Orissa Jat Gotras Namesake
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
Here is a partial list of the peoples or places in Orissa , which have phonetic similarity with Jat clans or Jat Places. In list below those on the left are Jat clans (or Jat Places) and on right are people or place names in Orissa. Such a similarity is probably due to the fact that Jats had been inhabitants and rulers of this area in antiquity.
There is further need to study ancient history of these places and establish any inter-connection. This compilation does not claim any inter-connection but is to help further research.
यहाँ उड़ीसा के कुछ ग्रामों/स्थानों/नदियों/पर्वतों आदि का विवरण दिया जा रहा है जो जाटों में प्रचलित गोत्रों से मिलते हैं। स्थान विशेष से समानता रखने वाले जाट गोत्र का नाम ब्रेकेट में दिया है। जाट गोत्र के संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए ब्रेकेट में दिये गोत्र के नाम पर क्लिक करें। गाँव के नाम की पुष्टि के लिए तहसील के नाम पर क्लिक करें और तहसील के नामों की सूची देखें। यह भी उल्लेखनीय है कि उड़ीसा में वर्तमान में जाटों का आवास नहीं है। केवल नाम में समानता को कोई प्रमाण नहीं माना जा सकता परंतु उड़ीसा के इस भू-भाग में नामों और जाट गोत्रों में इतनी अधिक समानता कुछ संकेत अवश्य देती है। स्थान और जाट गोत्र में सही-सही संबंध जानने के लिए गहन अनुसंधान की आवश्यकता है। उड़ीसा के जिन जिलों में जाट गोत्रों पर आधारित स्थान हैं उनमें मुख्य हैं: खुर्दा, गंजम, पुरी, कटक , नयागढ़, बालासौर, भद्रक, जाजपुर, जगतसिंहपुर, गजपति, मयूरभंज, केन्द्रापड़ा आदि। ये जिले अधिकांश समुद्रतट से लगे हुये हैं। ये स्थान प्राचीन काल में अन्य देशों के साथ व्यापार के महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि जाटों ने समुद्र के रास्ते अथवा प्रचीन मगध राज्य से प्रवेश कर इन जिलों को आबाद किया। इसीलिये राजा खारवेल को समुद्र के अधिपति (Sea-Lord) के रूप में संबोधित किया है। यहाँ उल्लेखित अधिकांश जाट गोत्र पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिम राजस्थान और मध्य प्रदेश के मालवा भू-भागों में मिलते हैं। उड़ीसा के अनेक स्थानों के नाम पश्चिमी उत्तर प्रदेश अथवा हरयाणा के जाट बाहुल्य स्थानों से भी समानता रखते हैं। संभवत: जाटों के कारण ही महाराजा हर्षवर्धन उड़ीसा के इन भूभागों तक पहुँचे थे। मथुरा के जाटों ने ही इस भू-भाग में श्रीकृष्ण पूजा को विस्तारित किया। भारत के इतिहास की मुख्य-धारा में इस तरह का कोई वर्णन नहीं मिलता है। इन तथ्यों को इतिहासकार काल्पनिक भी मान सकते हैं परंतु ये इतिहास की गुम कड़ियों को जोड़ने में सहायक हो सकते हैं।
Why Tak Jats moved to Eastern Coast ?
Puri Kushan (पुरी कुषाण), properly called Imitation Kushan, are copper coins discovered in the littoral districts of Ganjam, Puri, Cuttack, Bhadrakand Balasore as well as hill districts in of Mayurbhanj and Keonjhar in Orissa; Ranchi and Singhbhum in Bihar and a few in Andhra Pradesh and West Bengal.[1]
B S Dahiya[2] writes: Tanks or Taks are mentioned by Col. Tod as one of the Thirty –six royal houses of Indian Kshatriyas, but he said about them that they have disappeared from history owing to their conversion to Islam in the Thirteenth Century. But this is not true because they have not disappeared completely as yet; it is true a large number of Tanks are now followers of Islam but there still exist many Tanks among the Hindu Jats also. [3]
A Tak kingdom is mentioned by Hiuen-Tsang (631-643 A.D.). It is mentioned by him as situated towards east of Gandhara. Hiuen-Tasng gives its name as Tekka, and the History of Sindh, Chach-Nama, mentions it as Tak. Its capital was Shekilo (Sakala, modern Sialkot) and formerly King Mihiragula was ruling from this place. In seventh century A.D. its people were not preeminently Buddhists, but worshiped the sun, too. Abhidhana Chintamani says that Takka is the name of Vahika country (Punjab). For what follows, we are indebted to Chandrashekhar Gupta for his article on Indian coins. [4] The Tanks must have come to India, Prior to fourth century A.D. i.e. with the Kushana. And with the Kushanas, they must have spread up to Bengal and Orissa, like the Manns and Kangs who spread into southern Maharashtra and the Deccan. In Orissa, the Tanks, had their rule in Orissa proper, Mayurbhanj, Singbhoom, Ganjam, and Balasore Districts. They are called by historians as “ Puri Kushans” or Kushanas of Puri (Orissa). Their coins have been found at Bhanjakia and Balasore (Chhota Nagpur) and these coins have the legend Tanka written in Brahmi script of the fourth century A.D. Allan suggested the reading Tanka as the name of a tribe “ [5] and others generally accepted the reading Tanka as correct. [6] Allan placed them in the third or early fourth century A.D., while V.A. Smith placed them in the fourth or fifth century A.D. ; R.D. Bannerji called them “ Puri Kushanas” [7]
Dr Naval Viyogi [8] tells that it is not improper to assume that probably these people migrated from the North-West Region of India to the Eastern Coastal area for some unknown reasons. Probably this was due to some political pressure or economic causes. In the vast region comprising - Orissa, Mayurbhanj, Singhbhumi, Ganjam and Balasore districts, they established their colonies. This is supported by the findings of the so called 'Puri Kushan' copper coins from this area.
Dr Naval Viyogi [9] writes that it seems from the evidence of Puri Kushan coins that some branch Tanka of Taka royal family owing to attack of Kushanas up to Magadha, reached Mayurbhanj, Singhbhumi, Ganjam and Balasore and established colonies there, where remains of their offshoot, the royal family of Dhavaldev is still existing at Dalbhumigarh near Kharagpur.
