Jat Jan Sewak: Difference between revisions

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सबसे अधिक बुरी चीज राठौड़ शासकों ने तमाम भाई-बहनों को जागीरदार बनाकर की। मारवाड़ की कृषक जातियों को खानाबदोश बनाने का मुख्य कारण यह जागीरदार ही हैं।
सबसे अधिक बुरी चीज राठौड़ शासकों ने तमाम भाई-बहनों को जागीरदार बनाकर की। मारवाड़ की कृषक जातियों को खानाबदोश बनाने का मुख्य कारण यह जागीरदार ही हैं।


'''मारवाड़  के जाट जन सेवकों की सूची'''
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[[Marwar|मारवाड़]] में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है। यहाँ इन महानुभावों की सूची दी गई है। विस्तृत विवरण के लिए नाम पर क्लिक करें।  
[[Marwar|मारवाड़]] में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है। यहाँ इन महानुभावों की सूची दी गई है। विस्तृत विवरण के लिए नाम पर क्लिक करें।  


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#[[Sohan Singh Tanwar|मास्टर सोहनसिंह तंवर]], [[----]], [[Mathura|मथुरा]]....p.201
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[पृ.201]:वैसे तो समस्त राजस्थान में [[पुष्कर जाट महोत्सव]] के बाद से जागृति का बीजारोपण हो गया था किंतु [[मारवाड़]]  
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सभा के प्रचारकों को भी मारा गया।  कत्ल किया गया और पीटा गया।  इन तमाम मुसीबतों के बावजूद भी सभा बराबर अपने उद्देश्य पर अटल रही और शांतिपूर्ण तरीकों से अपने कदम को आगे बढ़ाती रही।  
सभा के प्रचारकों को भी मारा गया।  कत्ल किया गया और पीटा गया।  इन तमाम मुसीबतों के बावजूद भी सभा बराबर अपने उद्देश्य पर अटल रही और शांतिपूर्ण तरीकों से अपने कदम को आगे बढ़ाती रही।  
'''मारवाड़ जाट सभा के सहायक''':
 
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[पृ.206] जिन लोगों का पिछले पृष्ठों में जिक्र किया जा चुका है उनके सिवा मारवाड़ जाट सभा को आगे बढ़ाने में निम्न सजजनों के नाम उल्लेखनीय हैं:  
[पृ.206] जिन लोगों का पिछले पृष्ठों में जिक्र किया जा चुका है उनके सिवा मारवाड़ जाट सभा को आगे बढ़ाने में निम्न सजजनों के नाम उल्लेखनीय हैं:  
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15. '''[[Shiv Ram Maiya|चौधरी शिवराम जी मैना]]''' - आप [[Jakhera|जाखेड़ा]] गांव के रहने वाले [[Maina|मैना गोत्र]] के जाट सरदार हैं और मारवाड़ जाट सभा की अंतरिम कमेटी के सदस्य हैं।
15. '''[[Shiv Ram Maiya|चौधरी शिवराम जी मैना]]''' - आप [[Jakhera|जाखेड़ा]] गांव के रहने वाले [[Maina|मैना गोत्र]] के जाट सरदार हैं और मारवाड़ जाट सभा की अंतरिम कमेटी के सदस्य हैं।


'''मारवाड़ के अन्य जाट जन सेवक''':
<center>'''मारवाड़ के अन्य जाट जन सेवक'''</center>


उपरोक्त सज्जनों के सिवा जाट कृषक सुधार सभा की प्रबंधकारिणी और कार्यकारिणी में रहकर नीचे लिखे और भी सज्जनों ने जाट जाति की सेवा करके अपने को कृतार्थ किया है, जो निम्न है -
उपरोक्त सज्जनों के सिवा जाट कृषक सुधार सभा की प्रबंधकारिणी और कार्यकारिणी में रहकर नीचे लिखे और भी सज्जनों ने जाट जाति की सेवा करके अपने को कृतार्थ किया है, जो निम्न है -
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*[[Swami Jaitram Sihag|स्वामी जैतराम सिहाग]], [[Meejal|मीजल]], [[Bikaner|बीकानेर]] ....p.210-213
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'''मारवाड़ (जोधपुर स्टेट) के उल्लेखनीय नवयुवक कार्यकर्ता''':
<center>'''मारवाड़ (जोधपुर स्टेट) के उल्लेखनीय नवयुवक कार्यकर्ता'''</center>


[पृ.213]: मारवाड़ के पुराने कार्यकर्ताओं के अलावा नवयुक उम्र में भी जाति प्रेम की भावना बड़ी तेजी व उग्रता से बढ़ती जा रही है। इन युवकों का साहस, जाति वत्सलता व कौमी सेवा  
[पृ.213]: मारवाड़ के पुराने कार्यकर्ताओं के अलावा नवयुक उम्र में भी जाति प्रेम की भावना बड़ी तेजी व उग्रता से बढ़ती जा रही है। इन युवकों का साहस, जाति वत्सलता व कौमी सेवा  

Revision as of 14:15, 29 October 2017

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रियासती भारत के जाट जन सेवक:पुस्तक

पुस्तक: रियासती भारत के जाट जन सेवक, 1949

संपादक: ठाकुर देशराज

प्रकाशक: त्रिवेणी प्रकाशन गृह, जघीना, भरतपुर

मुद्रक: कुँवर शेरसिंह, जागृति प्रिंटिंग प्रेस, भरतपुर

पृष्ठ: 580

विषय सूची

  • विकी एडिटर नोट
  • संपादकीय वक्तव्य....1-4
  • राजस्थान की जाट जागृति का संक्षिप्त इतिहास....1-12
  • भरतपुर के जाट जन सेवक....13-73
  • अलवर के जाट जन सेवक....74-93
  • अजमेर के जाट जन सेवक....94-112
  • बीकानेरके जाट जन सेवक....113-163
  • पंचकोशी के सरदार....163-165
  • चौटाला (हिसार)....165-165
  • मलोट के सरदार....165-166
  • मारवाड़ के जाट जन सेवक....167-221
  • सीकर के जाट जन सेवक....222-

विकी एडिटर नोट

इस पुस्तक में राजस्थान से स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लेने वाले तथा जाट जागृति में सहयोग करने वाले सभी महानुभावों का परिचय दिया गया है। ठाकुर देशराज ने राजस्थान के जाटों में सामाजिक और राजनैतिक क्रांति पैदा की और एक बहादुर कौम को नींद से जगाया। राजस्थान के अलावा पुस्तक में पंजाब, मध्यभारत, बुंदेल खंड की रियासतों के जाटों की आधुनिक गतिविधियों का संक्षिप्त इतिहास भी दिया गया है। यहाँ जाटलैंड पर पुस्तक से पृष्ठवार संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है।

जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनका संक्षिप्त विवरण क्षेत्रवार पुस्तक में दिया गया है। हर क्षेत्र के महानुभावों का पेज जाटलैंड पर तैयार किया जाकर सूची दी गई है। प्रत्येक नाम एक्टिव लिंक है। विस्तृत विवरण के लिए नाम की लिंक पर क्लिक कर विवरण देखें। जाटलैंड पर पुस्तक से महानुभाव का हूबहू विवरण न देकर संक्षिप्त विवरण दिया गया है और पुस्तक के कंटेन्ट का छायाचित्र जेपीजी फॉर्मेट में हरेक महानुभाव के पेज की गैलरी में दिया गया है। हर महानुभाव का पुस्तक में शामिल पूर्ण विवरण कंटेन्ट के छायाचित्र पर क्लिक कर देख सकते हैं।

Laxman Burdak (talk) 23:48, 16 September 2017 (EDT)

संपादकीय वक्तव्य

[पृ.1] : राजस्थान में जाट जागृति में भाग लेने वाले और सहयोग करने वाले सभी महानुभावों का परिचय पुस्तक में दिया गया है।


[पृ.2]: इस पुस्तक में शामिल शेखावाटी के वृतांत मास्टर फूल सिंह सोलंकी ने लिखे हैं। सीकर के कार्यकर्ताओं के जीवन परिचय मास्टर कन्हैया लाल महला ने; खंडेलावाटी के बारे में ठाकुर देवासिंह बोचल्या और कुँवर चन्दन सिंह बीजारनिया ने, बीकानेर के जीवन चरित्र चौधरी हरीश चंद्र नैन और चौधरी कुंभाराम आर्य; जोधपुर के जीवन परिचय मूल चंद सिहाग और मास्टर रघुवीर सिंह ने, अजमेर मेरवाड़ा के परिचय सुआलाल सेल ने,


[पृ.3]: अलवर के जीवन परिचय ठाकुर देशराज और नानकराम ठेकेदार; भरतपुर के परिचय हरीश चंद्र नैन ने लिखे हैं। ....

पुस्तक में पंजाब, मध्यभारत, बुंदेल खंड की रियासतों के जाटों की आधुनिक गतिविधियों का संक्षिप्त इतिहास दिया गया है। इसमें सहायता अमर सिंह और ठाकुर भूप सिंह ने की। जींद और लुहारु की रियासतों के बारे में जानकारी निहाल सिंह तक्षक ने की।

Maharaja Kishan Singh

उत्तरी भारत की तमाम रियासतों में जो जाट प्रगति हुई वह ठाकुर देशराज के पास उपलब्ध सामग्री से ली गई है।


[पृ.4]: यह कड़वी सचाई है कि जाट कौम में साहित्यिक रुचि नहीं है इसलिए उन्हें अपने कारनामे लेखबद्ध कराने व देखने की रुचि नहीं है। इस प्रकार की गलती ने उनके दर्जे को घटाया ही है। लोगों की इस ओर विशेष रुचि न होते हुये भी लेखक को यह पुस्तक लिखनी पड़ी है।

एक समय आएगा जब यह पुस्तक हमारे गौरव को बढ़ाने में सहायक होगी और इस जमाने के लोगों की व हमारी भावी पीढ़ी में उत्साह और प्रेरणा पैदा करने का काम देगी। आने वाली संतान अपने उन पूज्यों को सराहेगी जिन्होने इस जमाने में कुछ काम किया है।

देशराज

राजस्थान की जाट जागृति का संक्षिप्त इतिहास

[पृ.1]: उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय सामूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रतन सिंह भरतपुर को जाता है।

यद्यपि मास्टर भजन लाल का कार्यक्षेत्र अजमेर मेरवाड़ा तक ही सीमित रहा तथापि सन् 1925 में पुष्कर में जाट महासभा का शानदार जलसा कराकर ऐसा कार्य किया था जिसका राजस्थान की तमाम रियासतों पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा और सभी रियासतों में जीवन शिखाएँ जल उठी।

सन् 1925 में राजस्थान की रियासतों में जहां भी जैसा बन पड़ा लोगों ने शिक्षा का काम आरंभ कर दिया किन्तु महत्वपूर्ण कार्य आरंभ हुये सन् 1931 के मई महीने से जब दिल्ली महोत्सव के बाद ठाकुर देशराज अजमेर में ‘राजस्थान संदेश’ के संपादक होकर आए। आपने राजस्थान प्रादेशिक जाट क्षत्रिय की नींव दिल्ली महोत्सव में ही डाल दी थी। दिल्ली के जाट महोत्सव में राजस्थान के विभिन्न


[पृ 2]: भागों से बहुत सज्जन आए थे। यह बात थी सन 1930 अंतिम दिनों में ठाकुर देशराज ‘जाट वीर’ आगरा सह संपादक बन चुके थे। वे बराबर 4-5 साल से राजस्थान की राजपूत रियासतों के जाटों की दुर्दशा के समाचार पढ़ते रहते थे। ‘जाट-वीर’ में आते ही इस ओर उन्होने विशेष दिलचस्पी ली और जब दिल्ली महोत्सव की तारीख तय हो गई तो उन्होने जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और दूसरी रियासतों के कार्य कर्ताओं को दिल्ली पहुँचने का निमंत्रण दिया। दिल्ली जयपुर से चौधरी लादूराम किसारी, राम सिंह बख्तावरपुरा, कुँवर पन्ने सिंह देवरोड़, लादूराम गोरधनपुरा, मूलचंद नागौर वाले पहुंचे। कुछ सज्जन बीकानेर के भी थे। राजस्थान सभा की नींव डाली गई और उसी समय शेखावाटी में अपना अधिवेशन करने का निमंत्रण दिया गया। यह घटना मार्च 1931 की है।

इसके एक-डेढ़ महीने बाद ही आर्य समाज मड़वार का वार्षिक अधिवेशन था। लाला देवीबक्ष सराफ मंडावा के एक प्रतिष्ठित वैश्य थे। शेखावाटी में यही एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होने कानूनी तरीके से ठिकानाशाही का सामना करने की हिम्मत की थी। उन्होने ठाकुर देशराज और कुँवर रतन सिंह दोनों को आर्य समाज के जलसे में आमंत्रित किया। इस जलसे में जाट और जाटनियाँ भरी संख्या में शामिल हुये। यहाँ हरलाल सिंह, गोविंद राम, चिमना राम आदि से नया परिचय इन दोनों नेताओं का हुआ।


[पृ 3]: ...शेखावाटी यात्रा में ठाकुर देशराज ने एक धारावाहिक लेखमाला ‘जाटवीर’ में प्रकाशित की जिससे शेखावाटी के लोगों में एक चिनगारी जैसी चमक पैदा की। बाहर के लोगों ने यहाँ की स्थिति को समझा। ठाकुर देशराज की लेखनी में चमत्कार है। उन्होने 3-4 महीने में ही लेखों द्वारा तमाम जाट समाज में शेखावाटी के जाटों के लिए एक आकर्षण पैदा कर दिया।

