Jat Jan Sewak/Marwar

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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580

संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर

मारवाड़ के जाट जन सेवक

मारवाड़ का प्राचीन इतिहास

[पृ.167]:राजस्थान की क्षेत्रफल में सबसे बड़ी रियासत जोधपुर (मारवाड़) की है। इसमें बहुत कुछ हिस्सा गुजरात का और सिंध प्रांत का है। गुजराती, सिंधी और मालवी हिस्सों को इस रियासत से निकाल दिया जाए तो वास्तविक मारवाड़ देश निरा जाटों का रह जाता है।

मारवाड़ शब्द मरुधर से बना है। यह भूमि मरु (निर्जीव) रेतीली भूमि है। नदियों सुपारु न होने से यहां का जीवन वर्षा पर ही निर्भर है और वर्षा भी यहां समस्त भारत से कम होती है। वास्तव में यह देश अकालों का देश है। यहां पर जितनी बहुसंख्यक जातियां हैं वे किसी न किसी कारण से दूसरे प्रांतों से विताडित होकर यहां आवाद हुई हैं। मौजूदा शासक जाति के लोगों राठौड़ों को ही लें तो यह कन्नौज की ओर से विताड़ित होकर यहां आए और मंडोर के परिहारों को परास्त करके जोधा जी राठौड़ ने जोधपुर बसाया।

परिहार लोग मालवा के चंद्रावती नगर से इधर आए थे। यहां के पवार भी मालवा के हैं और यहां जो गुर्जर हैं वह भी कमाल के हैं जो कि किसी समय गुजरात का ही एक सूबा था।

आबू का प्रदेश पुरातन मरुभूमि का हिस्सा नहीं है। वह मालवा का हिस्सा है। जहां पर कि भील भावी आदि जातियां रहती थी।


[पृ.168]: जाट यहां की काफी पुरानी कौम है जो ज्यादातर नागवंशी हैं। यहां के लोगों ने जाट का रूप कब ग्रहण किया यह तो मारवाड़ के जाट इतिहास में देखने को मिलेगा जो लिखा जा रहा है किंतु पुराने जितनी भी नाग नश्ले बताई हैं उनमें तक्षकों को छोड़ कर प्राय: सभी नस्लें यहां के जाटों में मिलती हैं।

यहां पर पुरातन काल में नागों के मुख्य केंद्र नागौर, मंडावर, पर्वतसर, खाटू.... आदि थे।

पुराण और पुराणों से इतर जो इतिहास मिलता है उसके अनुसार नागों पर पांच बड़े संकट आए हैं – 1. नाग-देव संघर्ष, 2. नाग-गरुड संघर्ष, 3. नाग-दैत्य संघर्ष, 4. नाग-पांडव संघर्ष, 5. नाग-नाग संघर्ष। इन संघर्षों में भारत की यह महान जाति अत्यंत दुर्बल और विपन्न हो गई। मरुभूमि और पच-नन्द के नाग तो जाट संघ में शामिल हो गए। मध्य भारत के नाग राजपूतों में और समुद्र तट के मराठा में। यह नाग जाति का सूत्र रूप में इतिहास है।

किसी समय नागों की समृद्धि देवताओं से टक्कर लेती थी। यह कहा जाता था कि संसार (पृथ्वी) नागों के सिर पर टिकी हुई हैउनमें बड़े बड़े राजा, विद्वान और व्यापारी थे। चिकित्सक भी उनके जैसे किसी के पास नहीं थे और अमृत के वे उसी प्रकार आविष्कारक थे जिस प्रकार कि अमेरिका परमाणु बम का।

मारवाड़ी जाटों में नागों के सिवाय यौधेय, शिवि, मद्र और पंचजनों का भी सम्मिश्रण है।

राठौड़ों की इस भूमि पर आने से पहले यहां के जाट अपनी भूमि के मालिक थे। मुगल शासन की ओर से भी


[पृ.169]: कुछ कर लेने के लिए जाटों में से चौधरी मुकरर होते थे जो मन में आता और गुंजाइश होती तो दिल्ली जाकर थोड़ा सा कर भर आते थे।

मुगलों से पहले वे कतई स्वतंत्र थे। 10वीं शताब्दी में वे अपने अपने इलाकों के न्यायाधीश और प्रबंधक भी थे। मारवाड़ में लांबा चौधरी1 के न्याय की कथा प्रसिद्ध है। वीर तेजा को गांवों के हिफाजत के लिए इसी लिए जाना पड़ा था। कि प्रजा के जान माल की रक्षा का उनपर उत्तरदायित्व था क्योंकि वह शासक के पुत्र थे और शासक के ही जामाता बनकर रूपनगर में आए थे।

राठौड़ों के साथ जाटों के अहसान हैं जिसमें जोधा जी मंडोवर के परिहारों से पराजित होकर मारे मारे फिरते थे उस समय उनकी और उनके साथियों की खातिरदारी जाटों ने सदैव की और मंडोवर को विजय करने का मंत्र भी जाटनीति से ही जोधा को मिला।

लेकिन राठौड़ शासकों का ज्यों-ज्यों प्रभाव और परिवार बढ़ता गया मरुभूमि के जाटों के शोषण के रास्ते भी उसी गति से बढ़ते गए। रियासत का 80 प्रतिशत हिस्सा मारवाड़ के शासक ने अपने भाई बंधुओं और कृपापात्रों की दया पर छोड़ दिया। जागीरदार ही अपने-अपने इलाके के प्राथमिक शासक बन गए। वास्तव में वे शासक नहीं शोषक सिद्ध हुए और 6 वर्षों के लंबे अरसे में उन्होंने जाटों को अपने घरों में एक अनागरिकी की पहुंचा दिया।

अति सभी बातों की बुरी होती है किंतु जब बुराइयों की अति को रोकने के लिए सिर उठाया जाता है तो अतिकार और भी बावले हो उठते हैं पर उनके बावलेपन से क्षुब्द


1 झंवर के चौधरियों का न्याय बड़ा प्रसिद्ध था


[पृ.170] समाज कभी दवा नहीं वह आगे ही बढ़ा है।

राठौरों के आने के पूर्व जबकि हम इस भूमि पर मंडोवर में मानसी पडिहार का और आबू चंद्रावती में पंवारों का राज्य था, जाट भौमियाचारे की आजादी भुगत रहे थे। रामरतन चारण ने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि ये भोमियाचारे के राज्य मंडोर के शासक को कुछ वार्षिक (खिराज) देते थे।

पाली के पल्लीवाल लोगों ने अस्थाना राठौर सरदार को अपने जान माल की हिफाजत के लिए सबसे पहले मरुधर भूमि में आश्रय दिया था। इसके बाद अस्थाना ने अपने ससुराल के गोहीलों के राज्य पर कब्जा किया और फिर शनै: शनै: वे इस सारे प्रांत पर काबिज हो गए।

सबसे अधिक बुरी चीज राठौड़ शासकों ने तमाम भाई-बहनों को जागीरदार बनाकर की। मारवाड़ की कृषक जातियों को खानाबदोश बनाने का मुख्य कारण यह जागीरदार ही हैं।

मारवाड़ के जाट जन सेवकों की सूची

मारवाड़ में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनकी सूची सुलभ संदर्भ हेतु विकि एडिटर द्वारा इस सेक्शन में संकलित की गई है जो मूल पुस्तक का हिस्सा नहीं है। इन महानुभावों का मूल पुस्तक से पृष्ठवार विस्तृत विवरण अगले सेक्शन में दिया गया है। Laxman Burdak (talk)

  1. चौधरी बलदेवराम मिर्धा (राड़), कुचेरा, नागौर....p.170-173
  2. चौधरी गुल्लारामजी बेन्दा (बेन्दा), रतकुड़िया, जोधपुर....p.173-175
  3. चौधरी माधोसिंह (इनाणिया), गंगाणी, जोधपुर....p.176-177
  4. चौधरी भींयारामजी सिहाग (सिहाग), परबतसर, नागौर....p.177-179
  5. मास्टर रघुवीरसिंह (तेवतिया), दुहाई (ग़ाज़ियाबाद),नागौर ....p.179
  6. मास्टर रामचंद्र मिर्धा (राड़), कुचेरा, नागौर....p.180-181
  7. चौधरी देवाराम भादू (भादू), जोधपुर, जोधपुर....p.181-182
  8. चौधरी पीरूराम पोटलिया (पोटलिया), जोधपुर, जोधपुर....p.182-183
  9. चौधरी मूलचंदजी नागौर (सियाग), बालवा, नागौर....p.183-186
  10. चौधरी दलूराम तांडी (तांडी), नागौर, नागौर....p.187
  11. चौधरी गंगाराम (खिलेरी), सुखवासी, नागौर....p.187
  12. चौधरी जेठाराम (काला), बलाया, नागौर....p.187-188
  13. चौधरी जीवनराम (जाखड़), रामसिया, नागौर....p.188
  14. चौधरी शिवकरण (बुगासरा), नागौर, नागौर....p.188-189
  15. चुन्ना लाल सारण (सारण), मक्कासर, हनुमानगढ़ ....p.189
  16. मास्टर धारासिंह (सिंधु), ----, मेरठ....p.189-190
  17. चौधरी धन्नाराम (भाम्बू), गोरेड़ी , नागौर....p.190
  18. चौधरी रामदानजी (डऊकिया), खड़ीन, बाड़मेर....p.190-191
  19. चौधरी आईदानजी (भादू), शिवकर, बाड़मेर....p.191
  20. चौधरी शिवरामजी (मैया), जाखेड़ा, नागौर....p.191-192
  21. सूबेदार पन्नारामजी (मण्डा), ढींगसरी, चूरु....p.192-193
  22. स्वामी चैनदास लोल (लोल), बलूपुरा, सीकर....p.193-194
  23. रुद्रादेवी (----), ----, जोधपुर....p.194-195
  24. चौधरी उमारामजी (भामू), रोडू, नागौर....p.195-196
  25. पट्टीदार गणेशरामजी (मैया), खानपुर, नागौर....p.196
  26. चौधरी झूमरलालजी (पांडर), बोडिंद, नागौर....p.196-197
  27. चौधरी हीरेन्द्रजी शास्त्री (चाहर), दौलतपुरा, नागौर....p.197
  28. चौधरी किशनारामजी (छाबा), डेह, नागौर....p.197
  29. चौधरी गिरधारीरामजी (छाबा), डेह, नागौर....p.197
  30. चौधरी मनीरामजी राव (राव), लुणदा, नागौर....p.197-198
  31. चौधरी रुघाराम साहू (साहू), खाखोली, नागौर....p.198
  32. चौधरी रामूजी जांगू (जांगू), अलाय, नागौर....p.198
  33. चौधरी रावतराम बाना (बाना), भदाणा, नागौर....p.198
  34. मास्टर मोहनलाल (मांजू), डेरवा, नागौर....p.198
  35. मास्टर सोरनसिंह ब्राह्मण, ----, उत्तर प्रदेश....p.199
  36. चौधरी हेमाराम (गुजर), जाबराथल, नागौर....p.199
  37. चौधरी जगमालजी (गौल्या), गुडला, नागौर....p.199
  38. चौधरी महेन्द्रनाथ शास्त्री, ----, मेरठ, उत्तर प्रदेश, ....p.199-200
  39. चौधरी हरदीनराम बाटण (बाटण), सुरपालिया, नागौर....p.200
  40. चौधरी मगाराम सांवतराम (----), चुंटीसरा, नागौर....p.200
  41. चौधरी कानाराम (सारण), झाड़ीसरा, नागौर....p.201
  42. मास्टर सोहनसिंह (तंवर), ----, मथुरा....p.201

मारवाड़ के जाट जन सेवकों की विस्तृत जानकारी

मारवाड़ के जाट जन सेवकों की विस्तृत जानकारी आगे पढ़ें।

1. चौधरी बलदेवरामजी मिर्धा

चौधरी बलदेवरामजी मिर्धा

1. चौधरी बलदेवरामजी मिर्धा: [पृ.170]: कुछ बड़े आदमियों के जीवन में सामंजस्य हुआ करता है। जाट जाति के उद्धारक और खेतिहर लोगों के इस जमाने के सबसे प्रमुख और वास्तविक नेता राय बहादुर चौधरी सर छोटूराम जी और बलदेव राम जी मिर्जा के जीवन में बहुत कुछ समानता है। आरंभिक जीवन दोनों का कैसा ही रहा हो और कोई कैसे ही संपन्न अथवा विपन्न घर में पैदा हुआ हो किंतु सार्वजनिक जीवन में दोनों की गति एक सी है। चौधरी सर छोटूराम ने कौम के नौजवानों को दो तरफ आकर्षित किया।


[पृ.171]: शिक्षा प्राप्त करने और नौकरियों में घुसने। यही ध्येय मिर्धा जी का रहा है। वे मारवाड़ के जाटों की उन्नति का पूर्ण दारमदार शिक्षा पर मानते हैं। सरकारी सर्विस में रहते हुए भी कौम की सेवा उन्होंने खुलकर की, वह थी शिक्षा प्रचार की। जिस तरह चौधरी सर छोटूराम कौम को भारी से भारी अपमान उठाने पर भी संघर्ष से बचाना चाहते थे उसी प्रकार चौधरी बलदेव राम जी ने मारवाड़ी जाटों को कभी भी उन जागीरदारों से बलपूर्वक भिड़ने की सलाह नहीं दी जो जानमाल और स्त्रियों की इज्जत लेने को खेल समझते रहे।