As for the proof that they were Jats, we invite attention to the fact that they still exist as such. Their association with the Kushanas (Kasvan Jats) further supports it. Their central Asian origin is proved by the fact that Niya Khrosthi documents from Central Asia refer to coin denomination as Tangumule. [10] Here the word Tanga is the same as Tanka, and Muli meant “Price” in Central Asia. [11]
A
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- अरखपल्ली (जाट गोत्र - अरख) : अरखपल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बोलागढ़ तहसील में है। अरखपल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की भपुर तहसील में है। अरखपल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की रणपुर तहसील में है।
- अरिहन (जाट गोत्र - अरैन) - अरिहन नाम का एक गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की चन्द्रपुर तहसील में है। अरैन लोग पंजाब, पाकिस्तान में बस्ते हैं। अरीहण नामक जगह का उल्लेख पाणिनि (4.2.80.1) ने किया है।
B
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- बड़ीला (जाट गोत्र - बड़ी) : बड़ीला नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की भपुर तहसील में है। जाट गोत्र - बड़ी अफ़ग़ानिस्तान में मिलता है।
- बलांगिर/बोलांगिर (जाट गोत्र - बलान/बोलां) - बलांगिर/बलांगीर भारत के ओड़िशा राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय बलांगिर है। बलांगीर ओड़िशा के पश्चिमी भाग के प्रमुख व्यापारिक नगरों में से एक है। सौन्दर्यपूर्ण और आकर्षक दृश्यों के लिए गन्धमादन के पहाड़ी झरने और महानदी के पर्वतीय स्थल प्रमुख हैं।
- बालासौर (जाट गोत्र - बल) - बालासौर (AS, p.624) उड़ीसा में स्थित बंदरगाह है। भारत की कई वैज्ञानिक गतिविधियों और परीक्षण आदि के कार्यों के लिए बालासौर का ख़ास महत्त्व है। सन 1633 ई. में राल्फ़ कार्टराइट ने इस बंदरगाह तथा हरिहरपुर में प्रथम बार अंग्रेज़ 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' की व्यापारिक कोठियाँ स्थापित की थीं। 1658 ई. में ये व्यापारिक कोठी मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के अधीन कर दी गई थी। बालासौर का प्राचीन नाम बालेश्वर था। फ़ारसी में बालासौर का अर्थ 'समुद्र पर स्थित नगर' है।[12]
- बलियन्ता (जाट गोत्र - बालियान): बलियन्ता नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बलियन्ता तहसील में है।
- बाणपुर (जाट गोत्र - बाणा) - बाणपुर नामक गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले में चिलका झील के पश्चिम में स्थित है। बाणपुर का इतिहास उपलब्ध नहीं हो पाया परंतु स्थानीय किंवदंती के अनुसार यह बाणासुर द्वारा बसाया जाना बताया जाता है। बाणपुर नाम का गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की सत्यबाड़ी तहसील में भी है। बाणपुर नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की बड़म्बा तहसील में भी है। दलीप सिंह अहलावत[13] के अनुसार बाना चन्द्रवंशी जाटवंश सुप्रसिद्ध नरेश बाणासुर के नाम से प्रचलित हुआ। इस वंश ने राज्यविहीन होकर पश्चिमोत्तर भारत के उत्तर-पश्चिमी राजस्थान की तरफ प्रस्थान कर गए। वहाँ उन्होने अपना प्रभुत्व प्रजातंत्री रूप से फिरसे कायम किया।
- बांकी (जाट गोत्र - बांगी) : बांकी नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की बांकी तहसील में है। जाट गोत्र - बांगी अफगानिस्तान में मिलता है।
- बड़कोली (जाट गोत्र - बड़क) : बड़कोली नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बाणपुर तहसील में है। बड़कोली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की खण्डपड़ा तहसील में है।
- बरंगा (जाट गोत्र - बरंगा): उड़ीसा के कटक जिले में बरंगा नाम से एक शहर है जो कटक तहसील में कटक से 17 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है। बरंगा नाम से कटक जिले में ही एक दूसरा छोटासा गांव है जो तांगी तहसील में टांगी से 18 किलोमीटर दूर और कटक से 18 किलोमीटर दूर स्थित है। बरंगा नाम का एक गाँव उड़ीसा के गंजम जिले की छत्रपुर तहसील में भी है। बरंगा नाम का एक गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की अस्त्रंगा तहसील में है। बरंगा नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की तांगी चौद्वार तहसील में है।
- बौध (उड़ीसा) (जाट गोत्र - बोध) - बौध (उड़ीसा) (AS, p.649) : तांत्रिक बौद्ध धर्म के अवशेष यहां के खंडहरों से प्राप्त हुए हैं (देखे मेहताब- ए हिस्ट्री ऑफ़ उड़ीसा, पृ. 155). इसके अतिरिक्त शिव एवं विष्णु के मंदिरों के साथ-साथ एक ही स्थान पर होने से मध्यकालीन संस्कृति में इन दोनों संप्रदायों की एकता प्रकट होती है. [14]
- बेन्टापुर (जाट गोत्र - बेन्टा) : बेन्टापुर नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बलियन्ता तहसील में है।
- बेन्टापाड़ा (जाट गोत्र - बेन्टा) : बेन्टापाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की गनिया तहसील में है।
- भद्रक (जाट गोत्र - भद्रक/भादू) - भद्रक ओडिशा में एक महत्वपूर्ण शहर और जिला है, जो अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। इस शहर का नाम भद्रकाली के नाम पर पड़ा है, जिनका एक मंदिर यहां सालंदी नदी के किनारे स्थित है। भद्रकाली मंदिर मुख्य शहर से 8 कि.मी की दूरी पर अहरपाड़ा गांव में स्थित है। यह मंदिर इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है कि यहां की देवी के नाम से शहर का नामकरण हुआ है। यहां देवी की मूर्ति ब्लैक ग्रेनाइट पत्थर से बनी है, और देवी यहां शेर पर बैठी हुई नजर आती हैं। [15] महाभारतकालीन जनपदों में भद्रक लोगों का भी वर्णन आता है। ये जाटवंश अवश्य ही जांगल देश के भादरा नगर के क्षेत्र में रहे होंगे और निश्चित ही भादरा इनकी राजधानी रही होगी। भादरा से जोधपुर और अजमेर की ओर इनका बढ़ना पाया जाता है। ये लोग शान्तिप्रिय पाये जाते हैं और अब भादू और कहीं-कहीं भादा कहलाते हैं[16]
भालियाडीही (जाट गोत्र - भालिया) : भालियाडीही नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की ओड़गाँव तहसील में है।
- भालियापाड़ा (जाट गोत्र - भालिया) : भालियापाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बाणपुर तहसील में है।
- भालियापाड़र (जाट गोत्र - भालिया): भालियापाड़र नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की नुआगांव तहसील में है।
