List of Places in Orissa Based on Jat Gotras

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Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur

Map of Orissa State
उड़ीसा में जाट गोत्रों पर आधारित स्थान

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यहाँ उड़ीसा के कुछ ग्रामों/स्थानों/नदियों/पर्वतों आदि का विवरण दिया जा रहा है जो जाटों में प्रचलित गोत्रों से मिलते हैं। स्थान विशेष से समानता रखने वाले जाट गोत्र का नाम ब्रेकेट में दिया है। जाट गोत्र के संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए ब्रेकेट में दिये गोत्र के नाम पर क्लिक करें। गाँव के नाम की पुष्टि के लिए तहसील के नाम पर क्लिक करें और तहसील के नामों की सूची देखें। यह भी उल्लेखनीय है कि उड़ीसा में वर्तमान में जाटों का आवास नहीं है। केवल नाम में समानता को कोई प्रमाण नहीं माना जा सकता परंतु उड़ीसा के इस भू-भाग में नामों और जाट गोत्रों में इतनी अधिक समानता कुछ संकेत अवश्य देती है। स्थान और जाट गोत्र में सही-सही संबंध जानने के लिए गहन अनुसंधान की आवश्यकता है। उड़ीसा के जिन जिलों में जाट गोत्रों पर आधारित स्थान हैं उनमें मुख्य हैं: खुर्दा, गंजम, पुरी, कटक , नयागढ़, बालासौर, भद्रक, जाजपुर, जगतसिंहपुर, गजपति, मयूरभंज, केन्द्रापड़ा आदि। ये जिले अधिकांश समुद्रतट से लगे हुये हैं। ये स्थान प्राचीन काल में अन्य देशों के साथ व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि जाटों ने समुद्र के रास्ते अथवा प्रचीन मगध राज्य से प्रवेश कर इन जिलों को आबाद किया। इसीलिये राजा खारवेल को समुद्र के अधिपति (Sea-Lord) के रूप में संबोधित किया है। यहाँ उल्लेखित अधिकांश जाट गोत्र पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम राजस्थान और मध्य प्रदेश के मालवा भू-भागों में मिलते हैं। उड़ीसा के अनेक स्थानों के नाम पश्चिमी उत्तर प्रदेश अथवा हरयाणा के जाट बाहुल्य स्थानों से भी समानता रखते हैं। संभवत: जाटों के कारण ही महाराजा हर्षवर्धन उड़ीसा के इन भूभागों तक पहुँचे थे। मथुरा के जाटों ने ही इस भू-भाग में श्रीकृष्ण पूजा को विस्तारित किया। भारत के इतिहास की मुख्य-धारा में इस तरह का कोई वर्णन नहीं मिलता है। इन तथ्यों को इतिहासकार काल्पनिक भी मान सकते हैं परंतु ये इतिहास की गुम कड़ियों को जोड़ने में सहायक हो सकते हैं।

Why Tak Jats moved to Eastern Coast ?

Puri Kushan (पुरी कुषाण), properly called Imitation Kushan, are copper coins discovered in the littoral districts of Ganjam, Puri, Cuttack, Bhadrakand Balasore as well as hill districts in of Mayurbhanj and Keonjhar in Orissa; Ranchi and Singhbhum in Bihar and a few in Andhra Pradesh and West Bengal.[1]

B S Dahiya[2] writes: Tanks or Taks are mentioned by Col. Tod as one of the Thirty –six royal houses of Indian Kshatriyas, but he said about them that they have disappeared from history owing to their conversion to Islam in the Thirteenth Century. But this is not true because they have not disappeared completely as yet; it is true a large number of Tanks are now followers of Islam but there still exist many Tanks among the Hindu Jats also. [3]