इसके बाद ठाकुर देशराज अजमेर आ गए। उन्होने यह नियम बना लिया कि शनिवार को शाम की गाड़ी से चलकर रियासतों में घुस जाते और सोमवार को 10 बजे ‘राजस्थान संदेश’ के दफ्तर में आ जाते।


[पृ.4]: अगस्त का महिना था। झूंझुनू में एक मीटिंग जलसे की तारीख तय करने के लिए बुलाई थी। रात के 11 बजे मीटिंग चल रही थी तब पुलिसवाले आ गए। और मीटिंग भंग करना चाहा। देखते ही देखते लोग इधर-उधर हो गए। कुछ ने बहाना बनाया – ईंधन लेकर आए थे, रात को यहीं रुक गए। ठाकुर देशराज को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होने कहा – जनाब यह मीटिंग है। हम 2-4 महीने में जाट महासभा का जलसा करने वाले हैं। उसके लिए विचार-विमर्श हेतु यह बैठक बुलाई गई है। आपको हमारी कार्यवाही लिखनी हो तो लिखलो, हमें पकड़ना है तो पकड़लो, मीटिंग नहीं होने देना चाहते तो ऐसा लिख कर देदो। पुलिसवाले चले गए और मीटिंग हो गई।

इसके दो महीने बाद बगड़ में मीटिंग बुलाई गई। बगड़ में कुछ जाटों ने पुलिस के बहकावे में आकार कुछ गड़बड़ करने की कोशिश की। किन्तु ठाकुर देशराज ने बड़ी बुद्धिमानी और हिम्मत से इसे पूरा किया। इसी मीटिंग में जलसे के लिए धनसंग्रह करने वाली कमिटियाँ बनाई।

जलसे के लिए एक अच्छी जागृति उस डेपुटेशन के दौरे से हुई जो शेखावाटी के विभिन्न भागों में घूमा। इस डेपुटेशन में राय साहब चौधरी हरीराम सिंह रईस कुरमाली जिला मुजफ्फरनगर, ठाकुर झुममन सिंह मंत्री महासभा अलीगढ़, ठाकुर देशराज, हुक्म सिंह जी थे। देवरोड़ से आरंभ करके यह डेपुटेशन नरहड़, ककड़ेऊ, बख्तावरपुरा, झुंझुनू, हनुमानपुरा, सांगासी, कूदन, गोठड़ा


[पृ.5]: आदि पचासों गांवों में प्रचार करता गया। इससे लोगों में बड़ा जीवन पैदा हुआ। धनसंग्रह करने वाली कमिटियों ने तत्परता से कार्य किया और 11,12, 13 फरवरी 1932 को झुंझुनू में जाट महासभा का इतना शानदार जलसा हुआ जैसा सिवाय पुष्कर के कहीं भी नहीं हुआ। इस जलसे में लगभग 60000 जाटों ने हिस्सा लिया। इसे सफल बनाने के लिए ठाकुर देशराज ने 15 दिन पहले ही झुंझुनू में डेरा डाल दिया था। भारत के हर हिस्से के लोग इस जलसे में शामिल हुये। दिल्ली पहाड़ी धीरज के स्वनामधन्य रावसाहिब चौधरी रिशाल सिंह रईस आजम इसके प्रधान हुये। जिंका स्टेशन से ही ऊंटों की लंबी कतार के साथ हाथी पर जुलूस निकाला गया।

कहना नहीं होगा कि यह जलसा जयपुर दरबार की स्वीकृति लेकर किया गया था और जो डेपुटेशन स्वीकृति लेने गया था उससे उस समय के आईजी एफ़.एस. यंग ने यह वादा करा लिया था कि ठाकुर देशराज की स्पीच पर पाबंदी रहेगी। वे कुछ भी नहीं बोल सकेंगे।

यह जलसा शेखावाटी की जागृति का प्रथम सुनहरा प्रभात था। इस जलसे ने ठिकानेदारों की आँखों के सामने चकाचौंध पैदा कर दिया और उन ब्राह्मण बनियों के अंदर कशिश पैदा करदी जो अबतक जाटों को अवहेलना की दृष्टि से देखा करते थे। शेखावाटी में सबसे अधिक परिश्रम और ज़िम्मेदारी का बौझ कुँवर पन्ने सिंह ने उठाया। इस दिन से शेखावाटी के लोगों ने मन ही मन अपना नेता मान लिया। हरलाल सिंह अबतक उनके लेफ्टिनेंट समझे जाते थे। चौधरी घासी राम, कुँवर नेतराम भी


[पृ.6]: उस समय तक इतने प्रसिद्ध नहीं थे। जनता की निगाह उनकी तरफ थी। इस जलसे की समाप्ती पर सीकर के जाटों का एक डेपुटेशन कुँवर पृथ्वी सिंह के नेतृत्व में ठाकुर देशराज से मिला और उनसे ऐसा ही चमत्कार सीकर में करने की प्रार्थना की।

ठाकुर देशराज ने शेखावाटी में नया जीवन पैदा करने के लिए लोगों के नामों, पहनाओं, और खानपान तक में परिवर्तन करने की आवाजें लगाई। कुँवर पन्ने सिंह उस समय पंजी कहलाते थे और वे खुद अपने लिए पन्ना लाल लिखते थे। यह नाम उन्हें ठाकुर देशराज ने दिया। चौधरी हरलाल को सरदार हरलाल सिंह, भूरामल को भूर सिंह, देवाराम को देवी सिंह जैसे उत्साह वर्धक नाम ठाकुर देशराज ने दिये। उन्होने ऊनी मोटे कपड़े की घाघरी पहनने का विरोध किया। आज प्रत्येक शिक्षित और समझदार घर से घाघरी गायब हो गई है उनका स्थान धोती सड़ियों ने ले लिया है। उन्होने राबड़ी और खाटा खाने का विरोध किया क्योंकि बासी छाछ से बनी राबड़ी एक मादक पदार्थ बन जाती है।

उन्होने नुक्ता, शादी की फिजूल खर्ची को छोडकर अच्छा खाने , दूध दही खाने पर ज़ोर दिया। यह उनकी आरंभिक सामाजिक क्रांति थी।


[पृ.7]: राजनैतिक क्रांति फैलाने के लिए उन्होने अपने आरंभिक भाषणों में निम्न बातों पर ज़ोर दिया:

  • 1. दुखों का अंत करने के लिए कष्टों को आमंत्रण दो
  • 2. अपने लिए अपने आप ही कमजोर मत समझो
  • 3. साथी न मिले तो अकेले ही बढ़ो। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता किन्तु अकेला आदमी दुनिया को पलट सकता है बशर्ते कि वह दृढ़ निश्चई हो।
  • 4. संगठित मधु-मक्खियाँ हाथी को चिंघड़वा सकती हैं।
  • 5. अपनी संतानों के वास्ते सुख के द्वार खोलने के लिए बलिदान होने से मत डरो।

जाट महायज्ञ सीकर 1933: सीकरवाटी में जागृति लाने के लिए ठाकुर देशराज ने जाट महायज्ञ करने की सोची। इसके लिए पलथाना में अक्तूबर 1932 में एक बैठक बुलाई। इसमें शेखावाटी के तमाम कार्यकर्ता और सीकर के हजारों आदमी इकट्ठे हुये। बसंत पर 7 दिन का यज्ञ करने का प्रस्ताव पारित हुआ। जिस समय यह मीटिंग चल रही थी सीकर ठिकाने ने पुलिस का गारद भेजा। जिसके साथ ऊंट पर हथकड़ियाँ लदी हुई थी। जिन्हें देखकर लोगों के होश खराब होने लगे। तब ठाकुर देशराज ने कहा ये हथकड़ियाँ तो हमको आजाद


[पृ.8]: कराएंगे। अगर आप इनसे डरोगे तो आप कभी भी आनंद प्राप्त नहीं कर सकते जो आप प्राप्त करना चाहते हो। हम यहाँ धर्म का काम करने के लिए इकट्ठा हुये हैं। यज्ञ में विघ्न डालना क्षत्रियों का काम नहीं है यह तो राक्षसों का काम है। आप डरें नहीं ठिकाना हमारे काम में विघ्न डाल कर बदनामी मौल नहीं लेगा। मुझसे अभी कहा गया है कि मैं राव राजा साहब सीकर के पास चलूँ। ऐसे तो मैं नहीं जा सकता। मुझे न तो किसी रावराजा का डर है न महाराजा का। इन शब्दों ने बिजली जैसा असर किया, लोग शांति से जमे रहे और यज्ञ के लिए कमेटियों का निर्माण कर लिया गया।

इससे कुछ ही महीने पहले खंडेलावाटी इलाके की जाट कनफेरेंस चौ. लादूराम गोरधनपुरा के सभापतित्व में बड़ी धूम-धाम से गढ़वाल की ढानी में हो चुकी थी। इस प्रकार जागृति का बिगुल तमाम ठिकानों में बज चुका था।

सीकर यज्ञ होने में थोड़े दिन शेष थे कि नेछआ में ठाकुर हुकम सिंह परिहार जब चंदा कमेटी का काम करने गए थे तो पकड़ कर काठ में दे दिया। और एक जाट की पिटाई सीकर में की। इन्हीं दिनों अर्थात दिसंबर 1932 को पिलानी में राय साहिब हरीराम सिंह के सभा पतित्व में अखिल भारतीय जाट विद्यार्थी कानफेरेंस का अधिवेशन हो रहा था। उसमें चौधरी छोटूराम साहब भी पधारे थे। तार द्वारा जब उनको सीकर से इतला मिली तो वे सीकर पहुँच गए। वहाँ उन्होने 5000 लोगों की उपस्थिती में एक तगड़ा भाषण दिया। इससे ठिकाने के भी होश ढीले हो गए। और जाटों में भी जीवन पैदा हो गया। सन 1933 की जनवरी में बसंत आ गया और उसके


[पृ.9]: सुनहले दिनों में लगभग 80000 की हाजिरी में यज्ञ का कार्य आरंभ हुआ। किरथल आर्य महाविद्यालय के ब्रह्मचारियों ने पंडित जगदेव सिद्धांती के नेतृत्व में यज्ञ आरंभ किया।

यज्ञपति थे आंगई के कुँवर हुकम सिंह परिहार और यज्ञमान ने कूदन के चौधरी कालूराम। वेदी पर दो दाढ़िया आर ब्रह्मचारी गण वैदिक काल के राजाओं और ऋषि बालकों की याद दिलाते थे। दस दिन तक वेद मंत्रों से यज्ञ हुआ। यज्ञभूमि छोटी-छोटी झोंपड़ियों और छोलदारियों का एक उपनिवेश सा बन गई थी।

यज्ञपति और वेदों का जुलूस निकालने के लिए जयपुर से एक हाथी मंगवाया गया था। किन्तु सीकर ठिकाने ने हाथी पर जुलूस न निकालने देने की जिद की। तीन दिन तक बराबर चख-चख रही। जयपुर के आईजी एफ़एस यंग को जयपुर से हवाई जहाज से मौके पर सीकर भेजा। दोनों तरफ की झुका-झुकी के बाद हाथी पर जुलूस निकल गया।

इस यज्ञ में 10 दिन तक जाट संगठन और जाट उत्थान का प्रचार होता रहा। लगभग 10 भजन मंडलियों और दर्जनों वक्ताओं ने जनता का मनोरंजन और ज्ञान-वर्धन किया। इसी समय कुँवर रतन सिंह की सदारत में राजस्थान जाटसभा का भी जलसा किया गया। इस में राजस्थान के तो हर कोने से लोग आए ही थे भारत के भी हर कोने से लोग आए थे। इसी समय जाट इतिहास का प्रकाशन हुआ और सर्वप्रथन उसकी कापी यज्ञकर्ताओं के लिए दी गई।


[पृ.10]: सीकर महयज्ञ के बाद जाटों में जागृति की वह लहर आई जिसे लाख जुल्म करने पर भी सीकर ठिकाना नहीं दबा सका जिसका विवरण अन्यत्र दिया गया है।

सूरजमल शताब्दी समारोह 1933: सन् 1933 में पौष महीने में भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल की द्वीतीय शताब्दी पड़ती थी। जाट महासभा ने इस पर्व को शान के साथ मनाने का निश्चय किया किन्तु भरतपुर सरकार के अंग्रेज़ दीवान मि. हेनकॉक ने इस उत्सव पर पाबंदी लगादी।

28, 29 दिसंबर 1933 को सराधना में राजस्थान जाट सभा का वार्षिक उत्सव कुँवर बलराम सिंह के सभापतित्व में हो रहा था। यह उत्सव चौधरी रामप्रताप जी पटेल भकरेड़ा के प्रयत्न से सफल हुआ था। इसमें समाज सुधार की अनेकों बातें तय हुई। इनमें मुख्य पहनावे में हेरफेर की, और नुक्ता के कम करने की थी। इसमें जाट महासभा के प्रधान मंत्री ठाकुर झम्मन सिंह ने भरतपुर में सूरजमल शताब्दी पर प्रतिबंध लगाने का संवाद सुनाया।

यहाँ पर भरतपुर में कुछ करने का प्रोग्राम तय हो गया। ठीक तारीख पर कठवारी जिला आगरा में बैठकर तैयारी की गई। दो जत्थे भरतपुर भेजे गए जिनमे पहले जत्थे में चौधरी गोविंदराम हनुमानपुरा थे। दूसरे जत्थे में चौधरी तारा सिंह महोली थे। इन लोगों ने कानून तोड़कर ठाकुर भोला सिंह खूंटेल के सभापतित्व में सूरजमल शताब्दी को मनाया गया। कानून टूटती देखकर राज की ओर से भी उत्सव मनाया गया। उसमें कठवारी के लोगों का सहयोग अत्यंत सराहनीय रहा।

जोधपुर में जाट महासभा अथवा स्थानीय जाट सभा का कोई शानदार उत्सव नहीं कराया गया परंतु उसके भीतर


[पृ.11-12] जाकर ठाकुर देशराज और उनके साथियों ने जागृति न फैलाई हो ऐसी बात नहीं।

जोधपुर, बीकानेर, लोहारु ऐसी कौनसी रियासत है जहां के कड़े मोर्चे पर जाट सभा न पहुंची हो।

अलवर में भी जाट सभा के दो जलसे बड़ी शान से हुये।

राजस्थान के अलावा ग्वालियर राज्य में एक जलसे का ठाकुर देशराज ने सभापतित्व किया। उससे पहले एक साल वहाँ जाकर पचासों गांवों का हाल देखा था। इसी तरह दतिया के जाट गांवों का भी परिचय प्राप्त किया। गार्ज यह है कि जहां भी जाट आबाद रियासतें थी वहाँ राजस्थान जाट सभा के प्राण ठाकुर देशराज ने रूह फूंकी।

किसानों का बुरी तरह शोषण: इस आंदोलन से पहले राजस्थान के रियासती किसानों का बहुत बुरी तरह शोषण होता था। यहाँ विवरण नहीं दिया जा रहा है। .....

