Jat Jan Sewak/Shekhawati

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पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949, पृष्ठ: 580

संपादक: ठाकुर देशराज, प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर


शेखावाटी के आंदोलन पर प्रकाश

नाम और विस्तार

[पृ.324]: जयपुर राज्य के उत्तरी पश्चिमी हिस्से का नाम शेखावाटी है। इस हिस्से का शेखावाटी नाम पड़ने का कारण जो कर्नल टॉड, गौरीशंकर हीराचंद ओझा आदि राजस्थानी इतिहासकारों ने लिखा है, वह यह है कि जयपुर के कछवाहा वंश में राव मोकलजी नाम के एक सरदार हुए थे। वे जयपुर से पश्चिम 20 मील के फासले पर अमरसर नामक गांव में जा रहे थे। उनके यहां मुसलमान धर्म प्रचारक फकीर शेख बुरहान की दुआ से जो पुत्र हुआ था उसका नाम शेखाजी था। उन्हीं शेखाजी के वंशजों के अधिकृत प्रदेश का नाम शेखावाटी है। हमें यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं है कि शेखावत राजपूतों के यहां शेख बुरहान की बड़ी मान्यता है अथवा उनके झंडे का रंग नीला होता है या उनके बच्चे नीली कुर्तियां पहनते हैं। शेखावाटी का नाम पड़ने का कारण बुरहान शेखा जी की करामातें और इस प्रदेश पर शेखावतों के कब्जा करने की घटनाओं का वृद्ध शेखावत राजपूत बड़ी श्रद्धा के साथ वर्णन करते हैं।

यह प्रदेश इतना विस्तृत है कि इसमें छोटी बड़ी लगभग 2 हजार बस्तियां हैं। इसकी सीमा पटियाला, लोहारू, बीकानेर और जोधपुर के राज्यों से तीन ओर से घिरी हुई है। सीकर और खेतड़ी के बड़े-बड़े


[पृ.325]: ठिकाने जिनकी 10-10 लाख रुपए सालाना की आमदनी है, इसी प्रदेश में शामिल हैं। इसका प्रबंधन झुंझुनू, सांभर और नीमकाथाना 3-3 निजामतों (कलेक्टरों) द्वारा होता है। सीकर और खेतड़ी को छोड़कर खंडेला, डुंडलोद, मंडावा, नवलगढ़, सूरजगढ़, बिसाऊ, खूड़, दातारामगढ़, अलसीसर, मलसीसर, पाटण, उदयपुर, और इम्मालपुर, आदि लगभग तीन दर्जन प्रदेश में ऐसे ठिकाने हैं जो प्रतिवर्ष ₹5000 से लगाकर तीन लाख रुपए तक अपने खजाने में डालते हैं। पचासों ऐसे ठिकाने हैं जो इन्ही के अंतर्गत अथवा इनसे अलग हैं और जिनमें से कई के पास तो दो चार नाव (एक जोड़ी बैल जितना खेत जोतते हैं उसे नाव कहते हैं) की भूमि ही ही है।

जमीन और पैदावार

यहां की ज़मीन और पैदावार के संबंध में इतना कहना काफी होगा कि सारी शेखावाटी में कुछ हिस्से को छोड़कर भूमि रेतीली है। रेत की छोटी छोटी पहाड़ियों सी बनी हुई है। गर्मी के दिनों में तो यह रेतीली पहाड़ियां (टिब्बे) बदलती भी रहती हैं। इस रेतीली भूमि में खेती की मेड (हद) बनाने में किसानों को बड़ी कठिनाई उठानी पड़ती है। वह अपने खेतों की हद जंगली बेर अथवा बबूल आदि के ढांकरो अर्थात कांटो से बनाते हैं क्योंकि रेत की मेड़ का हवा से उड़ जाने का डर रहता है। जो मेड़ रेत की बनाई जाती हैं वह बरसात में गीली रेत की और 4-5 फीट ऊंची बनाई जाती है। लेकिन दोनों तरह की मेड प्रतिवर्ष नए सिरे से बनानी पड़ती है।

इस जमीन में मोठ, बाजरा, मूंग, चारा और ग्वार के


[पृ.326]: सिवा कोई दूसरी चीज पैदा नहीं होती अर्थात साल भर में कुल एक फसल पैदा होती है। शेखावाटी के 2000 गांव में से मुश्किल से खंडेला, बिसाऊ और सिरोही के ठिकानों में 150 गांव ऐसे निकलेंगे जिनमें दोनों फसलें पैदा होती हैं। झुंझुनू को केंद्र मानकर उसके चारों ओर 50-50 मील दूरी की एक परिधि बनावें तो यह परिधि शेखावाटी का ऐसा हिस्सा होगी जिसमें जलदेवता 150 फीट से कम गहराई पर दर्शन ही नहीं देते। पीने के लिए भी पानी या तो बैलों से निकालते हैं या बेचारी स्त्रियों को खुद बैलों की भांति खींचना पड़ता है। कोई भी एक स्त्री अकेली पानी नहीं निकाल सकती। कम से कम 3 स्त्रियों के सहयोग के बिना पानी भर लेना कठिन है। गर्मी के दिनों में पशु को भी इन्हीं कुओं से खींच कर पानी पिलाया जाता है।

जहां जल का इतना कष्ट है वहां साग-सब्जी का कितना कष्ट होगा यह सहज में ही समझ लेने की बात है। कस्बों के मारवाड़ी वैश्यों अथवा दूसरे संपन्न लोगों को छोड़कर किसानों को जांटी (छोंकरा) की फली, प्याज की डँठी और गाठों का साग ही हरी तरकारी के नाम पर सब कुछ है।

खाने के अनाजों में मोठ और बाजरा है जिसे शेखावाटी के किसान 12 महीने खाते हैं। यह मोठ बाजरा भी रेतीली जमीन में अधिक से अधिक 6 पसेरी फी बीघा के हिसाब से पैदा होता है।

किसानों की जीविका के दूसरे साधन

खेती के सिवा शेखावाटी के किसान पशुपालन भी करते हैं। उन पशुओं में ऊंट, भैंस और बकरी भेड़ हैं। ऊंट


[पृ.327]: केवल सफर करने के लिए ही नहीं पालते किंतु खेत जोतने, घास और कड़वी ढोने और कुएं से पानी निकालने के लिए भी उन्हें ऊंट पालने पड़ते हैं। अपना घास-फूस ढोने के लिए उनके पास गाड़ियां नहीं होती और न वे रेत में काम दे सकती हैं। कुछ लोग गाड़ियां रखने भी लगे हैं। वह बिल्कुल वैसी ही होती हैं जैसे लोहा पीटने वाले भूभरियों के पास होती हैं। एक-एक किसान सौ-सौ बीघे से अधिक जमीन जोतता है। उसे ऊंट के सिवा बैल से जोत लेना क्या आसान है बेचारा इतनी ज्यादा जमीन न बोये तो करे क्या। इतने में तो केवल 40-50 मन ही अनाज पैदा होता है। शेखावाटी के किसान के खेत में कपास नहीं पैदा होती इसलिए उसे यहाँ भेड़ पालनी पड़ती है। उसकी स्त्री के पास उस मोटे उन की ओढ़नी ही नहीं होगी किंतु घागरा भी वह बेचारी ऊन का पहनती है। बैसाख जेठ की भयंकर गर्मी में उसे उनके घागरे और औढनी से ही लज्जा निवारण करनी पड़ती है। शेखावाटी के किसान की स्त्री के घागरा को कई ऊनी टुकड़ों का संगठित रूप कह सकते हैं जिसे वह कमर से आध इंची मोटे और दस हाथ लंबे ऊनी रस्से से जकड़ कर बांध लेती है। बिछाने और ओढ़ने के कपड़ों में ऊन का भी प्रयोग शेखावाटी किसान के यहां होता है।

अपने ऊंटों को वे किसान जो रेलवे के पास रहते हैं किराए पर भी चलाते हैं। जिसमें एक आदमी और एक ऊंट दोनों की मजदूरी 4-5 आने रोज की औसत नहीं होती।

किसानों की जातियां और उनका अनुपात

शेखावाटी में किसान जातियों में जाट, गुर्जर, अहीर,


[पृ.328]: माली, मैना और कायमखानी है। जिन में 95% जाट किसान हैं। कुल शेखावाटी में यह ढाई लाख की संख्या में आबाद है। जिन ठिकानेदारों के यहां यह इस समय अधीन है उनसे बीसवीं शताब्दी पहले से भी वे इस प्रदेश पर आबाद हैं। पूर्णतया सत्रवीं शताब्दी के अंतिम भाग में इनका संबंध वर्तमान ठिकानेदारों से हुआ। गो कि शेखा जी का जन्म 15 शताब्दी में हुआ था।

हमें यहां वह इतिहास नहीं देना है कि यह किस भांति मौजूदा ठिकानेदारों के अधिकृत हुए अथवा इन से पहले उनकी राजनीतिक दशा कैसी थी। हमें तो यह बातें बतानी है कि ठिकाने द्वारा आंदोलन होने से पहले और बाद तक यह किसान किस तरह लूटे जाते रहे हैं।

शेखावाटी के ठीकानेदारों ने अपनी अदूरदर्शिता और लुब्धकता से किसानों के दोहन के तरीके इतने बेजा ढंग से बढ़ा दिए, किसान बेबसी की हालत को पहुंच गए। लगान के सिवा लाग और भेट वह इन किसानों से इतना लेने लगे कि यदि किसान उन्हें देने की जी तोड़ कोशिश भी करे तो भी दे नहीं सकते थे।

लगान

पहले हम लगान की बात लेते हैं। सन 1925 से 1935 तक लगान एकदम दुगना और कहीं-कहीं तो ढाई गुना हो गया। यदि 50 वर्ष पहले के लगान की ओर दृष्टि डालें तो कहना पड़ेगा कि लगान में उस समय से अब तक 10 गुनी बढ़ोतरी कर ली गई है। साथ ही बीघा का माप भी घटा दिया गया।


[पृ.329]: पटियाले की नारनोल निजामत के निजामपुर गांव में जहां लगान आठ आना फी बीघा था उसी से सटे हुए शेखावाटी के गोरीर गांव में ₹2 फी बीघा का लगान था और वीघा भी पटियाला का दो तिहाई था। बीघे के घटाने में इन ठिकानेदारों ने यहां तक बेईमानी की कि कोई-कोई तो पचास हाथ की जरीब से ही नापा हुई और जमीन को वीघा कहने लगा। इतने बड़े हुए लगान के सिवा ठिकानेदार लागें भी लेते थे।

लागें

यह लागें भी वैसी ही निर्दयता और पाबंदी के साथ वसूल की जाती थी जैसा कि लगान। साथ ही इन लोगों का रूप सुरसा के आकार की भांति बढ़ता ही रहा था। उन अनेक लागो में से जो ठिकानेदार अपने किसानों से उसकी गरीबी की कोई भी खयाल न करके वसूल करते रहे, कुछ एक का संक्षिप्त विवरण यहां देते हैं।

मल्वा: लगान से सिवा लगान उगाही के समय वसूल की जाने वाली यह वह लाग है जो ठिकाने के सवारों, कारिंदों और ऊंट घोड़ों की खुराक में उस गांव में रहने के दिनों में खर्च होती थी। यह सारे गांव पर सम्मिलित रूप में डाल दी जाती थी। ठिकानेदार उन लोगों का वेतन भी मलबे की रकम में शामिल कर देते रहे जो उसे उस गांव में सेना, सिपाही आदि के रूप में रखने होते थे। हालांकि यह नौकर किसानों को मारने पीटने के लिए रखे जाते थे।

खूंटा बंदी: यह लाग ऊंटों पर ली जाती रही। कोई भी किसान जो ऊंट रखता था उसे 2 से 3 रुपये तक वार्षिक प्रति ऊंट ठीकानेदार को देना होता था।


[पृ. 330]: पान चराई - यह लाग भेड़ बकरियों पर लगाई हुई थी। प्रति भेड़ या बकरी पर 2-3 आने वार्षिक ठिकानेदार वसूल करा लेता था।

खूंद – हरी फसल को जिसमें कि नाज नहीं पढ़ पाता खूंद कहते हैं। ठिकानेदार अपने ऊंट और घोड़े देहातों में भेज देता था जिन्हें किसान नंबरवार अपने खेत में खिलाने के लिए विवश थे।

ग्वार का लादा - ठिकानेदार के गढ़ के पास जो गांव होते हैं उन्हें खूंद के सिवा हरी ग्वार भी ठिकानेदार के यहां पहुंचानी होती थी। दूर के गांव के बदले में रकम डाल देता था।

कड़वी का लादा - प्रत्येक गांव को प्रतिवर्ष 2-4 गाड़ी कड़वी ठिकानेदार के यहां पहुंचानी होती थी।

कोरड का लादा - मूंग, मोठ व चारे की फलियां भी ठिकाने में पहुंचाना किसानों के ऊपर बांध रखा था।

हल बेठीया - यह वह लाग है जो प्रति हल पर ₹1 प्रति वर्ष के हिसाब से वसूल की जाती थी।

पटड़ा मेख - यह लाग विवाह शादियों के अवसर पर ली जाती थी। प्रत्येक गांव से खूँटे (मेख) और पट्टे (लकड़ी के आसन) भेजने होते थे। संख्या ठिकानेदार आवश्यकतानुसार नियत कर देते थे।

मुगधणा - यह लाग भी विवाह शादियों के अवसर पर वसूल की जाती है। इसमें प्रत्येक गांव से किसान लकड़ियां भेजते थे।

न्योता - ठिकानेदार के यहां जितने भी विवाह होते हैं उनका कुल खर्च वह अपने गांव पर डाल देते थे और वह


[पृ.331]: लगान की रकम के औसत से 10% तक के हिसाब से वसूल कर लिया जाता था।

काज - यह लाग विवाह की भांति मृतक भोजों के खर्च पर जोकि ठिकानेदार के संबंधियों के मरने पर होते हैं, ली जाती थी।

बाईजी का हाथ - ठिकानेदार के यहां जब से लड़की पैदा होती है उनके हाथ जेब खर्च के लिए प्रति किसान से ₹1 प्रति वर्ष वसूल की जाने वाली लाग का नाम बाई जी का हाथ है।

कुंवरजी का कलेवा - यह लाग उपरोक्त तरीके से कुंवर साहब के जेब खर्च के लिए वसूल की जाती थी।

हरी - फसल के पक जाने से पहले ही जो अतिरिक्त लगान वसूल कर लिया जाता था उसे हरी की लाग कहा जाता था।

हरी का ब्याज - क्योंकि किसानों के पास हरी के वसूली के दिनों (भादो क्वार में) रुपए की कमी होना स्वाभाविक है। इसलिए जो किसान उस समय हरी की रकम, जोकि लगान की रकम पर दो आना प्रति रुपए के हिसाब से वसूल की जाती थी, अदा नहीं कर सकता तो उस पर ठिकानेदार ब्याज लगा देते थे। इसी प्याज को हरी का ब्याज कहते हैं।

जाजम खर्च - ठिकानेदार अपने बैठने के लिए जो जाजम (फर्श) बनवाते थे उसके लिए प्रतिवर्ष किसानों से एक रकम लेनी मुकर्रर थी। इसी लाग को जाजम खर्च बोलते हैं।

इनके अलावा और भी छोटी मोटी कई तरह के लागे जैसे कामदार की लाग, लिखिया की लाग, दस्तूर (जन्मोत्सव)


[पृ.332]: की लाग, रवानगी की लाग, भट्टी की लाग, पंजावे की लाग, टोड़े की लाग, एक नई लाग मोटर खर्च की लाग और भी लगी थी। थोड़े दिन बाद हवाई जहाज की लाग भी आरंभ हो जाती, यदि किसान जागते नहीं तो।

लागों के सिवा भेट और थी जो दशहरे, होली आदि त्योहारों पर वसूल की जाती थी। इसके अलावा जब भी किसान ठाकुर साहब के पास जाता अथवा ठाकुर साहब देहात में पधारते किसानों को भेंट देनी पड़ती थी।

लागों का इतिहास: कुछ लोग भ्रम में पड़ सकते हैं कि शायद यह लाभ लेने का काम सनातन हो किंतु बात ऐसी नहीं है। किसान ज्यों-ज्यों इन नवागंतुक ठिकानेदारों से दबते गए त्यों-त्यों ये लागें उन पर बढ़ती गई। आरंभिक घटनाओं को हम विवादास्पद समझकर छोड़ देते हैं और नवीन घटनाओं के उल्लेख से ही पाठकों को यह बता देना चाहते हैं कि यह लागें जो ठिकानेदार किसानों से वसूल करते थे नई थी आरंभ में बिल्कुल नहीं थी। इसका सबसे बड़ा सबूत तो यह है कि सभी ठिकानों में यह समान रुप से नहीं ली जाती थी। किसी ठिकाने में इनमें से 1-2 नहीं ली जाती थी तो किसी किसी ने इनसे 2-4 ज्यादा भी ली जाती थी। यह आरंभ कैसे हुई? इस प्रश्न के समाधान के लिए हम कुछ लोगों का इतिहास यहां देना जरूरी समझते हैं। जब ठिकानेदारों में फिजूलखर्ची बढ़ी तो वह लगान की रकम में से किसानों से पेशगी लेने लग गए। क्योंकि यह पेशगी फसल की हरियाली को देखकर किसान देते थे इसलिए हरी के नाम से इस पेसगी का संबोधन होने


[पृ.333]: लगा। लगान उगाही के समय यह रकम असल में वाजिब दे दी जाती थी। किसान इस रकम को देखकर लगान में हल्का होना अनुभव करते थे और ठिकानेदारों को बीच में रुपया मिल जाता था। नाज के भाव महंगे थे ही इसलिए यह हरी का रिवाज सरलता से चल गया। किंतु आगे चलकर ठिकानेदारों ने यह बेईमानी की की लगान की उगाही के समय रकम को वाजिब देना बंद कर दिया और हरी की रकम मुफ्त में हजम करने लगे। कुछ लोग ऐसे भी निकले जिन्होंने देने से इंकार किया किंतु वह उपाय से अनभिज्ञ होने के कारण अपनी जिद पर जम नहीं सके। पराजित को सब कुछ बर्दाश्त करना पड़ता है इस लोकोक्ति के अनुसार उनसे ठिकानेदारों ने मय ब्याज के वसूल किया। बस फिर क्या था? हरी के साथ ही हरी के ब्याज का भी जन्म हो गया।

नौते की लाग में तो ठिकानेदारों ने जो असभ्यता दिखाई है वह शर्मनाक है। आज से 20-22 साल पहले तक यह रिवाज था - जब किसानों के यहां ब्याह आदि होते थे तो ठिकाने की ओर से किसानों को नौते में कोई रकम दी जाती थी और जब ठिकानेदार के यहां व्याह आदि होते थे तो किसान न्योता देते थे। न्यौते के समय भोजन में शामिल होते थे - यह एक सामाजिक चलन था जिसे ठेकेदारों ने बदल देने में पूर्ण अशिष्टता की। वह किसानों से तो न्योता ले ले लेते थे किंतु किसानों की लड़कियों के विवाह में देना बंद कर दिया और उन्हें अपने यहाँ के ब्याह शादियों में होने वाले भोज में बुलाना बंद कर दिया। हाँ किसानों के यहां खुद या उनके नौकर मुफ्त में भोजन भी खाते रहे। कुछ किसानों के पास तो इस बात के लिखित प्रमाण हैं कि उनके व्यास शादियों में ठिकानेदार नौता देते थे।


[पृ.334]: ठिकाने की ओर से प्रत्येक गांव में एक जाजम (फर्श) सर्व साधारण के प्रयोग के लिए खरीद लिया जाता था। पीछे से अपनी असमर्थता प्रकट करके उस जाजम का खर्च लगान उगाही के समय किसानों से ही वसूल करने का रिवाज डाल दिया। अब उस रकम से गांव वालों के लिए तो कोई फ़र्श खरीदा नहीं जाता था किंतु लाग वसूल कर ली जाती रही और कहा जाता रहा ठाकुर साहब तो जाजम पर ही बैठते हैं। कैसा न्याय है, जाजम पर बैठे ठाकुर साहब और उनके चाकर, उसकी कीमत दें किसान सो भी प्रतिवर्ष।

बेचारे किसानों का नियम होता है कि जब उनके यहां कोई नई फसली चीज आती है तो अपने रिश्तेदारों, पुरोहितों और मित्रों के यहाँ सौगात के रुप में पहुंचाते हैं। ठीकानेदारों के यहां भी प्रेम और सामाजिक रस्म को पूरा करने के लिए ग्वार, मोठ, मूंग की फली अथवा बाजरे के सिट्टे पहुंचा देते थे किंतु ठिकानेदारों ने उस बंधु व्यवहार को भी लाग का रूप दे दिया। फिर यदि किसान यह चीजें पहुंचाने में भूलकर जाए तो उसे पिटवा कर वसूल करते रहे।

अब से 20-22 वर्ष पहले ठिकानेदार गांव में जब-तब जाते थे इससे किसान लोग उनके घोड़े या सवारी को कीमत पर चारा देने में अशिष्टता समझते थे किंतु कुछ वर्षों के बाद ठिकानेदारों की निगाह में किसान का यह काम उसकी शैतानियत समझा जाने लगा अगर वह उसके ही क्या उसके चक्रों के ऊंट घोड़ों को भी मुफ्त में चारा न दे।

किसानों के अलावा दीगर जातियाँ जो खेती नहीं करती थी और किराए भाड़े पर चलाने के लिए ऊंट रखती थी उनसे ठिकानेदार खूंटा-बंदी नाम की लाग लेने लगे थे। किंतु धीरे धीरे


[पृ.335]: उन्होने यह लाग किसानों पर भी लगा दी, ऐसी ही बात पान-चराई की भी है। जब किसानों के पशु ठिकानेदारों के चारागाह में चरने ही नहीं जाते अपने खेतों में चरते पीते हैं तब उनसे यह किस बात की लाग?

30-35 वर्ष में ही किसान की प्रत्येक चीज पर लाग हो गई। हल, बैल, ऊंट, भेड़, बकरी, मकान, दूध और दही कोई भी चीज बाकी नहीं रही। हां यदि बाकी थे तो उनके स्त्री बच्चे बाकी थे।

सारी लागें नई थी इनमें से कोई भी ऐसी नहीं थी जो 20 वर्ष भी पुरानी हो।

शायद कुछ लोग कहें कि किसानों ने इन लागों के भार को धारण कैसे कर लिया। उन्हें इतना बता देने से ही संतोष हो जाना चाहिए कि उनमें से 30 प्रति सैकड़ा मनुष्य तो आज तक विश्वास नहीं करते कि ठिकानेदारों के खिलाफ हमारी सुनवाई भी हो सकती है। सीधे किसान इन अधिकारहीन ठिकानेदारों को अब तक धनी, महाराज और दरबार के नाम से पुकारते थे। अपने आपसी झगड़े का निपटारा कराने के लिए तो पिछले आठ-दश वर्ष से जयपुरी अदालतों में जाने लगे थे। वरना ठिकानेदार को ही वह अपना जज समझते थे और ठिकानेदार इंसाफ करने में भी उन्हें खूब लूटते थे। काठ प्रत्येक ठिकाने में थे ही। यह ज्ञान तो उन्हें 4-5 वर्ष पहले ही हुआ है कि हम ठिकानेदारों की शिकायत जयपुर अदालत में कर सकते हैं और ठिकानेदार को दंड भी मिल सकता है। बुढ़नपुर के चौधरी श्यौचंद्र ने ठिकानेदार से मुकदमा लड़ने की हिम्मत नहीं की होती तो दो एक वर्ष किसान और भी अंधकार में रहते।

आंदोलन की ओर

[पृ.336]: हम यह भी बता देना चाहते हैं कि शेखावाटी का किसान आंदोलन नया नहीं था इससे 78 वर्ष पहले जयपुर महाराज की नाबालिगी के समय भी आरंभ हुआ था।

किसानों को आंदोलन की ओर कदम बढ़ाना पड़ा। आंदोलन भी शेखावाटी के किसानों का कैसा था ? न उसमें कोई हुल्लड़ था और न अशांति पैदा करने की इच्छा थी।

जो जाट अथवा गुर्जर अहीर और मैना जयपुर में कछवाहों से पहले के वाशिंदे थे और जिनका जमीनों पर पैतृक अधिकार था वह इस भांति अधोगति को किस प्रकार प्राप्त हुए कि जमीन पर उनका इतना भी हक नहीं रहा कि वह उस में स्वतंत्रता के साथ ईंट पकावे तो लाग देना पड़े।

बात यह है कि राज एक संगठित और शक्ति साधन संपन्न संस्था होती है और प्रजा आव्यवस्थित संस्था। फौज, पुलिस और जेलखाना सरकार के पास ऐसे कठोर साधन हैं कि इनसे वह सब कुछ कर सकती है और करती रही है। हां, अति हो जाने पर प्रजा ने क्रांति की ओर कदम बढ़ाया और प्रजा उस में सफल भी हुई और इतिहास इस बात की साक्षी देता है।

कछवाहा सरकार और उसके तिनभो ने जयपुर के इस विशाल भू-भाग पर अपनी प्रभुसत्ता मुगल-शाही की छाया में पहले तो पूर्ण आधिपत्य किया। मुगलों के बाद अंग्रेज आए और उनकी ओर से जब अभय वरदान मिल गया तो सन् 1912 में जयपुर भी स्टेट कौंसिल ने कानूनी जामे में सर्वप्रथम किसानों के हक बपौती पर कुठाराघात किया। उसने कहा राज्य के गांवों में जमींदारी हक राज का है किसान सिर्फ हक कास्त हासिल है और वह रहन और वय सिर्फ हक


[पृ.337]: कास्त की कर सकेंगे। लेकिन जयपुर सरकार को इतने से भी संतोष नहीं हुआ। मई सन् 1913 में दूसरा ऐलान किया कि

“किसान हक काश्त के वायनामे व रहननामे की रजिस्ट्री बिना महकमा खास की मंजूरी के नहीं हो सकेगी”

इसका साफ अर्थ यह था कि जो अधिकार सन् 1912 में किसानों के लिए बाकी रहने दिया था उसमें इन की स्वतंत्रता छीन ली गई।

अनपढ़ किसान इन भयंकर परिवर्तनों से, जो इसके जीवन को दूभर बनाने वाले थे, बेखबर रहा। उसने कोई संगठित और व्यवस्थित विरोध नहीं किया तो 18 साल बाद जयपुर सरकार और आगे बढ़ा और सन 1931 में उसने “कवायद मुतल्लिक कास्तकारान देहात चकबंदी” की रचना की और इसकी दफा-24 में काश्तकारों से हक कास्त के वयनामे और रहननामे के हक पूर्णतया छीन लिए। यही नहीं इसी कानून की धारा-4 के जरिए हक कास्त का मौरूसी हक भी छीन लिया। तहसीलदारों को अधिकार दिया गया कि वह चाहे तो किसी काश्तकार के मरने पर कुछ समय के बाद उसके लड़के को भी कास्त न करने दे और जो सबसे ज्यादा लगान देने को तैयार हो उसके नाम जमीन का नीलाम कर दे।

जमीन के हक जमीदारी और हक काश्तकारी पर से जयपुर सरकार ने इस प्रकार किसान को अधिकारहीन करके ठिकानेदारों को इस बात का अवसर दे दिया कि वे सरकार से आगे हाथ मारें। किसानों से जमीन का अपहरण करने, मनमाना लगान वसूल करने, करके जिस प्रकार ठिकानेदारों ने किसानों को बर्बाद और अपमानित किया उस की कथा लंबी है। हम यहां उनके लगान उगाई के तरीकों पर ठाकुर देशराज जी के इस लेख के आधार पर प्रकाश डालते हैं जो उन्होंने आंदोलन


[पृ.338]: के दिनों में 9 मई 1934 को अर्जुन में प्रकाशित कराया था।

शेखावाटी में लगान उगाही के घृणित तरीके

नियत तारीख पर जब कोई किसान लगान अदा नहीं कर सकता था तो उसके यहां एक सवार और फिर दो अथवा इससे भी अधिक भेज दिए जाते थे, जब तक कि लगान अदा हो नहीं जाता। घोड़े और उसके सवार को खुराक देना किसान के जिममे में रहता था। सवार और घोड़े की खुराक इस प्रकार होती थी - 5 सेर दाना और भर पेट घास घोड़े को, डेढ सेर आटा, आध पाव घी, पाव भर मीठा सवार को। दो पैसे अमल (नशा-पानी) के लिए भी सवार को देने होते थे।

यदि गरीब किसान इस खुराक देने में भी असमर्थ होता तो सवार उसके घर के बर्तन भांडे और कपड़े-लत्ते उठा ले जाते थे। और वह उन्हें ले जाकर किसी महाजन के यहां जमा करा देता था। किसान जब तक का उसको (सवार को) खुराक खर्च न चुका दे, उसे उसके बर्तन-भांडे वापस नहीं मिलते थे। लगान उगाही का यह तरीका सारे शेखावाटी में था। सीकर जैसे बड़े ठिकाने में भी, जो कि अपने को ठिकाने की बजाय राज्य (स्टेट) मानता था, यह तरीका काम में लाया जाता था। कुछ बहुत ही छोटी हैसियत के ठिकानेदार, जोकि स्थाई रूप से सवार नहीं रखते थे, ऐसे शैतान और गुंडे लोगों को भेज देते थे, जिनके कि कुकृत्यों से गांव के लोग पहले से ही भयभीत होते थे।

यदि इस तरह भी किसान से कुछ न वसूल होता तो सवार किसान को पकड़ कर ठिकाने में ले जाता था। वहां उसे खूब कष्ट दिया जाता। नंगा करने, पीटने, कोठियों में बंद


