Jat Jan Sewak/Bikaner

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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580

संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर

बीकानेर के जाट जन सेवक

बीकानेर और जाट

[पृ.113]: बीकानेर का विस्तृत भूभाग प्राय: सारा का सारा जाटों से भरा पड़ा है। उनकी कुल आबादी 60 फीसदी है। 14 वीं सदी से पहले सारण,गोदारा, बेनीवाल, सियाग, पूनिया, कसवा और सोहू जाटों के यहां सात गणतंत्रात्मक (भाईचारे) के राज्य थे। इसके बाद राठौड़ आए और उन के नेता राव बीकाजी ने गोदारों के नेता पांडू को बहकाकर उसे अपना अधिनस्त कर लिया और जाटों की पारस्परिक फूट से राठौर सारे जांगल-प्रदेश पर छा गए। जाट पराधीन ही नहीं हुआ अपितु उसकी दशा क्रीतदास (खरीदे गुलाब) से भी बुरी हो गई।

राव बीका के वंशजों और उनके साथी तथा रिश्तेदारों की ज्यों ज्यों संख्या बढ़ती गई सारी जाट आबादी जागीर (पट्टे) दारों के अधिनस्थ हो गई। उन्होंने जाटों को उनकी अपनी मातृभूमि में ही प्रवासियों के जैसे अधिकार भी नहीं रहने दिए। रक्षा की शपथ उठाने वाले राठौड़ जाटों के लिए जोंक बन गए।

एक दिन के विताड़ित क्षुधा से पीड़ित राठौड़ सिपाही और नायक जो विदेश में आकर आधिपत्य को प्राप्त हुए ज्यों-ज्यों ही बिलास की ओर बढे जाट का जीवन दूभर होता गया। उसकी गरीबी बढ़ती गई।


[पृ.114]: इन राठौर शासकों ने जो गण्य-देश के जाटों का आर्थिक शोषण ही नहीं किया किंतु उन्हें उनके सामाजिक दर्जे से गिराने की भरसक कोशिश की। कल तक बीकानेर के मौजूदा महाराजा श्री सार्दुलसिंह जी भी चौधरी हनुमान सिंह जी को हनुमानिया के नाम से पुकारते रहे हैं।

राजपूत और जाट में क्या अंतर होता है इसका वास्तविक दर्शन महाराजा बीकानेर को तब हुआ जब सन् 1946 में लार्ड वेविल भरतपुर में शिकार के लिए पधारे थे। उस समय गर्म दल के लोगों ने महाराजा बीकानेर को काली झंडियाँ दिखाने का आयोजन किया किन्तु तमाशे के लिए इकट्ठे हुए जाटों ने इन प्रजामंडलियों के हाथों से काली झंडियां छीनछीन कर फेंक दी। क्योंकि उनको यह कतई नहीं जचा कि अपने अतिथि को, जिसे उनके राजा ने स्वयं आमंत्रित किया है, इस प्रकार अपमानित किया जाए। हालांकि जाट नेता यह जानते थे कि इन्हीं महाराजा साहब के बलबूते पर दूधवा खारा में सूरजमल नंगा नाच नाच रहा है।

बीकानेर का खजाना जाटों और उनके सहकर्मी लोगों से भरा जाता था किन्तु बीकानेर के शासकों ने उन्हें शिक्षित बनाने के लिए कभी भी एक लाख रूपयै साल भी खर्च नहीं किए जबकि राजपूतों की शिक्षा के लिए अलग कॉलेज और बोर्डिंग हाउस खोले गए। यही नहीं बल्कि उनकी निजी शिक्षा संस्थाओं को भी शक और सुबहा की दृष्टि से देखा जाता रहा।

इन हालातों में वहां के जाट सब्र के साथ दिन काटते रहे और स्वत: एक आध शिक्षण संस्था कायम करके शिक्षित बनने की कोशिश करते हैं किंतु हर एक बात की सीमा होती है।


[पृ.115]: जब स्थिति चर्म सीमा पर पहुंच जाती है तब प्रतिक्रिया अवश्य होती है। जाटों के खून में भी गर्मी आई, वे आगे बढ़े और प्रजा परिषद के प्लेटफार्म से उन्होंने शांतिपूर्ण विद्रोह का झंडा खड़ा किया। दो वर्ष के कठोर संघर्ष के बाद शासकों का आसन हिला और उन्होंने शासन में प्रजा का भाग होना स्वीकार किया। उसी का यह फल हुआ कि वहां के मंत्री-परिषद में 2 जाट सरदार लिए गए।

महाराजा सार्दुलसिंह जी वस्तुस्थिति को समझ गए हैं और जिन्हें जमाने की गति से जानकारी है, वे राठोड़ भी यह महसूस करने लगे हैं कि हमने जाटों को सताकर और अपने से अलग करके भूल की है और भूल आगे भी जारी रही तो राठौरी प्रभुत्व की निशानी भी जांगल-देश में सदा के लिए मिट जाएगी। मंत्रिमंडल में जाने पर चौधरी हरदत्त सिंह और कुंभाराम आर्य ने देहाती समाज की तरक्की के लिए कुछ योजना तैयार की किन्तु दूसरे लोगों के षड्यंत्र के कारण अंतरिम मंत्रिमंडल तोड़ देना पड़ा।

लड़ाकू कौम होने के कारण यद्यपि बीकानेर के जाट सेनानियों में आपस में कुछ मतभेद भी हैं किंतु यह निश्चय से कहा जा सकता है कि दूसरों के लिए 5 और 100 के बजाए 105 हैं।

बीकानेर की जाट प्रगतियाँ

[पृ.115]: बीकानेर के स्वर्गीय महाराजा गंगासिंह जी अपने समय के कठोर शासकों में से थे। उन्होने अपने समय में राज्य में


[पृ.116]: आर्य समाज जैसी संस्थाओं को नहीं पनपने दिया। फिर जाट कोई अपना संगठन खड़ा कर सकते यह कठिन बात थी लेकिन फिर भी यहां के लोग अखिल भारतीय जाट महासभा की प्रगतियों शामिल होकर स्फूर्ति प्राप्त करते रहे उन्होंने एक बीकानेर राज्य जाटसभा नामक संस्था की रचना भी कर ली। चौधरी हरिश्चंद्र, चौधरी बीरबल सिंह, चौधरी गंगाराम, चौधरी ज्ञानीराम, चौधरी जीवनराम (दीनगढ़) इस सभा के प्राणभूत रहे।

जाटपन को कायम रखने और तलवारों के नीचे भी जाट कौम की सेवा करने में राज्य में चौधरी कुंभाराम आर्य का नाम सदा अमर रहेगा। सरकारी सर्विस में रहते हुए भी नौजवानों में उन्होंने काफी जीवन पैदा किया।

लाख असफलता और निराशाओं से घिरे हुए काम करने वालों में चौधरी हरिश्चंद्र और चौधरी जीवनराम अपने सानी नहीं रखते हैं। उन्होंने जाट महासभा के सामने प्रत्येक अधिवेशन में बीकानेर के मामले को रखा और जागृति के दीपक को प्रज्वलित रखा।

चौधरी ख्यालीराम ने मिनिस्टर होने पर एक नई जाट-सभा को जन्म दिया किन्तु वह मिट गई। बीकानेर में जो पढ़े लिखे और ऊंचे ओहदों पर जाट हैं उन्हें ढालने का श्रेय जाट हाई स्कूल संगरिया को है इसने जज, मिनिस्टर और कलेक्टर सभी किस्म के लोग तैयार किए। और इसी ने नेताओं में स्फूर्ति पैदा की। हालांकि यह संस्था सदैव राजनीति से दूर रही।

अब तक इस संस्था और इसकी शाखाओं (ग्राम स्कूलों) में लगभग 3000 बालकों ने शिक्षा पाई है। जिनमें से कई


[पृ.117]: ऊंचे पदों पर और कई नेतागिरी में पड़कर जो गन्य-देश के गरीबों की सेवा कर रहे हैं।

वैसे तो स्वामी केशवानंद स्वयं एक जीवित संस्था है किंतु उन्होंने इस भूमि की सेवा के लिए 'मरुभूमि सेवा कार्य' नाम की संस्था को जन्म दिया। जिसके अधीन लगभग 100 पाठशालाएं चलाने का आयोजन है।

गंगानगर और भादरा में जाट बोर्डिंग है जिनसे कौम के बालकों को शिक्षा मिलने में सुविधा होती है।

हम यह कह सकते हैं कि रचनात्मक कामों में खासतौर से शिक्षा के सामने बीकानेर के जाट संतोषजनक गति से आगे बढ़ रहे हैं।

जाट विद्यालय संगरिया

पुराने जमाने में भारतवर्ष में गुरुकुलों की प्रणाली थी। हरेक वंश का एक राज्य होता था और हर वंश का कोई न कोई एक व्यक्ति कुल गुरु होता था। उसी कुल गुरु का एक गुरुकुल होता था। जिसमें उस वक्त राज्य के बच्चे शिक्षा पाते थे।

शिक्षा की वह प्रणाली अवशेष नहीं किंतु संगरिया जाट हाई स्कूल वास्तव में बीकानेर के जाटों का गुरुकुल साबित हुआ। इसे जिन लोगों ने जन्म दिया वह आर्य समाजी विचार के पुरुष ही थे। इसलिए आरंभ से ही यह संस्था गुरुकुल के ढंग पर ही संचालित हुई। इसकी स्थापना अगस्त 1917 में स्थानीय चौधरी बहादुरसिंह भोबिया, स्वामी मनसानाथ, चौधरी हरजीराम मंत्री और चौधरी हरिश्चंद्र के प्रयत्न से हुई।

यह संस्था उस समय तक डावांडोल भी रही जब तक यह किसी ऋषि के हाथ में नहीं सौंपा गया। आजकल ऋषि


[पृ.118]: कहां है ! किंतु बीकानेर के देहातियों का यह सौभाग्य है उन्हें आज से 20 वर्ष पहले एक ऋषि का सहयोग मिला। उन राजर्ष स्वामी केशवानंद जी ने इस संस्था को एक आदर्श शिक्षा संस्था बना दिया। समस्त राजस्थान में इसके जोड़ की ऐसी शिक्षा संस्था नहीं जो इस की भांति पूर्ण हो।

राष्ट्र निर्माण के प्रत्येक प्रगति से शिक्षण संस्था अपने को पूर्ण बनाने में संलग्न है। इसमें शोध और पुरातत्व का विभाग है जो पालन और वैदनिक के विभाग हैं। यहां पर कताई, बुनाई, रंगाई, चित्रकला आदि की लोकोपयोगी शिक्षा दी जाती है।

बीकानेर के देहातियों के लिए, खासतौर से जाटों के लिए, यह एक तीर्थ है और ठीक वैसा ही पवित्र तीर्थ है जैसा बौद्धों के लिए सारनाथ और हिंदुओं के लिए बनारस। मैं इसे समस्त जांगल देश का एक सुंदर उपनिवेश और जीवन को स्फूर्ति देने वाला उच्चकोटि का शिक्षा आश्रम मानता हूं।

इसे पतना मोहक और उच्च रुप देने का सारा श्रेय स्वामी केशवानंद जी महाराज और उनके सहयोगियों को है।

ठाकुर गोपालसिंह जी पन्नीवाली और उनके पुत्र ने इस पवित्र शिक्षण संस्थानों को जमीन देने का सौभाग्य प्राप्त किया। जिन लोगों ने इस संस्था में आरंभिक शिक्षा प्राप्त करके आगे उच्च शिक्षा, औहदे आदि प्राप्त किए उनमें चौधरी शिवदत्त सिंह, चौधरी रामचंद्र सिंह, चौधरी बुद्धाराम, चौधरी सदासुख, चौधरी सूरजमल आदि पचासों और सज्जनों के नाम ओजस्वनीय हैं।

बीकानेर के जाट जन सेवकों की सूची

बीकानेर में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनकी सूची सुलभ संदर्भ हेतु विकि एडिटर द्वारा इस सेक्शन में संकलित की गई है जो मूल पुस्तक का हिस्सा नहीं है। इन महानुभावों का मूल पुस्तक से पृष्ठवार विस्तृत विवरण अगले सेक्शन में दिया गया है। Laxman Burdak (talk)

