Jat Jan Sewak: Difference between revisions
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== पंचकोशी, चौटाला, मलोट के सरदार == | == पंचकोशी, चौटाला, मलोट के सरदार == |
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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949
संपादक: ठाकुर देशराज
प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर
मुद्रक: कुँवर शेरसिंह, जागृति प्रिंटिंग प्रेस, भरतपुर
पृष्ठ: 580
विषय सूची
- विकी एडिटर नोट
- संपादकीय वक्तव्य....1-4
- राजस्थान की जाट जागृति का संक्षिप्त इतिहास....1-12
- भरतपुर के जाट जन सेवक....13-73
- अलवर के जाट जन सेवक....74-93
- अजमेर के जाट जन सेवक....94-112
- बीकानेर के जाट जन सेवक....113-163
- पंचकोशी के सरदार....163-165
- चौटाला (हिसार)....165-165
- मलोट के सरदार....165-166
- मारवाड़ के जाट जन सेवक....167-221
- सीकर के जाट जन सेवक....222-
पंचकोशी, चौटाला, मलोट के सरदार
पंचकोशी के सरदार - [ p.163]: यद्यपि पंचकोशी गांव जिला फिरोजपुर में है किंतु इस जिले के जाटों की भाषा पंजाबी से नहीं मिलती और उनकी सेवा का क्षेत्र भी अधिकतर बीकानेर राज्य ही रहा है। संगरिया जाट स्कूल को उन्नत बनाने में चौटाला के लोगों की भांति ही उनका हाथ रहा है। पंचकोशी में कई जाट घराने प्रमुख हैं उनमें जाखड़, पूनिया और कजला गोत्रों के तीन घराने और भी प्रसिद्ध हैं।
पंचकोशी के जाखड़ों में चौधरी चुन्नीलाल जी जाखड़ अत्यंत उदार और दिलदार आदमी हैं। आपके ही कुटुंबी भाई चौधरी राजारामजी जैलदार थे। वे अपने सीधेपन के लिए प्रसिद्ध थे। चौधरी चुन्नीलाल जी जाखड़ ने संगरिया जाट स्कूल को कई हजार रुपया दान में दिए।
[ p.164]:अबोहर के साहित्य सदन में उन्होंने काफी रुपया लगाया है। सबसे बड़ी देन देहाती जनता के लिए आपके उद्योगपाल कन्या विद्यालय की है। यह विद्यालय आपने अपने प्रिय कुंवर उद्योगपाल सिंह की स्मृति को ताजा रखने के लिए सन् 1942 में स्थापित किया है। इसके लिए आप ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया है।
आप एक शिक्षित और प्रभावशाली जाट सरदार हैं। दूर-दूर तक आपका मान और ख्याति हैं। आप आर्य समाजी ख्याल के सज्जन हैं। जिले के बड़े बड़े धनिकों में आप की गिनती है। स्वभाव मीठा और वृत्ति मिलनसार है।
पंचकोशी के पूनियों में चौधरी मोहरूराम जी तगड़े धनी आदमियों में से हैं। आप ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं किंतु व्यापार में आप की खूब चलती है। आप लाखों रुपए कमाते हैं और अबोहर मंडी में आपका कारोबार है। वहां एक विशाल और भव्य मकान भी आपका है। पंचकोशी मैं भी पूरा ठाट है। आपने जाट स्कूल संगरिया को कई बार बड़ी-बड़ी रकमे दी हैं। आरंभ में आप अधिक से अधिक रकम इस विद्यालय को देते थे। स्वामी केशवानन्द जी में आपकी दृढ़ भक्ति है। और चौधरी छोटूराम जी के उनके अंत समय तक भक्त रहे। चौधरी छोटूराम जी जब अबोहर पधारे तो आपके ही अतिथि रहे।
पंचकोशी के दूसरे पूनियों में चौधरी घेरूराम जी, चौधरी लेखराम जी, और चौधरी जगन्नाथ जी के नाम उल्लेखनीय हैं। इन लोगों ने भी संगरिया विद्यालय की भरसक सहायता की।
यहां पर बद्रीराम जी नंबरदार और मेघाराम जी झझड़िया भी शिक्षा प्रेमी और संगरिया विद्यालय के सेवकों में से रहे हैं।
चौधरी खयाली राम जी काजला इस गाँव के तीसरे आदमी हैं जो सार्वजनिक हलचलों में दिलचस्पी लेते हैं। आप अबोहर