A Tak kingdom is mentioned by Hiuen-Tsang (631-643 A.D.). It is mentioned by him as situated towards east of Gandhara. Hiuen-Tasng gives its name as Tekka, and the History of Sindh, Chach-Nama, mentions it as Tak. Its capital was Shekilo (Sakala, modern Sialkot) and formerly King Mihiragula was ruling from this place. In seventh century A.D. its people were not preeminently Buddhists, but worshiped the sun, too. Abhidhana Chintamani says that Takka is the name of Vahika country (Punjab). For what follows, we are indebted to Chandrashekhar Gupta for his article on Indian coins. [4] The Tanks must have come to India, Prior to fourth century A.D. i.e. with the Kushana. And with the Kushanas, they must have spread up to Bengal and Orissa, like the Manns and Kangs who spread into southern Maharashtra and the Deccan. In Orissa, the Tanks, had their rule in Orissa proper, Mayurbhanj, Singbhoom, Ganjam, and Balasore Districts. They are called by historians as “ Puri Kushans” or Kushanas of Puri (Orissa). Their coins have been found at Bhanjakia and Balasore (Chhota Nagpur) and these coins have the legend Tanka written in Brahmi script of the fourth century A.D. Allan suggested the reading Tanka as the name of a tribe “ [5] and others generally accepted the reading Tanka as correct. [6] Allan placed them in the third or early fourth century A.D., while V.A. Smith placed them in the fourth or fifth century A.D. ; R.D. Bannerji called them “ Puri Kushanas[7]


Dr Naval Viyogi [8] tells that it is not improper to assume that probably these people migrated from the North-West Region of India to the Eastern Coastal area for some unknown reasons. Probably this was due to some political pressure or economic causes. In the vast region comprising - Orissa, Mayurbhanj, Singhbhumi, Ganjam and Balasore districts, they established their colonies. This is supported by the findings of the so called 'Puri Kushan' copper coins from this area.

Dr Naval Viyogi [9] writes that it seems from the evidence of Puri Kushan coins that some branch Tanka of Taka royal family owing to attack of Kushanas up to Magadha, reached Mayurbhanj, Singhbhumi, Ganjam and Balasore and established colonies there, where remains of their offshoot, the royal family of Dhavaldev is still existing at Dalbhumigarh near Kharagpur.


As for the proof that they were Jats, we invite attention to the fact that they still exist as such. Their association with the Kushanas (Kasvan Jats) further supports it. Their central Asian origin is proved by the fact that Niya Khrosthi documents from Central Asia refer to coin denomination as Tangumule. [10] Here the word Tanga is the same as Tanka, and Muli meant “Price” in Central Asia. [11]


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  • बलांगिर/बोलांगिर (जाट गोत्र - बलान/बोलां) - बलांगिर/बलांगीर भारत के ओड़िशा राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय बलांगिर है। बलांगीर ओड़िशा के पश्चिमी भाग के प्रमुख व्यापारिक नगरों में से एक है। सौन्दर्यपूर्ण और आकर्षक दृश्यों के लिए गन्धमादन के पहाड़ी झरने और महानदी के पर्वतीय स्थल प्रमुख हैं।
  • बालासौर (जाट गोत्र - बल) - बालासौर (AS, p.624) उड़ीसा में स्थित बंदरगाह है। भारत की कई वैज्ञानिक गतिविधियों और परीक्षण आदि के कार्यों के लिए बालासौर का ख़ास महत्त्व है। सन 1633 ई. में राल्फ़ कार्टराइट ने इस बंदरगाह तथा हरिहरपुर में प्रथम बार अंग्रेज़ 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' की व्यापारिक कोठियाँ स्थापित की थीं। 1658 ई. में ये व्यापारिक कोठी मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के अधीन कर दी गई थी। बालासौर का प्राचीन नाम बालेश्वर था। फ़ारसी में बालासौर का अर्थ 'समुद्र पर स्थित नगर' है।[12]



  • भद्रक (जाट गोत्र - भद्रक/भादू) - भद्रक ओडिशा में एक महत्वपूर्ण शहर और जिला है, जो अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। इस शहर का नाम भद्रकाली के नाम पर पड़ा है, जिनका एक मंदिर यहां सालंदी नदी के किनारे स्थित है। भद्रकाली मंदिर मुख्य शहर से 8 कि.मी की दूरी पर अहरपाड़ा गांव में स्थित है। यह मंदिर इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है कि यहां की देवी के नाम से शहर का नामकरण हुआ है। यहां देवी की मूर्ति ब्लैक ग्रेनाइट पत्थर से बनी है, और देवी यहां शेर पर बैठी हुई नजर आती हैं। [15] महाभारतकालीन जनपदों में भद्रक लोगों का भी वर्णन आता है। ये जाटवंश अवश्य ही जांगल देश के भादरा नगर के क्षेत्र में रहे होंगे और निश्चित ही भादरा इनकी राजधानी रही होगी। भादरा से जोधपुर और अजमेर की ओर इनका बढ़ना पाया जाता है। ये लोग शान्तिप्रिय पाये जाते हैं और अब भादू और कहीं-कहीं भादा कहलाते हैं[16]