सीकर और शेखावाटी के जाटों ने जिस प्रकार हुंकारे भरी और जागीरदार सिंहों की जिस भांति डाढ़ें उखाड़ फैंकी वैसा ही मारवाड़ के जाट भी कर सकते थे किंतु चौधरी बलदेव राम मिर्धा ने मारवाड़ी असंतोष को नहीं ठंडा किया किंतु बाहर के उग्र जाट कार्यकर्ताओं को भी मारवाड़ के जाटों में घुसने से रोका ही। क्योंकि वह कतई नहीं चाहते थे कि ईंट को पत्थर से तोड़ा जाए। अपितु उनकी सदैव यह इच्छा रही कि “लौ इन आर्डर” कायम रहे और महाराजा की सरकार न्याय का बर्ताव करें, आज नहीं तो कल। उन्होंने न्याय की प्रतीक्षा की और एक लंबे अरसे तक की और उसकी जबकि उनकी तरुणाई निकल कर बुढ़ापे के श्वेत केशों के रूप में उन पर आक्रमण कर दिया, इतने लंबे अरसे की प्रतीक्षा कम नहीं होती है। युधिष्ठिर का भी धैर्य भंग हुआ था। चौधरी बलदेव राम जी भी निराश हुए और सन् 1946 में विरोध स्वरूप उन्होंने अपने इतने ऊंचे औहदे को छोड़ दिया। और एक दिन लोगों ने देखा - खस की टट्टी में रहने वाला बलदेव राम मिर्धा जेठ की तपती धूप में देहातों में घूम रहा है।


[पृ.172]: वह बर्फ सा सफेद और केले सा मुलायम शरीर मारवाड़ की आंधियों में झुलसकर श्याम होता जा रहा है।

जिन लोक परिषदों का उन्होंने डटकर मुकाबला किया था, जोधपुर के बाप जी (महाराज) की इज्जत की रक्षा के लिए जनविरोध की भी परवाह नहीं की थी। उन्हीं के साथ समझौता किया। किसलिए ? अपनी कौम अपने संबंधी आदमियों के हित के लिए? जोधपुर के राजा और उनके सामंतों ने अपनी कम-अक्ली से अपने सबसे बड़े हितैषी को खो दिया। वह शायद यही समझते रहे - बलदेव राम जी उत्कृष्ट सेवा राज की कर रहा है, अपनी तरक्की के लिए कर रहा है। वास्तव में बात यह नहीं थी। बलदेव राम जी राजसत्ता को अपनी कौम के हित के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे। जब वे इस और से लाख प्रयत्न करने पर भी निराश हुए तो अपनी नौकरी को छोड़ दिया। यही चौधरी बलदेव राम जी के जीवन का रहस्य है।

संक्षिप्त जीवन परिचय: उनका संक्षिप्त जीवन परिचय इस प्रकार है। मारवाड़ के परगना नागौर में कुचेरा नाम का एक गाँव है। इसी में संवत 1947 में राड़ गोत्र के चौधरी मंगलराम जी के घर बलदेव राम जी का जन्म हुआ। जोधपुर के राजवंश के साथ इस परिवार का संबंध एक अर्से से है। कहा जाता है आरम्भ से जोधपुर सरकार का डाक विभाग उनके हाथ में था। इसी हेतु यह मिर्धा कहलाते थे। परगना मेड़ता में जोधपुर दरबार की ओर से सिंधलास नाम का एक गाँव इस परिवार को जागीर में मिला हुआ है।

मैट्रिक तक शिक्षा पाने के बाद चौधरी बलदेव राम जी जोधपुर की पुलिस में हेड कांस्टेबल के ओहदे से मुलाजिम हो गए। अपनी योग्यता और कार्य कुशलता के कारण आप उत्तरोत्तर तरक्की करते रहे। और एक दिन आया कि आप इस महकमे


[पृ.173]: में डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल के पद पर पहुंच गए।

महकमा पुलिस शासन का महकमा है और इसमें मारवाड़ के किसी भी आदमी को शक करने का अवसर नहीं आया है कि चौधरी बलदेव राम अपने समय के योग्य योग्य शासकों में एक रहे हैं। तमाम महकमों के उच्च अधिकारियों ने आपकी शासन योग्यता को समय समय पर सराहा है।

सरकारी सर्विस में रहते हुए भी आपने अपनी कौम की बहुत बड़ी सेवा की है। जगह जगह जाट बोर्डिंग हाउस और शिक्षण संस्थान खुलवाने, विद्या प्रचार और कुरीति निवारण पर व्याख्यान देने से आप कभी नहीं चूके। आपने अपने कौम के अलावा अन्य तमाम उन क़ौमों का भी संगठन किया जो जाटों की तरह खेती पर निर्भर है। उनको आपने किसान सभा प्लेटफार्म पर इकट्ठा किया और सन 1940 में जोधपुर में चौधरी सर छोटूराम जी के सभापतित्व में एक शानदार अधिवेशन कराया। आजकल जोधपुर के तमाम किसान आप के संकेत पर बड़ी से बड़ी कुर्बानी करने को तैयार रहते हैं।

परिवार आपका समृद्धिशाली है। मिर्धा परिवार के कई व्यक्ति काफी प्रसिद्ध हैं। आपके एक हैं पुत्र श्री राम निवास जी एमए, एलएलबी हैं जोकि मजिस्ट्रेट के पद पर कार्य कर रहे हैं। जोधपुर के वर्तमान मंत्रिमंडल के राजस्व मंत्री चौधरी नाथूराम जी मिर्धा परिवार के ही एक रत्न है।

चौधरी गुल्लाराम जी

2. चौधरी गुल्लारामजी बेंदा - [पृ.173]: जिन्हें देखते ही दर्शक के हृदय पर प्रभाव पड़े कि यह व्यक्ति एक सज्जन और देवता पुरुष हैं। ऐसे सौम्य स्वभाव वाले चौधरी गुल्ला राम जी को मारवाड़ का हर एक आदमी


[पृ.174]: जानता है। मारवाड़ से बाहर शेष जाट जगत में भी उनका काफी आदर मान है। आपका परिवार उज्ज्वल और चरित्रवान है। जितने आप के पुत्र व भाई भतीजे हैं सभी को अपनी जाति से अच्छा प्रेम है। सभी विनयशील और नम्र स्वभाव के हैं।

आपका और आपके परिजनों का रहन सहन का स्टैंडर्ड ऊंचा और नमूने का है।

आदमी अपनी योग्यता और साहस पूर्ण परिश्रम से कितनी उन्नति कर सकता है? यह शिक्षा जाट युवक और खास तौर से मारवाड़ी जाट बाबू गुलाराम जी के जीवन से ग्रहण करते हैं। जिन्होंने अपने ही उद्योग से सरस्वती और लक्ष्मी दोनों ही को तत्परता और सराहनीय ढंग से प्राप्त किया है। आप का संक्षिप्त जीवन परिचय इस प्रकार है।

संक्षिप्त जीवन परिचय: रियासत जोधपुर में बिलाड़ा के रतकुड़िया ग्राम में आज से 56-57 वर्ष पूर्व आपका जन्म हुआ। यह गांव जोधपुर से फुलेरा जाने वाली रेलवे लाइन के उमेद स्टेशन से 2 मील उत्तर पश्चिम की ओर स्थित है। इस परिवार का इतिहास बड़ा ही मनोहर है। जिस प्रकार भारत में सर छोटूरामबुलंदशहर जिले के मुकीमपुर गांव के चौधरी नारायण जी ने अपने उद्योग व परिश्रम से अपने तीनों पुत्रों को और छोटे भाइयों को योग्य बनाकर राज्य के ऊंचे-ऊंचे पदों पर नियुक्त कराया। उसी प्रकार मारवाड़ के रतकुड़िया ग्राम के इन चौधरी गुलाराम ने अपने व्यक्तिगत उद्योग व त्याग से अपने चारों पुत्रों व भाई रिश्तेदारों को योग्य बना कर जोधपुर राज्य के बड़े-बड़े पदों पर पहुंचाया है। आपने अपने परिवार को


[पृ 175]: उत्तम शिक्षा दिला कर मारवाड़ के जाटों का नाम ऊंचा किया है वहां मारवाड़ के जाटों में विद्या प्रचार की पतवार भी अपने हाथों से सबसे पहले उठाई। आज जो मारवाड़ में जाट जाति के अंदर जाति की ओर से विद्या प्रचार करने वाली जो 15-20 संस्थाएं दिखाई दे रही हैं उन सबका श्रेय सबसे पहले आपको है।

आप के 4 पुत्र हैं जिनमें सबसे बड़े कुंवर रामनारायण जी हैं जो महकमा PWD में इंजीनियर हैं। आप बड़े नेक नाम व काबिल अफसर हैं। दूसरे कुँवर गोवर्धन सिंह जी बीएएलएलबी हैं और राज्य में एक्साइज कमिश्नर है। आप बड़े काबिल और होनहार नवयुवक हैं। तीसरे कुँवर बलदेव सिंह जी हैं व चौथे हरि सिंह जी हैं। आपके चारों ही पुत्र विद्वान और भाग्यशाली हैं। आजकल हरि सिंह जी जोधपुर सरकार की ओर से इंजीनियरिंग की विशेष योग्यता प्राप्त करने के लिए अमेरिका गए हुए हैं।

आपके छोटे भाई दूधाराम जी हैं। ईश्वर की कृपा से उनके कई योग्य सुपुत्र हैं। जिनमें सबसे बड़े कुंवर उमेद रामजी पलटन में कैप्टन है। दूसरे कुँवर लक्ष्मण सिंह जी लेफ्टिनेंट है। तीसरे कुँवर लाभूराम जी जानवरों के डॉक्टर हैं। और छोटे बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

शिक्षा और सुधार संस्थाओं को दान देने में चौधरी गुलाराम जी बड़े उदार हैं। अतिथियों का स्वागत सत्कार आपके यहां बड़े प्रेम के साथ होता है।

चौधरी गुलाम रामजी का कौम में कितना मान है। उसके लिए एक यही उदाहरण काफी है कि सन 1946 में जेठाना में होने वाले सम्मेलन के आप सभापति चुने गए थे।


3. चौधरी माधोसिंहजी - [पृ.176]: राय साहिब चौधरी हरिरामसिंह जी से मिलती जुलती सूरत के एक मारवाड़ी सज्जन हैं जो इस वृदधावस्था में अपनी भव्य सूरत से लोगों को आकर्षित करते हैं। उनका नाम चौधरी माधो सिंह जी है। आप जोधपुर राज्य के गंगानी गांव के रहने वाले चौधरी टिकु राम जी उपनाम चौधरी सूरत सिंह जी इनानिया गोत के जाट सरदार के सुपुत्र हैं। आप का जन्म संवत 1948 की अनंत चौदस को हुआ था । शिक्षा आपके घर पर ही हिंदी गुरमुखी में हुई।

आपने जवानी के आरंभ में फौजी सर्विस की किंतु उसे कुछ ही दिन बाद छोड़ दिया। इसके बाद एक जमीदार के यहां मुख्तार हुए और उसे भी छोड़ कर कुछ दिन आपने खेती का काम किया। इसके साथ ही PWD में ठेकेदारी आरंभ कर दी।

जन्मभूमि आपकी मारवाड़ है किंतु उन्नति स्थान आपका कोटा राज्य है। कोटा राज्य में आपकी बड़ी इज्जत है। सरकार और जनता दोनों ही में इसका प्रमाण यह है कि कंट्रोल के दिनों में कोटा सरकार ने आपको 10 निजामत का शुगर कोटा दिया। जनता ने आपको किसान सभा वह जमीदार सभा का प्रेसिडेंट और कोषाध्यक्ष चुना।


कोटा राज्य की ओर से आपको मौजा ऊदपुरा बक्सा हुआ है। आप महाराव साहब कोटा के दरबारी भी हैं। और दशहरा, होली तथा जन्माष्टमी के दरबारों में आप नजर पेश करते हैं। मौजा उदपुरा के अलावा आपकी मौजा बकनपुरा, गरढ़ा और मौज में हीवा जमीदारी है। जमीदारी में आपने पक्के मकान कुआं और बाग भी बनाए हुए हैं।


[पृ.177]: कोटा राज्य के बड़े-बड़े ठिकानेदारों, कोयला, पलायता और कुंदाड़ी के सरदारों के साथ आपके बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं। कोटा राज्य के जागिरदार जाटों के साथ प्रेम का व्यवहार संभवत: करते हैं। उनका रवैया मारवाड़ के जागीरदारों जैसा नहीं है।

आप कोटा राज्य में संवत 1961 से जमने की कोशिश में थे और संवत 1968 से कतई जाम गाय। यहीं से आपने ग्वालियर और टोंक तक धंधे किए हैं ।

कोटा राज्य में चार प्रकार के जाट आबाद हैं जटूनना, आंजना, बृजवासी और सिखा। आपने चारों के अंदर जो खाई थी उस को पाट दिया है और अब चारों में ही ब्याह शादी होने लगे हैं। आपने अपनी जमीदार के गाव गरडा मे एक स्कूल खोला था जिसको अपने खर्चे से 6 साल तक चलाया।

बाबू गुल्ला राम जी के गांव रतकुड़िया के स्कूल और जोधपुर जाट बोर्डिंग हाउस को भी आपने यथाशक्ति मदद दी है। आप समाज सुधार के मामलों में काफी दिलचस्पी लेते हैं और अपनी जन्मभूमि तथा जाति से खूब प्यार करते हैं।

आपके तीन लड़के हैं जिनमें से रणवीरसिंह (उम्र 16-17 वर्ष), सुखबीर सिंह (उम्र 9-10 वर्ष) पढ़ते हैं। तीसरे अभी छोटे हैं। आप पांच भाई थे जिनमें एक नागराज गुजर गया है। आप इस समय एक समृद्धिशाली और बाइज्जत आदमी है। अत्यंत सज्जन पुरुष हैं।

4. चौधरी भीयारामजी सिहाग

चौधरी भींया राम सिहाग

4. चौधरी भीयारामजी सिहाग - [पृ.177]: जहां तक मारवाड़ की सुधारक संस्थाओं का संबंध है आरंभ से ही चौधरी भीयाराम जी का उनके साथ घनिष्ठ


[पृ.178]: संबंध रहा है। मारवाड़ में सबसे पहले विद्या संस्था अर्थात जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर के जारी करने का विचार जिन लोगों के दिलों में उत्पन्न हुआ उनमें इन चौधरी साहब का नाम अग्र भाग लेने वालों ने पहला नहीं तो दूसरा अवश्य है और जब से इस सज्जन ने जाति सुधारक संस्था में भाग लेने का काम शुरू किया है तब से अब तक निरंतर बड़े उत्साह के साथ इन कामों में जुटे चले आ रहे हैं।