[ p.165]:के चलता पुस्तकालय के मेंबर हैं। और दीपक अखबार के प्रेमी हैं। संगरिया जाट स्कूल की आपने सदैव तन मन धन से सेवा की है। आप समझदार और विचारवान आदमी हैं।
चौटाला (हिसार) - [ p.165]: चौटाला (हिसार) संगरिया विद्यालय से यह गाँव दो-ढाई कोस के फासले पर है। यहां कई जाट घर काफी मशहूर हैं। इनमें चौधरी शिव करण सिंह, बल्लू रामजी चौधरी, चौधरी मलू राम, सरदारा राम सारण, चौधरी ख्याली राम, मनीराम, चौधरी जी सुखराम जी सिहाग और हरिराम पूर्णमल जी आदि ने जाट स्कूल संगरिया के प्राणों की बड़ी सावधानी से अपने नेक कमाई के पैसे से सहायता कर के बीकानेर के जाटों के उत्साह को जिंदा रखा है।
इस गांव में सहारण, सिहाग, और गोदारा जाट ज्यादा आबाद हैं।
चौधरी शिव करणसिंह चौटाला यहाँ के नेता लोगों में अपना प्रभुत्व रखते हैं। |चौधरी सरदारा राम जी अन्य आदमी हैं। इन सभी लोगों ने बीकानेर निवासी कृतज्ञ हैं। यहां पर चौधरी साहबराम जी कांग्रेसी नेताओं में गिने जाते हैं।
मलोट के सरदार - [p.165]: मलोट एक मशहूर मंडी है। यह भी जिला फिरोजपुर में है। यहां के चौधरी हरजीराम जी एक शांतिप्रिय और मशहूर आदमी हैं। कारबार में रुपया लगाने में आप मारवाड़ियों जैसे हिम्मत रखते हैं। आपने सन 1938-39 में मलोट मंडी में कपास ओटने का एक मिल खड़ा किया। वह आरंभ में नहीं चल सका।
[p.166]: इससे आपको बड़ा आर्थिक धक्का लगा। इसके बाद व्यापार और कृषि तथा लेनदेन से फिर अपने सितारे को को चमकाया। संगरिया विद्यालय के तो आप प्रमुख कर्णधारों में हैं। आपने उसे चलाने के लिए अपने पास से भी काफी धन दिया है। अबोहर साहित्य सदन की प्रगतियों में भी आपका काफी हाथ रहता है। आपके छोटे भाई चौधरी सुरजा राम जी हैं। पुत्र सभी शिक्षित और योग्य हैं। इस समय दीपक को साप्ताहिक करने में आपका पूरा सहयोग है। आप जिले के मुख्य धनियों में से एक हैं। आप गोदारा हैं।
झूमियाँवाली - यहां के चौधरी हरिदास जी सार्वजनिक कामों में बड़ी दिलचस्पी लेते हैं। और लोगों में आपका बड़ा मान है। आप बैरागी जाट हैं। पवित्र रहन सहन और खयालात आप की विशेषता है। संगरिया विद्यालय की आपने समय-समय पर काफी मदद की है।
मारवाड़ के जाट जन सेवक
मारवाड़ का प्राचीन इतिहास: [पृ.167]:राजस्थान की क्षेत्रफल में सबसे बड़ी रियासत जोधपुर (मारवाड़) की है। इसमें बहुत कुछ हिस्सा गुजरात का और सिंध प्रांत का है। गुजराती, सिंधी और मालवी हिस्सों को इस रियासत से निकाल दिया जाए तो वास्तविक मारवाड़ देश निरा जाटों का रह जाता है।
मारवाड़ शब्द मरुधर से बना है। यह भूमि मरु (निर्जीव) रेतीली भूमि है। नदियों सुपारु न होने से यहां का जीवन वर्षा पर ही निर्भर है और वर्षा भी यहां समस्त भारत से कम होती है। वास्तव में यह देश अकालों का देश है। यहां पर जितनी बहुसंख्यक जातियां हैं वे किसी न किसी कारण से दूसरे प्रांतों से विताडित होकर यहां आवाद हुई हैं। मौजूदा शासक जाति के लोगों राठौड़ों को ही लें तो यह कन्नौज की ओर से विताड़ित होकर यहां आए और मंडोर के परिहारों को परास्त करके जोधा जी राठौड़ ने जोधपुर बसाया।
परिहार लोग मालवा के चंद्रावती नगर से इधर आए थे। यहां के पवार भी मालवा के हैं और यहां जो गुर्जर हैं वह भी कमाल के हैं जो कि किसी समय गुजरात का ही एक सूबा था।
आबू का प्रदेश पुरातन मरुभूमि का हिस्सा नहीं है। वह मालवा का हिस्सा है। जहां पर कि भील भावी आदि जातियां रहती थी।