- भौमकर वंश (जाट गोत्र - भौभिया)/भूकर) - कलिंग (उड़ीसा) पर माठर वंश के बाद 500 ई० में नल वंश का शासन आरम्भ हो गया। नल वंश के बाद विग्रह एवं मुदगल वंश, शैलोद्भव वंश और भौमकर वंश ने कलिंग पर राज्य किया। पूर्व में भौमकर शासकों ने उत्तर तोसली पर शासन किया और वे शैलोद्भव शासकों के समकालीन थे जो उत्तरी कोंगोद के शासक थे । राजा शिवकर प्रथम (756 या 786 ई.) के समय तक उड़ीसा के अधिकांश तटीय प्रदेशों पर उनका कब्जा हो गया था। श्वेताक गंग राजा जयवर्मदेव के गंजम शिलालेख के अनुसार शिवाकर प्रथम ने कोंगोद और कलिंग के उत्तरी भागों पर विजय प्राप्त की। भौमकर वंश के सम्राट शिवाकरदेव द्वितीय की रानी मोहिनी देवी ने भुवनेश्वर में मोहिनी मन्दिर का निर्माण करवाया। वहीं शिवाकर देव द्वितीय के भाई शान्तिकर प्रथम के शासन काल में उदयगिरी-खण्डगिरी पहाड़ियों पर स्थित गणेश गुफा (उदयगिरि) को पुनः निर्मित कराया गया तथा साथ ही धौलिगिरि पहाड़ियों पर अर्द्यकवर्ती मठ (बौद्ध मठ) को निर्मित करवाया। यही नहीं, राजा शान्तिकर प्रथम की रानी हीरा महादेवी द्वारा 8वीं ई० हीरापुर नामक स्थान पर चौसठ योगनियों का मन्दिर निर्मित करवाया गया। उसके वंशज शिवकर तृतीय के तलचर शिलालेख से पता लगता है कि उसने राढ़ शासक को पराजित किया और पराजित राजा की पुत्री से शादी की थी। ऐसा प्रतीत होता है कि उड़ीसा में भौमकर वंश का राज्य पतन होने के बाद वे उत्तर-पश्चिमी राजस्थान में आकर आबाद हुये। संभवत: यही लोग भूकर कहलाए।
भोबासर (जाट गोत्र - भोबिया) : भोबासर नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की ओड़गाँव तहसील में है।
- भोईपाड़ा (जाट गोत्र - भोई) - भोईपाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की निश्चिंत कोइली तहसील में है।
- बुड़ियापाजु (जाट गोत्र - बुड़िया) : बेन्टापाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की गनिया तहसील में है।
C
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- छोटा नागपुर (जाट गोत्र - चोटिया/नागा) - छोटा नागपुर (AS, p.349) इस प्रदेश का नाम, किवदंती के अनुसार, छोटानाग नामक नागवंशी राजकुमार-सेनापति के नाम पर पड़ा है. छोटानाग ने, जो तत्कालीन नागराजा का छोटा भाई था, मुगलों की सेना को हराकर अपने राज्य की रक्षा की थी. सरहूल की लोककथा छोटानाग से संबंधित है. इस नाम की आदिवासी लड़की ने अपने प्राण देकर छोटानाग की जान बचाई थी. सर जॉन फाउल्टन का मत है कि छोटा या छुटिया रांची के निकट एक गांव का नाम है जहां आज भी नागवंशी सरदारों के दुर्ग के खंडहर हैं. इनके इलाके का नाम नागपुर था और छुटिया या छोटा इसका मुख्य स्थान था. इसीलिए इस क्षेत्र को छोटा नागपुर कहा जाने लगा. (देखें: सर जॉन फाउल्टन - बिहार दि हार्ट ऑफ इंडिया, पृ. 127) छोटा नागपुर के पठार में हजारीबाग, रांची, पालामऊ, मानभूम और सिंहभूम के जिले सम्मिलित हैं.[17]
- चिलका झील (जाट गोत्र - चिलका): चिल्का झील (Chilka Lake) भी कहा जाता है, भारत के ओड़िशा राज्य के पुरी, खोर्धा और गंजम ज़िलों में स्थित एक अर्ध-खारे जल की अनूपझील (लगून) है। इसमें कई धाराओं से जल आता है और पूर्व में बंगाल की खाड़ी में बहता है। इसका क्षेत्रफल 1,100 वर्ग किमी से अधिक है और यह भारत की सबसे बड़ी तटीय अनूपझील और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्धखारी अनूपझील है।[18][19] भूवैज्ञानिक साक्ष्य इंगित करता है कि चिल्का झील अत्यंतनूतन युग (18 लाख साल से पूर्व 10,000 साल तक) के बाद के चरणों के दौरान बंगाल की खाड़ी का हिस्सा था। चिल्का झील के ठीक उत्तर में खुर्दा जिले के गोलाबाई सासन गांव (20°1′7″N 85°32′54″E) में खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा आयोजित की गई।[20] गोलाबाई गांव तीन चरणों में चिल्का क्षेत्र संस्कृति के एक दृश्य का सबूत प्रदान करता है: नवपाषाण युग (नियोलिथिक) (c. 1600 ईसा पूर्व), ताम्रपाषाण युग (c. 1400 ईसा पूर्व से c. 900 ईसा पूर्व) और लौह युग (c. 900 ईसा पूर्व से c. 800 ईसा पूर्व।[21] महाभारत, सभापर्व (52,20) में उल्लिखित काम्यकसर (AS, p.171) सरोवर शायद उड़ीसा की चिलका झील है-'शैलभान् नित्य भत्तान्श्चाप्याभित: काम्यकं सर:'. इसमें इस प्रदेश के हाथियों का वर्णन है.[22]
D
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- डहा (जाट गोत्र - डहा) : डहा नाम का गाँव उड़ीसा के गंजम जिले की भंजनगर तहसील में है। डहा पाकिस्तान का मुस्लिम जाट गोत्र है।
- डहापाड़ा (जाट गोत्र - डहा) - डहापाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की निश्चिंत कोइली तहसील में है।
- दण्डीगढ़िया (जाट गोत्र - दण्डी) : दण्डीगढ़िया नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बाणपुर तहसील में है।
- दण्डीलो (जाट गोत्र - दण्डी) : दण्डीलो नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बलियन्ता तहसील में है। दण्डी पाकिस्तान का मुस्लिम जाट गोत्र है।
- दया नदी (जाट गोत्र - दहिया): दया नदी (AS, p.426) उड़ीसा की एक नदी है जिसके तट पर धौली (प्राचीन तोसलि) बसी हुई है। दया नदी के तट पर अशोक-मौर्य के समय में होने वाले प्रसिद्ध कलिंग-युद्ध की स्थली थी। कलिंग-युद्ध के पश्चात्त अशोक के हृदय में मानव मात्र के प्रति करुणा का संचार हुआ और उसने धर्म के प्रचार के लिए अपना शेष जीवन समर्पित कर दिया। [23]
- डेंगरगढ़िया (जाट गोत्र - डेंगर): डेंगरगढ़िया नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की नयागढ़ तहसील में है।
- धामीलो (जाट गोत्र - धामी) : धामीलो नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बलियन्ता तहसील में है। धामी पाकिस्तान का मुस्लिम जाट गोत्र है।
- धवलदेव का राज्य (जाट गोत्र - धौल्या): तेजाजी के पूर्वज नागवंश की श्वेतनाग शाखा से निकली जाट शाखा से थे। श्वेतनाग ही धौलिया नाग था जिसके नाम पर तेजाजी के पूर्वजों का धौलिया गोत्र चला। इस वंश के आदि पुरुष महाबल थे जिनसे प्रारम्भ होकर तेजाजी की वंशावली में 21 वीं पीढ़ी में तेजाजी पैदा हुये। यदि एक पीढ़ी की उम्र 30 वर्ष मानी जावे तो महाबल का समय करीब 500 ई. के आसपास बैठता है। यह गुप्त साम्राज्य (320 - 540 ई.) के अंत के निकट का समय है। गुप्त साम्राज्य भारत में स्वर्णयुग माना गया है। गुप्त साम्राज्य के शासकों को इतिहासकारों यथा के पी जायसवाल[24][25], भीम सिंह दहिया[26], हुकुम सिंह पँवार[27], तेजराम शर्मा[28], बी जी गोखले[29] दलीप सिंह अहलावत[30] आदि द्वारा धारण गोत्री जाटवंश का माना गया है। तेजाजी के धौल्या वंश के आदि पुरुष महाबल संभवतः गुप्त साम्राज्य के अधीन उड़ीसा में कलिंग के आस-पास किसी भू-भाग के अधिपति थे। अशोक महान के काल में उस भू-भाग में अनेक जाटवंशी राजाओं के शासक होने के प्रमाण हैं। धौल्या वंश के वहाँ शासक होने का प्रमाण दया नदी के किनारे धोली पहाड़ी के रूप में है। धोली पहाड़ी भूबनेश्वर से 8 किमी दूर है और वहाँ पर एक बड़ा बौद्ध स्तूप बना हुआ है। इसी के पास अशोक के शिलालेख लगे हैं जहां कलिंग युद्ध हुआ था।
- धौलिया (जाट गोत्र - धौलिया) - धौलिया नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की माहंगा तहसील में है। धौलिया नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की नियाली तहसील में भी है।
- धवलेश्वर (जाट गोत्र - धौल्या): कटक जिले में कटक से सड़क से 37 किमी और पानी से 5 किमी दूर महानदी के बीच यह शिव मंदिर स्थित है। [31]
- धवलदेव (जाट गोत्र - धौल्या) - डॉ नवल वियोगी [32] के अनुसार धवलदेव के शासन के अवशेष धलभूमगढ़ (पश्चिम बंगाल/झारखंड) और खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) में देखे जा सकते हैं। धलभूमगढ़ वस्तुतः धवल या धौल्या लोगों की भूमि के रूप में प्रयोग किया गया है। वहाँ की परंपरा के अनुसार स्थानीय राजा जगन्नाथदेव से धोलपुर (राजस्थान) के राजा द्वारा कब्जा कर लिया गया था।