[पृ.339]: कर देने, काठ में डाल देने और भूखा रखने के सिवाय कष्ट देने के और भी कई राक्षसी तरीके थे। जैसे चारपाई के पाए के नीचे हाथ दबाकर ऊपर से आदमियों को बैठा देना, मुर्गा बनाकर पीठ पर बेंत और ठोकर लगाना, खाट पर चौड़े पैर करके खड़ा करना, हाथ फैलवाकर पत्थर रख देना और फिर मुंह पर तमाचा लगाना।

किसानों की गिरफ्तारी के लिए है यह ठिकानेदार जयपुर राज्य से न तो आज्ञा प्राप्त करते थे और न अदालत तथा पुलिस की मदद लेते थे। हालांकि जयपुर राज्य ने शेखावाटी में दो निजामत और कई पुलिस स्टेशन (थाना) खोल रखे थे। बिना ही किसी समन और वारंट के अपने नौकर चाकरों को भेजकर बेचारे किसान को पकड़वा बुलाते थे। यही क्यों किसान के माल की कुर्की भी बिना ही कुर्क अमीन की सहायता अथवा राजाज्ञा के कर लेते थे। यह कुर्की वास्तव में एक तरह की लूट थी। साथ में अनेक गुणडे होते थे। जिस समय यह लोग किसान की लूट करते थे उस समय उस गांव और घर में खासा कोहराम मच जाता था। लूट के बाद अपने ही आप उन चीजों का नीलाम बोल देते थे। इससे वह कुर्की के नाम से पुकारते थे। बढ़िया-बढ़िया चीजों को, जिन्हें कि वह पसंद करते थे, नीलाम पर भी नहीं चढ़ाते थे।

किसान चुपचाप इन अत्याचारों को सहन करते रहते थे। यदि कहीं दुर्भाग्य से दस-पाँच मिलकर छोटे-मोटे ठाकुर की आज्ञा का उल्लंघन करते थे अथवा उसकी मनमानी में बाधा डाल दे तो इनमें से कुछ तो किसानों के साथ इतनी नीचता करते थे कि मीनों को उनके यहां चोरी करने को उकसाने के सिवा उनके खलियान और गुवाड़ियों को जलाने तक


[पृ.340]: की सलाह दे देते थे। कोई कोई ठिकानेदार तो पड़ी हुई जमीन का लगान भी उस किसान से वसूल कर लेते थे जिसे कि उन्होंने खुद ही इस आशा से नहीं बोने जोतने दिया था कि शायद किसी दूसरे किसान से अधिक दाम मिल जाए। ठिकानेदारों में कोई-कोई माई का लाल तो इतनी हिम्मत कर बैठता था कि दोबारा भी लगान वसूल कर लेता था। ऐसे घृणित कृत्यों को यह अपनी बहादुरी समझते थे।

कुछ टुच्चे और थर्ड क्लास के ठिकानेदार तो अनेक किसानों को लड़कियां बेच देने तक की सलाह लगान चुकाने के लिए देने में भी नहीं सकुचाते थे।

लगान वसूली के लिए पुरुष ही तंग किए जाते हों ऐसी बात नहीं थी किंतु स्त्रियों को भी बेइज्जत किया जाता था।

लगान उगाई के समय एक से एक विचित्र और घृणित तरीके, जो कि एक दम से वहशीपन और गैर कानूनी ढंग के होते थे, अमल में लाते थे।

सन् 1934 के जनवरी महीने में सारे शेखावाटी प्रांत में ठिकानेदारों ने अराजकता फैलादी क्योंकि वे सीकर के जाट महायज्ञ की सफलता को देखकर जिसमें 80,000 आदमी 10 दिन तक सीकर में इकट्ठे रहकर अपनी मुक्ति का उपाय सोचते रहे थे, चकित और भयभीत हो गए थे। अब वे बल प्रदर्शन और आतंक पर उतर आए थे।

सबसे पहले बलरिया के ठाकुर कल्याण सिंह ने हनुमानपुरा (दूलडों का बास) पर हमला किया। दो लड़कों के पास पर हमला किया। दिल्ली के दैनिक ‘नवयुग’ ‘अर्जुन’ और कोलकाता के ‘लोकमान्य’ में उस भयंकर कांड का समाचार इस प्रकार छपा था।

शेखावाटी के मौजा हनुमानपुरा में अक्षय तृतीया के दिन शाम के वक्त


[पृ.341]: जबकि हवा बड़े वेग से चल रही थी, अचानक गाय भैंस आग की लपटें निकालने लगी। दो औरतों का कहना है कि ठाकुर कल्याणसिंह इधार पांच सवारों के साथ ऊंट को दौड़ते हुए गए और अपनी धमकी को पूरा किया जो उन्होंने कुछ दिन पहले दी थी।

23 घर जलकर भस्म हो गए। 2 गाएं मरी। कई भेड़ और बकरियां भी जल गई। (नवयुग 29 मई सन 1934)

इस अग्निकांड के विस्तृत समाचार 25 मई 1934 को सरदार हरलाल सिंह जी ने ठाकुर देशराज जी को पत्र द्वारा सूचित किए जिनमें बताया –

1. आग सूरज छिपने के समय चौधरी गोविंदराम जी के नोहरे में लगाई।
2. इसे चौधरी गोविंदराम जी के 3000 के लेन-देन के कागजात जल गए।
3. वे रशीदात और दूसरे कागज भी जल गए जो ठिकाने से संबंधित थे।
4. नोहरे में दो गाय जिंदा जल गई।
5. यह आग नोहरे से हवेली में भी दाखिल हो गई और उसी से कागजात और दूसरा कीमती सामान जल गया।
6. मैं उस समय जयपुर में था और दूसरे लोग विवाह शादी में थे। आग बड़ी मुश्किल से स्त्री बच्चों ने बुझाई।
7. और भी 22-23 घर जल गए हैं
8. जयपुर और झुंझुनू में पुकार कर दी गई है। यह घटना 16 मई 1934 की ।

थाना मंडावा में रिपोर्ट की गई किंतु थानेदार जांच को नहीं गया। सुपरिटेंडेंट उस समय तोरावटी के दौरे पर था। इसलिए 21 मई 1934 को सुपरिंटेंडेंट पुलिस झुंझुनू के यहां चौधरी गोविंदराम जी ने निम्न रिपोर्ट पेश की।


[पृ.342]: महकमा सुपरिटेंडेंट पुलिस शेखावाटी

गोविंद राम जाट साकिन हनुमानपुरा मुद्दई बनाम ठाकुर कल्याण सिंह जी हीरवा रामनाथ सिंह मुकुंद सिंह

गरीब परवर सलामत जनाबआली गुजारिश है कि मौजा हनुमानपुरा में:

1. मुसम्मी ठाकुर साहब कल्याण सिंह ने आग लगा दी है जिसके मुतल्लिक थाना मंडावा में रिपोर्ट कर दी गई है मगर थानेदार जी मौके पर तशरीफ न लाए थे। इसलिए जमीदारान हनुमानपुरा हुजूरवाला की खिदमत में आए हैं मगर उनकी बदकिस्मती से हुजूर भी तोरावाटी तशरीफ ले गए थे।
2. यह कि मजबूरा जमीदार हनुमानपुरा जयपुर में जाकर अर्जी और आई. जी. पुलिस के दफ्तर से सुपरिंटेंडेंट शेखावाटी पर तफ्तीश का हुक्म सादिर हो।
3. इस दौरान में थानेदार जी मंडावा मौके पर तशरीफ ले गए मगर उन्होंने पूरी जांच नहीं की और न बयानात कलमबंद किए।
4. यह है कि देर लगाने से मामले का सबूत जाया होने का अंदेशा है। जमीदारन के कई बच्चे जख्मी हो गए, कई हजार रुपए का माल का नुकसान हुआ है और दो गाय जलकर मर गई और दस्तावेज भी सबूत जलकर खाक हो गया। मुल्जिमान फिलहाल आजाद फिर रहे हैं।
5. इश्तदुआ है कि हुजूरवाला खुद मौके पर तशरीफ ले जा कर मौका मुआयना करें या किसी थानेदार या जमीदार अफसर को भेजा जावे।

गोविंदराम तारीख 21 मई 1934

इसके बाद 2 जून 1934 को झुंझुनू के पुलिस सुपरिंटेंडेंट


[पृ.343]: हनुमानपुरा पहुंचकर इस घटना की जांच की मौके की, गवाहियां ली, जलकर मरी हुई गायों को भी देखा। पुलिस सुपरिन्टेंडेंट ने भी दुख महसूस किया क्योंकि उन्होंने उन बच्चों को देखा जो घरों में नाज और वस्तुओं के जल जाने से भूख से पीड़ित और वस्तुओं से नंगे थे। (नवयुग 10 जून 1934)

हनुमानपुरा का फैसला हो नहीं पाया था कि इससे भी अधिक रोमांचकारी कांड जयसिंहपुरा में इसके कुछ दिन बाद हो गया। उसकी जांच ठाकुर देशराज जी ने खुद जाकर की और प्रेस को निम्न वक्तव्य दिया जो उस घटना पर प्रकाश डालता है।

शेखावाटी का भीषण गोलीकांड

जयपुर 25 जून 1934: आज जयपुर के सरकारी अस्पताल में जयसिंहपुरा के उन घायल जाट किसानों से ठाकुर देशराज, मंत्री राजस्थान जाट क्षत्रिय सभा ने मुलाकात की, जो 21 जून को डूंडलोद के ठिकानेदार के द्वारा कराए हुए गोलीकांड में जख्मी हुए हैं। घायलों की अवस्था करण-उत्पादक है किंतु बच जाने की आशा है। उनमें से चौधरी मुनारामजी के 127 छर्रों के जख्म है। दोनों जांघें छलनी हो गई हैं। उसी के भाई दुलाराम के 21व छर्रे कनपटी और गर्दन में लगे हैं। पीठ पर दो लाठियों के निशान भी हैं। दयाल चौधरी पर भाले से आक्रमण किया गया था। उसके सिर में एक-एक इंच के दो जख्म हुए हैं। किसना के शरीर के विभिन्न स्थानों पर बरछ के निशान हैं।

टीकूराम लाठियों से उसी समय मर गया। उसकी


[पृ.344]: लाश नाजिम ने जयपुर अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी थी।

टीकूराम के दोनों बच्चे भी जख्मी हुए हैं। छोटा लाठी से जख्मी हुआ है और बड़े पर गोली दागी गई है। जीवनी नाम की स्त्री पर दो गोली चलाई, जो कि उसकी जांघ को छीलती हुई निकल गई। मोहरी और पन्नी नाम की स्त्रियों के पीठ और पसलियों पर लाठियां मारी गई हैं। यह स्त्री और बच्चे झुंझुनू अस्पताल में गए हुए हैं।

गोलियों की बौछार इस बुरी तरह हुई कि उसमें एक बैल और एक ऊंट भी सख्त घायल हुए हैं। 11 वृक्षों में से नाजिम साहब के आगे गोलियां निकाली गई है।

यह दुर्घटना 21 जून 1934 को दोपहर के समय में हल चलाते हुए निरीह किसानों पर हुई है। घायलों ने बताया कि डूंडलोद के ठाकुर के भाई ईश्वर सिंह ने सैकड़ों आदमियों के साथ, जिन में कई घुड़सवार और कई ऊंट सवार थे, खेतों में काम करते हुए हमको जहां जो मिला गोली बरछे और लाठियों से मारने का हुक्म दे दिया। जंगल में जो स्त्री बच्चे थे उन पर उन के रोने चिल्लाने पर भी कोई दया नहीं की गई।

गोली कांड का कारण किसानों की ओर से यह बताया जाता है कि हमने एक नई लाग को देने से इंकार कर दिया था और वह नई लाग कुआं के पास ही ईंटों के लिए गड्ढे किए हैं उनकी (गड्ढों की मिट्टी) की क्षतिपूर्ति के नाम पर लगाई जा रही थी।

इस गोली कांड से शेखावाटी के तीन लाख जाट किसान तिलमिला उठे हैं। दैनिक अर्जुन 30 जून 1934


[पृ.345]: जयसिंहपुरा गोलीकांड से तमाम शेखावाटी में तिलमिलाहट फैली और लोगों में आवेश की लहर फैल गई, जैसा कि उस समय के लिखे गए निम्न दो पत्रों से प्रकट होता है:

सांगासी

24 जून 1934

प्रिय ठाकुर साहब,

सादर नमस्कार!

अत्याचारों का होना अभी बंद होने के बजाए उन्नति कर रहा है। जयसिंहपुरा गांव में जहां प्रथम तो ईंट रोकी थी वहीं पर अब नाजिम की इजाजत देने से लोग निश्चित होकर अलग-अलग खेतों में हल चला रहे थे और ईश्वरसिंह ठाकुर डूंडलोद ने करीब 50 सवारों और 50-60 पैदलों सहित आकर एक खेत के किसानों पर गोलियां चला दी। ज्यों-ज्यों लोग दौड़ते हुये आए सबको गोलियों, तलवारों बरछों और लाठियों से मार गिराया। चौधरी टीकू राम का अत्यंत चोट लगने से देहांत हो गया है। और बाकी दो आदमी इसी अवस्था में है। कुल 14 स्त्री पुरुष घायल हो गए और एक बैल के गोली लगी है। तहकीकात हो रही है परंतु यहाँ का थानेदार, डिप्टी सुपरिटेंडेंट और सुपरिटेंडेंट जाटों के ही खिलाफ हैं। नाजिम भी मौका देखने आया था और वे सब लोग कहते हैं तुमने अभी माल नहीं दिया है। उनका खेती करना भी अभी रूका हुआ है। यंग साहब पोलिटिकल एजेंट, चीफ़ कोर्ट और वाइस प्रेसिडेंट जयपुर को तार दे दिए हैं। यंग साहब को स्वयं मौका देखने के लिए बुलाया है। समाचार पत्रों को खबर भेज रहा हूं। अब और अधिक से अधिक शक्ति जुटाने की जरूरत है क्योंकि यह बड़ा भारी हत्याकांड हो चुका है।


[पृ.346]: जैसा पहले कभी नहीं हुआ। सीकर संबंधी लेख मिल चुके होंगे। पंडित प्यारेलाल वहां हो तो यही कीजिएगा। आप जैसा उचित समझें अब करें।

आपका
विद्याधर कुलहरी
---

हनुमानपुरा

26 मई 1948 (?)

माननीय ठाकुर साहब, तारीख 21 जून को मौजा जयसिंहपुरा के जाट जमीदारों ने जमीन कास्त करने के लिए हल जोते तो ठिकाना डूंडलोद ने खुद ठाकुर ईश्वरी सिंह 100 आदमी हथियारबंद घुड़सवार लेकर मौजा जयसिंहपुरा में पहुंचा। दिनके 12 बजे पहले गांव की सरहद पर घोड़ों को घुमाया और फिर बिगुल बजाया। फिर चौधरी टीकूराम के खेत में पहुंचे। उसका लड़का नारायण सिंह अपने खेत में हल चला रहा था और चौधरी टीकूराम की धर्मपत्नी और उसकी लड़की खेत में सूड़ काट रही थी और चौधरी टीकूराम जो झाड़-बोझे कटे हुए थे उनको अलग फेंक रहा था। उस समय ठाकुर ईश्वर सिंह और उसके साथी एकदम उस परिवार पर टूट पड़े। बंदूकों के फायर शुरू कर दिए गए और लाठियां मारी गई। चौधरी साहब का सिर यानी भेजी फूट गई और कई गोलियां चौधरी साहब के बदन पर लगी हैं।

चौधरी की स्त्री के भी लठियों की मार पड़ने लगी। उस समय दूसरे लोग जो कि पास ही हल चला रहे थे, दौड़ कर आने लगे। तब उस दुष्ट ईश्वरसिंह ने हुक्म दिया कि सब को गोली मार दो। उस समय ईश्वर सिंह खुद अपनी


[पृ.347]: बंदूक से फायर करने लगा और एक शबलसिंह राजपूत, जोकि ठिकाने का कामदार है, तीसरा जमनसिंह राजपूत मुलाजिम ठिकाने का, चौथा सादुलखां कायमखानी। यह चार मनुष्य बंदूकों के फायर करने लगे और दूसरे लोग लाठियां और भाले चलाने लगे। 8-9 औरतों और लड़कियों के भाले की चोट आई है और 12 या 13 पुरुषों के गोलियां और भालों की चोट आई है। एक हल में चलने वाले बैल के गोली लगी है, जो कि बैल के अंदर ही है बाहर नहीं निकली। इनमें से सख्त चौट तो चौधरी टीकूराम को लगी है जो किसी भी हालत से नहीं बच सकते हैं और चौधरी मून सिंह के बहुत ज्यादा छोटे के कारतूस लगे जिनसे सारा शरीर फूट गया है। दयाल सिंह के 14 भालों की चोट आई है जिससे सारा शरीर घवेल दिया गया है। चौधरी ढुलसिंह के गर्दन के नीचे नसों में गोली लगी। इन 4 की हालत खतरनाक है और शिष लोगों के तो पैर में गोली लगी है, किसी के माथे में, किसी के सीने में और कहिए इतिहास में कई घटना घाटी हैं। यह सारा वाका इसलिए था कि इन लोगों ने करीब डेढ़ महीने पहले अपना मकान बनाने के लिए ईंट करना चाहते थे। ठिकाने ने ईंट बनाने को मना कर दिया इसलिए कि फी मकान ₹5 के टैक्स दें। वे लोग नया टैक्स देने से इंकार हो गए। इसलिए ठिकाने ने जबरन ईंट करने से रोक दिया तो जाटों ने मजिस्ट्रेट के यहां इस्तगासा कर दिया। उस बात पर ठिकाने वाले चिढ़ गए और जमीन कास्त करने से रोकना चाहा तब उन्होंने मजिस्ट्रेट के यहां जाकर दरख्वास्त दी। मजिस्ट्रेट साहब ने हुक्म दिया कि ठिकाने जमीन कास्त करने से नहीं रोक सकते हैं और सुपरिटेंडेंट पर यह हुक्म दिया कि मौके पर जाकर कास्त करवा दो और ठिकाने


[पृ.348]: वालों को हटा दो और जाटों को यह हुक्म दिया कि तुम अपने हल जोतो। उन्होंने हुकुम के अनुकूल हल जोत दिये। सुपरिंटेंडेंट साहब तो दौरे पर थे इस कारण मौके पर नहीं पहुंच सके। इसी समय ठाकुर ईसरी सिंह ने आकर गोलियों की वर्षा कर दी। अब आप जो मुनासिब समझे करें। इधर बड़ी बेचैनी है। .... आपका हरलाल सिंह

जयसिंहपुरा गोलीकांड दिवस मनाया गया

शेखावाटी 16 जुलाई 1934 : [पृ.348]: ठाकुर देशराज जी मंत्री राजस्थान जाट सभा ने राजस्थान की समस्त जाट संस्थाओं के नाम सूचना निकाली कि 21 जुलाई 1934 को समस्त राजपूताने में “जयसिंहपुरा गोलीकांड दिवस” मनाया जाए। केसरी शहीदे कौम चौधरी टीकूराम जी को श्रद्धांजलि और उनके पीड़ित परिवार के प्रति संवेदना तथा डूंडलोद के हत्यारे के प्रति निंदा और घृणा के भाव प्रकट किए जाएं। साथ ही जयपुर दरबार को शीघ्र ही उचित कारवाई करने की ओर ध्यान दिलाया जाए। इस दिन जो लोग व्रत रख सकें वे व्रत रखें और थोड़ी बहुत रकम प्रत्येक गांव से जयसिंहपुरा के पीड़ित किसानों की सहायतार्थ संग्रह की जाए। (नवयुग 18 जुलाई 1934)

मंत्री राजस्थान जाटसभा की अपील पर राजस्थान के विभिन्न स्थानों में 21, 22, 23 जुलाई 1934 को जयसिंहपुरा गोलीकांड स्मृति दिवस मनाए गए।

ब्यावर में मेरवाड़ा-जाट-पंचायत की ओर से चौधरी प्रतापमलजी के सभापतित्व में जयसिंहपुरा गोलीकांड दिवस


[पृ.349]: मनाया गया। डूंडलोद के अत्याचारी ठाकुर ईश्वरी सिंह के प्रति घृणा प्रकट करते हुए जयपुर नरेश से हत्यारे को गिरफ्तार करके उचित दंड देने की प्रार्थना की गई।

नियत तारीख को मकरेड़ा में कई गांवों के जाटों ने पटेल रामप्रताप जी के सभापतित्व में सभा करके जयसिंहपुरा गोलीकांड पर विरोध प्रकट किया। नौजवानों में अत्यंत रोष था। एक नौजवान ने यहां तक कह डाला - ऐसी घटनाएं हमारे अंदर प्रतिहिंसा के भाव पैदा करने वाली हैं। जयपुर सरकार का मौन ठेकेदारों के दिमाग को उत्तेजना दे रहा है।

खंडेला ठिकाने के कई गांवों के जाटों की बधाला की ढाणी में सभा हुई, जिसमें जयसिंहपुरा गोलीकांड के शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि और उनके परिवार वालों के साथ हमदर्दी प्रकट करते हुए कहा गया कि चौधरी टीकूराम का बलिदान हमारे भट्टी धधका रहा है। खेद है कि आज तक, एक महीने के अरसे में ईश्वरी सिंह की गिरफ्तारी नहीं हुई है।

इटावा ठिकाने के किसानों ने कुंवरपुरा में चौधरी बालूराम जी की अध्यक्षता में जयसिंहपुरा गोलीकांड पर रोष प्रकट किया और अपने भाइयों के लिए सर्वस्व निछावर कर देने की भावनाएं प्रकट करते हुए जयपुर महाराज से शीघ्र ही हत्यारों को उचित दंड देने की प्रार्थना की।

भारनी मैं चौधरी नवलसिंह जी के सभापतित्व में जयसिंहपुरा गोलीकाण्ड दिवस मनाया गया। वक्ताओं ने कहा कि यह फल हमारे अधिक सीधे होने का मिल रहा है। पर ठिकानेदारों की एक भूल उनके सर्वनाश का कारण बन जाएगी। शेखावाटी के तीन लाख जाटों को, जो कि ठिकानेदारों के कमाऊ पूत थे अपनी मूर्खता से उखाड़ रहे हैं। गोलीकांड में


[पृ.350]: शहीद हुए वीर चौधरी टीकूराम की हत्या का जिस में वर्णन किया गया, लोग रो उठे, अनेकों जाट स्त्री-पुरुषों और बालकों ने उपवास रखकर शहीदों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि प्रकट की। ईश्वरी सिंह को गिरफ्तार तथा न्याय के लिए जयपुर महाराज से प्रार्थना करने का भी प्रस्ताव पास हुआ।

रींगस के निकटवर्ती गांव के जाटों ने कोठडी में चौधरी सेडूराम की प्रधानता में गोलीकांड दिवस मनाया गया और इस गोली काण्ड से शिक्षा लेने तथा महाराज जयपुर के पास सम्मिलित आवाज उठाने के प्रस्ताव पास हुए।

बीकानेर, किशनगढ़, कोटा, धौलपुर, जोधपुर और भरतपुर के समस्त राजस्थानी जाटों में इस बात से क्षोभ था कि अभी तक प्रमुख हत्यारे ईश्वरी सिंह को गिरफ्तार नहीं किया गया। (वीर अर्जुन 2 अगस्त 1934)

राजस्थान की जाट आबादी का ऐसा कोई हिस्सा बाकी नहीं रहा, जहां जयसिंहपुरा गोलीकांड पर तारीख 21 जुलाई 1934 को असंतोष प्रकट नहीं किया गया हो। अकेले जयपुर राज्य में ही लगभग 125 स्थानों पर सभाएं करके एक स्वर से संगठित होने और दरबार जयपुर के हस्तक्षेप करने के प्रस्ताव के साथ ही इस कांड द्वारा शिकार हुए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। यह क्रोध प्रकाश चालीस-पचास आदमियों की मीटिंग द्वारा नहीं हुआ था, किंतु सैंकड़ों और हजारों की संख्या में कई कई गांवों के स्त्री-पुरुष ने इकट्ठे होकर अपने भाव प्रकट किए थे। कूदन गांव की शोकसभा में जोकि चौधरी कालूराम जी के सभापतित्व में हुई थी, 2000 के जन समूह में, 700 स्त्रियां शामिल थी। यही क्यों पातूसरी गाँव


[पृ.351]: की स्त्रियों ने क्रोध प्रकाश करने के लिए और यह बताने के लिए कि जाट स्त्रियां इस गोलीकांड से दुखित हो उठी हैं अपनी अलग सभा की जो कि एक नौजवान जाट युवती बनारसी बाई के सभापतित्व में संपन्न हुई थी।

गोरीर के जाटों ने उस खतरे की हालत में भी जयसिंहपुरा दिवस मनाया जब कि बिसाऊ ठिकानेदार के ससस्त्र आदमी उनके गांव को घेरे हुए पड़े थे। सारे स्थानों और सभाओं में एक बात जिस पर विशेष जोर दिया गया वह यह थी कि इस गोली कांड के नायक ईश्वरी सिंह की गिरफ्तारी करके सजा दी जावे।

जयसिंहपुरा गोलीकांड की तफ्तीश उस समय के आईजी पुलिस मि. एफ़एस यंग ने रचपच कर की और मामले को अदालत में शुरू किया। फिर भी राजस्थान जाटसभा के तत्वावधान में मुकदमे की पैरवी आरंभ हुई। जयपुर के प्रसिद्ध वकील मौलवी अब्दुल समद को वकील बनाया गया। कुंवर नेतराम सिंह और सरदार हरलाल सिंह जी ने पैरवी में हद कर दी। उनको प्रलोभन भी दिए गए। ₹10000 जाट पंचायत को देने की बात भी अपराधियों की ओर से सामने आई किंतु किसी भी लोग को ठोकर मार कर अपराधियों को सजा दिलाना शेखावाटी के नेताओं का मुख्य ध्येय रहा। जिसका नतीजा यह हुआ कि 17 आदमियों की आरंभिक गिरफ्तारी हुई और मुकदमे की सुनवाई होना शुरू हो गया और लगातार चार महीनों की कोशिश के बाद सितंबर के आरंभिक सप्ताह में दो-दो आदमियों को 20-20 वर्ष, एक को 7 वर्ष ₹100 जुर्माना, 7 को 6-6 वर्ष ₹100-100 जुर्माना, ईश्वरी सिंह के मय उसके 9 साथियों के वारंट जारी हो गये। (नवयुग 19 सितंबर 1934)


[पृ.352]: यह पहला मौका था जब ठिकानों के अत्याचारियों को जयपुर अदालत ने सजा दी थी और एक ताजीमी सरदार के वारंट जारी कर दिए थे। इससे जयपुर के ठिकानों में बड़ी बेचैनी फैल गई। उन्होंने महाराजा जयपुर पर यह दबाव डालने की कोशिश की कि ईश्वरी सिंह के वारंट रद्द कर दिए जाएं। किंतु किसानों ने महाराज साहब के पास आवेदन पत्र भेजे। इस सबका नतीजा यह हुआ कि ईश्वरी सिंह को रश्मि तौर पर अदालत में पेश किया गया और उसी उसी समय रु. 10000 की जमानत पर छोड़ दिया गया। इसी भांति डेढ़ साल की सजा भी हुई, किंतु आखिर नतीजा वही हुआ जो गरीबों के लिए सबलों की ओर से होता है।

ईश्वरी सिंह की सजा होने छूटने तक शेखावाटी की अदालत बहुत गंभीर हो चुकी थी। उसमें चारों और दमन दावानल भड़क उठा था जिसका सामना किसान बड़ी हिम्मत और दिलेरी के साथ कर रहे थे।

9 अक्टूबर 1934 को समस्त शेखावत ठिकानों के किसान प्रतिनिधियों ने जयपुर के वाइस प्रेसिडेंट मिस्टर सर बीचम की सेवा में अपने कष्टों और मांगों का एक मेमोरियल पेश कर दिया और ठिकानेदारों के नाम भी एक खुली चिट्ठी जारी कर दी जिसमें कहा गया था कि यदि आप सीधे ही समझौता करना चाहें तो बिना जयपुर दरबार को बीच में डाले भी हमारा आपका समझौता हो सकता है। किसानों की मुख्य मांगे यह थी।

1. जमीन का बाकायदा बंदोबस्त हो और उपज के अनुपात से लगान मुकर्रर किया जाए
2. तमाम लागे गैरकानूनी घोषित करार दे दी जावे
3. मालगुजारी की रकम में से ठिकानेदार कुछ रकम किसानों की शिक्षा पर व्यय करें
[पृ.353]
4. बंदोबस्त के समय मौजूदा lagan में आधी कर दी जावे
5. अकाल और दुष्काल के समय लगान में छूट और था म देने का कायदा बनाया जाए।
6. दो फ़सली जमीन का लगान एक ही बार लिया जाए
7. जहां बटाई ली जाती है बंदोबस्त के समय तक चौथाई हिस्से से ज्यादा न लिया जाय
8. लगान देते रहने की हालत में बिना 3 वर्ष तक लगान रूके किसान को उसकी जमीन से बेदखल नहीं दिया जाए।
9. हर एक गांव में बिना टैक्स के गोचर भूमि छोड़ी जावे
10. जयपुर राज्य में खरीद-फरोख्त होने वाली वस्तु पर राज्य के अंदर कोई कस्टम ड्यूटी नहीं जावे

इस मेमोरियल के पेश होने के बाद से हर एक ठिकाने ने सख्तिया करना आरंभ कर दिया। कहीं मारपीट, कहीं लूटपाट, कहीं धमकी और इल्जाम लगाने आदि की कार्यवाहियां आरंभ हो गई और यह अराजकता बराबर 6 महीने तक रही। उस समय किसानों ने जो तकलीफ में बर्दाश्त की उनकी थोड़ी स्मृतियां इन समाचार से ताजा हो जाती है।