[पृ.168]: जाट यहां की काफी पुरानी कौम है जो ज्यादातर नागवंशी हैं। यहां के लोगों ने जाट का रूप कब ग्रहण किया यह तो मारवाड़ के जाट इतिहास में देखने को मिलेगा जो लिखा जा रहा है किंतु पुराने जितनी भी नाग नश्ले बताई हैं उनमें तक्षकों को छोड़ कर प्राय: सभी नस्लें यहां के जाटों में मिलती हैं।
यहां पर पुरातन काल में नागों के मुख्य केंद्र नागौर, मंडावर, पर्वतसर, खाटू.... आदि थे।
पुराण और पुराणों से इतर जो इतिहास मिलता है उसके अनुसार नागों पर पांच बड़े संकट आए हैं – 1. नाग-देव संघर्ष, 2. नाग-गरुड संघर्ष, 3. नाग-दैत्य संघर्ष, 4. नाग-पांडव संघर्ष, 5. नाग-नाग संघर्ष। इन संघर्षों में भारत की यह महान जाति अत्यंत दुर्बल और विपन्न हो गई। मरुभूमि और पच-नन्द के नाग तो जाट संघ में शामिल हो गए। मध्य भारत के नाग राजपूतों में और समुद्र तट के मराठा में। यह नाग जाति का सूत्र रूप में इतिहास है।
किसी समय नागों की समृद्धि देवताओं से टक्कर लेती थी। यह कहा जाता था कि संसार (पृथ्वी) नागों के सिर पर टिकी हुई हैउनमें बड़े बड़े राजा, विद्वान और व्यापारी थे। चिकित्सक भी उनके जैसे किसी के पास नहीं थे और अमृत के वे उसी प्रकार आविष्कारक थे जिस प्रकार कि अमेरिका परमाणु बम का।
मारवाड़ी जाटों में नागों के सिवाय यौधेय, शिवि, मद्र और पंचजनों का भी सम्मिश्रण है।
राठौड़ों की इस भूमि पर आने से पहले यहां के जाट अपनी भूमि के मालिक थे। मुगल शासन की ओर से भी
[पृ.169]: कुछ कर लेने के लिए जाटों में से चौधरी मुकरर होते थे जो मन में आता और गुंजाइश होती तो दिल्ली जाकर थोड़ा सा कर भर आते थे।
मुगलों से पहले वे कतई स्वतंत्र थे। 10वीं शताब्दी में वे अपने अपने इलाकों के न्यायाधीश और प्रबंधक भी थे। मारवाड़ में लांबा चौधरी1 के न्याय की कथा प्रसिद्ध है। वीर तेजा को गांवों के हिफाजत के लिए इसी लिए जाना पड़ा था। कि प्रजा के जान माल की रक्षा का उनपर उत्तरदायित्व था क्योंकि वह शासक के पुत्र थे और शासक के ही जामाता बनकर रूपनगर में आए थे।
राठौड़ों के साथ जाटों के अहसान हैं जिसमें जोधा जी मंडोवर के परिहारों से पराजित होकर मारे मारे फिरते थे उस समय उनकी और उनके साथियों की खातिरदारी जाटों ने सदैव की और मंडोवर को विजय करने का मंत्र भी जाटनीति से ही जोधा को मिला।
लेकिन राठौड़ शासकों का ज्यों-ज्यों प्रभाव और परिवार बढ़ता गया मरुभूमि के जाटों के शोषण के रास्ते भी उसी गति से बढ़ते गए। रियासत का 80 प्रतिशत हिस्सा मारवाड़ के शासक ने अपने भाई बंधुओं और कृपापात्रों की दया पर छोड़ दिया। जागीरदार ही अपने-अपने इलाके के प्राथमिक शासक बन गए। वास्तव में वे शासक नहीं शोषक सिद्ध हुए और 6 वर्षों के लंबे अरसे में उन्होंने जाटों को अपने घरों में एक अनागरिकी की पहुंचा दिया।
अति सभी बातों की बुरी होती है किंतु जब बुराइयों की अति को रोकने के लिए सिर उठाया जाता है तो अतिकार और भी बावले हो उठते हैं पर उनके बावलेपन से क्षुब्द
1 झंवर के चौधरियों का न्याय बड़ा प्रसिद्ध था
[पृ.170] समाज कभी दवा नहीं वह आगे ही बढ़ा है।
राठौरों के आने के पूर्व जबकि हम इस भूमि पर मंडोवर में मानसी पडिहार का और आबू चंद्रावती में पंवारों का राज्य था, जाट भौमियाचारे की आजादी भुगत रहे थे। रामरतन चारण ने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि ये भोमियाचारे के राज्य मंडोर के शासक को कुछ वार्षिक (खिराज) देते थे।