भालियाडीही (जाट गोत्र - भालिया) : भालियाडीही नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की ओड़गाँव तहसील में है।

  • भौमकर वंश (जाट गोत्र - भौभिया)/भूकर) - कलिंग (उड़ीसा) पर माठर वंश के बाद 500 ई० में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया। नल वंश के बाद विग्रह एवं मुदगल वंश, शैलोद्भव वंश और भौमकर वंश ने कलिंग पर राज्य किया। पूर्व में भौमकर शासकों ने उत्तर तोसली पर शासन किया और वे शैलोद्भव शासकों के समकालीन थे जो उत्तरी कोंगोद के शासक थे । राजा शिवकर प्रथम (756 या 786 ई.) के समय तक उड़ीसा के अधिकांश तटीय प्रदेशों पर उनका कब्जा हो गया था। श्वेताक गंग राजा जयवर्मदेव के गंजम शिलालेख के अनुसार शिवाकर प्रथम ने कोंगोद और कलिंग के उत्तरी भागों पर विजय प्राप्त की। भौमकर वंश के सम्राट शिवाकरदेव द्वितीय की रानी मोहिनी देवी ने भुवनेश्वर में मोहिनी मन्दिर का निर्माण करवाया। वहीं शिवाकर देव द्वितीय के भाई शान्तिकर प्रथम के शासन काल में उदयगिरी-खण्डगिरी पहाड़ियों पर स्थित गणेश गुफा (उदयगिरि) को पुनः निर्मित कराया गया तथा साथ ही धौलिगिरि पहाड़ियों पर अर्द्यकवर्ती मठ (बौद्ध मठ) को निर्मित करवाया। यही नहीं, राजा शान्तिकर प्रथम की रानी हीरा महादेवी द्वारा 8वीं ई० हीरापुर नामक स्थान पर चौसठ योगनियों का मन्दिर निर्मित करवाया गया। उसके वंशज शिवकर तृतीय के तलचर शिलालेख से पता लगता है कि उसने राढ़ शासक को पराजित किया और पराजित राजा की पुत्री से शादी की थी। ऐसा प्रतीत होता है कि उड़ीसा में भौमकर वंश का राज्य पतन होने के बाद वे उत्तर-पश्चिमी राजस्थान में आकर आबाद हुये। संभवत: यही लोग भूकर कहलाए।


भोबासर (जाट गोत्र - भोबिया) : भोबासर नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की ओड़गाँव तहसील में है।

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  • छोटा नागपुर (जाट गोत्र - चोटिया/नागा) - छोटा नागपुर (AS, p.349) इस प्रदेश का नाम, किवदंती के अनुसार, छोटानाग नामक नागवंशी राजकुमार-सेनापति के नाम पर पड़ा है. छोटानाग ने, जो तत्कालीन नागराजा का छोटा भाई था, मुगलों की सेना को हराकर अपने राज्य की रक्षा की थी. सरहूल की लोककथा छोटानाग से संबंधित है. इस नाम की आदिवासी लड़की ने अपने प्राण देकर छोटानाग की जान बचाई थी. सर जॉन फाउल्टन का मत है कि छोटा या छुटिया रांची के निकट एक गांव का नाम है जहां आज भी नागवंशी सरदारों के दुर्ग के खंडहर हैं. इनके इलाके का नाम नागपुर था और छुटिया या छोटा इसका मुख्य स्थान था. इसीलिए इस क्षेत्र को छोटा नागपुर कहा जाने लगा. (देखें: सर जॉन फाउल्टन - बिहार दि हार्ट ऑफ इंडिया, पृ. 127) छोटा नागपुर के पठार में हजारीबाग, रांची, पालामऊ, मानभूम और सिंहभूम के जिले सम्मिलित हैं.[17]
  • चिलका झील (जाट गोत्र - चिलका): चिल्का झील (Chilka Lake) भी कहा जाता है, भारत के ओड़िशा राज्य के पुरी, खोर्धा और गंजम ज़िलों में स्थित एक अर्ध-खारे जल की अनूपझील (लगून) है। इसमें कई धाराओं से जल आता है और पूर्व में बंगाल की खाड़ी में बहता है। इसका क्षेत्रफल 1,100 वर्ग किमी से अधिक है और यह भारत की सबसे बड़ी तटीय अनूपझील और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्धखारी अनूपझील है।[18][19] भूवैज्ञानिक साक्ष्य इंगित करता है कि चिल्का झील अत्यंतनूतन युग (18 लाख साल से पूर्व 10,000 साल तक) के बाद के चरणों के दौरान बंगाल की खाड़ी का हिस्सा था। चिल्का झील के ठीक उत्तर में खुर्दा जिले के गोलाबाई सासन गांव (20°1′7″N 85°32′54″E) में खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा आयोजित की गई।[20] गोलाबाई गांव तीन चरणों में चिल्का क्षेत्र संस्कृति के एक दृश्य का सबूत प्रदान करता है: नवपाषाण युग (नियोलिथिक) (c. 1600 ईसा पूर्व), ताम्रपाषाण युग (c. 1400 ईसा पूर्व से c. 900 ईसा पूर्व) और लौह युग (c. 900 ईसा पूर्व से c. 800 ईसा पूर्व।[21] महाभारत, सभापर्व (52,20) में उल्लिखित काम्यकसर (AS, p.171) सरोवर शायद उड़ीसा की चिलका झील है-'शैलभान् नित्य भत्तान्श्चाप्याभित: काम्यकं सर:'. इसमें इस प्रदेश के हाथियों का वर्णन है.[22]