भरतपुर के जाट जन सेवक

[पृ.13]:

भरतपुर का प्राचीन इतिहास: भरतपुर पवित्र ब्रज-भूमि का एक भाग है। ब्रज में आरंभ में मधु लोगों का राज्य था। सूर्यवंशी राजा शत्रुघ्न ने मधु लोगों के नेता लवण को मारकर अपना राज्य जमाया। सूर्यवंशी राजाओं से पुनः चंद्रवंशी राजाओं ने इस भू-भाग को छीन लिया। भोजकुल के राजा कंस को मारकर वृष्णी कुलीय कृष्ण ने इस भू-भाग को अपने प्रभाव में लिया। द्वारिका ध्वंस और यादवों के प्रभास क्षेत्र महा युद्ध के बाद भगवान कृष्ण के पौत्र व्रज को यह प्रदेश शासन के लिए मिला। तबसे यह भूभाग न्यूनाधिक 17 मार्च 1948 तक इसी वंश के हाथ में रहा। भरतपुर के वर्तमान महाराजा ब्रजेन्द्र सवाई ब्रजेन्द्र सिंह भगवान कृष्ण की 195 वीं पीढ़ी में माने जाते हैं।

भरतपुर की जाट प्रगतियाँ

1925: महाराजा श्री कृष्णसिंह पुष्कर जाट महोत्सव के प्रेसिडेंट बने और तबसे भरतपुर में बराबर जाट महासभा की मीटिंग हुई।

1929: भरतपुर में मेकेंजी शाही आतंक की परवाह किए बिना सूरजमल जयंती मनाई। इसी अपराध में ठाकुर देशराज की दफा 124ए में गिरफ्तारी हुई।

[पृ.14]:

1933: सन् 1933 में पौष महीने में भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल की द्वीतीय शताब्दी पड़ती थी। जाट महासभा ने इस पर्व को शान के साथ मनाने का निश्चय किया किन्तु भरतपुर सरकार के अंग्रेज़ दीवान मि. हेनकॉक ने इस उत्सव पर पाबंदी लगादी। इसके विरोध में बाहर से जत्थे भेजकर ठाकुर भोलासिंह के सभापतित्व में उत्सव मनाया गया।

1937: ठाकुर लक्ष्मण सिंह आजऊ, सूबेदार भोंदू सिंह गिरधरपुर, राजा गजेंद्र सिंह वैर, और पथेना के कुछ साहसी जाट सरदारों के प्रयत्न से भरतपुर राज जाटसभा की नींव डाली।

1941: पथेना में राजा गजेंद्र सिंह के तत्वावधान में सूरजमल जयंती मनाई गई जिसका आयोजन स्वर्गीय ठाकुर जीवन सिंह ने किया।

1942: बूड़िया (पंजाब) के चीफ राजा रत्न अमोल सिंह के सभापतित्व में भरतपुर राज जाट सभा का शानदार जलसा मनाया गया। इसमें सर छोटू राम, कुँवर हुकम सिंह, चौधरी मुख्तार सिंह, रानी साहिबा मनोश्री चिरंजी बाई, चौधरी रीछपाल सिंह और प्रो गण्डा सिंह पधारे। इसी वर्ष दिसंबर में जाट महा सभा का डेपुटेशन महाराजा बृजेन्द्र सिंह की शुभ वर्ष गांठ पर विवाह की बधाई देने आया जिसमें हिन्दू, सीख और मुस्लिम जाटों के सभी प्रमुख लीडरों ने भाग लिया।

1944: दिल्ली में जाट महा सभा के अधिवेशन का सभापतित्व महाराजा ब्रजेन्द्र सिंह ने किया।

[पृ.15]:

1945: महाराजा ब्रजेन्द्र सिंह के जन्म दिन पर जाट प्रीति भोज देने की परंपरा डाली।

1946: अखिल भारतीय जाट महासभा का सालाना जलसा भारत सरकार के रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह के सभापतित्व में मनाया।

1947: जाट महा सभा की जनरल कमिटी ने काश्मीर युद्ध में पूर्ण सहयोग देने का निश्चय किया। 17 मार्च 1948 को जबकि मत्स्य राज्य के उदघाटन की रस्म भरतपुर के किले में की जा रही थी किसान लोगों के साथ मिलकर किले की फाटक पर जाटों ने धरणा दिया। भरतपुर किसान सभा की मांगों को पूर्ण करने के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया।

भरतपुर के जाट जन सेवकों की सूची

भरतपुर में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है। यहाँ इन महानुभावों की सूची दी गई है। विस्तृत विवरण के लिए नाम पर क्लिक करें।

  1. कुँवर रतन सिंह पूनिया, रुदावल, रूपबास, भरतपुर ...p.16-17
  2. कर्नल घमंडी सिंह भगोर, जघीना, भरतपुर ...p.17-18
  3. ठाकुर गजेंद्र सिंह सिनसिनवार, वैर, भरतपुर ...p.18-19
  4. चौधरी राम सिंह, लुधाबई, भरतपुर ...p.19-20
  5. रायसाहब सू. चिरंजी सिंह सिनसिनवार, नौह बछामदी, भरतपुर ...p.20
  6. ठाकुर वीरीसिंह पूनिया, ---, भरतपुर ...p.21-22
  7. ठाकुर जीवनसिंह, पथेना, भरतपुर ...p.22-23
  8. ठाकुर मोतीसिंह, पथेना, भरतपुर ...p.23-24
  9. ठाकुर घीसीसिंह, पथैना, भरतपुर ...p.24
  10. ठाकुर सम्पतसिंह, नगला बखता, भरतपुर ...p.25
  11. ठाकुर परमानंद खूंटेला, सान्तरुक, भरतपुर ...p.25-26
  12. ठाकुर ग्यारसीराम खूंटेला, अजान, भरतपुर ...p.26
  13. पहलवान गणेशीलाल खूंटेला, गुनसारा, भरतपुर ...p.26-27
  14. ठाकुर मनीरामसिंह सोगरवार, तुहिया, भरतपुर ...p.27-28
  15. ठाकुर घनश्यामसिंह सोगरिया, तमरोली, भरतपुर ...p.28
  16. चौधरी गोवर्धनसिंह सोगरिया, ----, भरतपुर ...p.28-29
  17. ठाकुर छिद्दासिंह सोगरवार, ----, भरतपुर ...p.29
  18. मुंशी निहालसिंह सोगरवार, जघीना, भरतपुर ...p.30
  19. ठाकुर कमलसिंह सिकरवार, नगला हथैनी, भरतपुर ...p.30-31
  20. ठाकुर तेजसिंह भटावली डागुर, भटावली, भरतपुर ...p.31
  21. ठाकुर रामसिंह सिनसिनवार, खोहरा, भरतपुर ...p.31
  22. फ़ौजदार नारायनसिंह, कुरबारा, भरतपुर ...p.31
  23. फ़ौजदार चरनसिंह सिनसिनवार, बहज, भरतपुर ...p.32
  24. ठाकुर चूरामन सिंह , बरौली चौथ, भरतपुर ...p.32
  25. चौधरी सूरज सिंह , सुजालपुर, भरतपुर ...p.33
  26. चौधरी गोवर्धनसिंह खरेटावाले, भरतपुर ...p.33-34
  27. ठाकुर नारायनसिंह, भरतपुर ...p.34
  28. ठाकुर रामसिंह इन्दोलिया, भरतपुर ...p.34-35
  29. ठाकुर फतहसिंह, भरतपुर ...p.35
  30. ठाकुर लालसिंह, पैगोर, भरतपुर ...p.35-36
  31. ठाकुर तेजसिंह रायसीस सिनसिनवार, रायसीस, भरतपुर ...p.36
  32. कुँवर लक्ष्मणसिंह सिनसिनवार, आजऊ, भरतपुर ...p.37
  33. लेफ्टिनेंट हुकमसिंह , खेरली गड़ासिया, भरतपुर ...p.37
  34. सूबेदार पदमसिंह सिनसिनवार, गादौली, भरतपुर ...p.37
  35. ठाकुर ज्वाला सिंह , रुदावल, भरतपुर ...p.37-38
  36. सूबेदार भोंदूसिंह हंगा, गिरधरपुर, भरतपुर ...p.38
  37. सूबेदार तोतासिंह सिनसिनवार, दांतलोठी, भरतपुर ...p.38
  38. ठाकुर विजयसिंह सिनसिनवार, भरतपुर ...p.39
  39. ठाकुर रतनसिंह सिनसिनवार, मालौनी, भरतपुर ...p.39
  40. कुँवर रामचंद्रसिंह सिनसिनवार, पैगोर, भरतपुर ...p.39
  41. चौधरी तेजसिंह दिनकर, बरकौली, भरतपुर ...p.40
  42. चौधरी देवीसिंह दिनकर, बरकौली, भरतपुर ...p.40-41
  43. चौधरी रणधीरसिंह कुरमाली, भरतपुर ...p.42-43
  44. ठाकुर कुमरपालसिंह जेलदार, कुम्हा, भरतपुर ...p.43
  45. बोहरे शंकर सिंह, महगंवा, भरतपुर ...p.43
  46. ठाकुर महाराजसिंह सिनसिनवार, वैर, भरतपुर ...p.43
  47. मुंशी रामप्रसाद डागुर, गोपालगढ़, भरतपुर ...p.43
  48. सरदार नारायणसिंह गिल, इकरन, भरतपुर ...p.44
  49. सरदार गुलाब सिंह, कुम्हेर, भरतपुर ...p.44
  50. सरदार इंदर सिंह, बयाना, भरतपुर ...p.45
  51. कुँवर पुष्करसिंह सोलंकी, ----, भरतपुर ...p.45
  52. ठाकुर किरोड़ीसिंह सिकरवार, सूती, भरतपुर ...p.46
  53. हवलदार गुलाबसिंह डागुर, खंसवारा, कुम्हेर, भरतपुर ...p.46
  54. ठाकुर धांधूसिंह बिसाती, कुरका, रुपबास, भरतपुर ...p.47
  55. कुंवर हरीसिंह चाहर, भरतपुर ...p.47
  56. ठाकुर भोलासिंह खूंटेल, भरतपुर ...p.48
  57. ठाकुर जियालाल, अघावली, भरतपुर ...p.48
  58. कुँवर दयाल सिंह, कसौदा, भरतपुर ...p.49
  59. ठाकुर हुकमसिंह परिहार, कठवारी (आगरा), भरतपुर ...p.49
  60. ठाकुर किशनसिंह सीसबाड़ा, सीसबाड़ा, भरतपुर ...p.49
  61. ठाकुर दामोदरसिंह सिनसिनवार, साबोरा, कुम्हेर, भरतपुर ...p.50
  62. ठाकुर टीकमसिंह , बिरहरू, कुम्हेर, भरतपुर ...p.50
  63. मास्टर अमृत सिंह, विजवारी, वैर, भरतपुर ...p.50-51
  64. ठाकुर स्यामलाल सिकरवार, कवई, नदबई, भरतपुर ...p.51
  65. ठाकुर चरणसिंह सिनसिनवार, बयाना, भरतपुर ...p.51
  66. ठाकुर राखिलारीसिंह , सीही, कुम्हेर, भरतपुर ...p.51-52
  67. राजा किशन आजऊ, आजऊ, भरतपुर ...p.52
  68. जमादार घनश्यामसिंह सिनसिनी, सिनसिनी, भरतपुर ...p.53
  69. ठाकुर रामस्वरूपसिंह सिनसिनवार, मवई, डीग, भरतपुर ...p.53
  70. पहलवान भरतीसिंह सिनसिनी, सिनसिनी, भरतपुर ...p.53-54
  71. ठाकुर गिरवरसिंह सिनसिनी, सिनसिनी, भरतपुर ...p.54
  72. ठाकुर निनुवासिंह सिनसिनवार, कसोट, भरतपुर ...p.54
  73. बोहरे नत्थी सिंह, पंघोर, भरतपुर ...p.55
  74. ठाकुर जोति राम, पंघोर, भरतपुर ...p.55
  75. ठाकुर रामसिंह खूंटेल, पेंघोर, भरतपुर ...p.55-56
  76. ठाकुर फूलीसिंह-मूलीसिंह सिनसिनवार, बैलारा, भरतपुर ...p.56
  77. रामसिंह सिनसिनवार बैलारा, बैलारा, भरतपुर ...p.57
  78. जमादार करनसिंह फौजदार, कुम्हा, भरतपुर ...p.57
  79. सूबेदार भूराराम, पेंघोर (बास अधैया), भरतपुर ...p.57-58
  80. ठाकुर सदनसिंह खूंटेल, सान्तरुक, भरतपुर ...p.58
  81. ठाकुर किशनसिंह, नगला बरताई, भरतपुर ...p.58-59
  82. ठाकुर कन्हैयासिंह सिनसिनवार बहनेरा, बहनेरा, भरतपुर ...p.59
  83. ठाकुर कन्हैयासिंह सिनसिनवार धानगढ़, धानगढ़, भरतपुर ...p.59
  84. टीकम सिंह, अजान, भरतपुर ...p.59-60
  85. ठाकुर जुगल सिंह, अवार, भरतपुर ...p.60
  86. ठाकुर अतरसिंह, सुरौता, भरतपुर ...p.60
  87. ठाकुर कल्लनसिंह पेंघोर, पेंघोर, भरतपुर ...p.61
  88. ठाकुर गंगादानसिंह, कुरबारा, भरतपुर ...p.61
  89. ठाकुर ध्रुवसिंह, पथेना, भरतपुर ...p.61-63
  90. कुँवर सेन, ----, भरतपुर ...p.63
  91. गोरधन सिंह चौधरी, ----, भरतपुर ...p.64-65
  92. ठाकुर भगवतसिंह सिनसिनवार, बुड़वारी, भरतपुर ...p.65
  93. ठाकुर यादरामसिंह बिसाती, भौसिंगा, भरतपुर ...p.65
  94. ठाकुर पूरनसिंह हलेना, हलेना, भरतपुर ...p.65
  95. जेलदार अंगदसिंह बरौलीछार, बरौलीछार, भरतपुर ...p.66
  96. कुँवर हिम्मतसिंह, कासगंज, भरतपुर ...p.66
  97. कुँवर महेंद्रसिंह, कासगंज, भरतपुर ...p.66
  98. चरण सिंह सहना, सहना, भरतपुर ...p.67
  99. धर्म सिंह सहना, सहना, भरतपुर ...p.67
  100. धर्म सिंह सहना, सहना, भरतपुर ...p.67
  101. जमादार धर्म सिंह, एकटा, भरतपुर ...p.67
  102. ठाकुर बालूराम बसेरी, बसेरी, भरतपुर ...p.67
  103. ठाकुर ब्रजलाल सोगरिया, डीग, भरतपुर ...p.68
  104. ठाकुर मेवा राम, ----, भरतपुर ...p.68
  105. ठाकुर सभा राम, नगला सभाराम, भरतपुर ...p.68-69
  106. ठाकुर नत्था सिंह, पीरनगर, भरतपुर ...p.69
  107. पूरन सिंह खेरली, खेरली, भरतपुर ...p.69
  108. नत्थी सिंह बेधड़क, मालौनी, भरतपुर ...p.69-70
  109. कुँवर रणवीर सिंह, ----, भरतपुर ...p.70
  110. मास्टर ओंकार सिंह, अजरौदा, भरतपुर ...p.70-71
  111. मथुरा लाल अरौदा, अरौदा, भरतपुर ...p.71-73