पाली के पल्लीवाल लोगों ने अस्थाना राठौर सरदार को अपने जान माल की हिफाजत के लिए सबसे पहले मरुधर भूमि में आश्रय दिया था। इसके बाद अस्थाना ने अपने ससुराल के गोहीलों के राज्य पर कब्जा किया और फिर शनै: शनै: वे इस सारे प्रांत पर काबिज हो गए।
सबसे अधिक बुरी चीज राठौड़ शासकों ने तमाम भाई-बहनों को जागीरदार बनाकर की। मारवाड़ की कृषक जातियों को खानाबदोश बनाने का मुख्य कारण यह जागीरदार ही हैं।
मारवाड़ में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है। यहाँ इन महानुभावों की सूची दी गई है। विस्तृत विवरण के लिए नाम पर क्लिक करें।
- चौधरी बलदेवराम मिर्धा, कुचेरा, नागौर....p.170-173
- चौधरी गुल्लाराम बेन्दा, रतकुड़िया, जोधपुर....p.173-175
- चौधरी माधोसिंह इनाणिया, गंगाणी, जोधपुर....p.176-177
- चौधरी भींया राम सिहाग, परबतसर, नागौर....p.177-179
- मास्टर रघुवीरसिंह तेवतिया, दुहाई, ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश, ....p.179
- मास्टर रामचंद्र मिर्धा, कुचेरा, नागौर....p.180-181
- चौधरी देवाराम भादू, जोधपुर, जोधपुर....p.181-182
- चौधरी पीरूराम पोटलिया, जोधपुर, जोधपुर....p.182-183
- चौधरी मूलचन्द सियाग, बालवा, नागौर....p.183-186
- चौधरी दलूराम तांडी, नागौर, नागौर....p.187
- चौधरी गंगाराम खिलेरी, सुखवासी, नागौर....p.187
- चौधरी जेठाराम काला, बलाया, नागौर....p.187
- चौधरी जीवनराम जाखड़, रामसिया, नागौर....p.188
- चौधरी शिवकरण बुगासरा, नागौर, नागौर....p.188-189
- चुन्ना लाल सारण, मक्कासर, हनुमानगढ़ ....p.189
- मास्टर धारासिंह सिंधु, ----, मेरठ....p.189-190
- चौधरी धन्नाराम भाम्बू, गोरेड़ी , नागौर....p.190
- चौधरी रामदान डऊकिया, खड़ीन, बाड़मेर....p.190-191
- चौधरी आईदानराम भादू, शिवकर, बाड़मेर....p.191
- चौधरी शिवराम मैया, जाखेड़ा, नागौर....p.191-192
- सूबेदार पन्नाराम मण्डा, ढींगसरी, चूरु....p.192-193
- स्वामी चैनदास लोल, बलूपुरा, सीकर....p.193-194
- रुद्रादेवी, जोधपुर, जोधपुर....p.194-195
- चौधरी उमाराम भामू, रोडू, नागौर....p.195-196
- चौधरी गणेशाराम माहिया, खानपुर, नागौर....p.196
- चौधरी झूमरलाल पांडर, बोडिंद, नागौर....p.196-197
- चौधरी हीरन्द्र शास्त्री चाहर, दौलतपुरा, नागौर....p.197
- चौधरी किशनाराम छाबा, डेह, नागौर....p.197
- चौधरी गिरधारीराम छाबा, डेह, नागौर....p.197
- चौधरी मनीराम राव, लुणदा, नागौर....p.197-198
- चौधरी रुघाराम साहू, खाखोली, नागौर....p.198
- चौधरी रामूराम जांगू, अलाय, नागौर....p.198
- चौधरी रावतराम बाना, भदाणा, नागौर....p.198
- मास्टर मोहनलाल मांजू, डेरवा, नागौर....p.198
- मास्टर सोरनसिंह ब्राह्मण, ----, उत्तर प्रदेश....p.199
- चौधरी हेमाराम गुजर, जाबराथल, नागौर....p.198
- चौधरी जगमाल गौल्या, गुडला, नागौर....p.199
- चौधरी महेन्द्रनाथ शास्त्री, ----, मेरठ, उत्तर प्रदेश, ....p.199-200
- चौधरी हरदीनराम बाटण, सुरपालिया, नागौर....p.200
- चौधरी मगाराम सांवतराम चुंटीसरा, चुंटीसरा, नागौर....p.200
- चौधरी कानाराम सारण, झाड़ीसरा, नागौर....p.201
- मास्टर सोहनसिंह तंवर, ----, मथुरा....p.201
[पृ.201]:वैसे तो समस्त राजस्थान में पुष्कर जाट महोत्सव के बाद से जागृति का बीजारोपण हो गया था किंतु मारवाड़
[पृ.202]: में उसे व्यवस्थित रूप तेजा दशमी के दिन सन् 1938 के अगस्त महीने की 22 तारीख को प्राप्त हुआ।