- धोला (जाट गोत्र - धोला) - धोला] नाम का एक गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की चन्दनपुर तहसील में है। धोला/धोल एक मुस्लिम जाट गोत्र है और ये लोग पाकिस्तान में डेरा गाजी खाँ में बस्ते हैं।
E
F
G
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- गैनाड़ा (जाट गोत्र - गैना) : गैनाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की चिलिका तहसील में है। गैनाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की तांगी तहसील में भी है।
- गण्डिलो (जाट गोत्र - गण्डिया): गण्डिलो नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बलियन्ता तहसील में है। गण्डिया एक मुस्लिम जाट गोत्र है और ये लोग पाकिस्तान में डेरा गाजी खाँ में बस्ते हैं।
- गोड़ीयाली (जाट गोत्र - गोड़ीया): गोड़ीयाली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की नयागढ़ तहसील में है।
- गोड़ीझरपाड़ा (जाट गोत्र - गोड़ीया) : गोड़ीझरपाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की तांगी तहसील में है।
- गोड़ीपाड़ा (जाट गोत्र - गोड़ीया) : गोड़ीपाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की तांगी तहसील में है।
- गोड़ीपटना (जाट गोत्र - गोड़ीया) : गोड़ीपटना नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की तांगी तहसील में है।
- गोलाड़ा (जाट गोत्र - गोलाड़ा) - गोलाड़ा नाम के गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की ब्रह्मपुरी और Gadisagada तहसीलों में हैं।
- गोतालाग्राम (जाट गोत्र - गोताला): गोतालाग्राम नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बलियन्ता तहसील में है।
H
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- हुंजन (जाट गोत्र - हुंजन) - हुंजन नाम का गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की कृष्ण प्रसाद तहसील में है। हुंजन पाकिस्तानका मुस्लिम जाट गोत्र है।
I
J
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- जादूपुर (जाट गोत्र - जादू): जादूपुर नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की नयागढ़ तहसील में है। जादूपुर नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की ओड़गाँव तहसील में है। जादूपुर नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की रणपुर तहसील में है।
- जाजपुर/विराज (जाट गोत्र - बरोजवार): यज्ञपुर = जाजपुर = जाजनगर (AS, p.768) उड़ीसा के जाजपुर ज़िले में वैतरणी नदी के तट पर स्थित यह एक प्राचीन स्थल है। प्राचीन समय में यह यज्ञपुर, जाजपुर के नाम से जाना जाता था। महाभारत में इस क्षेत्र को विरजा क्षेत्र कहा गया है। दूसरी-तीसरी सदी ई.में यह क्षेत्र एक तीर्थ स्थल के रूप में माना जाता था। कहा जाता है कि इस नगर की स्थापना छठी सदी में उड़ीसा के राजा ययाति केसरी ने की थी। विरजा ययाति की इष्टदेवी थी। यहाँ पर एक मंदिर में विरजा (वि-रजा=रजोगुणहीन) देवी की मूर्ति स्थापित की है। यहाँ से प्राचीन विशालकाय प्रतिमाएँ मिली हैं। इनमें से एक 16 फुट ऊँची बोधिसत्व पद्मपाणि की प्रतिमा है। अन्य प्रतिमाएँ चामुण्डी,वराही एवं इन्द्राणी की हैं। ये काफ़ी क्षतिग्रस्त हैं। युवानच्वांग के समय जाजपुर ही उड़ीसा की राजधानी थी। मालवा के सुल्तान हुसंगशाह ने जाजनगर पर 1421 ई. में आक्रमण किया था। [33]
- जरीपाड़ा (जाट गोत्र - जरिया) : जरीपाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की तांगी तहसील में है। जरीपाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की रणपुर तहसील में है।
- जटणी (जाट गोत्र - जट) : उड़ीसा के खुर्दा जिले में जटणी एक शहर और तहसील है। खुर्दा का रेलवे स्टेशन इसी शहर में स्थित है जो खुर्दा रोड नाम से जाना जाता है। यह सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। चेन्नई से कोलकाता जाने वाला राष्ट्रीय मार्ग (NH-5) इसके पास से गुजरता है। उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर यहां से 22 किलोमीटर और खुर्दा शहर 8 किलोमीटर दूर है। भारतीय रेलवे का यह प्रमुख जंक्शन है। यहां से भुवनेश्वर 19 किलोमीटर पुरी 44 किमी, कलकाता 456 किलोमीटर, मुंबई 1913 किलोमीटर नई दिल्ली 1819 किलोमीटर दूर हैं।
- जटियापटना (जाट गोत्र - जट) : जटियापटना नाम के गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की तांगी और चिलिका तहसीलों में हैं।
- जौगड़ा (जाट गोत्र - जोगड़ा): जौगड़ा (जिला गंजम, उड़ीसा): (p.374) मौर्य सम्राट अशोक की 14 मुख्य धर्म लिपियों में 1 एक से 10 तक और दो कलिंगलेख जौगड़ा की एक चट्टान पर अंकित है. यह स्थान अशोक के साम्राज्य की पूर्वी सीमा पर रहा होगा क्योंकि मुख्य धर्म लिपियां अशोक ने अधिकतर अपने साम्राज्य की सीमा पर स्थित महत्वपूर्ण नगरों या कस्बों में ही अंकित करवाई थीं. (देखें: कालसी, गिरनार, धौली, मानसेहरा, शाहबाजगढ़ी, सोपोरा). [34]
- झाटियापल्ली (जाट गोत्र - झाटी) : झाटियापल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की भपुर तहसील में है।
K
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- कड़ुवा (जाट गोत्र - कड़वा) : कड़ुवा नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की गनिया तहसील में है। कड़ुवा नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की खण्डपड़ा तहसील में है। कड़ुवा नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की नयागढ़ तहसील में है।
- कड़ुवा नदी (जाट गोत्र - कड़वा): कड़ुवा नदी: उड़ीसा के पुरी जिले में बहने वाली एक बरसाती नदी है। इसका उद्गम Charigan गाँव, तहसील निकीराइ जिला केंद्रापाड़ा से होता है। प्राची नदी और कुशाभद्र नदी के बीच के क्षेत्र को सींचते हुये बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
- कड़ुवांपाड़ापल्ली (जाट गोत्र - कड़वा): कड़ुवांपाड़ापल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की खण्डपड़ा तहसील में है।
- कड़ुवापाड़ा (जाट गोत्र - कड़ुवा) : कड़ुवापाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बोलागढ़ तहसील में है। कड़ुवापाड़ा] नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की खण्डपड़ा तहसील में है।
- कड़ुवापाड़ापटना (जाट गोत्र - कड़ुवा) : कड़ुवापाड़ापटना नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बोलागढ़ तहसील में है। कड़ुवापाड़ापटना नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की खण्डपड़ा तहसील में है।
- कैथोल (जाट गोत्र - कैथोलिया) : कैथोल जगतसिंहपुर जिला उड़ीसा में स्थित है। तहसील मुख्यालय एरसमा से 9 किलोमीटर , जिला मुख्यालय जगतसिंहपुर से 23 किलोमीटर और राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से 62 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- काजलाबेड़ा (जाट गोत्र - काजला) : काजलाबेड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की बड़म्बा तहसील में है।
- कालियापाड़ा (जाट गोत्र - कालिया) : कालियापाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की गनिया तहसील में है।
- कलिकप्रसाद (जाट गोत्र - कलक) : कलिकप्रसाद नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की भपुर तहसील में है।