अलवर के जाट जन सेवक

[पृ.74]:

प्राचीन इतिहास: अलवर राज्य में जाटों की आबादी लगभग चालीस हजार है। पंजाब में 2500 ईसा पूर्व कठ लोगों का एक गणराज्य था। जिनके यहाँ बालकों के स्वास्थ्य और सौन्दर्य पर विशेष ध्यान दिया जाता था। सिकन्दर महान से इन लोगों को कड़ा मुक़ाबला करना पड़ा। उसके बाद उनका एक समूह बृज के पश्चिम सीमा पर आ बसा। वह इलाका काठेड़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अलवर के अधिकांश जाट जो देशवाशी नहीं हैं उन्हीं बहादुर कठों की संतान हैं।

अलवर के जाट जन सेवकों की सूची

अलवर में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है। यहाँ इन महानुभावों की सूची दी गई है। विस्तृत विवरण के लिए नाम पर क्लिक करें।

  1. चौधरी नानकचन्द जारपड़, अलवर....p.74-79
  2. चौधरी रामस्वरूप सिंह महला, बहरोड़, अलवर....p.79-82
  3. सूबेदार सिंहासिंह ठाकुरान, सिरोहड़, अलवर....p.82-83
  4. चौधरी रामदेवसिंह कासिनीवाल, नगली, अलवर....p.83-85
  5. कप्तान रामसिंह शेषम, ----, अलवर....p.85-86
  6. कर्नल गोकुलराम महला, बहरोड़ जाट, अलवर....p.86-87
  7. ब्रिगेडियर घासीराम महला, बहरोड़ जाट, अलवर....p.88
  8. हुकमसिंह कासिनीवाल नगली, नगली, अलवर....p.89-90
  9. मास्टर सिंहाराम झूंथरा, जसाई, अलवर....p.90-91
  10. मास्टर रामहेत वालानिया, मानखेड़ा, अलवर....p.90-91
अलवर के अन्य जाट जन सेवक
[पृ.91]

किसी भी संस्था में जो लोग काम करते हैं उनमें से बड़े-बड़े लोगों से आम जनता परिचित हो जाती है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी संपूर्ण श्रद्धा से या जो कुछ उनसे बन पड़ता है सेवा करते रहते हैं। "अलवर राज्य जाट क्षेत्रीय सेवा संघ" में ऐसे अनेकों सहायक कार्यकर्ता हैं उन्ही में से कुछ एक का परिचय चौधरी नानक चंद जी ने इस प्रकार भेजा है:

  • 1. चौधरी मनसुख राम - आप सोडावास के रहने वाले हैं और मुनीमजी कहलाते हैं। "अलवर राज्य जाट क्षेत्रीय सेवा संघ" को कायम करने और उसका पहला अधिवेशन सोडावास में कराने में आपका पूरा सहयोग रहा।
  • 2. चौधरी कालूराम - आप दूनवास के रहने वाले हैं "अलवर राज्य जाट क्षेत्रीय सेवा संघ" की स्थापना और उसका आरंभिक जलसा कराने में आपका भी पूरा सहयोग रहा।
  • 3. चौधरी नंदलाल के सुपुत्र चौधरी भोरेलाल - आप निजामत लक्ष्मणगढ़ में गंडूरा गांव के रहने वाले हैं।
[पृ.92]
  • 6. श्री नारायण सुपुत्र चौधरी मोहनलाल बांबोली
  • 10 मोहनलाल सुपुत्र चौधरी जीवनराम रोड़ा बड़ा भिवानी अलवर

ये सभी और इनके अलावा और भी संघ को सहायता देकर जाती माता की सेवा में सहयोग देते हैं।


अलवर जाट जागृति की मुख्य घटनाएं
  • 5 मई 1933 ई. - इस दिन खानपुर गांव में जाट पाठशाला स्थापित की गई
  • 2-3 मार्च 1936 ई. - इन दो भाग्यशाली दिनों में 202 गांव के प्रमुख जाटों की एक सभा सोडावास में हुई इन्हीं दिनों में "अलवर राज्य जाट क्षेत्रीय सेवा संघ" की स्थापना हुई
  • अप्रैल 1940 - इस दिन सिरोहड में सूबेदार सिंहा सिंह के स्वागत प्रबंधन में संघ का एक शानदार जलसा हुआ जिसमें जाट धर्मशाला और जाट बोर्डिंग हाउस अलवर शहर में बनाना तय हुआ।
[पृ.93]
  • अप्रैल 1945 - दहेज घूंघट और अनमोल पन के पाखंड को तोड़ मरोड़कर रामजीलाल सत्यवती विवाह संस्कार हुआ
  • नवंबर 1945 - संघ के प्राण चौधरी नानक चंद म्युनिसिपेलिटि में जबरदस्त चुनाव संग्राम में विजय हुए
  • 5 मार्च 1946 - यह शुभ दिन है जब वह अलवर को जाट जागृति में प्रत्यक्षता का रूप धारण किया और जाट धर्मशाला का उत्साह और उमंग भरे दिनों से शिलारोहण समारोह संपन्न किया गया।
अलवर राज्य में जाटों की स्थिति

अलवर राज्य में जाटों की आबादी कहीं इकट्ठी नहीं है। बिखरी हुई आबादी है इसलिए वह राजनीतिक स्थिति अच्छी बनाने में अधिक समर्थ उस समय तक नहीं हो सकेगा जब तक की वह अन्य किसानों को अपने साथ नहीं लाएगा। वैसे अलवर का जाट ठंडा है। युग किधर जा रहा है इस से बेखबर सा है। फिर भी वह संगठित होगा और आगे बढ़ेगा क्योंकि वह प्रमादी नहीं है।

अजमेर के जाट जन सेवक

[पृ.94]:
अजमेर-मेरवाड़ा

प्राचीन इतिहास: अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत 2 जिलों अजमेर और मेरवाड़ा से मिलकर बना है। अजयमेरु (न जीता जाने वाला पहाड़) से अजमेर शब्द बना है। अजमेर के पास पहाड़ पर तारागढ़ है जहां किसी समय चौहानों की पताका फहराती थी। इससे भी पहले बौद्ध धर्म के विरुद्ध यहां अशोक काल में एक महान सरोवर के पास ब्राह्मण धर्म का प्रचार करने के लिए ट्रेनिंग कैंप खोला था। यह क्षेत्र पुष्कर के नाम से प्रसिद्ध है। पुष्कर के चारों ओर जाट, गुर्जर आदि की आबादी है। मेर लोगों के नाम पर मेरवाड़ा पड़ा है। इस प्रकार इस प्रांत में जाट, गुर्जर और मेर लोग बहुत पुराने वाशिंदे हैं। यहां के प्राय सभी जाट नागवंशी हैं। जिनमें शेषमा नस्ल का पुराणों में भी वर्णन है।

यहां चौहानों के फैलने से पहले जाटों के कुल-राज्य (वंश राज्य) थे जो प्रजातंत्री तरीके से चलते थे। यहां के जाटों का मुख्य देवता तेजाजी है। भादों में तेजा दशमी का त्योहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है।

वर्तमान समय में जागृति का आरंभ सन् 1925 से हुआ जबकि भरतपुर के तत्कालीन महाराज श्री किशन सिंह के सभापतित्व में यहां के जाटों का एक शानदार उत्सव हुआ। इसने यहां के जाटों की आंखें खोल दी। इस उत्सव को कराने का श्रेय मास्टर भजनलाल को जाता है।

[पृ.95]:

इसके बाद यहां सन् 1931 से सन 1932 के आखिर तक ठाकुर देशराज ने जागृति का दीपक जलाया। उन्होंने गांव में जाकर मीटिंग की और सराधना में एक अच्छा जलसा सन 1932 में 28 जून 30 सितंबर को कराया। पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सैकड़ों जाटों के यज्ञोपवित संस्कार कराए। उस समय तक इस समय के तरुण नेता प्राय सभी शिक्षा पा रहे थे। सुवालाल सेल, किशनलाल लामरोड, रामकरण सिंह परोदा विद्यार्थी जीवन में थे अतः ठाकुर देशराज को देहात के लोगों से भी सहयोग लेना पड़ता था।


उन्होंने नुक्ते को बंद कराने के लिए काफी जोर लगाए। आंशिक रूप में उन्हें सफलता भी मिली। उनको सहयोग देने वालों में मुख्य लोग थे।

अजमेर के जाट जन सेवकों की सूची

अजमेर में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है। यहाँ इन महानुभावों की सूची दी गई है। विस्तृत विवरण के लिए नाम पर क्लिक करें।

  1. मास्टर भजनलाल बिजारनिया, पांचोता, अजमेर....96-98
  2. चौधरी किशनलाल लामरोड़, रूपाहेली, अजमेर....99-102
  3. चौधरी रामप्रताप मकरेड़ा, मकरेड़ा, अजमेर....102
  4. चौधरी सुआलाल सेल, कालेसरा, अजमेर....102-105
  5. चौधरी भगोरथसिंह सेल, कालेसरा, अजमेर....105-106
  6. रामकरण सिंह परोदा, सराधना, अजमेर....106-108
  7. चौधरी किशनलाल बाना , गढ़ी थोरीयान, अजमेर....108
  8. चौधरी गंगाराम लंबरदार हरमाड़ा, हरमाड़ा, अजमेर....109
  9. चौधरी सवाईराम मांगलियावास, मांगलियावास, अजमेर....109
  10. चौधरी शिवबक्स जेठाना, जेठाना,अजमेर....109-110
  11. चौधरी नारायणसिंह तिलौनिया, तिलोनिया,अजमेर....110
  12. चौधरी उमरावसिंह तिलौनिया, तिलोनिया,अजमेर....110-111
  13. प्रेमदास महंत हाथीभाटा, हाथीभाटा,अजमेर....111-112
  14. चौधरी प्रताप मल्ल जी गोरा....112
अजमेर मेरवाड़ा के अन्य जाट सेवक