  1. चौधरी हरिश्चंद्र नैण (नैण), लालगढ़/पुरानी आबादी, गंगानगर....p.119-125
  2. चौधरी बहादुरसिंह भोबिया (भोबिया), विडंगखेड़ा/संगरिया, हनुमानगढ़ ....p.125-129
  3. चौधरी जीवनराम कडवासरा (कडवासरा), दीनगढ़, हनुमानगढ़ ....p.129-130
  4. चौधरी पौखरराम बेंदा (बेंदा), बादनूं, बीकानेर....p.130-131
  5. चौधरी मुखराम (----), ----, बीकानेर....p.131
  6. स्वामी चेतनानन्द (ढाका), रतनगढ़, चुरू....p.132
  7. मास्टर रामलाल, संगरिया, हनुमानगढ़....p.132-133
  8. चौधरी गंगाराम ढाका (ढाका), नगराना, हनुमानगढ़....p.133-135
  9. चौधरी नन्दरामसिंह (जाणी), कटोरा (फिरोज़पुर), बीकानेर....p.135-136
  10. चौधरी हरिदत्तसिंह (बेनीवाल), गांधी बड़ी, हनुमानगढ़....p.136-137
  11. चौधरी कुम्भाराम आर्य (सुंडा), फेफाना, हनुमानगढ़....p.137-138
  12. चौधरी हनुमानसिंह (बुड़ानिया), दूधवाखारा, चुरू....p.139-140
  13. सूबेदार शिवजीराम (सहारण), डालमाण, चूरु....p.140-141
  14. मेजर जीतराम निनाणा, निनाणा, हनुमानगढ़....p.141
  15. सूबेदार बीरबलसिंह (कसवा), उत्तराधाबास, हनुमानगढ़....p.141-142
  16. सरदार हरीसिंह (महिया), बिल्यूंबास महियान, चूरु....p.142-143
  17. चौधरी शोभाराम महला, फेफाना, हनुमानगढ़....p.143
  18. चौधरी हरिश्चंद्र ढाका (ढाका), ढाकावाली, बहावलपुर....p.143-144
  19. चौधरी शिवकरणसिंह चौटाला, चौटाला, हिसार....p.144-145
  20. चौधरी सरदाराराम चौटाला, चौटाला, हिसार....p.144-145
  21. पटवारी हंसराज (सहू), घोटड़ा, हनुमानगढ़....p.145-146
  22. चौधरी बद्रीराम (बेनीवाल), छानी, हनुमानगढ़....p.146
  23. चौधरी बहादुरसिंह (सारण), फेफाना, हनुमानगढ़....p.146-147
  24. चौधरी खूमाराम (.....), अकासर, बीकानेर....p.147
  25. कवि हरदत्तसिंह (भादू), सेरूणा, बीकानेर....p.147
  26. चौधरी रूपराम (मान), गोठा, चूरु....p.147-148
  27. मास्टर छैलूराम (पूनिया), गागड़वास, चूरु....p.148
  28. चौधरी चंदगीराम पूनिया (पूनिया), गागड़वास, चूरु....p.148
  29. चौधरी बुधराम (डूडी), सीतसर, चूरु....p.148-149
  30. चौधरी अशाराम (मंडा), बालेरा, सुजानगढ़, चूरु....p.149
  31. शीशराम श्योराण, पचगांव, भिवानी, हरयाणा....p.149
  32. स्वामी स्वतंत्रतानंद (स्वामी), गुसाइयों का बास, राजगढ़, चूरु....p.149
  33. स्वामी कर्मानन्द (कलकल), बिलोटा, भिवानी, हरयाणा....p.150
  34. चौधरी जीवनराम पूनिया (पूनिया), जैतपुरा, चूरु....p.150-151
  35. चौधरी मामराज गोदारा (गोदारा), मोटेर, हनुमानगढ़....p.151-152
  36. चौधरी चंदाराम (थाकन), मोटेर, हनुमानगढ़....p.152
  37. चौधरी केशाराम (गोदारा), उदासर, हनुमानगढ़....p.152
  38. चौधरी सहीराम (भादू), सिंगरासर, गंगानगर....p.152-153
  39. चौधरी छोगाराम (गोदारा), अकासर, बीकानेर....p.153
  40. चौधरी धर्माराम (सिहाग), पलाना, बीकानेर....p.153
  41. चौधरी सोहनराम (थालोड़), रतनसरा, चूरु....p.154
  42. चौधरी सुरताराम (सेवदा), खारिया कनीराम), चूरु....p.154
  43. चौधरी हीरासिंह (चाहर), पहाडसर, चूरु....p.154-155
  44. चौधरी मालसिंह (पूनिया), लोहसाना बड़ा, चूरु....p.155-156
  45. सूबेदार टीकूराम (नेहरा), बूंटिया, चूरु....p.156
  46. चौधरी रामलाल (बेनीवाल), सरदारगढ़िया, हनुमानगढ़....p.156-157
  47. चौधरी खयालीसिंह (गोदारा), ----, बीकानेर....p.157
  48. चौधरी अमिचन्द (झोरड़), झोरड़पुरा, हनुमानगढ़....p.157-158
  49. लेफ्टिनेंट सहीराम (झोरड़), नुकेरां, हनुमानगढ़....p.158
  50. चौधरी जसराज (फगेडिया), मोतीसिंह की ढाणी, चूरु....p.158-159
  51. चौधरी दीपचंदजी (कसवां), कालरी, चूरु....p.159
  52. चौधरी नौरंगसिंह (पूनिया), हमीरवास, राजगढ़, चूरु....p.159-160
  53. चौधरी पूरनचन्द (डूडी), धीरवास छोटा, चूरु....p.160
  54. चौधरी लक्ष्मीचन्द (पूनिया), ----, चूरु....p.160
  55. चौधरी मनफूलसिंह (बाना), ----, चूरु....p.160-161
  56. स्वामी गंगा राम, लालपुर, बीकानेर....p.161
  57. चौधरी रिक्ताराम (तरड़), जसरासर, बीकानेर....p.161
  58. चौधरी ज्ञानी राम (----), ----, गंगानगर....p.162
  59. चौधरी धन्नारामजी पटवारी (डूडी), छानी बड़ी, हनुमानगढ़ ....p.162-163

बीकानेर के जाट जन सेवकों की विस्तृत जानकारी

1. चौधरीहरीशचंद्र नैण

चौधरी हरीशचंद्र नैण

1. चौधरी हरीशचंद्र नैण - [पृ.119]: नैण गोत्र उनके पुरखा नैणसी के नाम चला है। दिल्ली-सरवरपुर वहां से संवत 1310 में भिराणी गांव में आकर बसे जो रियासत बीकानेर की तहसील भादरा में है। वहां से चलकर विक्रम संवत 1407 में इनके पुरखे लधासर में जो रतनगढ़ तहसील रियासत बिकानेर में है आबाद हैं। और थोड़े ही दिन पीछे उन्हीं की औलाद राजूराम लधासर में ही रहे। दुलाराम ने बछरारा, बाबूराम ने मीरापुर, हुकमाराम ने केऊ, लादूराम ने बींजासर आवाद किया। यह सभी गांव रियासत बीकानेर में हैं। दुलाराम की संतान का केवल हरिश्चंद्र के वंश-वृक्ष का विवरण इसके साथ दिया जाता है-

चेनाराम जी अपने पिता के इकलौते पुत्र थे। चेनाराम के 6 पुत्र द्वारा रामूराम 2 छोटे 3 बड़े थे। जिनका जन्म संवत 1905 विक्रम और देहांत संवत 1968 विक्रम में हुआ।

चौधरी हरिश्चंद्र का जन्म भादवा सुदी ग्यारस संवत 1940 के दिन बीकानेर की तहसील सरदारशहर के डाक गांव कुंतलसर में हुआ। उन दिनों में बीकानेर की गद्दी पर महाराजा डूंगरसिंह विराजमान थे। ड्योडी वाले रावजी महाराज खड़कसिंह जी थे। पट्टे के गांव शेरपुरा में रामूराम जी चौधरी थे। और महाराज की उन पर पूर्ण कृपा थी। राणासर के पट्टेदार कुंवर गुलाब सिंह से गाढी मित्रता और जयपुर के ठाकुर बीजराज जी और धान्दू के ठाकुर खुम्मन सिंह उनके पगडी बदल भाई थे। परंतु महाराज श्री चंपानामी पासवान से, जिन दिनों ड्योढ़ी में उनकी तूती बोल रही थी, गड़बड़ हो गई उसने


[पृ.120]: दरबार की रानी नरसीजी से शिकायत की। परिणाम यह हुआ कि रामूराम को शेरपुरा गाँव छोड़ना पड़ा। कुछ दिन गांव खारिया तहसील सिरसा में, जहां उनका भाई नथाराम नैन जैलदार था, व्यतीत किए।

चौधरी हरिश्चंद्र ने पहले खारिया में हिंदी पढ़ना आरंभ की। गणित में 40 तक पहाड़े, पौणा, सवैया, ढांचा ढैया हूँठा ढूँचा पहुंचा बड़ी एका, 11-11 के पहाडे पढ कर जोड़-बाकी-गुणा-भाग, जींस का हिसाब सीखा फिर श्री विष्णुसहस्त्रनाम, गीता महिप गंगालहरी, आशित्य कृष्ण पढ़कर संवत 1950 में 10 वर्ष की आयु में अपने गुरु जी गोस्वामी बद्रीप्रसाद जी के साथ उनके गांव सीहा गोठड़ा तहसील रेवाड़ी में उर्दू पढ़ने के प्रेम से चले गए। परंतु गुरुजी 2-ढाई महीने पीछे खारिया आ गए। इसे हरिश्चंद्र को भी वापस आना पड़ा।

जुलाई सन् 1894 में खारिया से 7 कोस दूर एक गाँव खेवाली में पढ़ने चले गए। वहां से आपसी पास थी और जनवरी 1901 ई. में सिरसा MB हाई स्कूल पंजाब यूनिवर्सिटी का मिडिल एंगलो वर्नाकुलर फारसी व संस्कृत सहित किया। जिलेभर में नंबर दूसरा रहा परंतु आर्थिक अवस्था ने आगे बढ़ने से रोक दिया।

श्रावण मास संवत 1959 (=1902 ई.): नौकरी की तलाश में पटियाला गए। उन दिनों में केऊ गांव के जाट नैण ने सरदार बहादुर सरदार गुरमुखसिंह जी साहब CIE काउंसिल के प्रेसिडेंट थे। जिनके पुत्र सरदार सुखदेव सिंह जी परंतु नौकरी नहीं मिली।

पंजाब की हाफ़िज़वादी तहसील में बंदोबस्त जारी था। वहां की पटवार चाही परंतु नहीं मिली।

सिरसा तहसील में सन् 1901-02 में बंदोबस्त जारी था।


[पृ.121]: उसमें कुछ दिन पैमाइश का काम सीखा और 8.11.1902 ई. को बीकानेर पहुंच गया।

महाराज श्री भेरुसिंहजी, जो उन दिनों मेंबर कौंसिल बीकानेर और महाराजा बीकानेर के पर्सनल सेक्रेटरी थे, उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने लंबे चौड़े वायदे तहसीलदार बनाने के किए और उनके जाल में फस गया परंतु वहां से ढोलकी सी पोल थी।

7.5.1903 ई. को उनकी निजी नौकरी छोड़नी पड़ी। कुछ दिन फिर इधर उधर भटकना पड़ा।

1.9.1904 ई. से बिकानेर सर्जन के दफ्तर में दफ्तर थर्ड क्लर्क 10 रुपए मासिक नौकरी पर लगा और हॉस्पिटल असिस्टेंट के इम्तिहान में शामिल होने का यत्न किया परंतु रेजिडेंसी सर्जन व चीफ मेडिकल ऑफिसर राजपूताना मुकाम आबू थी। चिट्ठी नंबर 1772 तारीख 14 अप्रैल 1975 के द्वारा सूचना मिली कि केवल मैट्रिक पास ही नए नियमों के अनुसार लिए जाएंगे। निराश होकर 19 जुलाई 1950 को जोधपुर सिविल सर्जन से तार द्वारा इस्तीफा मंजूर कराया।

20 जुलाई 1950 को अफसर माल बीकानेर में राजगढ़ की अहलमदी जुडिशियल पर 15 रुपये मासिक पर लगाया। साढ़े 3 साल पीछे 20 रुपए मिलने लगे। पौने 2 साल राजगढ़, पौने 2 साल चुरू, 5 महीना मिर्जावाला, 1 साल बीकानेर की तहसीलों में नौकरी करके 14 जुलाई 1910 को इस नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया और उसी दिन रियासत बीकानेर के वकीलों के इम्तिहान में बैठा जिसमें दूसरे दर्जे में पास हुआ।

अगस्त 1910 से वकालत शुरु की जिसे 36वां साल है जो अभी तक चल रही है। बचपन


[पृ.122]:या विद्यार्थी जीवन में पौराणिक शिक्षा मिलती रही। 1 सितंबर 1904 से आर्य समाज की हवा लगी, जिसने जीवन में परिवर्तन ला दिया। सत्य की खोज तभी से निरंतर जारी है और जीवनपर्यंत रहेगी।

आर्थिक अवस्था

पिताजी से धन, घर, जमीन कुछ भी नहीं मिला। हां! अमूल्य धन शिक्षा थोड़ा बहुत जो कुछ भी मिली यह पूज्य पिताजी की ही देन है और इससे हर प्रकार से संतोष है। तहसील गंगानगर और गांव लालगढ़ में घर और जमीन है।

आर्य समाज की कृपा से मनुष्य मात्र की उन्नति को लगन लगी इसीलिए उसकी मेंबरी जिसके रूप हैं सदस्यता, मंत्रित्व प्रधानत्व इत्यादि, 42 साल से निरंतर चली आ रही है। 1921 ई. में रामनगर में आर्य समाज भवन बनाया। पीछे मंडी गंगानगर में आर्य समाज मंदिर बनवाया। गौ रक्षा के लिए के एस जायसवाल के 1911 ई. में करोड़ों भारतीयों के हस्ताक्षरों से इंग्लैंड एक डेपुटेशन भेजने का आयोजन किया। बहुत से हस्ताक्षरों के साथ एक मुसलमान भाई के प्रयत्न व सहयोग के मार्फत ₹200/- उनको भेजे। जो सेवा मनुष्यमात्र के लिए जीवन का मूल मंत्र है उससे प्रथक कैसे रहा जाता।

शिक्षा प्रेम

जनवरी सन् 1918 से जाट विद्यालय संगरिया में


[पृ.123]:भाग लेना आरंभ हुआ। 25 वर्ष बराबर साल भर के अंदर 9 महीने इस संस्था के अर्पण रहे। अधिकांश मंत्रित्व का भार सिर पर रहा....