- कंडागढ़िया (जाट गोत्र - कंडा) : कंडागढ़िया नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की तांगी तहसील में है। जाट गोत्र - कंडा लोग मुलतान, पाकिस्तान में पाये जाते हैं।
- कान्दल (जाट गोत्र - कान्दल) - कान्दल नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की कांटपाड़ा तहसील में है। जाट गोत्र - कान्दल अफगानिस्तान में पाया जाता है।
- कांटिया (जाट गोत्र - कांटिया) - कांटिया नाम का गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की निमापड़ा तहसील में है। कांटिया नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की जटणी तहसील में भी है।कांटिया राजस्थान और मध्य प्रदेश का जाट गोत्र है।
- कण्टिलो (जाट गोत्र - कांटिया) : कण्टिलो उड़ीसा प्रांत के नयागढ़ जिले में यह शहर स्थित है जो राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से 100 किलोमीटर और जिला मुख्यालय नयागढ़ से 33 किलोमीटर दूर है। यह महानदी के किनारे पर स्थित है। यहां पर नीलमाधव का प्रसिद्ध मंदिर प्रसिद्ध है। यह पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर का ही प्रतिरूप है और उसी अनुसार यहां विधि विधान से पूजा की जाती है। कण्टिलो नाम का एक गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की निमापड़ा तहसील में भी है।
- कराड़ा (जाट गोत्र - कराड़) : कराड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की बड़म्बा तहसील में है। कराड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की ओड़गाँव तहसील में है।
- कराड़पल्ली (जाट गोत्र - कराड़) : कराड़पल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की भपुर तहसील में है। कराड़पल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की नुआगांव तहसील में है।
- कराड़पल्ला (जाट गोत्र - कराड़): कराड़पल्ला नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की रणपुर तहसील में है।
- कराड़पल्ली (जाट गोत्र - कराड़): कराड़पल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की रणपुर तहसील में है।
- खैरागड़िया (जाट गोत्र - खैरा) : खैरागड़िया नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की भपुर तहसील में है।
- खजुरिया (जाट गोत्र - खजुरिया) : खजुरिया नाम का गाँव उड़ीसा के गंजम जिले की पोलसरा और Berhampur तहसीलों में हैं। खजुरिया नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बाणपुर तहसील में है।
- खलिपटना (जाट गोत्र - खलि) : खलिपटना नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बोलागढ़ तहसील में है। खलिपटना नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की भपुर तहसील में है।
खांगरपल्ली (जाट गोत्र - खांगर) : खांगरपल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की ओड़गाँव तहसील में है।
- खुर्दा (जाट गोत्र - खुरड़िया) - खुर्दा (उड़ीसा) (AS, p.257) या खोरधा उड़ीसा के ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। यह कटक के 25 मील (लगभग 40 कि.मी.) दूर स्थित है। यहाँ एक प्राचीन दुर्ग के अवशेष और जगन्नाथपुरी के प्राचीन राजाओं के भवन भी अभी तक स्थित हैं। खुर्दा में हाटकेश्वर का मंदिर है। [35] खुर्दा उड़ीसा राज्य के खुर्दा ज़िले का मुख्यालय शहर है। उड़ीसा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर खुर्दा ज़िले के अन्तर्गत ही आती है। आरंभ में यह उड़ीसा शासकों की राजधानी थी।
- कोकरा (जाट गोत्र - कोकड़ा) : कोकरा (AS, p.229) - कोकरा मुग़ल काल में छोटा नागपुर का नाम था। इसका नामोल्लेख अबुल-फ़ज़ल तथा 'तुजुक-ए-जहाँगीरी' में हुआ है।[36]
- कोंगोद (जाट गोत्र - कंग) - कोंगोद (AS, p.228) का उल्लेख चीनी यात्री युवानच्वांग ने किया है। युवानच्वांग ने इस देश का उल्लेख महाराजा हर्ष की विजय यात्राओं के प्रसंग में करते हुए लिखा है कि "कोंगोद पर आक्रमण के पश्चात् हर्ष बंगाल की ओर चला गया।" हर्ष का शासनकाल 606-647 ई. है। कोंगोद का अभिज्ञान 'गंजम' (उड़ीसा) से किया गया है।[37] श्री ह. कृ. महताब[38] के अनुसार महानदी से ऋषिकुल्या नदी तक का विस्तृत भू-भाग कोंगोद कहलाता था। चौथी शती ई. में कोंगोद में शैलोद्भव वंश के राज्य की स्थापना हुई थी। [39]
- कोरड़ाबस्ता (जाट गोत्र - कोरड़ा) : कोरड़ाबस्ता नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की तांगी तहसील में है।
- कोटर (जाट गोत्र - कोटार) : कोटर नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की आठगढ़ तहसील में है। जाट गोत्र - कोटार अफगानिस्तान में मिलता है।
- कोठूर (जाट गोत्र - कोथ) - तेजराम शर्मा [40] ने समुद्रगुप्त (335 - 380 AD) के इलाहाबाद/प्रयाग प्रशस्ति में कोट्टूर राज्य के अधिपति स्वामीदत्त को समुद्रगुप्त द्वारा अधीन करने का उल्लेख किया है। .... कोट्टूर (No. 1, L. 19) : Line-19. कोसलमहेन्द्र-माह[ा]कान्तारकव्याघ्रराज-कौरालकमण्टराज-पैष्टपुरक-महेन्द्रगिरि-कौट्टूरक, स्वामिदत्तैरण्डपल्लकदमन-काञ्चेयकविष्णुगोपावसमुक्त्तक-....उपरोक्त अभिलेख में कोट्टूर का अभिज्ञान N. Dubreuil द्वारा उड़ीसा के गंजम जिले में स्थित कोठूर से किया है। [41] बनर्जी मानते हैं कि कोट्टूर के अधिपति स्वामीदत्त कलिंग राज्य के उन तीन प्रमुख सरदारों में से एक थे जिन्होने समुद्रगुप्त को उनके राज्य में से जाने से रोका था। [42]
- कौट्टूरगिरि अथवा गिरिकोटूर (AS, p.288) एक प्राचीन नगर है। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार यहाँ के राजा स्वामिदत्त को समुद्रगुप्त ने अपने दक्षिण भारत के अभियान के प्रसंग में परास्त किया था- 'कोसलक महेंद्र गिरिकौटूरक स्वामीदत्त - प्रभृति सर्वदक्षिणा पथ राजा गृहणमोक्षानुग्रहजनित प्रतापोन्मिश्र महाभाग्यस्य-।' गिरिकोटूर का अभिज्ञान वर्तमान कोठूर, ज़िला गंजम, उड़ीसा से किया गया है।[43]
- कुकुड़ाहांडी (जाट गोत्र - कुकड़ा) : कुकुड़ाहांडी भारत के ओड़िशा राज्य के गंजम ज़िले में स्थित एक तहसील और नगर है।
- कुराढ़ीलो (जाट गोत्र - कुराडी) : कुराढ़ीलो नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की खुर्दा तहसील में है।
- कुरूळ (जाट गोत्र - कुरल्या) - तेजराम शर्मा [44] ने समुद्रगुप्त (335 - 380 AD) के इलाहाबाद/प्रयाग प्रशस्ति में कुरूळ राज्य के अधिपति मण्टराज को समुद्रगुप्त द्वारा अधीन करने का उल्लेख किया है। ........ कुरूळ (No. 1, L. 19) : Line-19. कोसलमहेन्द्र-माह[ा]कान्तारकव्याघ्रराज-कौरालकमण्टराज-पैष्टपुरक-महेन्द्रगिरि-कौट्टूरक, स्वामिदत्तैरण्डपल्लकदमन-काञ्चेयकविष्णुगोपावसमुक्त्तक- उपरोक्त अभिलेख में कुरूळ का अभिज्ञान जी. रामदास द्वारा उड़ीसा के गंजम जिले में स्थित कुरूळ से किया है। [45] कुरला नाम का गाँव उड़ीसा के गंजम जिले की Sheragada तहसील में है।
- कुशुमकना (जाट गोत्र - कुसुमा) : कुशुमकना नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की दासपल्ला तहसील में है।
- कुसुमगड़िया (जाट गोत्र - कुसुमा) : कुसुमगड़िया नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की दासपल्ला तहसील में है। कुसुमगड़िया नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की नुआगांव तहसील में है।