[पृ.112]: ब्यावर में श्री किशन लाल जी वामी के साथियों में रामप्रसादजी रामगोपाल जी और कनीराम जी समाज सुधार के कामों में सदैव कोशिश करते रहे हैं। यही पर से चौधरी प्रताप मल्ल जी गोरा है। जो अच्छे व्यवसाई होने के कारण मशहूर है। सरकारी मुलाजमत करते हुए जितना भी बन पड़ा हृदय से कौम का काम करने वालों में दोनों छोगालाल जी साहब और हल लाल सिंह जेलर का नाम उल्लेखनीय है। इन सभी के दिल में कौम की उन्नति देखने की साध है। अजमेर मेरवाड़ा के अन्य जाट सेवकों की सूची निम्नानुसार है:

  1. किशन लाल जी वामी ब्यावर
  2. रामप्रसादजी रामगोपाल जी ब्यावर
  3. कनीराम जी ब्यावर
  4. छोगालाल जी साहब ब्यावर
  5. हल लाल सिंह जेलर ब्यावर
  6. चौधरी राम गोपाल ब्यावर
  7. चौधरी छीतरजी सराधना
  8. चौधरी घीसाजी सराधना
  9. चौधरी भारमल तबीजी
  10. चौधरी रामचंद्र तबीजी
  11. चौधरी अमराजी मकरेड़ा
  12. चौधरी बलदेव जी मकरेड़ा
  13. चौधरी घीसाजी पाऊथान
  14. चौधरी रामनाथ जी चाट
  15. चौधरी बक्शी राम जी कालेसरा
  16. चौधरी हजारी जी खेड़ा
  17. सूरजमल जी कालेसरा
  18. चौधरी हजारी जी सांभला
  19. चौधरी प्रताप जी कालेसरा
  20. चौधरी नथाराम जी मास्टर पुष्कर
  21. मास्टर नारायण सिंह ब्यावर
  22. मास्टर किशन लाल जी ब्यावर
  23. चौधरी कलाराम जी ब्यावर
  24. चौधरी पन्नासिंह जी ब्यावर
  25. चौधरी प्रताप सिंह जेठाना

ठाकुर देशराज के अजमेर छोड़ देने के बाद अजमेर मेरवाड़ा की नौजवान पार्टी ने सन् 1936 में फिर एक शानदार सालाना जलसा पुष्कर में जाट महासभा का किया। इसके बाद महंत प्रेमदास और शिव नारायण सिंह वकील और चौधरी लालसिंह जेलर की पार्टी ने सरकार के काम को तरतीब दी। इसमें अजमेर मेरवाड़ा के सर्वमान्य नेता श्री किशनलाल जी लामरोड हैं। चौधरी भागीरथसिंह सेल, सुवालाल सेल आदि उनके सहयोगी हैं और नेतृत्व में प्रतिदिन उन्नति करते रहते हैं।

बीकानेर के जाट जन सेवक

[पृ.113]:
बीकानेर और जाट

बीकानेर का विस्तृत भूभाग प्राय: सारा का सारा जाटों से भरा पड़ा है। उनकी कुल आबादी 60 फीसदी है। 14 वीं सदी से पहले सारण,गोदारा, बेनीवाल, सियाग, पूनिया, कसवा और सोहू जाटों के यहां सात गणतंत्रात्मक (भाईचारे) के राज्य थे। इसके बाद राठौड़ आए और उन के नेता राव बीकाजी ने गोदारों के नेता पांडू को बहकाकर उसे अपना अधिनस्त कर लिया और जाटों की पारस्परिक फूट से राठौर सारे जांगल-प्रदेश पर छा गए। जाट पराधीन ही नहीं हुआ अपितु उसकी दशा क्रीतदास (खरीदे गुलाब) से भी बुरी हो गई।

राव बीका के वंशजों और उनके साथी तथा रिश्तेदारों की ज्यों ज्यों संख्या बढ़ती गई सारी जाट आबादी जागीर (पट्टे) दारों के अधिनास्त हो गई। उन्होंने जाटों को उनकी अपनी मातृभूमि में ही प्रवासियों के जैसे अधिकार भी नहीं रहने दिए। रक्षा की शपथ उठाने वाले राठौड़ जाटों के लिए जोंक बन गए।

एक दिन के विताड़ित क्षुधा से पीड़ित राठौड़ सिपाही और नायक जो विदेश में आकर आधिपत्य को प्राप्त हुए ज्यों-ज्यों ही बिलास की ओर बढे जाट का जीवन दूभर होता गया। उसकी गरीबी बढ़ती गई।

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इन राठौर शासकों ने जो गण्य-देश के जाटों का आर्थिक शोषण ही नहीं किया किंतु उन्हें उनके सामाजिक दर्जे से गिराने की भरसक कोशिश की। कल तक बीकानेर के मौजूदा महाराजा श्री सार्दुलसिंह जी भी चौधरी हनुमान सिंह जी को हनुमानिया के नाम से पुकारते रहे हैं।

राजपूत और जाट में क्या अंतर होता है इसका वास्तविक दर्शन महाराजा बीकानेर को तब हुआ जब सन् 1946 में लार्ड वेविल भरतपुर में शिकार के लिए पधारे थे। उस समय गर्म दल के लोगों ने महाराजा बीकानेर को काली झंडियाँ दिखाने का आयोजन किया किन्तु तमाशे के लिए इकट्ठे हुए जाटों ने इन प्रजामंडलियों के हाथों से काली झंडियां छीनछीन कर फेंक दी। क्योंकि उनको यह कतई नहीं जचा कि अपने अतिथि को, जिसे उनके राजा ने स्वयं आमंत्रित किया है, इस प्रकार अपमानित किया जाए। हालांकि जाट नेता यह जानते थे कि इन्हीं महाराजा साहब के बलबूते पर दूधवा खारा में सूरजमल नंगा नाच नाच रहा है।

बीकानेर का खजाना जाटों और उनके सहकर्मी लोगों से भरा जाता था किन्तु बीकानेर के शासकों ने उन्हें शिक्षित बनाने के लिए कभी भी एक लाख रूपयै साल भी खर्च नहीं किए जबकि राजपूतों की शिक्षा के लिए अलग कॉलेज और बोर्डिंग हाउस खोले गए। यही नहीं बल्कि उनकी निजी शिक्षा संस्थाओं को भी शक और सुबहा की दृष्टि से देखा जाता रहा।

इन हालातों में वहां के जाट सब्र के साथ दिन काटते रहे और स्वत: एक आध शिक्षण संस्था कायम करके शिक्षित बनने की कोशिश करते हैं किंतु हर एक बात की सीमा होती है।

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जब स्थिति चर्म सीमा पर पहुंच जाती है तब प्रतिक्रिया अवश्य होती है। जाटों के खून में भी गर्मी आई, वे आगे बढ़े और प्रजा परिषद के प्लेटफार्म से उन्होंने शांतिपूर्ण विद्रोह का झंडा खड़ा किया। दो वर्ष के कठोर संघर्ष के बाद शासकों का आसन हिला और उन्होंने शासन में प्रजा का भाग होना स्वीकार किया। उसी का यह फल हुआ कि वहां के मंत्री-परिषद में 2 जाट सरदार लिए गए।

महाराजा सार्दुलसिंह जी वस्तुस्थिति को समझ गए हैं और जिन्हें जमाने की गति से जानकारी है, वे राठोड़ भी यह महसूस करने लगे हैं कि हमने जाटों को सताकर और अपने से अलग करके भूल की है और भूल आगे भी जारी रही तो राठौरी प्रभुत्व की निशानी भी जांगल-देश में सदा के लिए मिट जाएगी। मंत्रिमंडल में जाने पर चौधरी हरदत्त सिंह और कुंभाराम आर्य ने देहाती समाज की तरक्की के लिए कुछ योजना तैयार की किन्तु दूसरे लोगों के षड्यंत्र के कारण अंतरिम मंत्रिमंडल तोड़ देना पड़ा।

लड़ाकू कौम होने के कारण यद्यपि बीकानेर के जाट सेनानियों में आपस में कुछ मतभेद भी हैं किंतु यह निश्चय से कहा जा सकता है कि दूसरों के लिए 5 और 100 के बजाए 105 हैं।

बीकानेर की जाट प्रगतियाँ
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बीकानेर के स्वर्गीय महाराजा गंगासिंह जी अपने समय के कठोर शासकों में से थे। उन्होने अपने समय में राज्य में आर्य समाज जैसी संस्थाओं को नहीं पनपने दिया। फिर जाट कोई अपना संगठन खड़ा कर सकते यह कठिन बात थी लेकिन फिर भी यहां के लोग अखिल भारतीय जाट महासभा की प्रगतियों शामिल होकर स्फूर्ति प्राप्त करते रहे उन्होंने एक बीकानेर राज्य जाटसभा नामक संस्था की रचना भी कर ली। चौधरी हरिश्चंद्र, चौधरी बीरबल सिंह, चौधरी गंगाराम, चौधरी ज्ञानीराम, चौधरी जीवनराम (दीनगढ़) इस सभा के प्राणभूत रहे।

जाटपन को कायम रखने और तलवारों के नीचे भी जाट कौम की सेवा करने में राज्य में चौधरी कुंभाराम आर्य का नाम सदा अमर रहेगा। सरकारी सर्विस में रहते हुए भी नौजवानों में उन्होंने काफी जीवन पैदा किया।

लाख असफलता और निराशाओं से गिरे हुए काम करने वालों में चौधरी हरिश्चंद्र और चौधरी जीवनराम अपने सानी नहीं रखते हैं। उन्होंने जाट महासभा के सामने प्रत्येक अधिवेशन में बीकानेर के मामले को रखा और जागृति के दीपक को प्रज्वलित रखा।

चौधरी ख्यालीराम ने मिनिस्टर होने पर एक नई जाट-सभा को जन्म दिया किन्तु वह मिट गई। बीकानेर में जो पढ़े लिखे और ऊंचे ओहदों पर जाट हैं उन्हें ढालने का श्रेय जाट हाई स्कूल संगरिया को है इसने जज, मिनिस्टर और कलेक्टर सभी किस्म के लोग तैयार किए। और इसी ने नेताओं में स्फूर्ति पैदा की। हालांकि यह संस्था सदैव राजनीति से दूर रही।

अब तक इस संस्था और इसकी शाखाओं (ग्राम स्कूलों) में लगभग 3000 बालकों ने शिक्षा पाई है।

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जिनमें से कई ऊंचे पदों पर और कई नेतागिरी में पड़कर जो गन्य-देश के गरीबों की सेवा कर रहे हैं।

वैसे तो स्वामी केशवानंद स्वयं एक जीवित संस्था है किंतु उन्होंने इस भूमि की सेवा के लिए 'मरुभूमि सेवा कार्य' नाम की संस्था को जन्म दिया। जिसके अधीन लगभग 100 पाठशालाएं चलाने का आयोजन है।

गंगानगर और भादरा में जाट बोर्डिंग है जिनसे कौम के बालकों को शिक्षा मिलने में सुविधा होती है।

हम यह कह सकते हैं कि रचनात्मक कामों में खासतौर से शिक्षा के सामने बीकानेर के जाट संतोषजनक गति से आगे बढ़ रहे हैं।

जाट विद्यालय संगरिया

पुराने जमाने में भारतवर्ष में गुरुकुलों की प्रणाली थी। हरेक वंश का एक राज्य होता था और हर वंश का कोई न कोई एक व्यक्ति कुल गुरु होता था। उसी कुल गुरु का एक गुरुकुल होता था। जिसमें उस वक्त राज्य के बच्चे शिक्षा पाते थे।

शिक्षा की वह प्रणाली अवशेष नहीं किंतु संगरिया जाट हाई स्कूल वास्तव में बीकानेर के जाटों का गुरुकुल साबित हुआ। इसे जिन लोगों ने जन्म दिया वह आर्य समाजी विचार के पुरुष ही थे। इसलिए आरंभ से ही यह संस्था गुरुकुल के ढंग पर ही संचालित हुई। इसकी स्थापना अगस्त 1917 में स्थानीय चौधरी बहादुरसिंह भोबिया, स्वामी मनसानाथ, चौधरी हरजीराम मंत्री और चौधरी हरिश्चंद्र के प्रयत्न से हुई।

यह संस्था उस समय तक डावांडोल भी रही जब तक यह किसी ऋषि के हाथ में नहीं सौंपा गया।

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आजकल ऋषि कहां है किंतु बीकानेर के देहातियों का यह सौभाग्य है उन्हें आज से 20 वर्ष पहले एक ऋषि का सहयोग मिला। उन राजर्ष स्वामी केशवानंद जी ने इस संस्था को एक आदर्श शिक्षा संस्था बना दिया। समस्त राजस्थान में इसके जोड़ की ऐसी शिक्षा संस्था नहीं जो इस की भांति पूर्ण हो।

राष्ट्र निर्माण के प्रत्येक प्रगति से शिक्षण संस्था अपने को पूर्ण बनाने में संलग्न है। इसमें शोध और पुरातत्व का विभाग है जो पालन और वैदनिक के विभाग हैं। यहां पर कताई, बुनाई, रंगाई, चित्रकला आदि की लोकोपयोग शिक्षा दी जाती है।

बीकानेर के देहातियों के लिए, खासतौर से जाटों के लिए, यह एक तीर्थ है और ठीक वैसा ही पवित्र तीर्थ है जैसा बौद्धों के लिए सारनाथ और हिंदुओं के लिए बनारस। मैं इसे समस्त जांगल देश का एक सुंदर उपनिवेश और जीवन को स्फूर्ति देने वाला उच्चकोटि का शिक्षा आश्रम मानता हूं। इसे पतना मोइक और उच्च रुप देने का सारा श्रेय स्वामी केशवानंद जी महाराज और उनके सहयोगियों को है।