स्त्री शिक्षा की लगन सदा ही से पुरुष वर्ग से कम नहीं रही परंतु हत भाग्य देश के लिए इसके लिए सुविधा कहां। अभी तक इसकी चिंता ही में अपने को घुलाया जा रहा है। रामनगर में 1921 में कन्या पाठशाला खोली, मंत्री पद का भार सिर पर आया। भारी परिश्रम से 1934 ई. तक उसे चलाया गया। राज ने गंगानगर में कन्या पाठशाला खोल दी तो ₹800 नगद उस समय कमेटी के पास था मकान व उसका पट्टा, तमस्सुक रजिस्ट्रार इत्यादि लाला ईशरदास जी तहसीलदार व बाबू रामलालजी हेडमास्टर को सौंप दिया। उसके पीछे स्त्री शिक्षा का फुटकर काम करता रहा।

राजरोग

1. सबसे पहले स्वर्गीय बीकानेर महाराज ने एक कमेटी बैठाई जिसका आरोप था राज प्रबंधक 15 वर्ष पहले अच्छा था या अब, में भी गया उसमें साफ साफ कहने में आंतरिक शांति प्राप्त हुई।

2. सन् 1929 में बीकानेर की लेजिस्लेटिव असेंबली में खेती करने वालों की तरफ से नामजद मेंबर बनाया गया और 1941 तक रहा।

3. नगरपालिका गंगानगर में बनी तब उसका मेंबर बनाया गया और 1930 से 1936 तक मनोनीत मेंबर रहा।


[पृ.124]:

4. गंगानगर के आने पर कैनाल एडवाइजरी कमेटी बनी, सन् 1932 से 1940 तक उसका मेंबर रहा ।

5. ब्रिटिश इंडिया की देखा-देखी रियासत में भी बैंकिंग इंक्वायरी कमेटी बनी उसका मेंबर बनाया गया।

6. रियासत की एडमिनिस्ट्रेटिव कॉन्फ्रेंस में भी कई बार बुलाया गया।

7. लोट हाइनेस महाराज श्री गंगासिंह जी बहादुर का मेमोरियल बनाने की कमेटी बनी उसमें भी बुलाया गया।

8. नैवीलीग बीकानेर का भी मेंबर बनाया।

9. बर्डन कमेटी- वर्तमान महाराज के गद्दीनशीन होने पर एक कमेटी बनी इससे राय ली गई कि बीकानेरी प्रजा पर कौन-कौन से टैक्स हैं जो नहीं रहने चाहिए या किस-किस में सुधार होना चाहिए, इसमें भी बुलाया गया।

जातीय संस्था

1. जाट महासभा अखिल भारत वर्ष की एक मात्र संस्था है उसका मेंबर पुष्कर महोत्सव से, जो सन 1925 में हुआ, बनाया गया और अभी तक है।

2. अखिल भारतवर्ष की हिंदी साहित्य सम्मेलन एक ही संस्था है उसके भी सभासदों में नाम है।

संतान

1. हरिदेव, 3 दिन का ही था कि उसकी माता का देहांत हो गया। जेठ माह संवत 1968 (1911 ई.) का जन्म, 19 साल की अवस्था में पोकरराम - पूर्णराम जी बेंदा के यहां विवाह हुआ। मैट्रिक में पढ़ रहा था की 8 फरवरी 1932 ईस्वी को हार्ट फेल हो गया।

2. श्री भगवान, जन्म 8 फरवरी 1928 को, पिलानी बिरला कॉलेज में पढ़ता है।


[पृ.125]:

3. वेद प्रकाश- जन्म 24 जून 1931, पढता है।

वंशानुक्रम

आपका वंशानुक्रम इस प्रकार है.... दुलाराम (1360 ई. बछरारा) → (राजूराम) → बुधाराम → हरिराम → जुगलाराम (पूला) → सरदाराम (सादा) → आसाराम → अमराराम (दासाराम) → गोपालजी → भारूराम → हर्षाराम → लालाराम → हेमाराम → हीराराम → चेनाराम → रामू राम → 1.हिम्मत राम और 2. हरिश्चंद्र, दो पुत्र हुये।

हिम्मत राम के 1. रघुवीर और 2. त्रिलोक दो पुत्र हैं।

चौधरी हरिश्चंद्र के 1. श्री भगवान और 2. वेद प्रकाश

2. चौधरी बहादुरसिंह भौंभिया

चौधरी बहादुरसिंह भौंभिया

2. चौधरी बहादुरसिंह भौंभिया - [पृ.125]: चौधरी बहादुर सिंह भोमिया का जन्म चौधरी मोतीराम जी भोमिया जाट विडंगखेड़ा, जिला फिरोजपुर, निवासी के घर 60 वर्ष पूर्व हुआ। इनके पिता चौधरी मोतीराम जी साधारण जमीदार थे। अपने पिता के घर लाड चाव मे किशोरावस्था समाप्त की। चौथी श्रेणी तक उर्दू का अध्ययन किया।

बाल काल में ही चौधरी साहब के पिता का देहांत हो गया जिसके कारण घर में उनकी देख-रेख करने वाला कोई न रहा और वह स्वतंत्र हो गए। पिता से प्राप्त धन संपति के बल पर आपने फिजूलखर्ची को प्रोत्साहन दिया और इसी कारण डूम आदि मंगत जन रात-दिन इनकी यहाँ नजर आने लगे। व्यर्थ के अपव्यय आर्थिक दशा गिरा दी। आप थोड़े ही दिनों में सब संपत्ति समाप्त करके खाली हाथ हो बैठे। बाल काल की समाप्ति के साथ-साथ धन-संपत्ति भी समाप्त कर बैठे और जीवन निर्वाह का साधन खोजने के लिए विवश होना पड़ा।


[पृ.126]:

सर्वप्रथम आपने गांव डबली तहसील हनुमानगढ़ रियासत बीकानेर की पटवार आरंभ की। कुछ ही समय पटवारी रहे कि सन् 1914 का महायुद्ध आरंभ हो गया। आपने फोरन पटवार से त्यागपत्र दिया और फौज मे सिपाही भर्ती हो गए। कुछ ही दिनों में आप हवलदार हो गए। बीकानेर आर्मी में भर्ती होकर हवलदार तक पहुंचे कि आप की कार्यशैली, नए उत्साह और लग्नशीलता को देखकर दूसरे अर्थात विपक्षी जन डाह रखने लग गए और अब आइंदा आपकी तरक्की में बाधा पड़ने लगी। जब हवलदार से आगे आपको तरक्की नहीं दी गई और कोई साधन स्टेट ऑफिस को रास्ते पर लाने का न रहा तो अंत में वॉइस राय और कमांडर-इन-चीफ से सीधा पत्र व्यवहार किया। जिस पर वहां से इनकी मांग रियासत से पूरी करने पर चौधरी साहब को बीकानेर बुलाया गया और महाराजा भैरोंसिंह जी वाइस प्रेसिडेंट स्टेट काउंसिल व जनरल हरिसिंह ने उनको समझाया और स्टेट आर्मी में ही रहने के लिए जोर दिया और तरक्की देने का विश्वास दिलाया। महाराजा भैरोंसिंह जी ने उस समय चौधरी साहब को प्रसन्न करने और रियासत की फौज में ही रहने के लिए हां करवाने के वास्ते मारवाड़ी भाषा के मुहावरे पर इन शब्दों में संबोधन किया कि "घर के हाथी बाबरौ हुओ तो घर नहीं मारे"

चौधरी साहब अपने बात के पक्के थे। उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि जब तक तरक्की नहीं दी जाती रहने को हां नहीं करूंगा। उत्तर देकर वह वापस अपनी फौज में हनुमानगढ़ आ गए। उन्हीं दिनों दरबार साहब का हनुमानगढ़ दौरा हुआ। श्री दरबार साहब को पहले से सब ज्ञान था।


[पृ.127]:

उन्होंने चौधरी साहब को बुलाया और पीठ ठोक कर कहा कि "साबास बहादुर सिंह जिसो नाम विसो ही गुण हैं। "

इन सब बातों के होते हुये भी बीकानेर राज्य की फौज में हवलदारी से अधिकतर तरक्की नहीं मिली। चौधरी साहब यहां से नौकरी छोड़कर झांसी चले गए और 82 नंबर फौज में जाकर भर्ती हो गए। वहां आपको सुबेदार रैंक में भर्ती किया गया। जहां आप रंगरूट भर्ती करने पर लग गए। आपको भर्ती करने वाले कमांडिंग ऑफिसर भर्ती करते ही विलायत चले गए और आर्डर बुक नहीं कराया गया जिससे आप सिर्फ किर्च वाले सूबेदार रह गए। रंगरूटों के भर्ती का काम आपने बड़े जोर शोर से किया और हजारों रंगरूट आपने गवर्नमेंट को सप्लाई किए।

फौज से अवकाश प्राप्त करके आप लौट आए। घर लौट आने के बाद एक बार स्वामी मनसानाथ जी के साथ हरिद्वार गए। हरिद्वार पर आपको एक साधु मिला जिसने समझाया कि यहां क्या खोजते हो? तुम्हारी देश और जाति तो अंधकार में डूबी पड़ी है। तुम्हें कुछ करना है तो वहीं जाकर शिक्षा का प्रचार करो। उस साधू की बात इनके ऐसी घर कर गई कि हरिद्वार से लौटते ही अगस्त सन् 1917 में हनुमानगढ़ में स्कूल स्थापित कर दिया। परंतु यहां का जलवायु अच्छा नहीं होने के कारण दिसंबर 1917 में स्कूल यहाँ से संगरिया ले गए। और मिडिल स्कूल के रूप में वहाँ स्कूल आरंभ किया जो इस समय जाट हाई स्कूल संगरिया के नाम से विद्यमान है। आरंभ काल में इस मिडिल स्कूल के अधीन गोलूवाला, मटोली, घमूड़वाली,


[पृ.128]:

मलकसर, हरिपुरा, दीनगढ, पन्नीवाली, नगराना, नुकेरा इत्यादि में ब्रांच स्कूल खोले।

मिडिल स्कूल स्थापित करके आप घर बैठ गए हों ऐसी बात नहीं। उन्होंने उसे स्कूल के निमित्त तन, मन, धन सब अर्पण कर दिया। रात दिन स्कूल के ही काम में लगे रहते और उन्हें दूसरा कोई काम दिखाई नहीं देता था। स्कूल की उन्नति के लिए चंदा आदि करने के लिए बड़ी बड़ी दूर तक घूमते रहे। एक बार की बात है आप चंदा करने के लिए डलहौजी पहाड़ पर 42 मील पैदल सफर करके मिस्टर रुड़किन रेवेन्यू मिनिस्टर बीकानेर स्टेट के पास जा पहुंचे। साहब ने पैदल ही एक दिन में आया देख बड़ा अचंभा किया।

एक बार स्कूल में पैसे की कमी आ गई। अपने अपने दृढ़ निश्चय अनुसार प्रतिज्ञा कर ली कि निश्चित तिथि तक ₹10000/- ना हुये तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगा। इस भीषण प्रतिज्ञा का समाचार सुन देश जाति ने आपकी प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिए चौधरी छोटूराम जी के सभापतित्व में 27 मार्च 1921 को जलसा किया और ₹10000/- के स्थान पर ₹11000 एकत्रित कर दिए।

आप 7 वर्ष ही स्कूल की सेवा कर पाए। 1 जून 1724 को आपका स्कूल में देहांत हो गया। आपका अंतिम संस्कार वैदिक रीति अनुसार विद्यालय भूमि में ही कराया गया। आपने अपने जीवन में इस स्कूल की जो सेवा की है उसका प्रतिफल आज यह विद्यालय हाई स्कूल के रूप में विद्यमान है। आपके बारे में गीत मशहूर है-

चले गए जगावन हार।

[पृ.129]
सेवा कर गया शेर बहादुर जाति का उपकारी॥
बिगड़ी दशा बागड़ की बना दी लगा दई फुलवारी
कौम कब होवेगी खड़ी - चला गया जगावन हार॥
चौधरी जीवनराम कड़वासरा