इस दिन मारवाड़ जाट कृषक सुधारक नामक संस्था की नींव पड़ी। इसके प्रथम सभापति बाबू गुल्ला राम जी साहब रतकुड़िया और मंत्री चौधरी मूलचंद जी साहब चुने गए। मारवाड़ भी कुरीतियों का घर है। यहां लोग बड़े-बड़े नुक्ते (कारज) करते हैं। एक एक नुक्ते में 50-60 मन का शीरा (हलवा) बनाकर बिरादरी को खिलाते हैं। इसमें बड़े-बड़े घर तबाह हो जाते हैं। इस कुप्रथा को रोकने के लिए सभा ने प्रचारकों द्वारा प्रचार कराया और राज्य से भी इस कुप्रथा को रोकने की प्रार्थनाएं की। जिसके फलस्वरूप 30 जुलाई 1947 को जोधपुर सरकार ने पत्र नंबर 11394 के जरिए सभा को इस संबंध का कानून बनाने का आश्वासन दिया और आगे चलकर कुछ नियम भी बनाए
सन् 1938-39 के अकालों में जनता की सेवा करने का भी एक कठिन अवसर सभा के सामने आया और सभा के कार्यकर्ताओं ने जिनमें चौधरी रघुवीर सिंह जी और चौधरी मूलचंद जी के नाम है, कोलकाता जाकर सेठ लोगों से सहायता प्राप्त की और शिक्षण संस्थाओं के जाट किसान बालकों का खाने-पीने का भी प्रबंध कराया। नागौर, चेनार, बाड़मेर और मेड़ता आदि में जो दुर्भिक्स की मार से छटपटाते पेट बालक इकट्ठे हुए उनके लिए संगृहीत कन से भोजनशाला खोलकर उस संकट का सामना किया गया।
शिक्षा प्रचार के लिए मारवाड़ के जाटों ने अपने पैरों पर खड़े होने में राजस्थान के तमाम जाटों को पीछे छोड़ दिया है। मेड़ता, नागौर, बाड़मेर, परवतसर और जोधपुर आदि में
[पृ.203] उन्होंने बोर्डिंग कायम किए हैं और चेनार, ढिंगसरी, रोडू, हताऊ, अमापुरा आदि गांव में पाठशाला कायम की है।
कुरीति निवारण, शिक्षा प्रसार और संगठन के अलावा मारवाड़ जाट सभा ने कौम के अंदर जीवन और साहस भी पैदा किया है जिससे लोगों ने जागीरदारों के जुर्म के खिलाफ आवाज उठाना और उनके आतंक को भंग करना आरंभ किया किंतु जागीरदारों को जाटों की यह जागृति अखरी और उन्होंने जगह-जगह दमन आनंद किया। इस दमन का रूप गांवों में आग लगाना, घरों को लुटवाना और कत्ल कराना आदि बर्बर कार्यों में परिनित हो गया। आए दिन कहीं-कहीं से इस प्रकार के समाचार आने लगे। इनमें से कुछ एक का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
चटालिया के जागीरदार ने 50-60 बदमाशों को लेकर जाटों की आठ ढाणी (नगलों) पर हमला किया। जो कुछ उन किसानों के पास था लूट लिया। स्त्रियों के जेवर उतारते समय डाकू से अधिक बुरा सलूक किया। उन लोगों को भी इन बदमाशों ने नहीं बख्शा जो जोधपुर सरकार की फौजी सर्विस में थे। सैकड़ों जाट महीनों जोधपुर शहर में अपना दुखड़ा रोने और न्याय पाने के लिए पड़े रहे, किंतु चीफ मिनिस्टर और चीफ कोर्ट के दरवाजे पर भी सुनवाई नहीं हुई। इससे जागीरदारों के हौंसले और भी बढ़ गए।
पांचुवा ठिकाने में कांकरा की ढानी पर हमला करके वहां के किसानों को लूट लिया। लूट के समय कुछ मिनट बाद वहीं के पेड़ों के नीचे जागीरदार के गुंडे साथियों ने कुछ बकरे काटकर उनका मांस पकाया और उस समय तक स्त्रियों से जबरदस्ती
[पृ.204] पानी भराने और घोड़ों को दाना डालने की बेगार ली। यहां के किसानों का एक डेपुटेशन आगरा ठाकुर देशराज जी के पास पहुंचा। उन्होंने जोधपुर के प्राइम मिनिस्टर को लिखा पढ़ी की और अखबारों में इस कांड के समाचार छपवाए किंतु जोधपुर सरकार ने पांचवा के जागीदार के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की।