ठाकुर गोपालसिंह जी पन्नीवाली और उनके पुत्र ने इस पवित्र शिक्षण संस्थानों को जमीन देने का सौभाग्य प्राप्त किया। जिन लोगों ने इस संस्था में आरंभिक शिक्षा प्राप्त करके आगे उच्च शिक्षा, औहदे आदि प्राप्त किए उनमें चौधरी शिवदत्त सिंह, चौधरी रामचंद्र सिंह, चौधरी बुद्धाराम, चौधरी सदासुख, चौधरी सूरजमल आदि पचासों और सज्जनों के नाम ओजस्वनीय हैं।

बीकानेर के जाट जन सेवकों की सूची

बीकानेर में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है। यहाँ इन महानुभावों की सूची दी गई है। विस्तृत विवरण के लिए नाम पर क्लिक करें।

  1. चौधरी हरिश्चंद्र नैण, लालगढ़/पुरानी आबादी, गंगानगर....p.119-125
  2. चौधरी बहादुरसिंह भोबिया, विडंगखेड़ा/संगरिया, हनुमानगढ़ ....p.119-125
  3. चौधरी जीवन राम कडवासरा, दीनगढ़, हनुमानगढ़ ....p.129-130
  4. चौधरी पौखरराम बेंदा, बादनूं, बीकानेर....p.130-131
  5. चौधरी मुखराम, ----, बीकानेर....p.131
  6. स्वामी चेतनानन्द, रतनगढ़, चुरू....p.132
  7. मास्टर रामलाल, संगरिया, हनुमानगढ़....p.132-133
  8. चौधरी गंगाराम ढाका, नगराना, हनुमानगढ़....p.133-135
  9. चौधरी नन्दरामसिंह जाणी, कटोरा/बीकानेर, बीकानेर....p.135
  10. चौधरी हरिदत्तसिंह बेनीवाल, गांधी बड़ी, हनुमानगढ़....p.136-137
  11. चौधरी कुम्भाराम आर्य, फेफाना, हनुमानगढ़....p.137-138
  12. सूबेदार शिवजीराम सहारण, डालमाण, चूरु....p.140-141
  13. मेजर जीतराम निनाणा, निनाणा, हनुमानगढ़....p.141
  14. सूबेदार बीरबलसिंह कसवा, उत्तराधाबास, हनुमानगढ़....p.141-142
  15. सरदार हरीसिंह महिया, बिल्यूंबास महियान, चूरु....p.142-143
  16. चौधरी शोभाराम महला, फेफाना, हनुमानगढ़....p.143
  17. चौधरी हरिश्चंद्र ढाका, नत्था सिंह ढाका का चक, ढाकावाली, बहावलपुर....p.143-144
  18. चौधरी शिवकरणसिंह चौटाला, चौटाला, हिसार....p.144-145
  19. चौधरी सरदाराराम चौटाला, चौटाला, हिसार....p.144-145
  20. चौधरी हंसराज आर्य, घोटड़ा, हनुमानगढ़....p.145-146
  21. चौधरी बद्रीराम बेनीवाल, छानी, हनुमानगढ़....p.146
  22. चौधरी बहादुरसिंह सारण, फेफाना, हनुमानगढ़....p.146-147
  23. कवि हरदत्त सिंह, सेरूणा, बीकानेर....p.147
  24. चौधरी रूपराम मान, गोठा, चूरु....p.147-148
  25. मास्टर छैलूराम पूनिया, गागड़वास, चूरु....p.148
  26. चौधरी चंदगीराम पूनिया, गागड़वास, चूरु....p.148
  27. चौधरी बुधराम डूडी, सीतसर, चूरु....p.148-149
  28. चौधरी अशाराम मंडा, बालेरा, सुजानगढ़, चूरु....p.149
  29. शीश राम श्योराण, पचगांव, भिवानी, हरयाणा....p.149
  30. स्वामी स्वतंत्रतानंद गोस्वामी, गुसाइयों का बास, राजगढ़, चूरु....p.149
  31. स्वामी कर्मानन्द बिलोटा, बिलोटा, भिवानी, हरयाणा....p.150
  32. चौधरी जीवनराम पूनिया, जैतपुरा, चूरु....p.150-151
  33. चौधरी मामराज गोदारा मोटेर, मोटेर, हनुमानगढ़....p.150-151
  34. चौधरी चंदाराम थाकन, मोटेर, हनुमानगढ़....p.151
  35. चौधरी केशाराम गोदारा, उदासर, हनुमानगढ़....p.151
  36. चौधरी सहीराम भादू, सिंगरासर, गंगानगर....p.152-153
  37. चौधरी छोगाराम गोदारा, अकासर, बीकानेर....p.153
  38. चौधरी धर्माराम सिहाग, पलाना, बीकानेर....p.153
  39. चौधरी सोहनराम थालोड़, रतनसरा, चूरु....p.154
  40. चौधरी सुरता राम सेवदा, खारिया कनीराम), चूरु....p.154
  41. चौधरी हीरासिंह चाहर, पहाडसर, चूरु....p.154-155
  42. चौधरी मालसिंह पूनिया मिनख, लोहसाना बड़ा, चूरु....p.155-156
  43. सूबेदार टीकूराम नेहरा, बूंटिया, चूरु....p.156
  44. चौधरी रामलाल बेनीवाल, सरदारगढ़िया, हनुमानगढ़....p.156-157
  45. चौधरी खयाली सिंह गोदारा, ----, बीकानेर....p.157
  46. चौधरी अमिचन्द झोरड़, झोरड़पुरा, हनुमानगढ़....p.157-158
  47. लेफ्टिनेंट सहीराम झोरड़, नुकेरां, हनुमानगढ़....p.158
  48. चौधरी जसराज फगेडिया, मोतीसिंह की ढाणी, चूरु....p.158-159
  49. चौधरी दीपचंद कसवां, कालरी, चूरु....p.159
  50. चौधरी नौरंगसिंह पूनिया, हमीरवास, राजगढ़, चूरु....p.159-160
  51. चौधरी पूरनचन्द डूडी, धीरवास छोटा, चूरु....p.160
  52. चौधरी लक्ष्मीचन्द पूनिया, ----, चूरु....p.160
  53. चौधरी मनफूल सिंह बाना, ----, चूरु....p.160-161
  54. स्वामी गंगा राम, लालपुर, बीकानेर....p.161
  55. चौधरी रिक्ताराम तरड़, जसरासर, बीकानेर....p.161
  56. चौधरी ज्ञानी राम, ----, गंगानगर....p.162
  57. चौधरी धन्नाराम डूडी, छानी बड़ी, हनुमानगढ़ ....p.162-163

पंचकोशी, चौटाला, मलोट के सरदार

पंचकोशी के सरदार - [ p.163]: यद्यपि पंचकोशी गांव जिला फिरोजपुर में है किंतु इस जिले के जाटों की भाषा पंजाबी से नहीं मिलती और उनकी सेवा का क्षेत्र भी अधिकतर बीकानेर राज्य ही रहा है। संगरिया जाट स्कूल को उन्नत बनाने में चौटाला के लोगों की भांति ही उनका हाथ रहा है। पंचकोशी में कई जाट घराने प्रमुख हैं उनमें जाखड़, पूनिया और कजला गोत्रों के तीन घराने और भी प्रसिद्ध हैं।

पंचकोशी के जाखड़ों में चौधरी चुन्नीलाल जी जाखड़ अत्यंत उदार और दिलदार आदमी हैं। आपके ही कुटुंबी भाई चौधरी राजारामजी जैलदार थे। वे अपने सीधेपन के लिए प्रसिद्ध थे। चौधरी चुन्नीलाल जी जाखड़ ने संगरिया जाट स्कूल को कई हजार रुपया दान में दिए।


[ p.164]:अबोहर के साहित्य सदन में उन्होंने काफी रुपया लगाया है। सबसे बड़ी देन देहाती जनता के लिए आपके उद्योगपाल कन्या विद्यालय की है। यह विद्यालय आपने अपने प्रिय कुंवर उद्योगपाल सिंह की स्मृति को ताजा रखने के लिए सन् 1942 में स्थापित किया है। इसके लिए आप ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया है।

आप एक शिक्षित और प्रभावशाली जाट सरदार हैं। दूर-दूर तक आपका मान और ख्याति हैं। आप आर्य समाजी ख्याल के सज्जन हैं। जिले के बड़े बड़े धनिकों में आप की गिनती है। स्वभाव मीठा और वृत्ति मिलनसार है।

पंचकोशी के पूनियों में चौधरी मोहरूराम जी तगड़े धनी आदमियों में से हैं। आप ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं किंतु व्यापार में आप की खूब चलती है। आप लाखों रुपए कमाते हैं और अबोहर मंडी में आपका कारोबार है। वहां एक विशाल और भव्य मकान भी आपका है। पंचकोशी मैं भी पूरा ठाट है। आपने जाट स्कूल संगरिया को कई बार बड़ी-बड़ी रकमे दी हैं। आरंभ में आप अधिक से अधिक रकम इस विद्यालय को देते थे। स्वामी केशवानन्द जी में आपकी दृढ़ भक्ति है। और चौधरी छोटूराम जी के उनके अंत समय तक भक्त रहे। चौधरी छोटूराम जी जब अबोहर पधारे तो आपके ही अतिथि रहे।

पंचकोशी के दूसरे पूनियों में चौधरी घेरूराम जी, चौधरी लेखराम जी, और चौधरी जगन्नाथ जी के नाम उल्लेखनीय हैं। इन लोगों ने भी संगरिया विद्यालय की भरसक सहायता की।

यहां पर बद्रीराम जी नंबरदार और मेघाराम जी झझड़िया भी शिक्षा प्रेमी और संगरिया विद्यालय के सेवकों में से रहे हैं।

चौधरी खयाली राम जी काजला इस गाँव के तीसरे आदमी हैं जो सार्वजनिक हलचलों में दिलचस्पी लेते हैं। आप अबोहर


[ p.165]:के चलता पुस्तकालय के मेंबर हैं। और दीपक अखबार के प्रेमी हैं। संगरिया जाट स्कूल की आपने सदैव तन मन धन से सेवा की है। आप समझदार और विचारवान आदमी हैं।


चौटाला (हिसार) - [ p.165]: चौटाला (हिसार) संगरिया विद्यालय से यह गाँव दो-ढाई कोस के फासले पर है। यहां कई जाट घर काफी मशहूर हैं। इनमें चौधरी शिव करण सिंह, बल्लू रामजी चौधरी, चौधरी मलू राम, सरदारा राम सारण, चौधरी ख्याली राम, मनीराम, चौधरी जी सुखराम जी सिहाग और हरिराम पूर्णमल जी आदि ने जाट स्कूल संगरिया के प्राणों की बड़ी सावधानी से अपने नेक कमाई के पैसे से सहायता कर के बीकानेर के जाटों के उत्साह को जिंदा रखा है।

इस गांव में सहारण, सिहाग, और गोदारा जाट ज्यादा आबाद हैं।

चौधरी शिव करणसिंह चौटाला यहाँ के नेता लोगों में अपना प्रभुत्व रखते हैं। |चौधरी सरदारा राम जी अन्य आदमी हैं। इन सभी लोगों ने बीकानेर निवासी कृतज्ञ हैं। यहां पर चौधरी साहबराम जी कांग्रेसी नेताओं में गिने जाते हैं।


मलोट के सरदार - [p.165]: मलोट एक मशहूर मंडी है। यह भी जिला फिरोजपुर में है। यहां के चौधरी हरजीराम जी एक शांतिप्रिय और मशहूर आदमी हैं। कारबार में रुपया लगाने में आप मारवाड़ियों जैसे हिम्मत रखते हैं। आपने सन 1938-39 में मलोट मंडी में कपास ओटने का एक मिल खड़ा किया। वह आरंभ में नहीं चल सका।


[p.166]: इससे आपको बड़ा आर्थिक धक्का लगा। इसके बाद व्यापार और कृषि तथा लेनदेन से फिर अपने सितारे को को चमकाया। संगरिया विद्यालय के तो आप प्रमुख कर्णधारों में हैं। आपने उसे चलाने के लिए अपने पास से भी काफी धन दिया है। अबोहर साहित्य सदन की प्रगतियों में भी आपका काफी हाथ रहता है। आपके छोटे भाई चौधरी सुरजा राम जी हैं। पुत्र सभी शिक्षित और योग्य हैं। इस समय दीपक को साप्ताहिक करने में आपका पूरा सहयोग है। आप जिले के मुख्य धनियों में से एक हैं। आप गोदारा हैं।

झूमियाँवाली - यहां के चौधरी हरिदास जी सार्वजनिक कामों में बड़ी दिलचस्पी लेते हैं। और लोगों में आपका बड़ा मान है। आप बैरागी जाट हैं। पवित्र रहन सहन और खयालात आप की विशेषता है। संगरिया विद्यालय की आपने समय-समय पर काफी मदद की है।

मारवाड़ के जाट जन सेवक

मारवाड़

मारवाड़ का प्राचीन इतिहास: [पृ.167]:राजस्थान की क्षेत्रफल में सबसे बड़ी रियासत जोधपुर (मारवाड़) की है। इसमें बहुत कुछ हिस्सा गुजरात का और सिंध प्रांत का है। गुजराती, सिंधी और मालवी हिस्सों को इस रियासत से निकाल दिया जाए तो वास्तविक मारवाड़ देश निरा जाटों का रह जाता है।