3. चौधरी जीवनराम कड़वासरा [पृ.129]: पिता का नाम चौधरी कुशलाराम जी गांव दीनगढ़ तहसील हनुमानगढ़ है। आपका जन्म संवत 1953 चैत बड़ी 11 अर्थात 3 मई 1896 को हुआ। चौधरी कुशलाराम जी के तीन पुत्र हुये:

1. चौधरी पेमाराम जिनके पुत्र चौधरी रामचंद्र सिंह बीएएलएलबी डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज गंगानगर हैं। चौधरी रामचंद्र सिंह से दो छोटे हैं जो जम्मीदारी करते हैं।

2. पेमाराम जी से छोटे चौधरी गणेशाराम जी खेतीबाड़ी करते हैं।

3. जीवन राम जी की संतान 3 हैं: लड़के दो लड़की एक। बड़ा हरिश्चंद्र बीएससी बीकानेर में पढ़ते हैं। मंझला मनीराम FA चुरू में पड़ता है। छोटे बलबीर सिंह उर्फ अविषासी। बड़ी भाई कुंवर मोहनीदेवी प्रभाकर, छोटी आशा देवी पढती है डिस्ट्रिक्ट बोर्ड पूरबगढ़ में म्युनिसिपल बोर्ड, हनुमानगढ़ और असेंबली बीकानेर के मेंबर हैं।

विशेषता - म्यूनिसिपल बोर्ड हनुमानगढ़ के लिए 5 बार चुनाव लड़ा, 5 बार जीते। डिस्ट्रिक्ट बोर्ड में दो बार चुनाव लड़ा दोबारा चुनाव जीता। असेंबली में भी चुनाव से पिछली बार गए थे।

खेती के अलावा 20 वर्ष से गवर्नमेंट बीकानेर के रेलवे और कैनाल के कॉन्ट्रैक्ट हैं।

चौधरी जीवनराम एक जिंदादिल आदमी है। लंबे और तगड़े शरीर पर हंसमुख चेहरा आपकी विशेषता है।


[पृ.130]:हिम्मत के आप आप धनी हैं पिछले सत्याग्रह संग्राम में जेल यात्रा भी कर आए हैं। समाज सुधारक आप पक्के हैं। लड़कों की भांति लड़कियों को भी उच्च शिक्षा दिलाने का आपने उदाहरण पेश किया है। आप चौधरी हरिश्चंद्र की तरह की जाट जाति में अखिल भारतीय फेस के आदमी हैं। आपकी जाति सेवा में पुरानी और सदैव याद रहने वाली चीजें हैं।

चौधरी पोखरराम जी

4. चौधरी पोखरराम जी - [पृ.130]: किसी दिन राजस्थानी जाटों में दो घराने दान देने में बड़े प्रसिद्ध थे। एक चौधरी लादूराम जी रानीगंज खंडेला और दूसरे चौधरी पोखरराम जी बिकानेर निवासी बीकानेर। आप बेन्दा गोत्र के जाट हैं। आपके पिता चौधरी गांव बदनू के रहने वाले हैं। बचपन में आपने मामूली शिक्षा ग्रहण की।

अपने बाहुबल से आप ने काफी धन कमाया और अपनी इज्जत को ऊंचा किया। उन्होंने सरकारी कामों के ठेके लेकर अपने शिल्प निपुणता का परिचय दिया और फिर उन्होंने बीकानेर में एक मिल का आयोजन किया।

साहसी ही लोग जिस प्रकार धन कमाते हैं उसी प्रकार वे धन को लगा देते हैं। साहस के साथ किए हुए धंधे में जिस प्रकार अंधाधुंध मुनाफा होता है उसी प्रकार घाटा भी हो जाता है। यही आपके अपार धन का हुआ।

अंधे के धक्के की भांति आपको घाटा का धक्का लगा। आपने संगरिया जाट स्कूल की सदा पूर्ण सहायता की


[पृ.131]:आपके छोटे भाई चौधरी पूरणसिंह जी हैं। वह भी एक अच्छे व्यवसाई हैं किंतु घाटे के चक्कर में वे भी रहे। दोनों भाइयों ने जाट इतिहास के छपाने में पूर्ण और प्रसन्नतापूर्वक सहायता दी। बीकानेर शहर में आप की अच्छी जायदाद है।

आपका कौमी प्रेम का परिचय इससे मिलता है कि आपने अपनी दुकानें तुड़वाकर जाट धर्मशाला बनवा दी।

5. चौधरी मुखरामजी

5. चौधरी मुखरामजी - [पृ.131]: कोई आदमी भावनाओं से अपनी कौम की खिदमत करता है। कोई सर्वस्व त्यागकर। चौधरी मुखराम जी की आंतरिक भावना सदैव अपने कौम को ऊंचा देखने की रही है और शिक्षा कार्य में उन्होंने तथा उनके पुत्र भीम सिंह जी ने दान भी दिया किंतु उन्होंने सामने आने की कभी हिम्मत नहीं की। वह सरकारी सर्विस में जब से आए बराबर तरक्की की। कहना चाहिए कि जहां तक एक मुलाजिम अपनी योग्यता से बढ़ सकता है। बड़े तहसीलदार से नाजिम और फिर रेवेन्यू सेक्रेटरी के पद पर पहुंचे। जिन दिनों चौधरी ख्यालीराम गोदारा बीकानेर दरबार ने पॉपुलर मिनिस्ट्री में लिए थे। वे रेवेन्यू सेक्रेटरी थे। एक सच्चे सबार्डिनेट की स्थिति से उन्होंने ड्यूटी पूरी की।

वे एक अत्यंत समझदार आदमी हैं और संकटपूर्ण स्थितियों से बचते हुए "जो बनिआवे सहज में ताही मे चित देय" सिद्धांत के अनुसार काम करते हैं। यदि आपने समझ के अनुरूप ही साहस भी होता तो बीकानेर के जाटों की एक प्रमुख नेता होते किंतु यह मनुष्य के अपने हाथ की बात नहीं है।


6. स्वामी चेतनानन्दजी - [पृ.132]: राजस्थान के साधु-संतों में, जिनसे मेरा परिचय है, उनमें रतनगढ़ के स्वामी चेतनानंद जी के लिए मेरे हृदय में काफी श्रद्धा है। मैंने उनके दर्शन सबसे पहले सन् 1932 में, जब वे अपने शिष्यों समेत झुंझुनू जाट महोत्सव में शामिल हुए थे, परिचय हुआ। बीकानेर के इस हिस्से में वे गरीब लोगों की गुरुकुल ढंग से संस्कृत और हिंदी की शिक्षा देते रहे हैं। उन्हीं के शिष्यों ने अबसे 6-7 साल पहले विद्यार्थी भवन रतनगढ़ को उन्नत रूप दिया है।

स्वामी चेतनानंद जी के दिल में अभागी और बावली कौम के कल्याण के लिए कितनी गहरी साध है उनकी झांकी कभी-कभी मुझे उनके पत्रों से होते रही है जो कि उन्होंने यदाकदा आशीर्वाद और परामर्श के रुप में लिखे।

उनके जैसे निर्लिप्त साधुओं की बड़ी कमी है। रतनगढ़ उसके सुदूरवर्ती इलाके में स्वामी चेतनानंद जी का बड़ा आदर है।

आप दादूपंथी साधु हैं। आपके विद्यालय का नाम दादू विद्यालय के नाम से प्रसिद्ध रहा था।

7. मास्टर रामलाल - [पृ.132]: आरंभ में स्वामी चेतनानंद के चरणों में बैठकर शिक्षा पाने वाले और फिर स्वामी केशवानंद के इच्छा पर प्रयुक्त करने के लिए अपनी सेवाएं अर्पित करने वाले एक नौजवान को आजकल मास्टर रामलाल कहा जाता है। मैं उन्हें वीरभद्र के नाम से पुकारता हूं। वह संगरिया में और


[पृ.133]:मरुभूमि शिक्षण संस्था में व्यायाम शिक्षा देते हैं। हिसार के प्रसिद्ध जाट कलाकार चौधरी लवण सिंह से उन्होंने फोटोग्राफी और चित्रकार की शिक्षा ग्रहण की। लाठी, तलवार और धनुर्विद्या उन्होंने जाट रत्न स्वामी गोपालदास जी से सीखी। स्वामी केशवानंद महाराज के साथ उन्होंने कैलाश यात्रा भी की है। वे एक आदर्श नौजवान हैं।

8. चौधरी गंगारामजी ढाका वकील: [पृ.133]: सन् 1932 का साल और जाड़े का मौसम। भादरा में मैं वहां लोक नायक श्री खूबरामजी शर्राफ़ और उनके बहादुर भतीजे श्री सत्यनारायण जी शर्राफ़ से मिलने गया था। वह एक लंबे और पुष्ट शरीर वाले जाट वकील से श्री खूबराम जी से परिचय कराया। यह जाट वकील श्री गंगाराम जी वकील थे। आपके पिता का नाम चौधरी छोटूराम जी और जन्मभूमि खारिया जिला हिसार है।

चौधरी गंगाराम जी प्रसन्नमुख और विनोदी स्वभाव के आदमी हैं। वह निधड़कता से आतंक के दिनों में भी मुझसे मिले। बीकानेर राज्य तहसील हनुमानगढ़ में नगराना बास उनकी भूमि है। उन्होंने आरंभ में उन तमाम मुसीबतों को उठाया है जो पढ़े लिखे और कौम परस्त हर एक जाट के लिए बीकानेर के सामंत शाही शासन में कर्मरेख के रूप में लिखी हुई थी। इसीलिए तो आपको अपनी थानेदारी छोड़नी पड़ी और वकालत को अपनाना पड़ा।

चौधरी गंगाराम जी जहां अच्छे वकील हैं वहां उन्होंने कौम की सेवा में भी अच्छी दिलचस्पी ली है। उदार वृति के


[पृ.134]: नेताओं की भांति उन्होंने अपनी कौम को आगे बढ़ाने की आकांक्षाएं रखी हैं।

बीकानेर के जाट महारथी चौधरी हरिश्चंद्र और जीवनराम जी के पुराने साथियों में से हैं और एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। आपके दूसरे भाई चौधरी मनीराम जी हैं। आपने भादरा के बोर्डिंग हाउस को जिंदा संस्था बनाने की पूरी कोशिश की है। इस समय आप नागराना तहसील हनुमानगढ़ में रहते हैं।

इनके दादा चौधरी देदारामजी तहसील हनुमानगढ़ के टीबी गांव में रहते थे। खारिया में इनकी ननसाल थी। इन गांवों के हक मालिकाना, बीच में अर्थात 19 वी शताब्दी के आख़िर में, जब बीकानेर दरबार ने जप्त किए तो इनके दादा खारिया जिला हिसार चले गए। आप की मां का देहांत, जबकि आप दूध पीते बच्चे थे हो गया। दादी ने लालन पालन किया। संवत 1958 में आपके पिता आगरा के स्वामी बाग में चले गए।

आपकी माँ का देहांत जबकि आप दूध पीते थे हो गया। दादी ने लालन पालन किया। संवत 1958 में आपके पिता आगरा के स्वामी बाग में चले गए जहां वे राधास्वामी मत के लोगों के बच्चों को पढ़ाने का काम करने लगे।

सन् 1914 में चौधरी गंगाराम ने चौधरी हरीश चंद्र जी जमादार के सहयोग से अर्जीनवीस की सनद हासिल की और सन् 1916 में पुलिस इंस्पेक्टरी पास करके बीकानेर की पुलिस में इंस्पेक्टर हो गए किंतु डीआईजी सबलसिंह ने, जो कि जाटों की परछाई तक से नफरत करते थे, आपको पुलिस में नहीं निभने दिया।

सन् 1928 से आपने वकालत आरंभ कर दी। इससे आपको उन दिनों ₹500 और ₹600 माहवार की आमदनी होने लगी। अच्छी आमदनी की अच्छी बचत से आपने हजारों


[पृ.135]:बीघे जमीन मलड़खेड़ा और कॉलोनी क्षेत्र में खरीद ली। पिछले वर्ष जमीन बेचकर लगभग ₹6000 सालाना आमदनी की और आपने गंगानगर में दुकानें खरीद ली हैं। आप आर्य समाजी ख्यालात के आदमी हैं। कांग्रेस के कामों में भी आपने मदद दी है। सन् 1935 में आप के इकलौते पुत्र का देहांत हो गया इससे आपको बड़ा धक्का लगा और तभी से वकालत छोड़कर एकांत का जीवन बिताते हैं।

9. चौधरी नंदराम सिंह- [पृ.135]: गोरा रंग और भरा हुआ चेहरा और सभ्यतापूर्ण रहन-सहन। इस प्रकार के एक नौजवान का जब मुझे परिचय कराया गया तो बहुत प्रसन्न हुआ। यह नौजवान चौधरी नंदराम जी के नाम से बीकानेर राज्य में मशहूर है।