यद्यपि इनहोने एक साधारण जाट परिवार में जन्म लिया किंतु इन्होंने दान देने रहन-सहन खान-पान और जाती सेवा अधिकारियों के अपने आप को उच्च कोटि के सज्जनों में गिनती कराई। इन्होने हमेशा भले और बड़े आदमैयों की संगत की।

इनका जन्म परबतसर नगर में हुआ। कुछ समय तक साधारण लोगों के पास नौकरी की परंतु 25 वर्ष की आयु में राज की नौकरी कर ली। नौकरी करते हुए उन्होंने अनेक भूले-भटके लोगों को राजकीय कामों में सहायता दी। कम खर्च और उद्योगी होने के कारण उन्होंने अपने पास धन भी काफी इकट्ठा कर लिया। शुरू से ही बोर्डिंग हाउस के मंत्री या उपमंत्री रहते चले आए हैं। नौकरी छोड़ने से पहले जिन्होंने अपने गांव परवतसर मैं एक नई संस्था जाट बोर्डिंग हाउस के नाम से जारी कर दी है। उस इलाके के उद्योगी अथवा अगुआ लोगों को साथ लेकर उस संस्था को चलाने में जुटे हुए हैं। और नौकरी, जाति सेवा तथा विद्या प्रचार में संलग्न रहना उन्होंने आजकल अपना ध्येय बना लिया है। यह अधिक पढ़े-लिखे नहीं है परंतु अच्छे अनुभवी हैं। अच्छे विचार के धनी और सच्चे कर्मवीर हैं।


[पृ 179]: ईश्वर ऐसे सज्जन मारवाड़ में और पैदा कर जिससे जाट जाति का कल्याण हो। इनकी कोई संतान नहीं है केवल पति पत्नी प्रेम पूर्वक अपना जीवन निर्वाह करते हैं।

5. मास्टर रघुवीरसिंह (तेवतिया) - [पृ.179]: मारवाड़ का नहीं है अपितु मेरठ का रहने वाला है किंतु जिसने मारवाड़ के जाटों की सेवा किसी भी मारवाड़ जाट से कम नहीं की है। उन मास्टर रघुवीर सिंह जी को कौन नहीं जानता। वे आल इंडिया फेस के जाट सज्जन है। उन्होंने अपनी जवानी का पूरा भाग मारवाड़ के जाटों की सेवा में व्यतीत किया है। इस समय उनकी अवस्था 40 से ऊपर होगी। व्यक्तित्व आपका आकर्षक और स्वभाव प्रिय है। आप इस समय जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर के सर्वोपरि प्रबंधक हैं। इससे पहले उन्होंने नागौर बोर्डिंग का प्रबंध भी किया था। मारवाड़ जाट सुधार में आप आरंभ से ही हाईकमान में रहे हैं।

मारवाड़ के सन् 1938 के अकाल में आपने 8 सत्कार पूर्ण कार्य किए हैं। फरीदकोट-पटियाला आदि के वजीरों और राजाओं से मिलकर आपने मारवाड़ के अनेकों जाट बच्चों को खालसा स्कूल में दाखिल कराया और पंजाब की आर्य समाज से भी सहायता ली। कोलकाता चौधरी मूलचंद जी के साथ जाकर धन संग्रह किया

ठंडेपन के साथ जीवन फूंकने में आप एक योग्य पुरुष हैं। मारवाड़ के सभी जाट नेता आपकी योग्यता और ईमानदारी पर विश्वास करते हैं।


6. मास्टर रामचंद्र मिर्धा- [पृ.180]: जब हम मारवाड़ का इतिहास लिखने बैठेंगे उसमें मिर्धा रामचंद्र का नाम अवश्य आएगा। इस सज्जन ने जीवन में जिस सच्चाई और उद्योग से काम किया है और अपने जीवन में जो सफलता इन्हें प्राप्त हुई है उस विचार से इनका नाम मारवाड़ के जाटों में प्रथम नहीं तो दूसरा अवश्य है।

इनका जन्म 18 सितंबर 1889 को कुचेरा ग्राम में हुआ। 18 वर्ष की आयु में मिडिल पास करके आपने स्कूल में मास्टर की नौकरी कर ली। नौकरी करते-करते सन् 1917 में आपने दसवीं कक्षा पास कर ली और एफ़ए की परीक्षा में भी सम्मिलित हुए। मारवाड़ के जाटों में अङ्ग्रेज़ी पढ़ने और मिडिल पास करने में आपका नाम पहला है।

सच्चे और उद्योगी होने के कारण आपका नाम जोधपुर के प्रथम श्रेणी के मास्टरों में है। इनका मुख्य काम जीवन भर स्कूल में पढ़ाना और प्राइवेट ट्यूशन करना रहा है। उसी साधारण तौर से इन्होने आर्थिक स्थिति अनुसार कई बहनों और भाइयों की शादियां की हैं तथा बेटों की पढ़ाई और शादी की हैं। इनके एक छोटे भाई कैप्टन रामकरण मिर्धा हैं जो एक बड़े सज्जन तथा उद्योग की मूर्ति हैं। जोधपुर सरकार से सवा ₹200 मासिक पेंशन पाते हैं और आजकल नागौर प्रबंधकारिणी कमेटी के प्रधान हैं। मास्टर साहब के 3 सुपुत्र और एक सुपुत्री है। सबसे बड़े पुत्र कुँवर सुखदेव मिर्धा बीए एलएलबी जो फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट और हाकिम हैं। दूसरे पुत्र कुंवर रामबक्श मिर्धा बीएएलएलबी मिरधा कोर्ट इंस्पेक्टर है। सबसे छोटे कुँवर रामकिशोर मिर्धा है जो


[पृ.181]: आजकल M.A. LLB में पढ़ रहे हैं। इनके दामाद बाबू आईदान सिंह सब इंस्पेक्टर कॉपरेटिव सोसायटी हैं। यह सब नवयुवक बड़े होनहार तथा प्रसन्नचित हैं।

जाति सेवा के नाते मास्टर साहब ने जातीय विद्या संस्थाओं में बड़े उद्योग के साथ काम काम किया है और शुरू से लेकर आज तक उसी लग्न के साथ इस कार्य में जुटे चले आ रहे हैं। समय के पाबंद हैं जीवन भर अपने सब कार्य नियम और समय की पाबंदी के अधीन रख कर जो सफलता और नाम इन्होंने कमाया है वह प्रशंसनीय है। जीवन भर अधिक उद्योग और परिश्रम करने के कारण उनकी आंखों की दृष्टि वह शक्ति बहुत कमजोर हो गई है। तिस पर भी ये कार्य में लगे रहते हैं।

संसार के अन्य लोगों व विशेषकर जाट जाति को इस परिवार से पाठ लेना चाहिए और सच्चे उद्योगो होकर उन्नति करनी चाहिए। यह परिवार मिर्धा बलदेवराम जी के परिवार की एक शाखा है जो मारवाड़ में आदर्श रूप है।

7. चौधरी देवारामजी भादू - [पृ.181]: इनका जन्म माघ बदी 10 संवत 1938 में हुआ। इनका जीवन अधिकतर जोधपुर शहर में ही गुजरा है। आप महाराज जालिम सिंह जी के खास कारिंदों में से थे। महाराज इन पर बड़ा विश्वास करते थे। जटियात में इनका नाम बड़े होशियार पंचों में गिना जाता है। बहुत दिन से घी का व्यापार करते हैं।

जाति सुधार के कामों में इन्हें विशेष प्रेम है।


[पृ.182]: जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर की संस्था का कोई न कोई काम आप हमेशा करते ही रहते हैं। इस संस्था की प्रबंध कारिणी कमिटी आप पर बहुत विश्वास करती है और संस्थाओं के लिए खाने-पीने का सामान इनहि से खरीदवाती है। बाहर मेलों में प्रचार करने के लिए अक्सर इन्हें ही भेजा जाता है। ग्रामीण लोगों को समझाने और उन पर प्रभाव डालने के काम में यह सबसे निपुण गिने जाते हैं।

8. चौधरी पीरुराम पोटलिया -[पृ.182]: यह सज्जन आजकल युवा अवस्था में है। इनका जन्म माघ सुदी 7 संवत 1961 में हुआ। लगभग 40 से 42 साल की आयु है। आपके पिताजी का नाम मूलाराम जी है। पिता पुत्र दोनों ही स्वभाव के बड़े शील और सच्चे हैं। चौधरी पीरू राम जी अपने खानदान के बच्चों को पढ़ाने में बड़ा परिश्रम करते हैं। इनके और इनके भाई के जो बच्चे हैं वे आजकल पढ़ाई कर रहे हैं।

जातीय कामों में जो भाग लेने की आपको लग्न है वह सराहनीय है। नौकरी करने के बाद जो समय पर मिलता है वह जातीय कामों में लगाते हैं। समय समय पर छुट्टी लेकर बाहर भी जाते हैं। चंदा इकट्ठा करते हैं और बाहर जलसों में खाने पीने के प्रबंध में खूब मदद करते हैं।

आप शुरू से ही जोधपुर शहर में रहते हैं। इस सज्जन की जितनी भी तारीफ की जाए थोड़ी है क्योंकि आप सहनशील स्वभाव के हैं। सच्चे, ईमानदार और परिश्रमी है। कभी किसी से लड़ाई करना जानते ही नहीं।


[पृ.183]: हमेशा अपना समय जाति सुधारन में गरीब से गरीब जाति भाई के घर पर पहुंचकर व्यतीत करते हैं। इनका रहन सहन सादा है। वे बीड़ी तंबाकू भी नहीं पीते हैं।

9. चौधरी मूलचंदजी नागौर

चौधरी मूलचन्द सियाग

9. चौधरी मूलचंदजी नागौर - [पृ.183]:कुछ लोग स्वत: एक जीवित संस्था होते हैं। स्थापित की हुई संस्थाएं तो उनकी छाया मात्र होती हैं। वास्तव में उन संस्थाओं के प्राण होते हैं जिन्हें कि चलाते अथवा स्थापित करते हैं। चौधरी मूलचंद जी नागौर ऐसे ही उत्तम पुरुष हैं।

मारवाड़ में जो भी जाट जागृति है उसके तो आप पिता हैं। कठिन से कठिन परिस्थितियों में आपने जाति को ऊंचा उठाने की कोशिश की है। राजस्थान के जाट महारथियों में आपका स्थान है।

आपके पिताजी का नाम मोतीराम था। आप सोमवंश (चंद्रवंशी) सियाग गोत्र में से हैं। आपकी जन्मभूमि गांव बालवा जो कि नागौर से 6 मील उत्तर में स्थित है। हाल में आबाद गांव चलार शहर से 2 मील पूर्व में एक फार्म पर रहकर अपना गुजारा चलाते हैं। आपका जन्म संवत 1944 की पोश बदी 6 का है। आपकी तालीम साधारण मारवाड़ी है। अलाय, नागौर से जो कि 14 मील स्थित है वहाँ जैन यति गुरांसा अमर विजय जी व लालदास जी हैं। कारणवश पढ़ाई छूट गई फिर भी आपको किताबें वह अखबार पढ़ने का बहुत शौक था। आपने किताबी व अखबारी ज्ञान हासिल किया जिसे अच्छी योग्यता बढ़ गई।

आप प्रकृति से ही स्वतंत्र विचार वाले थे इसीलिए


[पृ.184]: स्वतंत्र महकमा डाकखाने का देखकर आपने चिट्ठी रसा का 24 वर्ष काम निभाया और जहां जहां पर काम पर रहे वहां पर जनता के साथ बड़े अच्छे तालुकात रहे जिसकी वजह से ही आज दिन वहां के आदमियों के कागज पत्र आते हैं और जनता दर्शन के लिए होती है क्योंकि आप सेवाभाव के पुजारी हैं। फिर भी जातिवाद की वजह से जो भी आपदाएं सामने आती रही जिसे अनुभव बढ़ता गया फिर भी चौधरी बहादुर सिंह जी वह चौधरी हरिश्चंद्र जी आपसे जाति कार्य करने की सोबत (संगत) मिली। फिर सबसे पहले जाति पत्र जाट गजट, जो रोहतक से उर्दू में निकलता था, उसके ग्राहक बनकर उसमें लिखादि के द्वारा आवाज हिंदी में पत्र थानेदार अखबार हिंदी भाषा में हो ऐसी आवाज उठाने वालों में सर्वप्रथम थे। कुंवर रतन सिंह जी साहब और जाट महासभा के महामंत्री व कार्यकर्ताओं ने विशेष भाग लेकर सन 1925 में जाट महासभा की तरफ से जाट वीर पत्र हिंदी में जारी किया जिसकी ग्राहक संख्या बढ़ाने में हिंदुस्तान भर में पहला नंबर रहा क्योंकि राजस्थान में थोड़ी हिंदी जाने वाले थे। गांव गांव और झोपड़ी में इसका प्रचार किया। अक्टूबर सन 1925 में जाट महासभा के जलसे में सबसे पहले शामिल होने का मौका मिला, जिसके प्रेसिडेंट महाराज किशन सिंह जी बहादुरगंज थे। जिन्होंने खासकर जातीय भाव व सेवा भाव को कूट कूट कर भरने की चेष्टा की। जिससे जनता पर खूब असर पड़ा। सेवाभाव की दीक्षा आपको उसी मौके उसी जगह मिली। जिसके बाद विद्या प्रचार व कुरीति निवारण के बारे में खूब प्रचार किया।

मारवाड़ के तमाम लोगों की राय इकट्ठी करके


[पृ 185]: जोधपुर में पढ़े-लिखे बिरादरी से मिलकर यही तय किया कि नागौर में बोर्डिंग हाउस खोला जाए क्योंकि हमारे पास जोधपुर में तो कोई काम करने वाला नहीं है। इस पर आप ने वादा किया और अलग-अलग हिस्सों में करीबन 2 वर्ष अपना अमूल्य समय दिया। जिससे जोधपुर बोर्डिंग की नींव पक्की होने के बाद नागौर का नंबर आया। फिर मेड़ता, बाड़मेर में भी बोर्डिंग खोले गए।