भेरु के जागीरदार ने तो जाटों की एक ढाणी को लूटने के बाद उसमें आग लगा दी और खुद बंदूक लेकर इसलिए खड़ा हो गया कि कोई आग को बुझा कर अपने झोपड़ियों को न बचा ले।
सभा के प्रचारकों को प्रचार कार्य करने से रोकने के लिए, रोज गांव में जबकि प्रचार हो रहा था, वहां का जागीरदार 150 आदमी लेकर पहुंचा और लाठियां बरसाने की आज्ञा अपने आदमियों को दे दी। जैसे तैसे लोगों ने अपनी जानें बचाई। खारी के जागीरदारों ने तो यहां तक किया कि सभा के प्रचार मंत्री सूबेदार पन्नाराम जी के गांव ढिंगसरी पर हमला कर दिया। सुबेदार जी अपनी चतुराई से बच पाये।
बेरी के जागीरदार ने बुगालियों की ढाणी पर हमला करा के गांव में आग लगा दी। जिससे चौधरी रुघाराम जी और दूसरे आदमियों का हजारों का माल जल गया।
खींवसर के जागीरदार ने टोडास गांव में श्री दामोदर राम जी मोहिल सहायक मंत्री मारवाड़ किसान सभा को रात के समय घेर लिया। जागीदार के आदमियों ने लाठियों से उन्हें धराशाई कर दिया और वह भाग न जाए इसलिए बंदूक से छर्रे चलाकर पैर को जख्मी कर दिया। इसके बाद उन्हें अपने गढ़ में ले जाकर जान से मार देना चाहा किंतु कुछ
[पृ.205] सोच समझकर एक जंगल में फिकवा दिया। 6 अप्रैल 1943 को उनके एक देहाती मित्र के सहयोग से जोधपुर के विंढम अस्पताल में पहुंचा कर उनकी जान बचाई गई।
खामयाद और भंडारी के जागीदार और भूमियों ने तारीख 17 मई 1946 को दिन छिपे लच्छाराम जाट की ढाणी पर हमला किया। लच्छा राम और उसके बेटे मघाराम को जान से मार दिया और फिर मघाराम की स्त्री को बंदूक के कुंदों से मारकर अधमरी करके पटक दिया। उसके बच्चों को इकट्ठा करके झूंपे में बंद कर दिया और आग लगाकर चलते बने। मंजारी सूटों की भांति बच्चे तो बच गए।
जोधपुर से प्रकाशित होने वाले लोक सुधारक नामक साप्ताहिक पत्र ने सन 1947 और 1948 के जुलाई महीने तक के जागीरदारी अत्याचारों की तालिका अपने 9 अगस्त 1948 के अंक में प्रकाशित की है जिसका सार यह है-
“डीडवाना परगने के खामियाद के जागीरदारों ने 2 जाट किसानों के समय को क़त्ल कर दिया। डाबड़ा हत्याकांड में चार जाट किसान मारे गए। यहां लगभग डेढ़ हजार जागीरदार के गुंडों ने हमला किया। नेतड़िया परगना मेड़ता में एक जाट किसान को हमलावरों ने जान से मार डाला। मेड़ता परगने के ही खारिया, बछवारी, खाखड़की गांवों पर जो गुंडे जागीरदारों ने हमले कराये उनमें प्रत्येक गांव में एक-एक आदमी (जाट) मारा और अनेकों घायल हो गए। बाड़मेर परगने के ईशरोल गांव की एक जाटनी को बंदूक की नाल के ठूसों से जागीरी राक्षसों ने मार डाला। इसी परगने के लखवार, शिवखर और दूधु गांव पर हमला किया गया जिनमें लखवार का एक जाट और शिवखर का एक माली मारा गया। बिलाड़ा में बासनी बांबी
[पृ.206] किसान हवालात में जाकर मर गया। इसी बिलाड़ा परगने में वाड़ा, रतकुड़िया, चिरढाणी गांव पर जो हमले जागीरदारों ने कराए उनमें क्रमशः एक, दो और एक जाट किसान जान से मार डाले गए। नागौर परगने के सुरपालिया, बिरमसरिया, रोटू और खेतासर गांव में जाट और बिश्नोईयों की चार जाने कातिलों के हमलों से हुई। शेरगढ़ परगने के लोड़ता गांव में हमलावरों ने एक बुड्ढी जाटनी के खून से अपनी आत्मा को शांत किया। ये हमले संगठित रूप में और निश्चित योजना अनुसार हुए जिसमें घोड़े और ऊंटों के अलावा जीप करें भी इस्तेमाल की गई। जोधपुर पुलिस ने अब्बल तो कोई कारवाई इन कांडों पर की नहीं और की भी तो उल्टे पीड़ितों को ही हवालात में बंद कर दिया और उन पर मुकदमे चलाए।