चौधरी नंदरामसिंह जाणी गोत्र के जाट हैं। आपके पिता का नाम चौधरी सांवलराम जी है। जो जिला फिरोजपुर के कटोरा गांव में भी अपनी जम्मीदारी रखते थे। उन्हीं के यहां संवत 1968 में श्री नंदराम सिंह का जन्म हुआ। उन्होंने दसवीं क्लास तक संगरिया और हिसार में शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद बीकानेरी कानून का अध्ययन किया और आपने वकालत का धंधा आरंभ कर दिया। सन् 1935 से आप वकालत कर रहे हैं। आपके तीन भाई और हैं- जयमल सिंह, दूल्हाराम और रामस्वरूप जी। इनमे से रामस्वरूप जी एक्साइज इंस्पेक्टर हैं।

आर्य मनु और राजेंद्र कुमार आपके लड़के हैं जो तालीम पाते हैं।


[पृ.136]:आप अपनी कौम की तरक्की के कामों में पूरी दिलचस्पी लेते हैं। आप जाट हाई स्कूल संगरिया में 1945-46 में सेक्रेटरी रहे।

चौधरी हरिदत्तसिंह

10. चौधरी हरिदत्तसिंह-[पृ.136]: सन् 1946 के किसी महीने में चौधरी कुंभाराम जी भरतपुर मेरे पास आये। उनके साथ पुष्ट शरीर और सांवले रंग का एक सुंदर नौजवान और था। यह नल-नील की जोड़ी थी। आत्मसंयम और कम बोलने में वह नौजवान चौधरी कुंभाराम से भी आगे था। मेरे पास बीकानेर में कुछ करने के लिए योजना पूछने को आए थे। मैं स्वयं उन दिनों अत्यधिक उलझन में फंसा हुआ था। इसलिए सिवाय इसके कुछ अधिक उन्हें नहीं बता सका कि 'जनसंपर्क बढ़ाकर कोई आंदोलन खड़ा कर दो' किन्तु मैं इस पक्ष में नहीं था कि प्रजा परिषद में जाएं। मैं चाहता था कि वह किसान सभा बनाएं।

उन लोगों ने देश काल की स्थितियों के अनुसार अपने लिए जो उचित समझा वह मार्ग ग्रहण किया। सन् 1946 में बीकानेर में राजनीतिक आंदोलन खड़ा हो गया और एक दिन सुना कि चौधरी हरिदत्त सिंह मुंसिफ़ी छोड़ दी है और वे बीकानेर जेल में हैं।

जब हमारा डेपुटेशन बीकानेर गया तो मैंने अपने साथियों के साथ चौधरी हरिदत्त जी और उनके दूसरे जेल के साथियों से मुलाकात की और उसी समय मेरे दिमाग में आया कि 3 वर्ष पहले यह नौजवान जब मेरे पास भरतपुर पहुंचा था तब क्या यह उम्मीद थी कि अपने सरकारी पद को इस प्रकार लात मार देगा। उसी समय मेरे दिमाग में यह


[पृ.137]: भी आया कि यही जवान किसी दिन बीकानेर का प्रधानमंत्री भी होगा। आज वे बीकानेर के उप-प्रधानमंत्री हैं और यह सत्य है कि कुछ ही दिनों में वह स्वप्न भी पूरा होगा।

आप भादरा तहसील में बड़ी गांधी के रहने वाले चौधरी खेताराम जी के सुपुत्र हैं। और बेनीवाल आपका गोत्र है। आपके पिताजी एक प्रतिष्ठित जाति हितेषी पुरुष हैं। उन्होंने जाट बोर्डिंग भादरा को लगभग 1000 रु में जमीन खरीद कर दान की थी और एक कमरा भी बनवाया था। आप चार भाई हैं - श्री चंदूलाल, पतिराम और दयाराम जी आपसे छोटे हैं।

ऊंचा चरित्र, मिलनसारी, गंभीर स्वभाव, और सहनशीलता आप के विशेष गुण हैं। एक शासक के लिए दृढ़ता, कूटनीतिज्ञता और सतर्कता की भारी आवश्यकता है। जिससे आप शीघ्र ही अपना काम अपने मिशन में पूरे होंगे ऐसी पूर्ण आता है।

चौधरी कुंभाराम जी

11. चौधरी कुंभाराम जी - [पृ.137]:बीकानेर में पुरानी पीढ़ी अगर चौधरी हरिश्चंद्र जी और चौधरी जीवनराम जी को याद करेगी तो नई पीढ़ी चौधरी कुंभाराम को हमेशा महत्व देगी। यद्यपि बीकानेर की कैबिनेट में एक मंत्री रहे हैं किंतु इस से पहले 2 वर्ष तक उन्होंने बड़े कष्ट का जीवन बिताया है। वे और उनकी पत्नी बराबर बाहर मारे मारे फिरे हैं, और भीतर जागृति की बड़वानल चेताई है।


चौधरी बीकानेर की पुलिस में थानेदार थे उनकी योग्यता ऊंचा उठाने का ताजा करती थी और


[पृ.138]: राठौरशाही के पुर्जे उसे दबाना चाहते थे। आखिर तंग आकर उन्होंने नौकरी को लात मार दी और राजनीति के क्षेत्र में कूद पड़े। 2 वर्ष तक अदम्य साहस के साथ उन्होंने काम किया और बीकानेर की सरकार झुक गई।

वे एक लंबे अरसे से अपने समाज की सेवा करते आ रहे हैं। बीकानेर के शिक्षित नौजवानों में उन्होंने सर्विस में रहते हुए काफी जीवन पैदा किया था।

आप बीकानेर राज्य की नोहर तहसील में फेफाना ग्राम के रहने वाले हैं। आपका गोत्र सुंडा है। चौधरी भैरूराम जी आपके पिता का नाम है। शिक्षा आपने गांव की आरंभिक पाठशाला में ही प्राप्त की। उसके बाद महकमा जंगलात में मुलाजिमत की और शिक्षा संबंधी योग्यता को सर्विस में रहते हुए बराबर बढ़ाते रहे।

जवानी के आरंभ में ही आप पर आर्य समाजी खयालात का असर पड़ चुका था। इसलिए अपने कौम की सामाजिक बुराइयों को दूर करने में बराबर प्रयत्न शील रहे।

बीकानेर राज्य प्रजा परिषद पर अधिकार करके आप ने बुद्धिमानी का अद्भुत परिचय दिया। उसे आपने किसान बहुल संस्था का रूप दे दिया।

आप एक गंभीर और मननशील नौजवान हैं। कहने से पहले सोचते हैं और जितना करना होता है उसे कम कहते हैं। घबराहट से बचते हैं। यही आप के गुण हैं जो आपको इस कदर बढ़ा ले गए हैं।

आपका जन्म संवत 1972 विक्रमी में हुआ था। आपके बड़े लड़के का नाम विजयपालसिंह है। बच्चे और बच्चियां सभी शिक्षा पा रहे हैं।


चौधरी हनुमान सिंह

12. चौधरी हनुमान सिंह - [पृ.139]: सन् 1936 के किसी महीने की बात है। बीकानेर का एक नौजवान आगरा में आकर मुझसे मिला। उन दिनों हम आगरे से 'गणेश' नाम का साप्ताहिक पत्र निकाल रहे थे। उस नौजवान के दिल में कोई दर्द था। दर्द ऐसा कि जिसकी माप-तोल मुझ से नहीं हो सकी। इस दर्द के साथ ही करो या मरो की बलवती भावना प्रज्वलित थी। उसने कहा राजस्थान के तमाम जाट आपकी और निगाह लगाए बैठे हैं। बीकानेर में जिस तरह का अपमानित जीवन हमें बताना पड़ रहा है वह असह्य है। आप हमें बताइए हम क्या करें। मैंने उसे कहा "मुसीबतें दूर तभी होती है जब उनसे भी अधिक मुसीबतों को निमंत्रण दिया जाता है और उन्हें हँसते-हँसते झेला जाता है।"

इसके बाद सन् 1945 से मैंने अखबार में पढ़ा दूधवाखारा के जाट खानाबदोश किए जा रहे हैं। महाराजा के कृपापात्र सेक्रेटरी और एक दुर्दांत जागीरदार के खिलाफ खड़े होने वाला वही नौजवान चौधरी हनुमान सिंह था। जो सन 1936 में मुझसे मिलने आगरा आया था। 9 वर्ष पहले की हनुमान सिंह की बातें याद आ गई। अब मेरे हाथ में "किसान" अखबार था। "किसान" में जो कुछ हो सका और मुझसे जितना बन सका हनुमान सिंह के लिए किया है। चौधरी हनुमान सिंह से तभी से मुझे स्वाभाविक प्रेम है और मैं उन्हें बीकानेर के जाटों के लिए हनुमान और भीम के रूप में आया एक पुरुष मानता हूं।

चौधरी हनुमान सिंह की तो एक स्वतंत्र जीवनी लिखी


[पृ.140]: जानी चाहिए। इस लेख में तो उनका संक्षिप्त परिचय मात्र है।

तहसील चुरू के दूधवाखारा गांव में बुड़ानिया गोत के भरमर चौधरी उदाराम जी के घर आज से 36-37 वर्ष पहले चौधरी हनुमान सिंह का जन्म हुआ। आप पांच भाई हैं - 1. बेगाराम, 2. सरदाना राम, 3. पेमाराम, 4.गणपत राम और 5. हनुमान सिंह

बीकानेर के राठौड़ी शासन ने आपके परिवार को, न केवल आपको, ठीक वैसा ही दरदर का भिखारी बनाने की कोशिश की जैसा कि अकबर की बादशाह ने राणा प्रताप के लिए की थी। मुझे खूब मालूम है कि जब हम (जाट महासभा का डेपुटेशन) बीकानेर के प्रधानमंत्री सरदार पन्निकर से मिले तो उस समय के खत्री आईजीपी ने यह खुले तौर पर कहा था कि अगर हनुमान सिंह और उसके आदमियों को छोड़ा जाता है तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। इस पर मैंने आईजीपी को यह कहकर डांटा था कि तुम महाराजा सादुल सिंह के सेवक नहीं दुश्मन हो क्योंकि तुम चाहते हो कि यहां झगड़ा किसी सूरत में शांत ना हो। खैर हनुमानसिंह आज भी जिंदा है और उसकी धाक सारे सरकारी वर्ग पर है। यह कहना पड़ेगा कि उनका परिवार शहीदों का परिवार है।

सूबेदार शिवजीराम

13. सूबेदार शिवजीराम - [पृ.140]: खेद है कि सूबेदार शिवजीराम आज हमारे बीच में नहीं है परंतु स्मृति अभी ताजा है। उन्होंने आज से 10 साल पहले अबोहर के दीपक में अबोहर पर ही एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने एक नई जानकारी इतिहासकार को यह दी थी कि अबोहर अभयसिंह भाटी का स्थापित किया हुआ है। और


[पृ.141]:यह नाम अभयगढ़ का अपभ्रंश है। इतिहास से उन्हें प्रेम था। अक्खासर उनकी जन्मभूमि थी। कौमी शिक्षा के मामले में अपने नेक कमाई में से दान करने में कभी नहीं चूकते थे। आपका गोत्र सारण था।

14. मेजर जीतराम

14. मेजर जीतराम - [पृ.141]: आजाद हिंद फौज का नाम आज बच्चा बच्चा जानता है। फौज में प्रत्येक जिले के अनेकों जाट शामिल थे। इनमें मेजर जीतराम का नाम प्रमुख है। आप बीकानेर राज्य में भादरा तहसील के निनाणा गांव के रहने वाले जाट सरदार हैं। सिंगापुर पतन के बाद जब अंग्रेज अफसर हिंदुस्तानी सैनिकों को उनके भाग्य के भरोसे छोड़ कर पीछे हट गए तब नेताजी सुभाष चंद्र की अपील पर आप बजाए स्वदेश लौटने के उनकी आजाद सेना में शामिल हो गए और चिंद्पिन (वर्मा) की पहाड़ियों तक के प्रदेशों तक आजादी का बिगुल बजा दिया। नेताजी के गायब होने के बाद आप स्वदेश लौट आए तब से अपने देहाती भाइयों की सेवा करते हैं।

15. सूबेदार बीरबलसिंह: [पृ.141]: हम वर्षों से उन्हें इसी नाम से जानते हैं। अब तो उन्हें आनरेरी सेकेंड लेफ्टिनेंट का रैंक और मिल गया है। आप भादरा तहसील के उत्तराधाबास के चौधरी जीराम जी के सुपुत्र हैं। आपने सन् 1910 (?) मैं फौज में जाकर देश-विदेश की शहर की और वहीं से सन् 1922 में आर्य समाज खयालात को ले लेकर लौटे। तब से आप अपनी कौम की शिक्षा और समाज


[p.142]: सुधार संबंधी बातों में बराबर दिलचस्पी लेते हैं। 1925 में आपने भादरा जाट बोर्डिंग हाउस की नींव डाली।

जाट इतिहास लिखते समय मुझे उन्होंने बीकानेर के जाट इतिहास के बारे में काफी बातें बताई जो किसी किताब में नहीं थी। आपने अपने गांव में सन् 1917 से एक पाठशाला चला रखी है।

वह बीकानेर के पुराने जाट सेवकों में से एक हैं और उनकी काफी प्रतिष्ठा है। जाट महासभा के लोग भी उन्हें सदैव इज्जत की निगाह से याद करते हैं। उन्होंने भादरा जाट हाउस को तो काफी मदद दी। जाट हाई स्कूल संगरिया को भी पूर्ण सहयोग दियाहै।