- कुसुमीपटना (जाट गोत्र - कुसुमा/कसवां) : कुसुमीपटना नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की तांगी तहसील में है।
- कुसुमी नदी (जाट गोत्र - कुसुमा/कसवां) - कुसुमी नदी उड़ीसा में गंजम जिले के भंजनगर उप-मंडल में पंचबटी से निकलती है। नयागढ़ जिले में बहते हुये कण्टिलो (नयागढ़) के पास महानदी में मिल जाती है। कुसुमी नदी को नाम देने वाले कुसुमा अथवा कसवां ही थे|
- कुसुमीपटना (जाट गोत्र - कुसुमा/कसवां) : कुसुमीपटना नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की तांगी तहसील में है।
L
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- लम्बोदरपुर (जाट गोत्र - लम्बोरिया) : लम्बोदरपुर नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की चिलिका तहसील में है। लम्बोदर कृष्ण का वंशज था।
- लांगुलिनी नदी (जाट गोत्र - लांगल) - लांगुलिनी नदी (AS, p.815): कलिंग उड़ीसा की एक छोटी नदी है जो ऋषिकुल्या के दक्षिण में बहती हुई बंगाल की खड़ी में, चिकाकोल के नीचे गिरती है। इसे आजकल लांगुलीया कहते हैं। [46]
M
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- मदानगढ़िया (जाट गोत्र - मदान) : मदानगढ़िया नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की ओड़गाँव तहसील में है।
- मदना (जाट गोत्र - मदानिया) - मदना (AS,p.704): उड़ीसा का प्राचीन अनभिज्ञात बंदरगाह जिसका उल्लेख रोम के भौगोलिक टॉलमी ने किया है (माहताब, हिस्ट्री ऑफ उड़ीसा,पृ. 24)। मदना वर्तमान में केन्द्रापड़ा जिले में पटकुरा तहसील में एक गाँव है। यहाँ एक प्राचीन शिव मंदिर है।
- माहुलिया (जाट गोत्र - माहुलिया) : माहुलिया नाम का गाँव उड़ीसा के गंजम जिले की भंजनगर तहसील में है। माहुलिया नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बाणपुर तहसील में है। माहुलिया नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की भपुर तहसील में है। माहुलिया नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की दासपल्ला तहसील में है। माहुलिया नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की ओड़गाँव तहसील में है।
- मालीशाही (जाट गोत्र - माली) : मालीशाही नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बोलागढ़ तहसील में है। मालीशाही नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की गनिया तहसील में है। मालीशाही नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की रणपुर तहसील में है।
- मल्लीपुर (जाट गोत्र - मल्ली) - मल्लीपुर नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की निश्चिंत कोइली तहसील में है।
- मरदाबाड़ी (जाट गोत्र - मरदा) : मरदाबाड़ी नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की दासपल्ला तहसील में है।
- मयूरभंज (जाट गोत्र - मयूर) - मयूरभंज (AS, p.711), उड़ीसा. इस स्थान से 12 वीं सदी ई. के ताम्रपट लेख मिले हैं जिनमें यहां तत्कालीन राज्यवंशों के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है. [47] मयूरभंज ज़िला भारत के ओड़िशा राज्य का एक ज़िला है। ज़िले का मुख्यालय बारिपदा है। जिले के दक्षिण में मेघासनी पहाड़ी सागरतल से 3824 फुट तक ऊँची है। यहाँ पर लोहा बड़ी मात्रा में निकाला जाता है। अभ्रक भी मिलता है। मयूरभंज एक समय में ओड़ीशा का एक महत्वपूर्ण साम्राज्य था। भारत की स्वतन्त्रता के बाद भी इस राज्य का अस्तित्व बरकरार था। लेकिन 1 जनवरी 1949 में इसे ओड़ीशा में शामिल किया था। प्रकृति की अनुपम सुंदरता यहां बिखरी पड़ी है। प्राकृतिक सुंदरता के अलावा इस स्थान को कला, जूट मिल्स, तुषार मिल, पत्थर की कारीगरी और चरखा मिल के लिए भी जाना जाता है। बुढाबलंग नदी इस क्षेत्र की सुंदरता में और वृद्धि करती है। बारीपदा, सिमलिपाल राष्ट्रीय उद्यान, खिचिं, किचकेश्वरी मंदिर, मानात्री आदि यहां के लोकप्रिय दर्शनीय स्थल हैं।
N
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- नागावती नदी (जाट गोत्र - नागा) - नागावती नदी (AS, p.491) दक्षिण कलिंग की एक नदी है। इसे लांगुलीय नाम से भी जाना जाता हैं। यह नदी कलिंगपटम् और चिकाकोल के निकट बहती है। (दे. बी.सी. लॉ- 'सम जैन केनानिकल सूत्राज़', पृष्ठ 146)[48]
- नीलगिरि (जाट गोत्र - नील) - नीलगिरि (AS, p.505): जैन संप्रदाय से संबंधित गुफाएं भुवनेश्वर से चार-पांच मील पर स्थित हैं। इनका निर्माण कार्य तीसरी सती ईसा पूर्व माना गया है. गुफाओं के पास घना वन्य प्रदेश है। नीलगिरि, खंडगिरि और उदयगिरि नामक गुफा समूह में 66 गुफाएं हैं जो दो पहाड़ियों पर स्थित हैं।
- नीलपल्ली (जाट गोत्र - नील) : नीलपल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बाणपुर तहसील में है। नीलपल्ली नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की रणपुर तहसील में है।
O
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- ओड़गाँव (जाट गोत्र - ओड़ा) - ओड़गाँव (AS, p.116) उड़ीसा के खुर्दा रोड (जटणी) स्टेशन से 5 मील पर स्थित है। यहाँ [नयागढ़ नरेश कृष्णचंद्र देव ने श्री रघुनाथ जी का भव्य मंदिर बनवाया था। कहा जाता है कि वनवास काल में राम-लक्ष्मण यहाँ आए थे और एक चंदन के वृक्ष के नीचे उन्होंने रात्रि व्यतीत की थी। यहाँ शबर लोगों का निवास है। [49]
- ओला (जाट गोत्र - ओला) - ओला] नाम का एक गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की चन्दनपुर तहसील में है। ओला नाम का गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की निमापड़ा तहसील में भी है।
- ओरा (जाट गोत्र - ओरा) - ओरा नाम का गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की कृष्ण प्रसाद तहसील में है। ओरा उत्तर प्रदेश और पाकिस्तान के रावलपिंडी और झांग जिलों में बसने वाला जाट गोत्र है।
P
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- पधानिया (जाट गोत्र - पधानिया) : पधानिया नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की तांगी चौद्वार तहसील में है।
- पलुर (जाट गोत्र - पालवार) - पलुर (AS, p.535), जिला गंजम, उड़ीसा. गोपालपुर के निकट यह अति प्राचीन बंदरगाह था जहां से भारत के व्यापारी मलय प्रायद्वीप तथा जावा द्वीप की यात्रा के लिए जलयान में सवार होते थे. निकटवर्ती ताम्रलिप्त (तमुलक) का बंदरगाह भी पलूर का समकालीन था. इसका समृद्धि काल ई. सन् के प्रारंभ से उत्तरगुप्तकाल तक समझना चाहिए. प्राचीन रोम के भौगोलिक टोलमी ने इसका उल्लेख किया है.[50] टोलेमी (Ptolemy) ने दूसरी शती ई० में लिखी अपनी भूगोल की पुस्तक में मलाया प्रायद्वीप, जावा तथा सुमात्रा के बन्दरगाहों का और पलुर के भारतीय बन्दरगाह का उल्लेख किया है जहाँ से मलाया प्रायद्वीप को सीधे जलयान जाया करते थे।[51]
- पाण्डरसिंगा (जाट गोत्र - पाण्डर) - पाण्डरसिंगा नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की गनिया तहसील में है।
- पांशुराष्ट्र (जाट गोत्र - पंसोटा) - पांशुराष्ट्र (AS, p.540): महाभारत सभा पर्व है 52,27 में इस देश का उल्लेख है--'पांशुराष्ट्राद वसुदानॊ राजा षडविंशतिं गजान्, अश्वानां च सहस्रे द्वे राजन काञ्चनमालिनाम्' अर्थात युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उपायन या भेंट के लिए राजा वसुदान ने पांशुदेश से 26 हाथी और 2 सहस्त्र सुवर्णमालाविभूषित घोड़े (भेजे)। श्री मोतीचंद के अनुसार पांशुराष्ट्र उड़ीसा में स्थित था। (देखें मोतीचंद, उपायएन एवं पर्व स्टडी)[52]