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  • जाजपुर/विराज (जाट गोत्र - बरोजवार): यज्ञपुर = जाजपुर = जाजनगर (AS, p.768) उड़ीसा के जाजपुर ज़िले में वैतरणी नदी के तट पर स्थित यह एक प्राचीन स्थल है। प्राचीन समय में यह यज्ञपुर, जाजपुर के नाम से जाना जाता था। महाभारत में इस क्षेत्र को विरजा क्षेत्र कहा गया है। दूसरी-तीसरी सदी ई.में यह क्षेत्र एक तीर्थ स्थल के रूप में माना जाता था। कहा जाता है कि इस नगर की स्थापना छठी सदी में उड़ीसा के राजा ययाति केसरी ने की थी। विरजा ययाति की इष्टदेवी थी। यहाँ पर एक मंदिर में विरजा (वि-रजा=रजोगुणहीन) देवी की मूर्ति स्थापित की है। यहाँ से प्राचीन विशालकाय प्रतिमाएँ मिली हैं। इनमें से एक 16 फुट ऊँची बोधिसत्व पद्मपाणि की प्रतिमा है। अन्य प्रतिमाएँ चामुण्डी,वराही एवं इन्द्राणी की हैं। ये काफ़ी क्षतिग्रस्त हैं। युवानच्वांग के समय जाजपुर ही उड़ीसा की राजधानी थी। मालवा के सुल्तान हुसंगशाह ने जाजनगर पर 1421 ई. में आक्रमण किया था। [33]
  • जटणी (जाट गोत्र - जट) : उड़ीसा के खुर्दा जिले में जटणी एक शहर और तहसील है। खुर्दा का रेलवे स्टेशन इसी शहर में स्थित है जो खुर्दा रोड नाम से जाना जाता है। यह सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। चेन्नई से कोलकाता जाने वाला राष्ट्रीय मार्ग (NH-5) इसके पास से गुजरता है। उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर यहां से 22 किलोमीटर और खुर्दा शहर 8 किलोमीटर दूर है। भारतीय रेलवे का यह प्रमुख जंक्शन है। यहां से भुवनेश्वर 19 किलोमीटर पुरी 44 किमी, कलकाता 456 किलोमीटर, मुंबई 1913 किलोमीटर नई दिल्ली 1819 किलोमीटर दूर हैं।

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खांगरपल्ली (जाट गोत्र - खांगर) : खांगरपल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की ओड़गाँव तहसील में है।