उनका अच्छा स्वास्थ्य और सीधा स्वभाव तथा शारीरिक स्वच्छता उनके विशेष गुण हैं। उनका संवत 1935 विक्रम में भादो सुदी 14 को जन्म हुआ था। आप कसवां गोत्र के जाट हैं। आपके दो पुत्र हैं - 1. श्री गिरधर सिंह, आजकल तहसीलदार हैं। और 2. यज्ञदेवजी, गिरदावर हैं। पोते प्रताप सिंह कॉलेज में शिक्षा पाते हैं।

16. सरदार हरिसिंह - [पृ.142]: इस नौजवान को मैंने सन् 1932 में जाट विद्यार्थी कांफ्रेंस के अवसर पर चौधरी ख्याली सिंह गोदारा के साथ सर्वप्रथम पिलानी में देखा था। तब शायद आप पढ़ते थे। इसके बाद दो तीन बार मुलाकात हुई। इस समय आप वकालत करते हैं। बीकानेर के आखरी आंदोलन में आपका प्रमुख हाथ रहा है। आप उच्च शिक्षित तो हैं ही साथ ही काफी


[p.143]: समझ्दार भी हैं। इस समय आप की अवस्था 38-39 साल के आसपास है। आपके पिताजी का नाम सरदार कानसिंह है। आप की जन्मभूमि तहसील सरदारशहर के बिल्लू गांव में है। आप महिया गोत्र के जाट हैं।

17. चौधरी शोभारामजी - [पृ.143]: बीकानेर राज्य की तहसील नोहर के फेफाना गांव में अब से 33-34 साल पहले महला गोत्र के चौधरी गंगाराम जी के घर आपका जन्म हुआ। आपके दो भाई और हैं जो घर पर खेती का काम करते हैं। आपने कौमी सेवा के लिए एक व्रत लिया हुआ है। वह यह कि अभी तक आपने शादी नहीं की है। और अपनी आजीवन सेवाएं जाट हाई स्कूल संगरिया को सौंपी हुई है। आपने बीकानेर के राष्ट्रीय आंदोलन में भी पूर्ण भाग लिया है। आपकी बुद्धि और विचार अच्छे हैं।

चौधरी हरिश्चंद्रजी ढाका

18. चौधरी हरिश्चंद्रजी ढाका - [p.143]: जिनका सर्वस्य पाकिस्तान ने हज्म कर लिया, बड़ी जिम्मेदारी और अच्छी खासी पूंजी, कुछ भी अपने साथ नहीं ला सके। कुछ ही मिनटों में जो साह से मोहताज हो गए उन चौधरी हरिश्चंद्र ढाका को भरतपुर में प्रवास करने की इच्छा से आया देखकर मैं सन्न रह गया। बहावलपुर रियासत में उनका और उनके छोटे भाई हरिदत्त सिंह का बड़ा पैसा रहा था। नदियों के पानी से सींचे जाने वाली हजारों बीघे जमीन उनके पास थी। मैंने देखा भरतपुर की जमीन में यह क्या कमा सकेंगे।


[p.144]:और भरतपुर का भाग्य स्वयं खतरे में है। इसलिए उन्हें भरतपुर में बसाने में मुझे कोई आनंद की झलक न दिखी। वह मुझसे कुछ नाराज से होकर लौट गए। आज मैं देखता हूं ठीक ही हुआ जो वह भरतपुर में न बसे। मत्स्य की कांग्रेसी मिनिस्ट्री तमाम प्रवासी जाटों के पीछे पड़ी है और भगाने पर कटिबंध है।

चौधरी हरिश्चंद्र जी का बहावलपुर राज्य में एक स्वतंत्र गांव था - नत्था सिंह ढाका का चक। इसी प्रकार उनके भाई शिवदत्त सिंह जी पूरीउड़ांग के मालिक थे।

उन्होंने अपने संपन्नता के समय में कौमी कामों में भरसक मदद की है। संगरिया जाट हाई स्कूल की इमारतें चिल्ला-चिल्लाकर कहते हैं कि हमें ऊंचा करने में चौधरी हरिश्चंद्र जी ढाका की पसीने की कमाई का एक अच्छा अंश लगा हुआ है।

सरदारा राम

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19. चौधरी शिवकरण और 20. सरदारा राम - [पृ.144]: जाट हाई स्कूल संगरिया से कुछ ही मील के फासले पर जाटों का एक गांव चौटाला है। यद्यपि यह गांव जिला हिसार में है किंतु इसको बीकानेर की हलचलों से अलग कर देखा उचित सा नहीं है।

यहीं के दो प्रमुख जाट सरदार हैं - शिवकरणजी और सरदारारामजी। शिवकरण जी संगरिया जाट हाई स्कूल के स्तंभों में से हैं। आपके सहयोग से ही इस संस्था को इतना उन्नत बनाया है। पूज्य स्वामी केशवानंद जी की आज्ञा मात्र पर यह स्कूल की सहायता करते हैं।

बीकानेर के कौमी सुधार संबंधी अन्य कामों में आप


[पृ.145]: सदैव सहायता करते हैं। आप समृद्धिशाली शिक्षा प्रेमी और उन्नत विचारों के आदमी हैं।

पटवारी हंसराज

21. पटवारी हंसराज - [पृ.145]: बहता पानी कड़ाके की शीत में भी गर्म रहता है। इसी प्रकार लाख मुसीबतों के समय में अवडार नौजवान की रगों में गर्म खून उवाले लेता रहता है। बीकानेर के आतंक पूर्ण वातावरण में भी जिसके हृदय को भाय ने नहीं छूया ऐसे एक नौजवान को मैंने सन् 1946 में रतनगढ़ में देखा। वह चौधरी कुंभाराम जी के लेफ्टिनेंट में से था। नाम उसका हंसराज बिल्कुल उपयुक्त।

तहसील भादरा के गांव घोटडा में सहू गोत्र के जाट सरदार चौधरी मोतीराम जी के संवत 1968 की कृष्णाष्टमी को जो लड़का पैदा हुआ उसी का नाम हंसराज हुआ और वह वास्तव में अपने गांव और तहसील के दूसरे बच्चों में हंस समान आगे बढ़ा।

जाट हाई स्कूल संगरिया में शिक्षा पाकर चौधुरी हंसराज पटवारी हुए और राजपूताने की अशिक्षित जाट मां के इस कथन को चरितार्थ किया कि "पढ़कर लाला पटवारी होगा"।

आर्य समाजी खयालातों ने उन्हें आगे बढ़ाया और उसी का फल है - आप के लड़के लड़कियां सभी पढ़ते हैं।

आप सरकारी सर्विस में थे किंतु बीकानेर की नौकरियों में जाटों के साथ द्वेष पूर्ण सलूक होता है। उसे कोई जीवन्त वाला जाट आज तक बर्दाश्त नहीं कर सका। फिर आप ही कैसे बर्दाश्त करते। आप ने नौकरी छोड़ दी और फिर कौमी सेवा में जुट पड़े। सन् 1946-47 के राजनीतिक आंदोलन में आप


[पृ.146]: बीकानेर की पुलिस के लिए हाथ में न आने वाली चिड़िया बन गए और आपने अपने अधिक परिश्रम से आंदोलन की खूब सेवा की।

22. चौधरी बद्रीराम - [पृ.146]: किसी समय बीकानेर में बेनीवालों की भी अपनी हुकूमत थी। वह एक बड़ी आबादी के मालिक थे। चौधरी बद्रीराम उन्हीं बेनीवालों की संतान हैं। आपका गांव भादरा तहसील में छानीके नाम से मशहूर है। सन 1918 के महायुद्ध में आप फौज में भर्ती हो गए। वहां से पेन्शन लेकर लौटने पर अपने देहातों में वैदिक धर्म का प्रचार का बीड़ा उठाया। इसके साथ ही भादरा में जाट बोर्डिंग हाउस के आप प्रबंधक नियुक्त हुए।

लग्न के साथ आपने जागृति की और बराबर कर रहे हैं। राजनीतिक हलचलों में भी भाग लेते रहे हैं।

23. चौधरी बहादुरसिंह - [पृ.146]: चौधरी कुंभाराम जी के गांव फेफाना में सहारण गोत्र के जाट सरदार केसाराम जी के पुत्र चौधरी बहादुर सिंह हैं। यह गांव बीकानेर राज्य की नोहर तहसील में है। चौधरी बहादुर सिंह जी उन लोगों में से हैं जो अपने आप अपने लिए काबिल बनाते हैं। बचपन में कोई शिक्षा नहीं मिली किंतु जब आपको होश हुआ तो स्वत: इधर उधर से अक्षर ज्ञान किया और फिर अभ्यास से वे शिक्षितों की लाइन में आ गए।

आप हिंदी और उर्दू दोनों जानते हैं। इस समय आप की अवस्था 42 साल के आसपास है। संगरिया शिक्षा


[पृ.147]: संस्था की ओर से प्रचार कार्य करते हैं। आप सहारण गोत्र के जाट हैं। किसी समय इस भू-भाग पर सारण भी आजादी का उपयोग करते थे और उनकी कीर्ति चारों और फैली हुई थी।

24. चौधरी खूमाराम - [पृ.147]: तहसील कोलायत में अकवासा गांव में चौधरी खूमाराम जी एक समाज सुधारक आदमी हैं। आपकी अवस्था वर्षा 50 साल के आसपास होगी। आप भजन उपदेश के जरिए लोगों में विद्या प्रचार और कुरीति निवारण का काम बड़ी लगन से करते हैं।

25. कवि हरदत्तसिंह - [पृ.147]: भादु गोत के चौधरी हरिदत्त सिंह एक पुराने और तेज दिमाग के आदमी हैं। आप गाते भी हैं किंतु वीर रस की कविता करने में आप अच्छी योग्यता रखते हैं। वीरता पर उन्होंने काफी कविता की है।

जाट हाई स्कूल संगरिया के लिए काम करते हैं। आपकी इस समय अवस्था में 60 वर्ष के आसपास है। गांव में लोगों पर उनके उपदेशों का अच्छा असर होता है। आपको हुकूमत बीकानेर का कोपभाजन भी होना पड़ा है।

आप सैरूना गांव के रहने वाले हैं। इस समय आप लालगढ़ में रहते हैं।

चौधरी रूपराम जी

26. चौधरी रूपराम जी - [p.147]: विद्यार्थी भवन रतनगढ़ के संस्थापकों में चौधरी रूपराम जी एक प्रमुख हैं। आरंभ में उन्होंने इस शिक्षा संस्था को अपना


[p.148]: जीवनदान ही दे दिया था। वही इस के संचालक रहे हैं। आप पुलिस में क्लर्क थे। 30-32 साल के इस नौजवान के दिल में अपनी कौम की गिरी दशा के लिए दर्द था। आखिर नौकरी को लात मारनी ही पड़ी। तहसील राजगढ़ में गोठा एक गांव है। वहीं के मान गोती जाट चौधरी रामजस जी के सुपुत्र हैं। आसपास के लोग आप को हृदय से प्यार करते हैं। आपने बीकानेर के आंदोलन में भी भाग लिया है।

27. मास्टर छैलूराम - [पृ.148]: चौधरी रूपराम राम जी के क्रियाशील साथी हैं चौधरी छैलूराम जो इस विद्या भवन में अध्यापक हैं। उत्साही नौजवान ने पुलिस कोर्स पास किया था किंतु कौमी सेवा की प्रबल लग्न ने उसे इस तरफ खींच लिया। गागड़वास के चौधरी हरलालजी पूनिया के आप सुपुत्र हैं।

28. चौधरी चंदगीराम पूनिया - [पृ.148]:गागड़वास तहसील राजगढ़ के ही एक दूसरे नौजवान चौधरी कानाराम जी के सुपुत्र चौधरी चंदगी राम पूनिया हैं। आप भी पहले पुलिस में थे किंतु कौमी सेवा की उत्कंठ भावना आपको भी विद्यार्थी भवन रतनगढ़ में खींच लाई। यहां बड़े उत्साह से आप कार्य करते रहे हैं।

29. चौधरी बुद्धारामजी- [पृ.148]: तहसील रतनगढ़ में सीतसर जाटों का मशहूर गाँव है। यही के चौधरी स्वरूपराम जी के सुपुत्र चौधरी बुधाराम जी हैं। गोत्र आपका डूडी है। इस गोत्र के लोग जयपुर में भी हैं।


[पृ.149]:एक समय इन्हीं के नाम पर आमेर का पूर्व नाम ढूंढार था। आप विद्यार्थी भवन रतनगढ़ के लिए काम करने वालों में एक उत्साही आदमी हैं।

30. चौधरी आसारामजी - [पृ.149]: विद्यार्थी भवन रतनगढ़ के लिए काम करने वालों में एक हैं। तहसील सुजानगढ़ में बालेरा का आपका गांव है। आप परिश्रम और लगन के साथ अपनी संस्था को उन्नत बनाने के लिए यत्नशील रहते हैं।