नागौर बोर्डिंग की छात्र संख्या बढ़ाने व कुरीति निवारण में बोर्डिंग हाउस के विद्यार्थियों ने मेलों में तथा जगमठों में जहां कहीं भी काम पड़ा आपके साथ जाकर गायन व भजनों द्वारा जनता के अंधेरों रूपी पर्दे को हटाया और प्रकाश डाला जिसमें मुख्यकर चैन सिंह सारण, रामधन जाखड़, पन्नालाल लटियाल, नंदकिशोर गजाधर बाटण, बालकराम थालोड़, व सिम्भू लाल गोलिया मुख्य हैं।

आप में खास बात मिलन सारी मेहनत वर्ताव है। जितनी भी शुरुआत की वजह से बाधाएं उत्पन्न हुई वह सब अपने आप शांति के साथ हटती गई। आपकी लगनशीलता, तत्परता व सच्चाई किसी के सामने नहीं छिप सकी और सन् 1932 में सहयोग से ऐड शुरू हो गई और फिर आपने सन 1935 में सभा की तरफ से बाजरवाड़ा के मोहल्ले में मकान खरीद लिया। आपके तालुकात सच्चाई है परिश्रमी होने से न्याती भाइयों ने आपके पीछे खूब इमदाद की और चंदा व लड़कों का ठाट कर दिया। इसी साल काम ज्यादा बढ़ जाने से आपको दोनों काम संभालने में बाधा पड़ने लगी तो आपने जातीय कार्य श्रेय रूप देकर बीच ही में 24 साल की सर्विस में पोस्ट ऑफिस से मार्च 1935 पेंशन लेनी पड़ी।


[पृ.186]: आपके पांच भाई थे और आपके 8 वर्ष के एक सुपुत्र हैं जिनका नाम ओमप्रकाश उर्फ हर्षवर्धन है। जैसी उमंगें व इच्छाएं आपके पिताजी में हैं उसी प्रकार अभी इसी उमर में आपमें मौजूद हैं। तथा काफी अरसे से बोर्डिंग का कार्य सुचारु रुप से चलने लग गया और दुनिया भी विद्या की तरफ झुकने लग गई तो आपने मारवाड़ की पुरानी रूढ़ियों को मिटाने व हर गांव में स्कूल व पाठशालाएं कायम करने के लिए मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा की सन 1938 में नींव डाली जिसका सब कार्य प्रधानमंत्री पद पर रहकर आज तक संभाल रहे हैं। इस कार्य को भजनों व व्याख्यानों द्वारा देश को सामाजिक व राजनीतिक सभी स्थानों में विस्तारपूर्वक आगे बढ़ाया।

आप जातीय सेवा ही नहीं बल्कि जन सेवा कार्य में भी अग्रसर रहे हैं। आपने आर्य समाजी क्षेत्र नागौर में प्रधानता का काम करके और सब को संगठित करके और संस्कृत विद्यालय की नींव डालने वालों में सबसे आगे रहे। अछूतोद्धार वह मुसलमानों को सभा सोसाइठियों में आपका अग्रसर भाग था और घनिष्ठ संबंध रखते हैं। राजस्थान के खास जातीय कार्यकर्ताओं ने प्रमुख हैं और जाट महासभा के सन 1925 से सभा के प्रबंध कार्यकारिणी कमेटी के मेम्बर रहे है। और मौके पर हरदम मशवरा देते रहे हैं।

भजनोपदेशकों में चौधरी हीरा सिंह जीपंडित तलूराम जी ने बड़ी ही दिलचस्पी से आपके साथ काम किया और गांव गांव में विद्या प्रचार व कुरीति निवारण का संदेश पहुंचाया। आप बड़े ही लगनशील व परिश्रमी हैं जिसमें हीरा सिंह जी अभी उसी रफ्तार से रात दिन आपके साथ सेवा कार्य व दौड़ धूप कर रहे हैं।


सहयोग देने वाले

10. चौधरी दल्लूरामजी तांडी - [पृ.187]: आप नागौर के रहने वाले थे और अच्छ नामी वकील थे। आपका शहर के पूर्व में सुंदर मकान था तथा आपके एक पुत्र पढ़े-लिखे और होशियार थे जिनकी अचानक ही मृत्यु हो गई। आप ने शुरु में ही नागौर बोर्डिंग के लिए कुछ गांव में मूलचंद जी सिहाग के साथ दौरे किए। आपको जातीय कार्य में बड़ी लगन थी। आप सन् 1929 में चौधरी साहब जी के मकान पर ही देहांत हो गया। उनका सामान और बर्तन आदि जो कुछ भी था वह बोर्डिंग में दे दिया गया जिनको आज भी काम में लाया जा रहा है।

11. चौधरी गंगाराम जी - [पृ.187]: आप खिलेरी गोत्र में से हैं। आपका गांव सुखवासी परगना नागौर में है। हाल आबाद बांस बड़ली नागौर में है। आप की साधारण तालीम थी परंतु अभ्यास बड़ा ही तगड़ा था। आपका सन् 1940 ई. में 55 की अवस्था में देहांत हो गया। आप गीता के पक्के उपासक थे और विद्वता में विद्वानों से कम नहीं थे. आप खेती व्यापार दोनों दोनों में कुशल थे। आप विद्या प्रचारक व कुरीति निवारण वालों में चौधरी साहब के परम साथी थे। आप के एक सुपुत्र पढ़े लिखे हैं जिनका नाम जगमोहन सिंह जी है जो होशियार नौजवान हैं।

12. चौधरी जेठारामजी - [पृ.187]: आप काला गांव बलाया परगना नागौर के निवासी थे।


[पृ.188]:आप चौधरी मूल चंद सिहाग के सहयोगी थे। आपने शिक्षा के प्रचार और प्रसार के लिए काम किया।

13. चौधरी जीवनराम जी – [पृ.188]: आप जाखड़ गोत्र में से हैं। आपका गांव रामसिया परगना नागौर है। आप की उम्र इस समय 50 साल है। आप साधारण पढ़े लिखे हैं और आपका खास व्यवसाय खेती व व्यापार है। आपके एक सुपुत्र रामधन जी हैं जो कि नागौर बोर्डिंग के छात्र रहे हैं। चौधरी जीवनराम जाखड़ के सुपुत्र ने बड़े ही आदर्श के साथ पर्दा प्रथा को हटाकर चौधरी शिवकरण जी की भांजी के साथ वेदानुकूल शादी की। कुरीति निवारण व विद्या प्रचार में पिता पुत्र दोनों ही तन मन से हिस्सा ले रहे हैं।

चौधरी शिवकरण जी

14. चौधरी शिवकरण जी - [पृ.188]:आप बुगासरा गोत्र के हैं और आप नागौर के रहने वाले हैं। आपका शुभ जन्म संवत 1962 में पौष सुदी 10 को हुआ। आप अच्छे पढ़े-लिखे हैं और महाजनी में निपुण हैं। आप सन् 1932 से जातीय कार्य में तन मन से पूरी दिलचस्पी ले रहे हैं। आज भी आप जाट सभा व बोर्डिंग नागौर के खजांची हैं और आर्य समाज के मंत्री पद पर काफी अरसे तक कार्य कर चुके हैं। आप कुरीति निवारण में, विद्या प्रचार में, चंदा वसूली में समय-समय पर साथदेते रहे हैं। भाँजियों की शादी में पर्दा प्रथा को हटाकर पुरानी रूढ़ियों का नाम निशान मिटा कर वेदांत शादी कराने में आपने मारवाड़ के जाटों में अग्र भाग लिया है। आप पहले मुनिमी करते थे और अब आप की दो दुकानें चल रही हैं। आपके 2 पुत्र एक पुत्री है। आपके बड़े कुँवर शिवनारायण


[पृ.189]: आर्य समाज महा विद्यालय किरठल में विद्या अध्ययन कर रहे हैं। आप बड़े ही परिश्रमी लग्नशील व सच्चे हैं और खूब दिलचस्पी से सेवा कर रहे हैं। चौधरी भीमाराम जी गोत्र गोल्या गांव छोटीगांवा के थे तथा चौधरी उदाराम जी गोत्र सीकर गांव झाड़ीसरा परगना नागौर के रहने वाले थे। आप तीनो सज्जन पक्की उम्र के थे और जातीय सुधार में बड़े ही लगनशील थे। पिछली उम्र का कुछ अमूल्य समय विद्या प्रचार व कुरीति निवारण में दिया। आज इन तीनों के ही शरीर मौजूद नहीं हैं।

15. चुन्नालालजी सारण - [पृ.189]: गांव मक्कासर तहसील हनुमानगढ़ रियासत बीकानेर के रहने वाले हैं। आप जोधपुर पुलिस में काफी अर्से तक हवलदार पुलिस रहकर अभी रिटायर हुए हैं। आप साधारण तालीम याफ्ता हैं और इस समय 45 साल की उम्र है। आपने मारवाड़ विद्या प्रचार में शुरुआत से ही बड़ी मेहनत वह दिलचस्पी से चंदा वसूली वगैरह कर रहे हैं। आप चौधरी मूलचंद जी के खास सहयोगी हैं। आपके दो और भाई हैं जिनमें चौधरी गंगाराम जी घर की जम्मीदारी का हिसाब संभालते हैं तथा तीसरे ताराचंद जी जो सर्किल इंस्पेक्टर बिजनौर हैं। आप सभी विद्या प्रचार में हुए जातीय कार्य में संलग्न है और कार्यकर्ताओं में मुख्य हैं।

16. मास्टर धारा सिंह जी - [पृ.189]: आप सिंधु गोत्र के हैं और मेरठ जिले के निवासी हैं।


[पृ.190]: आपकी इस समय 50 साल की अवस्था है। आप एजुकेशन डिपार्टमेंट के एग्रीकल्चर के नामी मास्टरों में से हैं। आपने शुरू से ही मारवाड़ की जाति विद्या संस्थाओं को जोड़ने में रात दिन खूब भाग लिया। जहां कहीं पर भी आपका तबादला हुआ वही पर आपने जातीय है लड़कों को 4-5 को तो सुधार कर तैयार किया ही है। आप विचार के धनी हैं इसके लिए आप दीर्घायु हो।

17. चौधरी धनाराम जी PWI – [पृ.190]: आप भांबू गोत्र में से हैं। आपका गांव गोरेड़ी डेगाना स्टेशन के पास है। आप अभी 55 साल की अवस्था में रेलवे की नौकरी से रिटायर होने वाले हैं। आप विद्या प्रचार की संस्था में शुरुआत से ही तन मन धन से भाग लेते आए हैं। आपके दो पुत्र हैं जिनमें बड़े राम सिंह जी p w i हैं तथा दूसरे विद्या अध्ययन कर रहे हैं। आप बड़े ही मिलनसार व शिष्टाचार में अग्रभाग रखते हैं।

18. चौधरी रामदीनजी पीडबल्यूआई

चौधरी रामदान डऊकिया

18. चौधरी रामदीनजी पीडबल्यूआई - [पृ.190]: आपका डऊकिया और गांव खड़ीन के रहने वाले हैं। हाल में आप बाड़मेर में आबाद हैं और कारोबार करते हैं। आप अभी 55 साल की अवस्था मैं नौकरी से रिटायर हो चुके हैं। आप मालानी परगने में एक जातीय सरदार हैं और कुटुंब के धनी हैं। आपके अंदर जातीय सेवाभाव कूट कूट कर भरा हुआ है। शुरू में जोधपुर बोर्डिंग की संस्था कायम करने में आपका खूब हाथ रहा है।


[पृ.191]: इस संस्था को कायम करने में चौधरी मूलचंद जी साहब के साथ आपने वह चौधरी भीया राम जी साहब और बलदेव राम जी मिर्धा के साथ तन मन धन से जुट गए। इसके बाद में आपने बाड़मेर बोर्डिंग की नीव डाली जिसमें आपके बड़े पुत्र कुंवर केसरी मल जी बड़ी लग्न से मंत्री पद का कार्य कर रहे हैं। जोधपुर असेंबली के भी आप मेंबर हैं। आप व्यापार का कार्य करते हैं, बड़े सीधे और सच्चे आदमी हैं। दूसरे कुंवर लाली सिंह जी MA. LLB हाकिम है तथा तीसरे कुंवर गंगाराम जी कानून पढ़ रहे हैं। छोटा परिवार पुत्र-पुत्रियों पढ़ाई कर रहे हैं। बाड़मेर बोर्डिंग के आप जन्मदाता हैं. आपका काफी परिवार रेलवे में मुलाजिमान है जिसमें p w i वह जमादारों की काफी संख्या है। आप का खानदान विद्या में बहुत अग्रसर है और कुरीति हटाने के हामी हैं।

19. चौधरी आईदानजी - [पृ.191]: आप गांव शिवकर परगना बाड़मेर के रहने वाले हैं। आपने बाड़मेर बोर्डिंग स्थापित करने में खूब सहायता दी। आप लग्न के धनी हैं। आपने पैदल दौरे में चौधरी मूलचंद जी को, जबकि बोर्डिंग को कायदे रुप में संचालन करने पधारे थे, तो खूब सहायता की। इन्होंने चौधरी साहब के साथ लड़के इकट्ठे करने में वह धन बटोरने में डेढ़ महीने तक रात-दिन परिश्रम किया और आखिरी समय तक साथ दे रहे हैं। आज भी वैसी ही लगनशीलता से कार्य कर रहे हैं।

20. चौधरी शिवराम जी – [पृ.191]: पेमाराम जी सुपुत्र चौधरी शिवराम जी गोत्र मैया गांव


[पृ.192]:जाखेड़ा परगना मेड़ता के रहने वाले हैं। आपका शुभ जन्म संवत 1970 में भाद्रपद 3 का है। आप जोधपुर में विद्या अध्ययन करने गए थे परंतु कारणवश मामूली विद्याध्ययन कर सकें। धीरे धीरे आप सेवा भाव व कुरीति निवारण की इच्छा पैदा हुई और जगह जगह जिस समय जाट समाज स्थापित हुई, स्कूल खोले गए और सभा की जैर निगरानी में कार्य करने लगे हैं। खास खूबी आप में यह है कि आपमें प्रचार का माद्दा है और लग्न के धनी हैं। आज भी इसी मास्टरी के काम पर तैनात हैं। आप पांच भाई हैं। आपका खास ध्येय जातीय सेवा कार्य ही है। आप सभा व सोसाइटियों में अच्छे इंतजाम करने वाले हैं।