शेखावाटी में जाट किसानों पर जुल्म

झुंझुनू 17 नवंबर 1934: जिस दिन से किसानों ने अपना मेमोरियल जयपुर में पेश किया है ठिकानेदार मनमाने अत्याचार


[पृ.354]: कर रहे हैं। नित्यप्रति मारपीट की घटनाएं हो रही हैं। किसानों को कोई ठिकानेदार गढ़ में बुलाकर पिटवाता है, तो कोई गांव को घेर कर उन्हें तंग करता है। जिन घटनाओं की रिपोर्ट शेखावाटी किसान पंचायत के दफ्तर में आती हैं उनकी इत्तला तुरंत वाइस प्रेसिडेंट जयपुर को दे दी जाती है।

किसान खूब पिटते हैं। उनके 10-10 स्थानों के ठिकानेदार उनकी तरफ से एक ही आदमी जूते लगा देता है। किंतु वह हाथ तक ऊंचा नहीं करते। ठिकानेदारों को किसानों के चुपचाप पिट लेने से मजा आता है। यही कारण है कि रानोली के ठाकुर ने जो, राजाजी कहलाता है, एक जाटनी को, जोकि शोपुरा सुजास की थी, पिटवा कर अपने दिल की आग शांत की। खूड़ में तो एक राह चलते मुसाफिर को गढ़ में ले जाकर सिर्फ इतनी सी बात पर ठिकानेदार ने पिटवाया की उसने अपना ऊंट रोककर ठिकाने के उन आदमियों को शर्मिंदा किया था जो कि किसानों को धर्मशाला में बंद करके पीट रहे थे। जीणवास में सभा करने के बाद से ठिकानेदारों का जोश और भी बढ़ गया है। सभा से लौटते ही खूड़ के ठाकुर साहब ने केवल इस समाचार पर गोली चलाने का हुक्म दे दिया की 30 आदमी रूपा की ढाणी पर चढ़ आए थे। किंतु वहां पर कोई भी आदमी नहीं मिला। महनसर के मामले में जहां जैसाराम जाट की लाश कुए से निकाली गई थी पंचायत जांच कर रही है।

जयपुर में सभा करने के लिए राज्य की इजाजत लेनी पड़ती है किंतु ठाकुर लोगों ने जीनवास और रींगस में बिना इजाजत के सभा भी कर ली है। दरबार को जयपुर के ठाकुरों पर गैरकानूनी काम करने का मामला चलाना चाहिए। (लोकमान्य 24 नवंबर 1934)


[पृ.355]: ठिकाने नवलगढ़ के ठाकुर मदन सिंह की शख्तियों के संबंध में दर्जनों रिपोर्ट किसान पंचायत में पहुंच चुकी है। 2 किसानों ने अभी झुंझुनू पहुंचकर शिकायत की है कि है बदन पर ठंडा पानी डालकर वे पीटे गए हैं। किसान बयान देते वक्त मार की याद कर कांपने लगे। यद्यपि जयपुर की ओर से किसानों को काठ न रखने की हिदायत है किंतु करीब-करीब सभी ठिकानों में काठ है। उपरोक्त किसानों का कहना है कि वे दो दिन तक बिना खिलाए पिलाए रखे गए। ठिकाना बिसाऊ के जेजूसर दीवान जयपुर ने दौरा किया था, 1800 रुपए जुर्माना इसलिए किया था कि उन्होंने उनके सामने बयान क्यों दिए। जबकि एक किसान ने दीवान के दौरे के समय जुर्माने की बात कह दीवान को कुछ बताने से इंकार कर दिया था। ठिकाना बिसाऊ के कर्मचारियों ने गांव वालों से कहा कि तुमने जुर्माना देने की बात क्यों कही। इसलिए तुम पर इस साल भी जुर्माना किया जाता है। गांव वाले भयभीत हैं।

मुकुंदगढ़ का एक किसान आज 5 महीने से पीटकर घर से बाहर कर दिया गया और गांव में भी नहीं घुसता। बात सिर्फ यही है कि वह ठीकाना सीकर की दी हुई जमीन का टैक्स आठ आना बीघा, जो ठीकानेदार ने नया लगाया है, नहीं देता। (लोकमान्य 16 दिसंबर सन 1934)

दमन का दौर-दौरा

ठिकाना नवलगढ़ की शख्तियां आजकल बहुत सुनने में आ रही हैं। मालूम होता है कि ठाकुर मदनसिंह ने सब चाकरों को हुक्म दे दिया है कि जो किसान तुम्हारी स्वेच्छाचारिता में


[पृ.356]: बाधक हो काठ में लाकर डाल दो। जिन आदमियों के हिरासत में लेने के समाचार छपे थे उन्हें छोड़ दिया है। किंतु उन्हें इतनी मार पड़ी है कि वह अब बीमार हो गए। अभी उनकी गाड़ी और बैल नहीं मिले हैं।

ठिकाना अलसीसर और मलसीसर दोनों में कई किसानों पर लगान वसूल हो जाने पर भी बकाया लगान का दावा किया है। किसानों को लगान की रसीदें नहीं दी जाती इसलिए ठिकानेदार इस प्रकार के दावों को कर रहे हैं। ठिकाना मंडावा के एक किसान का कहना है कि आज 3 वर्ष हुए उसने लगान दे दिया था किंतु अब दावा हुआ है।

लोलड़ी की ढाणी के देवली माली को नवलगढ़ के देवजी और मंडावा के आसजी राजपूत कामदारों ने सात आदमियों सहित धावा कर के पीटा और कहा कि डेढ रुपया बीघा का लगान तुम्हें देना पड़ेगा, नहीं तो गांव को छोड़ दो।

लुदा और रवि का किसान का कहना है कि मंडावा और नवलगढ़ के सवार उनके गांव में पहुंचे और कहा कि “जयसिंहपुरा को याद रखो। उसी तरह भून दिये जाओगे” (पाठकों को स्मरण होगा कि पिछले दिनों जयसिंहपुरा में डूंडलोद ठिकानेदारों ने किसानों पर गोली चलाई थी और एक किसान मरा था तभी दर्जनों पशु और मनुष्य घायल हुए थे)... अर्जुन 21 दिसंबर 1934

नवलगढ़ 25 दिसंबर 1934: जाखल के भोमियों द्वारा पाकौड़ी धानी की लूटमार के संबंध में किसान पंचायत के मंत्री ने मोटर द्वारा पहुंचकर घटनास्थलों की जांच की है। वहां का निम्नलिखित विस्तृत विवरण संवाददाता ने उनकी रिपोर्ट से लेकर भेजा है:-


[पृ.357]: पाकौड़ी ढाणी झुंझुनू स्टेशन से 22 मील पूर्व और दक्षिण की ओर है। इसमें कुल 10 घर हैं। तमाम जाट किसान आबाद है। जाखल, जहां के भोमिये है इस गांव के जमीदार हैं, इस ढानी से 500 कदम पश्चिमोत्तर में बसा हुआ है। इसमें करीब 300 घर हैं। जिसमें 150 के करीब इन्हीं भाई-बंधु के घर है। इन लोगों के गोला-दरोगा आदि के बीसियों घर हैं। इस प्रकार पकौड़ी ढाणी के किसान भूमियों के घेरे में बसे हुए हैं।

लूटमार का सबब यह था कि कुछ दिन हुए ढानी के किसानों को बुलाकर भोमिए ने कहा कि तुम जाट किसान पंचायत को चंदा न दो और न, कोई आदमी आए तो उसे ठहरने दो। किसानों ने इससे इनकार किया तो उन पर कई नए टैक्स लगा कर उनसे रुपए मांगे। इत्तफाक से तारीख 17 दिसंबर 1934 को चंदा पार्टी ढाणी में पहुंच गई। यह सुनकर भोमियों के दो जासूस लोगों को पहले बैठे देखे गए और फिर तमाम लोगों को बुला लाये।

जबकि 15-16 आदमी खाना खा पीकर एक जगह बैठे हुए थे और हारमोनियम बजाना आरंभ हुआ था कि एकाएक चारों ओर से बहुत से आदमी इन लोगों पर टूट पड़े। बैठे हुए आदमी कुछ भी बोलने नहीं पाए थे कि लाठियों की मार धड़ाधड़ पड़ने लगी। लाठी की मार से बाजे के चार-चार अंगुल टुकड़े हो गए। एक दम से अचानक हमला होने के कारण बैठे व्यक्ति सन्नाटे में आ गए।

यह लूटमार एक घंटे तक जारी रही। 3-3 मील तक लोगों ने लाठियों की आवाज सुनी। बेगराज और मूलजी नाम के व्यक्तियों पर जिनकी उम्र 50 वर्ष से ऊपर है।


[पृ.358]: इतनी लाठियां पड़ी है कि उनकी हालत पर रोना आता है। इन लोगों के बरछों की चोट आई है। घायल व्यक्तियों का कहना है कि उन्हें मूँज की तरह कूटा गया है तथा जिस भांति जमीन पर बिना दया के लाठियां मारी जाती हैं उसी तरह धड़ाधड़ बरसाई गई। कई घायलों को गिरने पर भी घसीटा गया। कई स्त्रियां जो डर के मारे किवाड़ बंद करके घर में घुस गई, उन्हें किवाड़ तोड़ कर घसीटते हुए निकाला और पीटा गया।

बैठे हुए तमाम लोग एकाएक आक्रमण के कारण मार से गिर पड़े और जब उन लोगों के कपड़े खून से लथपथ हो गए तो आक्रमणकारी उन्हें मरा समझकर भाग खड़े हुए। कई बच्चे और स्त्रियों को भी चोटें आई हैं। जाते समय डालजी नाम के भोमिया ने जो सबसे आगे तलवार लिए चलता था कहा कि “अरे जाते कहाँ हो मारा कूटा एक नाम और जीमा जूठा एक नाम” इन लोगों के पास हैं सो तो ले चलो। यह सुनकर सब लोग लोट पड़े और जिसको जो कुछ मिला ले भागे। बहुत से आक्रमणकारी बाड़ और दीवार पर ही लाठी बरछी चलाने लगे जिससे घरों की किवाड़ और दीवार नष्ट हो गई हैं। मकानों में घुसकर बर्तन-भांडे घड़े खात आदि तोड़ डाली गई। कहा जाता है आक्रमणकारी दो-ढाई सौ की तादाद में थे। अभी तक वर्षा हो जाने पर भी पैरों के निशान नहीं मिटे हैं। (लोक मान्य 31 दिसंबर 1934)

इस दमन दावानल के बीच किसान शांतचित से तूफान को सिर से बिना कोई झगड़ा किए उतार देने की कोशिश में थे कि ठिकानेदारों ने यह आवाज लगाना शुरु कर दी कि किसानों ने लगान बंदी कर दी है। उन्होंने मीटिंगें भी की


[पृ.359]: और जयपुर सरकार के मिनिस्टरों पर भी प्रभाव बनाया। एक और यह भी खेल खेला कि 20 दिसंबर 1934 को उनके डेपुटेशन ने जयपुर जाकर काउंसिल के वाइस प्रेसिडेंट के सामने यह वादा कर लिया है- हम इस वर्ष लगान में चार आना छूट देने को तैयार हैं। अंग्रेज अधिकारी को यह क्या पता था कि ठिकानेदार किसानों की चुकते लगान की रसीदें नहीं देते हैं। यह कैसे पता चलेगा कि वह असल लगान के चार आना छूट दे रहे हैं। वाइस प्रेसिडेंट ने जाट डिपुटेशन को बुलाया और उसे विश्वास दिलाया कि हम शीघ्र ही आपकी मांगों के बारे में कुछ तय करने वाले हैं। तब तक आप चार आना छूट लेकर लगान वसूल कर दें।

एक तरफ जयपुर सरकार ने यह किया और दूसरी तरफ किसानों और उनके सहायकों का दमन करने के लिए एक ऑर्डिनेंस जारी कर दिया। जिसके मातहत सात कार्यकर्ताओं को जयपुर में प्रवेश निषेध करार दे दिया। लगान की छूट और दमनकारी कानून की जो प्रतिक्रिया हुई उसके उदाहरण में अखबारों की दो कटिंगें पेश की जाती हैं।

पिछले महीनों से जो शेखावाटी में ठिकानेदारों को शख्तियों के संबंध में किसानों का आंदोलन चल रहा था उसके संबंध में तारीख 20 दिसंबर 1934 को जयपुर दरबार की ओर से इस साल के लगान में चार आना रुपया छूट करने के लिए वाइस प्रेसिडेंट साहब ने ठिकानादारों को आदेश कर दिया था। पंचायत के कार्यकर्ताओं को भी इसके लिए राजी कर लिया था परंतु इस संबंध में लगान उगाई पर उपस्थित कठिनाइयों ने गुड-गोबर एक कर दिया।

क्योंकि ठिकानों में लगान की रसीदें नहीं दी जाती और


[पृ.360]: न उनके यहां बकायदा खतौनी है। इसलिए ठिकानों और किसानों की इस कसमकस के समय यह निश्चय करना कठिन है- पारसाल कितना लगान लिया गया था। ठिकानेदार इस बात पर चिढकर कि किसानों ने जयपुर का हस्तक्षेप करवा कर छूट क्यों करवाई, जहां उन्होंने पारसाल ₹1 लिया था इस साल साल सवा रुपया बताने लगे हैं। और साथ ही यह भी कहते हैं कि यदि रकम फरवरी तक लगान अदा नहीं कर दोगे तो माफी के हकदार न होंगे । हालांकि जयपुर से ऐसा कोई हुक्म नहीं है। उपरोक्त परिस्थिति में यह समझ में नहीं आता कि चार आने घटे या बढ़े?

ठिकानेदारों ने आंदोलन को जयपुर दरबार के सामने करबंदी आंदोलन के रूप में रखा है। इसलिए जयपुर महकने खास की ओर से अभी हाल में एक ऐलान शाया हुआ है। उसके अनुसार उस व्यक्ति को जो लगाम बंदी के लिए जबानी, लिखकर, नोटिस द्वारा या इशारे से भी कोई कार्य करता पाया जायेगा तो उसे गिरफ्तार किया जा सकेगा। उसे दंड स्वरूप जेल और जुर्माना ही नहीं रियासत से बाहर होने का हुक्म दिया जा सकेगा।

मालूम हुआ है कि किसान इसकी अपील कर रहे हैं और उन तमाम दिक्कतों की एक फहरिस्त वाइस प्रेसिडेंट साहब जयपुर की सेवा में पेश कर रहे हैं, जो उन्हें माल अदा करने में हो रही है।

उपरोक्त कानून के बनते ही ठिकानेदारों ने लगान उगाही छोड़कर लोगों को कर बंदी आंदोलन के अपराध में फसाने का षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया है और कुछ चौधरियों को लालच देकर पंचायत के कार्यकर्ताओं के विरुद्ध रिपोर्ट करवा


[पृ.361]: रहे हैं। कई लोगों से ऐसे सड़यंत्र स्थापित करने वाले कागजों पर कुछ का कुछ कहकर दस्तखत करवा रहे हैं।

महकमे खास द्वारा ऐलान के जरिए जो कानून शाया हुआ है, जिसकी बिना पर किसी शख्स को गिरफ्तार किया जा सकता है, वह ठिकानेदार उन तमाम लोगों पर लागू करने में समर्थ हो सकते हैं जो उनकी स्वछंदता में बाधक हो। इसलिए यदि ठिकानेदार इस प्रकार उन्हें गिरफ्तार करने में सफल हुए तो इसमें संदेह नहीं कि गिरफ्तारियों का तांता लग जाए और फिर शेखावाटी अलवर और कश्मीर बन जाए (अर्जुन 6 जनवरी 1935)

ठाकुर देशराज जी द्वारा जयपुर के काले कानून का विरोध

अभी पिछले महीने दिसंबर के अंतिम सप्ताह में जयपुर राज्य में एक नया कानून बनाया है। उसका कारण लगान बंदी प्रचार को रोकना बताया गया है।

कानून सदैव असाधारण अवस्था का सामना करने के लिए बनाए जाते हैं। उनका उद्देश्य सार्वजनिक हित की रक्षा और बदमनी को दूर कर देना होता है अर्थात कानून उस हालत में बनते हैं जबकि किसी समूह का रवैया दूसरों को हानि पहुंचाने वाला दिखाई पड़े या कोई समूह राज्य की अथवा लोक की हितकारी रिवाजों को तोड़ता हो। कानून बनता भी उन्ही लोगों की हरकतों को रोकने के लिए है जो अशांति पैदा करते हैं। किंतु हम देखते हैं यह जयपुर का लगान बंदी प्रतिबंधक कानून अकारण तो बना ही है साथ ही पीड़को की


[पृ.362 बजाएं पीड़ितों के लिए ही बना है। (लोकमान्य 21 फरवरी 1935)

लगानबंदी ऑर्डिनेंस के जारी होते ही ठिकानेदारों के पैर मजबूत हो गए और जहां वे अब तक रहे सहे लगान को उगाने को बेचैन थे वहां अब कतई लापरवाही करने लगे और अनेक बहनों से चारों ओर से किसानों की शिकायतें लगान न देने संबंधी जयपुर के कर्मचारियों और अधिकारियों तक पहुंचाने लगे। ऑर्डिनेंस के बन जाने के बाद शेखावाटी में जो भी परिस्थिति पैदा हुई उसका तारीख वार ब्योरा तो हमारे पास नहीं है किंतु ठिकानेदारों और जयपुर सरकार के कर्मचारियों ने जो कुछ किया उसका थोड़ा सा आभास उस समय के उन समाचारों से सामने आ जाता है जो विभिन्न अखबारों में प्रकाशित हुए थे। थोड़े से नमूने इस प्रकार हैं -

किसानों पर आफत बेगुनाहों की गिरफ्तारी

नवलगढ़ 11 जनवरी 1935 खबरे है कि जयपुर के महकमे खास की ओर से हाल में बने कानून के मातहत गिरफ्तारियां शुरू हो गई है। नारसिंहाणी गांव के भीमा और नारायण नाम के व्यक्तियों को मुकुंदगढ़ के पतरोल ने गिरफ्तार कर लिया है। कहा जाता है कि उक्त व्यक्ति पंचायत से हमदर्दी रखते थे। गिरफ्तार व्यक्तियों को थाना मंडावा से झुंझुनू भेजा जा रहा है। झारोड़ा गांव की खबर है कि ठिकाना मंडावा के कर्मचारियों ने एक किसान को पीटा है। उसने इस साल के लगान में जयपुर के हुक्म के मुताबिक चार आना छूट करने के


[पृ.363]: लिए कहा था परंतु ठिकाने वाले पूरा लगान मांगते थे और भी कई गिरफ्तारियों की संभावना (लोकमान्य 17 जनवरी 1935)

मंडावा 17 जनवरी 1935 शेखावाटी में नए ऑर्डिनेंस के अनुसार गिरफ्तारियों का तांता शुरू हो गया है। विभिन्न स्थानों से 4 आदमियों की गिरफ्तारी का समाचार दिया ही जा चुका है। अब खबर मिली है कि चार व्यक्ति और गिरफ्तार कर लिए गए हैं। यह व्यक्ति गांव हेतमसर ठिकाना डाबड़ी के रहने वाले हैं। तारीख 12 जनवरी 1935 को थानेदार मंडावा ने इन्हे बुलाकर कर हवालात में बंद कर दिया। शीघ्र ही वे झुञ्झुनु भेजे जा रहे हैं।

नए ऑर्डिनेंस की एक धारा के अनुसार किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए हेड कांस्टेबल की रिपोर्ट काफी समझी जाती है और जो काबिल सजा समझ लिया जाता है जिसमें 6 महीने तक की सजा दी जा सकती है।

इस प्रकार ठिकानेदारों के गिरफ्तार करने में सफल होने के कारण आतंक बढ़ रहा है और किसानों में भय के साथ ही एक नवीन जागृति की लहर उत्पन्न हो रही है। इससे यह तो स्पष्ट मालूम पड़ता है कि लगभग लगान वसूली में एक जबरदस्त बाधा डाली जा रही है। (लोकमान्य 22 जनवरी 1935)

जयपुर 24 जनवरी 1935: झुंझुनू का तारीख 19 का समाचार है कि जाट किसान पंचायत के सहकारी मंत्री विशनाराम जी सोटवारा गिरफ्तार हो गए। उनके साथ तीन आदमी और पकड़े गए हैं। इस गिरफ्तारी से किसानों और उनके नेताओं में बड़ी सनसनी फैल गई है। इसका एक कारण यह भी है कि वह उस हालत में पकड़े गए जबकि अपने गांव का लगान निजामत में जमा कराने गए थे।


[पृ.364]: निजामत में जमा करने गए थे। चौधरी बिसनाराम जी और उनके 3 साथी गिरफ्तार कर हवालात में भेज दिए गए। ले जाते समय बड़े प्रसन्न थे। उनकी तलाशी लेने पर एक अर्जी जो कि उन्होंने निजामत में माल जमा कराने के लिए लिखाई थी मिली है। यह लोग चार पांच दिन पूर्व इस बात की दरख्वास्त देगए थे कि ठिकाने वाले हमसे ज्यादा लगान व लाग मांगते हैं, इसलिए निजामत उन्हें दिलाए। इसीलिए ये लोग नाजिम के पास दोबारा निश्चित तारीख पर रकम लेकर झुंझुनू आए थे। किंतु जब ये अदालत के अहाते में घुसे थे कि ठिकाने के आदमियों के इशारे से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। सोटवारा वालों के ₹800 के करीब लगान मध्य बाद में अदालत में जमा हो गए। अभी तक एक दर्जन से अधिक गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। अभी बहुत गिरफ्तारियों की संभावना है। शीघ्र ही पंचायत के प्रधान व मंत्री के भी पकड़े जाने की अफवाह है। (लोकमान्य 28 जनवरी 1935)

शेखावाटी में इस समय दमनचक्र जोरों पर है। ठिकानेदार जिसे भी चाहते हैं पुलिस द्वारा गिरफ्तार करा देते हैं। जयपुर के नए कानून “लगान बंदी प्रतिबंधक कानून” द्वारा हेड कांस्टेबल को अधिकार है कि वह चाहे जिसे, जो कि लगान बंदी का प्रचार करता हुआ पाया जाए, गिरफ्तार कर ले। ठिकानेदार इस धारा से खूब लाभ उठा रहे हैं। जिस किसी भी किसान पर वक्र दृष्टि है उसे ही पुलिस द्वारा गिरफ्तार करा देते हैं।

अब तक इस तरह कोई ढ़ाई दर्जन से ऊपर गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। उनमें से कुछ नाम इस प्रकार हैं


[पृ.365]: 1. मनी राम जी सोलाना, 2. मोतीराम जी, 3. जीवन राम जी गोडवा, 4. ईश्वर राम जी 5. हनुमत रामजी मुकाना 6. मूंग राम जी गोयलका 7 फूला लाराम जी लोधीपुरा 8 विशनाराम जी सोटवारा 9 बस्ती रामजी बांडर 10 ईश्वर सिंह हेतमसर 11 ओम सिंह जी गोपालपुरा 12 नारायण सिंह जी नारसिंहाणी 13 भैरो सिंह सोटवारा 14 माल सिंह जी हेतमसर 15 ईश्वर सिंह जी गोपालपुरा 16 भोमाराम जी नारसिंहाणी 17 महा सिंह जी मलसीसर 18 भीम सिंह जी सुरा का बास

इनके अलावा कितने अभी नाम हैं हमें मालूम नहीं है। पुवाना गांव में दो, अजाड़ी गांव में चार, हेतमसर में दो सारावास में एक और गिरफ्तारी होने की खबर हमें मिली है। मंडावा, डूंडलोद और नवलगढ़ ठिकानों में से 6 आदमी और भी गिरफ्तार होकर आ चुके हैं। जोरों की अफवाह है कि अभी सैंकड़ों गिरफ्तारियां और भी होने वाली है। (लोकमान्य 4 फरवरी 1935 )

जयपुर 7 फरवरी शेखावाटी में किसानों पर दमन दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है। प्रतिदिन चारों ओर गिरफ्तारियां जारी है। यह पता लगाना कठिन है कि अब तक कितने गिरफ्तार हो चुके? क्योंकि जहां से 2-4 को गिरफ्तार किया जाता है वहां तमाम आदमी पुलिस के साथ हो लेते हैं। जिनमें से पुलिस कुछ को भगा देती है और कुछ को अपने पहरे में रखती है। नागा स्वामी और सिपाही गांव में घूम रहे हैं। इनके जत्थो का जाना बराबर जारी है। जिससे इस इलाके में इनकी तादाद बढ़ रही है। बहुत से गांव में लोग डरा धमका कर थानों में ही रखे जाते हैं और फिर कुछ झुंझुनू भेज दिए जाते हैं। ठाकुर लोग अपनी सफलता पर खुश हैं और


[पृ.366]: जिन जिन पर चिढ़े हुए हैं उन पर अपनी शख्ती करवा रहे हैं और वह भी मनचाही। और अपना पुराना बैर निकाल रहे हैं। कई फौजियों के, जो 5-4 दिन की छुट्टी लेकर आए थे, गिरफ्तार कर लेने के समाचार मिले हैं। उन पर यह दबाव डाला गया बताया जाता है कि वह लगान वसूली में सहायता दें। किंतु उनके विवशता प्रकट करने पर उन्हें गिरफ्तार करवा दिया गया। हवलदार टीका राम जी ने 20-25 दिन पूर्व निजामत में अर्जी दी थी कि मेरा ठिकानेदार रुपया नहीं लेता है और मुझसे बहुत सख्ती करता है और लगान बंदी में फसाना चाहता है। इसलिए मेरी दशा पर ध्यान दिया जाए। सुना है कि वह रुपए लेकर भी निजामत में गए थे किंतु कोई सहूलियत नहीं हुई और वह गिरफ्तार कर दिए गए। गिरफ्तार सुधा व्यक्तियों के साथ दुर्व्यवहार होने के समाचार मिले हैं। उन्हें किसी से मिलने नहीं दिया जाता और न पर्याप्त मात्रा में इस सर्दी के मौसम में भोजन और वस्त्र ही दिए जाते हैं। यही नहीं उन पर बैत से मार पड़ने तक की खबरें आई हैं। (लोकमान्य 11 जनवरी सन 1935)

जयपुर में तलाशियां, कुंवर नेतराम के घर पर छापा

आगरा 17 जून 1935: जयपुर शेखावाटी जाट किसान पंचायत के दफ्तर की तलाशी ली जाने की खबर आई है। तलाशी मंत्री की अनुपस्थिति में जयपुर पुलिस द्वारा ली गई। पुलिस कागजात अपने साथ ले गई है। झुंझुनू जाट किसान


[पृ.367]: पंचायत के दफ्तर की तलाशी ताला तोड़ कर ली गई। मंत्री उस समय किसी कार्यवश अदालत झुंझुनू में गए हुए थे। तलाशी के समय डिप्टी और सुपरिटेंडेंट मौजूद थे। शेखावाटी जाट पंचायत के उपप्रधान नेतराम सिंह के घर की भी पुलिस ने तलाशी ली। जयपुर स्टेशन से गिरफ्तार करके झुंझुनू ले जाया गया है और कानून की 177 वीं धारा में मुकदमा चलाने की तैयारी हो रही है। उनके यहां से जाट महासभा की सूचना आदि के नोटिस पुलिस उठा ले गई है। हाथ कते सूत का एक पुलिंदा भी पुलिस द्वारा ले जाने की खबर है। (लोकमान्य 21 जून 1935)

जयपुर सरकार ने 20 दिसंबर सन् 1934 को किसान प्रतिनिधियों को यह भी विश्वास दिलाया था कि किसानों के कष्ट की जांच करने के लिए शीघ्र ही कमीशन बिठाया जाएगा और उनके ऊपर से लाग बाग का बोझ हल्का किया जाएगा किंतु 4 महीने तक न तो कोई भी कमीशन मुकर्रर हुआ ही न लाग बाग ही कम की गई इसलिए मार्च सन् 1935 में दूसरा मेमोरियल फिर पेश किया गया। कमीशन तो सरकार ने खटाई में डाल दिया किंतु किसानों का लगान बढ़ाने के लिए उसने शेखावाटी में बंदोबस्त (चकतराशी) आरंभ करा दी। किसानों में बंदोबस्त के आरंभ होने से एक प्रसन्नता की लहर आई किंतु यह जितनी सुखद होनी चाहिए थी उतनी दिखाई न दी। इसलिए सन् 1936 में एक तीसरा मेमोरियल बंदोबस्त में की जाने वाली गलतियों के बारे में फिर पेश किया। इसके बाद मेमोरियल सेटलमेंट अफसर के सामने बंदोबस्त संबंधी गलतियों के बारे में पेश किया गया।

इस तरह शेखा वाटी के किसान लाख दमन होने पर भी


[पृ.368]: वैधानिकता के रास्ते पर ही रहे। उन्होंने जो कुछ किया शांति के साथ किया और धैर्य के साथ सहन किया। जयपुर सरकार अत्यंत कृपण की भांति आगे बढ़ रही थी किंतु ठिकानों के प्रभाव में वह इतनी थी कि किसानों में संतोष पैदा करने वाली कोई भी कार्रवाई नहीं कर सकी।

इधर उन्हें अपने उन नेताओं के सहयोग से भी हाथ धोना पड़ा जो उन्हें परामर्श और परिश्रम के रूप में मिलता था क्योंकि कुँवर रतन सिंह और ठाकुर देशराज आदि पर जयपुर में आने का प्रतिबंध लगा दिया था। शेखावाटी के किसान नेता अभी इतनी हिम्मत के आदमी नहीं बन सकते थे कि राणा प्रताप की तरह 27 वर्ष की लड़ाई असहाय होकर लड़ सके। इसलिए वे सेठ जमनालाल बजाज और उनके जयपुरी लेफ्टिनेंट हीरालाल शास्त्री के संपर्क में आए और धीरे-धीरे प्रजामंडल के साथी बन गए।