31. चौधरी सीसराम -[पृ.149]: जींद राज्य के पचगांव ग्राम के चौधरी शिवकरण श्योराण गोत्री के पुत्र चौधरी शीशराम जी भी इस समय विद्यार्थी भवन रतनगढ़ में काम करते हैं। कौमी सेवा की प्रबल भावना आपको उधर खींच लाई और बड़े प्रेम से इस संस्था का काम करते हैं।

32. स्वामी स्वतंत्रतानंद - [पृ.149]: स्वामी स्वतंत्रता नंदजी गोस्वामी (स्वामी) जाट हैं। जन्म आपका अब से 40 साल पहले राजगढ़ तहसील के बासड़ा गांव में हुआ था। आजकल आप हरियाल स्टेशन के पास रतनपुरा में पाठशाला चलाते हैं। बहुत पहले से आप ऋषि दयानंद के भक्त हैं। समाज सुधार के लिए प्रयत्न करते हैं। आपको चौधरी हनुमान सिंह की धुलेंडी बाद की गिरफ्तारी के पश्चात पुलिस ने काफी तंग किया। पुलिस अफसर ने कहा था आपकी दिन में 80-80 शिकायते हमें मिलती हैं। आप साहसी और दृढ़ विचार के आदमी हैं।


33. स्वामी कर्मानन्दजी [पृ.150]: स्वामी कर्मानन्दजी एक कर्मठ और साहसी सन्यासी हैं। स्वामी स्वतंत्रतानंद जी पंजाब के आप प्रिय सहयोगी हैं। 1935-36 के लोहारू जाट आंदोलन और आर्य आंदोलन के बाद कर्मानन्द जी लोहारू में आर्य समाज संगठन के लिए नियुक्त हुए। तब से अब तक अनेक विघ्न बाधाओं का सामना करते हुए उन्होंने लोहारु आर्य समाज को दृढ़ किया तथा लोहारू राज्य में आय समाजिक पाठशालाओं की स्थापना की है। बीकानेर राज्य में अभी कालरी और गागड़वास गांव में दो पाठशालाएं कायम की हैं। बीकानेर में गरीब किसानों के लिए साथ जो ज्यादतियां सरकारी कर्मचारियों और पट्टेदारों की ओर से होती हैं। उनसे आपका ह्रदय क्षुब्ध रहता है। अतः बीकानेर में भी जनजागृती का आपने बिगुल बजाया और गांधी सप्ताह के दिनों में राष्ट्रीय झंडा फहराते हुए बीकानेर सरकार ने उन्हें गिरफ्तार करके नजरबंद भी किया।

आपका जन्म जींद राज्य के बिलोटा नामक गांव में हुआ था। लोहारू के आसपास का प्रदेश स्वामी कर्मानन्द जी से बहुत आशाएं रखता है।

आप बीकानेर प्रजा परिषद के अध्यक्ष और राजस्थान रीजनल काउंसिल के सदस्य रह चुके हैं।

चौधरी जीवनराम पूनिया

34. चौधरी जीवनराम पूनिया- [पृ.150]: जयपुर, जोधपुर और बीकानेर और आधे हरियाणा में जिसके भजनों को सुनकर स्त्री-पुरुष मुग्ध हो जाते हैं वही चौधरी जीवनरामजी बीकानेर राज्य की राजगढ़ तहसील के जैतपुरा गांव के चौधरी देवाराम जी पूनिया के सुपुत्र हैं। आपका जन्म


[पृ.151]: विक्रम संवत 1944 मार्गशीर्ष सुदी 5 (=1888 ई.) को हुआ। संवत 1959 से आपको भजन गाने का शौक लगा और पुराने ढंग के भजन आपने गाना आरंभ किया।

शेखावाटी में टमकोर आर्य समाज के जलसों में आपको आर्य समाज का रंग लाया और संवत 1980 से आप आर्य समाजी ढंग के भजनीक हो गए। 5 वर्ष तक आर्य समाज मंडावा के अधीन आपने प्रचार किया और फिर स्वतंत्र उपदेशक बन गए। आपके पाँच सन्तानें हैं। चार लड़के और एक लड़की। लड़के हैं 1. हरिश्चंद्र,2. बजरंग, 3. मोहर सिंह और 4. भंवर सिंह। मोहर सिंह राजस्थान के एक माने हुये भजनोपदेशक हैं। आप दोनों पिता-पुत्रों से कौम को बड़ी उम्मीदें हैं। आपने झुंझुनू महोत्सव और सीकर जाट महायज्ञ में भी बड़ा काम किया है।

बीकानेर राज्य में मरुभूमि सेवा कार्य संस्था के तत्वावधान में जो स्कूल खुले हैं उनमें मोटेर का प्रथम स्थान है। इस को उन्नत बनाने के लिए प्रसन्न करने वालों में निम्न सज्जन इस समय काफी दिलचस्पी ले रहे हैं।

35. चौधरी मामराजजी गोदारा

35. चौधरी मामराजजी गोदारा - [पृ.151]: आपके पिता का नाम चौधरी लादूराम जी गोदारा था। आप मोटेर के ही रहने वाले हैं। संवत 1962 के माघ महीने में आपका जन्म हुआ। जब आपने होश संभाला तो आप आर्य समाजी ख्यालात की ओर आकर्षित हुए और उन्हीं खयालातों को देहातों में अपने सामर्थ्य पर चलाते रहे। इस समय जब स्वामी केशवानंद जी ने शिक्षा प्रसार के काम को


[पृ.152]: आगे बढ़ाने की योजना तैयार की है तो आप उसमें अपने साथियों के साथ उत्साह के साथ शामिल हो गए हैं। और स्कूल कमेटी के मंत्री हैं। आपके इस समय चार लड़के हैं- 1. कुंवर बीधाराम, 2. बीरबलसिंह, 3. पति राम और 4. श्रीकृष्ण

36. चौधरी चंदारामजी - [पृ.152]: नोहर तहसील के इस मशहूर गाँव मोटेर में संवत 1960 में चौधरी चंदारामजी का जन्म हुआ। आपके पिता थाकन गोत्र के चौधरी बीजाराम थे। मोटर में स्कूल स्थापित कराने और उस का उद्घाटन करवाने में आप ने पूरा सहयोग दिया है। स्वामी केशवानंद जी के प्रति आपके दिल में भी अत्यंत श्रद्धा है। आपके तीन संताने हैं।

37. चौधरी केसाराम - [पृ.152]: तहसील नोहर में उदासर गोदारों की मशहूर नगरी है। यहीं के चौधरी गोपालराम जी गोदारा के सुपुत्र चौधरी केसाराम जी हैं। इस समय आपकी आयु लगभग 35 साल है। आप भी मोटेर स्कूल के मेंबर हैं। उत्साही है और कौम का काम करने के लिए अभी रुचि रखते हैं।

38. चौधरी सहीराम - [पृ.152]: चौधरी पेमाराम जी के सुपुत्र हैं। गोत्र आपका भादू है। कोई 33-34 साल के नौजवान हैं। तहसील सूरतगढ़ में सिंगरासर आपका गांव है। मोटेर स्कूल कमेटी के आप मेंबर


[पृ.153]: हैं। उत्साही कार्य करता हैं।

चौधरी छोगारामजी

39. चौधरी छोगारामजी - [पृ.153]: मरुभूमि सेवा कार्य में योग देने वाले ग्रामीणों में चौधरी छोगाराम जी का कार्य प्रशंसनीय है। आपने अपने स्कूल खुलवाने के लिए इस संस्था को 500 रुपए दान में दिए। इस नौजवान का संवत 1959 के क्वार महीने में जन्म हुआ। आपके पिता चौधरी खेमाराम जी गोदारा जाट है। तहसील कोलायत में अकासर आपका गांव है।

40. चौधरी धर्मारामजी - [पृ.153]: बीकानेर राज्य की सदर तहसील में पलाना गांव के सिहाग गोत्र के चौधरी धर्माराम जी एक प्रसिद्ध जाट सज्जन हैं। आप कौम की खिदमत एक लंबे समय से, जितनी उनसे बन सकती है, कर रहे हैं। कौमी अखबारों को पढ़ने की आप की सदा से रुचि रही है। इस समय आपने अपने गांव में स्कूल खुलवाया है और मरुभूमि सेवा कार्य में 500 रुपए श्री स्वामी केशवानंद जी को आपने भेंट किए हैं। बीकानेर राज्य के संजीदा और प्रमुख जाटों में आपकी गिनती है।

आपके पलाना गांव में ही हरजीराम जी कड़वासरा और भीमाराम जी भी जाति भक्त सज्जन हैं। आपने संगरिया जाट स्कूल को समय-समय पर काफी सहायता दी है। तीनों सजन शिक्षा प्रेमी हैं।


41. चौधरी सोहनराम - [पृ.154]: रतनगढ़ में श्री स्वामी चेतनान्द जी की मेहनत और तपस्या का फल विद्यार्थी भवन रतनगढ़ संस्था है। इससे किसानों के बच्चों को ऋषिकुल की भांति के रहन-सहन में उच्च आदर्श को सामने रखकर शिक्षा दी जाती है। कौम की दर्द भरी हालत से जिनके दिलों में टीस थी ऐसे नौजवान और साथ ही लोगों का इसे सहयोग प्राप्त है। उन्ही लोगों के एक सहायक हैं चौधरी सोहन राम जी आप थालोड़ गोत्र के जाट चौधरी भोमाराम जी के सुपुत्र हैं। तहसील रतनगढ़ में रतनसरा आपका गांव है। शिक्षा और कौमी सुधार की और आप की पूरी रुचि है।

42. चौधरी सुरताराम - [पृ.154]: रतनगढ़ विद्यार्थी भवन के सहायकों में एक चौधरी सुरताराम जी हैं। जिनका संवत 1966 भादवा बदी अष्टमी को चौधरी कुंभाराम जी सेवदा गोत्र के घर में जन्म हुआ। आप अपने मेहनत से आगे बढ़े हैं। इस समय ठेकेदारी करते हैं। अभी 13-14 अप्रैल 1946 को विद्यार्थी भवन रतनगढ़ के उत्सव पर अपील में आपने 401 रुपए का दान इस संस्था की तरक्की के लिए दिया है। भविष्य में आप से रतनगढ़ की इस शिक्षा संस्था को बड़ी-2 आशाएँ हैं।

चौधरी हीरासिंह

43. चौधरी हीरासिंह- [पृ.154]: तहसील राजगढ़ के पहाड़सर गांव के चाहर गोत्र के एक दूसरे प्रसिद्ध जाट भजनीक हैं चौधरी हीरासिंह जी। आपके


[पृ.155]:पिताजी का नाम चौधरी लक्ष्मणराम जी था। संवत 1962-63 में आपका जन्म हुआ था। शहीदे धर्म महाशय राजपाल जी लाहौर के नाम से सारा आर्य जगत परिचित है। उन्हीं के एक रिश्तेदार भीमसेन जी खन्ना ने आपको भजनोपदेशक बनाया। आप उसके बाद बराबर आर्य समाज का काम करते रहे। पंडित दतूराम जी के साथ आपने सीकर जाट महायज्ञ को सफल बनाने के लिए भी काम किया। उसके चार पांच साल बाद से आप मारवाड़ में जाट बोर्डिंग और जाट सभा तथा किसान सभा का काम कर रहे हैं।

आपके दो लड़के हैं ओंकार पढता है और रतिराम भजनीक बन गया। आप के भजनों को साधारण समझकर लोग अत्यंत पसंद करते हैं। भरतपुर में आपने किसान सभा के उम्मीदवारों को सफल बनाने के लिए काम किया था।

आप खुश मिजाज हैं और नेक तबीयत के आदमी हैं। इसलिए हर दिल अजीज समझे जाते हैं। कौम की सेवा ही आपका मुख्य ध्येय है। देश की कोई भी हलचल उन्हें उनके उस रास्ते से अब तक नहीं डिगा सकी है।

चौधरी मालसिंह

44. चौधरी मालसिंह - [पृ.155]: चौधरी माल सिंह B.A. को मैंने निकट से देखा या नहीं याद नहीं आता है। किंतु मैंने उनके लेख जाट वीर में उन दिनों पढे थे जबकि वह पढ़ते थे। एक बार उन्होंने लिखा था कि शेखावाटी के लोग अमल (नशा) करते हैं। उन्हें नशा करने का शौक है। कोई अफीम का अमल करता है। कोई गांजे आदि का। मैं भी अमल करता हूं मेरा अमर (नशा) विद्या पढ़ना है।


[पृ.156]: पढ़ने के लिए मैं मुसीबतें उठाता हूं। इधर से उधर घूमता हूं। इसी का यह नतीजा हुआ है कि उन्होंने b.a. किया और तारानगर में प्रधान शिक्षक के रूप में मुकर्रर हैं।