  • खुर्दा (जाट गोत्र - खुरड़िया) - खुर्दा (उड़ीसा) (AS, p.257) या खोरधा उड़ीसा के ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। यह कटक के 25 मील (लगभग 40 कि.मी.) दूर स्थित है। यहाँ एक प्राचीन दुर्ग के अवशेष और जगन्नाथपुरी के प्राचीन राजाओं के भवन भी अभी तक स्थित हैं। खुर्दा में हाटकेश्वर का मंदिर है। [35] खुर्दा उड़ीसा राज्य के खुर्दा ज़िले का मुख्यालय शहर है। उड़ीसा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर खुर्दा ज़िले के अन्तर्गत ही आती है। आरंभ में यह उड़ीसा शासकों की राजधानी थी।
  • कोंगोद (जाट गोत्र - कंग) - कोंगोद (AS, p.228) का उल्लेख चीनी यात्री युवानच्वांग ने किया है। युवानच्वांग ने इस देश का उल्लेख महाराजा हर्ष की विजय यात्राओं के प्रसंग में करते हुए लिखा है कि "कोंगोद पर आक्रमण के पश्चात् हर्ष बंगाल की ओर चला गया।" हर्ष का शासनकाल 606-647 ई. है। कोंगोद का अभिज्ञान 'गंजम' (उड़ीसा) से किया गया है।[37] श्री ह. कृ. महताब[38] के अनुसार महानदी से ऋषिकुल्या नदी तक का विस्तृत भू-भाग कोंगोद कहलाता था। चौथी शती ई. में कोंगोद में शैलोद्भव वंश के राज्य की स्थापना हुई थी। [39]
  • कोठूर (जाट गोत्र - कोथ) - तेजराम शर्मा [40] ने समुद्रगुप्त (335 - 380 AD) के इलाहाबाद/प्रयाग प्रशस्ति में कोट्टूर राज्य के अधिपति स्वामीदत्त को समुद्रगुप्त द्वारा अधीन करने का उल्लेख किया है। .... कोट्टूर (No. 1, L. 19) : Line-19. कोसलमहेन्द्र-माह[ा]कान्तारकव्याघ्रराज-कौरालकमण्टराज-पैष्टपुरक-महेन्द्रगिरि-कौट्टूरक, स्वामिदत्तैरण्डपल्लकदमन-काञ्चेयकविष्णुगोपावसमुक्त्तक-....उपरोक्त अभिलेख में कोट्टूर का अभिज्ञान N. Dubreuil द्वारा उड़ीसा के गंजम जिले में स्थित कोठूर से किया है। [41] बनर्जी मानते हैं कि कोट्टूर के अधिपति स्वामीदत्त कलिंग राज्य के उन तीन प्रमुख सरदारों में से एक थे जिन्होने समुद्रगुप्त को उनके राज्य में से जाने से रोका था। [42]
  • कौट्टूरगिरि अथवा गिरिकोटूर (AS, p.288) एक प्राचीन नगर है। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार यहाँ के राजा स्वामिदत्त को समुद्रगुप्त ने अपने दक्षिण भारत के अभियान के प्रसंग में परास्त किया था- 'कोसलक महेंद्र गिरिकौटूरक स्वामीदत्त - प्रभृति सर्वदक्षिणा पथ राजा गृहणमोक्षानुग्रहजनित प्रतापोन्मिश्र महाभाग्यस्य‌-।' गिरिकोटूर का अभिज्ञान वर्तमान कोठूर, ज़िला गंजम, उड़ीसा से किया गया है।[43]
  • कुरूळ (जाट गोत्र - कुरल्या) - तेजराम शर्मा [44] ने समुद्रगुप्त (335 - 380 AD) के इलाहाबाद/प्रयाग प्रशस्ति में कुरूळ राज्य के अधिपति मण्टराज को समुद्रगुप्त द्वारा अधीन करने का उल्लेख किया है। ........ कुरूळ (No. 1, L. 19) : Line-19. कोसलमहेन्द्र-माह[ा]कान्तारकव्याघ्रराज-कौरालकमण्टराज-पैष्टपुरक-महेन्द्रगिरि-कौट्टूरक, स्वामिदत्तैरण्डपल्लकदमन-काञ्चेयकविष्णुगोपावसमुक्त्तक- उपरोक्त अभिलेख में कुरूळ का अभिज्ञान जी. रामदास द्वारा उड़ीसा के गंजम जिले में स्थित कुरूळ से किया है। [45] कुरला नाम का गाँव उड़ीसा के गंजम जिले की Sheragada तहसील में है।


