप फौज से अपना नाम कटाकर घर पर आ गए। कई दिन तक अपना पूरा टाइम अपने गांव में जाती व सुधार में लगाया। फिर अब रेल में कंपाउंडरी के पोस्ट पर भर्ती हो गए। जब आपको सरकारी काम से फुर्सत मिलती है तो आप अपना समय ज्यादा से ज्यादा जातीय कार्य में ही लगाते रहते हैं। अजमेर मेरवाड़ा की जाटसभा के जन्म में भी आपका काफी हाथ रहा है। आप इस समय फुलेरा के रेलवे सफाखाने में कंपाउंडर हैं। आपने अपनी मिलनसारी आदत से फुलेरा के आस-पास के गांवों में अपनी अच्छी धाक जमा रखी है। आपकी शादी नाथद्वारा के चौधरी किसनाराम जी की सुपुत्री लक्ष्मी बाई के साथ हुई है। यह आप की दूसरी शादी है। आपके अभी तक कोई संतान नहीं है। आप इस समय जयपुर में होने वाली जाट सभा के जलसे की तैयारी में रात-दिन जुट रहे हैं।
20. चौधरी तुलछरामजी हरतवाल - [पृ.479]: आपका जन्म सामेर गांव में हुआ है। आपकी उम्र इस समय करीब 60 साल की होगी। आप खंडेलावाटी के जाटों में सबसे पहले हिंदी उर्दू के विद्वान हैं। आपने खंडेलावाटी के भौमियों के साथ लगकर राजा जी खंडेला पाना खुर्द से कई साल तक मुकदमा लड़ा है और राजा साहब पर जमानत और मुचलके भी करवा दिए। भौमियों के बारे में आप के हजारों रुपए खर्च हुए। आपके 3-4 संतान हैं।
21. रूपाराम जी हरतवाल - [पृ.480]: आपका जन्म सामेर गाँव में हुआ है। आप जाट जाति के पक्के सेवक और भक्त हैं। आपने समय-समय पर जाति के कार्य में काफी पैसे दिए हैं। आपके 6-7 लड़के हैं जिनमें से सुबालाल जी कुछ पढ़े लिखे भी हैं। आप जातीय कार्य में काफी भाग लेते रहते हैं।
आपके भाई भूराराम जी किसनाराम जी भी अच्छे उत्साही हैं।
22. कुंवर हनुमानसिंहजी भामुओं की ढाणी - [पृ.480]: आपका जन्म चौधरी बालूरामजी के घर में हुआ है।आप इस समय करीब 35-36 साल के हैं।
आपने पहले जयपुर की आर्म्ड फोर्स में तीन-चार साल तक नौकरी भी की है। आप अच्छे घर में पैदा हुए हैं। आपके साथ ठिकाने खंडेला पानाखुर्द के राजा जी ने काफी मुकदमा लड़ा था। उसमें आप को काफी नुकसान हुआ था। परंतु जीत आपकी ही हुई थी। अभी संवत 1999 की साल में राजा जी खंडेला पानाखुर्द ने करीब 150 आदमी हमला करने और ढाणी को लूटने भेजे थे। आपस में भिड़ंत होने पर 150 आदमियों को मार भगाया और उनकी कई लाठी व 3 ऊंट भी रख लिए थे। परंतु साहू के थानेदार रामलाल ने धोखा देकर ऊंट व ठिकाने वालों के साफे लकड़ी आदि वापस दिला कर दोनों फकीरों पर बल्लवे का केश दायर कर दिया। इसके बाद खंडेलसर रायपुरा के भोमिया भी चढ़कर आए। परंतु हार नहीं थी। अब आपके पिताजी व अन्य छोटे भाइयों पर व भतीजों पर ठिकाने और भोमियों की तरफ से 10 मुकदमे चल रहे हैं।
23. चौधरी लादूरामजी घोसल्या - [पृ.481]: आपका जन्म चौधरी परशुराम जी स्थान सुयार राज्य जयपुर में भादव बदी संवत 1948 (1891 ई.) में हुआ। आप एक अच्छे घराने में पैदा हुए। आप शुरू से ही जाट जाति की सेवा करते रहे हैं। और आपने प्रयत्न कर के इलाका सामर जाट सभा भी सन् 1940 में शुरू की थी जिसमें आपने कुछ पैसे भी खर्च किए परंतु कार्यकर्ताओं के अभाव में सभा आगे चल नहीं सकी।
आपके कोई संतान नहीं है। हां आप से दो भाई छोटे हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- रघुनाथ जी और भूरजी। रघुनाथ जी के दो लड़के हैं और भूर जी के एक छोटा बच्चा है जिसका नाम रामपाल है। आप सलह डिपार्टमेंट में हैड मेट है।
24. लेफ्टिनेंट सूबेदार सेडूरामजी -[पृ.481]: निजामत नीम का थाना में झाड़ली एक गांव है। लेफ्टिनेंट सूबेदार सेड़ूरामजी यही के वाशिंदे है। गोत आपका कुड़ी है। आप की अवस्था इस समय 60 साल के आसपास है। 7 आपके लड़के हैं जिनमें बलदेव राम जी फौज में जमादार के पद पर काम कर रहे हैं। गोविंदराम, इंदल, अर्जुन वगैरह घर का धंधा करते हैं। आप की एक पुत्री रावलीदेवी है जिसका विवाह कोटडी के प्रसिद्ध रईस चौधरी मोतीराम जी धायल के पुत्र रूपसिंह जी के साथ हुआ है।
सूबेदार सेडू रामजी जातिभक्त आदमी हैं। आप फिजूल खर्चियों को पसंद नहीं करते। कौम की कुरीतियों को दूर करने की इच्छा रखते हैं।
खंडेलावाटी के शेष जीवन परिचय
खंडेलावाटी के शेष निम्न जीवन परिचय पुस्तक के पृष्ठ 529-531 पर छपे हैं।
- चौधरी नवलसिंह जी (खर्रा), भारणी, सीकर ....p.529-530
- कुंवर गणेशराम जी (खर्रा), भारणी, सीकर ....p.530-531