सूबेदार टीकूरामजी

45. सूबेदार टीकूरामजी [पृ.156]: बीकानेर की चूरु तहसील के बूटिया गांव के कौम भक्त सूबेदार टीकूराम जी को हम लोग सन् 1932 से जानते हैं। उन्होंने झुंझुनू जाट महोत्सव के लिए जहां स्वयं चंदा दिया था वहां दूसरे लोगों से भी दिलाया। इसके बाद उन्होंने शेखावाटी को जागृति में पूर्ण सहयोग दिया। मुझे याद पड़ता है कि उन्होंने सन् 1918 के युद्ध में काफी वीरता प्राप्त की थी और वही एक आर्म (बाजू) को भी खो दिया था। जहां तक जाट प्रगति का संबंध है वह अपने इर्द-गिर्द के इलाकों में सबसे आगे हैं। संगरिया जाट स्कूल के लिए उनका पूरा सहयोग रहा है।


नोट - ठाकुर देशराज ने सूबेदार टीकूरामजी का गोत्र नहीं लिखा है। नेहरा गोत्र की पुष्टि लक्ष्मणराम महला - समाज सेवी जाट कीर्ति संस्थान चूरु द्वारा की गई है। Laxman Burdak (talk) 12:39, 2 February 2018 (EST)

46. चौधरी रामलालजी - [पृ.156]: भादरा तहसील में पट्टीदारी का गांव है सरदारगढ़िया है। यहीं पर बेनीवाल गोत्र के चौधरी मोजीराम जी के घर 32-33 साल पहले चौधरी रामलाल जी का जन्म हुआ।

अपने हिंदी मीडियम पास करके व्यापार में मन लगाया और सन 1939 तक व्यापार का धंधा ही करते रहे। इसके बाद भादरा जाट बोर्डिंग हाउस के सुपरिटेंडेंट रहे और बोर्डिंग को उन्नत बनाने की कोशिश है कि आप चार भाई हैं।


[पृ.157]:सन 1945-46 के बीकानेर के राजनीतिक आंदोलन में पूर्ण योग दिया।

चौधरी ख्यालीसिंह

47. चौधरी ख्यालीसिंह - [पृ.157]: हमारा उनसे कितना ही मतभेद क्यों न हो किंतु यह मानना पड़ेगा चौधरी ख्यालीसिंह जी एक विशिष्ट व्यक्तित्व के आदमी हैं। उनके ही अनुरूप उनकी द्वितीय धर्मपत्नी हैं।

गोदारों ने सर्वप्रथम जांगल देश में अपनी राजसत्ता खोई थी और खयाली सिंह जी गोदारा को यह अवसर मिला कि वे बीकानेर के प्रथम जाट मिनिस्टर बने और केवल अपने कौशल से।

वे जाट महासभा की कार्यकारिणी के मेंबर रहे हैं। पक्के जाट हैं किंतु समिष्ट की बजाय वह व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊंचे नहीं उठ सके। यही उनकी कमजोरी है।

आपने मिनिस्टर होने से पहले रायसिंहनगर में वकालत की थी। उसके बाद बीकानेर की प्रजा परिषद में काम किया।

48. चौधरी अमिचन्द - [पृ.157]: बिकानेर में ऐसे पचासों नौजवान है जिन्होंने बीकानेर की सरकारी सर्विस उसे इसलिए इस्तीफा दिया कि उनके साथ दुश्मन जैसा व्यवहार राजपूत और उनके पिटठू अफसर करते थे। ऐसे ही नौजवानों में चौधरी अमिचंद जी हैं। आप भादरा तहसील में झोरड़पुरा गांव के रहने वाले हैं। यह गांव आप के गोत्र के नाम पर ही आबाद किया गया है। चौधरी भोलाराम जी आपके पिताजी थे।


[पृ.158]:आपने हिंदी मिडिल पास करके पुलिस में सर्विस कर ली। पांच छः साल आप मुश्किल से काट सके। सन् 1941 में इस्तीफा दे दिया और तभी से आप कौम का काम करते हैं।

49. लेफ्टिनेंट सहीरामजी - [पृ.158]: सन् 1946 की गर्मियों में जब जाट महासभा का डेपुटेशन महाराजा बीकानेर की स्वीकृति पर बीकानेर, वहां के जाट बंधुओं के संबंध में तथा किसानों संबंधी मांगे बीकानेर सरकार के सामने पेश करने के लिए, गया था। वहां हमने एक सुंदर सुडौल और फौजी जवान को देखा। मैंने उन्हें कभी देखा नहीं था। किंतु अंदाज से ही मैंने कहा आप तो लेफ्टिनेंट सही राम जी हैं क्या। उन्हें जाटसाहित्य खरीदने से बड़ा प्रेम है। जब वह समुद्र पार थे तब भी जाट अखबार मांगकर पढ़ते थे। इन्हीं कारणों से मैं दूर से उन्हें जानता था।

वह अपने काम में अत्यंत निपुण आदमी थे किंतु जाट होने के कारण बार बार उनके साथ अन्याय किया गया था और उनसे जूनियर कप्तान बना दिया गए थे। हमने उनके केस को बीकानेर के आरमी मिनिस्टर के सामने रखा था किंतु सही राम जी के साथ न्याय हुआ हो ऐसी हमें उम्मीद नहीं।

चौधरी सहीराम जी दृढ़ इरादों के और उन्नतिशील युवक है। वह अवश्य एक दिन नाम पैदा करने वाली तरक्की करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है।

50. चौधरी जसराजजी: [पृ.158]: तप तीन प्रकार के हैं। मन का ताप, वाणी का तप और


[p.159]:कर्मों का ताप। अपशब्दों का नहीं बोलना, कम बोलना और सही बोलना तथा मधुर बोलना ये वाणी के ताप हैं। देहात में अपशब्द, गाली गलौज करने की आदत होती है। इस कुटेव को छुड़ाने के लिए आज से 20 वर्ष पहले जिसन मनस्वी ने बीकानेर के देहातों में प्रचार शुरू किया था उनका नाम चौधरी जस राज जी है। आप राजगढ़ तहसील में मोती सिंह की ढाणी के रहने वाले फगेडिया गोत्र के जाट हैं।

परमात्मा ने आपको यह सौभाग्य दिया है कि आप पत्नी अभर होते हुए भी वैद्य हैं, दे देहाती जड़ी बूटियों से लोगों को राहत देती हैं। आपके लड़के का नाम सुखदेव सिंह है।

चौधरी दीपचंदजी

51. चौधरी दीपचंदजी - [पृ.159]: बीकानेर राज्य के कालरी गांव के एक 22 वर्षीय नौजवान हैं चौधरी दीपचंद जी कसवां। पहले आप के बुजुर्ग जिला हिसार की भिवानी तहसील के मताणी गांव में रहे थे। आपके पिता आसाराम जी एक समझदार व्यक्ति थे।

आपने अपने कौम की गिरी दिशा पर तरस खाकर 10 वीं कक्षा से पढ़ना भी छोड़ दिया और कालरी गांव में एक स्कूल की स्थापना करके स्वयम ही शिक्षक का भार संभाला। आप पांच भाई हैं। बीकानेर के राष्ट्रीय आंदोलन में आपने सक्रिय भाग लिया है।

52. चौधरी नौरंगसिंह - [पृ.159]: तहसील राजगढ़ में चौधरी इंदुराज जी के सुपुत्र चौधरी नौरंग सिंह जी पूनिया ने साहस के साथ बीकानेर के राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। आप चार भाई हैं। संतान से भरे पूरे हैं।


[पृ.160]:आपके साथी आप की लग्न और त्याग वृति की मुक्त कंठ से सराहना करते हैं।

53. चौधरी पूरनचन्दजी - [पृ.160]: जयपुर के डूडी जाटों का जिक्र अन्यत्र आ चुका है। चौधरी मेघाराम जी के लड़के चौधरी पूरनचंद जी डूडी जाट हैं। आपकी जन्म भूमि छोटा धीरवास की है किंतु हाल में हनुमानगढ़ तहसील में रहते हैं।

आप अधिक पढ़े लिखे नहीं हैं किंतु बुद्धि आपकी तीव्र है। उम्र 37-38 साल की होगी। संतान में लड़के-लड़कियां सभी हैं।

54. चौधरी लक्ष्मीचंदजी - [पृ.160]: विक्रम संवत 1988 से कौमी सेवा के मार्ग पर पैर रखा है तभी से बराबर काम करते चले आ रहे हैं। इस समय आप की अवस्था लगभग 50 साल है।

आप चौधरी सुखराम जी के पुत्र हैं और पूनिया आपका गोत्र है। आज से 600-700 वर्ष पहले बीकानेर के एक हिस्से पर पूनिया का प्रजातांत्रिक राज्य था और राजगढ़ के पास उनकी राजधानी थी।

आप दिल व जान से कौमी सेवा तथा सार्वजनिक में भाग लेते रहे हैं।

55. चौधरी मनफूलसिंह - [पृ.160]: बीकानेर राज्य के नग्नी गांव के चौधरी मनफूल सिंह उन नवयुवकों में से हैं जिनका उत्साह और जोश कठिन कामों में खींच ले जाता है। वे पंजाब के कांग्रेस आंदोलन में दो बार


[पृ.161]:जेल हो आए हैं। वे बाना गोत्र के चौधरी खेमाराम जी के सुपुत्र हैं और इस समय 27 वर्ष के अलग-अलग लगभग आप की अवस्था है।

हिंदी मिडिल पास करके आपने पढ़ना लिखना छोड़ दिया और तभी से सार्वजनिक काम में जुट गए। सन 1946-47 के बीकानेर के राजनीतिक आंदोलन में भाग लिया और उसके नतीजों को भोगा है।

56. स्वामी गंगारामजी

56. स्वामी गंगारामजी - [पृ.161]: प्रसन्नता की बात है जाट कौम के साधुओं ने राजस्थान में अपने कौम को जगाने में भाग लिया है। स्वामी गिरिधर दास जी के शिष्य स्वामी गंगाराम जी ऐसे ही साधुओं में है। आप की अवस्था इस समय 50 के आसपास है। आप पिछले कई वर्षों से सार्वजनिक कामों में भाग ले रहे हैं।

आप दादूपंथी साधु हैं और बीकानेर राज्य के लालपुर गांव में रहते हैं।

57. चौधरी रिक्तारामजी - [पृ.161]: बीकानेर राज्य की तहसील नोखा मंडी के जसरासर गांव में एक तरड़ गोत्र के जाट सरदार चौधरी रिक्ताराम जी हैं।

आप की अवस्था कोई अधिक नहीं है यही 26-27 साल के नौजवान हैं किंतु सार्वजनिक कामों से आपको प्रेम है और स्वामी केशवानंद जी के सेवा में रहकर शिक्षा और समाज सुधार के कामों में हिस्सा लेते हैं।


58. चौधरी ज्ञानीरामजी: [पृ.162]: पतले दुबले और आंखों पर चश्मा लगाए हुए एक बिकानेरी जाट वकील को हमारी जाट कौम के सभी पढ़े लिखे आदमी जानते हैं। उन्होंने कौम के लिए हमेशा काम किया है। किन्तु उसका न तो उन्होंने कभी नोटिस किया है और ना किसी के सामने "कौमी सेवा करते थक चला" ऐसा उलाहना ही दिया है।

हिसार जिले में भी उनकी जमीन जायदाद है। वहीं उनके दूसरे भाई रहते हैं। मेट्रिक से पढ़ाई छोड़ने के बाद आपने संगरिया जाट हाई स्कूल में हेडमास्ट्री की। उसके बाद वकालत आरंभ कर दी। बहुत दिनों तक सूरतगढ़ में आप वकालत करते रहे। अब गंगानगर में वकालत करते हैं।

बीकानेर के राजनैतिक आंदोलन में आपने बंदियों की सुविधा के लिए भारी प्रयत्न किए। आप एक सच्चे कौम परास्त, सही और दृढ़ आदमी हैं।

इस समय गंगानगर जाट बोर्डिंग हाउस के आप प्रधान संरक्षकों में हैंं। बीकानेर के जाट महारथियों में आपका स्थान है और सभी लोग उन्हें प्रेम की निगाह से देखते हैं।

59. चौधरी धनारामजी पटवारी- [पृ.162]:आप भादरा तहसील के रहने वाले उत्साही नौजवान हैं। अपनी छोटी सी आमदनी में से भी जातीय संस्थाओं को सहायता देते रहते हैं। भादरा बोर्डिंग हाउस की आपने शक्ति भर सेवा की।


[पृ.163]:जाट साहित्य से आपको प्रेम है। जाट अखबारों का प्रसार करने का आपने सदैव प्रयास किया है।

आपका जन्म कार्तिक सुदी एक संवत 1967 में हुआ था। आपके पिता का नाम चौधरी रेवताराम जी है। गोत्र आपका डूडी है।

आप के अबतक 6 संताने हैं जिनमें 5 लड़के हैं। 1. बड़े लड़के यशवंत सिंह जी B.A. में पढ़ते हैं। 2. रतन सिंह, 3. लालचंद, और 4. प्रेम प्रताप पढ़ते हैं। 5. महेंद्र कुमार अभी छोटे हैं। पुत्री सुमिता देवी भी पढ़ती है।

चौधरी धनाराम जी व्यंग कसने में अत्यंत चतुर हैं। वे बड़े अच्छे ढंग से और न चुभने वाले तरीके से विरोध करते हैं।


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