- परथालिस (जाट गोत्र - पोरोथ) - परथालिस (AS, p.530): प्राचीन रोम के इतिहास लेखक प्लिनी (प्रथम सती ई.) के अनुसार परथालिस अथवा प्रोतलिस (Protalis)[53] नामक नगर कलिंग (उड़ीसा) की राजधानी था। इसका अभिज्ञान अनिश्चित है। (दे. कलिंग) [54]
- पटिया (जाट गोत्र - पाट) - पटिया (उड़ीसा) (AS, p.521): उड़ीसा में कटक के निकट सारंग-केसरी नामक केसरीवंशीय नरेश द्वारा बसाया गया नगर जहां का दुर्ग सारंगगढ़ कहलाता था. यहाँ सारंग नाम की झील भी है.[55]
- पीपली (जाट गोत्र - पीपलिया) - पीपली उड़ीसा के पुरी जिले में स्थित है। यह पुरी - भुवनेश्वर सड़क पर पुरी से 36 किमी और भुवनेश्वर से 18 किमी दूर स्थित है जहाँ से कोणार्क के लिए सड़क जाती है। 14.2.2007 को धौली भ्रमण के बाद लेखक कोणार्क सूर्य मंदिर के लिए रवाना हुये। पुरी के रास्ते में राजमार्ग संख्या-203 पर पुरी जिले में पीपली नामक एक स्थान आता है। यहाँ हम कुछ देर के लिए रुके और स्थानीय हैंडीक्राफ्ट की बनी कला की वस्तुएं खरीदी। यह गाँव गोटा-पट्टा हैंडीक्राफ्ट (Applique handicrafts) के काम के लिए प्रसिद्ध है। इस स्थान से एक रास्ता बायें तरफ फटता है जो कोणार्क सूर्य मंदिर के लिए जाता है। ओडिशा के पुरी जिले में पीपली के पास भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक धरोहर न्यास (इन्टैक) ने 1400 साल पुराना गुप्तकालीन मंदिर खोजा है। इन्टैक की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, यह गुप्तकाल के बाद के कालखंड के सर्वाधिक प्राचीन मंदिरों में से एक हो सकता है। प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक गटेश्वर मंदिर के पास स्थित 1,400 साल पुराना मंदिर स्वप्नेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को अब तक दस्तावेज में शामिल नहीं किया गया था। [56]
- पिपलिया (जाट गोत्र - पिपलिया) - पिपलिया नाम का गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की निमापड़ा तहसील में है। पिपलिया मध्य प्रदेश का जाट गोत्र है।
- पोहल (जाट गोत्र - पोहल) - पोहल नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की कांटपाड़ा तहसील में है। जाट गोत्र - पोहल पाकिस्तान के सिंध प्रांत में पाया जाता है।
- पुअनिया (जाट गोत्र - पुनिया) : पुअनिया नाम का गाँव उड़ीसा के खुर्दा जिले की बोलागढ़ तहसील में है। पुअनिया नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की खण्डपड़ा तहसील में है। पुअनिया नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की ओड़गाँव तहसील में है।
Q
R
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- रणपुर (जाट गोत्र - राणा) - राजा रणपुर (Raja Ranapur) या रणपुरगढ़ (Ranapurgada) भारत के ओड़िशा राज्य के नयागढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। नयागढ़ जिले का यह महत्वपूर्ण नगर है। मणिनाग पर्वत के तलहटी में बसा हुआ यह शहर पुरी से 63 किमी दक्षिण-पश्चिम दिशा में है और सीधा न्यू जगन्नाथ सड़क मार्ग से जुड़ा है। शहर को बसाने वाले राजा का नाम राणासुर था जिनके नाम पर यह पहले राणासुरपुर कहलाता था जो बाद में रणपुर नाम से जाना जाने लगा।
S
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- समापा (जाट गोत्र - समोपा) - समापा (AS, p.936): एक ऐतिहासिक स्थान, जिसका मौर्य सम्राट अशोक के धौली और जौगड़ा शिलालेख में तोसली के साथ ही उल्लेख हुआ है। जान पड़ता है कि तोसली तो कलिंग की राजधानी थी और समापा कलिंग का एक मुख्य स्थान था। समापा में नियुक्त महामात्रों को कड़ी चेतावनी देकर अशोक ने उन लोगों के मुक्त करने का आदेश दिया था, जिन्हें इन प्रशासकों ने अकारण ही कारागार में डाल रखा था। इस स्थान की स्थिति सम्भवत: ज़िला पुरी, उड़ीसा में थी। [57]
- सरणकुल (जाट गोत्र - सारण) - सरणकुल भारत के ओड़िशा राज्य के नयागढ़ ज़िले में स्थित एक गाँव है। यह नगर भंडार पर्वत के तलहटी में कुसुमी नदी के किनारे उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से 100 किमी दूरी पर स्थित है जो न्यू-जगन्नाथ सड़क से सीधा पुरी से जुड़ा हुआ है।
- सोरड़ा (जाट गोत्र - सुरडिया/सोर) - सोरड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के पुरी जिले की निमापड़ा तहसील में है। सोरड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के गंजम जिले की गंजम, बुगुड़ा और सोरड़ा तहसीलों में भी हैं। सोरड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की नुआगांव तहसील में है।
T
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- तांगी (जाट गोत्र - तांग) - तांगी उड़ीसा के खुर्दा जिले में तहसील मुख्यालय है। भुवनेश्वर से 65 किमी दक्षिण पश्चिम में राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-16) पर स्थित है। खुर्दा जिले का यह एक मुख्य शहर है। यह चिलका झील के उत्तर-पश्चिम सीमा के पास स्थित है। उड़ीसा के कटक जिले में तांगी चौद्वार नाम की तहसील भी है।
- टाँकुपाड़ा (जाट गोत्र - टाँक): टाँकुपाड़ा नाम का गाँव उड़ीसा के नयागढ़ जिले की खण्डपड़ा तहसील में है।
- तिगिरिया (जाट गोत्र - तुंग) : तिगिरिया नाम का गाँव उड़ीसा के कटक जिले की तांगी चौद्वार तहसील में है। यह उड़ीसा में एक रियासत थी सिसकी स्थापना नित्यानंद तुंग नामक शासक ने की थी।
- तितलागढ़ (जाट गोत्र - तेतरवाल) - तितलागढ़ उड़ीसा के बलांगिर जिले में तहसील मुख्यालय है। टिटलागढ़ का शिव मंदिर एक शिव-पार्वती मंदिर है। टिटलागढ़ उड़ीसा का सबसे गर्म क्षेत्र माना जाता है। इसी जगह पर एक कुम्हड़ा पहाड़ है, जिसपर स्थापित है यह अनोखा शिव-पार्वती मंदिर। पथरीली चट्टानों के चलते यहां पर प्रचंड गर्मी होती है। लेकिन मंदिर में गर्मी के मौसम का कोई असर नहीं होता है। टिटलागढ़ के शिव-पार्वती मंदिर में एसी से भी ज्यादा ठंड होती है। इस रहस्य को जानने के लिए काफी कोशिशें की गईं हैं। लेकिन कोई परिणाम नहीं मिला, यह विषय आज भी रहस्य ही बना हुआ है। स्रोत : प्रियंका पांडे, नवभारतटाइम्स.कॉम 22.4.2019
- तोसल (जाट गोत्र - तोष्णीवाल): तोसल या तोसलि (जाट गोत्र धौला (उड़ीसा) (AS, p.412): भुवनेश्वर के निकट शिशुपालगढ़ के खंडहरों से तीन मील दूर धौली नामक प्राचीन स्थान है, जहाँ अशोक की कलिंग धर्मलिपि चट्टान पर अंकित है। इस अभिलेख में इस स्थान का नाम 'तोसलि' है और इसे नवविजित कलिंग देश की राजधानी बताया गया है। यहाँ का शासन एक 'कुमारामात्य' के हाथ में था। अशोक ने इस अभिलेख के द्वारा 'तोसलि' और समापा के नगर व्यावहारिकों को [p.413]: कड़ी चेतावनी दी है, क्योंकि उन्होंने इन नगरों के कुछ व्यक्तियों को अकारण ही कारागार में डाल दिया था। सिलवनलेवी के अनुसार 'गंडव्यूह' नामक ग्रंथ में 'अमित तोसल' नामक जनपद का उल्लेख है, जिसे दक्षिणापथ मे स्थित बताया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि इस जनपद में तोसल नामक एक नगर है। कुछ मध्यकालीन अभिलेखों में दक्षिण तोसल व उत्तर तोसल का उल्लेख है (एपिग्राफ़िका इंडिया, 9, 586,15, 3) जिससे जान पड़ता है कि तोसल एक जनपद का नाम भी था। प्राचीन साहित्य में तोसलि के दक्षिणकोसल के साथ संबंध का उल्लेख मिलता है। टॉलमी के भूगोल में भी तोसली (Toslei) का नाम है। कुछ विद्वानों (सिलवनलेवी आदि) के मत में कोसल, तोसल, कलिंग आदि नाम ऑस्ट्रिक भाषा के हैं। ऑस्टिक लोग भारत में द्रविड़ों से भी पूर्व आकर बसे थे। धौली या तोसलि 'दया नदी' के तट पर स्थित हैं।