जयपुर के सन् 1938 के प्रजामंडल के सत्याग्रह में उन्होंने सबसे अधिक मार खाई, बर्बादी सही किंतु समझते यही रहे कि हमारे ऊपर सेठ जमनालाल का हाथ और सेठ जमनालाल के पीछे सारी कांग्रेस है। सन 1933 में उन्होंने भारत में सबसे अधिक कर्मठ जो किसान संस्था थी। उसे भी स्थगित कर दिया।

यहां तक सन 1933 से कायम हो कर चली आ रही शिक्षण संस्था झुञ्झुनु जाट बोर्डिंग का नाम भी बदल दिया

इसके बाद का भी शेखावाटी के जाटों का बलिदान और कार्य शानदार है किंतु खेद है कि उसकी सामग्री हमारे पास नहीं है। इसलिए हम यहीं तक का शेखावाटी का इतिहास देकर समाप्त करते हैं और शेखावाटी किसान पंचायत के लीडरों द्वारा


[पृ.369]: प्रकाशित की हुई उस रिपोर्ट के जो उन्होंने पंचायत को स्थगित करते समय प्रकाशित की इन अंशों को प्रकाशित करके उन करमठों की त्यागमयी मेहनत के लिए धन्यवाद देते हैं। जिन्होंने शेखावाटी को जगाया, जीवन बक्सा और कौम के सच्चे सबूत होने का परिचय दिया।

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शेखावाटी किसान जाट पंचायत आज जिस उन्नत और ख्याति प्राप्त अवस्था में है उसे जयपुर राज्य ही नहीं अपितु सारा राजस्थान परिचित है। ठिकानेदारों और जयपुर राज्य से पिछले कई वर्षों से टक्कर लेने के कारण उसकी लोकप्रियता खूब बढ़ गई है।

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जब जब कि हम इस उन्नतिशील संस्था को परिस्थितियों वश स्थगित कर रहे हैं। यह मुनासिब है कि उसके पूर्व रूप और अवस्थाओं का संक्षिप्त इतिहास जनता के समक्ष रख दें।

शेखावाटी सीकर में सन 1934, 1935 में जो आंदोलन हुआ वह भारत के किसान आंदोलनों में खास स्थान रखता है। उक्त आंदोलन का संचालन ठाकुर देशराज जी की देखरेख में हुआ और इसी के प्रकाशन के लिए ‘गणेश’ नाम का पत्र निकाला गया। समाचार पत्रों ने इस आंदोलन के प्रकाश में अच्छा भाग लिया और उस के फलस्वरूप आंदोलन ने अखिल भारतीय प्रसिद्धि प्राप्त की।


[पृ.370]: हम समझते हैं कि शेखावाटी का हर व्यक्ति यह महसूस करता होगा कि पंचायत का उद्देश्य महान है। यह महान कार्य अर्थात किसानों की सर्वांगीण उन्नति का कार्य जिन उत्साही, दूरदर्शी, प्रतिभाशाली व जागृतीशक्ति के अग्रदूत ज्ञात और अज्ञात नर प्रगवों ने उठाया था वह निरंतर के बलिदान और प्रयत्नों के कारण काफी आगे बढ़ चुका है।

शेखावाटी के कुछ कर्मठ व्यक्तियों का जीवन परिचय इस प्रकार हैं:

शेखावाटी के जाट जन सेवकों की सूची

शेखावाटी में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनकी सूची सुलभ संदर्भ हेतु विकि एडिटर द्वारा इस सेक्शन में संकलित की गई है जो मूल पुस्तक का हिस्सा नहीं है। इन महानुभावों का मूल पुस्तक से पृष्ठवार विस्तृत विवरण अगले सेक्शन में दिया गया है। Laxman Burdak (talk)

  1. चौधरी चिमनाराम जी सांगासी (कुलहरी), सांगासी....p.370-372
  2. चौधरी रामसिंह जी कुंवरपुरा (कटेवा), कुंवरपुरा....p.372-374
  3. कुंवर पन्नेसिंह जी (कुहाड़), देवरोड़....p.374-380
  4. सरदार हरलाल सिंह जी (दुलड़), हनुमानपुरा....p.380-386
  5. कुंवर नेतराम सिंह जी (मान), गौरीर....p.386-389
  6. चौधरी घासीराम जी (चाहर), बासडी ....p.389-391
  7. कुंवर भूरसिंह (कुहाड़), देवरोड़....p.391-393
  8. श्री लादूराम जी किसारी (तिलोटिया), किसारी ....p.393-394
  9. चौधरी लादूराम जाखड़ (जाखड़), माखर....p.394-395
  10. श्री स्वामी गोपालसिंह जी (गिल), कीकरी (फिरोजपुर) ....p.395-396
  11. मानसिंह जी (धतरवाल), बनगोठड़ी....p.396-397
  12. चौधरी शिवलाल जी (पूनिया), बनगोठड़ी....p.397-398
  13. चौधरी सरदाराराम जी (पूनिया), बनगोठड़ी....p.398-399
  14. मास्टर लालसिंह जी (लांबा), बनगोठड़ी....p.399
  15. भालसिंह जी (जाखड़), गाडोली....p.399
  16. जमादार चंद्राराम जी (पूनिया), काजी....p.400
  17. चौधरी बख्ताराम जी (पूनिया), काजी....p.400-401
  18. श्री चौधरी विद्याधर जी एडवोकेट (कुलहरी), सांगासी....p.401-402
  19. चौधरी शिवनारायण सिंह जी (कुलहरी), झारोड़ा....p.402-403
  20. चौधरी जयदेवसिंह जी (कुलहरी), सांगासी....p.404
  21. चौधरी हरलालसिंह जी (बूरी), मांडासी....p.404-405
  22. चौधरी शिवकरण जी (चाहर), देवरोड की ढाणी....p.405
  23. चौधरी बूटीराम जी (डारा), किशोरपुरा....p.406-407
  24. चौधरी थानाराम जी (मील), भोजासर....p.407-408
  25. तनेसिंह जी हनुमानपुरा (दुलड़), हनुमानपुरा....p.408-409
  26. श्री पहलवान कुर्ड़ाराम जी (बलौदा), झारोड़ा....p.409
  27. चौधरी खेतराम (जयहोत्रा), नरहड़....p.410-411
  28. चौधरी ख्यालीराम (जानू), भामरवासी....p.411-413
  29. ताराचंद (बलोदा), झारोड़ा....p.413-419
  30. श्री चेतराम जी भामरवासी (जानू), भामरवासी....p.419-420
  31. चौधरी विसनाराम जी (रणवा), सोटवारा....p.420-421
  32. कुंवर नारायण सिंह मोहनपुर (भामू), भामरवासी....p.421-423
  33. कुंवर चतरसिंह (कटेवा), बख्तावरपुरा....p.423-424
  34. कुंवर मूलचंद जी (कटेवा), बख्तावरपुरा....p.424
  35. श्री ओंकारसिंह जी (दुलड़), हनुमानपुरा ....p.424-425
  36. श्री भैरोसिंह जी (पायल), तोगड़ा....p.425-426
  37. सूबेदार सेडूराम जी (कासनिया), पुराना बास....p.427-428
  38. सूबेदार गणपतिराम जी (कटेवा), कंवरपुरा....p.428
  39. कुंवर जगलालसिंह कुहाड़ (कुहाड़), कुहाड़वास....p.429
  40. श्री रामसिंह जी बड़वासी (कुलहरी), बड़वासी....p.429-430
  41. मास्टर लेखराम जी (Khatkar), प्रतापपुरा....p.430-431
  42. चौधरी आसाराम जी (पूनिया), कंकड़ेउ....p.431-432
  43. स्वर्गीय श्री बेगराज जी (बूरी), मांडासी....p.432-433
  44. चौधरी गुरुमुखसिंह जी (साईं), दौलतपुरा....p.433-434
  45. चौधरी लक्ष्मणसिंह जी (जाखड़), हरिपुरा....p.434
  46. चौधरी लक्ष्मणसिंह जी II (ढाका), नाथासर....p.434
  47. चौधरी लादूराम (लंबोरिया), हरिपुरा....p.435
  48. कालूराम जी देवरोड़ (पिलानिया ), देवरोड़....p.435
  49. बेगराज जी देवरोड़ (कुहाड़), देवरोड़....p.435-436
  50. श्री मोहनलाल वर्मा (देग), इण्डाली....p.436-438
  51. श्री रड़मलसिंह जी गोठड़ा (नूनिया), गोठड़ा नूनिया....p.438-439
  52. कुंवर हरदयाल सिंह (कुहाड़), कुहाड़वास....p.439
  53. श्री देवीसिंह जी अरड़ावता (ओला), अरड़ावता....p.440
  54. सूबेदार पेमाराम जी (.....), डालवास , हरयाणा....p.440

शेखावाटी के जाट जन सेवकों की विस्तृत जानकारी

चौधरी चिमनारामजी सांगासी

1. चौधरी चिमनारामजी सांगासी - [पृ.370]:वीर यौधेय जब सिकंदर से प्रताड़ित हुए तो उनका समूह है चिन्न-भिन्न हो गया कुछ। कुछ जांगल देश में, कुछ हरियाणा में और कुछ नहरावाटी में आबाद हो गए। यौधेयोन की एक शाखा कुल्हारी के नाम से प्रसिद्ध हुई और यही नहरा वाटी में आबाद हुई।

इन्हीं का एक सरदार सांगासी में आबाद हुआ। उसके वंश में आगे चलकर चौधरी आसाराम जी के तीन लड़के हुये – 1. श्री भूधाराम, 2. चिमनाराम, और 3 खुमानाराम जी। तीनों ही अपने अपने नाम के अनुरूप थे। भूधर (पहाड़) की जैसी निश्चलता चौधरी भूधाराम जी में थी और चमन (बगीचे) की तरह प्रफुल्ल रहने की आदत चौधरी चिमना रामजी में थी।

वे सांवले रंग के आदमी थे और कुछ रोगी भी रहते थे किंतु हर समय प्रसन्न और हंसते रहते रहना उनका स्वभाव था।

जबसे शेखावाटी में आर्य समाज की लहरा आई


[पृ.371]: वे पक्के आर्य समाजी बन गए। आर्य ढंग से वे अपना जीवन बिताने लगे। मंडावा आर्य समाज की उन्नति में पूरी दिलचस्पी उन्होंने ली। शेखावाटी में जो जाट जागृति आरंभ हुई उसके जन्मदाता में आप प्रमुख थे और मरते दम तक कौम के लिए काम करते रहे।

उनके अंदर एक खास बात यह थी कि वह काम करने वाले प्रत्येक आदमी को परखते थे और जो उन की कसौटी पर ठीक उतर जाता था उसकी मदद करते थे। कोई लोभ लालच उन्हें डिगा नहीं सकता था। जयसिंहपुरा गोलीकांड के बाद जब ठाकुर ईश्वर सिंह के वकील ने शेखावाटी के जाट नेताओं को गोरीर बुलाकर ₹10000 तक देने को कहा तो चौधरी चिमनाराम जी ठाकुर ईश्वर सिंह की मूर्खता पर बहुत हंसे और कहा कि क्या जाट कोई गाजर मूली होता है जिस को मारकर उसकी कीमत चुकादी जाए।

सन 1926 से 1935 तक सांगासी शेखावाटी की गतिविधियों का पावर हाउस रहा है। एक कठिन परिस्थिति में कुंवरपन्ने सिंह और सरदार हरलाल सिंह जी तक को सांगासी जाकर चौधरी चिमना रामजी से सलाह और सहायता लेनी पड़ती थी। वे जहां उचित और दृढ़ सलाह देते थे वहाँ रुपये पैसे एसआर भी मदद करते थे।

सन 1933 से पहले ठाकुर देशराज जी ने 3 नारे बुलंद किए थे

1 ऊंचे इरादे बनाओ
2 सामाजिक कुप्रथाओं को नष्ट करो
3 वेशभूषा में परिवर्तन करो

चौधरी चिमना रामजी से अधिक इस मामले में कौन अग्रगामी हो सकता है कि वे सीकर यज्ञ में अपनी धर्मपत्नी (बुढिया) को घागरा पहनाकर नहीं अपितु सलवार पहनाकर


[पृ.372]: कर ले गए और उनके जीवन की नहीं अपितु शेखावटी के जाट महिलाओं के जीवन की प्रथम घटना थी। ऐसे थे वह सामाजिक क्रांतिकारी। उन्हें ठोस काम में रुचि थी। हुल्लड़बाजी नहीं। उन के 3 पुत्र थे जिनमें कुवर विद्याधर सिंह जी एडवोकेट से हर एक जाट परिचित हैं।

चौधरी रामसिंहजी कंवरपुरा

2. चौधरी रामसिंहजी कंवरपुरा -[पृ 372]: सीकरवाटी में वैभव के लिहाज से महत्व कूदन गांव को है वही शेखावाटी में बख्तावरपुरा को है। यहां जाटों के दो खानदान अति समृद्धशाली रहे हैं। यह गांव कटेवा गोत के जाटों का है। इसी बख्तावरपुरा में से एक छोटा सा गांव कंवरपुरा बसा है। चौधरी रामसिंह जी कटेवा यहीं के रहने वाले हैं। इस वक्त आप की अवस्था लगभग 66-67 साल है। चौधरी रामकरण, चौधरी खुशीराम और चौधरी गोपाल सिंह जी आपके भाई हैं। श्री भगवानसिंह जी और गणपतिराम जी आपके पुत्र है। दोनों ही पुत्र बड़े लायक और कौम परस्त हैं। ब्रिटिश सेना में उन्होंने बड़ी तरक्की की है। गणपतिरामजी मेजर सुबेदार के पद से रिटायर हुए हैं।

अभी आजकल चौधरी रामसिंह जी आनंद का जीवन बिता रहे हैं। लेकिन वह उन आदमियों में से हैं जो साधन हीन होते हुए भी सेवा के कार्य को अपनाते हैं। और अपने जीवन को और भी दुख पूर्ण बना लेते हैं।

सांगासी के चौधरी भूदा रामजी, मूढ़नपुरा के चौधरी शिव करणजी, हनुमानपुरा के चौधरी गोविंदराम जी के और


[पृ.373]: मास्टर रतन सिंह जी b.a. द्वारा आरंभ किए हुये सन 1925-26 के किसान आंदोलन को आपने अधिक से अधिक मुसीबतें बर्दाश्त कर के चलाया। आपके जीवन की एक घटना अत्यंत महत्वपूर्ण है। शेखावाटी के जाट किसानों के के अधिक आवाज बुलंद करने पर उनका मामला रेनेन्यू के एक विशेष अफसर को सौंपा गया। ऊब दिनों भारतभर के जाट वकीलों में चौधरी लालचन्द्र जी का नाम मसहूर था। जाटों ने उन्हें बुलाया किंतु जब वे जाने लगे भेंट स्वरूप देने को कुछ भी न था इसलिए चौधरी रामसिंह जी ने अपना कंबल दे दिया और तमाम जाड़े भर कष्ट पाते रहे।

उन्होंने देखा कि बिना शिक्षा पाए जाट कोम का उद्धार नहीं है तो वे गांवों में जाकर लड़कों को बिड़ला हाई स्कूल पिलानी में भिजवाना आरंभ किया और और बिड़ला बंधुओं तथा महादेव जी लोयलका से कह सुनकर जाट लड़कों के लिए एक अलग बोर्डिंग हाउस खुलवाया और आप उनके अभिभावक बने।

इसके बाद उन्होंने देवरोड के पन्ने सिंह जी को आगे बढ़ाने का उपक्रम किया और थोड़े ही दिनों में जाटों के अंदर जीवन की लहर सी पैदा करदी। सन 1931 में जाकर जाट महासभा को झुंझुनू वार्षिक महोत्सव मनाने के लिए आमंत्रित किया और फिर दिन-रात घूमकर जलसे की तैयारियां करने लगे।

झुंझुनू महोत्सव के बाद जाट बोर्डिंग हाउस झुंझनू के सुपरिंटेंडेंट के रूप में सेवा की। वास्तव में चौधरी रामसिंह जी शेखावाटी के जाटों के लिए रिजर्व सैनिक के रूप में रहे हैं कि जब भी उनकी सेवाओं की और जहां भी जरूरत पड़ी है वे


[पृ.374]: तैयार रहे हैं और बिना गर्दन हिलाए उन्होंने हरेक ड्यूटी को जो उन्हें सौंपी गई है पूरा किया है।

सन् 1938 के सत्याग्रह आंदोलन में उन्होंने जेल की यात्रा भी की है।

वे एक कर्मठ पुरुष हैं और शेखावाटी के जागृति के प्रथम प्रकाश स्तंभों में से हैं। पिछले 25 वर्षों में शेखावाटी में ऐसी शायद ही कोई मीटिंग व कॉन्फ्रेंस हुई हो जिसमें वे शामिल न रहे हों। अथवा उसे सफल बनाने में इनका हाथ न रहा हो।

शेखावाटी रेतिला इलाका है। गर्मी के दिनों में रास्ते लुप्त हो जाते हैं। किंतु शेखावाटी सीकरवाटी और खेतड़ी के लगभग 1000 गांवों में से शायद ही कोई ऐसा गाँव हो जिसका रास्ता वे भूल सके। उन्हें शेखावाटी का बच्चा-बच्चा जानता है और वह बच्चे बच्चे को जानते हैं।

आज वे बुडढे हैं किंतु जवान उनके बराबर परिश्रम नहीं कर सकते और न उनका जैसा सैकड़ों जवानों के चेहरे पर तेज ही है।

कुंवर पन्नेसिंहजी

3. कुंवर पन्नेसिंहजी - [पृ.374]: शेखावाटी में कुहाड़ जाटों का मशहूर खत्ता है। कहा जाता है कि ब्रिज के यदुवंशियों में से जो लोग गजनी होते हुए जैसलमेर लौटे थे उनमें एक सरदार भुनजी भी थे। उनके खानदान में नयपाल, विनय पाल, राजवीर, रिडमल और मानिकपाल नाम के सरदार हुए। भटनेर के एक हिस्से पर


[पृ.375]: राज्य करते रहे। कई पीढ़ी बाद इसी वंश में जगदीश जी नाम के सरदार के कुहाड़ नाम का पुत्र हुआ। उसने मारवाड़ में कुहाड़सर नामक गांव बसाया। इस वंश के तीसरी चौथी पीढ़ी में पैदा होने वाले कान्हड़ ने सागवा को आबाद किया। उसके पुत्र उदलसिंह ने संवत 1821 (1764 ई.) में कुहाड़वास को आबाद किया। कुहाड़वास के भजूराम कुहाड़ ने संवत 1890 (1833 ई.) नरहड़ में आबाद की। भनूराम का दलसुख हुआ। दलसुख के गणेशराम और जालूराम दो पुत्र हुए। जलूराम बचपन में ही अपने भाई के साथ देवरोड़ में आ गए। कुंवर पन्नेसिंह इन्हीं जालूराम के तृतीय पुत्र थे। कुँवर पन्नेसिंह जी का जन्म संवत 1959 विक्रमी (1902 ई.) के चेत्र में कृष्णा एकादशी को हुआ था।

5 वर्ष की उम्र से ही आपको पढ़ने का शौक आरंभ हुआ। उस समय तक शेखावाटी में कहीं भी कोई उच्च शिक्षणालय नहीं था। इसलिए आप हिंदी उर्दू पढ़कर ही रह गए।

20 वर्ष की अवस्था से ही आपको जातीय और सामाजिक सेवा का चाव लगा। सबसे पहले आपने यज्ञोपवीत संस्कार कराया। उसके बाद आर्यसमाजी ग्रंथों का अध्ययन किया। फिर आप को इतिहास से प्रेम हुआ। टॉड राजस्थान जैसे मोटे-मोटे इतिहास ग्रंथों का आपने संग्रह किया। आपके छोटे से पुस्तकालय में पुस्तकों का अच्छा संग्रह रहता था।

सन 1925 के पिलानी के अध्यापक चौधरी रतनसिंह जी b.a. के साथ जत्था बनाकर और केसरिया बाना पहनकर पुष्कर जाट महोत्सव में गए। वहां से आप कौमी सेवा का व्रत लेकर लौटे। आपने चौधरी रतन सिंह और ठाकुर रामसिंह जी बख्तावरपुरा के साथ मिलकर शेखावाटी


[पृ.376]: जाट सभा की स्थापना की। इस सभा द्वारा बहुत कुछ काम किया गया। शेखावाटी के जाटों की पीड़ित अवस्था पर प्रकाश डालने वाली एक पुस्तिका प्रकाशित हुई जिसका संपादन चौधरी रतन सिंह जी ने किया। पिलानी में एक बोर्डिंग हाउस स्थापित किया गया। चौधरी लाल चंद जी एडवोकेट रोहतक जो आगे चलकर जाटों के एक मशहूर नेता हुये हैं के रूप में दुनिया के सामने आए हैं वकील बनाकर शेखावाटी की मांगे जयपुर सरकार के सामने पेश की गई। चौधरी भूदाराम और चौधरी चिमनाराम सांगसी, चौधरी गोविंद राम हनुमानपूरा आदि इस आंदोलन में बराबर आगे रहे। कुँवर पन्ने सिंह उत्साह में पूर्ण थे किंतु अर्जुन जैसे धनुर्धारी को भी कृष्ण की जरूरत पड़ी थी। परमात्मा ने पन्ने सिंह जी की इच्छा को भी पूर्ण किया। उन्हें सन् 1931 मैं ठाकुर देशराज जैसा राजनीति निपुण साथी मिल गया। फिर क्या था 3 वर्ष के अंदर ही अंदर सारे शेखावाटी में कुंवर पन्नेसिंह और सरदार हरलालसिंह के नाम जाग उठे और लोगों ने एक नए उत्साह के साथ आपके साथ आना शुरू किया। झुंझुनू जाट महोत्सव को सफल बनाने के लिए आप ने रात दिन एक कर दिए। रायसाहब चौधरी हरीराम जी करमाली, कुंवर हुकुम सिंह जी आंगई, ठाकुर झम्मन सिंह जी एडवोकेट अलीगढ़ और ठाकुर भोला सिंह, हुकम सिंह जी के साथ एक बार सारे इलाके का आप लोगों ने भ्रमण किया और मुख्य-मुख्य गांवों में सभायें की।

झुंझुनू जाट महोत्सव सफल हुआ और खूब हुआ। उसके सभापति रायसाहब चौधरी रिसाल सिंह जी रईस पहाड़ी धीरज का हाथी पर जुलूस निकाला गया। साठ हजार के करीब जाट लोग इस उत्सव में शामिल हुए।


[पृ.377]: इसी अवसर पर जयपुर प्रांतीय विधानसभा का संगठन हुआ जिस के प्रधान कुंवर पन्नेसिंह जी ही चुने गए।

उनकी लिखी हुई वीर जुझारसिंह पुस्तिका भी इसी अवसर पर प्रकाशित हुई।

इस उत्सव के बाद कुंवर पन्ने सिंह जी का सितारा खूब चमका। कौम में उनकी इज्जत बढी। राज्य में भी वे गिनती के आदमी समझे जाने लगे। एक प्रकार से आप दुखियों के आशा केंद्र से बन गए। इन दिनों ठाकुर देशराज जी अजमेर में राजस्थान का संपादन करते थे। उन्होंने दिसंबर सन् 1932 में सराधना अजमेर में राजस्थान जाटसभा का प्रथम उत्सव मनाने का आयोजन किया। कुंवर सिंह जी भी मय सरदार हर लाल सिंह जी के उसमें शामिल हुए। 2 दिन पहले पहुंचकर उसकी तमाम व्यवस्था अपने हाथ में ले ली।

अखिल भारतवर्षीय जाट महासभा जनवरी सन् 1933 में भरतपुर में महाराजा सूरजमल की द्वितीय शताब्दी बनाने का निश्चय कर चुकी थी, किंतु उस समय के अंग्रेजी दीवार मिस्टर हेनकाफ ने उस पर पाबंदी लगा दी। जाट महासभा का नेतृत्व उच्च वर्ग के लोगों के हाथ होने से कोई बड़ा कदम उसकी ओर से उठाने की गुंजाइश नहीं थी। अतः ठाकुर देशराज को ‘सूरजमल शताब्दी समिति’ नाम की एक स्वतंत्र संस्था का अस्थाई संगठन करना पड़ा और कानून तोड़कर शताब्दी बनाने का निश्चय किया गया। उसमें भी कुंवर पन्ने सिंह का सहयोग ठाकुर देशराज जी को मिला और शेखावाटी से पन्ने सिंह, सरदार हरलाल सिंह, ठाकुर रामसिंह, चौधरी गोविंदराम, चौधरी दलेल सिंह, चौधरी सूरत सिंह हनुमानपुरा मय दलबल के


[पृ.378]: साथ सत्याग्रह में योग देने पहुंचे और वह शुभ कृत्य सम्पन्न कराया। इसके बाद ठाकुर देशराज जी ने जाट इतिहास प्रकाशित करने का आयोजन किया। उसमें कुंवर पन्ने सिंह उसके साहस को बराबर बढ़ाते रहे। खेद है कि वह जाट इतिहास का प्रकाशन न देख सके। हां जब उनके बड़े भाई कुंवर भूर सिंह जी ने जाट इतिहास को पहले-पहल सीकर यज्ञ में देखा तो वह उसे सिर पर रख कर मारे खुशी के नाच उठे।

कभी-कभी मनुष्य जो चाहता है वह नहीं होता। यही पन्ने सिंह जी के साथ भी हुआ। शेखावाटी के जाट को जितना उन्नत देखना चाहते थे न देख सके और तमाम अभिलाषाओं को साथ लेकर वे इस दुनिया से सन् 1933 के मध्य में चल बसे।

अगर आज वे होते तो शेखावाटी का दर्जा बहुत ऊंचा होता। वह एक आश्चर्यजनक गति के और दृढ़ निश्चय तथा त्यागी व्यक्ति थे और शेखावाटी उनके लिए आज भी रोता है।

उन्होंने अपने पीछे एक मर्दानी और साहसी पत्नी एक पुत्री और 4 पुत्र- कुंवर विश्वेश्वर सिंह, सत्यदेव, रघुवीर सिंह और रणधीरसिंह छोड़े हैं जो होनहार और लायक लड़के हैं। आपकी पत्नी का नाम मोहदी देवी है जो झुंझुनू के चौधरी रिड़मल जी की सुपुत्री है।

कुंवर पन्ने सिंह के परिजन

1. हरदेव सिंह जी': कुंवर पन्ने सिंह जी के परिजनों में उनके भतीजे हरदेव सिंह जी से बहुत आशाएं की। अपने चाचा की मौत पर


[पृ.379]: उन्होंने कौमी सेवा करने का व्रत भी प्रकट किया था। कुछ दिन कार्य किया भी। अब वह अपने निज के धंधे में ज्यादा समय देते हैं।

2. कुंवर हनुमान सिंह जी - भूरसिंह जी के द्वितीय पुत्र हैं। तालीम भी अच्छी पाई है। पिताजी की भांति तीक्ष्ण बुद्धि के हैं उनसे भी बड़ी आशाएं थी। सन 1935 में आगरा में जब ‘गणेश’ पत्र निकला पत्र कला सीखने के लिए रहे।

आपका जन्म संवत 1973 में हुआ था। आप व्यापार के लिए सूरजगढ़ में कुछ समय तक जमे थे। आपका विवाह देवास (हिसार जिला) के प्रसिद्ध धनीमानी चौधरी उदमी राम जी की सुपुत्री के साथ तमाम फिजूलखर्ची को खत्म करके नवीनतम ढंग से हुआ था। पिलानी में होने वाली जाट स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस में भी आपने अच्छा काम किया था।

3. निहाल सिंह जी हरदेव सिंह जी छोटे हैं। आप लोगों के पिता का नाम चेतराम जी था। निहाल सिंह जी का परिचय अन्यत्र दिया जा रहा है।

4. विश्वेश्वर सिंह: कुंवर पन्ने सिंह जी के बड़े लड़के विश्वेश्वर सिंह हैं उनका जन्म संवत 1980 विक्रमी में हुआ है। आपको पिता की असामयिक मौत के कारण पढ़ाई छोड़ कर व्यवसाय और खेती में लग जाना पड़ा। आपने अपने छोटे भाइयों को अच्छी तालीम दिलाने के लिए पूर्ण कोशिश की। आप अपने पिता के योग्य पुत्र हैं।

5. सत्यदेव : विश्वेश्वर सिंह से छोटे हैं उनका जन्म संवत 1980 में हुआ। आप प्रजामंडल में काम करते हैं। श्री विद्याधर सिंह जी वकील और पंडित ताड़केश्वर जी के साथ


[पृ.380]: 1945 में जेल में भी रहे आए हैं। अगस्त आंदोलन में आप आजाद मोर्चे के साथ थे। आप एक होनहार लड़के हैं।

6. रघुवीर सिंह जी: कुंवर पन्ने सिंह जी के तीसरे पुत्र हैं। उनका जन्म संवत 1984 विक्रमी में हुआ है। पिलानी कॉलेज में पढ़ते हैं। पढ़ने में होशियार हैं। और भविष्य में एक रतन होने की उनसे आशा है।

7. रणधीर सिंह: रघुवीर सिंह से छोटे रणधीर सिंह हैं। उनका जन्म संवत 1989 में हुआ था। इस समय झुंझुनू में पढ़ते हैं।