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  • मयूरभंज (जाट गोत्र - मयूर) - मयूरभंज (AS, p.711), उड़ीसा. इस स्थान से 12 वीं सदी ई. के ताम्रपट लेख मिले हैं जिनमें यहां तत्कालीन राज्यवंशों के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है. [47] मयूरभंज ज़िला भारत के ओड़िशा राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय बारिपदा है। जिले के दक्षिण में मेघासनी पहाड़ी सागरतल से 3824 फुट तक ऊँची है। यहाँ पर लोहा बड़ी मात्रा में निकाला जाता है। अभ्रक भी मिलता है। मयूरभंज एक समय में ओड़ीशा का एक महत्‍वपूर्ण साम्राज्‍य था। भारत की स्वतन्त्रता के बाद भी इस राज्‍य का अस्तित्‍व बरकरार था। लेकिन 1 जनवरी 1949 में इसे ओड़ीशा में शामिल किया था। प्रकृति की अनुपम सुंदरता यहां बिखरी पड़ी है। प्राकृतिक सुंदरता के अलावा इस स्थान को कला, जूट मिल्स, तुषार मिल, पत्थर की कारीगरी और चरखा मिल के लिए भी जाना जाता है। बुढाबलंग नदी इस क्षेत्र की सुंदरता में और वृद्धि करती है। बारीपदा, सिमलिपाल राष्ट्रीय उद्यान, खिचिं, किचकेश्वरी मंदिर, मानात्री आदि यहां के लोकप्रिय दर्शनीय स्थल हैं।

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  • ओड़गाँव (जाट गोत्र - ओड़ा) - ओड़गाँव (AS, p.116) उड़ीसा के खुर्दा रोड (जटणी) स्टेशन से 5 मील पर स्थित है। यहाँ [नयागढ़ नरेश कृष्णचंद्र देव ने श्री रघुनाथ जी का भव्य मंदिर बनवाया था। कहा जाता है कि वनवास काल में राम-लक्ष्मण यहाँ आए थे और एक चंदन के वृक्ष के नीचे उन्होंने रात्रि व्यतीत की थी। यहाँ शबर लोगों का निवास है। [49]

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  • पलुर (जाट गोत्र - पालवार) - पलुर (AS, p.535), जिला गंजम, उड़ीसा. गोपालपुर के निकट यह अति प्राचीन बंदरगाह था जहां से भारत के व्यापारी मलय प्रायद्वीप तथा जावा द्वीप की यात्रा के लिए जलयान में सवार होते थे. निकटवर्ती ताम्रलिप्त (तमुलक) का बंदरगाह भी पलूर का समकालीन था. इसका समृद्धि काल ई. सन् के प्रारंभ से उत्तरगुप्तकाल तक समझना चाहिए. प्राचीन रोम के भौगोलिक टोलमी ने इसका उल्लेख किया है.[50] टोलेमी (Ptolemy) ने दूसरी शती ई० में लिखी अपनी भूगोल की पुस्तक में मलाया प्रायद्वीप, जावा तथा सुमात्रा के बन्दरगाहों का और पलुर के भारतीय बन्दरगाह का उल्लेख किया है जहाँ से मलाया प्रायद्वीप को सीधे जलयान जाया करते थे।[51]
  • पीपली (जाट गोत्र - पीपलिया) - पीपली उड़ीसा के पुरी जिले में स्थित है। यह पुरी - भुवनेश्वर सड़क पर पुरी से 36 किमी और भुवनेश्वर से 18 किमी दूर स्थित है जहाँ से कोणार्क के लिए सड़क जाती है। 14.2.2007 को धौली भ्रमण के बाद लेखक कोणार्क सूर्य मंदिर के लिए रवाना हुये। पुरी के रास्ते में राजमार्ग संख्‍या-203 पर पुरी जिले में पीपली नामक एक स्थान आता है। यहाँ हम कुछ देर के लिए रुके और स्थानीय हैंडीक्राफ्ट की बनी कला की वस्तुएं खरीदी। यह गाँव गोटा-पट्टा हैंडीक्राफ्ट (Applique handicrafts) के काम के लिए प्रसिद्ध है। इस स्थान से एक रास्ता बायें तरफ फटता है जो कोणार्क सूर्य मंदिर के लिए जाता है। ओडिशा के पुरी जिले में पीपली के पास भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक धरोहर न्यास (इन्टैक) ने 1400 साल पुराना गुप्तकालीन मंदिर खोजा है। इन्टैक की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, यह गुप्तकाल के बाद के कालखंड के सर्वाधिक प्राचीन मंदिरों में से एक हो सकता है। प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक गटेश्वर मंदिर के पास स्थित 1,400 साल पुराना मंदिर स्वप्नेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को अब तक दस्तावेज में शामिल नहीं किया गया था। [56]