U
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- उड्र (जाट गोत्र - ओद्र) - उड्र (AS, p.89) ओडिशा का प्राचीन नाम उड्र, उड्डियानपीठ और उत्कल था-- 'पांड्याश्च द्रविडांश्चैव सहितांश्चोड्रकेरलै:, आन्ध्रास्तालवनांश्चैव कलिंगानुष्ट्रकर्णिकान्।' (सभा पर्व महाभारत 31, 71)। इस उद्धरण में उड्र का पाठांतर उंड्र भी है। (देखें कलिंग, उत्कल) कुछ विद्वानों का मत है कि द्रविड़ भाषाओं में उड्डि शब्द का अर्थ किसान है और शायद उड्र देश का नाम इसी शब्द से सम्बन्धित है।[58] उड्डियानपीठ (AS, p.88) शाक्तों के अनुसार जगन्नाथपुरी, ओडिशा के क्षेत्र का नाम था। उड्डियानपीठ को शंखक्षेत्र भी कहते थे।[59]
- उष्ट्रकर्णिक (जाट गोत्र - उटकाण्या) - उष्ट्रकर्णिक (AS, p.103) 'पांड्यांश्च द्रविडांश्चैव सहितांश्चोण्ड्रकेरलै:, आंध्रा स्तालव नांश्चैव कलिंगानुष्ट्रकर्णिकान्।'[60] सहदेव ने अपनी दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में इस देश को विजित किया था। संदर्भ से जान पड़ता है कि यह स्थान कलिंग या दक्षिण उड़ीसा अथवा आंध्र के निकट स्थित होगा।
V
Contents: Top · 0–9 A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z
- विशल्या नदी (जाट गोत्र - विसला) विशल्या नदी (AS, p.862): महाभारत, सभापर्व 9,20 के अनुसार एक नदी जिसका उल्लेख किंपुना तथा वैतरणी के साथ किया गया है- 'किंपुना च विशल्या च तथा वैतरणी नदी।' वैतरणी उड़ीसा की नदी है। विशल्या इसी के समीप बहने वाली कोई नदी जान पड़ती है। [61]
W
X
Y
Z
See also
References
- ↑ 'Newly Found Imitation Kushan Coin Hoard From Dolashai, Bhadrak Orissa' by Ajay Kumar Nayak
- ↑ Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Jat Clan in India,p. 273-274
- ↑ Bhim Singh Dahiya, Jats the Ancient Rulers ( A clan study), p. 274
- ↑ Vishveshvaranand Indological Journal (Hoshiarpur, Pb.) Vol, XVI, pt. I. p.92 ff
- ↑ Ancient India, Plate XII, fig. 3
- ↑ Journal of Numismatic Society of India, 12, 1950 p.72
- ↑ Bhim Singh Dahiya, Jats the Ancient Rulers ( A clan study), p. 274
- ↑ Dr Naval Viyogi: Nagas – The Ancient Rulers of India, p.157
- ↑ Dr Naval Viyogi: Nagas – The Ancient Rulers of India, p.158
- ↑ ibid., 16-1954 p. 220 f.n. 4
- ↑ Bhim Singh Dahiya, Jats the Ancient Rulers ( A clan study), p. 274
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.624
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.305-306
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.649
- ↑ https://hindi.nativeplanet.com/travel-guide/tourist-places-to-visit-in-bhadrak-odisha/articlecontent-pf24009-003550.html
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III (Page 195)
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.349
- ↑ Orissa reference: glimpses of Orissa," Sambit Prakash Dash, TechnoCAD Systems, 2001
- ↑ "The Orissa Gazette," Orissa (India), 1964
- ↑ Sinha, B.K. (2000). "13. B.K. Sinha, Golabai :". प्रकाशित Kishor K. Basa and Pradeep Mohanty (संपा॰). A Protohistoric Site on the Coast of Odisha. vol. I (in: Archaeology of Odisha संस्करण). Delhi: Pratibha Prakashan. p. 322–355. ISBN 81-7702-011-0.
- ↑ Patra, Sushanta Ku.; Dr. Benudhar Patra (1992-93,). "ARCHAEOLOGY AND THE MARITIME HISTORY OF ANCIENT ORISSA" (PDF). OHRJ. Bhubaneswar: Govt. of Orissa. XLVII, (2): 107–118
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.171
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.426
- ↑ An Imperial History Of India/Gauda and Magadha Provincial History, p.53
- ↑ JRAS, 1901, P. 99; 1905, P. 814; ABORI XX P. 50; JBORS, xix, P. 113-116; vol xxi, P. 77 and vol xxi, P. 275
- ↑ Jats the Ancient Rulers (A clan study)/The Empire of the Dharan Jats, Misnamed Guptas,pp. 177-188
- ↑ Hukum Singh Panwar (Pauria): The Jats:Their Origin, Antiquity and Migrations, pp.137-138
- ↑ Tej Ram Sharma:Personal and geographical names in the Gupta inscriptions, pp. 16-17
- ↑ B.G. Gokhale, Samudragupta, Life and Times, pp. 25-26.
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, pp.492-494
- ↑ Dhawaleshwar Temple, Orissa Tourist Places
- ↑ Dr Naval Viyogi: Nagas – The Ancient Rulers of India, p. 158
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.768
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.374
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.257
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.229
- ↑ डॉ. कु. मुकर्जी-हर्ष, पृ. 85.
- ↑ हिस्ट्री ऑफ़ उड़ीसा, पृ. 29.
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.228
- ↑ Personal and geographical names in the Gupta inscriptions/Place-Names and their Suffixes,p.258
- ↑ Banerji, History of Orissa. Vol. I, pp. 115-16, Historical Geography of Ancient India by B. C. Law p. 167.
- ↑ Banerji, History of Orissa. Vol. I, pp. 115-16.
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.288
- ↑ Personal and geographical names in the Gupta inscriptions/Place-Names and their Suffixes,p.258
- ↑ Indian Historical Quarterly, Calcutta. Vol. I, p. 685.
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.815
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.711
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.491
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.116
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.535
- ↑ Prachin Bharat Ka Itihas (Ancient India), Hindi Edition by Mahajan V.D.,p.517
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.540
- ↑ Pliny, Hist. Nat. VI, 21–22 (Pliny, Bostock & Riley (tr.) 1855, pp. 42–43 and note 43, 44 and note 50)
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.530
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.521
- ↑ स्रोत : अमर उजाला, संजीव कुमार झा, 20.7.2021
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.936
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.89
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.88
- ↑ सभा पर्व महाभारत 31, 71
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.862
Back to Jat Gotras Namesake