4. सरदार हरलालसिंह

सरदार हरलालसिंह

4. सरदार हरलालसिंह - [पृ.380]: पंजाब में किन्हीं दिनों भट्टी (यदुओं की एक शाखा) का बड़ा बोलबाला था। राजा रिसालू के बाद वहां दुल्ला भट्टी का नाम लिया जाता है। पंजाबी देहाती गीतों में दूल्हा की बहादुरी की प्रशंसा भरी पड़ी है। इसके नाम से पंजाब में ‘दुला की बार’ नाम से एक इलाका भी प्रसिद्ध रह चुका है। आगे चलकर भट्टियों की एक शाखा ही दुलड़ के नाम से प्रसिद्ध हो गई। इसी शाखा के कुछ लोग अब से सैकड़ों वर्ष पूर्व नेहरा वाटी, जो अब शेखावाटी के नाम से पुकारी जाती है, में आकर आबाद हो गए। मंडावा के पास उनका एक गाँव ‘दुलड़ों का बास’ नाम से मशहूर है। जिसे हनुमानपुरा भी कहते हैं। शेखावाटी में सांगसी जो महत्व को प्राप्त है वही हनुमानपुरा को भी। यहां के बुड्ढे शेर चौधरी गोविंदरामजी को सदा श्रद्धा की दृष्टि से याद किया जाता रहेगा। चौधरी गोविंदराम जी चौधरी कानाराम जी दुलड़ के सुपुत्र थे। उनके भाई बालकिशन जी थे। और पुत्र दुलाराम और मोती सिंह हैं। जो


[पृ.381]: कौमी सेवा में कभी पीछे नहीं रहते।

चौधरी गोविंद राम जी शेखावाटी के प्रथम महारथियों चिमनाराम, भूदाराम, शिवकरण, राम सिंह आदि में से थे। वे सीधे थे लेक्चर देना नहीं जानते थे। लेकिन इरादों के पक्के थे। पक्के आर्य समाजी थे। मंडावा आर्य समाज के कार्यों में उन्होंने सदैव योग दिया। उनके बुढ़ापे का सबसे जबरदस्त काम था भरतपुर में सूर्यमल शताब्दी मनाने के लिए सन् 1933 में जत्थेदार के रूप में गिरफ्तारी के लिए जाना और वहां के तत्कालीन दीवान मिस्टर हैनकॉक के सभा बंधी कानून को तोड़ना। लगभग 70 वर्ष की अवस्था में देहांत हो गया और अब वे हमारे बीच नहीं हैं।

चौधरी गोविंद सिंह जी के उसी दुलड़ों का बास में और उन्हीं के खानदान में चौधरी डालूराम जी के हरलाल सिंह, गंगा सिंह, रेखसिंह और बाबूराम नाम के चार पुत्र हुए। इनमें हरलालसिंह और रेख सिंह सार्वजनिक जीवन में प्रविष्ट हुए।

चौधरी डालूराम जी के बेटे हरलाल सिंह बचपन में भी ‘खाली न रहने वाला’ दिमाग के आदमी थे। जवानी में प्रवेश करते ही उन्होंने अग्रगामी बनना आरंभ किया। मंडावा में लाला देवी बाक्स जी सर्राफ के नेतृत्व में आर्य समाज का प्रचार जोर पकड़ता जा रहा था। आप सन् 1927 के आसपास आर्य समाज के सिद्धांतों से प्रभावित हुए। सन् 1932 में आर्य समाज मंडावा के कर्मनिष्ठ मंत्री पंडित खेमराज जी ने ठाकुर देशराज जी को मंडावा समाज के वार्षिक अधिवेशन में आमंत्रित किया। यह जलसा पहले जलसों से अधिक समारोह पूर्ण था क्योंकि ठाकुर देशराज जी का आगमन


[पृ.382]: सुनकर शेखावाटी के हर कोने से जाट लोग इकट्ठे हुए थे। यहीं हर लाल सिंह ठाकुर देशराज जी के संपर्क में आए। ठाकुर साहब को आदमी की परख का अच्छा ज्ञान है। उन्होंने तुरंत हर लाल सिंह को अपने साथियों में चुन लिया और कुंवर पन्ने सिंह जी के बाद वे उन्हें अपना दूसरा लेफ्टिनेंट मानने लगे।

झुंझुनू का जलसा सफल बनाने के लिए जो डेपुटेशन रायसाहब हरिराम सिंह, ठाकुर झम्मन सिंह, ठाकुर देशराज जी आदि का शेखावाटी में घूमा उसमें हरलाल सिंह जी प्राय: साथ रहे। ठाकुर देशराज जी आप पर और भी आकर्षित हुए और उन्होंने आपको चौधरी हर लाल सिंह की बजाए सरदार हरलाल सिंह कहना आरंभ किया। पहले आप अपने को चौधरी हरलाल वर्मा लिखते थे जैसा कि आप के उस पत्थर से विदित होता है जो कि आपने राजगढ़ की ओर से झुंझुनू महोत्सव के चंदे के लिए भाई की बीमारी के कारण ठीक वक्त पर न जा सकने के कारण कुंवर पन्ने सिंह जी को लिखा था। और जो अब तक ठाकुर देशराज जी के संग्रह में मौजूद है।

जिन दिनों ठाकुर देशराज जी ने शेखावाटी में प्रवेश किया था शिवाय चौधरी राम सिंह जी बख्तावरपुरा के किसी का नाम सिंहान्त नहीं था। लोग पन्ने सिंह जी को पंजी और पन्नालाल के नाम से पुकारते थे। चौधरी रतन सिंह जी b.a. जिन्हें शेखावाटी से एक समय भागना पड़ा था, पन्ने सिंह जी को पन्नालाल ही लिखते थे। हां उनको यह स्वरूप भी ठाकुर देशराज जी ने ही दिया था फिर तो सिंहान्त नामों की एक बाढ सी शेखावाटी के जाटों में आ गई।

सरदार हरलाल सिंह में आरंभ से ही अनेक गुण थे।


[पृ.383]: जिन में निरंतर कुछ सीखना, आगे बढ़ने की तैयारी करना, लोगों को अपने अनुकूल बनाना गंभीर चिंतन और मनन। ये गुण ऐसे थे कि वह थोड़े ही दिनों में लेक्चर देना सीख गए और इस मामले में वे पन्ने सिंह जी से भी आगे बढ़ गए।

सन् 1932 में झुंझुनू जाट महोत्सव हुआ। उस समय तक लोग देवरोड और सांगासी की तरफ आंख रखते थे। इसके बाद ‘दूलड़ों का बास’ (हनुमानपुरा) भी उनकी आशाओं का केंद्र बन गया।

हनुमानपुरा बलरिया के ठिकाने में है। उस ठिकाने में 4-6 ही गांव है। जो ठिकानेदार जितना ही छोटा है उतना ही शोषक होता है। दो दो बार लगान लेना उस ठिकाने का साधारण सा काम था। शेखावाटी में जाट किसान पंचायत का संगठन थोड़ा सा मजबूत होते ही सरदार हरलाल सिंह ने ठिकाने को दुबारा लगान न देने की चुनौती दे दी। फिर क्या था मुकदमा और गांव की बर्बादी दोनों पर कमर बांधली। दो बार गांव में आग लगवाई और कई कई दिन गांव का घेरा रखा किंतु गांव सरदार हरलाल सिंह के नेतृत्व में डाटा रहा और ठिकाने को मुंह की खानी पड़ी। बस यहीं से सरदार हरलाल सिंह चमक उठे।

आप उन दिनों ठाकुर देशराज और कुंवर पन्नेसिंह जी को प्राणों से भी अधिक प्यार करते थे क्योंकि यही लोग उनको सब तरह से उत्साहित करने में अगुआ थे। सन् 1933 में जिन दिनों में गढ़वालों की ढाणी में चौधरी लादूरामजी बिजारणिया के सभापतित्व में खंडेलावाटी जाट सम्मेलन हो रहा था उन्हीं दिनों कुंवर पन्ने सिंह का स्वर्गवास हो गया। उनकी मृत्यु का भारी आघात आपको लगा।


[पृ.384]: इसके बाद सीकर महायज्ञ को सफल बनाने में आपने मय साथियों के दिन रात एक कर दिए। सीकर महायज्ञ की समाप्ति के बाद आपने सीकर के प्रमुख लीडरों के साथ मिलकर समस्त शेखावाटी के संगठन के लिए जाट किसान का आयोजन किया। किसान पंचायत के बढ़ते हुए संगठन और आंदोलन से जयपुर सरकार घबरा उठी और उसने चारों ओर दमन आरंभ कर दिया। ठिकानेदारों ने संगठित रूप से किसानों को दबाने की चेष्टाएं आरंभ कर दी। डुंडलोद ठिकाने के कामदार ईश्वरी सिंह ने सशस्त्र बल के साथ जयसिंहपुरा के किसानों पर खेत जोतते हुए ऊपर हमला किया जिसमें चौधरी टीकुरामजी शहीद हुए और कई स्त्री-पुरुष जख्मी हुए।

सरदार हरलाल सिंह जी ने इस केस को पंचायत के हाथ में लिया और ईश्वर सिंह को सजा दिलाने के लिए मैदान में कूद पड़े। ठिकाने की तरफ से लोभ भी दिया गया किंतु आप ने उसे ठुकरा दिया। ईश्वर सिंह को सजा हुई चाहे थोड़ी ही सही। इस घटना के बाद सरदार हरलाल सिंह शेखावाटी के सर्वोपरि नेता मान लिए गए।

सन् 1935 में खंडेलावाटी, तोरावाटी, सीकरवाटी और झुंझावाटी सब में दमन आरंभ हो गया। कूदन, खुड़ी, भूकर का गोठड़ा बर्बाद कर दिए गए। पलथाना, भैरूपुरा, हरिपुरा, कटराथल को मिटाने की कोशिश हुई। अग्नि-कांड मारपीट गोलियां लाठियां खेल हो गई। 2 वर्ष का टाइम इन इलाकों के लिए कठिनतम संकट का काल हो गया। सरदार हरलाल सिंह को दिन रात चैन नहीं रहा। रात और दिन गाड़ियों में बीतने लगे। उनके साथी मारे पिटे और जेलों में ठूँसे से जाने लगे।


[पृ.385]: इन्हीं दिनों हीरालाल शास्त्री प्रजामंडल को लेकर शेखावाटी में घुसे। सरदार हर लाल सिंह को वे अपने लिए ईश्वरीय देन समझते थे। धीरे-धीरे उन्होंने उनके दिल से जाति भक्ति को दूर करने की कोशिश की।

पहले शेखावाटी की सर्वप्रिय संस्था जाट किसान पंचायत को सिर्फ किसान पंचायत रखने की सलाह दी और आखिरकार उसे स्थगित कर देने पर तुल गए।

निरंतर लड़ने वाले सिपाही को थकावट के समय अच्छी मदद की जरूरत होती है। ठाकुर देशराज आदि जाट सभा के कार्यकर्ताओं पर प्रवेश निषेध की जयपुर भर में पाबंदी लगा दी गई थी। आखिरकार सरदार साहब ने पंडित हरिदास के हटूड़ी आश्रम में किसान सभा को दफना दिया।

इसके बाद एक और अप्रिय घटना आपके द्वारा झुंझुनू जाट बोर्डिंग हाउस का नाम बदलकर उसे विद्यार्थी भवन बना देने की हुई। इससे जो ख्याति आप को हिंदुस्तान भर के जाटों में प्राप्त थी उससे बड़ा धक्का लगा।

आपने प्रजामंडल में प्रवेश होकर जेल यात्रा की है, कष्ट सहे किंतु उतथान भी आपका खूब हुआ। इस समय आप शेखावाटी के एक ऐसे लीडर हैं कि कोई दूसरा संगठन जिसके विरोधी आप हों मुश्किल से ही पनप सकता है। आपको इस समय शेखावाटी का लीडर ही नहीं ‘लीडर मेकर’ कहा जा सकता है।

आप की पूछ इस समय जयपुर ही नहीं राजपूताने के उन तमाम व्यक्तियों में है जो प्रजामंडल से संबंधित हैं और आप राजपूताने के प्रमुख प्रजामंडल लीडरों में गिने जाते हैं। आपके पुत्र नरेंद्र सिंह और और फतेह सिंह जी होनहार


[पृ.386]: बच्चे हैं और तालीम पा रहे हैं। आप की पुत्रियां बनस्थली विद्यापीठ में पढ़ती हैं। बड़ी पुत्री श्रीदेवी वही की स्नातिका है। वह चाहे जिस ख्याल के हो किंतु वह अपने इरादों के मजबूत और महत्वकांक्षाओं के अद्भुत व्यक्ति हैं। इस समय आप ने जो स्थान बना लिया है वह आपकी तीव्र बुद्धि का ही फल है।

कुंवर नेतरामसिंहजी

5. कुंवर नेतरामसिंहजी -[पृ.386]: पटियाला राज्य की सरहद पर शेखावाटी का प्रसिद्ध गांव है गोरीर। यहीं मान गोत्र के जाटों ने अब से 800 से 900 वर्ष पहले अपनी-2 अधिष्ठात्री देवी गोरी के नाम पर जो गांव बसाया वही आज तक गोरीर के नाम से मशहूर है। मान जाटों की जब स्वतंत्रता नष्ट हो गई और शेखावतों का आगमन हुआ तब भी गौरीर के मान जाटों ने अपने स्वाभिमान को कायम रखा। चौधरी जीतराम जी इनही मान जाटों के विक्रमी बीसवीं शताब्दी के प्रतिनिधि थे। उनके सात पुत्र हुए- 1 तारा सिंह, 2 नेतराम सिंह, 3 बुधराम, 4 मनीराम, 5 नारायण सिंह 6 इंदराज और 7 हीरालाल

यहां हमें कुंवर नेतराम सिंह जी के लोकोपकारी जीवन पर प्रकाश डालना है क्योंकि न केवल आपसे इस इलाके के मान जाटों का ही सिर ऊंचा हुआ है अपितु समस्त किसानों को आप पर अभिमान है। आप शेखावाटी के सर्वोपरि तपस्वी नेता हैं। आप की इमानदारी और नेक नीयत पर कोई संदेह नहीं करता।


[पृ.387]: आपका जन्म संवत 1947 विक्रम (1890 ई.) भादो में हुआ था। अंग्रेजी के नवी क्लास से आप ने पढ़ाई छोड़ दी।

आपकी व्यवसाय में रूचि है। इसलिए आपने कासगंज, डिढवारा गंज, डकाडा, खानीवाल, और नारनौल में दुकानें खोली। किंतु इस काम में आप को प्रसंशनीय सफलता नहीं मिली। वैसे तो आपने बहुत कमाया और गमाया।

देवरोड के चौधरी जालूराम जी के यहां आप का नाता रिश्ता होने के कारण कुंवर पन्ने सिंह जी के साथ मिलने जुलने से आपके जीवन का परिवार कौम की सेवा की ओर हुआ। सन 1931 में आपने कुंवर पन्ने सिंह, ठाकुर रामसिंह कुंवरपुरा और चौधरी लादूराम किसारी के साथ मिलकर अखिल भारतीय जाट महासभा को उसका सालाना जलसा झुंझुनू में करने के लिए निमंत्रण दिया।

1931 से 1934 तक शेखावाटी, सीकरवाटी, और खंडेलावाटी में ठाकुर देशराज देवताओं की तरह पूजे जाते थे। क्योंकि उन्होंने इस प्रांत को जगाने के लिए दिन रात एक किए हुए थे। इन इलाकों के जाट उस समय देशराज जी को अपने लिए ईश्वर का भेजा हुआ दूत समझते थे। उनके दर्शनों के लिए स्त्री पुरुषों की भीड़ लग जाती थी। सन् 1932 तक इस इलाके में ठाकुर देशराज जी के तीन अनन्य साथी थे, कुँवर पन्ने सिंह, सरदार हरलाल सिंह और चौधरी लादूराम रानीगंज। सन् 1933 के आरंभ में जबकि सीकर में कुछ कर गुजरने की योजना ठाकुर देशराज बना रहे थे तभी कुंवर पन्नेसिंह जी का निमोनिया से देहांत हो गया। देवरोड में जाकर ठाकुर देशराज पछाड़ खाकर गिर पड़े। तब उनको धीरज बंधाते हुए कुंवर नेतराम सिंह जी और कुंवर भूर सिंह


[पृ.388]: जी ने परमात्मा को साक्षी करके जाट कौम की सेवा करने का व्रत लिया था। तबसे कुंवर नेतराम सिंह जी बराबर सार्वजनिक जीवन की चक्की में पिसते आ रहे हैं। सिवाय इस बात के लोग यह कहे की कुंवर नेतराम सिंह जी की सीमाएं अनुपम हैं उनके हाथ लीडरी, धन और श्रेय कुछ भी नहीं लगा है।

अब तक तीन बार जेल जा चुके हैं। सन् 1935 में किसान आंदोलन के संबंध में आपको नजरबंद किया गया 1938 में सेठ जमुनालाल द्वारा छोड़े गए सत्याग्रह के प्रमुख कार्यकर्ता की हैसियत से जेल के सीकचोन में रहे। सन 1941 में भारत रक्षा कानून में पकड़े गए। सजाएं आपने लंबी काटी हैं। शेखावाटी जाट पंचायत, किसान पंचायत और प्रजामंडल के आप प्राण रहे हैं। जाट बोर्डिंग हाउस की आपने आनरेरी सेवा की है।

आप की धर्मपत्नी बख्तावरी देवी बीकानेर राज्य के चांदगोठी के चौधरी लोकराम की सुपुत्री हैं। वह एक साहसी और पति भक्त महिला हैं। आपके 8 संतान हैं जिनमें 5 लड़के और 3 लड़कियां हैं। जिनके नाम 1. बंसीधर जिन्होंने ला पास किया है, 2. बीरबल सिंह 3. रामचंद्र सिंह 4. अमर सिंह 5. ईश्वर सिंह पुत्री 1. शीतल कुमारी घरडाना के कुंवर मोहर सिंह जी को ब्याही गई है जो मेस्मेरिज्म साहित्य के अच्छे ज्ञाता है। 2. कमला देवी बनस्थली विद्यापीठ की स्नातक है। 3. शांति देवी झुंझुनू में शिक्षा पा रही हैं।

आपके परिचय से सभी शिक्षित हैं राष्ट्रवादी हैं और संभव है विश्ववादी ख्याल के बन जवेन। किंतु कुंवर नेतराम सिंह


[पृ.389]: अपनी सेवाओं के कारण इलाके के जाटों में सम्माननीय समझे जाते हैं। आपने अपनी आंखों स्वराज्य देख लिया है। अब रियासत में उत्तरदाई शासन भी देख लेंगे। आपकी जीवन की साध जो पिछले 7 साल से उत्कृष्ट भी पूरी हो जाएगी किंतु इस परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि वह देश भर में किसान राज्य देखने तक जीवित रहे।

6. चौधरी घासीरामजी

चौधरी घासीरामजी

6. चौधरी घासीरामजी - [पृ.389]: शेखावाटी के स्वाभिमानी और लौह पुरुष चौधरी घासीराम जी खारिया वालों को जिन्होंने की अपना स्वतंत्र बास आबाद कर लिया है और चार घर के बास में एक अद्भुत शिक्षा संस्था खड़ी कर दी है। शेखावाटी का बच्चा-बच्चा जानता है।

फौज़दार चेतराम चाहर के घर संवत 1960 (1903 ई.) में वैशाख की अक्षय तीज को आपका जन्म हुआ था। पास में कोई शिक्षा संस्था न होने के कारण आपको जो कष्ट अपने को शिक्षित बनाने में उठाने पड़े उन्हीं का अनुभव करके आपने इस शिक्षा संस्था को जन्म दिया। जो जयपुर राज्य की आदर्श और उच्च कोटि की शिक्षा संस्था बनने का शीघ्र सम्मान प्राप्त करने वाली है।

जयपुर में संवत 1977 (1920 ई.) में किसान आंदोलन शेखावाटी के गांवो में आरंभ हुआ था। उसमें आपने काम करके अपने को जनता के सम्मुख पेश किया।

जिन दिनों ब्रिटिश भारत में असहयोग आंदोलन चलना


[पृ.390]: आरंभ हो रहा था आप हिसार जाकर गिरफ्तार हुए किंतु तीसरे दिन छोड़ दिए गए।

चौधरी रामसिंह जी कवरपुरा वालों के साथ आपने वैदिक संस्कार से यज्ञोपवीत कराया। तभी से आर्य समाज से आपको प्रेम हो गया। सन 1932 में जब झुंझुनू जाट महोत्सव की तैयारियां हुई तो आपने बीकानेर तक जाकर महोत्सव के लिए धन संग्रह किया। सीकर जाट महायज्ञ को सफल बनाने भी जी आपने पूरा सहयोग किया।

शेखावाटी मैं जो किसान जागृति हुई है उसमें आपका प्रमुख हिस्सा है। आपने सत्याग्रह में जितना परिश्रम किया शायद किसी दूसरे लीडर ने नहीं किया होगा। जाट बोर्डिंग हाउस झुंझुनू को उन्नत बनाने में आप ने दिन रात एक कर दिए थे किंतु जब उसका नाम बदलकर विद्यार्थी भवन किया गया तो आपको अत्यंत दुख हुआ।

जब हीरालाल जी शास्त्री ने सरदार हरलालसिंह पर हाथ फेरा और दिमाग चढ़ गए तब सारे शेखावाटी में अकेले चौधरी घासीराम हैं जिन्होंने सर्वप्रथम अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व का परिचय दिया।

अकेला आदमी भी कितना काम कर सकता है और अपनी सच्चाई से कितना लोकप्रिय हो सकता है इसके दो सबूत चौधरी घासी राम जी से मिलते हैं। एक तो उनका जयपुर असेंबली में चुना जाना और दूसरे बास घासीराम का उन्नत शिक्षा सदन जहां से जीवन की ज्योति चारों और को फैल रही है।

सच्चाई को महसूस कर के तमाम दबाव और लालचों को छोड़कर वे सन् 1946 में शेखावाटी में चलने वाले किसान आंदोलन में शामिल हुए और किसान के निर्माण में उन्होंने


[पृ.391]: अपने को शामिल कर दिया। कुछ महत्वकांक्षी उस से निकल गए। घबरा गए अथवा पस्त हिम्मत हो गए, किंतु वह लोग पुरुष चौधरी घासीराम जी हैं जो आज भी जयपुर किसान सभा के पैरोकार हैं।

सुनते हैं उनका शिक्षा सदन दिनोंदिन उन्नति करता जा रहा है। हालांकि पिछले षड्यंत्रकारियों ने उसमें आग लगा दी थी उसे नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। विघ्न बाधाएं साहसी पुरुषों को बल देती हैं और हीनवीर्य लोगों को धक्का देती हैं। चौधरी घासीराम जी ने उस बढ़ा से भी लाभ उठाया और फिर दूने साहस से और परिश्रम से शिक्षा सदन की प्रगति और रिद्धि दोनों को बढ़ा दिया।

स्वतंत्र विचार अटूट साहब और कार्य में दिन रात ही चिपके रहना आप की विशेषताएं हैं।

कुंवर भूरसिंह

7. कुंवर भूरसिंह - [पृ.391]: चौधरी जालूराम जी का जन्म नरहड़ कस्बे में संवत 1920 में हुआ था। देवरोड़ में उनकी ननसाल थी। पिता 2 साल के बाद मर चुके थे इसलिए उनकी मां देवरोड में आ गई। संवत 1940 में मां तीर्थाटन के चली गई। गरीब बालक जालू राम ने अत्यंत परिश्रम से अपनी आर्थिक दशा को संभाला। कुछ गुंजाइश हुई तो सारी कमाई को लेन-देन में लगाते रहे। वह लेन देन उन्हें इतना फला कि संतान और पैसे का घाटा न रहा। आपने अनेक तीरथों की यात्रा की और भूखे नंगो को मदद दी। काम करते-करते भी आप राम नाम का जप नहीं भूलते थे। संवत 1999 में आप का देहांत हो गया।


[पृ.392]: चौधरी जालूराम जी के चार पुत्र थे: 1. चेतराम, 2. भूर सिंह, 3. पन्ने सिंह और 4. बेगराज। चेतराम जी का देहांत चौधरी जी की तरुणावस्था में ही हो चुका था। उन्होंने हरदेव सिंह नाम के पुत्र को छोडा। पन्ने सिंह जी उनके ही आगे गुजर गए। भूर सिंह जी और बेगराज जी मौजूद हैं।

भूर सिंह जी का जन्म संवत 1950 (1894 ई.) में माघ सुदी 10 को हुआ था। आपके पिता ने अपने पुत्र को शिक्षा के लिए एक पंडित जी को नियुक्त किया था। जिससे आपने कामचलाऊ शिक्षा प्राप्त कर ली।

संवत 1965 से आपको अखबार पढ़ने का शौक लगा। तब से आप बराबर अखबार पढ़ते हैं। श्री वेंकटेश्वर समाचार, विश्वामित्र और प्रताप आपके प्रिय अखबार रहे हैं। भारत वीर, जाट वीर, जाट जगत और गणेश को भी आपने बराबर मंगाया। लोकोपयोगी साहित्य क्या आपके यहां एक छोटा सा संग्रह है।

सन् 1932 से जाट महासभा के संपर्क में आए और ठाकुर देशराज जी को शेखावाटी की दशा सुधारने के लिए आपने हार्दिक सहयोग दिया। आरंभ में दिल खोलकर कमाते थे और खूब खर्च करते। विवाह शादियों की समस्त फिजूलखर्ची आपने जाट सभा के संसर्ग में आते ही कम कर दी। झुंझुनू जाट महोत्सव से लेकर सीकर जाट महायज्ञ तक आपने तन मन धन से शेखावाटी की सेवा की। जब शेखावाटी की जाट किसान पंचायत में तब्दील हुई तब भी आप उसके साथ रहे। किंतु जब पंचायत की जगह प्रजामंडल वेली और झुंझुनू के जाट बोर्डिंग के नाम से जाट शब्द मिटा दिया गया आप अपने इलाके के साथियों से अलग हो गए और इच्छत जीवन बिताने लगे।


[पृ.393]: आप के आठ पुत्र हैं: 1 हमीर सिंह, 2 हनुमान सिंह, 3 जगदेव सिंह, 4 सज्जन कुमार, 5 हुकमा सिंह, 6 शेर सिंह, 7 फतेह सिंह, 8 दलीप सिंह।

हांसलसर के चौधरी हरजीराम जी की सुपुत्री बींज कुमारी आपकी धर्मपत्नी है। कुँवर भूरसिंह जी की बुद्धि तीक्ष्ण, गहरी और विचार सुलझे हुए हैं। यदि आप सही तबीयत के आदमी न होते तो और कष्ट सह लेते तो आज शेखावाटी के सर्वोपरि नेता होते।

लादूरामजी किसारी

8. श्री लादूरामजी किसारी - [पृ.393]: आप मौजा किसारी (जयपुर) के तलोटिया गोत्र के चौधरी हनुता राम के द्वितीय पुत्र रत्न है। आपके बड़े भाई का नाम गणेशरामजी है। आपकी तीसरी स्त्री से एक पुत्र है। जिसका नाम कुंवर राजेंद्र सिंह है।

शेखावाटी के उन प्रसिद्ध जाट नेताओं में से हैं जिन्होंने अपने प्रशंसनीय त्याग अविरल परिश्रम से शेखावाटी के किसानों में जागृति का संख फूँक दिया। 1925 में पुष्कर जाट महासभा अधिवेशन से लौटकर आप उस जाट कार्यकर्ता मंडली में शामिल हो गए जो शेखावाटी के पिछड़े हुए जाटों को जागृति करने का बीड़ा उठा चुकी थी।

1932 में झुंझुनू जाट सभा के ब्रहत अधिवेशन के प्रबंध में आप का विशेष हाथ रहा और उस समय आप खजांची भी थे। शेखावाटी जाट किसान पंचायत शुरू होने से ही आप उसके आवश्यक अंग रहे। कई वर्ष तक आपने उक्त संस्था के प्रधानमंत्री पद पर बड़ी योग्यता से कार्य किया। आप की याददाश्त और तीव्र बुद्धि की साथियों पर गहरी छाया रही।


[पृ.394]: आप दो बार जेल भी गए। प्रथम बार आपको 1938 में .... पैदा करने के जुर्म में गिरफ्तार किया। परंतु 3 दिन बाद ही छोड़ दिया। दूसरी बार सन् 1939 में जयपुर राज्य प्रजामंडल द्वारा चलाए गए प्रथम सत्याग्रह में आप प्रथम दलपति बनकर जेल गए और 7 माह तक जयपुर सीखचों में बंद रहे। वही आप बीमार हो गए और वही बीमारी बढ़ते-बढ़ते इस हालत पर पहुंच चुकी कि आप चलने फिरने से भी मोहताज हो चुके है। यद्यपि आप जीवन से निराश हो चुके हैं फिर भी यहां के अत्याचारी ठिकानेदारों के जुल्मों के विरुद्ध आवाज उठाने में कोई चीज उठा नहीं रखी।

आपकी मृत्यु ने यहां के किसान कार्य को विशेष नुकसान पहुंचाया। आप जैसे निस्वार्थ कार्यकर्ता इने गिने ही पाए जाते हैं। आप बहुत ही हंसमुख और विनयशील व्यक्ति हैं। सन 1946 में आप का देहांत हो गया।

9. चौधरी लादूराम जाखड़ - [पृ.394]: माखर (शेखावाटी) के स्वर्गवासी चौधरी लादूराम जी जाखड़ उन लोगों में से थे जिनकी सेवाएं अमिट हैं। आपने दो पुत्र स्वर्गवास से पहले प्रेमसिंह और धनसिंह कौम के लिए स्मृति के रूप में छोड़े थे। वह एक सुशिक्षित व्यक्ति थे। ख्यालात उनके मंजे हुए थे। आर्थिक कठिनाइयों के कारण वह अपने प्रांत को छोड़कर अहमदाबाद की स्वदेशी मिल में चले गए थे। वहां वे स्टोर कीपर के पद पर बहुत दिनों तक काम करते रहे। जयपुर राज्य के पंडित जयराम जी के बाद वे द्वितीय जाट लेखक थे जिन्होंने अपनी लेखनी द्वारा लेख लिखकर शेखावाटी और राजपूताने