मारवाड़ शब्द मरुधर से बना है। यह भूमि मरु (निर्जीव) रेतीली भूमि है। नदियों सुपारु न होने से यहां का जीवन वर्षा पर ही निर्भर है और वर्षा भी यहां समस्त भारत से कम होती है। वास्तव में यह देश अकालों का देश है। यहां पर जितनी बहुसंख्यक जातियां हैं वे किसी न किसी कारण से दूसरे प्रांतों से विताडित होकर यहां आवाद हुई हैं। मौजूदा शासक जाति के लोगों राठौड़ों को ही लें तो यह कन्नौज की ओर से विताड़ित होकर यहां आए और मंडोर के परिहारों को परास्त करके जोधा जी राठौड़ ने जोधपुर बसाया।

परिहार लोग मालवा के चंद्रावती नगर से इधर आए थे। यहां के पवार भी मालवा के हैं और यहां जो गुर्जर हैं वह भी कमाल के हैं जो कि किसी समय गुजरात का ही एक सूबा था।

आबू का प्रदेश पुरातन मरुभूमि का हिस्सा नहीं है। वह मालवा का हिस्सा है। जहां पर कि भील भावी आदि जातियां रहती थी।


[पृ.168]: जाट यहां की काफी पुरानी कौम है जो ज्यादातर नागवंशी हैं। यहां के लोगों ने जाट का रूप कब ग्रहण किया यह तो मारवाड़ के जाट इतिहास में देखने को मिलेगा जो लिखा जा रहा है किंतु पुराने जितनी भी नाग नश्ले बताई हैं उनमें तक्षकों को छोड़ कर प्राय: सभी नस्लें यहां के जाटों में मिलती हैं।

यहां पर पुरातन काल में नागों के मुख्य केंद्र नागौर, मंडावर, पर्वतसर, खाटू.... आदि थे।

पुराण और पुराणों से इतर जो इतिहास मिलता है उसके अनुसार नागों पर पांच बड़े संकट आए हैं – 1. नाग-देव संघर्ष, 2. नाग-गरुड संघर्ष, 3. नाग-दैत्य संघर्ष, 4. नाग-पांडव संघर्ष, 5. नाग-नाग संघर्ष। इन संघर्षों में भारत की यह महान जाति अत्यंत दुर्बल और विपन्न हो गई। मरुभूमि और पच-नन्द के नाग तो जाट संघ में शामिल हो गए। मध्य भारत के नाग राजपूतों में और समुद्र तट के मराठा में। यह नाग जाति का सूत्र रूप में इतिहास है।

किसी समय नागों की समृद्धि देवताओं से टक्कर लेती थी। यह कहा जाता था कि संसार (पृथ्वी) नागों के सिर पर टिकी हुई हैउनमें बड़े बड़े राजा, विद्वान और व्यापारी थे। चिकित्सक भी उनके जैसे किसी के पास नहीं थे और अमृत के वे उसी प्रकार आविष्कारक थे जिस प्रकार कि अमेरिका परमाणु बम का।

मारवाड़ी जाटों में नागों के सिवाय यौधेय, शिवि, मद्र और पंचजनों का भी सम्मिश्रण है।

राठौड़ों की इस भूमि पर आने से पहले यहां के जाट अपनी भूमि के मालिक थे। मुगल शासन की ओर से भी


[पृ.169]: कुछ कर लेने के लिए जाटों में से चौधरी मुकरर होते थे जो मन में आता और गुंजाइश होती तो दिल्ली जाकर थोड़ा सा कर भर आते थे।

मुगलों से पहले वे कतई स्वतंत्र थे। 10वीं शताब्दी में वे अपने अपने इलाकों के न्यायाधीश और प्रबंधक भी थे। मारवाड़ में लांबा चौधरी1 के न्याय की कथा प्रसिद्ध है। वीर तेजा को गांवों के हिफाजत के लिए इसी लिए जाना पड़ा था। कि प्रजा के जान माल की रक्षा का उनपर उत्तरदायित्व था क्योंकि वह शासक के पुत्र थे और शासक के ही जामाता बनकर रूपनगर में आए थे।

राठौड़ों के साथ जाटों के अहसान हैं जिसमें जोधा जी मंडोवर के परिहारों से पराजित होकर मारे मारे फिरते थे उस समय उनकी और उनके साथियों की खातिरदारी जाटों ने सदैव की और मंडोवर को विजय करने का मंत्र भी जाटनीति से ही जोधा को मिला।

लेकिन राठौड़ शासकों का ज्यों-ज्यों प्रभाव और परिवार बढ़ता गया मरुभूमि के जाटों के शोषण के रास्ते भी उसी गति से बढ़ते गए। रियासत का 80 प्रतिशत हिस्सा मारवाड़ के शासक ने अपने भाई बंधुओं और कृपापात्रों की दया पर छोड़ दिया। जागीरदार ही अपने-अपने इलाके के प्राथमिक शासक बन गए। वास्तव में वे शासक नहीं शोषक सिद्ध हुए और 6 वर्षों के लंबे अरसे में उन्होंने जाटों को अपने घरों में एक अनागरिकी की पहुंचा दिया।

अति सभी बातों की बुरी होती है किंतु जब बुराइयों की अति को रोकने के लिए सिर उठाया जाता है तो अतिकार और भी बावले हो उठते हैं पर उनके बावलेपन से क्षुब्द


1 झंवर के चौधरियों का न्याय बड़ा प्रसिद्ध था


[पृ.170] समाज कभी दवा नहीं वह आगे ही बढ़ा है।

राठौरों के आने के पूर्व जबकि हम इस भूमि पर मंडोवर में मानसी पडिहार का और आबू चंद्रावती में पंवारों का राज्य था, जाट भौमियाचारे की आजादी भुगत रहे थे। रामरतन चारण ने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि ये भोमियाचारे के राज्य मंडोर के शासक को कुछ वार्षिक (खिराज) देते थे।

पाली के पल्लीवाल लोगों ने अस्थाना राठौर सरदार को अपने जान माल की हिफाजत के लिए सबसे पहले मरुधर भूमि में आश्रय दिया था। इसके बाद अस्थाना ने अपने ससुराल के गोहीलों के राज्य पर कब्जा किया और फिर शनै: शनै: वे इस सारे प्रांत पर काबिज हो गए।

सबसे अधिक बुरी चीज राठौड़ शासकों ने तमाम भाई-बहनों को जागीरदार बनाकर की। मारवाड़ की कृषक जातियों को खानाबदोश बनाने का मुख्य कारण यह जागीरदार ही हैं।

मारवाड़ के जाट जन सेवकों की सूची

मारवाड़ में जाट कौम की अपने-अपने तरीकों से जिन महानुभावों ने सेवा की और कौम को आगे बढ़ाया उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है। यहाँ इन महानुभावों की सूची दी गई है। विस्तृत विवरण के लिए नाम पर क्लिक करें।

  1. चौधरी बलदेवराम मिर्धा, कुचेरा, नागौर....p.170-173
  2. चौधरी गुल्लाराम बेन्दा, रतकुड़िया, जोधपुर....p.173-175
  3. चौधरी माधोसिंह इनाणिया, गंगाणी, जोधपुर....p.176-177
  4. चौधरी भींया राम सिहाग, परबतसर, नागौर....p.177-179
  5. मास्टर रघुवीरसिंह तेवतिया, दुहाई, ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश, ....p.179
  6. मास्टर रामचंद्र मिर्धा, कुचेरा, नागौर....p.180-181
  7. चौधरी देवाराम भादू, जोधपुर, जोधपुर....p.181-182
  8. चौधरी पीरूराम पोटलिया, जोधपुर, जोधपुर....p.182-183
  9. चौधरी मूलचन्द सियाग, बालवा, नागौर....p.183-186
  10. चौधरी दलूराम तांडी, नागौर, नागौर....p.187
  11. चौधरी गंगाराम खिलेरी, सुखवासी, नागौर....p.187
  12. चौधरी जेठाराम काला, बलाया, नागौर....p.187
  13. चौधरी जीवनराम जाखड़, रामसिया, नागौर....p.188
  14. चौधरी शिवकरण बुगासरा, नागौर, नागौर....p.188-189
  15. चुन्ना लाल सारण, मक्कासर, हनुमानगढ़ ....p.189
  16. मास्टर धारासिंह सिंधु, ----, मेरठ....p.189-190
  17. चौधरी धन्नाराम भाम्बू, गोरेड़ी , नागौर....p.190
  18. चौधरी रामदान डऊकिया, खड़ीन, बाड़मेर....p.190-191
  19. चौधरी आईदानराम भादू, शिवकर, बाड़मेर....p.191
  20. चौधरी शिवराम मैया, जाखेड़ा, नागौर....p.191-192
  21. सूबेदार पन्नाराम मण्डा, ढींगसरी, चूरु....p.192-193
  22. स्वामी चैनदास लोल, बलूपुरा, सीकर....p.193-194
  23. रुद्रादेवी, जोधपुर, जोधपुर....p.194-195
  24. चौधरी उमाराम भामू, रोडू, नागौर....p.195-196
  25. चौधरी गणेशाराम माहिया, खानपुर, नागौर....p.196
  26. चौधरी झूमरलाल पांडर, बोडिंद, नागौर....p.196-197
  27. चौधरी हीरन्द्र शास्त्री चाहर, दौलतपुरा, नागौर....p.197
  28. चौधरी किशनाराम छाबा, डेह, नागौर....p.197
  29. चौधरी गिरधारीराम छाबा, डेह, नागौर....p.197
  30. चौधरी मनीराम राव, लुणदा, नागौर....p.197-198
  31. चौधरी रुघाराम साहू, खाखोली, नागौर....p.198
  32. चौधरी रामूराम जांगू, अलाय, नागौर....p.198
  33. चौधरी रावतराम बाना, भदाणा, नागौर....p.198
  34. मास्टर मोहनलाल मांजू, डेरवा, नागौर....p.198
  35. मास्टर सोरनसिंह ब्राह्मण, ----, उत्तर प्रदेश....p.199
  36. चौधरी हेमाराम गुजर, जाबराथल, नागौर....p.198
  37. चौधरी जगमाल गौल्या, गुडला, नागौर....p.199
  38. चौधरी महेन्द्रनाथ शास्त्री, ----, मेरठ, उत्तर प्रदेश, ....p.199-200
  39. चौधरी हरदीनराम बाटण, सुरपालिया, नागौर....p.200
  40. चौधरी मगाराम सांवतराम चुंटीसरा, चुंटीसरा, नागौर....p.200
  41. चौधरी कानाराम सारण, झाड़ीसरा, नागौर....p.201
  42. मास्टर सोहनसिंह तंवर, ----, मथुरा....p.201
मारवाड़ की जाट प्रगति

[पृ.201]:वैसे तो समस्त राजस्थान में पुष्कर जाट महोत्सव के बाद से जागृति का बीजारोपण हो गया था किंतु मारवाड़


[पृ.202]: में उसे व्यवस्थित रूप तेजा दशमी के दिन सन् 1938 के अगस्त महीने की 22 तारीख को प्राप्त हुआ।

इस दिन मारवाड़ जाट कृषक सुधारक नामक संस्था की नींव पड़ी। इसके प्रथम सभापति बाबू गुल्ला राम जी साहब रतकुड़िया और मंत्री चौधरी मूलचंद जी साहब चुने गए। मारवाड़ भी कुरीतियों का घर है। यहां लोग बड़े-बड़े नुक्ते (कारज) करते हैं। एक एक नुक्ते में 50-60 मन का शीरा (हलवा) बनाकर बिरादरी को खिलाते हैं। इसमें बड़े-बड़े घर तबाह हो जाते हैं। इस कुप्रथा को रोकने के लिए सभा ने प्रचारकों द्वारा प्रचार कराया और राज्य से भी इस कुप्रथा को रोकने की प्रार्थनाएं की। जिसके फलस्वरूप 30 जुलाई 1947 को जोधपुर सरकार ने पत्र नंबर 11394 के जरिए सभा को इस संबंध का कानून बनाने का आश्वासन दिया और आगे चलकर कुछ नियम भी बनाए

सन् 1938-39 के अकालों में जनता की सेवा करने का भी एक कठिन अवसर सभा के सामने आया और सभा के कार्यकर्ताओं ने जिनमें चौधरी रघुवीर सिंह जी और चौधरी मूलचंद जी के नाम है, कोलकाता जाकर सेठ लोगों से सहायता प्राप्त की और शिक्षण संस्थाओं के जाट किसान बालकों का खाने-पीने का भी प्रबंध कराया। नागौर, चेनार, बाड़मेर और मेड़ता आदि में जो दुर्भिक्स की मार से छटपटाते पेट बालक इकट्ठे हुए उनके लिए संगृहीत कन से भोजनशाला खोलकर उस संकट का सामना किया गया।

शिक्षा प्रचार के लिए मारवाड़ के जाटों ने अपने पैरों पर खड़े होने में राजस्थान के तमाम जाटों को पीछे छोड़ दिया है। मेड़ता, नागौर, बाड़मेर, परवतसर और जोधपुर आदि में


[पृ.203] उन्होंने बोर्डिंग कायम किए हैं और चेनार, ढिंगसरी, रोडू, हताऊ, अमापुरा आदि गांव में पाठशाला कायम की है।

कुरीति निवारण, शिक्षा प्रसार और संगठन के अलावा मारवाड़ जाट सभा ने कौम के अंदर जीवन और साहस भी पैदा किया है जिससे लोगों ने जागीरदारों के जुर्म के खिलाफ आवाज उठाना और उनके आतंक को भंग करना आरंभ किया किंतु जागीरदारों को जाटों की यह जागृति अखरी और उन्होंने जगह-जगह दमन आनंद किया। इस दमन का रूप गांवों में आग लगाना, घरों को लुटवाना और कत्ल कराना आदि बर्बर कार्यों में परिनित हो गया। आए दिन कहीं-कहीं से इस प्रकार के समाचार आने लगे। इनमें से कुछ एक का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