सभा के प्रचारकों को भी मारा गया। कत्ल किया गया और पीटा गया। इन तमाम मुसीबतों के बावजूद भी सभा बराबर अपने उद्देश्य पर अटल रही और शांतिपूर्ण तरीकों से अपने कदम को आगे बढ़ाती रही।
[पृ.206] जिन लोगों का पिछले पृष्ठों में जिक्र किया जा चुका है उनके सिवा मारवाड़ जाट सभा को आगे बढ़ाने में निम्न सजजनों के नाम उल्लेखनीय हैं:
1. स्वामी आत्माराम जी मूंडवा - जो कि अत्यंत सरल और उच्च स्वभाव के साधु हैं और वैद्य भी ऊंचे दर्जे गए हैं। आप अपने परिश्रम से अपना गुजारा करते हैं।
आपका यश चारों ओर फैला हुआ है। आप अपने पवित्र कमाई में से शिक्षा और स्वास्थ्य पर दान करते रहते हैं।
2. स्वामी सुतामदासजी - आप नागौर के रहने वाले हैं और योग्य वैद्य हैं। आपको अपनी जाति से प्रेम है और जनसेवा के कार्यों से दिलचस्पी रखते हैं।
3. स्वामी जोगीदास जी - आप भी मूंडवा के ही रहने वाले हैं और वैद्य भी हैं। आपको भी कौमी कामों से मोहब्बत है।
4. स्वामी भाती राम जी - जोधपुर में रहते हैं। आपका व्यक्तित्व ऊंचा और स्वभाव मीठा है। आप प्रभावशाली साधु हैं। सभा के कामों में सदैव सहयोग दिया है और सभा के उप प्रधान रहे हैं।
5. महंत नरसिंहदास जी - आप भी मारवाड़ जाट सभा के उप प्रधान रहे हैं और सदा सभा को आगे बढ़ाने का कोशिश करते रहे हैं। आप एक सुयोग्य साधु हैं।
6. कुंवर गोवर्धन सिंह जी – आप सियाग गोत्र के जाट सरदार हैं। पीपाड़ रोड के रहने वाले हैं। आपने उच्च शिक्षा प्राप्त की है, ग्रेजुएट है। आप सभा के उरसही कार्यकर्ता रहे हैं। और असेंबली के लिए सभा ने जिन सज्जनों के नाम पास किए थे उनमें आपका नाम था। इससे आपकी योग्यता का परिचय मिलता है। आप इस समय सभा के उप मंत्री हैं।
7. चौधरी किसनाराम जी - आप छोटीखाटू के रहने वाले हैं। आपके पुत्र श्री राम जीवन जी तथा दूसरे योग्य आदमी और जाति हितेषी हैं। आप का गोत्र रोज है। आप इस समय मारवाड़ जाट सभा के प्रधान हैं। बड़े उत्साह और हिम्मत के आदमी हैं। जागीरदारों से आपने हिम्मत के साथ टक्कर ली।
आप पर मारवाड़ के जाट पूर्ण विश्वास रखते हैं। धनी माँनी आदमी हैं।
8. चौधरी देशराज जी - आप महाराजपुरा गांव के रहने वाले बाअसर जाट सरदार हैं। आप मारवाड़ जाट सभा के प्रधान रहे हैं और उसे आगे बढ़ाने में खूब परिश्रम किया है। दिलेर आदमी हैं। आप का गोत्र लेगा है।
9. कुंवर करण सिंह - आप नागौर परगने के रहने वाले नौजवान व्यक्ति हैं। आपका जीवन उत्साही जवानों का जैसा है। आप इस समय वकालत करते हैं और जाट बोर्डिंग हाउस नागौर के आप सुपरिटेंडेंट रह चुके हैं। आप रचनात्मक काम में अधिक दिलचस्पी रखने वाले आदमियों में से हैं।
10. चौधरी गजाधर जी - आप का गोत्र बाटण है। आप सुरपालिया के रहने वाले हैं। आपके गांव में आपके उद्योग और सहयोग से एक जाट पाठशाला चलता है। आप भी इस वर्ष 1948 में मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा के उप मंत्री हैं।
11. चौधरी धन्नाराम जी पंडेल - आप उसी छोटी खाटू के रहने वाले जाट सरदार हैं जिसके कि चौधरी किसनाराम जी। आप धनी आदमी में से हैं। लेन-देन और व्यापार की ओर आप के पुत्रों की रुचि है आप का गोत्र पंडेल है। इस समय आप की अवस्था 70 साल के आसपास है आप सभा की कार्यकारिणी के सदस्य हैं।
12. चौधरी रामू राम जी - आप लोयल गोत्र के जाट सरदार हैं। स्वामी चैनदास जी के संसर्ग से आप में काफी चेतना पैदा हुई। लाडनू के रहने वाले हैं। इसमें मारवाड़ जाट सभा के आप अंतरंग सदस्य हैं।