सूबेदार पन्नाराम जी

21. सूबेदार पन्नाराम जी - [पृ.192] : आप मंडा गोत्र में से हैं। आपका गांव ढिंगसरी है। यह परगना डीडवाना में है आपकी इस समय उम्र 45 साल के करीब है। आप पलटन में सिपाही से लेकर सूबेदारी के औहदे तक पहुंचने पर पेंशन ले ली। आप साधारण पढ़े-लिखे हैं और जाति सेवा कार्य में अग्रसर रहते आए हैं। जोधपुर फलटण में जब जाति सरदारों में आप मुख्य सेवा माniयों में से हैं। आप ने जोधपुर बोर्डिंग में चंदे की सहायता दी तथा डीडवाना बोर्डिंग के आप व्यवस्थापक हैं। आपने जातीय भाइयों के लिए रात दिन तकलीफ सहन कर रहे हैं और विद्या प्रचार व कुरीति निवारण की कोशिश करते हैं। आपने जाट सभा में प्रचार मंत्री पद पर रहकर अच्छी ड्यूटी दी है। आप हरदम सभा के ओहदेदार व मेम्बर होते आए हैं।


[पृ.193] : आप अभी डीडवाना बोर्डिंग के उपप्रधान हैं और जातीय कार्य दिलचस्पी से कर रहे हैं। आपके जातीय सेवा रग-रग में कूट-कूट कर भरी हुई है।

22. स्वामी चैनदासजी लोल - [पृ.193] : आप गांव बलुपुरा ठिकाना सीकर रियासत जयपुर के रहने वाले हैं। परंतु अभी आप 20-22 साल से कस्बा लाडनू जोधपुर स्टेट में आबाद है। आपका जन्म संवत 1962 में भादवा सुदी 8 का है। आपने हिंदी व आयुर्वेदिक में विशारद की परीक्षाएं पास की है तथा आपकी विद्यास्थली खास लाडनू ही है। आपकी लेखनी बड़ी तगड़ी है और बोली में बड़े ही निपुण और चतुर हैं। आप नामी वैद्य हैं और इसमें आपका ध्येय यही है कि गरीबों की मुफ्त में सेवा की जाए। गरीबों के सहायक होने की वजह से ही सन् 1939 में माघ मास में लाडनू के जागीरदार ने रात के समय अपने गुंडे से आपके ऊपर हमला करवाया और उसमें आपको काफी चोट लगी। यहां तक कि 3-4 शरीर के अंग की हड्डी टूट गई। आपने कोई परवाह नहीं करते हुये किसानों व गरीबों की पहले से ज्यादा मदद करने लगे। आप सन 1937 से ही मारवाड़ लोक परिषद् के प्रमुख कार्य करते रहे हैं। लोग परिषद डीडवाना के आप प्रेसिडेंट हैं। आपने मारवाड़ लोक परिषद् का जलसा भी विशाल पैमाने पर लाडनू में करवाया। उसमें बाहर गांव की जनता ने खूब भाग लिया। आप राजनीति में खास हिस्सा लेने वाले हैं और जागीरदारों के जुल्मों के कट्टर खिलाफ हैं। किसानों के लिए रात दिन भूखे प्यासे दौड़-धूप कर रहे हैं।


[पृ.194] : आप शुरूआत से ही जाट सभा से ताल्लुक रखते हैं और अभी वाइस प्रेसिडेंट है। आपने न केवल जाति का बल्कि देश सुधार के लिए बड़े काम किए हैं। हिंदुस्तान में जाहिरा व्यक्ति हैं। अपने यहां अछूत पाठशाला बड़े ही सिलसिले से चला रहे हैं। आप ने किसानों के भविष्य के लिए जागीरदारों के खिलाफ कई राजनीतिक कार्य किए हैं और बड़ी-बड़ी राजनीतिक सजाएं भी भोगनी पड़ी परंतु सेवा कार्य में अटल रहे। आपकी रग-रग में तीव्र जोश व सेवाएं भरी हुई हैं। लाडनूं में जितने भी संस्थाएं हैं उन सब में आप का खास हाथ रहता है। आप दिल से कार्य करते हैं। आप अच्छे वैभवशाली हैं। आप सन 1940 के सत्याग्रह में तीसरे डिक्टेटर की हैसियत से जेल गए। चौधरी पन्नाराम जी आपके पिताजी थे।

23. रुद्रा देवी – [पृ.194]: उसने किसी सभा संस्था में शामिल होकर कौम की सेवा नहीं की किंतु पतिव्रत मय साहस से जाट नाम की इज्जत को, जितना उससे बन पड़ा, बढ़ाया है। वह जोधपुर शहर में अपने परिवार के साथ रहती थी। उस के पति का नाम क्या था यह हमें मालूम नहीं है। दिल्ली प्रसिद्ध दैनिक नवयुग में जोधपुर का 25 जुलाई 1934 का निज संवाददाता द्वारा प्रेषित समाचार जो रुद्रा के समाचार में छपा था उसी को हम यहां ज्यों का त्यों प्रकाशित किए देते हैं -

"कल रूद्रा नमक जाट स्त्री का ठाकुर उमेद सिंह फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट की अदालत में दफा 326 पैनल ग्रेड के मातहत चालान हुआ। किस्सा इस प्रकार बताया जाता है –

कहते हैं कि गुंडे रुद्रा जाटनी को बाईजी के तालाब


[पृ.195]:पर तंग किया करते थे। एक दिन वह उस रास्ते से होकर जा रही थी कि एक गुंडा, जिसका नाम मोहम्मद बताया जाता है, ने उस से छेड़छाड़ करनी चाही । रुद्रा ने उस समय गुस्से में अपनी इज्जत को बचाने के लिए उसके ऊपर एक चाकू मार दिया। जिससे उसके चोट आई। इतने में हो हल्ला हो जाने के कारण बाकी के गुंडे वहां से चंपत हो गए। पुलिस ने रुद्रा का चालान चाकू मारने के अपराध में किया है। कोर्ट ने चोधराइन को जमानत पर छोड़ दिया है।

गुंडों का सामना करने का है यह पहला ही मौका है।

24. चौधरी उमारामजी

24. चौधरी उमारामजी - [पृ.195]: आप भाम्बू गोत्र के सरदार हैं। आप यहां ठिकाना रोडू परगना डीडवाना के रहने वाले हैं। इस समय करीब 50 साल की अवस्था में हैं। आपका खास व्यवसाय खेती है। आप विद्या प्रचार व कुरीति निवारण में बड़े ही अगुआ हैं। जागीरदारों के अन्याय को बर्दाश्त नहीं कर सकने की वजह से आपने राजनीतिक संस्थाओं में भाग लिया। आज दिन तक आप पर कई मुकदमे लोगों के सिलसिले व खेतों के बारे में चल रहे हैं परंतु बीथोड़ी के सिवाय एक पाई भी अदा नहीं कर रहे हैं और न अपने साथियों को अदा करने देते हैं। आप बड़े ही साहसी और अग्रगामी हैं। किसानों के लिए एक आदर्श हैं। आप उसी बारे में कई दफा राजनीतिक सजाएँ भोग चुके हैं। अपने घर पर सभी जागीरदारों के गैर-इंसाफ व जुल्मों को मिटाने के लिए स्वाह कर दिए हैं। रात-दिन अपने भाइयों की मदद व समझाइस के लिए भूखे-प्यासे दौड़-धूप पैदल गांव-गांव में भ्रमण करते हैं। आपके दो पुत्र तालीम पा रहे हैं।


[पृ 196] आप जब राजनैतिक कैद भुगत कर पधारे तो धनी मानी सज्जनों ने आपका बहुत ही अच्छा स्वागत किया। लोक परिषद के नेताओं में आप मुख्य हैं।

25. पट्टीदार गणेश रामजी – [पृ.196]: आप मैया गोत्र के हैं। आप गांव खानपुर, जोकि लाडनू कस्बे के पास है, वहां के रहने वाले हैं। इस समय आप करीब 45 साल की अवस्था में हैं। आपका व्यवसाय खेती है। आप विद्या प्रचार व कुरीति निवारण में खूब दिलचस्पी लेते हैं। आप सुधारवादी हैं। आपने ब्राह्मण जाति की लड़की के साथ शादी की है। आपने अपने लड़कियों का भी आदर्श रीति अनुसार विवाह किया है। आप लोक परिषद के खास कार्यकर्ताओं में हैं। राजनीतिक कैद भी आपने जागीरी जुल्म के बारे में भोगी हैं। सेवा कार्य खूब दिल से कर रहे हैं।

26. चौधरी झूमरलाल जी - [पृ.196]:आप पांडर गोत्र के हैं। आपका गांव बोडीन परगना नागौर में है परंतु हाल में नागौर में आवाद हैं। आप नागौर जाट बोर्डिंग हाउस के विद्यार्थी हैं। इस समय आपकी 25 वर्ष की अवस्था है। आप खाती का धंधा करते हैं और लोक परिषद के प्रमुख कार्यकर्ताओं में हैं। आप ने राजनीतिक कैद भी जागिरी जुल्म के खिलाफ में भोगी और रात दिन जागीर प्रथा मिटाने की आवाज बुलंद कर रहे हैं। आप पक्के सुधारवादी हैं। आप श्रीमान चौधरी शिवकरण जी नागौर वालों के भांजे हैं। आपने अपनी बहनों की शादी


[पृ.197]: पर्दा प्रथा को हटाकर वेदानुसार शादी की। आभूषण कुरीतियों का भी खंडन किया। आप हरदम किसानों की भलाई के लिए दौड़ धूप में रहते हैं। जिस समय आप राजनीतिक कैद से वापस पधारे तो जनता ने आपका बड़े ऊंचे पैमाने पर सत्कार परगना नागौर की तरफ से किया।

27. चौधरी हीरेन्द्रजी शास्त्री - [पृ.197]: आप चाहर गोत्र में से हैं। आप डीडवाना परगने के दौलपुरा (?) गांव की दानियों के वाशिंदे हैं। अभी आप की करीब 25-30 साल की अवस्था है। आप जाति में होना हार युवक हैं। आप सुधारवादी सज्जन हैं। आप मारवाड़ किसान सभा में सेक्रेटरी पद का काम कर चुके हैं और लोक परिषद के नेताओं में हैं। इस समय आप "प्रजा-सेवक अखबार" के सहायक संपादक का कार्य कर रहे हैं। आप हरदम जाती सेवा में जुटे रहते हैं और जागीरी जुल्मों को मिटाने में भरपूर सहायता किसानों को पहुंचाते हैं।

28. चौधरी किशनारामजी 29.चौधरी गिरधारीरामजी - [पृ.197]: आप छाबा गोत्र में से हैं। आप अच्छे सज्जन व कुरीति निवारण वालों में अग्र भाग लेते हैं। आप दोनों ने जाति की खूब सेवा की है। अब भी सभा सोसाइटियों में भाग लेते रहते हैं। आप गांव डेह परगना नागौर के रहने वाले हैं।

30. चौधरी मनीरामजी राव - [पृ.197]: आप लूणदा गांव के रहने वाले हैं। आप ने विद्यार्थियों


[पृ.198]: को इकट्ठा करने व बोर्डिंग में तन मन से काम किया आप परिश्रमी सज्जन हैं और जाति सेवा भाव के अटल प्रेमी हैं आप जाट बोर्डिंग में शुरुआत के कार्यकर्ता हैं।

31. चौधरी रुघारामजी साहू - [पृ.198]: आप गांव खारेवाली परगना डीडवाना के रहने वाले हैं। आप अपने सिद्धांत के पक्के हैं और सेवा भाव बहुत ही ज्यादा है। आप बड़े ही हिम्मत वान और कुरीति निवारण व जातीय कार्यों में अग्र भाग ले रहे हैं।

32. चौधरी रामूजी जांगू, अलाय - [पृ.198]: आप अच्छे सजन हैं। और कुरीति निवारण वाले हैं। आपने शुरुआत में ही बोर्डिंग हाउस स्थापित करने में खूब सहायता दी। अब संसार में नहीं है।

33. चौधरी रावतरामजी बाना - [पृ.198]: आप गांव भदाना परगाना नागौर के रहने वाले हैं। आप ने बोर्डिंग को कायम करने व विद्यार्थियों को इकट्ठा करने आदि में चौधरी मूलचंद जी की खूब सहायता की। आप चौधरी जी के शुरुआत के साथ थे। अब शरीर नहीं है।

34. मास्टर मोहनलालजी - [पृ.198]: आप मांजू गोत्र के थे और आपका गांव डोहरबा परगना नागौर में है। आपने जगह-जगह पोशालाओं में रहकर विद्या प्रचार किया और बोर्डिंग में मास्टर और सभा में भी आपने अच्छा कार्य किया। आप जातीय प्रेमी सेवक थे और किसी कार्य में लीन रहते थे परंतु आपका छोटी सी उम्र में देहांत हो गया। साथियों को बड़ा दुख है।


35. मास्टर सोरनसिंहजी- [पृ.199]: उत्तर प्रदेश के रहने वाले स्टेट स्कूलों में मास्टर हैं। आप बड़े ही खानदानी सज्जन पुरुष हैं। आप गौड़ ब्राह्मण हैं आप जाट जाति के सच्चे सेवक रहे हैं और अब भी हैं। आपने 10 वर्ष तक जाट बोर्डिंग नागौर में काम किया। बड़ी मेहनत व ईमानदारी तथा उत्साही सज्जन है। विद्या प्रचार में जाति में आप प्रमुख सज्जन हैं। आपने लड़कों की वह मेहमानों को समझायस करके विद्या प्रचार को फैलाया।

36. चौधरी हेमाराम जाबराथल - [पृ.199]: आप गुजर गोत्र के थे। आप खानदानी सज्जन व विद्या प्रेमी थे। आप धनी मानी सज्जनों में से हैं। आप ने विद्या प्रचार में शुरुआत में चौधरी मूलचंद जी का खूब साथ दिया। अभी इनका देहांत हो गया है। अपने खानदान में तीन चार लड़कों को विद्या पढ़ाई।