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  • रणपुर (जाट गोत्र - राणा) - राजा रणपुर (Raja Ranapur) या रणपुरगढ़ (Ranapurgada) भारत के ओड़िशा राज्य के नयागढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। नयागढ़ जिले का यह महत्वपूर्ण नगर है। मणिनाग पर्वत के तलहटी में बसा हुआ यह शहर पुरी से 63 किमी दक्षिण-पश्चिम दिशा में है और सीधा न्यू जगन्नाथ सड़क मार्ग से जुड़ा है। शहर को बसाने वाले राजा का नाम राणासुर था जिनके नाम पर यह पहले राणासुरपुर कहलाता था जो बाद में रणपुर नाम से जाना जाने लगा।

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  • तितलागढ़ (जाट गोत्र - तेतरवाल) - तितलागढ़ उड़ीसा के बलांगिर जिले में तहसील मुख्यालय है। टिटलागढ़ का शिव मंदिर एक शिव-पार्वती मंदिर है। टिटलागढ़ उड़ीसा का सबसे गर्म क्षेत्र माना जाता है। इसी जगह पर एक कुम्‍हड़ा पहाड़ है, जिसपर स्‍थापित है यह अनोखा शिव-पार्वती मंदिर। पथरीली चट्टानों के चलते यहां पर प्रचंड गर्मी होती है। लेकिन मंदिर में गर्मी के मौसम का कोई असर नहीं होता है। टिटलागढ़ के शिव-पार्वती मंदिर में एसी से भी ज्‍यादा ठंड होती है। इस रहस्‍य को जानने के लिए काफी कोशिशें की गईं हैं। लेकिन कोई परिणाम नहीं मिला, यह विषय आज भी रहस्‍य ही बना हुआ है। स्रोत : प्रियंका पांडे, नवभारतटाइम्स.कॉम 22.4.2019
  • तोसल (जाट गोत्र - तोष्णीवाल): तोसल या तोसलि (जाट गोत्र धौला (उड़ीसा) (AS, p.412): भुवनेश्वर के निकट शिशुपालगढ़ के खंडहरों से तीन मील दूर धौली नामक प्राचीन स्थान है, जहाँ अशोक की कलिंग धर्मलिपि चट्टान पर अंकित है। इस अभिलेख में इस स्थान का नाम 'तोसलि' है और इसे नवविजित कलिंग देश की राजधानी बताया गया है। यहाँ का शासन एक 'कुमारामात्य' के हाथ में था। अशोक ने इस अभिलेख के द्वारा 'तोसलि' और समापा के नगर व्यावहारिकों को [p.413]: कड़ी चेतावनी दी है, क्योंकि उन्होंने इन नगरों के कुछ व्यक्तियों को अकारण ही कारागार में डाल दिया था। सिलवनलेवी के अनुसार 'गंडव्यूह' नामक ग्रंथ में 'अमित तोसल' नामक जनपद का उल्लेख है, जिसे दक्षिणापथ मे स्थित बताया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि इस जनपद में तोसल नामक एक नगर है। कुछ मध्यकालीन अभिलेखों में दक्षिण तोसल व उत्तर तोसल का उल्लेख है (एपिग्राफ़िका इंडिया, 9, 586,15, 3) जिससे जान पड़ता है कि तोसल एक जनपद का नाम भी था। प्राचीन साहित्य में तोसलि के दक्षिणकोसल के साथ संबंध का उल्लेख मिलता है। टॉलमी के भूगोल में भी तोसली (Toslei) का नाम है। कुछ विद्वानों (सिलवनलेवी आदि) के मत में कोसल, तोसल, कलिंग आदि नाम ऑस्ट्रिक भाषा के हैं। ऑस्टिक लोग भारत में द्रविड़ों से भी पूर्व आकर बसे थे। धौली या तोसलि 'दया नदी' के तट पर स्थित हैं।

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See also

References

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  9. Dr Naval Viyogi: Nagas – The Ancient Rulers of India, p.158
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  60. सभा पर्व महाभारत 31, 71
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