13. सूबेदार जोधा राम जी - आप इस समय मारवाड़ जाट कृषक सुधार सभा की वर्किंग कमेटी के सदस्य हैं। और समझदार कार्यकर्ता हैं और खारी गांव के रहने वाले हैं।
14. चौधरी गंगाराम जी मामड़ौदा - आप समझदार आदमी हैं। मारवाड़ जाट कृषक सुधार सभा की इस वर्ष की कार्यकारिणी के मेंबर हैं।
15. चौधरी शिवराम जी मैना - आप जाखेड़ा गांव के रहने वाले मैना गोत्र के जाट सरदार हैं और मारवाड़ जाट सभा की अंतरिम कमेटी के सदस्य हैं।
उपरोक्त सज्जनों के सिवा जाट कृषक सुधार सभा की प्रबंधकारिणी और कार्यकारिणी में रहकर नीचे लिखे और भी सज्जनों ने जाट जाति की सेवा करके अपने को कृतार्थ किया है, जो निम्न है -
- खिंया राम सारण, वाडाणी
- चन्दा राम गोदारा, ऊंटवालिया
- सरदारा राम भाम्बू, संकवास
- भोमा राम गोलया, मोवां छोटी
- मेरा राम मंडा, ढींगसरी
- सुखदेव , सांडास
- कुशाला राम बडियासर, रोजा
- लादू बडियासर, रोजा
- जैया राम, रताऊ
- बाबू राम देंडू
- दूल्हा राम बड़ियासर
- ठाकुर सिंह बीरड़ा, सुनारी
- खूमा राम खावण, पाणा
- भूला राम सारण, दुगस्ताऊ
- गंगा राम रिनवा, मेरवास
- तुलछा राम बासर, जायल
- हरदीन राम (लेफ्टिनेंट), जायल
- बागा राम रिनवा
- गोविंद राम डीडेल, रोल
- रामजी राम मांदल्या
- राम पाल मास्टर, बडलू
- बागा राम बेंदा, रतकुड़िया
- सुल्तान सारण, रतकुड़िया
- केशरी मल डूकिया, खड़ीन, बाड़मेर
- भीकम चंद, बाड़मेर
- साडल राम, बागड़
- लछमन राम कडवाड़ा, बागड़
- पूसा राम किलक, पूणलौता
- मघा राम कमेडिया, डांगावास
- बिरधा राम मोरिया, डांगावास
- राम देव मास्टर, भाकरोद
- हरवीर सिंह मास्टर, इयारण
- नारायण सिंह मास्टर, खरनाल
- जोरा राम मास्टर, रताऊ
- नानू राम मास्टर, बुगरड़ा
- हीरा सिंह गुरु मास्टर, बौ हा नागौर
- राम नाथ मिर्धा, कुचेरा
- फतह सिंह हैड मास्टर, कृषि स्कूल नागौर
- चरण सिंह, नागौर
- हर्षा राम, मूनडा
- लाखा राम, ईनाणा
- हीरा राम, भाकरोद
- मोटा राम, मोरबाबड़ी
- हरनारायन सिंह, नागौर
- मोती राम (कप्तान), जोधपुर
- किशन सिंह, जोधपुर
- राम धन पटवारी
- स्वामी जैतराम सिहाग, मीजल, बीकानेर ....p.210-213
[पृ.213]: मारवाड़ के पुराने कार्यकर्ताओं के अलावा नवयुक उम्र में भी जाति प्रेम की भावना बड़ी तेजी व उग्रता से बढ़ती जा रही है। इन युवकों का साहस, जाति वत्सलता व कौमी सेवा
[पृ.214]: आदि भावनाओं को देकर इस नतीजे पर सहज ही पहुंचा जा सकता है कि इनके परिश्रम से मरुधर के सारे जाट अपने निजी मतभेद को भूलकर जल्दी ही एक सूत्रधार में बंध जाएंगे और गिरी हुई अपने राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा को जल्दी ही उन्नतिशील बनाएंगे। मारवाड़ के नवयुक जाती सेवकों में निम्न लिखित महानुभावों के नाम उल्लेखनीय हैं:
- नाथूराम मिर्धा, कुचेरा, नागौर....p.214-215
- गोवर्धनसिंह चौधरी, रतकुड़िया, जोधपुर....p.215
- चौधरी लालसिंह डऊकिया, खड़ीन, बाड़मेर ....p.215-216
- चौधरी लिखमा राम भाकल, जनाणा, नागौर....p.216-217
- राम किशोर मिर्धा, कुचेरा, नागौर....p.217
- राम करण मिर्धा, कुचेरा, नागौर....p.218
- मेजर मगनीराम चौधरी, भाकरोद, नागौर....p.218-219
- मेजर मोहनराम चौधरी, नराधना, नागौर....p.219
- मेजर नेनूराम चौधरी, ----, नागौर....p.219
- चौधरी हरदीनराम, जायल, नागौर....p.220
- नरसिंह कछवाह, ----, जोधपुर....p.220-221