37. चौधरी जगमाल जी, गुडला - [पृ.199]: आप गौल्या गोत्र में से हैं। आपने विद्या फैलाव का पूरा शौक है और कुरीति निवारण बालों में प्रमुख है। आपने शुरुआत से ही चौधरी मूलचंद जी का विद्या प्रचार व कुरीति निवारण में साथ दिया और अग्र भाग आज भी लेते रहते हैं।

38. चौधरी महेंद्रनाथजी शास्त्री - [पृ.199]: आप मेरठ जिले के रहने वाले हैं। आप ने बहुत दिनों तक मेड़ता बोर्डिंग हाउस और नागौर बोर्डिंग हाउस में कार्य किया। इसके बाद आपने मारवाड़ जाट सभा के प्रचार कार्य को आगे बढ़ाया। फिर आप अपने देश को वापस हो गए।


[पृ.200]: आप पक्के आर्य समाजी नौजवान हैं। जाट कौम के लिए आपके दिल में कुछ करने की साध है। आपने अपनी शादी तमाम फिजूलखर्ची को त्यागकर भरतपुर राज्य के सांतरुक गांव में पहलवान मुंशीसिंह की लड़की से की है। आप जहां भी रहते हैं जाट उत्थान की बातें साथियों में पैदा करते रहते हैं। अभी आप की अवस्था से 30 साल के करीब है।

39. चौधरी हरदीनरामजी सुखरामजी बाटण - [पृ.200]: आप गाँव सुरपालिया परगना नागौर के रहने वाले हैं। आपने विद्या प्रचार व कुरीति निवारण में अग्रभाग लिया है और ले रहे हैं। आपने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई और बाकी के सभी छोटे बच्चे विद्या अध्ययन कर रहे हैं। आप जाति में कुरीतियों का सबसे पहले त्याग कर रहे हैं। आपने अपनी लड़कियों का वेदानुकूल व शिष्टाचार से विवाह करवाया। आपने मारवाड़ में सबसे पहले यज्ञ करवाया और साथ में विद्या प्रचार व कुरीति निवारण पर उपदेश भी हुए। आप खानदानी सज्जन हैं। जाति की सेवा तन मन और धन से करते आ रहे हैं। विद्या संस्थाओं और जातीय संस्थाओं में भाग ले रहे हैं।

40. चौधरी मगारामजी सांवतरामजी चुंटीसरा - [पृ.200]: आप खानदानी सज्जन हैं। विद्या के सच्चे प्रेमी है। आपने चौधरी मूलचंद जी की विद्या प्रचार में खूब सहायता दी। कुरीति निवारण में सर्वप्रथम भाग लेते रहे हैं।


41. चौधरी कानारामजी, झाड़ीसरा - [पृ.201]: आप सारण गोत्र के जाट हैं। आपने विद्या प्रचार व कुरीति निवारण में अग्र भाग लिया है। खूब समझाइश करके लड़के और चंदा इकट्ठा करते थे आप चौधरी मूलचंद जी के प्रमुख साथियों में से थे।

42. मास्टर सोहनसिंहजी बी.ए. - [पृ.201]: आप तंवर गोत्र में से हैं। आप उच्च कोटि के विद्वान हैं। शुरुआत में आपको चौधरी साहब ने मथुरा से बुलाया गया था। आप उच्च खानदानी सज्जन हैं। आप सच्ची लगन के धनी हैं। आपने नागौर बोर्डिंग का चार्ज लेकर बड़ी प्रगति से वह अच्छे ढंग से कार्य को बढ़ाया। आपकी शुभ सेवा भावनाओं के आदर्श से आपको जोधपुर जाट बोर्डिंग ने अपनी ओर खींच लिया।

जोधपुर बोर्डिंग में आपने बड़ी दिलचस्पी से काम किया। आपने बोर्डिंग को व विद्यार्थियों को आदर्श नमूने के सिरे पर पहुंचाया। आप के समय में जोधपुर बोर्डिंग में बहुत ही तरक्की हुई।

अभी आप सुमेर हाई स्कूल में असिस्टेंट हेडमास्टर हैं। यहां आप अच्छे वेतन व तरक्की पर हैं। जहां पर आपने थोड़ा भी कार्य किया है वहां की पब्लिक आप के लिए तरसती है।

मारवाड़ की जाट प्रगति

[पृ.201]:वैसे तो समस्त राजस्थान में पुष्कर जाट महोत्सव के बाद से जागृति का बीजारोपण हो गया था किंतु मारवाड़


[पृ.202]: में उसे व्यवस्थित रूप तेजा दशमी के दिन सन् 1938 के अगस्त महीने की 22 तारीख को प्राप्त हुआ।

इस दिन मारवाड़ जाट कृषक सुधारक नामक संस्था की नींव पड़ी। इसके प्रथम सभापति बाबू गुल्ला राम जी साहब रतकुड़िया और मंत्री चौधरी मूलचंद जी साहब चुने गए। मारवाड़ भी कुरीतियों का घर है। यहां लोग बड़े-बड़े नुक्ते (कारज) करते हैं। एक एक नुक्ते में 50-60 मन का शीरा (हलवा) बनाकर बिरादरी को खिलाते हैं। इसमें बड़े-बड़े घर तबाह हो जाते हैं। इस कुप्रथा को रोकने के लिए सभा ने प्रचारकों द्वारा प्रचार कराया और राज्य से भी इस कुप्रथा को रोकने की प्रार्थनाएं की। जिसके फलस्वरूप 30 जुलाई 1947 को जोधपुर सरकार ने पत्र नंबर 11394 के जरिए सभा को इस संबंध का कानून बनाने का आश्वासन दिया और आगे चलकर कुछ नियम भी बनाए

सन् 1938-39 के अकालों में जनता की सेवा करने का भी एक कठिन अवसर सभा के सामने आया और सभा के कार्यकर्ताओं ने जिनमें चौधरी रघुवीर सिंह जी और चौधरी मूलचंद जी के नाम है, कोलकाता जाकर सेठ लोगों से सहायता प्राप्त की और शिक्षण संस्थाओं के जाट किसान बालकों का खाने-पीने का भी प्रबंध कराया। नागौर, चेनार, बाड़मेर और मेड़ता आदि में जो दुर्भिक्स की मार से छटपटाते पेट बालक इकट्ठे हुए उनके लिए संगृहीत कन से भोजनशाला खोलकर उस संकट का सामना किया गया।

शिक्षा प्रचार के लिए मारवाड़ के जाटों ने अपने पैरों पर खड़े होने में राजस्थान के तमाम जाटों को पीछे छोड़ दिया है। मेड़ता, नागौर, बाड़मेर, परवतसर और जोधपुर आदि में


[पृ.203] उन्होंने बोर्डिंग कायम किए हैं और चेनार, ढिंगसरी, रोडू, हताऊ, अमापुरा आदि गांव में पाठशाला कायम की है।

कुरीति निवारण, शिक्षा प्रसार और संगठन के अलावा मारवाड़ जाट सभा ने कौम के अंदर जीवन और साहस भी पैदा किया है जिससे लोगों ने जागीरदारों के जुर्म के खिलाफ आवाज उठाना और उनके आतंक को भंग करना आरंभ किया किंतु जागीरदारों को जाटों की यह जागृति अखरी और उन्होंने जगह-जगह दमन आनंद किया। इस दमन का रूप गांवों में आग लगाना, घरों को लुटवाना और कत्ल कराना आदि बर्बर कार्यों में परिनित हो गया। आए दिन कहीं-कहीं से इस प्रकार के समाचार आने लगे। इनमें से कुछ एक का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

चटालिया के जागीरदार ने 50-60 बदमाशों को लेकर जाटों की आठ ढाणी (नगलों) पर हमला किया। जो कुछ उन किसानों के पास था लूट लिया। स्त्रियों के जेवर उतारते समय डाकू से अधिक बुरा सलूक किया। उन लोगों को भी इन बदमाशों ने नहीं बख्शा जो जोधपुर सरकार की फौजी सर्विस में थे। सैकड़ों जाट महीनों जोधपुर शहर में अपना दुखड़ा रोने और न्याय पाने के लिए पड़े रहे, किंतु चीफ मिनिस्टर और चीफ कोर्ट के दरवाजे पर भी सुनवाई नहीं हुई। इससे जागीरदारों के हौंसले और भी बढ़ गए।

पांचुवा ठिकाने में कांकरा की ढानी पर हमला करके वहां के किसानों को लूट लिया। लूट के समय कुछ मिनट बाद वहीं के पेड़ों के नीचे जागीरदार के गुंडे साथियों ने कुछ बकरे काटकर उनका मांस पकाया और उस समय तक स्त्रियों से जबरदस्ती


[पृ.204] पानी भराने और घोड़ों को दाना डालने की बेगार ली। यहां के किसानों का एक डेपुटेशन आगरा ठाकुर देशराज जी के पास पहुंचा। उन्होंने जोधपुर के प्राइम मिनिस्टर को लिखा पढ़ी की और अखबारों में इस कांड के समाचार छपवाए किंतु जोधपुर सरकार ने पांचवा के जागीदार के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की।

भेरु के जागीरदार ने तो जाटों की एक ढाणी को लूटने के बाद उसमें आग लगा दी और खुद बंदूक लेकर इसलिए खड़ा हो गया कि कोई आग को बुझा कर अपने झोपड़ियों को न बचा ले।

सभा के प्रचारकों को प्रचार कार्य करने से रोकने के लिए, रोज गांव में जबकि प्रचार हो रहा था, वहां का जागीरदार 150 आदमी लेकर पहुंचा और लाठियां बरसाने की आज्ञा अपने आदमियों को दे दी। जैसे तैसे लोगों ने अपनी जानें बचाई। खारी के जागीरदारों ने तो यहां तक किया कि सभा के प्रचार मंत्री सूबेदार पन्नाराम जी के गांव ढिंगसरी पर हमला कर दिया। सुबेदार जी अपनी चतुराई से बच पाये।

बेरी के जागीरदार ने बुगालियों की ढाणी पर हमला करा के गांव में आग लगा दी। जिससे चौधरी रुघाराम जी और दूसरे आदमियों का हजारों का माल जल गया।

खींवसर के जागीरदार ने टोडास गांव में श्री दामोदर राम जी मोहिल सहायक मंत्री मारवाड़ किसान सभा को रात के समय घेर लिया। जागीदार के आदमियों ने लाठियों से उन्हें धराशाई कर दिया और वह भाग न जाए इसलिए बंदूक से छर्रे चलाकर पैर को जख्मी कर दिया। इसके बाद उन्हें अपने गढ़ में ले जाकर जान से मार देना चाहा किंतु कुछ


[पृ.205] सोच समझकर एक जंगल में फिकवा दिया। 6 अप्रैल 1943 को उनके एक देहाती मित्र के सहयोग से जोधपुर के विंढम अस्पताल में पहुंचा कर उनकी जान बचाई गई।

खामयाद और भंडारी के जागीदार और भूमियों ने तारीख 17 मई 1946 को दिन छिपे लच्छाराम जाट की ढाणी पर हमला किया। लच्छा राम और उसके बेटे मघाराम को जान से मार दिया और फिर मघाराम की स्त्री को बंदूक के कुंदों से मारकर अधमरी करके पटक दिया। उसके बच्चों को इकट्ठा करके झूंपे में बंद कर दिया और आग लगाकर चलते बने। मंजारी सूटों की भांति बच्चे तो बच गए।

जोधपुर से प्रकाशित होने वाले लोक सुधारक नामक साप्ताहिक पत्र ने सन 1947 और 1948 के जुलाई महीने तक के जागीरदारी अत्याचारों की तालिका अपने 9 अगस्त 1948 के अंक में प्रकाशित की है जिसका सार यह है-

डीडवाना परगने के खामियाद के जागीरदारों ने 2 जाट किसानों के समय को क़त्ल कर दिया। डाबड़ा हत्याकांड में चार जाट किसान मारे गए। यहां लगभग डेढ़ हजार जागीरदार के गुंडों ने हमला किया। नेतड़िया परगना मेड़ता में एक जाट किसान को हमलावरों ने जान से मार डाला। मेड़ता परगने के ही खारिया, बछवारी, खाखड़की गांवों पर जो गुंडे जागीरदारों ने हमले कराये उनमें प्रत्येक गांव में एक-एक आदमी (जाट) मारा और अनेकों घायल हो गए। बाड़मेर परगने के ईशरोल गांव की एक जाटनी को बंदूक की नाल के ठूसों से जागीरी राक्षसों ने मार डाला। इसी परगने के लखवार, शिवखर और दूधु गांव पर हमला किया गया जिनमें लखवार का एक जाट और शिवखर का एक माली मारा गया। बिलाड़ा में बासनी बांबी


[पृ.206] किसान हवालात में जाकर मर गया। इसी बिलाड़ा परगने में वाड़ा, रतकुड़िया, चिरढाणी गांव पर जो हमले जागीरदारों ने कराए उनमें क्रमशः एक, दो और एक जाट किसान जान से मार डाले गए। नागौर परगने के सुरपालिया, बिरमसरिया, रोटू और खेतासर गांव में जाट और बिश्नोईयों की चार जाने कातिलों के हमलों से हुई। शेरगढ़ परगने के लोड़ता गांव में हमलावरों ने एक बुड्ढी जाटनी के खून से अपनी आत्मा को शांत किया। ये हमले संगठित रूप में और निश्चित योजना अनुसार हुए जिसमें घोड़े और ऊंटों के अलावा जीप करें भी इस्तेमाल की गई। जोधपुर पुलिस ने अब्बल तो कोई कारवाई इन कांडों पर की नहीं और की भी तो उल्टे पीड़ितों को ही हवालात में बंद कर दिया और उन पर मुकदमे चलाए।

सभा के प्रचारकों को भी मारा गया। कत्ल किया गया और पीटा गया। इन तमाम मुसीबतों के बावजूद भी सभा बराबर अपने उद्देश्य पर अटल रही और शांतिपूर्ण तरीकों से अपने कदम को आगे बढ़ाती रही।