[पृ.395]: के जाटों की दशा पर ज्यादा से ज्यादा प्रकाश डाला और कौम को जगाया। सन् 1930 तक उन्होंने जो लेख जाट वीर में लिखें उनसे बाहर के जाटों को शेखावाटी के प्रति आकर्षित होना पड़ा।

झुंझुनू महोत्सव में भी कई दिन पहले आकर उन्होंने योग दिया। उन्होंने अपने पवित्र कमाई में जाट वीर और निर्धन जाट विद्यार्थियों की सहायता की, वे प्रेम की एक आकर्षित मूर्ति थे। उन्हें कौम हमेशा याद रखेगी।

10. श्री स्वामी गोपालसिंहजी - [पृ.395]: आपका जन्म गिल गोत्र में पंजाब के कीकरी (फिरोजपुर) नामक ग्राम के एक संपन्न जाट सिख घराने में हुआ था। आपके पिता स्वरूप सिंह जी के आप तीसरे पुत्र रत्न है। आपके दो बड़े भाइयों के नाम सरदार हरि सिंह व सरदार शेर सिंह है।

आप गुरुमुखी और हिंदी की अच्छी योग्यता रखते हैं। आपने युवावस्था में पदार्पण करते ही गृहत्याग दिया। आपकी देशी व्यायाम की ओर विशेष रुचि थी। इसी से आप कुछ समय के लिए बड़ौदा चले गए और वही प्रसिद्ध जुम्मा व्यायाम शाला में रहकर देसी व्यायाम के व्यायाम का अभ्यास किया तथा भारत प्रसिद्ध प्रोफेसर माणिक राव को अपना गुरु बनाया।

वहां से लौटने पर आपने राजस्थान व्यायाम शिक्षा मंडल की स्थापना की और जिसके जरिए राजस्थान ही नहीं है अपितु भारत की प्रसिद्ध शिक्षण संस्थाओं द्वारा व्यायाम का प्रचार करना आरंभ किया। आप प्रतिवर्ष अनुमानत: 10 या 12


[पृ.396]: संस्थाओं को कम से कम एक-एक माह का समय प्रदान करते हैं और संस्थाओं के छात्र तथा कार्यकर्ताओं को व्यायाम निपुण बनाते हैं। आप के व्यायाम सिखाने का ढंग भी अपूर्व ही है। आप कम से कम समय में बालकों को व्यायाम का बड़ा आश्चर्यजनक अभ्यास करा देते हैं। आपने वनस्थली विद्यापीठ, विद्यार्थी भवन झुंझुनू, दादू महाविद्यालय जयपुर, आर्य महाविद्यालय किरठल, गुरुकुल अमृतसर, चिड़ावा हाई स्कूल तथा हरिद्वार की महिला विद्यालय आदि 100 से 5 संस्थाओं को अपने सहयोग से लाभ पहुंचाया है। इन संस्थाओं से निकले कई बालकों ने आपका ही अनुसरण किया है। जिनमें निमाँना के शीतल देव वनस्थली प्रेसिडेंट प्रमुख हैं। आपने इस कार्य को जीवनपर्यंत निभाने का बेड़ा उठा रखा है। आप अपने निश्चय पर दृढ़ हैं।

11. मानसिंह जी - [पृ.396]: बनगोठडी (शेखावाटी) के चौधरी दिल सुखरामजी छतरपाल1 के घर संवत 1938 (1881 ई.) में आपका जन्म हुआ था। संवत 1960 में जबकि आयु लगभग 22 साल की थी आपको आर्य समाज का रंग लगा। उन दिनों जींद राज्य के झोझु ग्राम निवासी महाशय वीरदान जी इधर प्रचार के लिए आया करते थे। उन्हीं के सत्संग से आपके ख्यालात अग्रगामी हुए। सांगासी के महारथी चौधरी भूधाराम और चिमनाराम जी के साथ मिलकर आपने अपने प्रांत के जाट भाइयों को जगाना और उनमें आर्य समाज के खयालात पैदा करना आरंभ किया।

आपने अपने अथक परिश्रम से बगड़ में जाट पंचायत का आयोजन किया जिससे आसपास के लोगों में चेतना पैदा हुई।


नोट 1. यह गोत्र सही नहीं है। सही गोत्र धतरवाल जिसकी पुष्टि राजेंद्र कसवा से की गई है।


[पृ. 397]: सन् 1931 से आपने देवरोड के पन्ने सिंह के साथ मिलकर जाट उत्थान का कार्य आरंभ कर दिया और झुंझुनू महोत्सव को सफल बनाने में पूरी ताकत लगा दी। उत्सव के बाद जब झुंझुनू जाट बोर्डिंग की स्थापना हुई तो उस के उन्नत बनाने के लिए आपने भरपूर प्रयत्न किया।

सन् 1938 से आप प्रजामंडल में काम करते हैं। ग्राम समूह कमेटी के प्रेसिडेंट भी रहे हैं। आप एक निस्वार्थ कौम परसथ और अतिथि सेवा व्यक्ति हैं। और दत्त-चित्त होकर सार्वजनिक सेवा करते हैं।

आपके छोटे भाई का नाम चौधरी भानीराम जी है जिनके 3 लड़कों में थे रीछपाल सिंह और जयमल सिंह जी फ़ौज में और मल्ली नारायण जी घरेलू धंधों में संलग्न लगे रहते हैं।

चौधरी मानसिंह जी के खुद के एक ही लड़का है, हरिराम सिंह जी जो फौज में ऊंचे ओहदे पर हैं। चौधरी मान सिंह जी सत्याग्रह में जेल भी हो आए हैं।

12. चौधरी शिवलालजी - [पृ.397] बनगोठड़ी में चौधरी हरनारायण जी पूनिया के सुपुत्र चौधरी शिवलाल जी हैं। इनका जन्म संवत 1948 में हुआ है। आपको वैदिक साहित्य से बड़ा प्रेम है। बराबर धार्मिक पुस्तकों का स्वाध्याय करते रहते हैं। पक्के आर्य समाजी हैं। सन 1932 में झुंझनू जाट महोत्सव को सफल बनाने के लिए आपने अथक काम किया था। सन 1939 से आप प्रजा मंडल में काम करते हैं। ग्राम समूह कमेटी के मंत्री पद का भी आपने काम किया है।


[पृ.398]: आप सुलझे हुए विचारों के आदमी हैं और पार्टी पॉलिटिक्स के झगड़ों से दूर रहते हैं। आपके दो लड़कों में से बड़े डालूरामजी फौज में हैं। आप और मानसिंह जी के साथियों में एक चौधरी प्रेमसिंह जी भी है जब भालोटिया गोत्र के चौधरी सुखराम जी के पुत्र हैं। आपका जन्म आज से लगभग 57-58 वर्ष पूर्व हुआ था। आप सच्चे आर्य समाजी और लोक सेवी व्यक्ति हैं।

13. चौधरी सरदारारामजी - [पृ.398]: बनगोठड़ी के जाट सरदारों में चौधरी रामकरण जी पूनिया के सुपुत्र चौधरी सरदाराराम जी एक गणमान्य व्यक्ति हैं। आपका जन्म संवत 1936 में हुआ था।

आपको कौमी सेवा का रंग पुष्कर जाट महोत्सव से लगा था। यह महोत्सव भरतपुर के स्वर्गवासी महाराजा श्री कृष्ण जी के सभापतित्व में सन् 1925 में बड़ी धूमधाम से हुआ था। उसी समय से आप चौधरी मान सिंह जी के साथ बड़े प्रेम से जाती देश और समाज की सेवा करने चले आ रहे हैं। जिन कामों में आप प्रत्यक्ष हिस्सा अवकाश नहीं मिलने के कारण नहीं ले पाते थे उनमें अप्रत्यक्ष सहायता सदैव देते रहे। झुंझुनू जाट महोत्सव को सफल बनाने के लिए आप पीछे नहीं रहे। इस समय आप प्रजामंडल के कामों में हिस्सा लेते हैं और किसान प्रगतियों में भी चौधरी मान सिंह जी की भांति ही सहयोग देते हैं। आप के चार पुत्र हैं: 1. गिरधारी राम जी जो प्रजामंडल के काम में पूरी दिलचस्पी लेते हैं।


[पृ.399]: 2. टेकचंद और 3. नानू राम जी खेती का काम करते हैं। 4. रघुवीर सिंह जी खेतड़ी की पुलिस में इंस्पेक्टर हैं और बड़े योग्य हैं।

14. मास्टर लालसिंह - [पृ.399]: बनगोठड़ी एक प्रकार से लोक सेवकों का गांव है। जिसमें मास्टर लाल सिंह जी भी एक हैं। आप लांबा गोत्र के चौधरी नूंदाराम जी के लड़के हैं। मास्टर जी ने पिलानी में तालीम प्राप्त की थी।

आप एक जोशीले नौजवान हैं। पहले फौज में चले गए फिर वहां से वापस आने पर प्रजामंडल के कामों में हिस्सा लेने लगे।

जीविकोपार्जन के लिए आप अध्यापन का पवित्र काम करते हैं और इस अपने ही गांव में अध्यापक हैं। इसी गांव में एक हमारे वफादार कौमी सिपाही चौधरी धर्मवीर सिंह हैं जो धनखड़ गोत्र के चौधरी नाहर सिंह जी के सुपुत्र हैं। आपने चौधरी मान सिंह जी के साथ में सदैव से कार्य किया है। उन्ही से आपने यज्ञोपवीत भी लिया था।

15. भाल सिंह - [पृ.399]: गाडोली के चौधरी शिवकरण जी जाखड़ के सुपुत्र चौधरी भालसिंह जी का आज से लगभग 50 साल पहले जन्म हुआ था। आप जाट महासभा झुञ्झुणु महोत्सव के समय से ही कौम, समाज और देश का काम करते हैं। आप एक स्वयंसेवल वृत्ति के आदमी हैं। आपके बड़े लड़के सोहन


[पृ.400]: लालजी हैं जो व्यापार का काम करते हैं।

16. जमादार चंद्रारामजी - [पृ.400]: बनगोठड़ी के पास ही शेखावाटी में एक काजी नाम का गांव है। यही के चौधरी हरजीराम जी पूनिया के सुपुत्र जमादार चंद्रा रामजी है। आपका जन्म संवत 1940 (1883 ई.) में हुआ था। आप सन् 1914 के महा युद्ध में फौज में भर्ती हो गए। लड़ाई में अच्छे काम करने के कारण जल्दी आप तरक्की करते गए और सिपाही से जमादार हो गए। फौज में ही आपको आर्य समाजी ख्यालात से प्रेम उत्पन्न हुआ। लड़ाई के समाप्त होने पर आप पेंशन ले आए।

झुंझुनू जाट महोत्सव के समय से आपको कौम की तरकी का शौक लगा। तब से बराबर कौम की भलाई के कामों में दिलचस्पी लेते हैं। जबसे प्रजामंडल का शेखावाटी में आरंभ हुआ है तब से आप उधर ही सहयोग देते हैं। आपके एक पुत्र हैं जो पढ़ते हैं। आप सैनिक आदमी होने के नाते इरादों के मजबूत और ह्रदय के भले व्यक्ति हैं।

17. चौधरी बख्तारामजी - [पृ.400]: काजी गांव के एक दूसरे सार्वजनिक चौधरी बख्ताराम जी हैं। जो चौधरी सुखराम जी पूनिया के सुपुत्र है। आपका जन्म संवत 1965 (1908 ई.) में हुआ था झुंझुनू जाट महोत्सव के समय से ही आप कौमी समाजी और मूल की सेवाओं में हिस्सा लेते हैं। आप ग्राम समूह कमेटी के उपमंत्री भी रहे हैं।


[पृ.401]: आप दो भाई हैं। छोटे भाई का नाम चौधरी रणजीत सिंह है। आपके दो पुत्र हैं जो खेती-बाड़ी में दिलचस्पी से काम करते हैं।

18. श्री चौधरी विद्याधरजी एडवोकेट झुंझुनू

चौधरी विद्याधरजी

18. श्री चौधरी विद्याधरजी एडवोकेट झुंझुनू - [पृ.401]: आपका जन्म प्रसिद्ध जाट नेता चौधरी चिमनाराम जी के घर आज से लगभग 30 साल पहले हुआ। आप शेखावाटी प्रांत के जाट युवकों में सबसे पहले वकील हैं। आप प्रारंभ से ही यहां के जाटों के कानूनी सलाहकार हैं। राज्याधिकारियों से सदा किसान हकों के लिए लड़ते रहते हैं।

गत प्रजामंडल आंदोलन में भी आपने अपनी प्रेक्टिस छोड़कर सत्याग्रह में भाग लिया। अब पुन: 14 जून 1945 के जयपुर राज्य में किसानों के हकों को आघात पहुंचाने वाले ऑर्डर के खिलाफ लड़ने के लिए जो कमेटी बनाई गई उसके आप ही संयोजक बनाए गए। गत दिसंबर में बिबासर गांव में किसानों के एक सभा में भाषण देने को लगान बंदी बतला कर जयपुर सरकार ने तारीख 21 फरवरी 1946 को आप को गिरफ्तार कर लिया और तारीख 22 अप्रैल 1946 को जयपुर सरकार का सम्मानपूर्ण समझौता हो जाने पर आपको विमुक्त कर दिया गया। आप बड़े उत्साही युवक और ऊंचे दर्जे के कानून विशेषज्ञ हैं। आजकल आप शेखावाटी के केंद्र झुंझुनू में प्रैक्टिस करते हैं।

सन 1946 में प्रजामंडल की ढुलमुल नीति को देखकर आपने किसान सभा में अपने को शामिल कर लिया और थोड़े ही दिनों में किसानों में इतने लोकप्रिय हुए कि जयपुर राज्य किसान सभा के प्रधान बना दिए गए।


[पृ.402]: शिक्षा सदन घासीराम ने आपका स्वागत अपने वार्षिक अधिवेशन का प्रेसिडेंट बनाकर किया और जयपुर की सरकार आप के स्वतंत्र व्यक्तित्व से परिचित परिचित होती जा रही थी।

आप बुद्धिवादी समाजवादी हैं ईश्वर ने आपको दिमाग दिया है जिससे गहराई के साथ सोचते हैं किंतु सीना चौड़ा नहीं है। इसी से अकेला होकर चलने का साहब आप नहीं करते।

आप का त्याग है परिश्रम भी है किंतु जब देखा जाता है, लोग आपको धोखा देने की ही कोशिश करते हैं। जब आप अपने शत्रु और मित्र को सही रूप से पहचान लेंगे तो शेखावाटी के सर्वोपरि नेता होंगे।

19. चौधरी शिवनारायणसिंहजी - [पृ.402]: तमाम कूट वृतियों से रहित और निष्कपट स्वभाव के एक नौजवान चौधरी शिवनारायण सिंह जी वकील से मेरा घनिष्ट परिचय आगरा में हुआ। इस से भी पहले मैं उन्हें जानता था। आप संस्कारी व्यक्ति हैं। छोटी उम्र से ही आपके संस्कार अच्छे हैं। एक रास्ता चलना पसंद करते हैं।

पढ़ाई के दिनों जिंदादिल अंग्रेज एफ़एस यंग से भी आप को सहायता मिली। यह भी आपके पुनातन संस्कारों का ही फल था। बीएएलएलबी करने के बाद आपने कुछ दिन आगरा जिला नायब तहसीलदार की किंतु आप का मन अपनी जन्म भूमि की सेवा की ओर था। इसलिए झुंझुनू वापस चले गए और यहां पर वकालत आरंभ की


[पृ.403]: आपका जन्म सन 1917 की 7 वीं सितंबर को झारोड़ा गांव के चौधरी मंगल सिंह जी के घर हुआ। छोटी अवस्था में ही आप पढ़ने बैठ गए इसलिए सन 1938 में आपने जयपुर के महाराजा कालेज से बीए पास कर लिया। इसके 2 वर्ष बाद सन 1940 में आपने LLB पास कर लिया।

जिस समय आप आगरा नायब तहसीलदार थे उसी समय आगरा जिला के नवयुवक जाट लीडर श्री किशन सिंह जी नरेश मालिक रॉयल होटल आगरा की भतीजी सुशीला देवी के साथ आपकी शादी हो गई। सुशीला देवी जी ने कन्या गुरुकुल हरिद्वार में शिक्षा पाई है। पर्दा प्रथा की विरोधी ऊंचे विचारों की महिला है। उनसे जो प्रथम संतान हुई वह बच्ची प्रतिमा है।

चौधरी शिव नारायण जी के चार भाई हैं: 1. तारा सिंह, 2. बनवारी सिंह, 3. शेर सिंह और 4. धर्म सिंह उनके नाम है। शेर सिंह जी अध्यापकी करते हैं और बाकी के भाई कृषि कार्य करते हैं।

सन 1945 में जयपुर में अखिल भारतीय जाट महासभा का जो उत्सव बलदेव सिंह जी के सभापतित्व में हुआ उसके आप स्वागत मंत्री चुने गए थे। उस उत्सव को सफल बनाने में आप ने रात दिन एक कर दिए थे। तभी से आप जयपुर प्रादेशिक जाट सभा के मंत्री हैं। आप पक्के और सही कदम रखने वाले जाट हैं। और डांवाडोल न होना आपका स्वभाव है। समय आने पर आप और से चमकेंगे।


20. चौधरी जयदेवसिंहजी - [पृ.404]: शेखावाटी प्रांतीय जाट जीवन आंदोलन के कर्णधार चौधरी चिमनाराम कुलहरी के भाई भूदाराम जी को वहां का बच्चा-बच्चा जानता है। उन्हीं के छोटे भाई चौधरी गुमानाराम जी के सुपुत्र गोपालसिंह के वीरपुत्र का नाम जयदेवसिंह है। आपसे छोटे भाई रामनिवास हैं।

जयदेव सिंह एक स्वतंत्र व्यक्तित्व के नौजवान हैं। वह इस सिद्धांत के आदमी हैं कि “अगर साथी न मिले तो अकेला ही चल” । शेखावाटी में जो स्वतंत्र रुप से सन 1946 से नया किसान संगठन आरंभ हुआ है उसके आप एक प्रमुख कर्णधार हैं। जब सुलझे हुए और वर्षों के कार्यकर्ता इस शिशु किसान संगठन का हाथ छोड़ कर और परिस्थिति का बहाना करके छोड़ बैठे हैं, जयदेव सिंह उसके प्रति ममता लिए हृदय से उसे पालने पोसने में लगे हुए हैं। आपकी उम्र इस समय 28-29 साल के लगभग है।

सांगाती में जो प्रथम शेखावाटी अधिवेशन हुआ था उसके आप स्वागत मंत्री थे। दफा 144 का उल्लंघन करने पर आप को गिरफ्तार भी होना पड़ा है। आपके चाचा चौधरी मुकुंद राम जी सुपुत्र चौधरी भूदाराम जी भी आपको किसान हितों के कार्य में पूरा सहयोग देते हैं।

21. चौधरी हरलालसिंहजी - [पृ.404]: सांगासी के पड़ोस में मांडासी एक गांव है। वही के चौधरी आसाराम जी के घर में आज से 46 वर्ष पूर्व चौधरी लाल सिंह ने जन्म लिया था। आप बोलते कम हैं और काम


[पृ.405]: ज्यादा करते हैं। सरदार हरलाल सिंह जी के अनन्य साथियों में आपका पहला स्थान है। आपने आरंभ में जाट सभा और जाट पंचायत का काम बड़े परिश्रम से किया। फिर आप प्रजामंडल में शामिल हो गए। जयपुर के प्रथम सत्याग्रह में आपकी माताजी (फूलां देवी) ने मुकुंदगढ़ वीरतापूर्ण सत्याग्रह आरंभ किया था और जिस में वहां की सुस्त जनता में जो जोश आरंभ हुआ था उसकी याद अमिट है। आप पुत्री शिक्षा और नारी स्वतंत्रता के बड़े प्रेमी हैं। आप की सुपुत्री सुवीरा देवी शेखावाटी की प्रथम जाट ग्रेजुएट कन्या है जिन्होंने बनस्थली विद्यापीठ में शिक्षा प्राप्त की है। आप बूरी गोत्र के जाट हैं।

22. चौधरी शिवकरणजी - [पृ.405]: आप चौधरी सुखलाल जी चाहर के सुपुत्र हैं। शेखावाटी में पिलानी से 4 मील के फासले पर देवरोड की ढाणी है। वही आपका गांव है। आप आरंभ में आर्य समाज के भक्त बने। आपका जन्म संवत 1964 श्रावण में हुआ था। तरुण होने पर सन 1927 में फौज में भर्ती हो गए। वहीं से आपको आर्य समाज से प्रेम हुआ। सन 1936 में अपनी नौकरी छोड़ दी और पंडित दत्तूराम जी के साथ शेखावाटी में भजनोपदेशक का कार्य करने लगे। उसके बाद जाट बोर्डिंग हाउस झुंझुनू के लिए कार्य किया। इस समय शिक्षा सदन बास घासीराम के लिए कार्य करते हैं। शेखावाटी में जिस समय प्रजा मंडल ने सत्याग्रह किया आपने जत्थे निकाले और पुलिस व ठिकाने के गुंडों द्वारा पिटाई बर्दाश्त की। आप


[पृ.406]: एक सरल चित प्रचारक और जाति भक्त पुरुष है।

23. चौधरी बूटीरामजी - [पृ.406]: आप डारा गोत्र के चौधरी कुशलाराम जी के जेष्ठ पुत्र है। आपसे छोटे आपके भाई श्री शिवनारायण सिंह, नंदलाल सिंह तथा दत्तूराम हैं। आपकी एकमात्र कन्या का नाम इंद्र देवी है। गत वर्ष आपकी पत्नी का देहांत हो गया। यद्यपि आपके रिश्तेदारों ने दूसरी शादी करने के लिए विशेष आग्रह किया परंतु आपने कहा “मुझे सिर्फ जीवन सार्वजनिक कार्य में लगाना है” कहकर दूसरी शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। आप बाल्यावस्था से ही सार्वजनिक कार्य में भाग लेने लगे थे। जाट पंचायत के आप एक बहुत जिम्मेदार कार्यकर्ता रहे। पंचायत हस्तगत होने के बाद से अभी तक आप प्रजामंडल के अंधभक्त रहे। सन् 1939 के जयपुर सत्याग्रह के समय आप खास व्यक्तियों में से थे जिन्हें प्रजामंडल की युद्ध समिति ने अपने रिजर्व फोर्स में रख छोड़ा था। उस समय भी आपने अविरल दौड़ धूप से सत्याग्रही भेजकर सत्याग्रह को सफल बनाया। आप शेखावाटी जिला कमेटी के सदस्य रहते आए हैं।

शेखावाटी के किसानों की संस्था विद्यार्थी भवन की भी आप सदा सेवा करते रहे और उसकी कार्यकारिणी के भी सदस्य हैं। आजकल अपने गांव किशोरपुरा में भी आप मिडिल स्कूल चला रहे हैं। जिसके प्रधानाध्यापक का पद आपके लघु भ्राता श्री नंदलालसिंह बड़ी योग्यता पूर्वक संभाले हुए हैं। आप गत वर्षो से कुछ बीमार रहते हैं फिर भी सन 1945 व 1946 के किसान आंदोलन के प्रथम सत्याग्रही होने का गौरव


[पृ.407]: आपही को प्राप्त हुआ। आप करीब 3 माह बाद से समझौता होने पर जेल से मुक्त किए गए। आप साधमना प्रकृति के व्यक्ति हैं। आप सरलता, सत्य आदि गुणों से ओतप्रोत हैं और इसी से लोग आपको बूटीराम जी के बजाय बूटीनाथ जी नाम से भी पुकारा करते हैं।

24. चौधरी थानारामजी - [पृ.407]: आप मील गोत्र के चौधरी ..... के पुत्र हैं। आप ठिकाना खेतडी के अंतर्गत मौजा भोजासर के रहने वाले हैं। आपके दो भाइयों के नाम श्री कालूराम जी तथा ..... है। आप शेखावाटी के उन पुराने जाट नेताओं में से हैं जिन्होंने अपने तन मन और धन की बाजी लगाकर शेखावाटी के निरंकुश ठिकानेदारों के अत्याचारों के विरुद्ध जबरदस्त आंदोलन खड़ा किया। स्थानीय जाट पंचायत के संगठन के आप प्रमुख व्यक्तियों में से थे और पंचायत द्वारा किसानों को संगठित करने का जो भी कदम उठाया गया उसमें आपका कार्य सदा प्रशंसनीय रहा। पंचायत स्थगित हो जाने के बाद आपका भी अन्य साथियों की तरह प्रजा मंडल में शामिल हो जाना स्वाभाविक ही था अतः आपने प्रजामंडल में रहते हुए शेखावाटी में किसानों में चिरस्मरणीय कार्य किया।


1939 ई. में प्रजामंडल द्वारा चलाए गए सत्याग्रह के समय आपका कार्य अत्यंत साहसपूर्ण था। उस समय आप झुंझुनू में स्थापित सत्याग्रह कैंप के प्रधान थे। आपको कितनी ही बार निर्दलीय कर्मचारियों द्वारा बुरी तरह से पीटा


[पृ.408]: गया और ले जाकर निर्जन स्थानों में छोड़ा गया लेकिन आपने इसकी कतई भी परवाह न कर बड़ी योग्यता पूर्वक कैंप का संचालन किया और समझौता होने तक जान लगा कर कार्य किया। आप बहुत से उत्साहपूर्ण अनुभवी व्यक्ति हैं। आप आजकल रुग्ण रहते हैं फिर भी सार्वजनिक कामों में दिलचस्पी लेते हैं।

25. तनेसिंह जी, हनुमानपुरा - [पृ.408]: आप दुलड़ वंशीय चौधरी बालकिशनजी के सुपुत्र हैं। आपके एकमात्र भाई का नाम श्री प्रेमसिंह जी था। आपके 3 पुत्र रत्न हैं: 1. कुंवर नौरंगसिंह 2. कुंवर सावंत सिंह और 3. कुंवर विजयसिंह।

आपका जन्म उसी मौजा हनुमानपुरा में हुआ था जिसे शेखावाटी जागृत करने वाले प्रोग्राम में विशेष भागीदार होने का गौरव प्राप्त है। शेखावाटी में जातीय सुधार के आरंभ होने के पहले ही दिवस से आप उसमें शामिल होकर आज तक उसी उत्साह से कार्य करते आ रहे हैं। जाट किसान सभा और तत्पश्चात जयपुर राज्य प्रजामंडल के तत्वावधान में रहते हुए आप अपना समस्त समय लगा कर बहुत ही लग्न के साथ कार्य कर रहे हैं। सन् 1934 के प्रजामंडल द्वारा चलाए गए आंदोलन में आप ने रात दिन एक करके कार्य किया। युद्ध समिति द्वारा दिए गए आदेश का पालन करने वाले आप ही तीन-चार व्यक्ति ऐसे बचे जो किसी प्रकार राज्य की कटु दृष्टि से अपने आपको बचाव कर शेखावाटी से अधिकाधिक सत्याग्रही भेज कर सत्याग्रह को सफल बनाया।


[पृ.409]: आजकल आप स्थानीय जाटों की एक मात्र संस्था विद्यार्थी भवन में कार्य करते हैं। आपके सुपुत्र कुंवर सावंत सिंह b.a. में पढ़ रहे थे किंतु खेद है कि उनकी मृत्यु हो गई।

26. श्री पहलवान कुर्ड़ारामजी - [p.409]: आप बलौदा गोत्रीय चौधरी चतरूराम जी के सुपुत्र हैं। आपके दो छोटे भाई श्री मानारामफूलसिंह हैं। आप के एकमात्र सुपुत्र धनसिंह है। झाडोदा सिंघानावाटी के रहने वाले हैं।

आप अपने इलाके के उन इने-गिने साहसी व्यक्तियों में से हैं जो विकट से विकट परिस्थितियों में भी घबराकर साहसहीन नहीं हो सके। यद्यपि आप अहिंसा के अटूट और अंधभक्त नहीं हैं फिर भी आपका कार्य सदा स्थानीय प्रजामंडल की सत्य और अहिंसा की नीति के अनुकूल ही रहा है। जयपुर में किसान जाट पंचायत की स्थापना के समय से ही उसके साथ रहे और आदेशानुसार कार्य करते रहे हैं।

पंचायत स्थगित हो जाने के समय से ही आप जयपुर राज्य प्रजामंडल के तत्वावधान में कार्य कर रहे हैं। सन् 1939 में प्रजामंडल द्वारा चलाए गए आंदोलन को सफल बनाने के लिए आपने बड़ी दौड़-धूप की है। गत कई वर्षों से आप जयपुर राज्य प्रजामंडल की शेखावाटी जिला कमेटी कार्यकारिणी के सदस्य हैं और प्रजा मंडल के हरेक आदेश को पूर्णतया पालन करते आ रहे हैं।


27. चौधरी खेतराम - [पृ.410]: शेखावाटी में नरहड़ नवाबी शासन में एक प्रसिद्ध कस्बा रहा है। उसी नरहड़ में संवत 1958 (1901 ई.) को चौधरी रामदयाल जी गोत्र जयहोत्रा के यहां आपका जन्म हुआ। बाल्यकाल में साधारण सी शिक्षा आपने प्राप्त की।

जब आप 20 वर्ष के थे सन् 1919 में फौज में भर्ती हो गए। चीन की राजधानी हांगकांग की रक्षा के लिए जो फौजी टुकड़ियां भारत से चीन गई थी वहाँ सन् 1925 में आप हवलदार हो गए। हांगकांग में आप सन 1922 से 1925 तक 3 साल 2 माह तक रहे।

सन् 1928 के मई महीने में मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर आप डिस्चार्ज हो गए। आप स्वाभिमानी सदैव से हैं। कमांडिंग के अनुचित व्यवहार के कारण उसके साथ आप का झगड़ा हो गया। इसलिए पेंशन के आपके हक जप्त कर लिए गए।