चटालिया के जागीरदार ने 50-60 बदमाशों को लेकर जाटों की आठ ढाणी (नगलों) पर हमला किया। जो कुछ उन किसानों के पास था लूट लिया। स्त्रियों के जेवर उतारते समय डाकू से अधिक बुरा सलूक किया। उन लोगों को भी इन बदमाशों ने नहीं बख्शा जो जोधपुर सरकार की फौजी सर्विस में थे। सैकड़ों जाट महीनों जोधपुर शहर में अपना दुखड़ा रोने और न्याय पाने के लिए पड़े रहे, किंतु चीफ मिनिस्टर और चीफ कोर्ट के दरवाजे पर भी सुनवाई नहीं हुई। इससे जागीरदारों के हौंसले और भी बढ़ गए।

पांचुवा ठिकाने में कांकरा की ढानी पर हमला करके वहां के किसानों को लूट लिया। लूट के समय कुछ मिनट बाद वहीं के पेड़ों के नीचे जागीरदार के गुंडे साथियों ने कुछ बकरे काटकर उनका मांस पकाया और उस समय तक स्त्रियों से जबरदस्ती


[पृ.204] पानी भराने और घोड़ों को दाना डालने की बेगार ली। यहां के किसानों का एक डेपुटेशन आगरा ठाकुर देशराज जी के पास पहुंचा। उन्होंने जोधपुर के प्राइम मिनिस्टर को लिखा पढ़ी की और अखबारों में इस कांड के समाचार छपवाए किंतु जोधपुर सरकार ने पांचवा के जागीदार के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की।

भेरु के जागीरदार ने तो जाटों की एक ढाणी को लूटने के बाद उसमें आग लगा दी और खुद बंदूक लेकर इसलिए खड़ा हो गया कि कोई आग को बुझा कर अपने झोपड़ियों को न बचा ले।

सभा के प्रचारकों को प्रचार कार्य करने से रोकने के लिए, रोज गांव में जबकि प्रचार हो रहा था, वहां का जागीरदार 150 आदमी लेकर पहुंचा और लाठियां बरसाने की आज्ञा अपने आदमियों को दे दी। जैसे तैसे लोगों ने अपनी जानें बचाई। खारी के जागीरदारों ने तो यहां तक किया कि सभा के प्रचार मंत्री सूबेदार पन्नाराम जी के गांव ढिंगसरी पर हमला कर दिया। सुबेदार जी अपनी चतुराई से बच पाये।

बेरी के जागीरदार ने बुगालियों की ढाणी पर हमला करा के गांव में आग लगा दी। जिससे चौधरी रुघाराम जी और दूसरे आदमियों का हजारों का माल जल गया।

खींवसर के जागीरदार ने टोडास गांव में श्री दामोदर राम जी मोहिल सहायक मंत्री मारवाड़ किसान सभा को रात के समय घेर लिया। जागीदार के आदमियों ने लाठियों से उन्हें धराशाई कर दिया और वह भाग न जाए इसलिए बंदूक से छर्रे चलाकर पैर को जख्मी कर दिया। इसके बाद उन्हें अपने गढ़ में ले जाकर जान से मार देना चाहा किंतु कुछ


[पृ.205] सोच समझकर एक जंगल में फिकवा दिया। 6 अप्रैल 1943 को उनके एक देहाती मित्र के सहयोग से जोधपुर के विंढम अस्पताल में पहुंचा कर उनकी जान बचाई गई।

खामयाद और भंडारी के जागीदार और भूमियों ने तारीख 17 मई 1946 को दिन छिपे लच्छाराम जाट की ढाणी पर हमला किया। लच्छा राम और उसके बेटे मघाराम को जान से मार दिया और फिर मघाराम की स्त्री को बंदूक के कुंदों से मारकर अधमरी करके पटक दिया। उसके बच्चों को इकट्ठा करके झूंपे में बंद कर दिया और आग लगाकर चलते बने। मंजारी सूटों की भांति बच्चे तो बच गए।

जोधपुर से प्रकाशित होने वाले लोक सुधारक नामक साप्ताहिक पत्र ने सन 1947 और 1948 के जुलाई महीने तक के जागीरदारी अत्याचारों की तालिका अपने 9 अगस्त 1948 के अंक में प्रकाशित की है जिसका सार यह है-

डीडवाना परगने के खामियाद के जागीरदारों ने 2 जाट किसानों के समय को क़त्ल कर दिया। डाबड़ा हत्याकांड में चार जाट किसान मारे गए। यहां लगभग डेढ़ हजार जागीरदार के गुंडों ने हमला किया। नेतड़िया परगना मेड़ता में एक जाट किसान को हमलावरों ने जान से मार डाला। मेड़ता परगने के ही खारिया, बछवारी, खाखड़की गांवों पर जो गुंडे जागीरदारों ने हमले कराये उनमें प्रत्येक गांव में एक-एक आदमी (जाट) मारा और अनेकों घायल हो गए। बाड़मेर परगने के ईशरोल गांव की एक जाटनी को बंदूक की नाल के ठूसों से जागीरी राक्षसों ने मार डाला। इसी परगने के लखवार, शिवखर और दूधु गांव पर हमला किया गया जिनमें लखवार का एक जाट और शिवखर का एक माली मारा गया। बिलाड़ा में बासनी बांबी


[पृ.206] किसान हवालात में जाकर मर गया। इसी बिलाड़ा परगने में वाड़ा, रतकुड़िया, चिरढाणी गांव पर जो हमले जागीरदारों ने कराए उनमें क्रमशः एक, दो और एक जाट किसान जान से मार डाले गए। नागौर परगने के सुरपालिया, बिरमसरिया, रोटू और खेतासर गांव में जाट और बिश्नोईयों की चार जाने कातिलों के हमलों से हुई। शेरगढ़ परगने के लोड़ता गांव में हमलावरों ने एक बुड्ढी जाटनी के खून से अपनी आत्मा को शांत किया। ये हमले संगठित रूप में और निश्चित योजना अनुसार हुए जिसमें घोड़े और ऊंटों के अलावा जीप करें भी इस्तेमाल की गई। जोधपुर पुलिस ने अब्बल तो कोई कारवाई इन कांडों पर की नहीं और की भी तो उल्टे पीड़ितों को ही हवालात में बंद कर दिया और उन पर मुकदमे चलाए।

सभा के प्रचारकों को भी मारा गया। कत्ल किया गया और पीटा गया। इन तमाम मुसीबतों के बावजूद भी सभा बराबर अपने उद्देश्य पर अटल रही और शांतिपूर्ण तरीकों से अपने कदम को आगे बढ़ाती रही।

मारवाड़ जाट सभा के सहायक

[पृ.206] जिन लोगों का पिछले पृष्ठों में जिक्र किया जा चुका है उनके सिवा मारवाड़ जाट सभा को आगे बढ़ाने में निम्न सजजनों के नाम उल्लेखनीय हैं:

1. स्वामी आत्माराम जी मूंडवा - जो कि अत्यंत सरल और उच्च स्वभाव के साधु हैं और वैद्य भी ऊंचे दर्जे गए हैं। आप अपने परिश्रम से अपना गुजारा करते हैं।


[पृ.207]

आपका यश चारों ओर फैला हुआ है। आप अपने पवित्र कमाई में से शिक्षा और स्वास्थ्य पर दान करते रहते हैं।

2. स्वामी सुतामदासजी - आप नागौर के रहने वाले हैं और योग्य वैद्य हैं। आपको अपनी जाति से प्रेम है और जनसेवा के कार्यों से दिलचस्पी रखते हैं।

3. स्वामी जोगीदास जी - आप भी मूंडवा के ही रहने वाले हैं और वैद्य भी हैं। आपको भी कौमी कामों से मोहब्बत है।

4. स्वामी भाती राम जी - जोधपुर में रहते हैं। आपका व्यक्तित्व ऊंचा और स्वभाव मीठा है। आप प्रभावशाली साधु हैं। सभा के कामों में सदैव सहयोग दिया है और सभा के उप प्रधान रहे हैं।

5. महंत नरसिंहदास जी - आप भी मारवाड़ जाट सभा के उप प्रधान रहे हैं और सदा सभा को आगे बढ़ाने का कोशिश करते रहे हैं। आप एक सुयोग्य साधु हैं।

6. कुंवर गोवर्धन सिंह जी – आप सियाग गोत्र के जाट सरदार हैं। पीपाड़ रोड के रहने वाले हैं। आपने उच्च शिक्षा प्राप्त की है, ग्रेजुएट है। आप सभा के उरसही कार्यकर्ता रहे हैं। और असेंबली के लिए सभा ने जिन सज्जनों के नाम पास किए थे उनमें आपका नाम था। इससे आपकी योग्यता का परिचय मिलता है। आप इस समय सभा के उप मंत्री हैं।

7. चौधरी किसनाराम जी - आप छोटीखाटू के रहने वाले हैं। आपके पुत्र श्री राम जीवन जी तथा दूसरे योग्य आदमी और जाति हितेषी हैं। आप का गोत्र रोज है। आप इस समय मारवाड़ जाट सभा के प्रधान हैं। बड़े उत्साह और हिम्मत के आदमी हैं। जागीरदारों से आपने हिम्मत के साथ टक्कर ली।


[पृ.208]:

आप पर मारवाड़ के जाट पूर्ण विश्वास रखते हैं। धनी माँनी आदमी हैं।


8. चौधरी देशराज जी - आप महाराजपुरा गांव के रहने वाले बाअसर जाट सरदार हैं। आप मारवाड़ जाट सभा के प्रधान रहे हैं और उसे आगे बढ़ाने में खूब परिश्रम किया है। दिलेर आदमी हैं। आप का गोत्र लेगा है।

9. कुंवर करण सिंह - आप नागौर परगने के रहने वाले नौजवान व्यक्ति हैं। आपका जीवन उत्साही जवानों का जैसा है। आप इस समय वकालत करते हैं और जाट बोर्डिंग हाउस नागौर के आप सुपरिटेंडेंट रह चुके हैं। आप रचनात्मक काम में अधिक दिलचस्पी रखने वाले आदमियों में से हैं।

10. चौधरी गजाधर जी - आप का गोत्र बाटण है। आप सुरपालिया के रहने वाले हैं। आपके गांव में आपके उद्योग और सहयोग से एक जाट पाठशाला चलता है। आप भी इस वर्ष 1948 में मारवाड़ जाट कृषक सुधारक सभा के उप मंत्री हैं।

11. चौधरी धन्नाराम जी पंडेल - आप उसी छोटी खाटू के रहने वाले जाट सरदार हैं जिसके कि चौधरी किसनाराम जी। आप धनी आदमी में से हैं। लेन-देन और व्यापार की ओर आप के पुत्रों की रुचि है आप का गोत्र पंडेल है। इस समय आप की अवस्था 70 साल के आसपास है आप सभा की कार्यकारिणी के सदस्य हैं।

12. चौधरी रामू राम जी - आप लोयल गोत्र के जाट सरदार हैं। स्वामी चैनदास जी के संसर्ग से आप में काफी चेतना पैदा हुई। लाडनू के रहने वाले हैं। इसमें मारवाड़ जाट सभा के आप अंतरंग सदस्य हैं।

[पृ.209]:

13. सूबेदार जोधा राम जी - आप इस समय मारवाड़ जाट कृषक सुधार सभा की वर्किंग कमेटी के सदस्य हैं। और समझदार कार्यकर्ता हैं और खारी गांव के रहने वाले हैं।

14. चौधरी गंगाराम जी मामड़ौदा - आप समझदार आदमी हैं। मारवाड़ जाट कृषक सुधार सभा की इस वर्ष की कार्यकारिणी के मेंबर हैं।

15. चौधरी शिवराम जी मैना - आप जाखेड़ा गांव के रहने वाले मैना गोत्र के जाट सरदार हैं और मारवाड़ जाट सभा की अंतरिम कमेटी के सदस्य हैं।

मारवाड़ के अन्य जाट जन सेवक

उपरोक्त सज्जनों के सिवा जाट कृषक सुधार सभा की प्रबंधकारिणी और कार्यकारिणी में रहकर नीचे लिखे और भी सज्जनों ने जाट जाति की सेवा करके अपने को कृतार्थ किया है, जो निम्न है -

[पृ.210]:


मारवाड़ (जोधपुर स्टेट) के उल्लेखनीय नवयुवक कार्यकर्ता

[पृ.213]: मारवाड़ के पुराने कार्यकर्ताओं के अलावा नवयुक उम्र में भी जाति प्रेम की भावना बड़ी तेजी व उग्रता से बढ़ती जा रही है। इन युवकों का साहस, जाति वत्सलता व कौमी सेवा


[पृ.214]: आदि भावनाओं को देकर इस नतीजे पर सहज ही पहुंचा जा सकता है कि इनके परिश्रम से मरुधर के सारे जाट अपने निजी मतभेद को भूलकर जल्दी ही एक सूत्रधार में बंध जाएंगे और गिरी हुई अपने राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा को जल्दी ही उन्नतिशील बनाएंगे। मारवाड़ के नवयुक जाती सेवकों में निम्न लिखित महानुभावों के नाम उल्लेखनीय हैं:

सीकर के जाट जन सेवक

विस्तार जारी है