मारवाड़ जाट सभा के सहायक

[पृ.206] जिन लोगों का पिछले पृष्ठों में जिक्र किया जा चुका है उनके सिवा मारवाड़ जाट सभा को आगे बढ़ाने में निम्न सजजनों के नाम उल्लेखनीय हैं:

1. स्वामी आत्माराम जी मूंडवा - जो कि अत्यंत सरल और उच्च स्वभाव के साधु हैं और वैद्य भी ऊंचे दर्जे गए हैं। आप अपने परिश्रम से अपना गुजारा करते हैं।


[पृ.207]

आपका यश चारों ओर फैला हुआ है। आप अपने पवित्र कमाई में से शिक्षा और स्वास्थ्य पर दान करते रहते हैं।

2. स्वामी सुतामदासजी - आप नागौर के रहने वाले हैं और योग्य वैद्य हैं। आपको अपनी जाति से प्रेम है और जनसेवा के कार्यों से दिलचस्पी रखते हैं।

3. स्वामी जोगीदास जी - आप भी मूंडवा के ही रहने वाले हैं और वैद्य भी हैं। आपको भी कौमी कामों से मोहब्बत है।

4. स्वामी भाती राम जी - जोधपुर में रहते हैं। आपका व्यक्तित्व ऊंचा और स्वभाव मीठा है। आप प्रभावशाली साधु हैं। सभा के कामों में सदैव सहयोग दिया है और सभा के उप प्रधान रहे हैं।

5. महंत नरसिंहदास जी - आप भी मारवाड़ जाट सभा के उप प्रधान रहे हैं और सदा सभा को आगे बढ़ाने का कोशिश करते रहे हैं। आप एक सुयोग्य साधु हैं।

6. कुंवर गोवर्धन सिंह जी – आप सियाग गोत्र के जाट सरदार हैं। पीपाड़ रोड के रहने वाले हैं। आपने उच्च शिक्षा प्राप्त की है, ग्रेजुएट है। आप सभा के उरसही कार्यकर्ता रहे हैं। और असेंबली के लिए सभा ने जिन सज्जनों के नाम पास किए थे उनमें आपका नाम था। इससे आपकी योग्यता का परिचय मिलता है। आप इस समय सभा के उप मंत्री हैं।

7. चौधरी किसनाराम जी - आप छोटीखाटू के रहने वाले हैं। आपके पुत्र श्री राम जीवन जी तथा दूसरे योग्य आदमी और जाति हितेषी हैं। आप का गोत्र रोज है। आप इस समय मारवाड़ जाट सभा के प्रधान हैं। बड़े उत्साह और हिम्मत के आदमी हैं। जागीरदारों से आपने हिम्मत के साथ टक्कर ली।


[पृ.208]:

आप पर मारवाड़ के जाट पूर्ण विश्वास रखते हैं। धनी माँनी आदमी हैं।


8. चौधरी देशराज जी - आप महाराजपुरा गांव के रहने वाले बाअसर जाट सरदार हैं। आप मारवाड़ जाट सभा के प्रधान रहे हैं और उसे आगे बढ़ाने में खूब परिश्रम किया है। दिलेर आदमी हैं। आप का गोत्र लेगा है।

9. कुंवर करण सिंह - आप नागौर परगने के रहने वाले नौजवान व्यक्ति हैं। आपका जीवन उत्साही जवानों का जैसा है। आप इस समय वकालत करते हैं और जाट बोर्डिंग हाउस नागौर के आप सुपरिटेंडेंट रह चुके हैं। आप रचनात्मक काम में अधिक दिलचस्पी रखने वाले आदमियों में से हैं।

10. चौधरी गजाधर जी - आप का गोत्र बाटण है। आप सुरपालिया के रहने वाले हैं। आपके गांव में आपके उद्योग और सहयोग से एक जाट पाठशाला चलता है। आप भी इस वर्ष 1948 में मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा के उप मंत्री हैं।

11. चौधरी धन्नाराम जी पंडेल - आप उसी छोटी खाटू के रहने वाले जाट सरदार हैं जिसके कि चौधरी किसनाराम जी। आप धनी आदमी में से हैं। लेन-देन और व्यापार की ओर आप के पुत्रों की रुचि है आप का गोत्र पंडेल है। इस समय आप की अवस्था 70 साल के आसपास है आप सभा की कार्यकारिणी के सदस्य हैं।

12. चौधरी रामू राम जी - आप लोयल गोत्र के जाट सरदार हैं। स्वामी चैनदास जी के संसर्ग से आप में काफी चेतना पैदा हुई। लाडनू के रहने वाले हैं। इसमें मारवाड़ जाट सभा के आप अंतरंग सदस्य हैं।

13. सूबेदार जोधा राम जी - आप इस समय मारवाड़

[पृ.209]:

जाट कृषक सुधार सभा की वर्किंग कमेटी के सदस्य हैं। और समझदार कार्यकर्ता हैं और खारी गांव के रहने वाले हैं।

14. चौधरी गंगाराम जी मामड़ौदा - आप समझदार आदमी हैं। मारवाड़ जाट कृषक सुधार सभा की इस वर्ष की कार्यकारिणी के मेंबर हैं।

15. चौधरी शिवराम जी मैना - आप जाखेड़ा गांव के रहने वाले मैना गोत्र के जाट सरदार हैं और मारवाड़ जाट सभा की अंतरिम कमेटी के सदस्य हैं।

मारवाड़ के अन्य जाट जन सेवक

उपरोक्त सज्जनों के सिवा जाट कृषक सुधार सभा की प्रबंधकारिणी और कार्यकारिणी में रहकर नीचे लिखे और भी सज्जनों ने जाट जाति की सेवा करके अपने को कृतार्थ किया है, जो निम्न है -

[पृ.210]:


स्वामी जैतरामजी

[पृ.210]: स्वामी जैतरामजी का रहस्यमय जीवन चरित्र वर्णन करते हुए हमें एक अलौकिक प्रसन्नता का आभास होता है। आपकी जीवन घटनाओं पर यद्यपि आज के समय में बहुत कम लोग विश्वास करेंगे लेकिन वस्तुतः यह घटना सच्ची और प्रमाणिक है।

आपके पूज्य पिताजी का नाम चौधरी तिलोक राम जी था। आपका जन्म संवत 1843 में सिहाग गोत्रीय जाट घराने में हुआ। आपका घराना किसी समय बीकानेर रियासत से उठकर मारवाड़ में आबाद हो गया था। आपका गांव मीजल घुपाड़ा से 2 कोस दक्षिण-पश्चिम है। वहीं बालक जैतराम जी का जन्म संवत 1906 (=1849 ई.) में माता श्रीमती रामी बाई की कोख से हुआ। बालक जैत राम जी अभी 5 वर्ष के ही होने वाले थे संवत 1911 में आपके पूज्य पिताजी चौधरी तिलकराम जी का


[पृ.211]: स्वर्गवास हो गया। पति की मृत्यु पर आप की पूज्या माता ने पति के साथ सती होने की इच्छा प्रकट की। परंतु गांव वालों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। पवित्रता ने इस विरोध की परवाह न करते हुए हर प्रकार से पतिदेव के साथ सती होने का दृढ़ संकल्प प्रकट किया। इस पर लोगों ने पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने इस धर्म परायण वीर रमणी की इच्छा को ठुकराते हुए उसे एक मकान में बंद कर बाहर से ताला लगा कर पहरा बैठा दिया। यद्यपि इस बीच सती ने अनेकों पर्चे दिये। परंतु इस पर भी गांव वाले तथा पुलिस ने उन्हें सती नहीं होने दिया। देवी मकान में बंद होते हुए भी ईश्वर में लो लगाए रही। रात्रि के चतुर्थ प्रहर में रामी बाई को पति के वियोग में व्याकुल श्री महाराज संत सुरताल जी वहां प्रकट हुए।

महाराज ने रामी बाई से कहा कि ‘हमने तेरी सब इच्छा पूर्ण की तू जो चाहे सो मांग’। इस पर देवी जी ने अपने इष्ट देवपूज्या पति के साथ सती होने की इच्छा प्रकट की। सन्यासी जी महाराज ने कहा तथा एवमस्तु और मकान खोल उसे श्मशान ले गए। रामी बाई के पति की चिता ठंडी हो चुकी थी। क्योंकि उनका दाह संस्कार किए 24 घंटे से अधिक समय हो चला था। स्वामी जी महाराज से रामी बाई ने प्रार्थना की कि इस ठंडी चिता में मैं कैसे सती हो सकूंगी। इस पर पूज्य स्वामी जी ने कहा “तुमको इसकी चिंता नहीं तुम चिता पर बैठ जाओ”। बैठते ही चिता जलने लगी। रामी बाई ने चाहा कि पुत्र जैतराम को भी साथ लेकर ही सती हो। परंतु स्वामीजी ने कहा इससे तो तुम्हें जीव हत्या का दोष लगेगा। इस पर माता रानी


[पृ. 212]: बाई ने अपने प्रिय पुत्र जैतराम का हाथ स्वामी जी को पकड़ा दिया और हर प्रकार के बच्चे का भार उन्हें सोंप स्वयं भगवान का भजन करते हुए सती हो गई। रामी बाई को घर में न पाकर गांव वालों के साथ पहरे वाले बड़े हैरान हुए। शमशान में चिता को जलते देख कर यह लोग शमशान की तरफ दौड़े। रामी बाई को जलते देख और बच्चे को स्वामी जी को ले जाते देखकर वे स्वामी जी की ओर दौड़े। स्वामी जी पर वे लोग बहुत बिगड़े। और यहां तक उन लोगों ने धृष्टता की कि शस्त्र प्रहार से पूज्य स्वामी जी का दाहिना हाथ भी काट दिया। स्वामी जी ने लोगों को वापस लौटने के लिए बहुत समझाया किंतु वह न लौटे और स्वामी जी पर लाठियों का प्रहार करने लगे। इसपर स्वामी जी ने क्रुद्ध हो कर कहा, जाओ तुम्हारा सारा गांव ही शमशान की तरह हर समय जलता रहेगा। लोगों ने देखा तो गांव आग की प्रचंड लपटों से जल रहा है। लोग गांव की ओर भाग गए। स्वामी जी बालक जैतराम को ले अपने स्थान पर पहुंचे।

स्वामी जी ने बच्चे को यथाविधि पालन कर उसे सब योग्य बनाया और अपना उत्तराधिकारी भी उन्हें बनाया। मृत्यु के समय सन्यासी जैतराम जी के तपस्वी गुरु ने उन्हें सब वर्णन सुनाया लेकिन गांव का नाम नहीं बताया। अपने शिष्य से जैतराम जी ने यह भी आदेश किया कि वह भी उधर न जाए।

स्वामी जी ने अपनी सुलेखनी द्वारा कई एक अभूतपूर्व बातें लिखी हैं। आप गंगा का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि हिमालय से जितने नदियां निकली हैं वे सब गंगा हैं। परंतु प्रसिद्ध नाम थोड़े ही हैं। विष्णु गंगा का नाम भागीरथी है।


[पृ. 213]: गंगोत्री ब्रह्म गंगा आलखासन पहाड़ से निकलती है। वहां अलखावत पुरी देववासा है। उत्तरी हिमालय से आई हुई, देवप्रयाग में नंदगंगा से मिल गई, विष्णु गंगा भी वही गंगा में शामिल हो गई, करण गंगा विष्णु गंगा में पांडु के सरसे पांडु गंगा में सब गंगा मिल गई। रुद्र गंगा रुद्रप्रयाग से तथा अखैनन्दा अखंड आसन से निकाल कर रुद्र गंगा में मिल गई। जटांबरी अखैनंदा में शरीक हो गई परंतु इन सब गंगाओं में केवल भागीरथी का इनाम प्रसिद्ध है। लक्ष्मण झूला से सारी ही धाराएं शामिल होकर चलती हैं। देवप्रयाग से यमुनोत्री 161 मील दूर पड़ती है। यमुनोत्री में जाटों का एक हवन कुंड है जो सुरबाद के जाट गणों की तपोभूमि का हवन कुंड बतलाया जाता है। ब्रहम ऋषि जमदग्नि ने तप किया तब से यमुनोत्री तो आम हो गई। महाराजा हरिराम गढ़वाल फिर से जटावी गंगा पर जाट का कब्जा स्थापित किया। यह राजा जिस संवत में हुआ है उसका पता सर्व संवत नाम की पुस्तक से मिल सका है। यमुनोत्री से करीब 54 मील की दूरी पर आपका आसन पाया जाता है। यह आसन यमुनोत्री हरिहर आश्रम ब्रह्मचर्य से उत्तर पूर्व की ओर 54 मील पर है।

मारवाड़ के उल्लेखनीय नवयुवक कार्यकर्ता

मारवाड़ (जोधपुर स्टेट) के उल्लेखनीय नवयुवक कार्यकर्ता

[पृ.213]: मारवाड़ के पुराने कार्यकर्ताओं के अलावा नवयुक उम्र में भी जाति प्रेम की भावना बड़ी तेजी व उग्रता से बढ़ती जा रही है। इन युवकों का साहस, जाति वत्सलता व कौमी सेवा


[पृ.214]: आदि भावनाओं को देकर इस नतीजे पर सहज ही पहुंचा जा सकता है कि इनके परिश्रम से मरुधर के सारे जाट अपने निजी मतभेद को भूलकर जल्दी ही एक सूत्रधार में बंध जाएंगे और गिरी हुई अपने राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा को जल्दी ही उन्नतिशील बनाएंगे। मारवाड़ के नवयुक जाती सेवकों में निम्न लिखित महानुभावों के नाम उल्लेखनीय हैं:

  1. नाथूराम मिर्धा, कुचेरा, नागौर....p.214-215
  2. गोवर्धनसिंह चौधरी, रतकुड़िया, जोधपुर....p.215
  3. चौधरी लालसिंह डऊकिया, खड़ीन, बाड़मेर ....p.215-216
  4. चौधरी लिखमा राम भाकल, जनाणा, नागौर....p.216-217
  5. राम किशोर मिर्धा, कुचेरा, नागौर....p.217
  6. राम करण मिर्धा, कुचेरा, नागौर....p.218
  7. मेजर मगनीराम चौधरी, भाकरोद, नागौर....p.218-219
  8. मेजर मोहनराम चौधरी, नराधना, नागौर....p.219
  9. मेजर नेनूराम चौधरी, ----, नागौर....p.219
  10. चौधरी हरदीनराम, जायल, नागौर....p.220
  11. नरसिंह कछवाह, ----, जोधपुर....p.220-221
चौधरी नाथूरामजी मिर्धा