सन् 1925 में जिन दिनों पुष्कर में ऑल इंडिया जाट महासभा का जलसा हो रहा था उन्हीं दिनों आपकी फौज नसीराबाद में आ चुकी थी। आप जलसे में शरीक हुए। तभी से ही कौमी सेवा की भावनाएं आपके अंदर जाग उठी।

सन् 1931 से आपने कुंवर पन्ने सिंह के साथ जातीय सेवा का काम आरंभ कर दिया। तबसे बराबर जाट बोर्डिंग हाउस झुंझुनू, सीकर महयज्ञ और शेखावाटी किसान पंचायत में काम करते रहे।

प्रजामंडल में सन 1939 से काम कर रहे हैं। आप चार भाई हैं: बड़े पातीराम जी, मजले बूझनराम जी और


[पृ 411]: चौथे सूरजमल जी। लड़के आपके तीन हैं: 1. किशन सिंह 2. सरदार सिंह और 3. हरी सिंह।

हवलदार खेतराम जी उन आदमियों में से हैं जो अपने नेता को खुद की कुर्बानी करके भी ऊंचा उठाते हैं। और श्रेय तथा अर्थ दोनों से जीवन भर वंचित रहे हैं।

खेतराम जी की सेवायें ही अमूल्य है। न वह कभी अखबारों की पीठ पर आने के शौकीन हैं न तारीफ सुनने के अभिलाषी। उनसे मेहनती और कर्मठ आदमी बहुत ही कम किसी इलाके में होते हैं।

वे प्रजामंडललिस्ट होते हुए भी कौम की अधोगति से सदैव चिंतित रहते हैं और एक लोक सेवक अपनी कौम को भी जिस भांति ऊंचा करने की कोशिश कर सकता है उस तरह वह भी करने को उत्सुक रहते हैं।

28. चौधरी ख्यालीराम - [पृ.411]: ख्यालीराम जी मोहनपुर आज का मोहनपुर और पहले का भामरवासी शेखावाटी में सदा ही उन्नत काल में रहा है। शेखावाटी के हर यज्ञ में भामरवासी ने उचित आहुति दी होती है। इसी गांव में चौधरी सेवाराम के यहां हमारे सूत्रधार का जन्म मिति पोस सुदी 13 संवत 18721 रविवार के दिन हुआ था। जन्म का नाम तो माता पिता ने कुछ और ही निकलवाया था पर खेल में अधिक रुचि रखने के कारण लाड प्यार में ख्यालीराम नाम डाल दिया। आपकी जाति गोत्र यादव था जो फिर बिगड़ते बिगड़ते जादू2 हो गया है। आपके पिता का देहांत 25 वर्ष की अवस्था में कार्तिक बदी 7 संवत 1875 के 10 बजे जब कि आप 3 साल की अवस्था में थे


नोट 1. यह तिथि गलत है। सही तिथि .... है। नोट 2 यह गोत्र जादू नहीं है जानू है। इन तथ्यों की पुष्टि राजेन्द्र कसवा से की गई है। Laxman Burdak (talk)


[पृ.412]: हो गया था। बचपन में ही जिम्मेदारी और माता पिता का इकलौता बालक होने के कारण खेलकूद में ही सदा दिलचस्पी रही है। बचपन के लक्षण आज भी जीवन में दृष्टिगोचर होते हैं। हां आप बचपन की जिम्मेदारी के कारण गांभीर्य कुछ ज्यादा बढ़ाया है।

जाट महासभा के झुंझुनू के जलसे पर यज्ञोपवीत भी ग्रहण किया और फिर जाति सेवा में कूद पड़े। किसान पंचायत में काम करना शुरू किया। किंतु भगवान को आप का दायरा विस्तृत करना था। बहुत जल्दी ही अंतरात्मा की प्रेरणा से प्रजामंडल के कार्य में सुचारु रुप से तन मन धन और पूरी लगन से टूट पड़े। गत जयपुर आंदोलन में सारा ग्रहस्थ सार्वजनिक लाइन में आ गया। यहां तक कि आपकी पत्नी सौ. किशोरी देवी जी ने भी जयपुर शहर में जुलूस निकालकर आंदोलन में जेल की हवा खाई थी। तब से अब तक एक कार्य और एक उद्देश्य को लेकर जीवन में आगे बढ़ रहे हैं। समाजवादी आदर्श के पक्के पुजारी अपने ध्येय की तरफ बढ़ने में पूरी निर्भीकता से काम करते जाते हैं। नमृता तो इतनी कि विरोधी भी झुक जाता है। आप का त्याग और नम्रता की छाप इन्हीं कारणों से गत जयपुर असेंबली के चुनाव में विरोधियों की ताकत सामने किसी को खड़ा करने तक की नहीं हुई और निर्विरोध असेंबली के मेंबर चुने गए, जहां पर जोश और भरपूर लगन एवं अदम्य साहस से दहाड़ते हैं। जिससे विरोधियों के भी छक्के छूट जाते हैं। मौके मौके पर उन्होंने अदम्य साहस दिखाकर पथ प्रदर्शन किया है। इस समय एक पुत्र और 2 पुत्रियां हैं। बड़े सुपुत्र का नाम कुंवर रणजीतसिंह है जिनकी


[पृ.413]: कुशाग्र बुद्धि और निर्भीकता का परिचय अभी इतने से बचपन से ही बराबर मिलता रहता है। बच्चे की इस कल्पना पर भविष्य की कल्पना की जा सकती है। भगवान से प्रार्थना है कि सफल पिता के सफल पुत्र साबित हो।

विद्यार्थी भवन झुंझुनू से पूरा संबंध रहा है। माताजी के निर्भीक सारे से ही सारा का सारा जीवन अवलंबित रहा है। आपके जीवन के सब कार्यों का सारा श्रेय उनकी माता जी का ही है। जिन्होंने बचपन से ही ऐसे ढांचे में ढाला है जिसका प्रभाव आज प्रकाश जीवन में दिख रहा है।

खयालीराम जी की उम्र इस समय करीबन 39 साल की है। ईश्वर से प्रार्थना है कि हमारे नायक चिरंजीव हो जिससे जाति एवं समाज का लाभ पहुंचता रहे।

ताराचंद्र

29. ताराचंद्र - [पृ.413]: मेरा कुटुंब जाट जाति के अंतर्गत बलऊदा गोत्र से पुकारा जाता है। लोकोक्ति है कि बादशाही जमाने में किन्ही कारणों से दिल्ली के इलाके को छोड़कर सांभर झील की तरफ आकर आबाद हो गए। यह कहां तक सही है सो तो हमारे वंश के आमालों से ही पता लग सकता है। कोई लिखित संग्रह हमारे पास नहीं है। न कोई तलाश ही किया है। हां सांभर से हमारे बुजुर्ग डाबड़ी और खुड़िया (जो शेखावाटी में छोटे-छोटे गांव हैं) होते हुए यहां आकर झाडोदा गांव झाड़ू जाट ने आबाद किया जो अब तक इसी नाम से पुकारा जाता है।

बचपन में मैं बड़ा नटखट और लड़ाकू था। हमेशा किसी


[पृ.414]: से लड़ाई दंगा करना ही मेरा काम था। मेरा दादा सूरतराम और पिता मामराजराम सदा से किसान का काम किया करते थे। यह बहुत ही सीधे-साधे और साफ मनोवृति के थे। किसी तरह का कुचलन या नशा आदि इन से कोसों दूर थे। इन्हीं के आचरणों की छाप मेरे ऊपर भी लगी। मेरी माता जी की भी लोग अब तक सचित्र स्त्रियों में मिसाल देते हैं। वह मुझे 7 साल का छोड़कर संवत 1974 की कार्तिक की प्रसिद्ध बीमारी में स्वर्ग सिधार गई। मैं पशु चराने का काम करने लग गया। इस जमाने में शिक्षा को प्रधान मानने लग गए परंतु उस समय तो जाट का पड़ना पाप माना जाता था। कहते थे कि – “पढोड़ा जाट और कुपढ़ बनिया कुनबे को मारे” ।

संवत 1982 में पुष्कर जाट महासभा का अधिवेशन हुआ। हमारे से भी लोग गए। वहां पर कुछ असर हुआ। वही स्कूल खोलना तय कर आए। कोहड़वास जो हमारे से 2 मील पूर्व है वहां स्कूल कायम हो गया। इससे पहले हमारे गांव में ही एक ब्राहमण के पास में कुछ अक्षर ज्ञान किया करता था। उसी समय हमारे गांव में कई एक आर्य भजनोपदेशक भी आ चुके थे। वह उपदेश मेरे हृदय पर भावुकता को लेते हुए अंकित हो चुके थे। मैं कोहड़वास स्कूल में जाने लगा। वहां मास्टर हेमराज सिंह जी प्रधान आर्य समाज के विचारों के जाट थे। उन्होंने मेरी भावुकता को कुछ कुछ ज्ञान में परिणित कर दिया। मेरे विचार कुछ कुछ दृढ़ हो गए। मैं पांचवी क्लास में पिलानी हाई स्कूल में भर्ती हो गया।

वहां जाट बोर्डिंग हाउस में रहता था। वहां मैंने यज्ञोपवीत धारण किया। मैंने वहां छठी क्लास पास की फेलो कुंवर शिवनारायण सिंह भी मेरे साथ ही वहां पढ़ते थे जो अब एक अच्छे वकील हैं।


[पृ.415]: मैंने पढ़ाई छोड़ दी। साथियों ने काफी समझाया मगर यह ज्ञात नहीं था कि पढ़ना कितना अच्छा है।

मेरी शादी बचपन में 13 साल की अवस्था में हो चुकी थी परंतु मेरी धर्मपत्नी मेरे स्कूल छोड़ने तक अपने पिता के घर रही थी। मैं स्कूल छोड़ कर घर आ गया था। मेरे कच्चे विचार कुछ कुछ पक रहे थे। घर पर मेरे भाई साहब के बाध्य करने पर एक बार ठिकाना खेतड़ी में थानादार होने गया। मंजूर भी हो गया परंतु घर आने पर पिताजी ने इनकार कर दिया। मेरा पिंड छूट गया। मुझे कुश्ती की चाट लगी। गांव में कई साथी कुश्ती लड़ते थे जिनमें से मुख्य पहलवान कुर्ड़ाराम हैं जो अब भी मेरे दृढ़ साथी हैं। उनका साथ भाई और भोजाई को अखरा। भाई तो खुराक देने को रजामंद हो गए परंतु भोजाई बिल्कुल खिलाफ होगई। इधर आर्यसमाजी होने के नाते देवताऊ नुक्ते (खर्च) नाच और गंदे गाने का सख्त विरोध करना शुरू कर दिया। रोज किसी से इन बातों पर लड़ना झगड़ना देवताओं की बुराई करना घर वालों को अखरने लग गया। इसी बीच में हमारे गांव के चौधरियों ने मेरे से अनाप-शनाप झूठा मलवा लिखवाना चाहा तो मैं इंकार हो गया और ठिकाने के कईघ घृणित कारनामे को देख कर मुझे उनसे पूरी घृणा हो गई।

विचारों का विरोध होने के कारण घरवालों ने मुझे संवत 1990 के जेठ में अलग कर दिया। साथ ही यह भी सोचा यह हैरान होकर अपने विचार बदल दे तो शायद फिर शामिल कर लिया जाए। मैं किसान के काम का अभी तक क ख भी नहीं सीख पाया था। साथ ही धर्मपत्नी को घर के कामकाज का कुछ भी ज्ञान नहीं था। एक बार


[पृ.416]: दोनों निराश हो गए, परंतु अपने पैरों पर खड़े हो गए घर वालों के पास जाकर कभी अपनी कमजोरी नहीं दिखलाई। विचारधारा तो सपत्नीक भी एक नहीं थी परंतु यह गुल तो आगे चलकर ही खिला था।

बस इसी साल में किसान आंदोलन की लहर लोगों के दिलों में उठ चुकी थी। संवत 1991 के बरसात के दिनों हमारे गांव में ठाकुर भोला सिंहहुकुम सिंह जी आए, किसान आंदोलन के लिए समझाया। घर घर वह गांव गांव में मीटिंग होने लगी। कोहाड़वास जैतपुर आदि आदि गांवों से कई सज्जन हमारे गांव में आए। संगठन किया, यहां छठी पास मैं ही था मुझे ही सब ने पढ़ा लिखा मानकर अगवा बनाया। मुझे किसान आंदोलन का कोई ज्ञान नहीं था। न आंदोलन कर्ताओं ने ही कोई सही रास्ता तय किया था। परंतु भावुकता की लहर बिजली की तरह दौड़ चुकी थी। लगान बंदी का प्रचार गांव में जोरों से हुआ। मेरे ऊपर मेरे ही कुटुंबी भाई भैरूराम ने, जो अब तक कौमी गद्दार बना हुआ है, अपने साथियों ठिकाना मंडावा की मदद से कई मुकदमे चलाए। काफी भय दिखलाए, घर वाले संबंधी कुटुंबी और गांव वाले घबरा गए। परंतु मैं अपने पैरों पर खड़ा ही रहा। इसी अरसे में गांव वालों ने भी कई बार कई विश्वास मुझे दिलाएं मगर वक्त आने पर गिर गए, मैं उसे धोखा नहीं कमजोरी ही मानता रहा और अब भी ऐसा ही मानता हूं। आखिर किसान मांग (बंदोबस्त) पूरी हुई। इसी सिलसिले में कई राजनीतिक चालें भी चली गई।

साथियों के सहयोग के कारण भावुकता ज्ञान में कुछ कुछ बदल गई। संवत 1996 के सर्दी के मौसम में मेरे ऊपर 'डिफेंस ऑफ इंडिया' लगाकर अचानक गिरफ्तार कर लिया। जिसमें


[पृ.417] हमारे भाई भैरु आदि ने गवाही देकर साड़े नौ साल (कंकेट साढे 3 साल) की सजा करवा दी। मैं और मेरे साथी संबंधी घबराए। घर पर एक स्त्री व 5 साल का एक बच्चा परंतु मुझे उस अखरती गुलामी व स्वतंत्रता का वजन का कुछ ज्ञान हो चुका था। साथ ही भावुकता हथियार मेरे पास था। मैं अड़ता रहा, घर को भूलसा गया। जेल का स्वागत किया, साथियों को भी भाय था कि कभी यातनाओं के भय से गिर न जाए। परंतु मैंने तो अभी तक पीछे कदम हटाना सीखा ही नहीं था। जेल अधिकारियों को भी विश्वास था कि अपने क़दमों से इसे गिराना बाएं हाथ का खेल है। परंतु उनके सब खेल फेल गए। सबसे बड़ा हथियार 18 सेर पक्का (जयपुरी) खड़े-2 पिसवाना था सो भी काम में ला चुके मगर हैरान ही रहे।

साथी घासी राम, नेतराम सिंह, पंडित ताड़केश्वर जी घबराए मगर मेरी तरफ से उनको यही यकीन दिया कि मैं इन चीजों को खुशी खुशी बर्दाश्त कर सकता हूं। आप कोई फिक्र न करें। खैर सब यातनाएं वहां रहकर ही जान सकते हैं। मगर उन अधिकारियों को आखिरी वक्त मुंह की खानी पड़ी ठीक रास्ते पर आना पड़ा। मैं समझता हूं कि इस चीज को ठीक खोलकर साथी पंडित ताड़केश्वर जी लिख सकते हैं और शायद लिखें भी।

फिर घर: संवत 1999 के भादवा में प्रजामंडल जो पीछे से किसान पंचायत स्थगित कर के शामिल संस्था कायम हुई और राज्य अधिकारियों में समझौता हुआ उसी के अनुसार मैं पौने तीन साल सख्त जेल काट कर घर आया। मुझे ऐसा लगा कि मैं नई दुनिया में आ गया हूं। यहां आकर चारों और देखा मेरे कर्तव्य को आंकना शुरू किया तो सब कहते हैं कि काम अच्छा किया देश के लिए जेल गए मगर आगे को


[पृ.418]: ऐसा मत करो। आपके घर की हालत बिगड़ जाएगी। मेरे कुटुंबीय संबंधी सब विरोध में खड़े हो गए। धर्म पत्नी ने पीछे से घर का काम अच्छी तरह सुचारु रुप से सब कठिनाइयों का सामना करते हुए दृढ़ता से चलाया, परंतु आते ही सब दुख सामने रखकर यह साफ कह दिया कि यह आपका घर है मैं इसे नहीं संभाल सकती। मैंने इन्हें सच्चरित्र और बहादुर स्त्रियों में बताते हुए कहा कि मैं आपके बिना लंगड़ा हूं चल नहीं सकता। रास्ता छुड़वाना मेरी मौत और आपके लिए बुरा है। परंतु इन पर बहुत कम असर हुआ, साथ ही यह एक विशेष गुण है कि मैं घर का ख्याल रखता हूं अपने रास्ते पर चलता हूं तो उसमें शूल होकर नहीं गिरती है। इसी प्रकार अपने साथी वह संबंधियों को भी समझाया। मैंने अपने सच्चे वह दृढ़ साथी पहलवान कुर्डाराम से भी अपना कष्ट कहा। इनके विचार भी मेरे अनुकूल ही हैं। हर काम में मेरे से आगे बढ़कर करते हैं। शारीरिक ताकत में भरपूर हैं, हिम्मत पहाड़ के समान है, सच्चे वह सच्चरित्र हैं, क्रांतिकारी विचार इनके सदा से हैं। कुटुंब में में मेरे यह चाचा है। बिना पढ़े लिखे हैं, मगर समझ व ज्ञान बहुत अच्छा है। इन्होंने भी मुझे हिम्मत बंधाई और आगे बढ़ने की राय दी है। मैंने कई बार अकेले बैठकर भी इस पर विचार किया कि मैं जन सेवा में कैसे और कितना निभा सकता हूं। क्या घर व स्त्री बच्चों को छोड़ दूं? नहीं घर का ज्यादा भार किसी नौकर पर रखूं? धर्मपत्नी इनकार। दम घुटने लगा, एक तरफ जनसेवा दूसरी और घर का भार है निर्वाह खर्च ले लूं? आत्मा नहीं चाहती फिर देखेंगे।

आखिर:- घर के काम को संभालते हुए “जनसेवा”


[पृ.419]: को मुख्य मान लिया, वक्त आने पर घर के काम को गोण मान कर छोड़ देना परंतु अपने मुख्य मार्ग से अडिग रहना ही अच्छा है। दोनों को कई तरह से तराजू में तोला तो जनसेवा भारी उतरती है।

रास्ता तय कर लिया जेल के आने पर प्रजामंडल को और से जो सेवा आई उसे जी जान से रात व दिन धूप व सर्दी की कोई परवाह न करते हुए साथियों सहित पूरी करने की कोशिश करते रहे। अभी तक प्रजामंडल की ओर से हमारी ग्राम समूह कमेटी झाडोदा की कोई शिकायत नहीं मालूम होती है। इस अरसे में जो जो सेवा की है सो तो उपरोक्त जीवन से ही आंक सकते हैं।

30. श्री चेतरामजी भामरवासी

30. श्री चेतरामजी भामरवासी - [पृ.419]: आपका जन्म भावरवासी व मोहनपुर में यादव गोत्र1 के खानदान में संवत 1948 (1891 ई.) को हुआ था। आप में जातीय लगन व सार्वजनिक भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। पहले पहल पुष्कर जाट महासभा में शेखावाटी से केसरिया पोशाक में एक दल लेकर पहुंचे थे। झुंझुनू जाट महासभा में भी आप ठाट-बाट से शामिल हुए थे। आप श्री ख्यालीराम जी के ताऊ लगते हैं। श्री ख्याली राम जी को तैयार करने में यानी निर्भीक और निडर बनाने में आपका काफी हाथ रहा है। आप अत्याचारी ठिकानेदारों से लड़ने में दोनों साथ रहते थे।

आप संवत 1988 से लेकर मृत्यु के समय 2003 तक बराबर ठिकानेदारों से लड़ते रहे। आप ने दर्जनों मुकदमे व अनेक बार मुकाबला में टक्कर ली है। आपका ही फल है कि ठिकानेदार


नोट 1. यह गोत्र जानू है। इन तथ्यों की पुष्टि राजेन्द्र कसवा से की गई है। Laxman Burdak (talk)


[पृ.420]: इस गांव की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देख सकते हैं। आपके 3 पुत्र और चार पुत्रियां हैं। बड़े लड़के का नाम शुचंद्र और उससे छोटे लड़के का नाम धन्नाराम है जो कि बिजनेस करते हैं। तीसरे लड़के का नाम सरदारसिंह है जो कि सातवीं क्लास में पढ़ता है। आपकी मृत्यु संवत 2003 (1946 ई.) में चैत्र बदी 10 को हुई थी।

एक बाहर की घटना है कि आपका ठिकानेदारों को इतना डर हो गया था कि एक एक दिन आप को जंगल में अकेला देख कर राज के साठ कर्मचारियों ने आप पर हमला बोल दिया। आप कितनी ही देर तक उनके साथ बड़ी बहादुरी से अकेले ही लड़ते रहे। लेकिन अंत में अकेले होने के कारण से आप को जमीन पर गिरा दिया और खूब मारपीट की। अंत में ठिकानेदारों ने अपने मन में मरा हुआ समझकर छोड़कर भाग गए। आपके शरीर में तलवार वह फरसे के तीन भारी घाव आए। किसी भी देखने वाले को यह विश्वास नहीं था कि आप जीवित रह जाएंगे। लेकिन आपको अभी ठिकानेदारों उसे बहुत लड़ना था इसलिए आप चिड़ावा के योग्य डॉक्टर से 6 महीने के इलाज के बाद ठीक होगे और आपने फिर से नया जीवन प्राप्त कर लिया।

31. चौधरी विसनारामजी - [पृ.420]: शेखावाटी के सोटवारा ग्राम में रणवा गोत्र के जाटों में चौधरी गुमानाराम जी के घर संवत 1961 (1904 ई.) में आपका जन्म हुआ था। आपके दो पुत्र और हैं। चौधरी पेमाराम और अर्जुन सिंह उनके नाम हैं।


[पृ.421]: झुंझुनू जाट महोत्सव के बाद ही आप अपनी प्यारी जाति के कार्यों में चिपट गए। जब संवत 1991 में किसान आंदोलन आरंभ हुआ तो उसमें भी आप ने दिल खोलकर काम किया और इस प्रकार के बहादुर लोगों को को जो पुरष्कर उस समय जयपुर सरकार की ओर से दिया जा रहा था वह आपको भी मिला था। अर्थात आप को जेल भेज दिया गया।

उसके बाद से आप राष्ट्रीय प्रवृति से अपने इलाके के लोगों की सेवा कर रहे हैं। प्रभाव से आप शांत व्यक्ति हैं। किसी महत्वकांक्षा से प्रेरित होकर आप सार्वजनिक क्षेत्र में प्रविष्ट नहीं हुए। यही कारण है कि अपने साथियों की तरह आप अधिक चमक नहीं पाए। आपके दो पुत्र बंशीधर सिंह और दिलीप सिंह आपके भाई अर्जुन सिंह जी के पुत्र हनुमान सिंह हैं।

32. कुंवर नारायणसिंह मोहनपुर - [पृ.421]: शेखावाटी में भामू जाट की उज्जवल कीर्ति सदा ही रही है। इन्हीं के नाम पर भामरवासी गांव अपने अधिष्ठाता के नाम के साथ सदा कार्यक्षेत्र अगवा रहा है। हर तरह के सामूहिक यज्ञों में भामरवासी ने सदा ही आहुति दे कर सफल नाम रखा है। “यथा नाम तथा गुण” कहावत आप पर सदा ही लागू रही है। जाट सभा झुंझुनू का अधिवेशन यहां के युवकों को आगे लाने में सफल सम्मेलन साबित हुआ।

भामर वासी गांव में हरजीराम जी चौधरी के घर मैं आपका जन्म मिती फागुन सुदी 5 संवत 1960 (1904 ई.) के रोज हुआ था।


[पृ. 422]: अपने माता पिता के सबसे बड़े पुत्र हैं। इनसे छोटी 4 बहीने हैं। आप यहां के उत्साही कार्यकर्ता श्री ख्यालीराम जी के निकटतम साथियों में से हैं। आपमें यह एक खास गुण है कि आप रचनात्मक कार्य को ही सफल ध्येय मानते हैं। जबकि ख्यालीराम जी एक सफल पार्लियामेंट्री कार्य करता है। आपकी रचनात्मक सेवा का नमूना आज विद्यार्थी भवन झुंझुनू प्रत्यक्ष है। जिसके बारे में आप सार्वजनिक जीवन में आगे ही पूरी लग्न के साथ पड़े थे। आज तक सारी विघ्न-बाधाओं के होते हुए भी निस्वार्थ भावना से बराबर जुटे हुए हैं। जीवन में तरह तरह के संकल्प-विकल्प रहते हुए पूरी समझदारी के साथ अपने आप को खपा देने वाले एक नेता की एक आवाज पर जीवन कुर्बान कर देने वालों में से पाया है। शील स्वभाव एवं नम्रता आपका पुश्तैनी खिताब है। नम्रता की छाप आस-पास के गांवों तक में पड़ी हुई है। आजकल आप ग्राम समूह प्रजामंडल कमेटी के सभापति हैं। जिसमें पूरी लगन एवं निर्भीकता से जुटे हुए हैं। आस-पास से भोले किसानों पर जब भी कोई विपत्ति आती है तो भाग-भाग कर आपके पास दौड़े आते हैं। आप अपनी नम्रता की छाप सदा उन लोगों पर छोड़ते रहते हैं और पूरी लगन के साथ उनके दुखों को मिटाने की चेष्टा करते हुए उन्हें संतोष दिलाते हैं।

गत जयपुर प्रजामंडल के सन 1939 के आंदोलन के समय आप कोलकाता में थे परंतु आंदोलन का समाचार पाते ही सफल नौकरी को अदा के साथ तिलांजलि देकर आंदोलन में भाग लेने के वास्ते चल पड़े परंतु रास्ते में आगरा में संग्राम समिति के ऑफिस में पहुंचने पर मालूम हुआ कि पूज्यवर महात्मा गांधी के हस्तक्षेप से आंदोलन स्थगित हो गया है।


[पृ.423]: आपने तो अपना जीवन कोलकाता में ही सार्वजनिक कार्यों में समर्पित करने का निश्चय किया। अतः वहां से आते ही विद्यार्थी भवन झुंझुनू के कार्य में उतर पड़े जिसे पूरी कोशिशों से सजीव रखते जा रहे हैं।

आपको इन सारे कामों में आगे लाने का श्रेय इनकी पत्नी सौ. श्री राजकुमारी देवी को है जिन्होंने पूरी कोशिश से आपको इस रास्ते पर डाला है। इस समय आप के एक पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं जिनके नाम शांति कुमारी, कुंवर प्रताप सिंह कमल कुमारी सुशीला है। सबसे बड़ी पुत्री शांति कुमारी विद्यार्थी भवन में शिक्षा प्राप्त कर रही है। बच्चे होनहार जान पड़ते हैं जिससे सहज ही भविष्य की कल्पना की जा सकती है।

पिताजी श्री हारजीराम जी की उम्र 60 साल की है तथा आपकी उम्र 38 साल की है। ईश्वर करे हमारे नायक चिरंजीव हो जिससे उनके कार्यों का लाभ हमें सदा मिलता रहे।

33. कुंवर चतरसिंह - [पृ.423]: आप शेखावाटी के बख्तावरपुरा के निवासी हैं। आपके पिता एक सरल स्वभाव आदमी है। आपकी उम्र इस समय लगभग 34 साल है। आपने b.a. पास करते ही अपनी सेवाएं जाट पंचायत व किसान पंचायत के सुपुर्द कर दी। जाट बोर्डिंग हाउस झुंझुनू में रहकर आपने सरदार हरलाल सिंह जी हेतु सार्वजनिक पत्र व्यवहार के लिए सेक्रेटरी का काम किया। आप अत्यंत सरल स्वभाव के और निहायत इमानदार आदमी है।


[पृ.424]: सार्वजनिक सेवा में प्राय अवैतनिक रुप से कई साल का समय देने के बाद अब आप व्यवसाय में संलग्नता के लगे हुए हैं।

34. कुंवर मूलचंदजी - [पृ.424]: आप बख्तावरपुरा के सुप्रसिद्ध हीरासिंह जी के पुत्र हैं। आपका घराना शेखावाटी में मालदारी के लिए मशहूर है। कहावत है कि जो अपने पूर्वजों की कमाई बर्बाद कर दे वह कपूत और जो उसे बढ़ावे वह सपूत कहा जाता है। आप इन अर्थों में सच्चे सपूत हैं। आपने व्यवसाय द्वारा काफी धन कमाया है और उसमें से दिल खोलकर कौमी कामों को देते भी हैं।

35. श्री ओंकारसिंहजी - [पृ.424]: आपका जन्म झुंझुनू के पास मौजा हनुमानपुरा में श्री सूबेदार पदमाराम जी के घर संवत 1970 (1913 ई.) में हुआ। यद्यपि आपके पिता ब्रिटिश गवर्नमेंट पेंशन पा रहे हैं फिर भी आप अपने पुत्रों को राजनीतिक कार्य में भाग लेने के लिए सदा प्रोत्साहित करते रहते हैं। यही कारण है कि आपके दोनों ही पुत्र ओंकार सिंह जी तथा उमेद सिंह ने किसान आंदोलन में सदा अग्रिम भाग लिया है। आपने जब से उम्र संभाली है तभी से आप सार्वजनिक कार्य की ओर झुके हुए हैं। जब भी किसान समस्या को हल करने के लिए त्याग की आवश्यकता हुई तो आप अपने घरेलू धंधे को तिलांजलि दे आ जूते। सन् 1939 के प्रजामंडल द्वारा चलाए गए सत्याग्रह के समय आपने सारा समय झुंझुनू कैंप में बिताया आपको


[पृ.425]: इस अवसर पर कई बार बुरी तरह से पीट पीटकर मोटर द्वारा दूर जंगलों में ले जाकर छोड़ दिया गया परंतु आप हर बार कैंप में पहुंच जाते और उसी उत्साह से कार्य में जुड़ जाते। यद्यपि आपको सत्याग्रह के समय जेल नहीं भेजा गया परंतु इसके बाद ही सन् 1942 में आप पर लगाम बंदी का अभियोग लगाकर आपको तीन माह जेल की हवा खिलाई। 1944 की जनवरी में आपको पुनः शेखावाटी के किसानों द्वारा लगान रोकने के लिए मंडावा ठिकाने के विरुद्ध लगाए गए बीबासर गांव के मोर्चे से अन्य 14 साथियों के साथ गिरफ्तार किया गया और 22 अप्रैल 1946 को समझौता हो जाने पर ही आप को मुक्त किया गया। आप इलाके के बहुत ही उत्साहित युवक हैं।

36. भैरोसिंह जी - [पृ.425]: आप तोगड़ा (झुंझुनू) निवासी चौधरी जीवनराम जी पायल के पुत्र हैं। आपके एक छोटे भाई और थे जिनका पिछले दिनों स्वर्गवास हो चुका है। आपके दो कन्या हैं जो आजकल विद्यार्थी भवन झुंझुनू में शिक्षा पा रही हैं। आप युवावस्था के आरंभ से ब्रिटिश पलटन में भर्ती हो गए। आप कट्टर आर्य समाजी विचार रखते थे। जिन्हें आप पलटन में रहकर भी निभाते रहे। आखिर एक दिन आपके मनचले साथी ने अपनी बंदूक से पलटन को गोश्त सप्लाई करने वाले कुछ कसाइयों को बूचड़खाने में गायों को ले जाते हुए मार दिया। उसी अपराध में उस युवक को फांसी की सजा हुई और उसे सहायता देने के अपराध में आपको


[पृ.426]: पलटनी नौकरी से छुट्टी दे दी। इस घटना से आपके विचारों में भारी उथल-पुथल मची और आपने सार्वजनिक कार्य में लगे रहने का निश्चय किया। उन दिनों शेखावाटी के किसान जिन में एक बड़ी संख्या जाटों की है, यहां जुल्मी ठिकानेदारों के जुल्मों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए अपना संगठन कर रहे थे। आप फोरन की उस संगठन में शामिल हो गए। आपने जाट किसान पंचायत के तत्वावधान में अविरल परिश्रम से काम किया। पंचायत स्थगित होने पर आप प्रजामंडल का कार्य उसी उत्साह से करते रहे। 1939 के सत्याग्रह में आपने जी तोड़ कार्य किया। सत्याग्रह के बाद आप अपना समस्त समय सार्वजनिक कार्यों को देकर प्रजामंडल जिला कमेटी झुंझुनू के आदेशानुसार कार्य करते रहे तथा उक्त कमेटी की कार्यकारिणी के आप आज तक सदस्य हैं।

कुछ दिनों से आप विद्यार्थी भवन झुंझुनू की सेवा कर रहे हैं और अपना तमाम समय संस्था के अर्थसंग्रह में लगा रहे हैं।

पिछले दिनों बीबासर गांव में ठिकानेदारों के विरुद्ध जो मोर्चा किसानों की ओर से लगाया गया था उसके दलपति आप ही थे। वहीं से आपको अन्य 13 साथियों सहित लगान बंदी अपराध में गिरफ्तार किया और प्रजामंडल के साथ समझौता होने पर ही 22 अप्रैल 1946 को आप को मुक्त किया गया। आजकल आप स्वस्थ हैं और कुछ दिन के लिए घर पर रहकर दवाइयां ले रहे हैं। आप बहुत सी उत्साही युवक और और कर्तव्यनिष्ठ सिपाही हैं। आप जैसे ही सिपाहियों पर ही यहां के कार्यकर्ताओं को गौरव है।

37. सूबेदार सेडूरामजी - [पृ.427]: जन्म संवत 1952 (1895 ई.), पिता का नाम: चौधरी अमराराम जी, गोत्र कासनिया, गांव पुराना वास, निजामत नीमकाथाना

आप चार भाई हैं। तीन आपसे छोटे हैं: हिमा, भूरा, रेखराज उनके नाम हैं। आप के संतान 3 पुत्र और दो पुत्रियां हैं। बड़े पुत्र कुंवर शिवराम सिंह फौज में है। मझले रामजीलाल जी भी फौज में है। छोटे घनश्याम सिंह पढ़ते हैं। छोटी लड़की जीनाबाई पढती है।

आप 20 जुलाई 1911 को फौज में भर्ती हुए। सन 1936 में सूबेदार बने।

सन् 1914 में आप अरब की लड़ाई में गए। 1917 में आप पैलेसटाइन और अफ्रीका में गए। तीन दफा काबुल के विद्रोह को दबाने गए। बर्मा की बगावत में भी गए। 6-7 मेडल आप को प्राप्त हुए। जिनमें ओबीआई भी शामिल है।

सन् 1928 में आप आर्य समाज खयालात के बने। उस समय से आपने बराबर अपने इलाके में काम किया। आपने ब्राह्मणों में पुनर्विवाह का प्रचार किया और एक पुनर्विवाह भी कराया। ब्राह्मण लोग उस समय आपके इलाके में जाटों को सूद्र कहते थे। उनके साथ आपने शास्त्रार्थ किए। अपने गांव में स्कूल खुलवाने का प्रयत्न किया।

आप जाट महासभा के कार्यों में खूब दिलचस्पी लेते हैं। जयपुर जलसे के लिए आपने इलाके से लगभग ₹2000 चंदा कराया।

आप देहात की सेवा के लिए छोटा दवाखाना रखते हैं। मुफ्त दवा देते हैं। आपने नुक्ता बंद कराने के लिए कानून बनवाया।


[पृ.428]: मीनों के प्रभाव को घटाया। इससे आपको उन से मुठभेड़ में भी करनी पड़ी। 3 साल तक आपका लालबाग कम कराने के लिए भूमियों के साथ झगड़ा चला। जिसमें आपका लगभग ₹2000 खर्च हो गया।

आपने सब तरह से जहां तक हो उठाने के प्रयत्न किए हैं। बच्चों के टीका लगवाने से लोग डरते थे आप ने उनहें तैयार किया। आप उत्साही और सच्चे कार्य करता है।

38. सूबेदार गणपतिराम जी - [पृ.428]: जिसने फौज में रहकर अपने धर्म को अडिग रखा और अंग्रेज कमांडेंट की आज्ञा के विरुद्ध लोगों को गौमांस खाने से रोका वे कंवरपुरा के चौधरी रामसिंह जी के पुत्र चौधरी गणपतिरामजी है। संवत 1965 विक्रमी (1908 ई.) के बैशाख कृष्णा दशमी को आपका जन्म हुआ। जवानी के आरंभ में आप नसीराबाद में जाकर सन् 1925 में फौज में भर्ती हो गए। आपने विभीन्न छावनियों में जाकर फौजी ट्रेनिंग ली। जापान वर्मा में घूम रहे थे उस समय आप 6 महीने तक इंफाल के मोर्चे पर रहे। सन् 1945 में वापस दिल्ली आ गए और फिर सन् 1946 में आपने सूबेदार मेजर की रैंक से पेंशन ले ली।

इस समय आप गांव में रहते हैं और मिलने-जुलने आने वाले लोगों को ग्राम सुधार और संतान सुधार की बातें बताते रहते हैं। आपका ध्यान शिक्षा की महत्ता की ओर है इसलिए अपने बच्चों को शिक्षित बनाने में लगे हुए हैं।


39. कुंवर जगलालसिंह कुहाड़ - [पृ.429]: आपका जन्म 20 दिसंबर सन् 1920 में कुहाड़ वंश के एक उच्च कुल में हुआ। आपने अपने गांव में सर्वप्रथम एंट्रेंस पास की। सन 1939 से बिरला एजुकेशन ट्रस्ट में कार्य आरंभ किया। अढ़ाई वर्ष तक पिलानी कार्य करने के पश्चात आप निजी गांव में तबादला करा लिया। अतः उस समय से ही आप अपने गांव के स्कूल की उन्नति कर रहे हैं। साढ़े तीन साल के सख्त परिश्रम से अपने गांव में मिडिल स्कूल की स्थापना करा दी है। इस समय यह स्कूल बहुत उन्नति कर रहा है। आशा है भविष्य में और भी अधिक उन्नति होती रहेगी।

आप अध्यापक होते हुए भी आस-पास के गांव में स्थानीय नेता के रुप में देखे जाते हैं। कौम की तरक्की के ख्यालों से आपका दिल सदा लबालब रहता है।

40. श्री रामसिंहजी बड़वासी

40. श्री रामसिंहजी बड़वासी- [पृ.429]: श्री रामसिंह जी बड़वासी का जन्म कुलहरी गोत्र के चौधरी गोविंद सिंह जी के यहां संवत 1954 में हुआ था। आप बड़वासी गांव के रहने वाले हैं। आप के भाई का नाम श्री चौधरी चेनाराम जी और पुत्रों के नाम श्री मानसिंह जी व श्री झाबरसिंह हैं।

आप शेखावाटी प्रांत के सच्चे और कर्मठ कार्यकर्ता हैं। आत्म सम्मान की भावना आपने सदा से रही है। और उसी हेतू आप अपने यहां के ठिकानेदारों की आंखों का कांटा बन गए। ठीकानेदार की ओर से आपको यातनाएं दी जाने लगी।


[पृ.430]: आप वैधानिक रुप से प्रतिकार करते रहे परंतु राज्यसत्ता ठिकानेदारों के प्रभाव में होने के कारण आप की नहीं सुनी गई और वर्षों तक मुकदमा चलता रहा। फिर भी अंत में आपको अपनी जमीन से भी हाथ धोना पड़ा यद्यपि आप आज बेघरबार बना दिए गए परंतु फिर भी आपने ठिकानेदारों के यहां जाकर किसी प्रकार की चिंता दिखलाने को आत्मप्रवंचना समझा है।

आप जाट किसान पंचायत के कार्यकर्ता रहे और और स्थानीय प्रजामंडल द्वारा संचालित सन 1939 के सत्याग्रह में आपने सक्रिय भाग लिया। आपको कई बार गिरफ्तार किया गया और हर बार पीट-पीटकर छोड़ दिया गया। आपकी उस समय की पिटाई की कहानी बड़ी रोमांचकारी और राजय अधिकारियों के नाम पर धब्बा है।

आजकल आप समस्त समय प्रजामंडल जिला कमेटी झुंझुनू के कार्य में लगा रहे हैं। आप के छोटे पुत्र झाबरसिंह प्रमुख किसान नेता श्री घासी राम जी द्वारा संचालित विद्यालय घासी का बास में अध्यापक हैं और बड़े उत्साह से कार्य कर रहे हैं।

41. मास्टर लेखरामजी - [पृ.430]: आप झुञ्झुनू के निकटस्थ प्रतापपुरा गांव के निवासी हैं। अपने पिता थानाराम जी के तीसरे और सबसे छोटे पुत्र हैं। आपका जन्म संवत 1969 (1912ई.) में हुआ था।

शिक्षा आरंभ होने से और शिक्षा समाप्ति तक आप जिस स्कूल में पढ़े वहां हर जगह विद्यार्थियों का नेतृत्व किया।


[पृ 431]: पढ़ते समय से ही आप जाट किसान पंचायतों के कार्य में सक्रिय योग देते रहे। शिक्षा समाप्ति पर आपने अपने ग्राम में अध्यापक रहकर गांव को संगठित किया और आपसी विरोध के कारण ठेकेदारों द्वारा दी जाने वाली यातनाएं से ग्राम वासियों को विमुक्त किया।

सन् 1938 में जयपुर प्रजामंडल में आपने प्रशंसनीय कार्य किया। आपका काम देहातों से लोगों को ला ला कर सत्याग्रह कैंप में भर्ती कराना था जिसे आपने दृढ़ता और साहस से निभाया।

आप गत वर्षों से जयपुर के जाटों की एकमात्र संस्था विद्यार्थी भवन में अध्यापक का कार्य करते हुए प्रांत के राजनीतिक मामलों में भी अपना आवश्यक समय देते हैं। विद्यार्थी भवन के आप जिम्मेदार कार्यकर्ताओं में से हैं जिनके बल पर संस्था पनप रही है। आप झुञ्झुनू के आसपास के देहातों के जाटों में बहुत हिलमिल गए हैं। देहातों के लोगों को चीनी, तेल तथा कपड़े दिलाने में आप अपना आवश्यकतानुसार समय लगाते रहते हैं।

42. चौधरी आसारामजी - [पृ.431]: शेखावाटी में ककड़ेउ भी एक मशहूर गांव है। यहीं के चौधरी बीजराम जी ने चौधरी खेतराम जी के जिस पुत्र को गोद लेकर अपना दत्तक पुत्र बनाया वही चौधरी आसाराम जी के नाम से प्रसिद्ध है। आप पूनिया गोत्र के जाट हैं। इस समय 38 के करीब आपकी अवस्था है। आप के लड़कों में से यशवंतसिंह जी पढ़ रहे हैं।


[पृ.432]: आप सुधारक वृत्ति के आदमी हैं। चौधरी घासीराम जी के सहायकों में से हैं। शिक्षा सदन की सेवा करने में अग्रणी रहने का प्रयत्न करते हैं।

43. स्वर्गीय श्री बेगराजजी - [पृ.432]: आप बूरी गोत्र के चौधरी जीवनराम जी के पुत्र थे। आप के दो अन्य भाई श्री शिवजीराम जी तथा मुकुंदरामजी हैं। आप के एकमात्र पुत्र श्री गोविंद सिंह जी हैं। आपका जन्म भादवा संवत 1946 (1889 ई.) में मांडासी से गांव में हुआ था।

आप अपने गांव के अगवा और प्रभावी व्यक्ति थे। अतः ठिकानेदार भी आपको बहुत चाहता था। ठिकानेदार ने आपके प्रभाव से नाजायज लाभ उठाने की कुभावना से आपको किसी प्रकार ठिकाने का मुलाजिम बना लिया। लेकिन यह सच्चा और निस्वार्थ सिपाही अधिक समय तक ठिकाने के चंगुल में न रह सका। और ठिकाने की सर्विस को लात मार कर दूने उत्साह और लगन से जाट पंचायत में काम करने लगे। आपकी निस्वार्थ भरी सेवाओं और कार्य पटुता ने आप को बहुत जल्द लोकप्रिय बना दिया। यहां तक कि इलाके भर के गांवों के लोग आपको बहुत मानने लगे।

किसान पंचायत टूट जाने पर आप भी अपने अन्य साथियों के साथ ही प्रजामंडल में शामिल हो गए और उसी उत्साह से प्रजामंडल का कार्य भी करने लगे। प्रजामंडल द्वारा चलाए गए आंदोलन में आपने अपने अपूर्व साहस और कार्यक्षमता का परिचय दिया।


[पृ.433]: आप के लोकहित कार्यों से यहां के ठिकानेदारों के निरंकुश शासन को गहरी ठेस लगी और वह आप से बदला लेने की घात देखने लगे। आखिर वह दिन भी आया कि इस त्यादि कर्मवीर सिपाही को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। जयपुर राज्य की लेजिस्लेटिव कौंसिल चुनाव लड़कर तारीख 15 मई 1945 को आप घर पहुंचे। तारीख 16 मई 1945 को आप झुञ्झुणु आने वाले थे कि ठिकाने के कुछ चाकर आप पर टूट पड़े और आप की जीवन लीला को समाप्त कर दिया।

आपकी मृत्यु के समाचार से यहां की किसान जनता में भारी रोष पैदा हो गया लेकिन केवल वैधानिक कार्यवाही के अतिरिक्त और किया भी क्या जा सकता है। आप की असामयिक मृत्यु से यहां के सार्वजनिक जीवन को भारी धक्का लगा। मृत्यु के समय आपकी अवस्था करीब 57 वर्ष की थी। आप बहुत ही सच्चे सेवी कार्यकर्ता थे। गत 4 वर्ष से आप विद्यार्थी भवन की सेवा कर रहे थे। आप का अभाव भवन को हमेशा खटकता रहेगा।

चौधरी गुरुमुखसिंह जी

44. चौधरी गुरुमुखसिंह जी - [पृ 433]: शेखावाटी में झुंझुनू के पास दौलतपुरा एक गांव है। इसी गांव में आज से 52-53 साल पहले चौधरी मंगलाराम जी साईं गोत्र के जाट के घर पर आप का जन्म हुआ। आप पंडित खेमराज जी के सत्संग से आर्यसमाजी बने। आपके इलाके में नुक्ते भोज की बड़ी रिवाज थी। यह कहा जा सकता है की नुक्ता का पूर्ण बहिष्कार शेखावाटी में किसी ने किया है तो वह आप ही हैं।


[पृ.434]: आप पूर्ण सच्चाई के साथ जन सेवा करते हैं। और उस सेवा का बदला कभी भी आपने नहीं चाहा है।

45. चौधरी लक्ष्मणसिंहजी - [पृ.434]: शेखावाटी के सरहदी हिस्से पर हरिपुरा गांव में जाखड़ गोत्र के चौधरी बीज राज के यहां संवत 1955 (1898 ई.) की जन्माष्टमी को जिस लड़के का जन्म हुआ उसका नाम लक्ष्मण सिंह रखा गया।

मैंने उन्हें सबसे पहले सन् 1932 में जाट महासभा के झुंझुनू महोत्सव में देखा था। आप उसमें महोत्सव को सफल बनाने वाले व्यक्तियों में काम कर रहे थे। उसके बाद शेखावाटी के जाटों को जगाने वाली हर प्रगति में आप ने भाग लिया। इस समय घासीराम बास शिक्षा सदन को ऊंचा उठाने में लगे हुए हैं। आप चार भाई हैं दो सगे और दो ताऊ के।

46. चौधरी लक्ष्मण सिंह II - [पृ.434]: शिक्षा सदन बास घासीराम के सहायकों में चौधरी गोरुराम जी के पुत्र लक्ष्मण सिंह जी भी है। आप चौधरी घासीराम से पूर्ण स्नेह रखते हैं। और सदन की सेवाओं के लिए तत्पर रहते हैं। इसके अलावा जाट किसानों को आगे बढ़ाने वाले हर काम में मदद देने को आप सदा तैयार रहते हैं। आप नाथासर के रहने वाले हैं और ढाका आप का गोत्र है। आप आर्य समाजी ख्यालात के युवावस्था के आरंभ में ही बन गए थे।


47. चौधरी लादूराम - [पृ.435]: हरिपुरा गांव में चौधरी जयकिशन जी के सुपुत्र चौधरी लादूराम जी हैं। लंबोरिया आप का गोत्र है। 33-34 साल के आप नौजवान आदमी हैं। शिक्षा से आपको प्रेम है। इसलिए शिक्षा सदन घासी रामबास की आप यथाशक्ति सेवा करते हैं। किसान प्रगति में आपकी दिलचस्पी है।

48. कालूराम जी देवरोड़

48. कालूराम जी देवरोड़ - [पृ.435]: संवत 1931 (1874 ई.) बैशाख में आपका जन्म हुआ। आपके पिता का नाम रामसुख व माता का नाम हीरा था। आप सब मिलकर चार भाई हैं। सबसे बड़े आप हैं। आप से छोटा शिवनारायण, उन से छोटा ईश्वर, व इससे छोटा लालाराम है।

आपने झुंझुनू सभा में कुंवर पन्नेसिंह जी के साथ कार्य किया। बहुत सी बार जाट सभा के कार्य के लिए जयपुर भी गए। सदैव कुंवर पन्नेसिंह साहब के साथ काम किया। कुछ दिन तक खेतराम जी के साथ चंदा इकट्ठा किया। आपने जाट सभा की तन मन से सेवा की व अब भी कर रहे हैं। आपका देशप्रेम अकथनीय है। आपके तीन लड़के थे। परंतु अब एक की मृत्यु हो गई है। अब दो लड़के हैं, बड़े का नाम खूबाराम है, छोटे का नाम मालाराम है। आप का गोत्र पिलानिया है।

49. बेगराज जी देवरोड़ - [पृ.435]:जन्म: संवत 1966 विक्रम मगशिर बदी 2, शिक्षा: ग्राम पाठशाला में। सन 1931 में झुंझुनू महोत्सव के लिए काम किया।


[पृ.436]: सीकर यज्ञ में सहायता की, सराधना के जाट सम्मेलन में गए, गढ़गंगा के जलसे में सन 1936 में गए। आर्य समाजी ख्याल आप ने बचपन से ही पसंद किया। पंडित दतूराम जी से जनेऊ लिया। अपने भाई पन्ने सिंह जी के कार्यों में सहानुभूति रखी।

50. श्री मोहनलाल वर्मा - [पृ.436]: दुलाराम जी के दो लड़के और दो लड़कियाँ हुई। सबसे बड़े लड़के कुंवर सांवलराम जी हैं और छोटे लड़के श्री मोहनलाल जी वर्मा। आप देग गोत्र में से हैं। आपका जन्म इण्डाली गांव शेखावाटी प्रांत में सन् 1918 की 25 अक्टूबर को अर्द्धरात्रि में हुआ था।

सन 1928 में आपको बिरला कॉलेज पिलानी में पढ़ने को भेज दिया गया। वहां पर आपने चार-पांच साल विद्या अध्ययन किया मगर फिर आपका मन उधर न लगा क्योंकि उन दिनों शेखावाटी में इंकलाब आया हुआ था। जाट जाति पर तरह-तरह के जुल्म हो रहे थे। आए दिन कितने किसानों को गोलियां और तलवार की भेंट चढ़ाया जाता था। आपको यह सहन न हुआ और स्कूल छोड़कर कार्यक्षेत्र में कूद पड़े। इन्हीं दिनों सेठ जमनालाल जी पर जयपुर राज्य की ओर से प्रतिबंध लगा दिया। जिसके कारण तो जयपुर प्रांत भर में क्रांति की लहर बह चली। आपने उस में पूरा हिस्सा लिया और 14 मार्च सन् 1939 में झुंझुनू शहर में आप कैद कर लिए गए। आप को जयपुर भेज दिया गया और वहां पर झालाना जेल में आप पर मुकदमा चलाकर आपको 6 माह की कठिन कारावास की


[पृ.437]: सजा हुई। आपने वहां पर भी चेन नहीं लिया। जितने सत्याग्रही थे उनको आप सदा उत्साहित करते रहते थे। जयपुर राज्य ने आपको तरह-तरह के लोभ दिए मगर आपको वे न फूसला सके। आप सच्चे जाति सेवक थे।

जेल से बाहर आने पर आपने अपना काम ज्यादा जोश के साथ किया और रातों-रात गांव-गांव में आप घूम कर प्रचार काम करते थे। आपने कुछ दिन खादी आश्रम में भी काम किया मगर वहां के कार्यकर्ताओं से आपकी न बनी। क्योंकि आप गरीबों के दास थे वहां का नकली चोला आपको सहन नहीं था। वहां से आप ने इस्तीफा दे दिया। आपने मुकुंदगढ़, खंडेला और पिलानी में कताई बुनाई के अध्यापक की हैसियत से काम किया। मगर वहां पर भी आपका मन न लगा।

आखिरकार आपने एक किसान जाट होने के नाते अपना समय जाट जाति की उन्नति में ही देना ठीक समझा। जाट महासभा के सदस्य आप ने बनाए। यद्यपि आप प्रजामंडल के मेंबर रहे मगर आपका अधिक ध्यान जाट जाति की ओर रहा। जाट पंचायत को खत्म करने के समय भी आप उस के विरोधी थे। मगर आप का विरोध थोड़ा था इसलिए आप कुछ समय के लिए प्रजामंडल की उस पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया जो कि जाट पंचायत को खत्म कर रही थी। मगर आपने फिर भी चैन नहीं लिया और आप स्वतंत्र जाट जाति में करते रहे अब फिर से जाट सभा और किसान सभा कायम हो गई है। आप पहले आदमी थे जिन्होंने इस में अपना जीवन दिया। आज आप किसान सभा में पूर्ण दिल से काम कर रहे हैं। और हमेशा जाट जाति की उन्नति में ही अपनी को लगा समझते हुए काम कर रहे हैं।


[पृ.438]: सन् 1941 से आप बिरला हाउस दिल्ली में काम कर रहे हैं और वहां पर अच्छे अच्छे लीडरों की सौहबत होने से आपके विचार बहुत ही निखर गए हैं। सेठ साहब श्री घनश्याम दास जी बिरला का भी आपसे घनिष्ट प्रेम है। समय समय पर आप उनके विचारों से लाभ उठाते रहते हैं।

आज तक आप जयपुर राज्य किसान सभा की कार्यकारिणी कमेटी के सदस्य हैं। आप एक होनहार उत्साही नवयुवक हैं और साधारण खान पान और वेशभूषा ही आपका ध्येय रहा है। आप समाचार पत्रों के तो बड़े ही प्रेमी हैं और जाट जाति के समाचार-पत्र तो आपको विशेष रुचिकर रहते हैं। समय समय पर आप प्रचारार्थ गांव में जाते हैं और लोगों को विद्या प्रचार और किसान सभा के संगठन के अनुयाई बनाते रहते हैं।

आपका भविष्य उज्जवल है। अभी आप सच्चे दिल से किसान सभा का कार्य कर रहे हैं। इस समय आपकी उम्र 30 साल की है।

आप की धर्मपत्नी श्री जकोरीदेवी है जो कि झाझरिया गोत्र से है। आपके पिता चौधरी चंद्राराम वल्द केशुराम हैं जोकि राणासर के रहने वाले हैं। आपकी जीवन संगिनी ने आपके काम में पूरा हथबटाया है। आपने पुरानी रूढ़ियों को खत्म करके जेवरों को कटाई नहीं अपनाया। आजकल साधारण आभूषणों के सिवाय कोई श्रंगार की चीज नहीं पहनती हैं।

51. श्री रड़मलसिंह जी गोठड़ा - [पृ.438]: आपका जन्म गोठड़ा गांव में संवत 1949 (1892 ई.) मिती कार्तिक सुदी 10 को हुआ है। आप का गोत्र नूनिया है। आपका परिवार


[पृ.439]: हमेशा ही अच्छी हालत में रहा है। आपके पिता का नाम पीतरामजी है जो कि हमेशा ही प्रसन्न और हंसमुख रहे। आप दो भाई हैं। दूसरे भाई का नाम रामनारायण जी है। आपके सात पुत्र हैं: 1. संग्राम सिंह 2. नाहर सिंह 3. शिशुपाल सिंह 4. रामकुमार सिंह 5. सुखदेव सिंह 6. सज्जन सिंह और 7. रिसाल सिंह। एक पुत्री है उसका नाम महादेवी है। आप की धर्मपत्नी का नाम हरकौरी है। आप सार्वजनिक कामों में बहुत ही दिलचस्पी रखती हैं। आप कट्टर सामाजिक सुधारक हैं। आपने परदे और जेवर को खत्म करने में पहला नंबर लिया है। आप पति और पत्नी जब कभी अत्याचारी ठिकानेदारों से मुकाबला करना होता है तब दोनों ही अपने सात पुत्रों सहित लट्ठ लेकर मुकाबला करने को तैयार हो जाते हैं।

कुंवर हरदयालसिंह

52. कुंवर हरदयालसिंह - [पृ.439]: कुहाड़वास के सूबेदार मेजर भूराराम के पुत्रों में हरदयाल सिंह जी मशहूर है। आपने हमेशा अपनी कौम की बेजोखम की तमाम सेवाओं में सहयोग दिया है। झुंझुनू महोत्सव से लेकर सीकर महायज्ञ तक आपने घूम फिर कर कौम को जगाने में समय दिया। इसके बाद कुंवर पन्ने सिंह जी देवरोड की मृत्यु के बाद आपका साहस बैठ गया और अपने घरु कामों में ज्यादा उलझ गए। अपने गांव के स्कूल की तरक्की के लिए आपने सदा प्रयत्न किया।


53. श्री देवीसिंह जी अरड़ावता - [पृ.440]: आपका जन्म अरड़ावता ग्राम में ओला गोत्र के खानदान में संवत 1953 (1896 ई.) में हुआ था। आपके पिता का नाम हुक्माराम था। आप चार भाई और 3 बहीने हैं। आपका झुंझुनू जाट महासभा में जनेऊ संस्कार हुआ था। इसके बाद से आप कट्टर आर्य समाजी हैं। आपके तीन लड़की और एक लड़का है। लड़के का नाम मानसिंह है जो कि विद्यार्थी भवन में पड़ता है और अब आठवीं क्लास का इम्तिहान दिया है। आपने जयपुर प्रजामंडल के सन 1938 के आंदोलन में प्रचार कार्य में भाग लिया था। आप 2 साल से विद्यार्थी भवन में कार्य करते हैं। आप अपने इलाके के सार्वजनिक कार्य में काफी मदद करते हैं।

54. सूबेदार पेमारामजी - [पृ.440]: झुंझुनू के पास डालावास है। सूबेदार पेमाराम जी यही के बाशिंदे हैं। आपने अपने जीवन को फौज में जाकर ऊंचा उठाया। एक सिपाही की हैसियत से आप भर्ती हुए और संवत 1998 के जर्मन महायुद्ध में अनेक मोर्चों पर जाकर बहादुरी का परिचय दिया।

पेंशन लेकर आप लौटे तो अपने इलाके में आपने कौमी सुधार और शिक्षा प्रचार के कामों में भाग लेना शुरू किया। झुंझुनू जाट बोर्डिंग हाउस में वर्षों तक आप प्रधान प्रबंधकों में रहे हैं। आपका सभी लोग आदर करते हैं और यथाशक्ति आप सब का स्वागत करते हैं।


शेखावाटी अध्याय समाप्त

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