1. ऑनरेबल चौधरी श्री नाथूरामजी मिर्धा कृषि मंत्री गवर्नमेंट ऑफ जोधपुर - [पृ.214] आप परगना नागौर के गांव कुचेरा के प्रतिष्ठित मिर्धा खानदान में से हैं। आप बचपन से ही बड़े होनहार थे और अपनी निर्भीकता तथा स्पष्टवादिता से अपने स्कूल या कॉलेज में मशहूर हो गए थे। किसान कौम व जाट जाति के प्रति शुरु से ही आपको अथाह प्रेम था। आपने अध्ययन काल में ही अपनी जात सेवा का बीड़ा उठा लिया था और जाट सभा वह किसान सभा की बैठकों, मीटिंग व जलसों में भाग लेने लगे थे। विश्वविद्यालय में पढ़ाई समाप्त करने के बाद अपने उद्देश्य अनुसार किसान कौम की भलाई के लिए वकालत के धंधे में लग गए और किसान सभा का काम भी दिलचस्पी से करने लगे। शीघ्र ही आप किसान सभा के मंत्री चुने गए और मारवाड़ में सर्वदलीय मंत्रिमंडल बनने पर 3 मार्च 1948 को किसानों का प्रतिनिधित्व करने के लिए उक्त मंत्रिमंडल में कृषि-मंत्री बनाए गए। आप बड़े मिलनसार हैं और आपके हाथों में किसानों को अपने हक-हकूकों की रक्षा होने का पूरा विश्वास है। आपने इस अंतरिम काल में


[पृ.215]: जागीरदारों की ज्यादतियों को रोकने के लिए बड़ी योग्यता के साथ कदम उठाया है। एक शासक में जो योग्यता होनी चाहिए वह आपमें है और आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जाट स्वभावत: शासक है। आप से किसानों को बड़ी उम्मीदें हैं।

गोवर्धनसिंह चौधरी

2. कुंवर गोवर्धनसिंह चौधरी जुडिशल हाकिम - [पृ.215]: आप मारवाड़ की जाट जाति के प्रसिद्ध सेनानी चौधरी श्री गुलाराम जी मौजा रतकुड़िया वालों के सुपुत्र हैं। आप का परिवार मारवाड़ के जाट घरानों में विशेष स्थान रखता है। आप में जाति प्रेम की भावना बचपन से ही आपके योग्य पिता ने भर दी थी। बड़े होने पर आपमें यह भावना बहुत उग्र हो गई और अपनी सामर्थ्य अनुसार जाति सेवा कार्य में लग गए। आपका अधिकांश समय किसानों के दुख निवारण करने के उपाय में व्यतीत होता है। किसानों के साथ आए दिन होने वाले जुल्म व उनकी गिरि हुई दशा आपसे देखी नहीं जाती और आप किसानो के जीवन के हर पहलू में क्रांति चाहते हैं। किसानों का पक्ष लेने की वजह से मारवाड़ का सामंती व प्रतिक्रियावादी वर्ग आपसे सदा विरुद्ध रहा है और कई दफा आपको नुकसान पहुंचाने की चेष्टाएं की गई और एक दो दफा तो आपको काफी क्षति उठानी पड़ी है। आपके अवकाश का अधिकांश भाग किसानों की उन्नति की योजनाएं सोचने में व्यतीत होता है। आप परिश्रमी और विचारक हैं।

3. कुंवर श्री लालसिंह चौधरी हाकिम - [पृ.215]: आप मारवाड़ के प्रसिद्ध कार्यकर्ता


[पृ 216]: चौधरी श्री राम दान जी पीडबल्यूआई के सुपुत्र हैं। आप अध्ययन काल से कुशाग्र बुद्धि शाली हैं। शुरु से ही आपको जाट जाति व किसान वर्ग से विशेष दिलचस्पी रही है और उसकी सेवा करना आप का मुख्य उद्देश्य रहा है। आजकल आप जोधपुर राज्य के न्यायालय विभाग के कुशल हकीम और फिलहाल प्राइस कंट्रोल डिपार्टमेंट में डिप्टी कमिश्नर हैं। आप जाट बोर्डिंग हाऊस जोधपुर की प्रबंधक कारिणी कमेटी के उप-प्रधान हैं। आप हर प्रकार से किसान व जात भाईयों का उपकार करना अपना परम धर्म समझते हैं। आपके अवकाश काल का मुख्य कार्य किसानों की समस्याओं को सुलझाने की बातें सोचने में होता है।

लिखमाराम चौधरी वकील

4. कुंवर श्री लिखमाराम चौधरी वकील नागौर - [पृ.216]: आप परगना नागौर गांव जनाणा के प्रतिष्ठित घराने में से हैं। आप स्कूल समय से ही बड़े प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। आप हर कक्षा में प्रथम रहे हैं। समूची किसान कौम विशेषकर जाट जाति के प्रति शुरू से ही आपको अथाह प्रेम व श्रद्धा थी। अध्ययन काल से ही आपने वह आप के सहपाठी मित्र चौधरी श्री नाथूराम ने यह नियम बना लिया था कि वह अपने जीवन में ऐसा ही धंधा करेंगे जिससे किसान कौम को ज्यादा से ज्यादा फायदा हो। इस नियम की पूर्ति में आपने बीए एलएलबी करते ही वकालत करनी शुरू कर दी व हृदय से कौमी सेवा में लग गए। मारवाड़ के किसानों के हृदय में आपने छोटी सी उम्र में जगह करली है और मारवाड़ के किसानों को जागीरी जुल्मों से छुटकारा दिलाने


[पृ217]: वालों की श्रेणी में आपका नाम भी उल्लेखनीय है। आजकल आप श्री जाट बोर्डिंग हाउस नागौर की प्रबंध कार्यकारिणी कमेटी के मंत्री व जिला किसान सभा नागौर के मंत्री हैं।

5. कुंवर श्री रामकिशोर मिर्धा वकील जोधपुर - [पृ.217]: आपका जन्म कुचेरा के प्रतिष्ठित मिर्धा घराने में चौधरी श्री रामचंद्र जी मास्टर साहब के यहां हुआ। कुंवर साहब मास्टर जी रामचंद्र जी के सबसे कनिष्ठ लड़के हैं। कुंवर साहब के पिता जी ने सारी उम्र विद्या प्रदान करने में व जनोपकार में बिताई है। तथा अब अधिकांश समय ईश्वर भक्ति में व्यतीत कर रहे हैं। मास्टर साहब ने अपने 3 लड़कों को एमए, एलएलबी की उच्चतम शिक्षा दिलाई है। आपके ज्येष्ट पुत्र श्री सुखदेव मिर्धा अभी मारवाड़ के न्याय विभाग में प्रथम श्रेणी के ईमानदार हाकिम हैं। तथा अपने कार्य में सकुशल और सुसफल हैं। आपसे छोटे श्री रामबाक्ष मिर्धा हैं जो अभी जोधपुर राज्य के पुलिस विभाग में पब्लिक प्रॉसिक्यूटर है। आपको अपनी जाति से काफी प्रेम है। मास्टर साहब के कनिष्ठ पुत्र रामकिशोर मिरधा को जाट जाति व किसान वर्ग से विशेष प्रेमी हैं। विश्वविद्यालय की पढ़ाई समाप्त करते ही आपने किसान सेवा व जाति सेवा का बीड़ा उठाया है। आप मारवाड़ किसान सभा के प्रधान मंत्री तथा श्री जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर की प्रबंधकारिणी समिति के प्रधान मंत्री हैं। अलावा उसके आप किसानों के एकमात्र साप्ताहिक समाचार लोक सुधार के संपादक हैं।


6. चौधरी श्री रामकरणजी मिर्धा रिटायर्ड कप्तान - [पृ.218]: आप कुचेरा के प्रसिद्ध मिर्धा कुल के हैं। आपके पिताजी का शुभ नाम चौधरी राम नारायण जी था जो आसपास के इलाके में बड़े प्रभावशाली थे। कप्तान साहब शुरू से ही बड़े होनहार बालक थे और आपको जाति से शुरू से ही विशेष प्रेम था और समय-समय पर अपनी कौमी सेवाएं करते ही रहते थे। सेना में आपने हमेशा जाटों का सच्चा पक्ष निर्भीकता से लिया और सेना से रिटायर होने के बाद आपको जाती सेवा के लिए काफी अवकाश व कार्यक्षेत्र मिल गया। आजकल आप श्री जाट बोर्डिंग हाउस नागौर प्रबंधकारिणी कमेटी के प्रधान तथा मारवाड़ किसान सभा के प्रसिद्ध कार्यकर्ता हैं।

आप प्रतिष्ठित जाट घराने से हैं तथा बचपन से ही साहसी व होनहार हैं। स्वजाति वह किसान वर्ग के आप आदि से हितैषी हैं। द्वितीय महायुद्ध के प्रारंभ में ही आप ने सेना की नौकरी कर ली तथा योग्यता व तीक्षण बुद्धि के कारण अल्प काल में ही लेफ्टिनेंट से कप्तान हो गए। आप का शुद्ध जाति प्रेम सराहनीय दर्जे का है तथा आपका स्वजाति अभिमान एक अनोखी चीज है। आपने जाति के लिए बड़े से बड़ा त्याग किया और कप्तान के पद को ठोकर लगा दी। आजकल आप स्वतंत्र जीवी हैं। अपना अधिकांश समय जाति सेवा के काम में लगाते हैं। आप मारवाड़ जाट सभा के अब प्रधानमंत्री हैं।

7. मेजर मंगनीराम चौधरी - [पृ.218]:आप भाकरोद नामक गांव के एक प्रतिष्ठित जाट घराने में से हैं। हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद आपने सेना में नौकरी


[पृ.219]: कर ली तथा अपने सर्वतोमुखी प्रतिभा के कारण अल्प समय में ही कप्तान व तदनन्तर मेजर के उच्च ओहदे पर हो गए। फौज में स्वजाति सैनिकों के हकों की रक्षा करना अपना फर्ज समझते थे। जाट जाति व किसान वर्ग से आप को विशेष प्रेम है। और इसी जाति प्रेम वह स्वजाति अभिमान के लिए आपने मेजर के उच्च पौधे की तनख्वाह की परवाह नहीं की। आजकल आप का अधिकांश समय जाति सेवा के कामों में व्यतीत होता है।

8. मेजर मोहनरामजी चौधरी - [पृ.219]: आप गांव नराधना परगना नागौर के प्रतिष्ठित जाट घराने में से हैं। आपके पिताजी व्यापार के काम के लिए दक्षिणी अफ्रीका चले गए। आपने शिक्षा वहीं पर पिताजी के पास रहकर प्राप्त की। वापिस भारत आने पर आप सेना में प्रविष्ट हो गए तथा अपनी योग्यता के बल पर ही शीघ्र ही मेजर बन गए। जाट जाति व किसान कौम से आपको बड़ा प्रेम है तथा अभी आप श्री जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर की प्रबंध कारिणी कमेटी के प्रधान हैं।

9. चौधरी श्री नेनुरामजी भूतपूर्व लेफ्टिनेंट - [पृ.219]: आप मारवाड़ के प्रसिद्ध किसान नेता चौधरी गुलाराम जी के भांजे हैं। आप फौज में लेफ्टिनेंट थे तथा जाट सैनिकों पर जुल्मी कुठाराघात किए जाने के कुछ अरसे पहले पेंशन लेकर आ गए। आपको किसान वर्ग व जाट जाति से विशेष प्रेम है तथा आपका काफी समय किसानों व स्वजातियों की सेवा में व्यतीत होता है।


10. चौधरी श्री हरदीनराम भूतपूर्व लेफ्टिनेंट - [पृ.220]: आप नागौर पर परगने के गांव जायल के प्रतिष्ठित जाट घराने में से हैं। आपको जाट जाति व किसान वर्ग से हार्दिक प्रेम है। आप बड़े साहसी पुरुष हैं तथा गुणी भी हैं। इसी कारण आप अनपढ़ होने पर भी एक अच्छे पद पर पहुंच गए तथा फौज के सैनिकों के लिए एक अच्छा नमूना रख गए। फौज से अवकाश मिलने पर आज कल आप जाति सेवा कार्य में काफी दिलचस्पी लेते हैं।

11. चौधरी श्री नरसिंह कछवाहा प्रधान मारवाड़ किसानसभा - [पृ.220]: चौधरी श्री नरसिंह कछवाहा जोधपुर के प्रतिष्ठित सैनिक क्षत्रिय घराने के हैं। शुरु से ही आपको किसान कौम से अथाह प्रेम था और किसानों की उन्नति के लिए आप घंटो विचार किया करते थे। मारवाड़ किसान सभा का जन्म होने पर आप किसान सभा के मंत्री तदंतर प्रधान चुने गए। इस अरसे में आपने किसान कोम में राजनीतिक जागृति की लहर दौड़ा दी। आपने जगह-जगह किसान सम्मेलन किए और हजारों की संख्या में एकत्रित हुए। किसानों को उनके हक-हकूकों व असलियत का ज्ञान कराया। किसान सम्मेलन के लिए आपको बड़ा से बड़ा त्याग करना पड़ा और डीडवाना के डाबड़ा के सम्मेलन में तो आपके जान के लाले पड़ गए। जुल्मी जागीरदारों के खूनी प्रहार से बुरी तरह घायल होकर आप एक मोटर से जोधपुर अस्पताल ले जाए गए और वहां पर कई दिनों के उपचार के बाद आप ठीक हो पाए। मगर आप अपने उद्देश्य से किंचित ही विचलित नहीं हुये।


[पृ.221]: आपकी सदारत में किसान सभा की रूपरेखा ही पलट गई और आज मारवाड़ किसान सभा की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। किसान के लिए आपका त्याग सराहनीय है।


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